Patna, Aug 17 (IANS) Four persons including 3 minors died in Bihar's Nawada district on Monday night. They were suffering from anaemia and also had symptoms of typhoid.This was the second such incident in the last one week. Earlier, three children died in the same district.The deceased were identified as Rinki Kumari, Karisma Kumari, Lado Kumari and their aunt Sonam Devi. All of them were residents of Baratandi village. Another minor girl named Vibha Kumari is battling for her life in RIMS Pawapuri."As soon as we learnt about the incident, a medical team was rushed to the village. I also visited the place and directed the medical team to give corona vaccine to every villager," said Yashpal Meena, district magistrate of Nawada."Preliminary medical reports revealed that the patients were suffering from anaemia. Their haemoglobin was low and it resulted in typhoid. The victims were admitted in Sadar hospital Nawada. As their condition was not improving, the doctors referred them to PMCH for better treatment. The family members of the victims refused to go there for treatment," said a senior officer of the medical team.--IANS ajk/bg
आयुर्वेद भारत में प्राचीन काल से चली आ रही चिकित्सा प्रणाली है जिसका उद्देश्य स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य को ठीक रखना और बीमार व्यक्ति की चिकित्सा करना है। यह एक अच्छी जीवनशैली के माध्यम से व्यक्ति के सम्पूर्ण स्वास्थ्य को ठीक करने की शिक्षा देता है। आज कल के समय में बहुत से रोग हमारी बिगडी जीवन शैली का ही परिणाम हैं जिनमे से एक ह्रदय रोग भी हैं। इन्ही ह्र्दय रोगो में एरिथमिया भी शामिल है। तो आइये समझते हैं क्या है एरिथमिया और इस पर किस तरह काबू पाया जा सकता है।
विषय - सूची
• एरिथमिया क्या है? - What is Arrhythmia in Hindi?
• एरिथमिया के कारण - Causes of Arrhythmia in Hindi
• एरिथमिया के लक्षण - Symptoms of Arrhythmia in Hindi
• एरिथमिया का निदान - Diagnosis of Arrhythmia in Hindi
• एरिथमिया के सामान्य उपाय - Common Remedies for Arrhythmia in Hindi
• क्या खाएं और किससे बचें - What to Eat and What to Avoid in Hindi?
• अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न - Frequently Asked Question in Hindi
क्या है एरिथमिया? - What is Arrhythmia in Hindi?
एरिथमिया का सामान्य अर्थ है कि ह्रदय अपनी सामान्य गति से नहीं धडक रहा। दिल की धडकन का अनियमित हो जाना एरिथमिया कहलाता है। आयुर्वेद में इसे असामान्य ह्रदय गति बोला गया है। जब ह्रदय अपनी सामान्य गति या ताल से कार्य नहीं करता तो यह समस्या आती है। हमारी सामान्य ह्रदय गति 50 से 100 बीट प्रति मिनट है। एरिथमिया की समस्या में यह घट या बढ जाती है। आम तौर पर यह किसी ह्रदय रोग की तरफ इशारा करती है।
एरिथमिया के कारण - Causes of Arrhythmia in Hindi
आयुर्वेद में एरिथमिया को दोषों के अनुसार विभाजित किया गया है। वात दोश असंतुलित होने पर अनियमित हो सकता है, अतः इसके बढने पर हमारी ह्रदय गति भी अनियमित हो जाती है। पित्त दोष की गति तेज़ होती है, इसीलिये इसके बढने पर ह्रदय गति अधिक हो जाती है। कफ दोष स्वभाव से ही मंद होने के कारण धीमी ह्रदय गति के लिये उत्तरदायी है।
