सच्चा प्यार और मोहब्बत यह एक ऐसा माया मृग (छल/झूठ) बनता जा रहा है जिसको पाने के लिए हर कोई उतावला है लेकिन जब इस ओर लोग बढ़ते हैं तब समझ आता है कि जिंदगी तो कुछ और ही है।
वैसे मेरी इस बात से बहुत से लोग भरोसा नहीं करेंगे या संभव है कि नाक-मुंह भी बना लें, खासकर के प्यार की चासनी में लिपटे या यूँ कहूं कि नहाये हुए वो लोग जिनके दिन की शुरुआत और अंत बाबू, सोना, जानू, I love you जैसे शब्दों से शुरू होती है या दिन के कई घंटे इसी तरह की चैट या कॉल में जाते हों! लेकिन यक़ीन मानिये जैसे-जैसे यह लेख आप पढ़ते जायेंगे तो निश्चित ही यह भरोसा तो आपको हो ही जायेगा कि जो विचार और सोच या रिश्ते लेकर आप चल रहे हैं उसपर एक बार गंभीरता से विचार करना कितना जरुरी है, कृपया एक बार गंभीरता से पूरे लेख को अवश्य पढ़ें!
इस लेख में बात शुरू करते हैं दुनिया के सबसे बड़े टॉपिक "मोहब्बत और सेक्स" से (यह बात कई तरह के रिसर्च में सिद्ध हो चुकी है की लोगों के लिए यही विषय सबसे पसंदीदा हैं), आम तौर पर इस संसार में मौजूद लगभग प्रत्येक प्राणी के जीवनचक्र का यह एक ऐसा पहलु है जिससे शायद ही कोई अछूता रहा हो, इससे न इंसान बचा और न जानवर!
जाहिर सी बात है कि जब इतने तरह के प्राणी और इतना बड़ा संसार इसी ओर भाग रहा है तो कुछ तो विशिष्ट होगा ही इसमें, वैसे यदि विज्ञान की भाषा में इसको कहें तो यह हमारे शरीर में मौजूद कुछ विशेष तरह के Hormones से जुड़ा हुआ है, और यदि आध्यात्म या आयुर्वेद की भाषा में कहें तो यह यह मानवीय संवेदनाओं, भावनाओं और जीवन की इच्छा से जुड़ा हुआ है।
अब जब बात रिश्तों की आती है , खासकर के जिसे आज के समय में विपरीत लिंग के साथ आकर्षण को प्रेम का नाम दे दिया गया है उसमें कई तरह के विकार या गलत भाव आ चुके हैं, यदि इसकी जड़ में जाएँ तो विज्ञान के हिसाब से इसके लिए जो सबसे बड़ा हॉर्मोन जिम्मेदार है वो है टेस्टोस्टेरोन (Testosterone) इसे हम male (पुरुष) हॉर्मोन भी कहते हैं, यह हॉर्मोन आदमियों में या इस दुनिया के सभी तरह के नर चाहे वो गधा, घोड़ा, कुत्ता, हाथी, शेर आदि कोई भी हो उन सभी में मौजूद होता है जिसका काम है पुरुषों में सेक्स ड्राइव को बढ़ाना!
प्राकृतिक रूप से 99.99% पुरुषों में जब विपरीत लिंग के प्रति जब प्यार / मोहब्बत और इश्क़ जैसा कुछ भी आता है तो उसके दिमाग में शुरुआत से लेकर आगे तक अपने साथी के साथ सेक्स ही आकर्षण का सबसे पहला और अंतिम पहलु होता है, संभव है आप में से कुछ लोग इससे सहमत न हों लेकिन पुरुषों की यह प्राकृतिक स्थिति होती है और विज्ञान के कई रिसर्च भी यही सिद्ध करते हैं!
हालाकिं निश्चित रूप से अपवाद भी होते हैं और कई परिस्थितियों और रिश्तों के अनुरूप भी पुरुषों का व्यवहार बदल जाता है जैसे परिवार में मौजूद अन्य महिलाओं जैसे : माता, बहन, दादी, बेटी आदि के प्रति निश्चित रूप से पुरुषों के विचार और सोच अलग चलती है, लेकिन जैसे ही वह इन रिश्तों के दायरे के बाहर खड़ा होता है और उसे विपरीत लिंग का कोई दिखता है तो स्वतः ही उसका टेस्टोस्टेरोन हॉर्मोन उसके ऊपर हावी होने लगता है, हालाँकि वर्तमान समय में यह सब इसलिए भी बहुत अधिक बढ़ा है क्योंकि आज के समय में सोशल मीडिया और इंटरनेट के माध्यम से प्रत्येक तरह की सामग्री और अश्लीलता इतने सहजता से सभी के लिए उपलब्ध है कि लोगों ने इन बातों को ही सही दुनिया समझ लिया है साथ ही इस विषय पर सही एजुकेशन के नाम पर महज मजाक भर ही हमारे समाज के बीच में है। वहीं इसके विपरीत सात्विक (मन की बेहद ही प्रसन्न और संतुष्ट रहने वाली अवस्था) आचरण, सदाचार या ब्रह्म की चर्या जिसे ब्रह्मचर्य का नाम दिया गया इस सभी की भी व्याख्या लोगों ने अपने-अपने मन से करके ऐसी बना दी है कि इसे या तो मजाक का विषय समझा जाता है या फिर कुछ आदर्श पुरुषों की स्थिति की तरह देखा जाने लगा है!
वहीं दूसरी ओर जब हम महिलाओं की बात करते हैं तो उनमें प्रोजेस्टेरोन (Progesterone) हॉर्मोन शरीर के सेक्सुअल व्यवहार, मासिक चक्र आदि के लिए जिम्मेदार होता है, साथ ही यह हार्मोन महिलाओं में चिड़चिड़ापन, उदासी, चिंता आदि जैसे इमोशनल बदलावों के लिए भी जिम्मेदार होता है। इसलिए ही जब महिलाएं अपनी मर्जी से किसी के साथ शारीरिक संपर्क में आती हैं तो उनके साथ बेहद ही ज्यादा भावनात्मक रूप से खुद को जोड़ लेती हैं और ऐसे पुरुष के लिए भी वे कुछ भी करने को तैयार हो जाती हैं!
