प्रश्न - मेरे पैर का घुटने के नीचे का हिस्सा ठंडा और सुन्न रहता है। इसका क्या कारण है? कृपया आयुर्वेदिक और घरेलू उपचार बताएँ।
उत्तर - इस समस्या के होने के कई कारण हो सकते हैं, मुख्य रूप से कई बार एक ही पोजिशन में पैर लटका कर लंबे समय तक बैठे रहने से भी ऐसा हो सकता है या ठंडे कमरे अथवा ठंडे स्थान में लंबे समय तक होने से भी ऐसा होना संभव है क्योंकि इससे पैर का रक्त प्रवाह सीमित हो सकता है।
यदि ऐसा सिर्फ एक बार ही हुआ है तो आपको ज्यादा चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन यदि ऐसा बार-बार हो रहा है तो आपको गंभीरता से इसका इलाज करवाने की जरूरत है।
यदि आपका पैर लंबे समय से ठंडा है, या ठंड के साथ दर्द, झुनझुनी या सूनापन या कमजोरी है तो उस स्थिति में, यह न्यूरोपैथी या पैरिफेरल आर्टरी डिसीज जैसी स्थिति का संकेत हो सकता है।
इसमें शरीर में ख़ून का संचार करने वाली रक्त वाहिकाएं (आर्टरीज) सुकड़ना आरंभ हो जाती हैं, इन आर्टरीज में फैट या कैल्शियम का जमा होना शुरू हो जाता है, जोकि ज्यादातर शारीरिक रूप से कम व्यायाम करने वाले लोगों, मोटापा से ग्रस्त, मेटाबोलिक रोगों से ग्रस्त लोगों या स्मोकिंग, अधिक शराब पीने, तंबाकू का सेवन करने वाले लोगों में सबसे अधिक होती है।
इस स्थिति से बचाव के लिए सबसे बेहतर तरीका है अपने खानपान और अनियमित दिनचर्या को सही करना, यदि वजन अधिक हो तो उसको कम करने का प्रयास करना चाहिए, शराब, सिगरेट, तंबाकू, मिर्च-मसालेदार, देर से पचने वाला भोजन जैसे मैदा से बने पदार्थ मोमोज, पराठें, राजमा, छोले-भटूरे, पूड़ी आदि गरिष्ठ भोजन का पूरी तरह से निषेध करना चाहिए, अपने हाथ-पैरों को गर्म रखें इसके लिए हीटिंग पैड आदि से सिकाई कर सकते हैं, मोटे मोजे पहन सकते हैं, गुनगुने पानी में सैंधा नमक डालकर पैरों की सिकाई करने से लाभ मिलता है।
आयुर्वेद में कुछ विशेष तरह की जड़ी बूटियों से बनी "पोटली" थैरपी से इस स्थिति में तेज़ी से लाभ मिलते हैं, इसके अलावा आयुर्वेद में "शिरावेध" प्रक्रिया से भी बेहद अच्छे लाभ इस बीमारी में मिलते हैं। (डॉ. अभिषेक गुप्ता, मुख्य चिकित्सा अधिकारी, निरोगस्ट्रीट)
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निरोगस्ट्रीट एप के वेबिनारों की शृंखला में आज मानसिक स्वास्थ्य में भांग के उपयोग (Usage of Cannabis in Mental health) पर परिचर्चा होगी। आज के व्याख्यान में मुख्य वक्ता के रूप में वैद्य पूजा कोहली (Vaidya Pooja Kohli) इस विषय पर अपनी बात विस्तार से रखेंगी।
वैद्य पूजा कोहली का परिचय - Introduction of Vaidya Pooja Kohli in Hindi
वरिष्ठ चिकित्सक वैद्य पूजा कोहली का आयुर्वेद चिकित्सा के क्षेत्र में 10 वर्षों का लंबा अनुभव है। वर्तमान में वे हेम्पस्ट्रीट के साथ जुड़ी हुई हैं। वे आयुर्वेद छात्रों के देश के सबसे बड़े संस्थान नस्या (NASYA) की जेनरल सेक्रेटरी भी हैं। आयुर्वेद पर इनके दर्जनों लेख पत्र-पत्रिकाओं में अबतक प्रकाशित हो चुके हैं। उन्होंने कायचिकित्सा में एमडी (MD) किया है।