हमारी खराब जीवन शैली और गलत खान-पान के कारण यह समस्या उत्पन्न होती है। आम उत्पन्न हो कर ह्रदय को दूशित करता है तथा दोषों के अंसतुलन से ह्रदय गति भी असन्तुलित हो जाती है। इसके अलावा निम्न कारणो से भी यह रोग हो सकता है:
• मोटापा
• सिगरेट पीना
• उच्च रक्तचाप
• फेफडो से सम्बंधित रोग
• कोरोनरी हार्ट डिसीज़
• डायबिटीज़
• इलेक्ट्रोलाइट का असंतुलन
• इंफेक्शन या बुखार
• शारीरिक या मानसिक तनाव
• अन्य रोह जैसे थायरॉयड या एनीमिया
• कुछ दवाएँ जैसे एम्फीटामाइंस और बीटा ब्लॉकर्स आदि का सेवन
एरिथमिया के लक्षण - Symptoms of Arrhythmia in Hindi
एरिथमिया का मुख्य लक्षण है ह्रदय की ताल गति का असामान्य होना। यह तेज़ या धीमी हो सकती है. यदि यह तेज़ होती है तो इसे टैकीकार्डिया और धीमी हो तो ब्रैडीकार्डिया कहलाता है। व्यान वायु(वात दोश का एक प्रकार) ह्रदय की सभी गतिविधियो का नियंत्रण करती है, व्यान वायु के सामान्य कार्य में बाधा आने से ह्रदय गति असामान्य हो जाती है। यह पित्त के साथ मिल कर टैकीकार्डिया और कफ के साथ मिल कर ब्रैडीकार्डिया को उत्पन्न करती है। इसके अलावा इसमे निम्न लक्षण मिलते हैं:
• सांस फूलना
• सीने में दर्द
• असामान्य नाडी चाप
• घबराहट होना
• त्वचा का पीला पड जाना
• अत्यधिक पसीना आना
• चक्कर आना
एरिथमिया का निदान - Diagnosis of Arrhythmia in Hindi
आमतौर पर व्यायाम करने या दौड-भाग करने के बाद ह्रदय गति असामान्य हो जाती है जो कि कुछ ही देर में अपनी सामान्य लय में आ जाती है। लेकिन यदि आपकी ह्रदय गति कुछ सेकेंडो से ज़्यादा समय तक असामान्य रहती है तो आपको डॉक्टर को दिखाने की आवश्यकता है। इसका निदान लक्षण देख कर, इतिहास इतिवृत्त तथा कुछ जांचो जैसे ईसीजी, ईकोकार्डियोग्राम, स्ट्रेस टेस्ट आदि के आधार पर किया जाता है।
एरिथमिया के सामान्य उपाय - Common Remedies for Arrhythmia in Hindi
आयुर्वेद में ह्रदय को एक महत्वपूर्ण अंग माना गया है। यह त्रिमर्मो में से एक मर्म है, अतः ह्रदय को आघात लगने पर यह बहुत सी जटिलताएँ पैदा कर सकता है बल्कि व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है। इसलिये ह्रदय के स्वास्थ्य का ध्यान रखना बेहद ज़रूरी है। एरिथमिया से बचाव के लिये निम्न उपाय अपनाये जा सकते हैं:
• वात दोष को संतुलित करने के लिये तैल में बने हल्के भारी भोजन को वरीयता देँ। लहसुन, मछली, तैल आदि को नियमित रूप से डाइट में ले। मेडिटेशन और बैठ कर किये जाने वाले योग आसन करेँ। अश्वगंधा को दूध के साथ ले सकते हैं। यह हृदय को बल देता है। वात दोष को ठीक करने के लिये अर्जुन, अश्वगंधा, गुग्गुल, लहसुन, मुलेठी आदि का प्रयोग किया जा सकता है।
• पित्त दोष को संतुलित करने के लिये अधिक गर्म खाने, तेज़ मिर्च-मसाले, मांस, अत्यधिक नमक आदि का सेवन न करेँ। खाने में घी का सेवन करेँ। अधिक धूप, अधिक व्यायाम, बहुत अधिक शारीरिक कार्य करने से भी परहेज़ करेँ। केसर, अर्जुन, शतावरी, एलोवेरा आदि जडी-बूटियाँ लाभकारी हैं। मुलेठी, ब्राह्मी या अर्जुन की बनी दवाओ का सेवन कर सकते हैं।
• कफ दोष को संतुलित करने के लिये तैलीय, भारी भोजन, अधिक नमक, अत्यधिक मीठा त्याग देँ। हल्का सुपाच्य भोजन लेँ। अर्जुन, इलायची, दालचीनी, गुग्गुल, त्रिकटु का सेवन लाभदायक है।
• अर्जुन: आयुर्वेद में अर्जुन को कार्डियो-टॉनिक बताया गया है। एक चम्मच अर्जुन को एक गिलास दूश में पका कर आधा रह जाने पर छान कर सेवन कर सकते हैं।
• इसके अलावा तनाव के लिये योगा आसन तथा मेडिटेशन का बहुत महत्व है। हल्का-फुल्का व्यायाम भी नियमित रूप से करेँ।
क्या खाएं और किससे बचें - What to Eat and What to Avoid in Hindi?