महिलाओं और पुरुषों के इन्हीं अलग-अलग हॉर्मोन्स के कारण जो प्यार को लेकर ग्राफ की स्थिति बनती है वो कुछ इस तरह की होती है:
पुरुष जो आरम्भ में बेहद प्यार करने वाले, उतावले, अपनी प्रेमिका के लिए कुछ भी कर डालने की बात करने वाले आदि-आदि तरीके के आदर्श आचरण और व्यवहार करते हैं वे अचानक ही जैसे ही उनका मुख्य काम होता है अर्थात जैसे ही उनका टेस्टोस्टेरोन हॉर्मोन से जुड़ा काम या यह संतुष्ट होता है मतलब उसका सेक्स से जुड़ा कार्य पूरा होता है वैसे ही वो रंग बदलना आरम्भ कर देता है। वह व्यक्ति धीरे-धीरे फिर कोई और की तलाश की ओर बढ़ जाता है या जिसके साथ है तो वह और अधिक आनंद प्राप्त नहीं कर पाता है। (निश्चित रूप से इस लेख में मेरे द्वारा लिखी जा रहीं बातें एक आदर्श स्थिति नहीं है बल्कि आज के विकृत हो चुके विचारों, परिस्थितियों और सामाजिक स्थिति है, लेकिन न चाहते हुए भी एक कटु सत्य ही है!) अर्थात पुरुषों का प्यार का ग्राफ जो शुरू में चरम सीमा पर या अपने टॉप स्तर पर था वो ऊपर से नीचे और नीचे से और धरातल यानी की निगेटिव की ओर बढ़ता जाता है। (हाँ यह संभव है कि कुछ पुरुषों में यह प्यार का ग्राफ एकदम तेज़ी से कुछ ही हफ़्तों या महीनों में नीचे चला जाता है और कुछ में नीचे जाने में कुछ वर्ष भी लगते हैं लेकिन वर्तमान समय के पुरुष स्वाभाव के अनुसार यह ग्राफ जाता नीचे ही है।)
जबकि इसके विपरीत महिलाओं की स्थिति एकदम अलग होती है, आरम्भ में उनके प्यार का ग्राफ एक सामान्य लेवल पर या बिल्कुल ही प्रारंभिक स्थिति में होता है, जो धीरे-धीरे कई तरह की स्थितियों और सामने वाले की ओर से किये जा रहे कई प्रयासों और आकर्षण से धीरे-धीरे बढ़ता जाता हैं और जब वे इस स्तर पर पहुँच जातीं हैं कि वे पुरुष के साथ शारीरिक संपर्क स्थापित कर लेती हैं तो वे किसी भी स्थिति में अपने उस प्यार करने वाले पुरुष के साथ ही रहना चाहती हैं। यहाँ तक कि वे उसके लिए घर-परिवार, माता-पिता आदि सभी को छोड़ने के लिए तैयार हो जाती हैं, अभी दिल्ली में हुआ श्रद्धा मर्डर केस इसका एकदम आदर्श उदाहरण है, कि आफताब नाम के लड़के के साथ उसकी लगातार हिंसा होती थी, रिश्ता बिगड़ता ही जा रहा था, लेकिन उस सबके बाद भी वो किसी न किसी बहकावे में आकर उस लड़के से अलग नहीं हो पा रही थी, यहाँ तक कि अपने परिवार और दोस्तों से भी अच्छी खासी दूरी बनाकर के रह रही थी, उसके पिता को उसके दोस्तों से बात करके या सोशल मीडिया के उसके अकाउंट से उसका हाल पता चलता था। हालाकिं लड़कियों से माता-पिता या परिवार के साथ सही से न जुड़ पाने को लेकर या अपनी बात खुलकर न कर पाने के कई और सामाजिक पहलु हैं जिन्हें हम इसी लेख में आगे पढ़ेंगे!
महिलाओं के प्यार का ग्राफ नीचे या बीच से ऊपर और उससे और ऊपर की ओर ही बढ़ता जाता है। और उनकी इन्हीं भावनाओं और पहलु के कारण उनमें शुरू होती है एक अजीब सी स्थिति जिसे साइकोलॉजी की भाषा में "Bad Faith" कहते हैं, वैसे तो इस शब्द की व्याख्या में कई लम्बे-लम्बे विचार लिखे गए हैं, लेकिन इस लेख के विषय के सन्दर्भ में यदि लिखूं तो इसका अर्थ यह है कि लड़कियां खुद को झूठी तसल्ली या झूठा भरोसा देना शुरू कर देती हैं, और अधिक सरल भाषा में कहूं तो रिश्तों में दिख रही समस्याओं को नज़रअंदाज करना आरम्भ कर देती हैं!
जैसे जब उनका पुरुष पार्टनर उनको कम समय देना शुरू करता है तो वे समझ नहीं पातीं या समझकर भी "Bad Faith" के भरोसे बैठी होती हैं शायद सब अच्छा हो जायेगा या शायद बेचारा काम में या परिवार में उलझ रहा है, या वो बहाने जो लड़का बनाना शुरू करता है या अलग-अलग इमोशनल तरीके से बहलाता है तो उसमें बिना दिमाग लगाए भरोसा करती चली जाती हैं!
आजकल के दौर में इस तरह कि स्थितियां सबसे ज्यादा लिव-इन रिलेशन में या लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप में या लम्बे समय से प्यार में डूबे तथाकथित प्यार करने वाले युवाओं में ज्यादा दिखाई देती हैं, जिसके कई सामाजिक पहलु भी होते हैं!
जैसे लड़के-लड़की का अलग-अलग जाति (कास्ट) या धर्म का होना, यह आजकल की एक बहुत कॉमन समस्या है!
यह एक बड़ी समस्या तब और बन जाती है जब लड़का या लड़की में से कोई एक अपने माँ-बाप के साथ रह रहा होता है, क्योंकि ऐसे में उस लड़के या लड़की के ऊपर माता-पिता का इमोशनल प्यार या आज की भाषा में कहें तो अत्याचार चल रहा होता है, क्योंकि माँ या बाप या कभी-कभी दोनों को यह लगता है कि इस बच्चे को तो हमने बचपन से पाला है, बड़ा किया है और अचानक से कुछ महीनों से या सालों में मेरा यह बच्चा / बच्ची इस लड़की या लड़के से कनेक्ट हो गई है और अब यह हमारी जगह उसको ज्यादा तबज्जो कैसे दे सकता है!! कई बार यह स्थिति उन माँ-बाप के ईगो को हर्ट कर देता है जो वे या तो गुस्से में बातों के माध्यम से निकालते हैं या कई बार माँ-बाप या परिवार के लोग अपने झूठे अहंकार या झूठी सामाजिक इज्जत के नाम पर इतना गंभीरता से ले जाते हैं कि अपने ही बच्चे या बच्ची की हॉनर किलिंग तक पहुंच जाते हैं लेकिन ज्यादातर मामले स्लो पाइजन (धीमे जहर) के रूप में आगे बढ़ते हैं!