वेबिनार के प्रसारण की जानकारी - Webinar broadcast information in Hindi
वेबिनार का प्रसारण निरोगस्ट्रीट एप पर होगा जिसे आयुर्वेद चिकित्सक और छात्र गूगल प्ले स्टोर पर जाकर डाउनलोड कर सकते हैं। डाउनलोड के बाद आपको रजिस्ट्रेशन करना होगा जो बेहद आसानी से हो जाएगा। आज के व्याख्यान की जानकारी -
विषय - मानसिक स्वास्थ्य में भांग के उपयोग (Usage of Cannabis in Mental health)
वक्ता - वैद्य पूजा कोहली (Vaidya Pooja Kohli)
दिन - 20 मई , 2022
समय - शाम 6 से 7 बजे
मंच - निरोगस्ट्रीट एप
लिंक - निरोगस्ट्रीट एप का लिंक ► NirogStreet App Link
आयुर्वेद और पीपल की पत्तियां - Ayurveda and Peepal Leaves in Hindi
आयुर्वेद ग्रंथों में पीपल को अश्वत्थ कहा जाता है और इसके कई चिकित्सीय उपयोग भी बताएं गए हैं। किसी भी औषधि का किस तरह से चिकित्सीय उपयोग होता है यह बात उस द्रव्य या औषधि में निहित गुण रस वीर्य विपाक कर्म और प्रभाव पर निर्भर करती है। चूँकि पीपल को आचार्य चरक ने मूत्र संग्रहणीय वर्ग, कषाय स्कन्ध वर्ग में, आचार्य सुश्रुत ने न्यग्रोधादि में और भावप्रकाश ने क्षीरिवृक्ष, पंचवल्कल वर्ग में रखा है।
इसका विशेष उपयोग तो मूत्र संग्रहणीय कर्म के लिए, रक्त शोधन, घावों को धोने आदि के लिए ही विशेष रूप से किया जाता है। इसके काढ़े का प्रयोग वातरक्त की चिकित्सा में जब रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है में किया जाता है परंतु आयुर्वेद की औषधियों में इसके गुण कर्मो के आधार पर कई अन्य रोगों में उपयोग करने की युक्ति का विधान है तो हम ऐसे में जहाँ पीपल में निहित गुणों का प्रयोग किया जा सके उन बीमारियों में वैकल्पिक रूप से प्रयोग कर सकते हैं।
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पीपल का प्रयोग हॄदय रोगों में करने में भी यही युक्ति है, मतलब हॄदय रोगों में ब्लॉकेज (Blockage) का मुख्य कारण रक्त में वसा की वॄद्धि होने से होता है और यह वसा की वृद्धि ग्रहणी रोग का उपद्रव कहा जा सकता है। इसलिए पीपल का प्रयोग ग्रहणी को ठीक करते हुए उन हॄदय रोगों में किया जा सकता हैं जिनमें रोगी को वसा की अधिकता ग्रहणी के कारण हुई हो। परंतु वातज हॄदय रोगों में पीपल का प्रयोग उचित नहीं क्योंकि रुक्ष और कषाय होने से और अधिक वात की वृद्धि करेगा ।
उक्त परिस्थितियों के अनुसार यदि कफज और पित्तज हॄदय रोग है तो सहायक औषध के रूप में या मुख्य औषधि के अभाव में विकल्प के रूप में चिकित्सक की देखरेख में किया जा सकता है और इससे परिणाम मिलने की संभवना भी 30 से 40 % तो है।
आयुर्वेद में पीपल की पत्तियों के और क्या - क्या स्वास्थ्य लाभ बताए गए हैं?
