सच्चा प्यार और मोहब्बत यह एक ऐसा माया मृग (छल/झूठ) बनता जा रहा है जिसको पाने के लिए हर कोई उतावला है लेकिन जब इस ओर लोग बढ़ते हैं तब समझ आता है कि जिंदगी तो कुछ और ही है।
वैसे मेरी इस बात से बहुत से लोग भरोसा नहीं करेंगे या संभव है कि नाक-मुंह भी बना लें, खासकर के प्यार की चासनी में लिपटे या यूँ कहूं कि नहाये हुए वो लोग जिनके दिन की शुरुआत और अंत बाबू, सोना, जानू, I love you जैसे शब्दों से शुरू होती है या दिन के कई घंटे इसी तरह की चैट या कॉल में जाते हों! लेकिन यक़ीन मानिये जैसे-जैसे यह लेख आप पढ़ते जायेंगे तो निश्चित ही यह भरोसा तो आपको हो ही जायेगा कि जो विचार और सोच या रिश्ते लेकर आप चल रहे हैं उसपर एक बार गंभीरता से विचार करना कितना जरुरी है, कृपया एक बार गंभीरता से पूरे लेख को अवश्य पढ़ें!
इस लेख में बात शुरू करते हैं दुनिया के सबसे बड़े टॉपिक "मोहब्बत और सेक्स" से (यह बात कई तरह के रिसर्च में सिद्ध हो चुकी है की लोगों के लिए यही विषय सबसे पसंदीदा हैं), आम तौर पर इस संसार में मौजूद लगभग प्रत्येक प्राणी के जीवनचक्र का यह एक ऐसा पहलु है जिससे शायद ही कोई अछूता रहा हो, इससे न इंसान बचा और न जानवर!
जाहिर सी बात है कि जब इतने तरह के प्राणी और इतना बड़ा संसार इसी ओर भाग रहा है तो कुछ तो विशिष्ट होगा ही इसमें, वैसे यदि विज्ञान की भाषा में इसको कहें तो यह हमारे शरीर में मौजूद कुछ विशेष तरह के Hormones से जुड़ा हुआ है, और यदि आध्यात्म या आयुर्वेद की भाषा में कहें तो यह यह मानवीय संवेदनाओं, भावनाओं और जीवन की इच्छा से जुड़ा हुआ है।
अब जब बात रिश्तों की आती है , खासकर के जिसे आज के समय में विपरीत लिंग के साथ आकर्षण को प्रेम का नाम दे दिया गया है उसमें कई तरह के विकार या गलत भाव आ चुके हैं, यदि इसकी जड़ में जाएँ तो विज्ञान के हिसाब से इसके लिए जो सबसे बड़ा हॉर्मोन जिम्मेदार है वो है टेस्टोस्टेरोन (Testosterone) इसे हम male (पुरुष) हॉर्मोन भी कहते हैं, यह हॉर्मोन आदमियों में या इस दुनिया के सभी तरह के नर चाहे वो गधा, घोड़ा, कुत्ता, हाथी, शेर आदि कोई भी हो उन सभी में मौजूद होता है जिसका काम है पुरुषों में सेक्स ड्राइव को बढ़ाना!
प्राकृतिक रूप से 99.99% पुरुषों में जब विपरीत लिंग के प्रति जब प्यार / मोहब्बत और इश्क़ जैसा कुछ भी आता है तो उसके दिमाग में शुरुआत से लेकर आगे तक अपने साथी के साथ सेक्स ही आकर्षण का सबसे पहला और अंतिम पहलु होता है, संभव है आप में से कुछ लोग इससे सहमत न हों लेकिन पुरुषों की यह प्राकृतिक स्थिति होती है और विज्ञान के कई रिसर्च भी यही सिद्ध करते हैं!
हालाकिं निश्चित रूप से अपवाद भी होते हैं और कई परिस्थितियों और रिश्तों के अनुरूप भी पुरुषों का व्यवहार बदल जाता है जैसे परिवार में मौजूद अन्य महिलाओं जैसे : माता, बहन, दादी, बेटी आदि के प्रति निश्चित रूप से पुरुषों के विचार और सोच अलग चलती है, लेकिन जैसे ही वह इन रिश्तों के दायरे के बाहर खड़ा होता है और उसे विपरीत लिंग का कोई दिखता है तो स्वतः ही उसका टेस्टोस्टेरोन हॉर्मोन उसके ऊपर हावी होने लगता है, हालाँकि वर्तमान समय में यह सब इसलिए भी बहुत अधिक बढ़ा है क्योंकि आज के समय में सोशल मीडिया और इंटरनेट के माध्यम से प्रत्येक तरह की सामग्री और अश्लीलता इतने सहजता से सभी के लिए उपलब्ध है कि लोगों ने इन बातों को ही सही दुनिया समझ लिया है साथ ही इस विषय पर सही एजुकेशन के नाम पर महज मजाक भर ही हमारे समाज के बीच में है। वहीं इसके विपरीत सात्विक (मन की बेहद ही प्रसन्न और संतुष्ट रहने वाली अवस्था) आचरण, सदाचार या ब्रह्म की चर्या जिसे ब्रह्मचर्य का नाम दिया गया इस सभी की भी व्याख्या लोगों ने अपने-अपने मन से करके ऐसी बना दी है कि इसे या तो मजाक का विषय समझा जाता है या फिर कुछ आदर्श पुरुषों की स्थिति की तरह देखा जाने लगा है!
वहीं दूसरी ओर जब हम महिलाओं की बात करते हैं तो उनमें प्रोजेस्टेरोन (Progesterone) हॉर्मोन शरीर के सेक्सुअल व्यवहार, मासिक चक्र आदि के लिए जिम्मेदार होता है, साथ ही यह हार्मोन महिलाओं में चिड़चिड़ापन, उदासी, चिंता आदि जैसे इमोशनल बदलावों के लिए भी जिम्मेदार होता है। इसलिए ही जब महिलाएं अपनी मर्जी से किसी के साथ शारीरिक संपर्क में आती हैं तो उनके साथ बेहद ही ज्यादा भावनात्मक रूप से खुद को जोड़ लेती हैं और ऐसे पुरुष के लिए भी वे कुछ भी करने को तैयार हो जाती हैं!