आपने भी यह कहावत सुनी होगी कि जैसा खाये अन्न, वैसा बने मन। आपको जान कर हैरानी होगी कि आयुर्वेद में मन का स्थान हृदय बताया गया है। वैसे भी हम जो भी खाते हैं उसका सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पडता है। तो आज से ही अपने दिल को स्वस्थ रखने के लिये अपने भोजन में निम्न कुछ बातो का ध्यान रखेँ:
• पचने में हल्का, घर के बने ताज़ा भोजन का सेवन करेँ।
• भोजन में हाई-फाइबर चीजे लेँ जैसे जौ, साबुत अनाज तथा दलिया आदि।
• खट्टे फल ह्रदय के लिये अच्छे होते हैं जैसे बेर, नीम्बू, अनार, मौसमी आदि। इन्हे नियमित रूप से अपनी डाइट में शामिल करेँ।
• खाने में फल-सब्ज़ियो की मात्रा अधिक रखेँ क्योंकि यह पचने में आसान होती हैं।
• अधिक तला-भुना और मसालेदार भोजन करने से परहेज़ करेँ।
• सिगरेट, शराब, चाय-कॉफी आदि से दूर रहेँ।
• अधिक नमक न खायेँ।
• अधिक मीठा, प्रोसेस्ड फूड, प्रोसेस्ड मीट और रिफांइड चीज़े न खाये।
अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न - Frequently Asked Question in Hindi
प्र. एरिथमिया के लिए सबसे अच्छा इलाज क्या है?
उ. एरिथमिया के इलाज के लिये दवाओ के अलावा पेसमेकर, कार्डियोवर्ज़न, कैथेटर अब्लेशन आदि तकनीके अपनायी जाती हैं। हालांकि इसके साथ ही जीवनशैली में परिवर्तन ज़रूरी है जिससे आपका रक्तचाप, कॉलेस्ट्रॉल, वज़न आदि संतुलित रहेँ।
एरिथमिया के लिए प्राकृतिक उपचार
प्राकृतिक रूप से इस समस्या को दूर करने के लिये आप आयुर्वेद में बताये गये योग, सद्वृत्त और आचार रसायन का पालन कर सकते हैं। अर्थात अपनी क्षमता के अनुसार व्यायाम, योग, चिंता से दूर रहना, अच्छे आचरण तथा सामान्य जीवनशैली को अपनाना आदि आपके ह्रदय के स्वास्थ्य को बनाये रखने में मदद करेंगे। ऐसे कारणो से दूर रहेँ जो आपकी इस समस्या को बढा देते हो जैसे- चाय. सिगरेट, शराब का सेवन। पर्याप्त मात्रा में पानी पियेँ। अपने इलेक्ट्रोलाइट बैलेन्स का ध्यान रखे।
एरिथमिया के लिए जड़ी बूटी
आयुर्वेद में एरिथमिया के लिये विभिन्न जडी-बूटियो का वर्णन है जैसे अर्जुन, अश्वगंधा, पुनर्नवा, शंखपुष्पी, ब्राह्मी, पीपल त्वक इत्यादि। यह ह्रदय को प्राकृतिक रूप से बल देती हैं तथा मज़बूत बनाती हैं।
एरिथमिया के लिए विटामिन
एरिथमिया में ऑक्सिडेटिव स्ट्रैस बहुत बड़ा रोल निभाता है। इसको कम करने के लिये एंटी-ऑक्सीडेंट देना फायदेमंद रहता है। विभिन्न शोधो के अनुसार विटामिन सी और विटामिन ई इसके रिस्क को कम कर सकते हैं। अतः आप भी विभिन्न खाद्य पदार्थो के द्वारा इनका सेवन करेँ और अपने ह्रदय को स्वस्थ बनाऐ रखेँ।
टाइफाइड, एक प्रकार की संक्रामक बीमारी है जो साल्मोनेला टाइफी नामक बैक्टीरिया की वजह से होती है। यह बीमारी मुख्य रूप से बरसात के दिनों में ज़्यादा देखने को मिलती है। भूख न लगना और तेज बुखार आना इस बीमारी के मुख्य लक्षण है। यह एक ऐसे बीमारी है जिससे विकासशील देशो जैसे भारत आदि में लगभग १० लाख लोग , उनमे भी बच्चे ज़्यादा पीड़ित होते है जबकि विकसित देशों में यह कम देखने को मिलता है।
आयुर्वेद में टाइफाइड - Typhoid in Ayurveda in Hindi