स्लो पाइजन वाली स्थिति ज्यादातर बार लड़कियों के साथ शादी के बाद ज्यादा होती है, इसकी एक बेहद बड़ी वजह उत्तर भारत में मुझे देखने को मिली वो है ऐसे रिश्तों में लड़के वालों के घर वालों की कई इच्छाएं अधूरी रह जाती हैं जो वे लड़के के दवाब में उस समय तो नहीं बोल पाते लेकिन धीरे-धीरे जैसे ही कुछ समय बीतता है वो स्लो पाइजन के रूप में बाहर निकलती हैं, जैसे जब लड़का-लड़की लव मैरिज या इंटरकास्ट मैरिज कर लेते हैं तब शुरुआत शादी और परिवार के रीति-रिवाजों से शुरू होती है कि.... लड़की के घर वालों को तो ये नहीं पता वो नहीं पता!! इन्होने वो सम्मान नहीं किया!! ये गलत कर दिया...शुरू में प्यार में डूबे लोग इसको हँसते हुए नज़रअंदाज करते हैं!!
कई बार यह स्थिति अच्छे से दहेज़ न मिल पाने के कारण भी बनती है (हमारे देश में विशेषकर के उत्तर भारत में यदि किसी का लड़का थोड़ा सा पढ़-लिख जाता है या कुछ सही कमाने लगता है तो वो उनके लिए एक दुधारू गाय की तरह होता है, जिसे बाजार में कई तरह की बोली लगाकर लोग अपनी लड़कियों के लिए रिश्ता करने के लिए एक पैर पर तैयार खड़े होते हैं), लेकिन ऐसे आकर्षक पैसों से भरे ऑफर के बीच में जो माँ-बाप या परिवार इस काम में अपने बच्चे की लव मैरिज के चक्कर में चूक जाते हैं वे शादी के बाद बेहद अजीब-अजीब से तर्कों के साथ उनकी यह अधूरी इच्छा कई तरह की भड़ास के रूप में बाहर निकलती है और इसका पूरा सामना लड़की को अकेले ही झेलना पड़ता है! और इस स्थिति में कोढ़ में खाज वाली बात यह और होती है कि लड़की के घर वाले भी उसका साथ नहीं दे रहे होते क्योंकि लड़की ने अपनी जिद से शादी की होती है तो जिससे उसके खुद के माँ-बाप का पहले ही ईगो हर्ट हुआ होता है और ऐसी स्थिति देखकर उनको कहने या बातें सुनाने का मौका मिल जाता है कि तुम्हें तो हमने पहले ही मना किया था लेकिन तुमने हमारी बात कहाँ मानी...., कई बार तो लड़कियां खुल के अपने दिल की बात और स्थिति अपने माँ-बाप को इस कारण ही नहीं बताती क्योंकि वो ही स्वयं को इस स्थिति का जिम्मेदार मानती हैं और एक Bad Faith के सहारे खुद को समझातीं रहती हैं!
कुछ महिलाएं ऐसी स्थिति से बचने के लिए यह सोचती हैं कि शायद उनका बच्चा हो जायेगा तो ऐसा नहीं होगा, लेकिन अधिकांश हालातों में यह रुकता नहीं बस स्थिति एक अलग तरह की ढलान की ओर बढ़ जाती है जहाँ से ऊपर आना बेहद मुश्किल या यूँ कहें नामुमकिन सा होता है!!
अब ऐसे में वे लड़कियां ज्यादा खुशकिस्मत होती हैं जो शादी से पहले ही ऐसी किसी स्थिति का सामना करती हैं, जहाँ लड़के के घरवाले उसे किसी और जगह दवाब बनाने के लिए कह रहे होते हैं, वो भी यही कह रहा होता है कि बाबू तुमसे तो मैं दिल-जहाँ से प्यार करता हूँ लेकिन अब घर वालों को कैसे समझाऊं मैं नहीं समझ पा रहा, कई लड़के खुल के नहीं बोलते तो कई मन में उस लड़की से सही में पूरी तरह से ऊब चुके होते हैं और नए रिश्ते में एक नया साथी और पैसा दोनों ही उसको दिख रहा होता है ......कई हिम्मत करके यह बोल देते हैं कि मैं शादी नहीं कर सकता .... लड़कियों को इस स्थिति में तत्काल समझ जाना चाहिए कि यह एक अलार्म वाली स्थिति है लेकिन उनको लगता है कि नहीं ऐसा कैसे हो सकता है जो लड़का दिन रात मेरे पीछे दुम हिलाता था, या जो अभी भी मुझे चाहता है, या यह तो मेरे हुस्न या सुंदरता पर लट्टू था, अचानक इसको क्या हो गया (ऐसा ही वहम शायद दीपिका पादुकोण को रहा होगा लेकिन वो भी ऐसे ही टॉक्सिक रिलेशनशिप के चक्कर में डिप्रेशन में जा चुकी हैं, जिन लोगों को यह किस्सा पता नहीं तो वे गूगल अवश्य करें)..... किसी भी लड़की के लिए यह बात निश्चित रूप से ख़राब ही लगेगी कि उसके साथ हर तरह का समय बिताने के बाद यह लड़का अपने घर की या किसी स्थिति से अब पीछे हटने की बात कर रहा है, या कई बार लड़के पीछा छुड़ाने के लिए लड़ाई-झगड़ा, मार-पिटाई भी कर देते हैं ...
लेकिन इन सबके बाद भी लड़कियां कई बार यह सोचती हैं कि जिस लड़के के सामने उन्होंने अपना सबकुछ दे दिया अब कोई और उनको स्वीकार कैसे करेगा!! किसी और के सामने वो खुलकर कैसे बता पाएंगी कि उनका किसी के साथ रिश्ता था!! या अभी जो लड़का उनके साथ है वो इतना अच्छा है या देखने में इतना सुन्दर है या कोई और तर्क से सिर्फ यह सोचती हैं कि यह चला गया तो कोई दूसरा कैसे मिलेगा ...और इन्हीं सब कारणों, अपने हॉर्मोन और Bad Faith के आगे मजबूर होकर उस हिस्से की ओर आगे बढ़ जाती हैं जहाँ शुरू से ही उन्हें आगे न बढ़ने के कई indication उन्हें मिल रहे होते हैं, लड़कियों को अपने ऐसे कदम के चक्कर में समाज, परिवार और यहाँ तक की अपने जीवन के लिए देखे जाने वाले कई सपनों से समझौता या बगावत करनी पड़ती है लेकिन बस इस भरोसे से वो आगे बढ़ती जाती हैं कि उनके साथ कुछ गलत नहीं हो सकता और हकीकत कभी श्रद्धा मर्डर के रूप में तो कभी दहेज़ हत्या के रूप में तो कभी खुद जाकर सुसाइड जैसे भयावह कदम उठाने पड़ते हैं।
इस लेख में एक अंतिम बात और जोडू तो लड़कियों की फंतासी (Fantasy) की स्थिति भी कई बार गंभीर परिणामों को लेकर के आती हैं, क्योंकि हमारे भारत में लड़कियों को माँ-बाप या परिवार हमेशा बेहद देखरेख वाले तरीके से पालने की कोशिश करता हैं जैसे यह ड्रेस क्यों पहनी, इसके साथ क्यों जा रही हो, इतना क्यों खर्च कर रही हो, यह बनाना सीखो, ससुराल जाकर यह करना यहाँ नहीं चलेगा यह सब, या लड़की कमाने लगती हैं तो उसकी आमदनी पर नियंत्रण करते हैं, रात में यहाँ क्यों जा रही हो, यह क्यों कर रही हो वो क्यों कर रही हो आदि....आदि... ऐसे सब में लड़की के अंदर एक अनचाही फंतासी (Fantasy) बढ़ती जाती है कि जब शादी होगी तो यह करुँगी, वहां घूमूंगी, या कोई शादी से पहले मिल जाता है तो उससे उम्मीदें होती हैं कि वो ऐसा करेगा या उसके साथ ऐसा करुँगी!