महिलाओं और पुरुषों के इन्हीं अलग-अलग हॉर्मोन्स के कारण जो प्यार को लेकर ग्राफ की स्थिति बनती है वो कुछ इस तरह की होती है:
पुरुष जो आरम्भ में बेहद प्यार करने वाले, उतावले, अपनी प्रेमिका के लिए कुछ भी कर डालने की बात करने वाले आदि-आदि तरीके के आदर्श आचरण और व्यवहार करते हैं वे अचानक ही जैसे ही उनका मुख्य काम होता है अर्थात जैसे ही उनका टेस्टोस्टेरोन हॉर्मोन से जुड़ा काम या यह संतुष्ट होता है मतलब उसका सेक्स से जुड़ा कार्य पूरा होता है वैसे ही वो रंग बदलना आरम्भ कर देता है। वह व्यक्ति धीरे-धीरे फिर कोई और की तलाश की ओर बढ़ जाता है या जिसके साथ है तो वह और अधिक आनंद प्राप्त नहीं कर पाता है। (निश्चित रूप से इस लेख में मेरे द्वारा लिखी जा रहीं बातें एक आदर्श स्थिति नहीं है बल्कि आज के विकृत हो चुके विचारों, परिस्थितियों और सामाजिक स्थिति है, लेकिन न चाहते हुए भी एक कटु सत्य ही है!) अर्थात पुरुषों का प्यार का ग्राफ जो शुरू में चरम सीमा पर या अपने टॉप स्तर पर था वो ऊपर से नीचे और नीचे से और धरातल यानी की निगेटिव की ओर बढ़ता जाता है। (हाँ यह संभव है कि कुछ पुरुषों में यह प्यार का ग्राफ एकदम तेज़ी से कुछ ही हफ़्तों या महीनों में नीचे चला जाता है और कुछ में नीचे जाने में कुछ वर्ष भी लगते हैं लेकिन वर्तमान समय के पुरुष स्वाभाव के अनुसार यह ग्राफ जाता नीचे ही है।)
जबकि इसके विपरीत महिलाओं की स्थिति एकदम अलग होती है, आरम्भ में उनके प्यार का ग्राफ एक सामान्य लेवल पर या बिल्कुल ही प्रारंभिक स्थिति में होता है, जो धीरे-धीरे कई तरह की स्थितियों और सामने वाले की ओर से किये जा रहे कई प्रयासों और आकर्षण से धीरे-धीरे बढ़ता जाता हैं और जब वे इस स्तर पर पहुँच जातीं हैं कि वे पुरुष के साथ शारीरिक संपर्क स्थापित कर लेती हैं तो वे किसी भी स्थिति में अपने उस प्यार करने वाले पुरुष के साथ ही रहना चाहती हैं। यहाँ तक कि वे उसके लिए घर-परिवार, माता-पिता आदि सभी को छोड़ने के लिए तैयार हो जाती हैं, अभी दिल्ली में हुआ श्रद्धा मर्डर केस इसका एकदम आदर्श उदाहरण है, कि आफताब नाम के लड़के के साथ उसकी लगातार हिंसा होती थी, रिश्ता बिगड़ता ही जा रहा था, लेकिन उस सबके बाद भी वो किसी न किसी बहकावे में आकर उस लड़के से अलग नहीं हो पा रही थी, यहाँ तक कि अपने परिवार और दोस्तों से भी अच्छी खासी दूरी बनाकर के रह रही थी, उसके पिता को उसके दोस्तों से बात करके या सोशल मीडिया के उसके अकाउंट से उसका हाल पता चलता था। हालाकिं लड़कियों से माता-पिता या परिवार के साथ सही से न जुड़ पाने को लेकर या अपनी बात खुलकर न कर पाने के कई और सामाजिक पहलु हैं जिन्हें हम इसी लेख में आगे पढ़ेंगे!
महिलाओं के प्यार का ग्राफ नीचे या बीच से ऊपर और उससे और ऊपर की ओर ही बढ़ता जाता है। और उनकी इन्हीं भावनाओं और पहलु के कारण उनमें शुरू होती है एक अजीब सी स्थिति जिसे साइकोलॉजी की भाषा में "Bad Faith" कहते हैं, वैसे तो इस शब्द की व्याख्या में कई लम्बे-लम्बे विचार लिखे गए हैं, लेकिन इस लेख के विषय के सन्दर्भ में यदि लिखूं तो इसका अर्थ यह है कि लड़कियां खुद को झूठी तसल्ली या झूठा भरोसा देना शुरू कर देती हैं, और अधिक सरल भाषा में कहूं तो रिश्तों में दिख रही समस्याओं को नज़रअंदाज करना आरम्भ कर देती हैं!
जैसे जब उनका पुरुष पार्टनर उनको कम समय देना शुरू करता है तो वे समझ नहीं पातीं या समझकर भी "Bad Faith" के भरोसे बैठी होती हैं शायद सब अच्छा हो जायेगा या शायद बेचारा काम में या परिवार में उलझ रहा है, या वो बहाने जो लड़का बनाना शुरू करता है या अलग-अलग इमोशनल तरीके से बहलाता है तो उसमें बिना दिमाग लगाए भरोसा करती चली जाती हैं!
आजकल के दौर में इस तरह कि स्थितियां सबसे ज्यादा लिव-इन रिलेशन में या लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप में या लम्बे समय से प्यार में डूबे तथाकथित प्यार करने वाले युवाओं में ज्यादा दिखाई देती हैं, जिसके कई सामाजिक पहलु भी होते हैं!
जैसे लड़के-लड़की का अलग-अलग जाति (कास्ट) या धर्म का होना, यह आजकल की एक बहुत कॉमन समस्या है!