पीपल की पत्तियों से लेकर पंचाग सभी उपयोगी है और इसका प्रयोग घाव को धोने और भरने में किया जा सकता है, पत्तियों के प्रयोग से ज्यादा इसकी छाल और फल, पुष्पकली का उपयोग प्रचलन है। जहाँ पर व्रण से स्राव हो रहा हो उस घाव की सफाई और स्राव रोकने में इसका प्रयोग किया जा सकता है।
वातरक्त में भी इसका अच्छा लाभ देखने को मिलता है। इसके फल का प्रयोग पित्त शांति कर पेट साफ करने में किया जाता है। इसकी कली का प्रयोग त्वचा के रंग को निखारने में भी किया जाता है। मुंह मे छाले होने पर पीपल की त्वचा का प्रयोग करते हैं। पीपल की पत्तियों और त्वचा को जलाकर मंजन बनाने के रूप में करते हैं।
(वैद्य संकेत मिश्र, वरिष्ठ समुदाय प्रबंधक (Senior Community Manager), निरोगस्ट्रीट)
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भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसे पौधे की नई किस्म विकसित की है जिसकी मदद से कैंसर का उपचार संभव है। खासतौर पर सर्वाइकल कैंसर में यह औषधीय पौधा विशेष रूप से लाभकारी है। 8 वर्ष लंबी रिसर्च के उपरांत बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) की लैब में नैनो-बायोटेक्नोलॉजी द्वारा 'ऋष्यगंधा' की यह नई किस्म तैयार की गई है। भारतीय आयुर्वेद के आधार पर की गई इस रिसर्च को दुनिया भर के वैज्ञानिकों द्वारा स्वीकृति दी जा रही है।
कैंसर जैसे गंभीर रोग के निदान में सहायक यह पौधा सामान्य रूप से अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत के शुष्क एवं गर्म स्थानों पर पाया जाता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक आयुर्वेदिक पद्धति में उल्लिखित ऋष्यगंधा एक ऐसा औषधीय पौधा है, जिसे सामान्य भाषा में पनीर का फूल या पनीर बंध एवं वैज्ञानिक भाषा मे विधानिया कोअगुलंस के नाम से जाना जाता है। ऋष्यगंधा को पनीर का फूल कहे जाने का कारण उसके बीजों में उपस्थित प्रोटीएज द्वारा दूध से पनीर बनाने की क्षमता होती है।
बीएचयू ने आईएएनएस को बताया कि अब तक के अध्ययन से प्राप्त नतीजे प्रतिष्ठित शोध पत्रिकाओं मटेरियल साइंस एंड इंजिन्यरिंग सी, प्लांट सेल रिपोर्ट्स एवं फिजियोलॉजी एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी ऑफ प्लांट्स में प्रकाशित किये जा चुके है।
विश्वविद्यालय ने बताया कि कैंसर के उपचार को लेकर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में यह पूरी रिसर्च हुई है। यहां वैज्ञानिकों ने पहले से मौजूद इस दुर्लभ वनस्पति की विशिष्ट किस्म तैयार की है। इसके नैनोकणों में उच्च रूप से सरवाईकल कैंसर के प्रति निदान की क्षमता है।
पिछले कई दशको से यह पौधा आयुर्वेद में जटिल स्वस्थ्य समस्याओं जैसे मधुमेह एवं कैंसर आदि मे प्रयोग के लिए जाना जाता रहा है। मुख्यत: यह औषधीय गुण इसमें उपस्थित जैवसक्रिय रसायनिक टर्पेनॉयड्स यौगिकों जैसे विथानोलॉयड्स एवं कोअगुलिनोलॉयड्स के कारण होते हैं। परन्तु इसके लापरवाहीपूर्ण रख-रखाव एवं अनियमित प्रयोग के कारण आज यह संकटाग्रस्त पौधों की श्रेणी में सम्मलित हो चुका है।
इसी परिपेक्ष्य में विज्ञानं संस्थान, काशी हिंदी विश्वविद्यालय, के वनस्पति विज्ञानं विभाग की प्रो. शशि पाण्डेय के नेतृत्व में पिछले कई वषों से शोध कार्य किये जा रहे हैं।
