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एक 30 वर्षीय विवाहित महिला रोगी!
सर मुझे 3 वर्षों से बालों के झड़ने की समस्या है, कई तरह के आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक व एलोपैथिक तेल–शैम्पू बदल लिए, बड़े–बड़े स्किन स्पेशलिस्ट को दिखा लिया, कोई फायदा नहीं हो रहा सर, क्या करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा, बहुत परेशान हूँ? ऐसे ही चलता रहा तो जल्द ही गंजी हो जाउंगी !! आपके यहाँ का सुना है तो इसलिए थोड़ी सी उम्मीद लेकर आयीं हूँ, कुछ हो सकता है ?
मेरा पहला प्रश्न: Thyroid चेक हुआ है ? रोगी: हाँ, सर नार्मल है, सुबह खाली पेट गोली खा रहीं हूँ 50 mcg की उससे एकदम नार्मल है।
मेरा दूसरा प्रश्न: स्ट्रेस/ चिंता कितनी रहती है?
रोगी: सर यह तो आजकल कॉमन है, बैंकिंग जॉब में हूँ, फिर घर पर छोटा बच्चा भी है उसको भी देखना होता है, घर के भी काम हो जाते हैं, आप तो समझते ही हैं।
मेरा तीसरा प्रश्न: खाने–पीने में non – veg लेती हैं क्या? चाय कितनी पीतीं हैं ? वजन तो नहीं बढ़ रहा हैं ? महीने से जुडी कोई समस्या तो नहीं हैं?
रोगी: सर Non-veg diet बहुत कम लेती हूँ, सप्ताह में 1 – 2 बार, लेकिन जब से ज्यादा वजन बढ़ना शुरू हुआ हैं तबसे बहुत कम कर दिया हैं, चाय दिन में 3 – 4 बार हो जाती है, वजन लास्ट 3 वर्षों में लगभग 20 kg बढ़ गया है, महीना वैसे तो ठीक है लेकिन कभी–कभी समय से पहले या कभी–कभी 15-20 दिन देर से भी आ जाता है।
सामान्य स्थिति में हमारे आयुर्वेद में भी ऐसे किसी रोगी को बालों के झड़ने की समस्या में बढ़िया–बढ़िया जड़ीबूटियों से बने शैम्पू और तेल पकड़ा दिए जाते हैं, लेकिन जैसे एलोपैथ वाले मूल कारण को नजरअंदाज कर देते हैं, कई बार हमारे चिकित्सक भी ऐसा ही करते हैं, जबकि कभी भी किसी भी समस्या से पीड़ित रोगी क्यों न हो, आयुर्वेद के मूल सिद्धांतो के अनुरूप भी एक बार सोचना चाहिए, कई बार सही हल निकल आता है।
जैसे कि इस रोगी में बालों के झड़ने की समस्या को सुनते ही अस्थि धातु क्षय का विचार मन में आना चाहिए, रोगी से जब हम अन्य प्रश्न पूछते हैं तो Hypothyroid का पता लगता है, जिससे उसके मानसिक परेशानियों से जुडी समस्या का मालूम पड़ता है, जब भी कोई व्यक्ति लगातार मानसिक परेशानी में रहता है या क्षमताओं से अधिक कार्य करता है तो शरीर में होर्मोनेस से जुडी परेशानी आना स्वाभाविक है, इस महिला को भी Hypothyroid व मासिक धर्म से जुडी परेशानी इसी कारण से हो रही है, अधिक तनाव व व्यस्त दिनचर्या के कारण तनाव होना स्वाभाविक है।
आधुनिक मत से समझे तो Pituitary Gland से शरीर के सभी होर्मोनेस नियंत्रित होते हैं, जिसकी वजह से Thyroid gland से जुड़े होर्मोनेस बिगड़ने लगते हैं, बहुत कम लोग जानते हैं की Thyroid gland से T3, T4, TSH होर्मोनेस के अतरिक्त Calcitonin हॉर्मोन भी निकलता है जो शरीर में बनने वाले कैल्शियम को नियंत्रित रखता है, इसलिए जब भी Hypothyroid की स्थिति होती है तब यह हॉर्मोन भी कम निकलता है, इसलिए शरीर में दर्द रहना या बालों के झड़ने की समस्या बढ़ जाती है, अब यदि हम इन स्थितियों पर आयुर्वेद के सिद्धांत के अनुरूप विचार करें तो पाएंगे की इस रोगी में मनोवह स्त्रोतस से जुडी समस्या है व रस धातु का पोषण अवरुद्ध हो जाता है जिसके कारण आगे की सभी धातुओं का पोषण रुक जाता है जिसके कारण रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र तक की सभी धातुओं का पोषण नहीं हो पाता जिनसे जुड़े लक्षण भी रोगी में स्पष्ट देखे जा सकते हैं, (धातुओं से जुड़े सिद्धांत को बेहतर तरीके से समझने के लिए खले–कपोत न्याय या केदारी कुल्या न्याय का अध्ययन करने पर यह सिद्धांत और बेहतर तरीके से समझा जा सकता है)
अब इस रोगी में यदि चिकित्सा करनी है तो उसके लिए सिर्फ इन बातों पर ध्यान रखकर स्थाई व अपेक्षित परिणाम दिए जा सकते हैं:
1. मन की चिकित्सा, 2. धातु पोषण की चिकित्सा, साथ में मेद शमन के लिए पाचन चिकित्सा, रोगी का बल बेहतर होने पर स्त्रोतों शोधन व लेखन चिकित्सा से स्थाई परिणाम मिलते है। नस्य का प्रयोग भी हितकर रहता है। 3. सबसे बड़ी व प्रमुख चिकित्सा – निदान परिवर्जन
आयुर्वेद चिकित्सक अपने सिद्धांतो का विश्वास के साथ सही तरह से प्रयोग करें तो रोग में सफलता मिलना तय है।
आयुर्वेद से संभव है थाइरोइड (Hypothyroid) की समस्या का उपचार! सिर्फ 30 दिन में TSH 35.58 से 6.73 हुआ ! आयुर्वेद चिकित्सक समझें चिकित्सा क्रम!