यह एक बड़ी समस्या तब और बन जाती है जब लड़का या लड़की में से कोई एक अपने माँ-बाप के साथ रह रहा होता है, क्योंकि ऐसे में उस लड़के या लड़की के ऊपर माता-पिता का इमोशनल प्यार या आज की भाषा में कहें तो अत्याचार चल रहा होता है, क्योंकि माँ या बाप या कभी-कभी दोनों को यह लगता है कि इस बच्चे को तो हमने बचपन से पाला है, बड़ा किया है और अचानक से कुछ महीनों से या सालों में मेरा यह बच्चा / बच्ची इस लड़की या लड़के से कनेक्ट हो गई है और अब यह हमारी जगह उसको ज्यादा तबज्जो कैसे दे सकता है!! कई बार यह स्थिति उन माँ-बाप के ईगो को हर्ट कर देता है जो वे या तो गुस्से में बातों के माध्यम से निकालते हैं या कई बार माँ-बाप या परिवार के लोग अपने झूठे अहंकार या झूठी सामाजिक इज्जत के नाम पर इतना गंभीरता से ले जाते हैं कि अपने ही बच्चे या बच्ची की हॉनर किलिंग तक पहुंच जाते हैं लेकिन ज्यादातर मामले स्लो पाइजन (धीमे जहर) के रूप में आगे बढ़ते हैं!
स्लो पाइजन वाली स्थिति ज्यादातर बार लड़कियों के साथ शादी के बाद ज्यादा होती है, इसकी एक बेहद बड़ी वजह उत्तर भारत में मुझे देखने को मिली वो है ऐसे रिश्तों में लड़के वालों के घर वालों की कई इच्छाएं अधूरी रह जाती हैं जो वे लड़के के दवाब में उस समय तो नहीं बोल पाते लेकिन धीरे-धीरे जैसे ही कुछ समय बीतता है वो स्लो पाइजन के रूप में बाहर निकलती हैं, जैसे जब लड़का-लड़की लव मैरिज या इंटरकास्ट मैरिज कर लेते हैं तब शुरुआत शादी और परिवार के रीति-रिवाजों से शुरू होती है कि.... लड़की के घर वालों को तो ये नहीं पता वो नहीं पता!! इन्होने वो सम्मान नहीं किया!! ये गलत कर दिया...शुरू में प्यार में डूबे लोग इसको हँसते हुए नज़रअंदाज करते हैं!!
कई बार यह स्थिति अच्छे से दहेज़ न मिल पाने के कारण भी बनती है (हमारे देश में विशेषकर के उत्तर भारत में यदि किसी का लड़का थोड़ा सा पढ़-लिख जाता है या कुछ सही कमाने लगता है तो वो उनके लिए एक दुधारू गाय की तरह होता है, जिसे बाजार में कई तरह की बोली लगाकर लोग अपनी लड़कियों के लिए रिश्ता करने के लिए एक पैर पर तैयार खड़े होते हैं), लेकिन ऐसे आकर्षक पैसों से भरे ऑफर के बीच में जो माँ-बाप या परिवार इस काम में अपने बच्चे की लव मैरिज के चक्कर में चूक जाते हैं वे शादी के बाद बेहद अजीब-अजीब से तर्कों के साथ उनकी यह अधूरी इच्छा कई तरह की भड़ास के रूप में बाहर निकलती है और इसका पूरा सामना लड़की को अकेले ही झेलना पड़ता है! और इस स्थिति में कोढ़ में खाज वाली बात यह और होती है कि लड़की के घर वाले भी उसका साथ नहीं दे रहे होते क्योंकि लड़की ने अपनी जिद से शादी की होती है तो जिससे उसके खुद के माँ-बाप का पहले ही ईगो हर्ट हुआ होता है और ऐसी स्थिति देखकर उनको कहने या बातें सुनाने का मौका मिल जाता है कि तुम्हें तो हमने पहले ही मना किया था लेकिन तुमने हमारी बात कहाँ मानी...., कई बार तो लड़कियां खुल के अपने दिल की बात और स्थिति अपने माँ-बाप को इस कारण ही नहीं बताती क्योंकि वो ही स्वयं को इस स्थिति का जिम्मेदार मानती हैं और एक Bad Faith के सहारे खुद को समझातीं रहती हैं!
कुछ महिलाएं ऐसी स्थिति से बचने के लिए यह सोचती हैं कि शायद उनका बच्चा हो जायेगा तो ऐसा नहीं होगा, लेकिन अधिकांश हालातों में यह रुकता नहीं बस स्थिति एक अलग तरह की ढलान की ओर बढ़ जाती है जहाँ से ऊपर आना बेहद मुश्किल या यूँ कहें नामुमकिन सा होता है!!
अब ऐसे में वे लड़कियां ज्यादा खुशकिस्मत होती हैं जो शादी से पहले ही ऐसी किसी स्थिति का सामना करती हैं, जहाँ लड़के के घरवाले उसे किसी और जगह दवाब बनाने के लिए कह रहे होते हैं, वो भी यही कह रहा होता है कि बाबू तुमसे तो मैं दिल-जहाँ से प्यार करता हूँ लेकिन अब घर वालों को कैसे समझाऊं मैं नहीं समझ पा रहा, कई लड़के खुल के नहीं बोलते तो कई मन में उस लड़की से सही में पूरी तरह से ऊब चुके होते हैं और नए रिश्ते में एक नया साथी और पैसा दोनों ही उसको दिख रहा होता है ......कई हिम्मत करके यह बोल देते हैं कि मैं शादी नहीं कर सकता .... लड़कियों को इस स्थिति में तत्काल समझ जाना चाहिए कि यह एक अलार्म वाली स्थिति है लेकिन उनको लगता है कि नहीं ऐसा कैसे हो सकता है जो लड़का दिन रात मेरे पीछे दुम हिलाता था, या जो अभी भी मुझे चाहता है, या यह तो मेरे हुस्न या सुंदरता पर लट्टू था, अचानक इसको क्या हो गया (ऐसा ही वहम शायद दीपिका पादुकोण को रहा होगा लेकिन वो भी ऐसे ही टॉक्सिक रिलेशनशिप के चक्कर में डिप्रेशन में जा चुकी हैं, जिन लोगों को यह किस्सा पता नहीं तो वे गूगल अवश्य करें)..... किसी भी लड़की के लिए यह बात निश्चित रूप से ख़राब ही लगेगी कि उसके साथ हर तरह का समय बिताने के बाद यह लड़का अपने घर की या किसी स्थिति से अब पीछे हटने की बात कर रहा है, या कई बार लड़के पीछा छुड़ाने के लिए लड़ाई-झगड़ा, मार-पिटाई भी कर देते हैं ...
