सभ्यता के विकास के साथ मनुष्य शारीरिक रूप से निष्क्रिय हो गया है। आधुनिकीकरण, संपन्नता, विज्ञान और तकनीकी विकास के फलस्वरूप आधुनिक जीवन शैली गतिहीन होती जा रही है। बढ़ती निष्क्रिय जीवनशैली के साथ आहार में बदलाव ने कई देशों में मोटापे की महामारी को जन्म दिया है। शारीरिक गतिविधि में कमी के साथ वसा और गुरु आहार द्रव्यों की भोजन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। औद्योगिकीकरण और आर्थिक प्रगति में उन्नति के साथ साथ आज कल अधिक से अधिक नौकरियां सिर्फ ऑफिस डेस्क तक सिमट के रह गई हैं तथा आहार के पैटर्न में बदलाव के साथ चीनी और वसा के सेवन में वृद्धि हो रही है। इस सबके कारण ही मोटापे तथा इससे जुडी समस्याओं में वृद्धि हुई है। तो आइये जानते हैं मोटापा क्या है, इसके कारण तथा इससे कैसे छुटकारा कैसे पाया जा सकता है।
विषय - सूची
मोटापा क्या है
मोटापे के कारण
मोटापे के लक्षण
निदान
मोटापे के सामान्य उपाय
क्या खाएं और किससे बचें
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
मोटापा क्या है?
आयुर्वेद में आचार्य चरक ने अष्ट निंदित पुरुष का वर्णन किया है तथा इनमे भी इन दो रोगों का विशेष रूप से वर्णन किया है- अतिस्थूल(अधिक मोटा) तथा अतिकार्श्य(अधिक पतला)। इनमें अतिस्थूल(अधिक मोटे) व्यक्ति को इसके जटिल व्याधिजनन और उपचार के कारण अतिनिंदित माना गया है। आयुर्वेद में मोटापे को स्थौल्य या मेदोरोग कहा गया है। यह संतर्पणोत्थ विकारो (अति पोषण के कारण होने वाला रोग) के अंतर्गत आता है। आयुर्वेद में शारीरिक व मानसिक संतुलन को ही स्वास्थ्य की परिभाषा दी गयी है। इसके अनुसार, मोटापा एक ऐसी स्थिति है, जिसमें मेद धातु (फैटी टिश्यू) की विकृति/ वृद्धि की होती है।
आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से, किसी भी अन्य बीमारी की तरह, मोटापा गलत भोजन के सेवन या अनुचित आहार की आदतों और जीवनशैली के विकास के साथ शुरू होता है, जिसके परिणामस्वरूप पाचन अग्नि की समस्या होती है, जो आगे जा कर आम को बढ़ाती है। बढे हुए आम के कारण चयापचय प्रक्रिया विचलित हो कर अधिक मेद धातू (फैटी टिश्यू) का निर्माण करती है और आगे की धातू निर्माण जैसे कि अस्थि (हड्डियों) के निर्माण को अवरुद्ध करती है। अत्यधिक रूप से बढी हुई मेद धातू कफ के कार्यों में अवरोध उत्पन्न करती हैं।
दूसरी ओर, जब आम सभी शारीरिक चैनलों को अवरुद्ध करता है तो यह वात दोष में असंतुलन पैदा करता है। वात दोष पाचन अग्नि (जठराग्नि) को उत्तेजित करता रहता है, जिससे भूख में वृद्धि होती है इसलिए व्यक्ति अधिक से अधिक भोजन करता है। मेद धात्वाग्नि मांद्य (कमजोर वसा चयापचय) के कारण अनुचित या असामान्य मेद धातु बनती है, जो मोटापे का मूल कारण है।
अतः मोटापा या स्थौल्य एक ऐसा रोग है जिसमें व्यक्ति मेद(फैटी टिश्यू) और मांस के अत्यधिक विकास के कारण काम करने में असमर्थ होता है और उसके नितंबों, पेट और स्तनों के अधिक विकास के कारण शारीरिक विघटन खराब हो जाता है।
मोटापे के कारण
मोटापा एक ऐसी अवस्था है जिसमें त्वचा तथा आंतरिक अंगों के आस-पास वसा का अत्यधिक संचय हो जाता है। जब लोग अधिक वसायुक्त भोजन करते हैं तथा शारीरिक श्रम नहीं करते तब शरीर में जरूरत से ज्यादा कैलोरी संचित हो जाती है जो वजन बढने का कारण है। कई अन्य कारण भी मोटापा बढाते हैं जैसे कि गर्भावस्था, ट्यूमर, हार्मोनल विकार और कुछ दवाएं जैसे साइकोटिक ड्रग्स, एसट्रोजन्, कॉर्टिकॉ-स्टेरायड्स और इंसुलिन।