शादी या प्यार की आरम्भिक स्थिति तो अच्छी लगती है, गाड़ियों या बाइक में बैठकर हाथ में हाथ डालकर घूमना या कुछ न कुछ जुगाड़ बनाकर पैसे इकट्ठे करके छोटे-मोटे ट्रिप प्लान करना या यादगार लम्हे गुजारना नए-नए प्रेमी युगलों को बेहद अच्छा लगता है लेकिन जब जिंदगी की हकीकत सामने आती है जिसमें रोज पेट भरने का जुगाड़ करना होता है, जिसमें एक-दूसरे के अलावा भी बहुत से काम और सपने पूरे करने होते हैं और किसी कारण से वो पूरे नहीं होते तो शुरू हो जाता है Bad Faith का खेल या कुछ सपनों को ख़त्म करने का काम और बस यहीं से रिश्तों की जटिलता समझ आनी शुरू हो जाती है।
वैसे ऊपर लिखा गया जो कुछ भी लिखा गया है वो किसी भी आदर्श रिश्ते में हो सकता है क्योंकि दुनिया में आदर्श रिश्ता जैसा कुछ नहीं होता, हाँ इतना जरूर है कि अच्छे रिश्तों में कड़वाहट इतनी नहीं होती कि बहुत कुछ दांव पर लगाना पड़ता है, हाँ संघर्ष तो होता है लेकिन जीवन में संघर्ष उतना ही होना चाहिए जो सहने लायक हो, गंभीर होती स्थिति को समय से पहले पहचानना ही समझदारी होती है अन्यथा भाग्य को, लोगों को दोष देना दुनिया में सबसे आसान काम है।
चलते-चलते ऐसी अप्रिय स्थितियों से बचने के लिए कुछ प्रैक्टिकल समाधानों को भी लिख रहा हूँ:
दुनिया में सबसे ज्यादा खुद को प्यार करें, और किसी भी चीज़ से ज्यादा अपने भविष्य के सपनों को सबसे ज्यादा सम्मान दें!
अपने जीवन का निर्धारण किसी और के भरोसे या हाथों करने से पहले खुद के हाथों से करें, अर्थात सबसे पहले अपने लिए सोचें, अपने जीवन और अपने करियर के लिए निर्धारित सपनों के लिए सोचें।
चाहें कोई प्राणों से भी ज्यादा प्यारा क्यों न हो उसपर भरोसा एक तय दायरे में ही करें, और साथ ही स्वयं से झूठ या स्वयं को झूठी तसल्ली बिल्कुल न दें, स्वयं के जीवन की स्थिति का आंकलन 100% ईमानदारी के साथ करें!
अपने माता-पिता, परिवार, मित्र या किसी भी अन्य पर एक सीमा तक ही भरोसा करें, अंत में वे भी एक इंसान हैं और वे भी इमोशन के साथ जीते हैं, संभव है कि वे आपका अच्छा ही सोचेंगे लेकिन सबकुछ ही अच्छा सोचेंगे या करेंगे ऐसा हमेशा सही नहीं होता।
अपने जीवन में किसी के भरोसे ख़ुशी पाने से पहले अपने आपको इतना प्यार दें किसी से कुछ न मिले तब भी ख़ुशी के लिए किसी का मोहताज न होना पड़े!
इमोशनल रहें, भावनाओं में बहें, अपने भरोसे या श्रद्धा को खूब कायम रखें लेकिन तर्क का भी उतना ही इस्तेमाल करें जितना आपके लिए कुछ और जरुरी है।
जीवन में कुछ भी करने से पहले अपने स्वयं के लिए एक अपनी क्षमताओं और उन क्षमताओं से कुछ ज्यादा एक लक्ष्य जरूर निर्धारित करें!
सकारात्मक साहित्य और अच्छे विचारों वाले लेखकों को लगातार पढ़ें!
जीवन में तकदीर के भरोसे न रहें क्योकिं ज्यादातर बार तकदीर हमारे किये गए कार्यों के भरोसे बैठी होती है और जीवन में हमें वैसे ही परिणाम मिलते हैं जो काम हम करते हैं। (जो बोया जाता है वो काटना ही पड़ता है, यह प्रकृति का और कर्म का अटल नियम है)
हो सके तो किसी बात का यदि आप अकेले निर्णय नहीं ले पा रहे हैं तो ऐसे लोगों से परामर्श अवश्य लें जिनसे आपको लगता है कि अच्छा समाधान या सुझाव मिल सकता है!
ऐसे कामों में समय ज्यादा दें जो आपके जीवन में बेहतर लाभ दे सकते हैं, सोशल मीडिया पर बहुत ज्यादा समय खर्च करने से बचें!
श्रीमदभगवत गीता के अध्याय 13 के इन श्लोकों में सम्पूर्ण जीवन का सार है, हालाँकि सिर्फ इतने से बहुत कुछ समझ में आ जाये यह कठिन है, लेकिन भगवत गीता का नियमित अध्ययन आपको बहुत सी समस्याओं के समाधान प्राप्त करने में निश्चित मदद करेगा ! इसलिए जब भी समय मिले श्रीमदभगवत गीता का अध्ययन अवश्य करें!