लेकिन इन सबके बाद भी लड़कियां कई बार यह सोचती हैं कि जिस लड़के के सामने उन्होंने अपना सबकुछ दे दिया अब कोई और उनको स्वीकार कैसे करेगा!! किसी और के सामने वो खुलकर कैसे बता पाएंगी कि उनका किसी के साथ रिश्ता था!! या अभी जो लड़का उनके साथ है वो इतना अच्छा है या देखने में इतना सुन्दर है या कोई और तर्क से सिर्फ यह सोचती हैं कि यह चला गया तो कोई दूसरा कैसे मिलेगा ...और इन्हीं सब कारणों, अपने हॉर्मोन और Bad Faith के आगे मजबूर होकर उस हिस्से की ओर आगे बढ़ जाती हैं जहाँ शुरू से ही उन्हें आगे न बढ़ने के कई indication उन्हें मिल रहे होते हैं, लड़कियों को अपने ऐसे कदम के चक्कर में समाज, परिवार और यहाँ तक की अपने जीवन के लिए देखे जाने वाले कई सपनों से समझौता या बगावत करनी पड़ती है लेकिन बस इस भरोसे से वो आगे बढ़ती जाती हैं कि उनके साथ कुछ गलत नहीं हो सकता और हकीकत कभी श्रद्धा मर्डर के रूप में तो कभी दहेज़ हत्या के रूप में तो कभी खुद जाकर सुसाइड जैसे भयावह कदम उठाने पड़ते हैं।
इस लेख में एक अंतिम बात और जोडू तो लड़कियों की फंतासी (Fantasy) की स्थिति भी कई बार गंभीर परिणामों को लेकर के आती हैं, क्योंकि हमारे भारत में लड़कियों को माँ-बाप या परिवार हमेशा बेहद देखरेख वाले तरीके से पालने की कोशिश करता हैं जैसे यह ड्रेस क्यों पहनी, इसके साथ क्यों जा रही हो, इतना क्यों खर्च कर रही हो, यह बनाना सीखो, ससुराल जाकर यह करना यहाँ नहीं चलेगा यह सब, या लड़की कमाने लगती हैं तो उसकी आमदनी पर नियंत्रण करते हैं, रात में यहाँ क्यों जा रही हो, यह क्यों कर रही हो वो क्यों कर रही हो आदि....आदि... ऐसे सब में लड़की के अंदर एक अनचाही फंतासी (Fantasy) बढ़ती जाती है कि जब शादी होगी तो यह करुँगी, वहां घूमूंगी, या कोई शादी से पहले मिल जाता है तो उससे उम्मीदें होती हैं कि वो ऐसा करेगा या उसके साथ ऐसा करुँगी!
शादी या प्यार की आरम्भिक स्थिति तो अच्छी लगती है, गाड़ियों या बाइक में बैठकर हाथ में हाथ डालकर घूमना या कुछ न कुछ जुगाड़ बनाकर पैसे इकट्ठे करके छोटे-मोटे ट्रिप प्लान करना या यादगार लम्हे गुजारना नए-नए प्रेमी युगलों को बेहद अच्छा लगता है लेकिन जब जिंदगी की हकीकत सामने आती है जिसमें रोज पेट भरने का जुगाड़ करना होता है, जिसमें एक-दूसरे के अलावा भी बहुत से काम और सपने पूरे करने होते हैं और किसी कारण से वो पूरे नहीं होते तो शुरू हो जाता है Bad Faith का खेल या कुछ सपनों को ख़त्म करने का काम और बस यहीं से रिश्तों की जटिलता समझ आनी शुरू हो जाती है।
वैसे ऊपर लिखा गया जो कुछ भी लिखा गया है वो किसी भी आदर्श रिश्ते में हो सकता है क्योंकि दुनिया में आदर्श रिश्ता जैसा कुछ नहीं होता, हाँ इतना जरूर है कि अच्छे रिश्तों में कड़वाहट इतनी नहीं होती कि बहुत कुछ दांव पर लगाना पड़ता है, हाँ संघर्ष तो होता है लेकिन जीवन में संघर्ष उतना ही होना चाहिए जो सहने लायक हो, गंभीर होती स्थिति को समय से पहले पहचानना ही समझदारी होती है अन्यथा भाग्य को, लोगों को दोष देना दुनिया में सबसे आसान काम है।
चलते-चलते ऐसी अप्रिय स्थितियों से बचने के लिए कुछ प्रैक्टिकल समाधानों को भी लिख रहा हूँ:
दुनिया में सबसे ज्यादा खुद को प्यार करें, और किसी भी चीज़ से ज्यादा अपने भविष्य के सपनों को सबसे ज्यादा सम्मान दें!
अपने जीवन का निर्धारण किसी और के भरोसे या हाथों करने से पहले खुद के हाथों से करें, अर्थात सबसे पहले अपने लिए सोचें, अपने जीवन और अपने करियर के लिए निर्धारित सपनों के लिए सोचें।
चाहें कोई प्राणों से भी ज्यादा प्यारा क्यों न हो उसपर भरोसा एक तय दायरे में ही करें, और साथ ही स्वयं से झूठ या स्वयं को झूठी तसल्ली बिल्कुल न दें, स्वयं के जीवन की स्थिति का आंकलन 100% ईमानदारी के साथ करें!
अपने माता-पिता, परिवार, मित्र या किसी भी अन्य पर एक सीमा तक ही भरोसा करें, अंत में वे भी एक इंसान हैं और वे भी इमोशन के साथ जीते हैं, संभव है कि वे आपका अच्छा ही सोचेंगे लेकिन सबकुछ ही अच्छा सोचेंगे या करेंगे ऐसा हमेशा सही नहीं होता।
अपने जीवन में किसी के भरोसे ख़ुशी पाने से पहले अपने आपको इतना प्यार दें किसी से कुछ न मिले तब भी ख़ुशी के लिए किसी का मोहताज न होना पड़े!