आयुर्वेद तथा आधुनिक चिकित्सा प्रणाली दोनो ने मोटापे को कई कारणो की वजह से उत्पन्न माना है। मोटापे के आयुर्वेद में निम्न कारण बताये गए हैं-
अध्यशन (दोपहर के भोजन या रात के खाने के बाद दोबारा भोजन लेना)
अति बृन्हण (अति पोषण)
गुरु आहार सेवन (कठिनाई से पचने वाला भोजन करना)
मधुर आहार सेवन (मीठी वस्तुओं का सेवन)
स्निग्ध भोजन सेवन (कफ बढाने वाला भोजन करना)
अव्यायाम (व्यायाम न करना)
अव्यवाय (यौन गतिविधियों की कमी)
दिवा स्वप्न (दिन में सोना)
अतिस्नान सेवन
बीज दोष (आनुवान्शिक कारण)
अग्निमांद्य (पाचक अग्नि में कमी होना)
मोटापे के लक्षण
मोटापा व्यक्ति के जीवन में नकारात्मक प्रभाव डालता है। इससे ग्रसित व्यक्ति न सिर्फ शरीरिक रूप से परेशान रहता है, बल्कि मानसिक रूप से भी वह हीन भावना का शिकार हो कर अवसाद में जा सकता है। इसके सामान्यतः निम्न लक्षण होते हैं-
अतिस्वेद [अत्यधिक पसीना आना]
श्रमजन्य श्वास [हल्के परिश्रम पर सांस फूलना]
अति निंद्रा [अत्यधिक नींद आना]
कार्य दौर्बल्यता [भारी काम करने में कठिनाई]
जाड्यता [आलस्य]
अल्पायु [लघु जीवन काल]
अल्पबल [शक्ति में कमी]
शरीर दुर्गन्धता [शरीर की दुर्गंध]
गदगदत्व [अस्पष्ट आवाज]
क्षुधा वृद्धि (अत्यधिक भूख)
अति तृष्णा [अत्यधिक प्यास]।
मोटापे का निदान
वैसे तो मोटापे के निदान के लिये बहुत से वर्गीकरण हैं। लेकिन बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) पर आधारित विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का वर्गीकरण व्यापक रूप से स्वीकृत है। व्यक्ति के वजन(किलोग्राम में) को उसकी लम्बाई(मीटर में) के वर्ग द्वारा विभाजित कर बीएमआई निकाला जाता है। यह लम्बाई और आकार के आधार पर व्यक्ति के आदर्श वजन का अनुमान लगाता है।
18.5 से ले कर 24.9 तक बीएमआई सामान्य माना जाता है। 25 या इससे ऊपर बीएमआई वाल्रे मोटापे की श्रेणी में आते हैं।
मोटापे के सामान्य उपाय
मोटापा दूर करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है इसके कारणों को दूर करना। यह एक ऐसी बीमारी है जो शरीर की आवश्यकता से अधिक कैलोरी लेने की वजह से होती है। आयुर्वेद में, मोटापे का इलाज केवल वजन घटाने तक सीमित नहीं है, बल्कि चयापचय प्रक्रियाओं को ठीक कर आम को कम करके तथा वात-कफ के कार्य को नियमित कर अतिरिक्त वसा को कम किया जाता है।
चयापचय को ठीक करने के साथ-साथ पाचन अग्नि बढाने तथा स्रोतस शोधन के लिये, आहार की आदतों में सुधार करना और तनाव को कम करना महत्वपूर्ण है। इसके लिये निम्न कुछ उपाय घर में सरलता से किये जा सकते हैं-
लंघन- लंघन यानी ऐसे उपाय जो शरीर में हल्कापन लाये। जैसे-
ऊष्ण जल सेवन- सुबह उठने के पश्चात गर्म पानी का सेवन करें, यह न सिर्फ शरीर में लघुता लायेगा बल्कि आम पाचन भी करेगा।
उपवास- सप्ताह में एक दिन उपवास का सेवन करें। इस अवधि में आप मूंग की दाल का पानी या नारियल का जूस इत्यादि ले सकते हैं।
नियमित व्यायाम- माथे पर पसीना आने तक दैनिक नियमित रूप से व्यायाम जरूरी है। सुबह नियमित रूप से 30 मिनट तक पैदल चलें व व्यक्तिगत क्षमता के अनुसार व्यायाम करे। इसमें योगासन भी सहायक हैं, जैसे- सूर्य नमस्कार, धनुरासन, भुजंगासन, पवनमुक्तासन, पस्चिमोत्तानासन, ताड़ासन इत्यादि।
आम पाचन- आम की उपस्थिति में वजन कम करना बेहद मुश्किल है। इस कारण से लोग सीमित भोजन का सेवन करते हुए भी अपना वजन कम करने में असफल रहते हैं। इसलिए पहले आम से छुटकारा पाना महत्वपूर्ण है.