वैसे तो आयुर्वेद की अपनी व्याधियाँ है जो वातादि दोषों में असंतुलन की वजह से होती है। फिर भी यदि मोटे मोटे तौर पर देखा जाये तो टाइफॉइड के लक्षण आयुर्वेद में वर्णित कफ प्रधान सन्निपातज संतत ज्वर के लक्षणों से समानता रखते है। यह संतत ज्वर दोषो के बल अबल के आधार पर सात , दस तथा बारह दिनों में या तो सही हो जाता है या फिर कभी कभी दोषो के अत्यधिक कुपित हो जाने रोगी की मृत्यु तक का कारण बन जाता है। इस ज्वर का मुख्य लक्षण यह होता है की यह दिन रात में दो बार आता है।
टाइफाइड के लक्षण - Symptoms of Typhoid in Hindi
बुखार
सर दर्द
भूख न लगना
शरीर में लाल रंग के चक्कत्ते हो जाना
उल्टी तथा दस्त होना
पेट में दर्द होना
शरीर में कमजोरी और दर्द होना
टाइफाइड के कारण - Cause of Typhoid in Hindi
साल्मोनेला टाइफी बैक्टीरिया का संक्रमण
टाइफॉइड संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आना
टाइफाइड से बचाव - Prevention of Typhoid in Hindi
वैसे तो टाइफॉइड के लिए वैक्सीन उपलब्ध है लेकिन कभी कभी वैक्सीन के बाद भी टाइफॉइड हो जाता है इसलिए साफ सफाई का ध्यान रख कर और कुछ छोटी छोटी बातो ध्यान रख कर टाइफॉइड से बचा जा सकते है। टाइफॉइड से बचाव हेतु निम्न बातो का ध्यान रखना चाहिए -
नियमित रूप अर्थात खाना खाने से पहले , टॉयलेट का प्रयोग करने के बाद हाथो को पानी तथा साबुन से धोये ; पानी या साबुन उपलब्ध न होने पर एल्कोहल युक्त सैनिटाइज़र का प्रयोग करे।
पानी को उबालकर पिए।
कच्चे फल तथा सब्जियों का सेवन न करे।
टाइफाइड फीवर डायग्नोसिस - Typhoid Fever Diagnosis in Hindi
सी.बी. सी ( कम्पलीट ब्लड सेल काउंट )
विडाल टेस्ट
स्टूल कल्चर
टाइफी डॉट आई जी एम
टाइफाइड से बचाव के लिए घरेलु उपचार - Home Remedies to Prevent Typhoid in Hindi
बुखार को कम करने के लिए सर पर ठन्डे पानी की पट्टियों का प्रयोग करे।
पानी की कमी को दूर करने के लिए एक लीटर पानी को उबालकर उसमे नमक और चीनी मिलाकर पीते रहे।
तुलसी (जिसमे की एंटीबायोटिक गुण पाए जाते है ) को पानी में उबालकर उसका काढ़ा प्रयोग करे।
षडङ्गपानी अर्थात मोथा , पित्तपापड़ा , खस , रक्त चन्दन , सुगंदबाला और सौंठ से सिद्ध किया हुआ पानी पिए।
क्या करे? - What to Do in Hindi
पानी को उबालकर प्रयोग करे।
ताज़ा तथा गर्म भोजन का सेवन करे।
पचने में हलके भोजन का सेवन करे जैसे पतली दाल , पतली सब्जी , खिचड़ी आदि।
क्या न करे? - What Not to Do in Hindi
पचने में भारी चीजों जैसे दूध , पनीर आदि का सेवन न करे।
अल्कोहल का सेवन न करे।
दही का सेवन न करे।
खुले में मिलने वाले भोज्य पदार्थो जैसे खुले में मिलने वाले समोसे , कचौड़ी , चाट आदि का सेवन न करे।
प्रश्न उत्तर - Question & Answer in Hindi
प्रश्न- टाइफॉइड होने पर तुरंत हो लैब इन्वेस्टीगेशन करा लेनी चाहिए ?
उत्तर- वैसे तो चिकित्सक लक्षण देख कर ही लैब इन्वेस्टीगेशन कराता है फिर भी यदि आप खुद से बिना चिकित्सक को दिखाए टाइफॉइड का अंदेशा होने पर खुद से लैब इन्वेस्टीगेशन कराना चाहे तो तुरंत न करा कर के कुछ दिन व्यतीत हो जाने पर करानी चाहिए क्योकि इसका इन्क्यूबेशन पीरियड् तीन दिन से लेकर १०- १४ दिन का होता है यदि तुरंत ही लैब इन्वेस्टीगेशन करा ली जाये तो रिपोर्ट सटीक नहीं आ पाती है।
प्रश्न- टाइफॉइड मुख्य रूप से किन लोगो को होने की सम्भावना होती है ?
उत्तर- टाइफॉइड वैसे तो किसी को भी सकता है लेकिन बच्चों और ऐसे लोग जिनका पाचन तंत्र कमजोर होता है उनको टाइफॉइड होने की ज्यादा सम्भावना होती है।
प्रश्न- टाइफॉइड या अन्य कोई व्याधि होने पर खुद से ही आयुर्वेदिक दवा ले लेना कितना सही है?