इमोशनल रहें, भावनाओं में बहें, अपने भरोसे या श्रद्धा को खूब कायम रखें लेकिन तर्क का भी उतना ही इस्तेमाल करें जितना आपके लिए कुछ और जरुरी है।
जीवन में कुछ भी करने से पहले अपने स्वयं के लिए एक अपनी क्षमताओं और उन क्षमताओं से कुछ ज्यादा एक लक्ष्य जरूर निर्धारित करें!
सकारात्मक साहित्य और अच्छे विचारों वाले लेखकों को लगातार पढ़ें!
जीवन में तकदीर के भरोसे न रहें क्योकिं ज्यादातर बार तकदीर हमारे किये गए कार्यों के भरोसे बैठी होती है और जीवन में हमें वैसे ही परिणाम मिलते हैं जो काम हम करते हैं। (जो बोया जाता है वो काटना ही पड़ता है, यह प्रकृति का और कर्म का अटल नियम है)
हो सके तो किसी बात का यदि आप अकेले निर्णय नहीं ले पा रहे हैं तो ऐसे लोगों से परामर्श अवश्य लें जिनसे आपको लगता है कि अच्छा समाधान या सुझाव मिल सकता है!
ऐसे कामों में समय ज्यादा दें जो आपके जीवन में बेहतर लाभ दे सकते हैं, सोशल मीडिया पर बहुत ज्यादा समय खर्च करने से बचें!
श्रीमदभगवत गीता के अध्याय 13 के इन श्लोकों में सम्पूर्ण जीवन का सार है, हालाँकि सिर्फ इतने से बहुत कुछ समझ में आ जाये यह कठिन है, लेकिन भगवत गीता का नियमित अध्ययन आपको बहुत सी समस्याओं के समाधान प्राप्त करने में निश्चित मदद करेगा ! इसलिए जब भी समय मिले श्रीमदभगवत गीता का अध्ययन अवश्य करें!
अमानित्वमदम्भित्वमहिंसा क्षान्तिरार्जवम् । आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्मविनिग्रहः ॥ ८ ॥
इन्द्रियार्थेषु वैराग्यमनहङ्कार एव च । जन्ममृत्युजराव्याधिदुःखदोषानुदर्शनम् ॥ ९ ॥
असक्तिरनभिष्वङ्ग: पुत्रदारगृहादिषु । नित्यं च समचित्तत्वमिष्टानिष्टोपपत्तिषु ॥ १० ॥
मयि चानन्ययोगेन भक्तिरव्यभिचारिणी । विविक्तदेशसेवित्वमरतिर्जनसंसदि ॥ ११ ॥
अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं तत्वज्ञानार्थदर्शनम् । एतज्ज्ञानमिति प्रोक्तमज्ञानं यदतोऽन्यथा ॥ १२ ॥
भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि: विनम्रता, अभिमान का त्याग (दम्भहीनता), अहिंसा, सहिष्णुता, सरलता, ज्ञानवान व्यक्ति को गुरु मानकर उनसे सीखना, पवित्रता, स्थिरता, आत्मसंयम, इन्द्रियतृप्ति के विषयों का त्याग करना, अहंकार का अभाव, जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था तथा रोग के दोषों की अनुभूति, वैराग्य, सन्तान, स्त्री, घर तथा अन्य वस्तुओं की ममता से मुक्ति, अच्छी तथा बुरी घटनाओं के प्रति समभाव, ईश्वर (भगवान कृष्ण) के प्रति निरन्तर अनन्य भक्ति, एकान्त स्थान में रहने की इच्छा, जन समूह से विलगाव, आत्म-साक्षात्कार की महत्ता को स्वीकारना, तथा परम सत्य की दार्शनिक खोज - इन सबको मैं ज्ञान घोषित करता हूँ और इनके अतिरिक्त जो भी है, वह सब अज्ञान है।
इस लेख में मेरी ओर से कोशिश की गई है कि तथ्यों, तर्कों और जीवन में सैकड़ों लोगों से मिले अनुभवों के आधार पर ही विचारों को संकलित करके आप सभी को साझा करूँ, वैसे अभी भी इस विषय पर लिखने को इतना कुछ है कि एक बड़ा संकलन तैयार किया जा सकता है, और साथ ही मेरे पुरुष मित्रों को लेकर भी बहुत कड़ा लिखा हूँ जिसके लिए दिल से खेद हैं लेकिन क्योंकि लेख का जो विषय है उसके इर्द-गिर्द ईमानदारी से लिखने का प्रयास किया है, लेकिन यह वादा है कि मानवीय रिश्तों और उनके व्यवहारों के ऊपर मेरी ओर से यह श्रंखला अब लगातार जारी रहेगी जिसमें पुरुषों के भावनात्मक पहलुओं पर भी गहराई से लिखूंगा!
आशा है कि आप सभी को इस लेख में दिए गए विचार सही लगे होंगे, यदि किसी विषय, तथ्य या विचार से आपकी कोई असहमति है या आपके पास भी इस लेख के विषय के इर्द-गिर्द कुछ और विचार या अनुभव साझा करने हों तो मुझे मेरी ईमेल [email protected] पर अवश्य लिखकर के भेजें, आपके सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी!
आपका !
आयुर्वेदाचार्य डॉ. अभिषेक !!