आम को खत्म करने के लिये पहले उन कारणों से बचना है जो आम की उत्पत्ति कर रहे हैं। पिछला भोजन ठीक से पचने से पहले खाने से बचें। आसानी से पचने वाला तथा मात्रा में कम भोजन खाएं। ठंडा या बासी भोजन न करें।
इसके लिये सौंफ और गुनगुने पानी का सेवन लाभदायक है।
अदरक भी आम पाचन में सहायक है। आप इसका काढा बना कर पी सकते हैं।
हल्दी, काली मिर्च जैसे मसाले अपने आहार में नियमित रूप से शामिल करें।
इसबगोल और त्रिफला को रोजाना रात को सोने से पहले लें। एक कप गर्म दूध में एक चम्मच घी मिलाकर पीना भी सहायक होता है।
कफ दोष शमन- मोटापे में कफ दोष बढ जाता है। इसके संतुलन के लिये निम्न उपाय अपनाये-
अपने आहार में मिर्च, सरसों के बीज और अदरक जैसे तीखे मसालों का उपयोग करें।
शहद को छोड़कर मीठे पदार्थों से बचें। रोजाना एक चम्मच या दो (लेकिन अधिक नहीं) शहद का सेवन करे। इसे सादा पानी में मिला कर पी सकते हैं।
तिक्त रस(कड्वा) सेवन- कफ दोष के शमन के लिये कड्वी चीज़ों को अपने आहार में शामिल करिये जैसे गिलोय, नीम, करेले का जूस इत्यादि।
गुरु अपतर्पण- यानी ऐसा आहार लेना जो भूक को भी शांत कर दे व मोटापा भी न बढाये।
इसके लिये जौ बेहद कारगर उपाय है. जौ का नमकीन दलिया या इसके आटे की रोटी का प्रयोग करे।
चावल का मांड- आयुर्वेद में इसे बनाने के लिये 14 गुना जल डाल कर चावल का मांड बताया गया है। इसमे आप अपने स्वाद के अनुसार हींग और सेंधा नमक डाल सकते हैं।
क्या खाएं और किससे बचें
अस्वास्थ्यकर आहार से शरीर में वसा ऊतक(फैटी टिश्यू) का निर्माण होता है जिसके परिणामस्वरूप मोटापा होता है। इसलिए पर्याप्त फाइबर युक्त स्वस्थ आहार का सेवन, सक्रिय जीवन शैली को अपनाना और तनाव और थकान को प्रबंधित करने के लिए योग और ध्यान का अभ्यास करना अधिक वजन / मोटापे की रोकथाम के लिए आवश्यक है। इसके लिए जीवन शैली में निम्न संशोधन किये जा सकते हैं-
नियमित समय पर भोजन करें।
पीने के लिए गर्म पानी का उपयोग करें।
सेहतमंद खाद्य पदार्थ जैसे - यव(जौ), हरा चना (मूंग की दाल), करेला, शिग्रू(ड्रमस्टिक), आंवला, अनार लें।
भोजन में तक्र(छाछ) का प्रयोग करें।
तली हुई के बजाय उबली हुई और बेक्ड सब्जियाँ प्रयोग करे।
आहार और पेय में नींबू शामिल करें। प्रातः काल एक गिलास गर्म पानी में एक नीम्बू का रस निचोड कर पिये, इसमे चीनी या नमक न मिलाये।
कम कैलोरी वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करें जैसे लौकी का जूस, सब्जियों का सूप इत्यादि।
अधिक मीठा, अधिक डेयरी उत्पाद, तले हुए और तैलीय पदार्थ, फास्ट फूड से दूर रहे।
भोजन में नमकीन भोजन या अत्यधिक नमक न ले।
मदिरा पान और धूम्रपान से बचें।
दिन में सोना सर्वथा त्याग दे।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
1)मोटापा किन कारणों से होता है?
मोटापा कई कारणों से होता है। मुख्य कारण हैं-
क)आनुवन्शिक कारण ख) ज़रुरत से ज़्यादा भोजन करना ग)हाइपोथायरायडिज्म और कुशिंग सिंड्रोम जैसी कुछ हार्मोनल स्थितियां मोटापे का कारण बन सकती हैं। कुछ दवाओं से भी मोटापा हो सकता है।
2) क्या मोटे लोगों को जल्दी मौत का खतरा है?
मोटे लोगों को जीवनशैली से जुड़ी बीमारियां जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल संबंधी रोग होने का खतरा होता है। ये रोग व्यक्ति की मृत्यु का कारण बन सकते हैं।
3) वज़न घटाने का सबसे अच्छा तरीका क्या है?