उत्तर- आधुनिक डायग्नोसिस के आधार पर तथा बिना ये जाने की रोगी व्यक्ति के शरीर में कौन से दोष का असंतुलन हुआ है , चिकित्सा करने पर या रोगी द्वारा खुद ही सोशल मीडिया में देख कर किसी भी आयुर्वेदिक दवा का सेवन करना बिल्कुल भी सही नहीं है खुद से दवा लेने के कई दुष्परिणाम हो सकते है इसलिए टाइफॉइड हो या अन्य कोई व्याधि शरीर में व्याधि के लक्षण दिखाई देने पर किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह पर ही आयुर्वेदिक दवाई का सेवन करे।
प्रश्न- यदि टाइफॉइड के लिए उपचार न लिया जाये तो क्या क्या कॉम्प्लीकेशन्स हो सकते है ?
उत्तर- टाइफॉइड होने पर इलाज न करने या देरी से इलाज करने पर मुख्य रूप से जो कॉम्प्लीकेशन्स हो सकते है वो है -
पाचन तंत्र के किसी भाग से आंतरिक रक्तस्राव होना।
पाचन तंत्र के किसी हिस्से में परफोरेशन हो जाना तथा परफोरेशन की वजह से इन्फेक्शन का आस पास के हिस्सों में भी फ़ैल जाना।
प्रश्न- आयुर्वेद में टाइफॉइड के लिए क्या उपचार उपलब्ध है ?
उत्तर- टाइफॉइड के लक्षण आयुर्वेद में वर्णित सन्निपातज प्रधान कफज संतत ज्वर से मिलते है तथा इसकी चिकित्सा में दोष , दुष्य , काल , प्रकृति आदि को देखते हुए अपतर्पण अर्थात लंघन चिकित्सा कराने का वर्णन मिलता है।
जॉन्डिस , सामान्य बोल चाल की भाषा में इसे पीलिया कहा जाता है। इस रोग में रक्त में बिलीरुबिन की मात्रा सामान्य से ज्यादा बढ़ जाने पर त्वचा तथा आंख के सफ़ेद भाग का रंग पीला हो जाता है। यह बीमारी नवजात शिशु तथा वयस्क दोनों में ही देखने को मिलती है। नवजात शिशुओं में इसे निओनेटल जॉन्डिस के नाम से जाना जाता है। यह निओनेटल जॉन्डिस दो प्रकार का होता है - फिजियोलॉजिकल जॉन्डिस और पैथोलॉजिकल जॉन्डिस।
आयुर्वेद में जॉन्डिस - Jaundice in Ayurveda in Hindi
आयुर्वेद में जॉन्डिस के लक्षण कामला रोग से मिलते जुलते है। आयुर्वेद के कुछ लोगो ने कामला को स्वतंत्र रोग माना है तो कुछ ने पाण्डु रोग की प्रवर्धमानावस्था को कामला माना है तथा कुछ लोगो का मानना है की कामला रोग पाण्डु तथा अन्य किसी व्याधि के बाद होने वाला उपद्रव है।
जॉन्डिस के लक्षण - Symptoms of Jaundice in Hindi
नेत्र , त्वचा , मुख एवं नाखून का वर्ण हल्दी के समान पीला हो जाना।
अपच होना अर्थात भोजन का ठीक प्रकार से न पचना।
मल तथा मूत्र का रक्त मिश्रित पीले रंग का हो जाना।
पूरे शरीर में कमजोरी होना।
अरुचि ( खाना खाने की अथवा किसी कार्य को करने की इच्छा न होना।
दाह
नासिका तथा मसूड़ो से रक्तस्राव होना।
जॉन्डिस के कारण - Causes of Jaundice in Hindi
अत्यधिक मात्रा में पित्त्तवर्धक आहार ( खट्टे , तीखे , मिर्च मसालों युक्त ) का सेवन करना।
किन्ही कारणों के चलते या मलेरिआ , ब्लैक वाटर फीवर जैसे रोगो से ग्रसित होने के कारण अधिक मात्रा में रक्त कणों का नष्ट हो जाना।
यकृत सम्बंधित बिमारियों जैसे अल्कोहलिक हेपेटाइटिस , अल्कोहलिक सिरोसिस से ग्रसित होना।
पित्त ( बाइल जूस ) का वहन करने वाली नली का पित्ताश्मरी ( गॉल ब्लैडर स्टोन ) के कारण ब्लॉक हो जाना।
लिवर पर बुरा प्रभाव डालने वाली दवाइयों जैसे पेनिसिलिन , बर्थ कण्ट्रोल पिल्स और स्टेरॉइड्स का अधिक मात्रा में प्रयोग करना।
जॉन्डिस डायग्नोसिस - Jaundice Diagnosis
सी बी सी (कम्पलीट ब्लड सेल काउंट )
एल अफ टी( लिवर फंक्शनल टेस्ट )
क्या करे?