योग और आयुर्वेद, कोविड 19 के उच्च जोखिम वाले मामलों के उपचार में प्रभावी हो सकते हैं। 30 उच्च-जोखिम वाले कोविड-19 रोगियों के सफल उपचार पर एक शोध का अध्ययन यह सुझाव देता है। यह अध्ययन आईआईटी दिल्ली और देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार के शोधकतार्ओं की एक टीम द्वारा किया गया था। आईआईटी दिल्ली का कहना है कि इस अध्ययन के दौरान तय दिशानिदेशरें के अनुसार उपचार के अलावा, रोगियों को टेलीमेडिसिन के माध्यम से आयुर्वेदिक दवाएं दी गईं।
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग करके एक व्यक्तिगत चिकित्सीय योग कार्यक्रम का भी संचालन किया गया। आईआईटी दिल्ली का कहना है कि जिन रोगियों का उपचार किया जा रहा था, लगभग उन सभी रोगियों को मधुमेह मेलिटस, उच्च रक्तचाप, क्रोनिक किडनी रोग, कोरोनरी धमनी रोग जैसी एक या अधिक सह-रुग्णताओं के कारण उच्च जोखिम के रूप में वर्गीकृत किया गया था। गौरतलब है कि हाई ब्लड प्रेशर, किडनी रोग व डायबिटीज आदि जैसी बीमारियां कोविड 19 के मामलों में गंभीर परिणाम देने के लिए जानी जाती हैं। इनमें से कई रोगियों की आयु 60 वर्ष एवं 60 वर्ष से ही से ऊपर थी।
रोगियों को दिया गया उपचार व्यक्तिगत उपचार था। यह उपचार शास्त्रीय ग्रंथों के अनुसार था और प्रत्येक रोगी की चिकित्सा हिस्ट्री और प्रस्तुत लक्षणों को ध्यान में रखा गया, जिसने इसे एक निश्चित मानकीकृत उपचार योजना की तुलना में अधिक प्रभावी बना दिया। उपचार में आयुर्वेदिक दवाएं, दैनिक योग-सत्र जिसमें गहरी विश्राम तकनीक, प्राणायाम और बुनियादी आसन और जीवन शैली में कुछ संशोधन शामिल थे।
आईआईटी दिल्ली के मुताबिक मामलों को अलग-अलग वर्गों में वगीर्कृत किया गया था। आयुर्वेद आधारित उपचार, और आधुनिक पश्चिमी चिकित्सा यानी एलोपैथी सहायक के रूप में रोगियों को बाद में योग-आयुर्वेद में स्विच किया। अधिकांश रोगी जिनमें योग और आयुर्वेद उपचार से पहले कई लक्षणों थे, को ठीक होने तक नियमित रूप से टेलीफोन पर फॉलो-अप किया गया था। आधे से अधिक रोगसूचक रोगियों में 5 दिनों के भीतर सुधार होने लगा (90 प्रतिशत रोगियों में 9 दिनों के भीतर रिकवरी की सूचना दी। 95 प्रतिशत से कम ऑक्सीजन संतृप्ति वाले छह रोगियों को मकरासन और शिथिलासन से लाभ हुआ।
कीसी भी रोगी को आईसीयू में एडमिट नहीं कराना पड़ा। इसके अलावा योग व आयुर्वेद के माध्यम से उपचारित किए जा रहे थे। इन रोगियों में वेंटिलेशन की आवश्यकता भी नहीं पड़ी न ही इनमें से किसी रोगी की मृत्यु हुई।
अध्ययन के दौरान आईआईटी दिल्ली से फैलोशिप कर रही डॉ सोनिका ठकराल ने कहा, ज्यादातर मरीजों ने बताया कि थेरेपी का उनकी रिकवरी प्रक्रिया पर गहरा असर पड़ा है। साथ ही कई लोगों ने उनकी कॉमरेडिटीज के संबंध में भी सुधार का अनुभव किया है। उपचार के अंत तक, कई रोगियों ने अपनी जीवन शैली में योग को अपनाने का फैसला किया था, और कई ने अपनी सहरुग्णता के उपचार के लिए टीम में आयुर्वेद डॉक्टरों की ओर रुख किया।
इससे पहले भी आईआईटी दिल्ली कोरोना के दौरान अश्वगंधा के फायदों पर महत्वपूर्ण रिसर्च कर चुका है। आईआईटी दिल्ली के मुताबिक कोरोना के दौरान अश्वगंधा के सेवन से रोगियों को लाभ पहुंचा है। (एजेंसी)
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लॉस एंजेलिस: मेयो क्लिनिक के एक नए अध्ययन में कहा गया है कि कोविड-19 संक्रमण के कारण अस्पताल में भर्ती होना अब असामान्य है, जहां टीकाकरण के बाद एक हजार में से एक मरीज को अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, क्लिनिकल इंफेक्शियस डिजीज में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि टीकाकरण वाले मरीजों के लिए अस्पताल में भर्ती होने की दर 0.06 प्रतिशत या 10,000 रोगियों में से छह थी और और जिन्होंने वैक्सीन प्राप्त की है, उनमें 10,000 में से एक है।
मेयो क्लिनिक में सेंटर फॉर द साइंस ऑफ हेल्थ केयर डिलीवरी के एक शोधकर्ता लीड लेखक बेंजामिन पोलक ने कहा, "जिन व्यक्तियों को टीका लगाया गया है, उन्हें बाद में अस्पताल में भर्ती होने का जोखिम बहुत कम है।"
हमारे अध्ययन से पता चलता है कि जो व्यक्ति टीका लगवाए हैं, उन्हें भी कोविड हो सकता है, लेकिन ये घटनाएं बेहद असामान्य हैं।
विज्ञप्ति के अनुसार, शोधकर्ताओं ने रोचेस्टर में मेयो क्लिनिक में 1,06,349 रोगियों पर अध्ययन किया, जिनकी आयु 18 वर्ष या उससे अधिक थी और वे कोविड-19 से संक्रमित मिले थे और उन्हें कोविड टीका लगाया गया था।
अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि उन रोगियों में से केवल 69 को ही कोविड-19 संक्रमण के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया था। (एजेंसी)