शारीरिक गतिविधि में वृद्धि, स्वस्थ आहार में बदलाव और अपने चिकित्सक से मिल कर प्रति सप्ताह 1 से 2 पाउंड वज़न कम करने का लक्ष्य रखें। वजन घटाने के लिये अपने आहार और दिनचर्या को ज़्यादा मुश्किल न बनाये। नियमित रूप से व्यायाम करें व मिताहार(नपा-तुला भोजन) करें।
Hyderabad, Dec 11 (IANS) Biological E. Limited (BE), a Hyderabad-based vaccines and pharmaceutical company, on Friday announced that its Typhoid Conjugate Vaccine (TCV) has been pre-qualified by the World Health Organisation (WHO).With this pre-qualification, BE became one of two pre-qualified suppliers of TCV to the UN agencies.BE's TCV is a single-dose injectable vaccine, which can be administered to children from six months of age to adults up to the age of 45 and it is formulated with Vi polysaccharide conjugated to a carrier protein (CRM197).The Vi polysaccharide antigen used in BE's TCV is derived from C. freundii, which is a non-pathogenic source (BSL 1 organism), compared to virulent Salmonella Typhi used by other manufacturers, and the carrier protein used for conjugation is a non-toxic CRM197 protein locally developed by BE through in-house R&D effort, the company said.Clinical studies conducted in India have shown that the safety and immunogenicity profiles of this vaccine are comparable with those of the other WHO pre-qualified TCV. BE offers this vaccine as single-dose and multi-dose vials for ease of administration.The vaccine was developed in collaboration with the GSK Vaccines Institute for Global Health (GVGH), based in Siena, Italy, which first developed the vaccine strain and transferred the technology to BE in 2013. BE has further developed the vaccine, including manufacturing process optimization and scale up, pre-clinical studies and comprehensive clinical trials for Phase I, II/III in India. This vaccine is being manufactured in BE's GMP manufacturing facilities in Hyderabad."This is a remarkable accomplishment and a significant milestone in the journey of our vaccines. I am delighted that we have been able to produce a new WHO pre-qualified vaccine. We believe that every year this vaccine would save about 1.5 Lakh people worldwide," said Mahima Datla, Managing Director, Biological E. Limited."GSK, through its R&D efforts at GVGH, is proud to have played an essential role in providing technologies to Biological E for their Typhoid Conjugate Vaccine (TCV)," said Francesco Berlanda-Scorza, GVGH Director.--IANSms/rt
The hospitals have reported at least 50 per cent fewer cases of these two seasonal illnesses, the doctors said.
Aakash Healthcare Super-Speciality Hospital in Dwarka said that they received only 50 patients so far who had Typhoid and Influenza in the last two months. The hospital stated that the count usually went up to 100 to 150 in previous monsoon seasons.
"We are not receiving the cases of Typhoid that usually comes in this season," informed Vikramjeet Singh, senior consultant, department of internal medicine at the hospital.
Max Super Speciality Hospital, Shalimar Bagh, also witnessed around 50 per cent fall in the cases related to Typhoid. However, the same situation was not reported in the cases of Influenza. "There has been a surge in flu (Influenza) cases recently, but again, the surge is expected during this season so not much variation from the routine," said Parul Kakkar, consultant, internal medicine, at the hospital.
BLK Hospital in Rajendra Place, which also saw a notable decrease in Typhoid and Influenza cases, said that cases of Typhoid and Influenza decrease with the end of monsoon. However, they did not reach their peak this year.
"During the monsoon season, normally the typhoid cases increase every year, which usually decreases by the end of this season. However, this was not the case this year," Rajinder Kumar Singal, senior director & head of the department of internal medicine at BLK.
The doctors attributed two scenarios behind the fall in the cases of Typhoid and influenza. One is a newfound change in the lifestyle enforced by the Covid-19 pandemic where eating home-cooked food and maintaining an optimum level of hygiene have become an integral part of life.
"During the current pandemic, everything around us is undergoing a change, including our lifestyle, eating habits and socialising etiquettes. Thankfully not every change is for the worse! The number of typhoid and hepatitis cases this year has decreased, and the full credit goes to our renewed respect and regard for the home-cooked "safe and healthy food ". Besides, the frequent hand washing that the public is now following also helped," said Kakkar.
"People are avoiding outside food and have not been going to eateries. Also, school and colleges are closed too. Elderly people are avoiding the parks and outdoor activities," reasoned Pankaj Solanki who runs Dharmaveer Solanki Multi-Speciality Hospital in Rohini.
Another reason behind the recorded fall in Typhoid and influenza cases is the less reporting due to fear induced by the Covid-19 outbreak. Doctors said people wish to avoid coming to hospitals. Also they relate the symptoms of the two seasonal illnesses with the COVID-19 disease.
"They are worried that they will have to follow isolation or hospital admission if they are confirmed with the Covid-19. This fear is making them not report the cases of Typhoid and Influenza," said Singh.
Solanki also said that people tend not to report the case as they relate the symptoms of the two viral illnesses, especially Influenza with the Covid-19 disease. "Most of the people who had symptoms did not come forward due to the fear of Covid-19 testing and mandatory isolation that follows. People are not reporting it as they are afraid of coming to the hospital as they assume the fever and other symptoms of Typhoid and Influenza are due to the Covid-19. So they are treating themselves at home," he added.
The symptoms of Covid-19 are almost similar to the Typhoid and Influenza, particularly. In the Typhoid, people usually have a sustained fever (one that doesn't come and go) that can be as high as 103-104 degrees fahrenheit (39-40 degrees Celsius). Some people with typhoid fever or paratyphoid fever develop rash or rose-coloured spots. Cough and sore throat are also symptoms.