प्रो. पाण्डेय ने बताया की उनके शोधार्थियों ने उनके मार्गदर्शन एवं दिशानिर्दशो के साथ शोध कार्य करते हुए नैनो-जैवप्रोद्योगिकी द्वारा ऋष्यगंधा की उपज में उसके उच्च गुणवता युक्त जैवसक्रिय यौगिकों (विथानोलॉयड्स) के साथ बढाया है। इस पौधे पर प्रो. पाण्डेय ने अपने प्रयोगात्मक अध्ययन को आठ वर्ष पूर्व अपनी शोधार्थी दीपिका त्रिपाठी के साथ प्रयोग शुरू किया था।
उन्होंने बताया कि सर्वप्रथम प्रयोगशाला में ही कृत्रिम ऊतक संवर्धन विधि द्वारा संकटाग्रस्त पौधे ऋष्यगंधा के उत्पादन को बढाया गया साथ ही उन पौधों से सूक्ष्म नैनोकणों का निर्माण किया गया।
प्रो. पाण्डेय ने अंतरविषयी शोध को प्राथमिकता देते हुए मॉलिक्यूलर एंड ह्यूमन जेनेटिक्स विभाग के प्रो. जी. नरायण के साथ शोध को आगे बढ़ाते हुए यह भी पाया कि संश्लेषित नैनोकणों में उच्च रूप से सरवाईकल कैंसर के प्रति निदान की क्षमता है।
इसी शोध को एक अलग दिशा में आगे बढ़ाते हुए ये भी पाया गया की प्रयोगशाला के कृत्रिम परिवेश में संश्लेषित नैनोकणों तथा पराबैगनी किरणों की सूक्ष्म मात्रा उपचार के साथ ऋष्यगंधा की प्रेरित उपज एवं उसके औषधीय उपयोगी योगिको विथानोलॉयड्स में लगभग 50 फीसदी मात्रात्मक वृद्धि प्राप्त की जा सकती है।
प्रोफेसर पाण्डेय के अनुसार निकटतम भविष्य में इस विधि (नैनो-जैवप्रोध्योगिकी) द्वारा न केवल ऋष्यगंधा की संकटग्रस्त स्थिति मे सुधार किया जाना संभव हो सकेगा, बल्कि उसके औषधीय गुणों के उत्पादन मे भी बढ़ावा मिलेगा जिसका उपयोग मानव जीवन मे विभिन्न प्रकार के रोगों को ठीक करने में संभव हो सकता है।
अब तक के अध्ययन से प्राप्त नतीजे प्रतिष्ठित शोध पत्रिकाओं मटेरियल साइंस एंड इंजिन्यरिंग सी, प्लांट सेल रिपोर्ट्स एवं फिजियोलॉजी एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी ऑफ प्लांट्स में प्रकाशित किये जा चुके है।
साथ ही डॉ पांडे की नए शोध छात्रों की टीम (विपिन मौर्या, लकी शर्मा, स्नेहा सिंह आदि) इन यौगिकों के संस्लेशषण से जुड़े जींस तथा उनको प्रभावित करने वाले विभिन्न वायुमंडलीय कारको के अध्ययन में जुटी हुई है। डॉ पांडे के कार्यो को देखते हुए उन्हे हाल ही में जीनोम इंडिया इंटरनेशनल संस्था में सदस्य चुना गया है।
प्रोफेसर पाण्डेय के मुताबिक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय प्राचीन भारतीय ज्ञान पद्धति एवं आधुनिक विज्ञान में शिक्षा एवं शोध का एक ही स्थान पर अवसर प्रदान करता है। यही कारण है कि विद्या की इस स्थली को भारत में ही नहीं, विश्व भर में सर्वविद्या की राजधानी कहा जाता है।
इसी को चरितार्थ करते हुए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक नित नई खोजों व शोधों से समाज व आम जीवन में सकारात्मक बदलाव के कार्य करते रहते हैं। इसी क्रम में विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने नैनौप्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करते हुए प्रयोगशाला में आयुर्वेद में औषधीय पौधे ऋष्यगन्धा की उच्च गुणवत्ता वाली किस्म उपजाई है। (एजेंसी)
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कोच्चि- केन्या के पूर्व प्रधानमंत्री और आगामी केन्याई चुनावों में संभावित राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रैला ओडिंगा, जो अपनी बेटी के आयुर्वेदिक उपचार के लिए अपने परिवार के साथ केरल में हैं, ने कहा कि वह घर वापस जाते समय दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ होने वाली एक बैठक के दौरान दुनिया भर में आयुर्वेदिक तरीके से आंखों का इलाज करने की उस सुविधा को प्रदान करने में मदद करने का अनुरोध करेंगे, जिससे उनकी बेटी को आंखों की रोशनी वापस पाने में मदद मिली है।