अमानित्वमदम्भित्वमहिंसा क्षान्तिरार्जवम् । आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्मविनिग्रहः ॥ ८ ॥
इन्द्रियार्थेषु वैराग्यमनहङ्कार एव च । जन्ममृत्युजराव्याधिदुःखदोषानुदर्शनम् ॥ ९ ॥
असक्तिरनभिष्वङ्ग: पुत्रदारगृहादिषु । नित्यं च समचित्तत्वमिष्टानिष्टोपपत्तिषु ॥ १० ॥
मयि चानन्ययोगेन भक्तिरव्यभिचारिणी । विविक्तदेशसेवित्वमरतिर्जनसंसदि ॥ ११ ॥
अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं तत्वज्ञानार्थदर्शनम् । एतज्ज्ञानमिति प्रोक्तमज्ञानं यदतोऽन्यथा ॥ १२ ॥
भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि: विनम्रता, अभिमान का त्याग (दम्भहीनता), अहिंसा, सहिष्णुता, सरलता, ज्ञानवान व्यक्ति को गुरु मानकर उनसे सीखना, पवित्रता, स्थिरता, आत्मसंयम, इन्द्रियतृप्ति के विषयों का त्याग करना, अहंकार का अभाव, जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था तथा रोग के दोषों की अनुभूति, वैराग्य, सन्तान, स्त्री, घर तथा अन्य वस्तुओं की ममता से मुक्ति, अच्छी तथा बुरी घटनाओं के प्रति समभाव, ईश्वर (भगवान कृष्ण) के प्रति निरन्तर अनन्य भक्ति, एकान्त स्थान में रहने की इच्छा, जन समूह से विलगाव, आत्म-साक्षात्कार की महत्ता को स्वीकारना, तथा परम सत्य की दार्शनिक खोज - इन सबको मैं ज्ञान घोषित करता हूँ और इनके अतिरिक्त जो भी है, वह सब अज्ञान है।
इस लेख में मेरी ओर से कोशिश की गई है कि तथ्यों, तर्कों और जीवन में सैकड़ों लोगों से मिले अनुभवों के आधार पर ही विचारों को संकलित करके आप सभी को साझा करूँ, वैसे अभी भी इस विषय पर लिखने को इतना कुछ है कि एक बड़ा संकलन तैयार किया जा सकता है, और साथ ही मेरे पुरुष मित्रों को लेकर भी बहुत कड़ा लिखा हूँ जिसके लिए दिल से खेद हैं लेकिन क्योंकि लेख का जो विषय है उसके इर्द-गिर्द ईमानदारी से लिखने का प्रयास किया है, लेकिन यह वादा है कि मानवीय रिश्तों और उनके व्यवहारों के ऊपर मेरी ओर से यह श्रंखला अब लगातार जारी रहेगी जिसमें पुरुषों के भावनात्मक पहलुओं पर भी गहराई से लिखूंगा!
आशा है कि आप सभी को इस लेख में दिए गए विचार सही लगे होंगे, यदि किसी विषय, तथ्य या विचार से आपकी कोई असहमति है या आपके पास भी इस लेख के विषय के इर्द-गिर्द कुछ और विचार या अनुभव साझा करने हों तो मुझे मेरी ईमेल [email protected] पर अवश्य लिखकर के भेजें, आपके सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी!
आपका !
आयुर्वेदाचार्य डॉ. अभिषेक !!
दुनिया भर में संक्रमण मौत का प्रमुख कारण बना हुआ है। भारत में 2019 में कम से कम 6.8 लाख मौतों के लिए पांच बैक्टीरिया जिम्मेदार थे। यह खुलासा लैंसेट के एक नए अध्ययन से पता चला है। भारत में पांच घातक जीवाणु ई.कोली के साथ-साथ एस. निमोनिया, के. निमोनिया, एस. ऑरियस और ए. बॉमनी आदि पाए जाते हैं।
अकेले ई. कोली ने 2019 में भारत में कम से कम 1.6 लाख लोगों की जान ली।
वैश्विक स्तर पर 11 संक्रामक सिंड्रोम में पाए जाने वाले 33 जीवाणुओं के जरिए 77 लाख मौतें हुईं।
लैंसेट ने कहा है, इस अध्ययन में जिन 33 जीवाणु रोगजनकों की हमने जांच की, वे वैश्विक स्तर पर रोग फैलाने के एक प्रमुख स्रोत हैं।
शोधकर्ताओं ने कहा, इसलिए इन पर प्राथमिकता के आधार पर नियंत्रण पाने का प्रयास करना चाहिए।
बर्डन ऑफ एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस 2019 स्टडी के अनुसार शोधकतार्ओं ने ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज, इंजरीज एंड रिस्क फैक्टर्स स्टडी (जीबीडी) 2019 के तरीकों का इस्तेमाल करते हुए 2019 में 11 संक्रामक सिंड्रोमों में 33 बैक्टीरियल जेनेरा या प्रजातियों से जुड़ी मौतों का अनुमान लगाया।
2019 में संक्रमण से अनुमानित 13.7 मिलियन मौतों में से इन जीवाणुओं से होने वाली मौतें 7.7 थीं।
54.9 प्रतिशत मौतों के लिए स्टैफिलोकोकस ऑरियस, एस्चेरिचिया कोली, स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनिया, क्लेबसिएला न्यूमोनिया और स्यूडोमोनास एरुगिनोसा जिम्मेदार थे।
अध्ययन में कहा गया है, इन जीवाणु रोगजनकों से उप-सहारा अफ्रीका सुपर-क्षेत्र में सबसे अधिक मौतें हुईं।
135 देशों में मृत्यु का प्रमुख कारण सॉरियस जीवाणु था। यह विश्व स्तर पर 15 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों में सबसे अधिक मौतों से भी जुड़ा था।
5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौतो के लिए एस निमोनिया सबसे बड़ा कारण रहा।
2019 में, 6 मिलियन से अधिक मौतें तीन जीवाणु संक्रामक सिंड्रोम के परिणामस्वरूप हुईं, जिनमें कम श्वसन संक्रमण और रक्तप्रवाह संक्रमण प्रत्येक के कारण 2 मिलियन से अधिक मौतें हुईं और पेरिटोनियल और इंट्रा-पेट के संक्रमण के कारण 1 मिलियन से अधिक मौतें हुईं। (एजेंसी)
यह भी पढ़े► 'अच्छे' कोलेस्ट्रॉल का स्तर ज्यादा होना हृदय रोग के जोखिम में कमी की गारंटी नहीं
अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन (एएचए) के अनुसार, उचित नींद को अब आदर्श हृदय और मस्तिष्क स्वास्थ्य के लिए एक आवश्यक घटक माना जाता है। एसोसिएशन ने इस सप्ताह अपने कार्डियोवैस्कुलर स्वास्थ्य स्कोर में नींद की अवधि को जोड़ा - जिसे लाइफ एसेंशियल 8 के रूप में जाना जाता है जिसमें आहार, शारीरिक गतिविधि, निकोटीन एक्सपोजर, वजन, कोलेस्ट्रॉल, रक्त शर्करा और रक्तचाप शामिल हैं।