Just like the SARS-CoV-2, which causes the Covid-19, Influenza also attacks the respiratory system -- nose, throat and lungs. Its symptoms include fever, runny or stuffy nose, sore throat, aching muscles and shortness of breath. (Agency)
ayurveda se coronavirus ka ilaz in hindi ब्रिटेन के प्रिंस चार्ल्स कोरोना वायरस संक्रमण से उबर गए हैं और केन्द्रीय आयुष मंत्री के अनुसार आयुर्वेद की मदद से वे स्वस्थ्य हुए हैं।
आयुष मंत्री श्रीपाद येशो नाइक ने बृहस्पतिवार को कहा कि बेंगलुरू के एक आयुर्वेदिक चिकित्सक ने दावा किया था कि उनके फॉर्मूला से ब्रिटेन के प्रिंस चार्ल्स कोरोना वायरस संक्रमण से उबर गए हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘बेंगलुरू में एक आयुर्वेदिक डॉक्टर हैं जो ‘सौख्य’- SOUKYA नाम से एक आयुर्वेद रिसार्ट चलाते हैं। उन्होंने मुझे फोन कर बताया कि प्रिंस चार्ल्स का कोरोना वायरस संक्रमण उनकी दवाई से सही हुआ। यह आयुर्वेद और होम्योपैथी का मिश्रण है।’’
( यह भी पढ़े - प्रधानमंत्री ने आयुर्वेद में हमेशा रुचि लेने के लिए प्रिंस चार्ल्स को धन्यवाद दिया )
नाइक ने कहा कि ब्रिटिश सिंहासन के 71 वर्षीय वारिस में हल्के लक्षण दिखाई देने के बाद, उन्हें आइसोलेट कर दिया गया था और उनका इलाज बेंगलुरु स्थित रिसोर्ट SOUKYA से किया गया था।
नाइक ने यहां अपने आवास पर संवाददाताओं से कहा कि यह दिखाता है कि आयुर्वेद और होम्योपैथिक दवाएं किस तरह कोरोना वायरस के उपचार में कारगर हैं।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि प्रिंस चार्ल्स के इलाज के लिए डॉ. मथाई की ओर से इस्तेमाल की जाने वाली उपचार प्रक्रिया का अध्ययन करने के लिए उनके मंत्रालय द्वारा एक टास्क फोर्स का गठन किया गया है। नाइक ने कहा कि डॉ. मथाई को उपचार प्रक्रिया पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा गया है।
यह भी पढ़े - कोरोनावायरस से बचना है तो गर्म पानी, हल्दी वाला दूध पीएं और योग करें - आयुष मंत्रालय
In English - Ayurveda, homeopathy cured Prince Charles of Covid-19: AYUSH Minister
घुटनों का दर्द और उसका आयुर्वेदिक उपचार : Knee Pain - Home and Ayurvedic Treatment in Hindi
घुटनों की पीडा ( Knee Pain) - बढती उम्र के साथ घुटनों में दर्द की समस्या बेहद आम है. ज्यादातार बुजुर्ग इस समस्या से कभी न कभी रूबरू होते ही हैं. समस्या ज्यादा बढ़ने पर यह दर्द अत्यधिक तकलीफदेह और असहनीय हो जाता है और किसी भी दवा से कोई आराम नहीं मिलता है. कभी कभी इतना ज्यादा दर्द होता कि नींद आना तक मुशकिल हो जाता है और घुटनों में सुजन तक भी आ जाती है | चलने - फिरने में बहुत परेशानी होती है और साथ ही घुटनों को मोड़ने में, उठने – बैठने में भी दिक्कत आती है |
उम्र के साथ हड्डियों की बीमारी बढती जाती है | शरीर के जोड़ों में सूजन उत्पन्न होने पर गठिया होता है या कहे कि जब जोड़ों में उपास्थि (कोमल हड्डी) भंग हो जाती है। शरीर के जोड़ ऐसे स्थल होते हैं जहां दो या दो से अधिक हड्डियाँ एकदूसरे से मिलती हैं जैसे कि कूल्हे या घुटने। उपास्थि जोड़ों में गद्दे की तरह होती है जो दबाव से उनकी रक्षा करती है और क्रियाकलाप को सहज बनाती है। जब किसी जोड़ में उपास्थि भंग हो जाती है तो आपकी हड्डियाँ एक दूसरे के साथ रगड़ खातीं हैं, इससे दर्द, सूजन और ऐंठन उत्पन्न होती है। सबसे सामान्य तरह का गठिया हड्डी का गठिया होता है। इस तरह के गठिया में, लंबे समय से उपयोग में लाए जाने अथवा व्यक्ति की उम्र बढ़ने की स्थिति में जोड़ घिस जाते हैं जोड़ पर चोट लग जाने से भी इस प्रकार का गठिया हो जाता है। हड्डी का गठिया अक्सर घुटनों, कूल्हों और हाथों में होता है। जोड़ों में दर्द और स्थूलता शुरू हो जाती है। समय-समय पर जोड़ों के आसपास के ऊतकों में तनाव होता है और उससे दर्द बढ़ता है।
गठिया क्या होता है?