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केंद्रीय आयुष और बंदरगाह, शिपिंग एवं जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने वर्चुअल माध्यम से मणिपुर के मोरेह में 50 बेड वाले एकीकृत आयुष अस्पताल का उद्घाटन किया और इसके साथ ही मणिपुर में आयुष उद्योग के विकास एवं संवर्धन के लिए प्रमुख पहलों की घोषणा की। केंद्रीय मंत्री ने एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि मंत्रालय ने राज्य में 15 आयुष औषधालय, 10 बेड वाले सात अस्पताल, 100 स्कूल हर्बल गार्डन, प्रत्येक जिले में 16 नर्सरी और 50 स्वास्थ्य एवं वेलनेस केंद्र (एचडब्ल्यूसी) खोलने का निर्णय लिया है।
केंद्रीय मंत्री विशेष सम्मानित अतिथि के रूप में इम्फाल में ‘पूर्वोत्तर भारत की पारंपरिक स्वास्थ्य प्रथाओं के प्रलेखन, वैज्ञानिक सत्यापन और आकलन को बढ़ावा देने के लिए फाइटोफार्मास्युटिकल मिशन’ विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम में भाग ले रहे थे। मणिपुर के मुख्यमंत्री श्री एन. बीरेन सिंह, केंद्रीय राज्य मंत्री डॉ. आर के रंजन सिंह, मुख्यमंत्री के सलाहकार (स्वास्थ्य), मणिपुर डॉ. एस. रंजन सिंह भी इस समारोह में शामिल हुए।
इस अवसर पर मंत्री महोदय ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि इन योजनाओं के पूरा हो जाने के बाद आयुष उद्योग को विकसित करने के लिए और भी अधिक सहायता दी जाएगी। उन्होंने आशा व्यक्त की कि ये योजनाएं मणिपुर के लोगों को विभिन्न औषधीय पौधों को विकसित करने, भविष्य में और भी अधिक विकास सुनिश्चित करने एवं रोजगार सृजित करने के लिए प्रेरित करेंगी। केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘भारत भर में कुल 6,000 औषधीय पौधों में से 1,000 से भी अधिक औषधीय पौधे मणिपुर में ही हैं। हमें अवश्य ही इस बढ़त का उपयोग करना चाहिए।’
केंद्रीय मंत्री ने यह भी कहा, ‘‘मणिपुर की महिलाओं की समस्त समुदाय में एक अनूठी और मजबूत पहचान है। मैं महिलाओं से अनुरोध करता हूं कि वे आगे आएं और इन औषधीय पौधों को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक कदम उठाएं। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि हम आपके उत्पादों के लिए अनगिनत बाजार उपलब्ध कराएंगे जिससे न केवल उद्यमिता की भावना विकसित होगी, ‘आत्मनिर्भर मणिपुर’ का मार्ग प्रशस्त होगा, बल्कि किसान भी लाभान्वित होंगे और उनकी कृषि आय दोगुनी करने के लक्ष्य को पाया जा सकेगा।’’
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केंद्रीय आयुष मंत्री सर्बानंद सोनोवाल की पूर्वोत्तर में आयुष को बढ़ावा देने के लिए परियोजनाओं की घोषणा
केंद्रीय आयुष तथा पत्तन, पोतपरिवहन और जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने आयुष को बढ़ावा देने के लिए आज यहां अरुणाचल प्रदेश में कई प्रमुख पहलों की घोषणा की। पूरे पूर्वोत्तर में आयुष क्षेत्र को विकास करने पर केंद्रित दृष्टिकोण के क्रम में यह घोषणा की गई है।
पासीघाट में 30 सीटों वाला आयुर्वेद कॉलेज और 60 बिस्तरों वाला आयुर्वेद अस्पताल बनेगा
केंद्रीय मंत्री अरुणाचल प्रदेश के पासीघाट में पूर्वोत्तर आयुर्वेद और लोक चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (एनईआईएफएमआर) में बोल रहे थे। उन्होंने संस्थान के परिसर में नई बुनियादी संरचना विकसित करने के लिए 53.72 करोड़ रुपये का निवेश करने की घोषणा की। पासीघाट में एनईआईएफएमआर परिसर के अंदर 30 छात्रों के प्रवेश की सीटों और 60 बिस्तरों वाले आयुर्वेद अस्पताल के साथ एक नया आयुर्वेद कॉलेज स्थापित किया जाएगा, जिसमें मौजूदा क्षमता के अलावा 86 पदों का प्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा। निकट भविष्य में एक शैक्षणिक खंड, एक बाल-छात्रावास, एक बालिका-छात्रावास और खेल परिसर बनाने की भी योजना तैयार की जा रही है।
उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए सोनोवाल ने कहा,'लोक चिकित्सा पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों और विश्वासों का मिश्रण है। पूर्वोत्तर में, हमारे पास लोक चिकित्सा की एक मजबूत संस्कृति है, जिसका संरक्षण वैज्ञानिक पद्धति से नहीं किया गया है। अब हम वैदिक युग की चिकित्सा के इस अद्भुत उपहार को संरक्षित करने और समृद्ध करने की दिशा में प्रयास कर रहे हैं, जिसे प्रकृति ने हमें प्रदान किया है।'
मुझे यहां एक अस्पताल के साथ नए आयुर्वेद कॉलेज की स्थापना की घोषणा करते हुए खुशी हो रही है। इससे आगे एनईआईएएफएमआर के माध्यम से समृद्ध पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित करने और उसे आगे बढ़ाने के हमारे प्रयासों को मजबूती मिलने जा रही है।
पूर्वोत्तर क्षेत्र में आयुष सेक्टर के प्रसार के लिए भविष्य की योजनाओं के संबंध में बताते हुए केन्द्रीय आयुष मंत्री सोनोवाल ने कहा कि क्षेत्र में हमारे आयुर्वेद कॉलेजों को मजबूत करने के अलावा, कुछ अन्य महत्वपूर्ण संस्थान जैसे रीजनल रॉ ड्रग रिपॉजिटरी (आरआरडीआर) और संग्रहालय, परिष्कृत विश्लेषणात्मक उपकरण सुविधा (सैफ), अत्याधुनिक पंचकर्म उपचार एवं अनुसंधान केंद्र, और पैरामेडिकल टीचिंग सेंटर भी इस क्षेत्र में नियत समय में स्थापित करने की योजना है।
लोक चिकित्सा संस्थान का नाम बदलकर पूर्वोत्तर आयुर्वेद और लोक चिकित्सा अनुसंधान संस्थान