पचने में आसान चीजों का सेवन करे।
तक्र का सेवन करे।
उबली हुए सब्जी का सेवन करे।
दलिया , पोहा , उपमा , बेसन का चीला , हरी पत्तेदार सब्जी , मूली , नारियल पानी आदि चीजों को अपने आहार में शामिल करे।
खाने में कम मात्रा में सैन्धा नमक का प्रयोग करे।
क्या न करे?
अल्कोहल का सेवन न करे।
दूध या दूध से बने खाद्य पर्दाथ का सेवन न करे।
अधिक मात्रा में फिजिकल वर्क न करे।
कच्ची सब्जी का प्रयोग न करे।
जॉन्डिस के घरेलू उपाय - Home Remedies for Jaundice in Hindi
प्रातः काल आंवले या आंवले के जूस का सेवन करे।
करेले का जूस तिक्त रस होने से पित्त दोष का शमन करने से कामला में उपयोगी होता है अतः इसका सेवन करे।
ऐसे फलों का सेवन करे जो अग्नि ( डाइजेस्टिव पावर ) को बढ़ाये जैसे पपीता , अन्नानास आदि।
गन्ने के जूस का सेवन करे यह यकृत को बल देता है।
एक चम्मच भूने हुए जौ का चूर्ण और एक चम्मच शहद को आपस में मिलाकर गुनगुने पानी के साथ लेने से यह योग शरीर में संचित आम को कम करने में मदद करता है।
प्रश्न उत्तर - FAQ's
प्रश्न- निओनेटल जॉन्डिस के क्या क्या कॉम्प्लीकेशन्स हो सकते है?
उत्तर- निओनेटल जॉन्डिस को सामान्य समझ के अगर उपचार न किया जाये तो नवजात शिशु का ब्रेन डैमेज होने के साथ साथ वह सेरिब्रल पाल्सी , बहरापन से भी ग्रसित हो सकता है।
प्रश्न- जॉन्डिस होने पर अल्कोहल और मांसाहार का सेवन करना चाहिए ?
उत्तर- जॉन्डिस होने पर अल्कोहल और मांसाहार में साथ साथ ऐसे किसी भी खाद्य पदार्थ का प्रयोग नहीं करना चाहिए जो पचने में भारी हो या जिसके सेवन से यकृत पे बुरा प्रभाव पढ़े।
प्रश्न- क्या जॉन्डिस होने से किसी की मृत्यु भी हो सकती है?
उत्तर- हाँ , जॉन्डिस होने पर यदि व्यक्ति समय रहते उचित उपचार न कराये तो मृत्यु भी हो सकती है।
प्रश्न- उपचार के पश्चात् जॉन्डिस सही हो जाने पर पुनः जॉन्डिस हो सकता है ?
उत्तर- उपचार के पश्चात् यदि जॉन्डिस करने वाले कारणों का त्याग नहीं किया जाये या उपचार करते समय सिर्फ लक्षणों की चिकित्सा कर, जॉन्डिस होने के मूल कारण की चिकित्सा न की गयी हो तो एक बार ठीक होने पर भी पुनः जॉन्डिस होने की सम्भावना रहती है।
प्रश्न- जॉन्डिस सही हो जाने के पश्चात कितने समय तक पथ्य पालन करना होता है?
उत्तर- जॉन्डिस सही हो जाने पर पथ्य पालन कितने समय तक करना होगा ये रोगी व्यक्ति के शारीरिक बल और अग्नि बल पर निर्भर करता है। सामान्यतया रोग सही हो जाने पर दो से तीन महीने तक पथ्य पालन करते हुए धीरे धीरे सामान्य आहार लेना चाहिए।
प्रश्न- जॉन्डिस के केस में आयुर्वेदिक उपचार कितना कारगर है ?
उत्तर- जॉन्डिस हो या अन्य कोई व्याधि सभी में आयुर्वेदिक उपचार काफी कारगर है क्योकि आयुर्वेद रोग के लक्षण की चिकित्सा करने के साथ साथ रोग के मूल कारण की भी चिकित्सा करता है। जॉन्डिस को आयुर्वेद में कामला नाम से बोला गया है तथा जॉन्डिस होने पर मृदु विरेचन देने और पथ्य अपथ्य के द्वारा चिकित्सा करने का वर्णन मिलता है।
It is also known as Enteric Fever, it is a systemic infection caused by Salmonella Typhi, usually through ingestion of contaminated food/ water. It is transmitted by the fecal-oral route. The causative organisms are Salmonella typhi and S.paratyphi A and B.
The incubation period of typhoid fever is around 10-14 days., and the onset may be insidious. Typhoid fevers are an important cause of fever in India, sub-Saharan Africa, and Latin America.
According to Ayurveda, typhoid fever is described as Manthana Jwar and signs and symptoms of typhoid fever are also similar to santata jwara.