गठिया एक लंबे समय तक चलने वाली जोड़ों की स्थिति होती है जिससे आमतौर पर शरीर के भार को वहन करने वाले जोड़ जैसे घुटने, कूल्हे, रीढ़ की हड्डी तथा पैर प्रभावित होते हैं। इसके कारण जोड़ों में काफी अधिक दर्द, अकड़न होती है और जोड़ों की गतिविधि सीमित हो जाती है। समय के साथ साथ गठिया बदतर होता चला जाता है। यदि इसका उपचार नहीं किया जाता है, तो घुटनों के गठिया से व्यक्ति का जीवन काफी अधिक प्रभावित हो सकता है। गठिया से पीडि़त व्यक्ति अपनी रोजमर्रा की गतिविधियां करने में समर्थ नहीं हो पाते और यहां तक कि चलने-फिरने जैसा सरल काम भी मुश्किल लगता है। इस प्रकार के मामलों में, क्षतिग्रस्त घुटने को बदलने के लिए डॉक्टर सर्जरी कराने के लिए कह सकता है।
क्यों होता है गठिया?
अनहेल्दी फूड, एक्सरसाइज की कमी और बढ़ते वजन की वजह से घुटनों का दर्द भारत जैसे देशों में एक बड़ी समस्या का रूप लेता जा रहा है। 40-45 की उम्र में ही घुटनों में दिक्कतें आने लगी हैं। सर्वेक्षण कहते हैं कि दुनिया में करीब 40 प्रतिशत लोग घुटनों में दर्द से परेशान हैं। इनमें से लगभग 70 प्रतिशत आर्थराइटिस जैसी बीमारियों से भी जूझ रहे हैं। इनमें से 80 फीसदी अपने घुटनों को आसानी से मोड़ तक नहीं सकते। घुटनों की खराबी के शिकार 25 फीसदी लोग अपने रोजमर्रा के कामों को भी आसानी से नहीं कर पाते हैं। भारत में यह समस्या काफी गंभीर है। घुटनों का दर्द काफी हद तक लाइफ स्टाइल की देन है। यदि लाइफ स्टाइल और खानपान को हेल्दी नहीं बनाया तो यह समस्या और भी गंभीर हो सकती है। घुटने पूरे शरीर का बोझ सहन करते हैं। इन्हें बचाने का तरीका हेल्दी लाइफ स्टाइल, एक्सरसाइज और हैल्दी खानपान है। खाने में कैल्शियम वाला भोजन सही मात्रा में लें, सब्जियाँ जरूर खायें, फैट और चीनी से परहेज करें और मोटापे का पास भी न फटकने दें।
क्या वजन कम करने से (घुटनों के दर्द) गठिया में लाभ मिलता है?
घुटनो के गठिया से पीडि़त व्यक्ति के लिए निर्धारित वजन से अधिक वजन होना या मोटापा घुटनों के जोड़ों के लिए हानिकारक हो सकता है। अतिरिक्त वजन से जोड़ों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, मांसपेशियों तथा उसके आसपास की कण्डराओं (टेन्डन्स) में खिंचाव होता है तथा इसके कार्टिलेज में टूट-फूट द्वारा यह स्थिति तेजी से बदतर होती चली जाती है। इसके अलावा, इससे दर्द बढ़ता है जिसके कारण प्रभावित व्यक्ति एक सक्रिय तथा स्वतंत्र जीवन जीने में असमर्थ हो जाता है। यह देखा गया है कि मोटे लोगों में वजन बढ़ने के साथ साथ जोड़ों (विशेष रूपसे वजन को वहन करने वाले जोड़) का गठिया विकसित करने का जोखिम बढ़ जाता है। इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि मोटे लोगों को या तो अपने वजन को नियंत्रित करने अथवा उसे कम करने केलिए उचित कदम उठाने चाहिए। गठिया से पीडि़त मोटापे/अधिक वजन से पीडि़त लोगों में वजन में 1 पाउंड (0.45 किलोग्राम) की कमी से, घुटने पर पड़ने वाले वजन में 4 गुणा कमी होती है। इस प्रकार वजन में कमी करने से जोड़ पर खिंचाव को कम करने, पीड़ा को हरने तथा गठिया की स्थिति के आगे बढ़ने में देरी करने में सहायता मिलती है।
घुटनों के दर्द के कई कारण हो सकते है ( Cause of Knee Pain )
1. अधिक वजन होना,
2. कब्ज होना,
3. खाना जल्दी-जल्दी खाने की आदत,
4. फास्ट-फ़ूड का अधिक सेवन,
5. तली हुई चीजें खाना,
6. कम मात्रा में पानी पीना,
7. शरीर में कैल्सियम की कमी होना।
घुटनो में दर्द के बचाव के कुछ आसान तरीके । (Home treatment for knee pain)