वह श्रीधरीयम आयुर्वेदिक नेत्र अस्पताल और अनुसंधान केंद्र के प्रमोटरों से मिलने के बाद एनार्कुलम जिले के नेल्लियाकट्टू माना से प्रस्थान पर उनके सम्मान में आयोजित एक समारोह में बोल रहे थे, जहां उनकी बेटी की आंखों की बीमारी का इलाज चल रहा है।
उन्होंने यह भी कहा कि अगर उन्हें केन्या का राष्ट्रपति बनने का मौका मिलता है, तो उनकी प्राथमिकताओं में से एक नैरोबी में श्रीधरीयम नेत्र अस्पताल स्थापित करना होगा।
वह उस समय भावुक हो गए, जब उन्होंने बताया कि वह अपनी बेटी के इलाज के लिए दुनिया के विभिन्न शहरों में घूमे, मगर उनकी बेटी को कोई फायदा नहीं हुआ।
उनकी बेटी रोजमेरी ओडिंगा ने कहा कि जब वह 2019 में पहली बार इलाज के लिए कूथट्टुकुलम आई थीं, तो उनकी आंखों की रोशनी लगभग शून्य थी।
उन्होंने कहा, अब मैं अपने फोन पर प्राप्त मैसेज को भी पढ़ सकती हूं और मैं और मेरा परिवार इसके लिए श्रीधरीयम का ऋणी है।
2017 में ट्यूमर के कारण ओडिंगा की आंखों की रोशनी चली गई थी और उनके परिवार ने दक्षिण अफ्रीका, जर्मनी, इजरायल और चीन सहित कई देशों में उनके इलाज के लिए भरसक प्रयास किए।
वे 2019 में पहली बार श्रीधरीयम आए, क्योंकि उन्होंने इसकी आयुर्वेदिक नेत्र देखभाल सुविधाओं के बारे में सुना था। श्रीधरीयम में मुख्य चिकित्सक नारायणन नंबूदिरी और उनकी टीम के तहत उनका उपचार शुरू किया गया।
चार महीने के भीतर, उनकी आंखों की रोशनी वापस आ गई और वह वापस केन्या चली गईं। अब, वह श्रीधरीयम को धन्यवाद देने और अपने आगे के उपचार के लिए अपने परिवार के साथ फिर से कूथट्टुकुलम आईं हैं।
उनका परिवार 7 फरवरी, 2022 को यहां आया था और वे यहां 5 दिनों तक रहे और अब पूर्व पीएम दिल्ली के लिए रवाना हो गए हैं, वहीं उनकी बेटी 28 फरवरी तक इलाज के लिए श्रीधरीयम में ही रहेंगी। (एजेंसी)
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यरुशलम- इजरायल के वैज्ञानिकों ने लकवा के इलाज के लिए मानव रीढ़ की हड्डी का प्रत्यारोपण किया है। ये जानकारी मध्य इजरायल में तेल अवीव विश्वविद्यालय (टीएयू) ने दी।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, सोमवार को एडवांस्ड साइंस जर्नल में प्रकाशित एक नए अध्ययन में, टीएयू के वैज्ञानिकों ने मरीजों से लिए गए पेट के वसा ऊतकों से कार्यात्मक रीढ़ की हड्डी के ऊतकों का निर्माण किया।
टीम ने ऊतक कोशिकाओं को दोबारा काम करने के लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग का उपयोग किया। उन्हें एक ऐसी स्थिति में वापस लाया जो भ्रूण स्टेम कोशिकाओं जैसा दिखता है, एक प्रक्रिया में रीढ़ की हड्डी के भ्रूण के विकास की नकल करता है।
इस तरह, रोगी से ली गई ऊतक कोशिकाओं को मोटर न्यूरॉन्स वाले न्यूरोनल नेटवर्क के 3डी प्रत्यारोपण में बदल दिया गया।
वैज्ञानिकों ने कहा कि उन्होंने ऊतक से एक व्यक्तिगत हाइड्रोजेल भी बनाया है, जो आरोपण के बाद कोई प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया या अस्वीकृति पैदा नहीं करेगा।
हाइड्रोजेल से लिपटे स्टेम सेल को तब प्रयोगशाला जानवरों में प्रत्यारोपित किया गया जिसमें 80 प्रतिशत परीक्षणों में सफलतापूर्वक चलने की क्षमता को बहाल किया।
शोधकर्ताओं ने आगे कहा, "हम मनुष्यों में क्व्लीनिकल टेस्ट तक पहुंचने की योजना बना रहे हैं ।" (एजेंसी)
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