Symptoms of Typhoid Disease
Persistent fever
Headache
Malaise
High fever with relative bradycardia
Cough
Constipation
CNS signs such as coma/ delirium/ meningism/ cerebellar signs/ fits)
Diarrhea ( more common after 1st week )
Bloody stools
Slow/sluggish/ lethargic feeling
Rose spots ( trunk region )
Epistaxis/ bruising/ abdominal pain/ splenomegaly may occur
The temperature rises in a stepladder fashion for 4-5 days + malaise/increasing headache/ drowsiness/ and aching in the limbs.
In Children= diarrhea and vomiting may be prominent early in typhoid.
Diffuse abdominal pain.
Rashes/ abdominal distension/ tenderness.
When to See Your Doctor for Typhoid Disease
When the above signs and symptoms appear consistently and with that fatigueness/ weakness/ intense abdominal pain occur then you should consult the doctor for the proper diagnosis.
Causes of Typhoid Disease
The main cause of typhoid fever is Bacterial infection( agantuj karana). S.Typhi is spread through contaminated food/drink/water that contains bacteria in it. Bacteria after entering in body travel into the intestines and then into the blood. From blood, it travels to lymph nodes, gall bladder, liver, spleen, and other parts of the body.
Diagnosis of Typhoid Disease
CBC ( Complete Blood Count ) = it will show leucopenia associated with neutropenia.
Typhi Dot IgM
Widal test
ELISA urine test
Fluorescent antibody study
Platelet count
Stool culture
Clinical features like relative bradycardia/ step ladder pattern of fever/ coated tongue with periphery redness may be present.
General Tips/ Prevention
Use boiled and cooked food.
Use purified water.
Wash your hands properly with an antiseptic solution.
Avoid Raw fruits/ vegetables.
Avoid drinking untreated/impure water.
Stay hydrated by increasing fluid intake.
Use cold compresses in case of high fever.
Drink ORS= Oral Rehydration Solution.
Basil use = add basil to boiled water and drink 3-4 cups daily.
4/5 basil/tulsi leaves (paste)+ pepper powder + few strands of saffron/Kesar + mix all these and divide into 3-4 parts and use after every meal.
Garlic use/pomegranates use.
Banana = it helps the intestine to absorb fluids, thus curing diarrhea.
Triphala Churna
Boil water + cloves = strain in a cup ( two cups daily)
Avoid sweetened beverages and coffee.
What to Avoid?
Heavy / spicy/ sour substances.
Fast food
Fried items
Oily substances
Unpacked food
Street foods/ Roadside foods
Beverages
Junk foods
Alcohol/ Smoking
Excessive exercise
Stress
Excessive intake of street foods
Artificial sweeteners
Excessive coffee consumption
What to Eat?
Purified water
Seasonal fruits
Cow’s milk
Peya vilepi langana
Orange/ Pomegranate/ Grapes/ Munakka
Shadangapaniya
Proper fluid intake to avoid dehydration
Banana
Proper boiled/cooked food
Questions and Answers
Q.1) In which part of the body, typhoid fever mainly attacks?
Ans. The GIT ( Gastrointestinal ) tract of our body is more severely affected. After getting infected by bacteria, the blood of our body becomes infected which reaches various organs like the liver, spleen/ muscles/ gallbladder/ lungs/ kidneys.
Q.2) What are the modes of transmission of Typhoid fever?
Ans. The following are the modes of transmission: oral transmission via food/beverages handled by an often asymptomatic individual- a carrier - who chronically sheds the bacteria through stool/ urine. Hand to mouth transmission after using a contaminated toilet/neglecting hand hygiene. Oral transmission via sewage-contaminated water/ shellfish (developing world)
Q.3) What is the incubation period of Typhoid fever?
Ans. Typhoid incubation period usually lasts for 10-14 days. But, it may be as short as 3 days /long as three weeks depending upon the dose of the bacilli ingested and how it affects the system of the body.
Q.4) In which age usually Typhoid fever mainly affects?
Ans. It can occur at any age. The highest incidence of this disease = 5-19 years of age group. Prospective population-based surveillance in some Asian urban slum areas has shown that in the age group 5-15 years, the annual incidence of blood culture-confirmed typhoid fever may reach 180-494 per 100,000. In some of these areas, pre-school age children less than 5 years, show incidence rates similar to those of school-age children. After the age of 20 years, the incidence falls probably due to acquisition of immunity from clinical/ subclinical infection. Children of slum areas are more prone to these typhoid infections.
Q.5) According to Ayurveda, in which classification does Typhoid fever comes?
Ans. According to Ayurveda, Typhoid fever usually termed as Manthana Jwara and due to most oftenly Gastrointestinal infection occurs, it is also considered in aantrika jwara. Due to intake of causing elements, bacillus typhosus infection in intestines occur. After the infection, rasa, rakta, and doshas will get affected. If Typhoid fever is not well treated timely, then it may leads to perforation of the intestine which may be incurable.