हृदय रोग (सीवीडी) विश्व स्तर पर मृत्यु का प्रमुख कारण हैं।
2019 में सीवीडी से अनुमानित 17.9 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई, जो सभी वैश्विक मौतों का 32 प्रतिशत है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, इन मौतों में से 85 प्रतिशत दिल का दौरा और स्ट्रोक के कारण हुईं।
सीवीडी से होने वाली मौतों के तीन चौथाई से अधिक निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होते हैं।
पिछले दो दशकों में विभिन्न शोध अध्ययनों से संकेत मिलता है कि सभी कार्डियोवैस्कुलर घटनाओं में से 80 प्रतिशत से अधिक स्वस्थ जीवनशैली और ज्ञात कार्डियोवैस्कुलर जोखिम कारकों के प्रबंधन से रोका जा सकता है।
डोनाल्ड एम लॉयड जोन्स, अहा के अध्यक्ष ने कहा- "नींद की अवधि की नई मीट्रिक नवीनतम शोध निष्कर्षो को दर्शाती है, नींद समग्र स्वास्थ्य को प्रभावित करती है, और स्वस्थ नींद पैटर्न वाले लोग वजन, रक्तचाप या टाइप 2 मधुमेह के जोखिम जैसे स्वास्थ्य कारकों को अधिक प्रभावी ढंग से प्रबंधित करते हैं।"
लॉयड-जोन्स, जो नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के फीनबर्ग स्कूल ऑफ मेडिसिन में हार्ट रिसर्च के प्रोफेसर भी हैं ने कहा, "इसके अलावा, नींद को मापने के तरीकों में प्रगति, जैसे पहनने योग्य उपकरणों के साथ, अब लोगों को घर पर उनकी नींद की आदतों पर मजबूती से और नियमित रूप से निगरानी करने की क्षमता प्रदान करती है।"
लॉयड-जोन्स ने कहा, "इष्टतम हृदय स्वास्थ्य का विचार महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह लोगों को जीवन के किसी भी चरण में काम करने के लिए सकारात्मक लक्ष्य देता है।"
लाइ़फ्स एसेंशियल 8 के प्रत्येक घटक, जिसका मूल्यांकन माई लाइफ चैक टूल द्वारा किया जाता है, में 0 से 100 अंकों तक की एक अद्यतन स्कोरिंग प्रणाली है। 0 से 100 अंक तक का समग्र हृदय स्वास्थ्य स्कोर 8 स्वास्थ्य उपायों में से प्रत्येक के स्कोर का औसत है।
50 से नीचे के समग्र स्कोर 'खराब' हृदय स्वास्थ्य को इंगित करते हैं, और 50-79 को 'मध्यम' हृदय स्वास्थ्य माना जाता है। सकुर्लेशन जर्नल में प्रकाशित एडवाइजरी के अनुसार, 80 और उससे अधिक अंक 'उच्च' हृदय स्वास्थ्य का संकेत देते हैं।
लॉयड-जोन्स ने कहा, "लाइफ्स एसेंशियल 8 यह पहचानने की हमारी क्षमता में एक बड़ा कदम है कि कब कार्डियोवैस्कुलर स्वास्थ्य को संरक्षित किया जा सकता है और कब यह उप-इष्टतम है। इसे सभी लोगों के लिए और हर जीवन स्तर पर कार्डियोवैस्कुलर स्वास्थ्य में सुधार के प्रयासों को सक्रिय करना चाहिए।" (एजेंसी)
यह भी पढ़े► काम की थकान से बचने के लिए इन उपायों की लें मदद
वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से समय से पहले मरने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि दक्षिण एशिया के शहरों में सबसे ज्यादा है। एक शोध के अनुसार, भारत में वायु प्रदूषण ने मुंबई, बैंगलोर, कोलकाता, हैदराबाद, चेन्नई, सूरत, पुणे और अहमदाबाद में अनुमानित 1,00,000 लोगों की अकाल मृत्यु का कारण बना।
बर्मिघम विश्वविद्यालय और यूसीएल के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि तेजी से बढ़ते उष्णकटिबंधीय शहरों में 14 वर्षो में लगभग 1,80,000 परिहार्य मौतें वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ने के कारण हुई।
वैज्ञानिकों की अंतर्राष्ट्रीय टीम ने 2005 से 2018 के लिए नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) के उपग्रहों से अंतरिक्ष-आधारित अवलोकनों का उपयोग करके अफ्रीका, एशिया और मध्य पूर्व में 46 भविष्य के मेगासिटीज के लिए वायु गुणवत्ता में डेटा अंतराल को कम करने का लक्ष्य रखा है।
शोध में जिन शहरों का विश्लेषण किया गया, वे हैं : अफ्रीका : आबिदजान, अबुजा, अदीस अबाबा, एंटानानारिवो, बमाको, ब्लैंटायर, कोनाक्री, डकार, दार एस सलाम, इबादान, कडुना, कंपाला, कानो, खार्तूम, किगाली, किंशासा, लागोस, लिलोंग्वे, लुआंडा, लुबुम्बाशी, लुसाका, मोम्बासा, एन'जामेना, नैरोबी, नियामी और औगाडौगौ।
दक्षिण एशिया : अहमदाबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, चटगांव, ढाका, हैदराबाद, कराची, कोलकाता, मुंबई, पुणे और सूरत।
दक्षिण पूर्व एशिया : बैंकॉक, हनोई, हो ची मिन्ह सिटी, जकार्ता, मनीला, नोम पेन्ह और यांगून।
मध्य-पूर्व : रियाद और सना
साइंस एडवांस में 8 अप्रैल को प्रकाशित, अध्ययन से वायु गुणवत्ता में तेजी से गिरावट और स्वास्थ्य के लिए खतरनाक वायु प्रदूषकों के शहरी जोखिम में वृद्धि का पता चलता है।
सभी शहरों में लेखकों ने पाया कि प्रदूषकों में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) के लिए 14 प्रतिशत तक और सूक्ष्म कणों (पीएम2.5) के लिए आठ प्रतिशत तक, साथ ही पूर्ववर्ती में वृद्धि के लिए सीधे खतरनाक प्रदूषकों में महत्वपूर्ण वार्षिक वृद्धि हुई है। पीएम2.5 अमोनिया के लिए 12 प्रतिशत तक और प्रतिक्रियाशील वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों के लिए 11 प्रतिशत तक।
शोधकर्ताओं ने हवा की गुणवत्ता में इस तेजी से गिरावट के लिए उभरते उद्योगों और आवासीय स्रोतों- जैसे सड़क यातायात, कचरा जलाने और लकड़ी का कोयला और ईंधन लकड़ी के व्यापक उपयोग को जिम्मेदार ठहराया।