यह रिपोर्ट हमारे यहाँ आयीं एक महिला रोगी की है, जिनकी उम्र 32 वर्ष है, इनको पिछले कुछ महीनों से लगातार वजन बढ़ने की समस्या हो रही थी, साथ में बालों का अधिक झड़ना, साँस का फूलना, कुछ पारिवारिक कारणों की वजह से अत्याधिक तनाव, गुस्सा, चिड़चिड़ापन, इनका बच्चा छोटा होने की वजह से नींद भी पूरी नहीं हो पा रही थी, जिसके कारण चिड़चिड़ापन और अधिक बढ़ रहा था। एलोपैथ की एक महिला डॉक्टर को दिखाने पर उन्होंने कुछ जांचों को करवाने के लिए कहा, जिसमें इनका TSH लेवल 35.58 निकला, इनके किसी जानने वाले ने उन्हें मुझे दिखाने के लिए कहा, सौभाग्य से इन्होंने एलोपैथ की जगह आयुर्वेद को चुना,
हमारे क्लिनिक पर इन्होंने उपचार आरम्भ किया सिर्फ 1 माह के आयुर्वेद के उपचार के बाद इनका TSH अब 6.73 पर आ गया, इसके अतरिक्त रोगी को अन्य शारीरिक लक्षणों में बेहतर लाभ है।
सही समय पर आयुर्वेद चिकित्सा कराने पर व्यक्ति न सिर्फ आजीवन दवाओं को खाने से बच सकता है अपितु आयुर्वेद सम्मत दिनचर्या व आहार अपनाकर रोगों से मुक्त भी हो सकता है।
सामान्यतः ज्यादातर चिकित्सक इस रोग में लाक्षणिक चिकित्सा करते हैं या ऐलोपैथ की दवाओं के माध्यम से जबरदस्ती थाइरोइड के हॉर्मोन्स को बढ़ाने या कम करने का कार्य करते हैं, इस कारण ही इस स्थिति में रोगी को स्थाई लाभ नहीं मिलता।
वास्तविकता में थाइरोइड की समस्या शारीरिक न होकर मन से जुडी अधिक है, इस स्थिति में सबसे पहले रोगी के मन की स्थिति को समझकर चिकित्सा करें, उसके बाद रसवहस्त्रोतो अवरोध को दूर करने का कार्य करें, इस रोग में मेध्य, पाचन, लेखन व रसायन औषधियों का प्रयोग बहुत लाभदायक होता है, संभव हो तो स्रोतो शोधन के पश्चात औषधियों को आरम्भ करें, लघु व सुपाच्य आहार का सेवन करायें, नियमित उज्जयी प्राणायाम, कुछ देर का ध्यान (मैडिटेशन), सुबह खाली पेट तेज क़दमों से टहलने के लिए कहें !!
रोगी यदि शोधन के लिए तैयार हो जाये तो उसे बाह्य अभ्यंग व मृदु स्वेदन व 2 से 3 दिन पंचतिक्त घृत 30 – 40 ml की मात्रा में दें घृत पान के 3 दिन के पश्चात त्रिव्रत लेह से विरेचन करायें।
यदि रोगी का बल बहुत कम हो या वह शोधन के लिए तैयार न हो तब उसे औषधियों के साथ ही ऐसे मृदु विरेचक योगों को दें जिससे उसका मृदु शोधन हो सके, इसके लिए अमलतास या अविपत्तिकर चूर्ण 5 – 10 ग्राम की मात्रा उपयुक्त होती है, मेध्य औषधियों में सारस्वत चूर्ण, ब्राह्मी वटी, स्वर्णमाक्षिक भस्म बेहतर परिणाम देतीं है, पाचन के लिए त्रिकटु चूर्ण बेहतर रहता है, लेखन औषधियों में पुनर्नवा व वरुण चूर्ण का प्रयोग बेहतर रहता है, रसायन औषधियों में गिलोय सत्व का प्रयोग बेहतर परिणाम देता है, इसके अतरिक्त रोगी को अन्य लक्षण जैसे अधिक गैस बनना या बालों के झड़ने की स्थिति में मुक्ताशुक्ति पिष्टी, बल कम होने या हीमोग्लोबिन कम होने की स्थिति में मंडूर भस्म व शतावरी चूर्ण का प्रयोग हितकर रहता है।
इस रोगी के औषध व्यवस्था पत्र में मृदु शोधन के बाद मेध्य, पाचन, लेखन व रसायन औषधियों के प्रयोग के बाद सिर्फ 1 माह में यह परिणाम प्राप्त हुए हैं !
यह परिणाम सिद्ध करते हैं कि यदि रोगी समय से आयुर्वेद चिकित्सा अपनायें व चिकित्सक सही तरह से निदान करके उपचार करे तो गंभीर रोगों में भी आयुर्वेद के माध्यम से अल्प समय में बेहतर व स्थाई परिणाम दिए जा सकते हैं।
आशा है कि अधिक से अधिक आयुर्वेद चिकित्सक इस तरह के रोग से पीड़ित रोगियों का उपचार करके स्वयं का व आयुर्वेद का मान बढ़ाएंगे व जन–जन के जीवन को केमिकल से भरी दवाओं से छुटकारा दिलाएंगे! – जय आयुर्वेद !!