1. खाने के एक ग्रास को कम से कम 32 बार चबाकर खाएं। इस साधरण से प्रतीत होने वाले प्रयोग से कुछ ही दिनों में घुटनों में साइनोबियल फ्रलूड बनने लग जाती है।
2. पूरे दिन भर में कम से कम 12 गिलास तक पानी अवश्य पिए। ध्यान दीजिए, कम मात्रा में पानी पीने से भी घुटनों में दर्द बढ़ जाता है।
3. भोजन के साथ अंकुरित मेथी का सेवन करें।
4. बीस ग्राम ग्वारपाठे अर्थात् एलोवेरा के ताजा गूदे को खूब चबा-चबाकर खाएं साथ में 1-2 काली मिर्च एवं थोड़ा सा काला नमक तथा ऊपर से पानी पी लें। यह प्रयेाग खाली पेट करें। इस प्रयोग के द्वारा घुटनों में यदि साइनोबियल फ्रलूड भी कम हो गई हो तो बनने लग जाती है।
5. चार कच्ची-भिंडी सवेरे पानी के साथ खाएं। दिन भर में तीन अखरोट अवश्य खाएं। इससे भी साइनोबियल फ्रलूड बनने लगती है। अनुभूत प्रयोग है।
6. एक्यूप्रेशर-रिंग को दिन में तीन बार, तीन मिनट तक अनामिका एवं मध्यमा अंगुलि में एक्यूप्रेशर करें।
7. प्रतिदिन कम से कम 2-3 किलोमीटर तक पैदल चलें।
8. दिन में दस मिनट आंखें बंद कर, लेटकर घुटने के दर्द का ध्यान करें। नियमित रूप से अनुलोम-विलोम एवं कपालभाति प्राणायाम का अभ्यास करें। अनुलोम-विलोम धीरे-धीरे एवं कम से कम सौ बार अवश्य करें। इससे लाभ जल्दी होने लगता है।
हल्दी चुने का लेप (Lime and turmeric paste)
1. हल्दी और चुना दर्द को दूर करने में अधिक लाभदायक साबित होते है ।
2. हल्दी और चुना को मिलकर सरसो के तेल में थोड़ी देर तक गरम करे फिर उस लेप को घुटने में लगाकर रखे ।
3. कुछ समय बाद दर्द मेा आराम मिलेगा
4. इस प्रक्रिया को दिन मेा दो बार करे ।
हल्दी वाला दूध (Turmeric Milk) :-
एक ग्लास दूध में एक चम्मच हल्दी के पावडर को मिलाकर सुबह शाम काम से काम दो बार पीए यह एक प्राकृतिक दर्द निवारक का काम करता है
नेचुरल ट्रीटमेंट ( Natural treatment):-
विटामिन डी (vitamin D )का सबसे अच्छा स्रोत सूरज से उत्पन धुप ( sun light) है , जिससे आपको नेचुरल विटामिन डी (vitamin D ) मिलती है जो हड्डी (bones)के लिए अधिक लाभदायक है
आयुर्वेद के अनुसार में बनाई गयी औषधियां ( Natural Medicine made in Ayurveda)
1. अमृता सत्व,
2. गोदंती भस्म,
3. प्रवाल पिष्टी,
4. स्वर्ण माक्षिक भस्म,
5. महावत विध्वंसन रस,
6. वृहद वातचितामणि रस,
7. एकांगवीर रस,
8. महायोगराज गुग्गुल,
9. चंद्रप्रभावटी,
10. पुनर्नवा मंडुर इत्यादि औषधियों का सेवन आयुर्वेदिक डॉक्टर के परामर्श से करे। औषधियों के सेवन से बिना किसी साइडइपैफक्ट के अधिक लाभ मिलता है।
दर्द के दौरान क्या न खाये। (Donot eat during Pain)
1. अचार,
2. चाय तथा रात के समय हलका व सुपाच्य आहार लें।
3. रात के समय चना, भिंडी, अरबी, आलू, खीरा, मूली, दही राजमा इत्यादि का सेवन भूलकर भी नहीं करें
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आपके दिल का तंदरुस्त रहना जितना किसी से मोहब्बत करने के लिए जरुरी है उतना ही बेहतर और लम्बी जिंदगी के लिए भी जरुरी है, इसलिए अपने दिल का विशेष ख्याल अवश्य रखें। आयुर्वेद में दिल को हृदय के नाम से भी जाना जाता है व इसे शरीर का मर्म स्थान (शरीर का ऐसा हिस्सा जहाँ कोई चोट या आघात लगने से व्यक्ति की तत्काल मृत्यु हो सकती है) भी माना गया है।
हमारे भारत देश में हृदय रोगों से होने वाली मृत्यु दर बहुत तेजी से बढ़ रही है, जहाँ वर्ष 1990 में प्रतिवर्ष हृदय रोगों के कारण लगभग 13 लाख लोगों की मृत्यु होती थी अब यह आकंड़ा लगभग 30 लाख प्रतिवर्ष तक पहुंच चुका है। यानि लगभग प्रत्येक 2 सेकेंड में कोई न कोई व्यक्ति हृदय रोग के कारण मृत हो जाता है।