प्रमुख लेखक कर्ण वोहरा (यूसीएल भूगोल), जिन्होंने बर्मिघम विश्वविद्यालय में पीएचडी छात्र के रूप में अध्ययन पूरा किया, ने कहा, "भूमि निकासी और कृषि अपशिष्ट निपटान के लिए बायोमास के खुले जलने से पहले उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में वायु प्रदूषण का अत्यधिक प्रभुत्व रहा है।"
"हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि हम इन शहरों में वायु प्रदूषण के एक नए युग में प्रवेश कर रहे हैं, एक वर्ष में गिरावट की कुछ अनुभव दरों के साथ अन्य शहरों में एक दशक में अनुभव होता है।"
वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि जनसंख्या वृद्धि और तेजी से गिरावट के संयोजन के कारण पीएम2 के लिए 46 शहरों में से 40 और पीएम2.5 के लिए 46 शहरों में से 33 शहरों में वायु प्रदूषण के लिए शहरी आबादी के जोखिम में 1.5 से चार गुना वृद्धि हुई है।
शोध के अनुसार, वायु प्रदूषण के संपर्क में आने पर समय से पहले मरने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि दक्षिण एशिया के शहरों में सबसे अधिक है, विशेष रूप से बांग्लादेश में ढाका (कुल 24,000 लोग) और मुंबई, बैंगलोर, कोलकाता, हैदराबाद, चेन्नई, सूरत, पुणे और अहमदाबाद जैसे भारतीय शहरों में (कुल 1,00,000 लोग)।
शोधकर्ताओं का कहना है कि अफ्रीका के उष्णकटिबंधीय शहरों में हुई मौतों की संख्या इस समय कम है, महाद्वीप भर में स्वास्थ्य देखभाल में हालिया सुधार के परिणामस्वरूप समग्र समयपूर्व मृत्युदर में गिरावट आई है, स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण का सबसे खराब प्रभाव आने वाले दशकों में होने की संभावना है। (एजेंसी)
यह भी पढ़े► आयुर्वेदिक व यूनानी तिब्बिया कॉलेज में पोर्टेबल इंटीग्रेटेड केयर सेंटर की शुरूआत
टेलीविजन पर आपने वह विज्ञापन जरुर देखा होगा जिसमें एक कब्ज(Constipation) दूर करने वाली एक आयुर्वेदिक औषधि के प्रचार में मशहूर कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव कहते हैं कि, ‘पेट सफा तो हर रोग दफा’। ये लाइनें वैसे तो विज्ञापन के पंचलाइन को आकर्षक बनाने के लिए लिखी गयी है लेकिन देखा जाए तो वास्तविकता के बेहद नजदीक है।
आयुर्वेद में भी अनेकानेक रोगों के मूल में उदर यानी पेट को माना गया है। यदि आपका पेट यानी पाचन तंत्र ठीक है तो बीमारियाँ आपको छू भी नहीं सकती। देह को जीवित रखने के लिए जिस प्रकार प्राणवायु का महत्व है, उसी प्रकार शरीर के निर्माण और उसे बलशाली बनाने में खाना यानी अन्नपान का महत्व है। इस आहार का पाचन अग्नि द्वारा होता है जिससे आहार रस का निर्माण होता है और जो शरीर को बल प्रदान करता है।
आयुर्वेद के ग्रंथों में पाचन तंत्र में स्थित अग्नि को समस्त चयापचय का प्रमुख कारक माना गया है। यदि अग्नि ठीक से काम नहीं करेगा तो पाचन तंत्र में समस्या पैदा हो जायेगी और हम कब्ज समेत पेट और आँतों की कई समस्याओं से ग्रस्त हो सकते हैं जिसका असर पूरे शरीर पर पड़ेगा। लेकिन आधुनिक समय में खराब खान-पान और दिनचर्या के कारण बड़ी संख्या में लोग कब्ज जैसी पेट की बीमारी से ग्रस्त हैं।
विडंबना ये है कि शुरूआती दौर में लोग इस बीमारी के लक्षणों को पहचान नहीं पाते या फिर उसे अनदेखा करते हैं। बाद में यही समस्या विकराल रूप धारण कर लेती है। इसलिए ये बेहद जरुरी है कि इसके शुरूआती लक्षणों को पहचानकर तुरंत उपचार किया जाए।
कब्ज के लक्षण - Symptoms of Constipation in Hindi
कब्ज़ का अर्थ बहुत कड़ा मल या मल त्याग करने में कठिनाई होना है. यह भी हो सकता है कि आपको पेट खाली करने के लिए (मल त्याग के लिए) ज़ोर लगाना पड़े। शौचालय जाने के बावजूद मन हल्का न लगे और ऐसा लगे कि पेट पूरी तरह से साफ़ नहीं हुआ है।
बार-बार पेट दर्द, ऐठन, गैस बनना, डकार आना, जीभ में छाले आना व पीलापन आना, आलस्य , सिरदर्द व उलटी का होना भी कब्ज के ही लक्षण है। यदि हफ्ते में तीन दिन से अधिक आप मल त्याग नहीं कर पाते तो यह कब्ज के स्पष्ट लक्षण है. खाने में अरुचि का बढ़ना भी कब्ज का ही संकेत है।
कब्ज के कारण - Causes of Constipation in Hindi
कब्ज के कई कारण हो सकते हैं। लेकिन इसका सबसे बड़ा कारण खराब खान-पान और गलत दिनचर्या है। फास्टफूड की संस्कृति ने इस रोग को बढ़ाने में खासी भूमिका निभायी है। भोजन में अपर्याप्त मात्रा में रेशों (फाइबर) का सेवन, कम पानी पीने, व्यायाम की कमी, लंबे समय तक एंटीबायोटिक व गैस की दवाओं के सेवन और समय पर मलत्याग करने न जाना कब्ज की समस्या के प्रमुख कारण है।
महिलाओं में प्रसव के दौरान भी पेट की आतंरिक समस्याओं की वजह से यह रोग हो सकता है. दूध की चाय, कॉफी, तंबाकू या सिगरेट के लगातार सेवन से कब्ज की समस्या पैदा हो जाती है। पाचन ठीक न होने के बावजूद पेटभर कर खाना खाने और लगातार आलस्य की मुद्रा में बैठे रहने से भी कब्ज की समस्या पैदा हो सकती है।
इसके अलावा समय पर भोजन न करने और समय पर न सोने-उठने की वजह से भी कब्ज की समस्या दीर्घकाल में हो जाती है। कुछ लोग शौचालय में अखबार लेकर देर तक गलत तरीके से बैठते हैं जो इस रोग को एक तरह से बुलावा देना है।
कब्ज की समस्या का उपचार - Treatment of Constipation in Hindi
कब्ज की समस्या का यदि सही समय पर उपचार न शुरू किया जाए तो आगे चलकर यह शरीर के त्रिदोषों (वात, पित्त और कफ) को असंतुलित करने के अलावा और कई गुदा रोगों मसलन बवासीर, फिशर आदि का कारण भी बनता है।