पासीघाट स्थित पूर्वोत्तर लोक चिकित्सा संस्थान (एनईआईएफएम) जिसका नाम बदलकर पूर्वोत्तर आयुर्वेद और लोक चिकित्सा अनुसंधान संस्थान कर दिया गया है, भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त राष्ट्रीय संस्थान है। करीब 40 एकड़ क्षेत्र में फैले इस संस्थान की स्थापना को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 21 फरवरी, 2008 को मंजूरी दी थी। एनईआईएएफएमआर की स्थापना पारंपरिक स्वास्थ्य सेवा पद्धतियों को मजबूत करने और उनका विकासत करने के लिए की गई है, ताकि देश को खासतौर से पूर्वोत्तर क्षेत्र को लाभ मिले।
संस्थान का मकसद सामान्य रूप से पूर्वोत्तर क्षेत्र में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति की शुरुआत और खाखातैर से अरुणाचल प्रदेश में स्वास्थ्य संबंधी स्थानीय परंपराओं, चिकित्सा ज्ञान, पारंपरिक ज्ञान के आधार पर स्वास्थ्यप्रद जानकारी, दवाओं के चिकित्सीय उत्पादों का विकास, आईपीआर के माध्यम से पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण, पोषण और पारंपरिक पद्धतियों का सतत उपयोग तथा जैव विविधता का दस्तावेज तैयार करना और उनका मूल्यांकन करना है।
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भोपाल, 7 सितम्बर (आईएएनएस)। सरकारी अस्पताल का जिक्र आते ही आंखों के सामने बेतरतीब और बदहाल स्थान की तस्वीर उभर आती है, मगर मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल का सरकारी काटजू अस्पताल इससे इतर है और यहां के कोरोना वैक्सीनेशन सेंटर का नजारा तो किसी उत्सव स्थल से कम नहीं है। यही कारण है कि यहां आने वाला हर व्यक्ति न केवल टीका लगवा रहा है बल्कि अपनों को यहां आने के लिए प्रेरित भी कर रहा है।मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में वर्तमान में दो ऐसे वैक्सीनेशन सेंटर हैं, जहां 24 घंटे वैक्सीनेशन की सुविधा सुलभ है। आइए हम बात करते हैं सरकारी काटजू अस्पताल में स्थित वैक्सीनेशन सेंटर की। इस सेंटर में प्रवेश करते ही आपका सामना यहां तैनात सुरक्षाकर्मी से होगा और उसके बाद आपकी मुलाकात कंप्यूटर पर बैठे डाटा दर्ज करने वाले कर्मचारी से, अगर आपने ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन नहीं कराया है तो महज एक मिनट से भी कम समय में पंजीयन हो जाता है और व्यक्ति पांच मिनट के भीतर काउंटर पर पहुंचकर वैक्सीनेशन करा चुका होता है। उसे यहां टीका लगवाने के बाद 30 मिनट रुकना होता है, क्योंकि ऐसा प्रोटोकॉल में प्रावधान है।इस टीकाकरण केंद्र में आने वालों के स्वागत में रेड कारपेट बिछाया गया है तो उनका 30 मिनट का वक्त सुखद गुजरे इसके लिए टीवी लगा है साथ ही मध्यम आवाज में संगीत भी गूंजता रहता है। इतना ही नहीं यहां तैनात सुरक्षाकर्मी और स्वास्थ्य कर्मी वैक्सीनेशन कराने वालों से उनका हाल भी पूछते रहते हैं, ताकि उन्हें किसी तरह की परेषानी आए तो उसका निदान किया जा सके। एक निजी महाविद्यालय के प्राध्यापक प्रसन्ना जैन अपनी पत्नी को वैक्सीन लगवाने पहुंचे। उनका कहना है कि, वे यही मानकर चल रहे थे कि सरकारी अस्पताल में जाकर कतार में लगना होगा और दो से तीन घंटे का वक्त लग जाएगा, मगर यहां आकर वैसा कुछ नहीं था। यहां पहुंचते ही एक मिनट से कम समय में पंजीयन हुआ और उसके बाद सीधे काउंटर पर पहुंचने पर वैक्सीन लग गई, उसके बाद 30 मिनट रुकना पड़ा और घर लौट गये। कुल मिलाकर घर से सेंटर तक पहुंचने और सेंटर से घर तक पहुंचने में ज्यादा वक्त लगा, मगर वैक्सीन लगवाने और वहां रुकने में उससे भी कम समय लगा। यह मेरे लिए यह अकल्पनीय अनुभव रहा। सरकारी विद्यालय की शिक्षिका अर्चना दुबे का कहना है कि इस वैक्सीनेशन सेंटर पर आकर उन्हें यह लगा ही नहीं कि वह किसी अस्पताल में आई हैं, बल्कि ऐसे लगा जैसे किसी उत्सव स्थल पर हो, क्योंकि संगीत गूंज रहा था, काउंटर पर गुब्बारे लगे हुए थे और लोग इत्मिनान से बैठे हुए थे। आमतौर पर अस्पतालों का नजारा थोड़ा भय पैदा करने वाला होता है मगर यहां ऐसा कुछ नहीं लगा, बल्कि वैक्सीनेशन सेंटर किसी उत्सव स्थल का आभास कराने वाला था। वैक्सीनेशन केंद्र के प्रभारी जेमोन थामस का कहना है कि, यहां कोवेक्सीन व कोविशील्ड दोनों के डोज उपलब्ध है और लोगों का 24 घंटे यहां वैक्सीनेशन किया जाता है, रात के समय तभी वैक्सीन दे पाते हैं जब कम से कम पांच लोग हों। आम लोगों की संतुष्टि ही सफलता का पैमाना है और ऐसा हो रहा है इससे लगता है कि हम सही दिशा में बढ़ रहे हैं। मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग और केयर इंडिया के बीच हुए करार के मुताबिक चार वैक्सीनेशन सेंटरों का संचालन किया जा रहा है, वहीं आठ मोबाइल वैन शहर के अलग-अलग हिस्सों में जा रही हैं। काटजू अस्पताल के वैक्सीनेशन केंद्र में गर्भवती महिलाओं के लिए अलग काउंटर पिंक बूथ बनाया गया है, यह गुब्बारों से सजा हुआ है। साथ ही दिव्यांग और बुजुर्गों का खास ख्याल रखा जा रहा है। जरुरतमंदों को उनके वाहन में पहुंचकर भी वैक्सीन लगायी जाती है। --आईएएनएसएसएनपी/एएनएम
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