(Ref: https://www.business-standard.com/article/health/15-of-deaths-in-india-were-due-to-heart-diseases-in-1990-now-up-to-28-118091800130_1.html)
हृदय समबन्धी कई समस्यायें होती हैं लेकिन हार्ट स्टोक व कोरोनरी आर्टरी डिजीज जिसे इस्केमिक हार्ट डिजीज भी कहते हैं इन रोगों के कारण सबसे ज्यादा मौतें होती हैं।
कई रिसर्चों में यह बात पता लगी है कि अधिक तला-भुना, अधिक मिर्च-मसालेदार, देर से पचने वाले आहार, मैदा से बने पदार्थ, मिठाई, आरामतलब जीवन जीने वाले, कम व्यायाम करने वाले, सिगरेट, तम्बाकू, शराब, अधिक मात्रा में मांसाहार आदि का नियमित सेवन करने वालों को हृदय सम्बन्धी रोग होने का खतरा बहुत अधिक होता है, इसके अतरिक्त जिन लोगों को लम्बे समय से कोलेस्ट्रॉल सम्बन्धी परेशानी या हाई बी.पी. की समस्या बनी रहती है उन्हें भी हृदय रोगों का खतरा अधिक होता है।
आयुर्वेद के सिद्धांत के अनुसार जो लोग लगातार अनियमित खान-पान का सेवन व अनियमित दिनचर्या में बने रहते हैं, ऐसे लोगों के शरीर में लगातार दूषित चीजें इकट्ठा होने लगती हैं (आयुर्वेद में इसे "आम" कहते हैं) जिसके कारण शरीर के छोटे-छोटे श्रोत (चैनल्स) दूषित हो जाते हैं जिसकी वजह से हार्ट की आर्टरीज में ब्लॉकेज बढ़ने लगती है और यह हृदय रोग का रूप ले लेता है।
आयुर्वेद में इन समस्याओं का बेहतर समाधान मौजूद है, हृदय रोगों में यह बात भी बेहद ध्यान रखने वाली है कि आर्टरी के ब्लॉकेज के बाद यदि आप ऑपरेशन करवा लेते हैं तब भी आपको सही तरह से अपने खान-पान व दिनचर्या को सुधारना होता है, इसलिए बेहतर होता है कि जैसे ही हार्ट से सम्बंधित परेशानी आपको पता लगे तुरंत आप अपनी अनियमित दिनचर्या व खान-पान में सुधार करें!
इसके अतरिक्त अनावश्यक तनाव, चिंता आदि से बचें, आयुर्वेद में पंचकर्म प्रक्रिया के माध्यम से शरीर में मौजूद दूषित चीज़ों को व्यवस्थित रूप से डेटॉक्स कर दिया जाता है (आयुर्वेद पंचकर्म विशेषज्ञ चिकित्सक से मिलकर इसे अवश्य करवायें)
हल्दी, आमला, अदरक, हरी पत्तेदार व फलीदार सब्जियां, टमाटर, अखरोट, लहसुन, मल्टी-ग्रेन आटा, संतरा, पपीता, ओलिव ऑइल, ग्रीन टी आदि का नियमित प्रयोग हृदय सम्बन्धी रोगों में लाभदायक रहता है।
हृदय रोगों में एक बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि शाम के समय में विशेष रूप से हल्का भोजन ही करें क्योंकि शाम के भोजन के पश्चात हम प्रायः सोते ही है जिसके कारण शरीर में वसा अधिक इक्कठी होती है व पाचन भी ठीक से नहीं होता इसलिए शाम को स्टीम सलाद, ओट्स, बिना मलाई का दूध, पोआ, उपमा, इडली, सांभर-बड़ा, डोसा, चीला, सब्जियों के सूप आदि जैसे हल्के खाने का प्रयोग अधिक करना चाहिए।
कई बार लोग शाम के भोजन के बाद टहलते हैं ऐसा करने से बचना चाहिए क्योंकि हम सारे दिन कार्य करके मानसिक व शारीरिक रूप से थक जाते हैं ऐसे में और अधिक शरीर को थकाने से नींद अच्छी आ सकती है लेकिन शरीर के ऑर्गन में हल्कापन नहीं आता। वहीं इसके विपरीत सुबह के समय में जब हम सोकर उठते हैं तब शरीर व मन में प्राकृतिक रूप से हल्कापन रहता है ऐसे में जब हम खाली पेट में कोई व्यायाम करते हैं या टहलते हैं तो उससे शरीर में वास्तविक हल्कापन आता है जो स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभदायक रहता है।
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