इसलिए इसकी अनदेखी बिलकुल नहीं करनी चाहिए. शुरूआती दौर में इसका इलाज आहार-विहार में परिवर्तन करके ही आसानी से किया जा सकता है। एक दिलचस्प मिथ्या है कि कच्चे फल और सब्जियां खाने मात्र से कब्ज ठीक हो जाएगा जबकि ऐसा होता नहीं है, उलटे कच्चा खाने से वायु बढ़ेगा. आइये जानते हैं कि कब्ज की समस्या का क्या-क्या आयुर्वेदिक उपचार हो सकते हैं:
कब्ज की समस्या से निजात पाना है तो सबसे पहले पर्याप्त मात्रा में पानी पीना शुरू कर दे। यदि गुनगुना पानी पीते हैं तो अति उत्तम। गुनगुना पानी आँतों को सुचारू रूप से काम करने में मदद करता है। भोजन में फाइबर की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए। चोकरयुक्त आटे की रोटी खाना श्रेयस्कर होगा। दूध में गाय का घी डालकर पी सकते हैं, इससे फायदा होगा क्योंकि घी वात का शमन करता है अर्थात घटाता है।
अमरूद का सेवन भी लाभकारी होगा। त्रिफला को गर्म दूध या पानी के साथ लेने से भी कब्ज का उपचार संभव है। समय पर उठे–जगे और खाए–पीयें। रात्री जागरण और फास्ट फ़ूड से बचे। मैदे से बनी चीजों को खाने से परहेज करे। शारीरिक सक्रियता बढायें, व्यायाम करें।
फिर भी कब्ज की समस्या ख़त्म न हो तो आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह से अभ्यारिष्ट और द्राक्षारिष्ट जैसी औषधियों भी ली जा सकती है। अनुवासन बस्ती जैसी पंचकर्म थेरेपी भी करवाई जा सकती है. उसके अलावा गुनगुने पानी से भरे टब में बैठने से भी फायदा होगा।
यह भी पढ़े► इम्युनिटी कम होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक उपाय
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने सोमवार को कहा कि पिछले दो वर्षों में कोविड-19 महामारी के दौरान 10 में से 9 लोगों की दृष्टि कुछ हद तक खो गई है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि उनमें से अधिकांश ने महामारी के बाद लगने वाले लॉकडाउन के दौरान नियमित तौर पर कराई जाने वाली अपनी आंखों की जांच और इसके फॉलो-अप को छोड़ दिया है।
डायबिटिक रेटिनोपैथी या उम्र से संबंधित धब्बेदार अध: पतन (डिजेनरेशन) जैसे रेटिनल रोगों में शुरूआत में कुछ या मामूली लक्षण होते हैं और केवल आंखों की जांच या स्क्रीनिंग से ही पता लगाया जाता है। इन स्थितियों में समय पर देखभाल न करने पर आंखों को गंभीर नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति होती है।
मुंबई रेटिना सेंटर के सीईओ विटेरियोरेटिनल सर्जन डॉ. अजय दुदानी ने आईएएनएस से कहा, दुर्भाग्य से, कोविड की पहली और दूसरी लहर के दौरान खराब फॉलो-अप के कारण 90 प्रतिशत रोगियों ने कुछ हद तक दृष्टि (देखने की क्षमता) खो दी है, विशेष रूप से एएमडी (एज रिलेटेड मैकुलर डिजनरेशन) से पीड़ित मरीजों में यह दिक्कत देखने को मिली है। ये मरीज ज्यादातर अपना इंट्राविट्रियल इंजेक्शन लेने से चूक गए, जिसके कारण बीमारियां तेजी से बढ़ीं हैं।
नारायणा नेत्रालय आई इंस्टीट्यूट, बेंगलुरु में सीनियर विटेरियो-रेटिनल कंसल्टेंट डॉ. चैत्र जयदेव ने कहा, कोविड के डर के कारण, हमने पिछले 3-4 महीनों में नियमित रूप से आंखों की जांच के लिए आने वाले रोगियों में गिरावट देखी है। इसके परिणामस्वरूप निदान और उपचार में देरी हुई है, जिससे लंबे समय में देखने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।
डॉक्टरों ने कहा कि बीमारी को नियंत्रित करने और दृष्टिमें किसी भी तरह के नुकसान को रोकने के लिए शुरूआती पहचान और उपचार महत्वपूर्ण है।
क्लिनिक का दौरा जितना अधिक समय तक बंद रहेगा, आंखों की सेहत उतनी ही खराब होती जाएगी।
विटेरोरेटिनल सोसाइटी ऑफ इंडिया के महासचिव डॉ. राजा नारायण ने आईएएनएस को बताया, हमें इस कोविड लहर के दौरान सावधानी बरतनी चाहिए, मरीजों को मैकुलर डिजनरेशन या डायबिटिक मैकुलर एडिमा के विजिट में देरी नहीं करनी चाहिए, जब तक कि मरीज में कोविड के लक्षण न हों।
दुदानी ने आगे कहा, तीसरी लहर के साथ, हम अतीत के समान पैटर्न देख रहे हैं, क्योंकि रोगी की विजिट (अस्पताल में), विशेष रूप से बुजुर्गों के बीच, लगभग 50 प्रतिशत कम हो गई है। चूंकि रेटिना को बदला नहीं जा सकता है, इसलिए इंजेक्शन न लगना, या उपचार का पालन न करना, नेत्र रोग को बढ़ा सकता है।
डॉक्टरों ने रोगियों को टेलीकंसल्टेशन लेने के लिए भी प्रोत्साहित किया। ऐसे दृष्टि परीक्षण (आई टेस्टिंग) हैं, जिन्हें कोई भी व्यक्ति घर बैठे करा सकता है, जिनकी रिपोर्ट डॉक्टर को जांच और आगे के हस्तक्षेप के लिए भेजी जा सकती है।
जयदेव ने कहा, अगर रोगियों को धुंधली दृष्टि, दृष्टि की अचानक हानि या ²श्य क्षेत्र में काले धब्बे जैसे लक्षणों का अनुभव होता है, तो उन्हें तत्काल आंखों की जांच के लिए जाने की आवश्यकता होती है, क्योंकि ये डायबिटिक रेटिनोपैथी के लक्षण हो सकते हैं। इस तरह की जटिलताओं को और बिगड़ने से रोकने के लिए, मधुमेह रोगियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनका शर्करा स्तर (शुगर लेवल) नियंत्रण में रहे।
यह भी पढ़े► बीएचयू में फेफड़े के गंभीर रोग पर अपनी तरह का पहला शोध
Dear Patron, Please provide additional information to validate your profile and continue to participate in engagement activities and purchase medicine.