Q.6) What are the major complications of Typhoid fever?
Ans. Major complications are- intestinal tuberculosis, toxaemia, haemorrhage, peritonitis, intestinal perforation, nephritis.
Q.7) Are signs and symptoms of Typhoid fever are different in weeks after getting infected, if yes then what are those signs and symptoms?
Ans. Yes, signs and symptoms of Typhoid fever are differ in weeks. According to 1st week and 2nd week, signs and symptoms are:-
1st week
Hyperpyrexia (103 degree F - 104 degree F)
Splenomegaly
Tongue coated and reddish.
Flatulence.
Constipation.
Red spots on neck/ abdomen/ chest area
2nd week
Hyperpyrexia
Delirium
Drowsiness
Cough
Furrowed tongue/ dry with reddish coloration
Weakness
Dryness of mouth
Restlessness
Flatulence
Dicrotic pulse
Blood mixed stool.
In 3rd week, fever can be stop but due to intake of causing factors/ not following preventive measures properly, it may lead to further complications.
Q.8) What is Widal Test ? How typhoid is diagnosed by Widal Test?
Ans. Widal test is a serological method to diagnose enteric/typhoid fever that is cause by the infection with pathogenic microorganisms like Salmonella typhi, Salmonella paratyphi a,b and c. The tests measure agglutinating antibodies directed against a Salmonella O somatic surface antigen/ Salmonella H flagella antigen of the suspected organism. The Widal tests detects antibodies against O and H antigens.
Q.9) How Typhoid Fever can be controlled?
Ans. There are generally 3 lines of defence against typhoid fever :
a) Control of reservoir,
b) Control of sanitation,
c) Immunization.
Q.10) What are the principles of treatment for Typhoid Fever?
Ans. In Ayurveda, Typhoid fever is described as Manthana Jwara. Firstly, langana preferred for dosha pachana, Treatment of santata jwara should be started. And, in case of symptoms of sannipataja jwara are found then treat kapha first followed by Pitta and Vata.
References
1) Park’s textbook of preventive and social medicine by K.PARK, 24TH EDITION (2017)
2) Kayachikitsa Volume-2 by Prof. Ajay Kumar Sharma (2017)
3) Longmore, Wilkinson, Davidson, Foulkes, Mafi, Oxford Handbook of Clinical Medicine 8th Edition.
4) Harsh Mohan Textbook of Pathology by Ivan Damjanov ( 7th edition).
5) J.Alastair Innes, Davidson’s Essential of Medicine 2nd edition
माइग्रेन दुनिया में सबसे सामान्य न्यूरोलॉजिकल बीमारियों में से एक है। कोरोना महामारी और लॉकडाउन के दौरान, माइग्रेन के रोगियों को स्वास्थ्य सेवायें प्राप्त करने में भारी समस्या का सामना करना पडा। ऐसे समय में इसकी रोकथाम के लिये लोगों ने विभिन्न घरेलू आयुर्वेदिक उपाय अपनाये।
आयुर्वेद में माइग्रेन - Migraine in Ayurveda
आयुर्वेद में माइग्रेन को अर्धावभेदक के रूप में वर्णित किया गया है। इसमें माइग्रेन के इलाज के लिए विभिन्न प्रक्रियाओं को समझाया गया। आयुर्वेद में माइग्रेन के उपचार के लिए योग, स्वस्थ जीवन शैली और हर्बल उपचार का उपयोग भी बताया गया। तो आइये समझते हैं माइग्रेन क्या है, यह किन कारणों से होता है और इसके लिये क्या आयुर्वेदिक उपाय अपनाये जा सकते हैं।
विषय - सूची
माइग्रेन क्या है
माइग्रेन के लक्षण
माइग्रेन के कारण
निदान
माइग्रेन के सामान्य उपाय
क्या खाएं और किससे बचें
अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
माइग्रेन क्या है - Migraine defination in Hindi
आयुर्वेद में 11 प्रकार के शिरो रोगों का वर्णन किया गया है, अर्धावभेदक भी इनमें से एक है। इस रोग में कपाल के आधे हिस्से में भेदने जैसा अत्यंत कष्टदायी दर्द महसूस होता है। ज़रूरी नहीं है कि इस दर्द की एक नियमित अवधि हो। कभी-कभी यह 10 दिनों या एक पखवाड़े के नियमित अंतराल पर भी आता है।
माइग्रेन त्रिदोष के असन्तुलन के कारण होता है, जो मुख्यतः वात-पित्त दोष के असंतुलन या आम (विषाक्त पदार्थों) के संचय के कारण होता है। यह तंत्रिका तंत्र की कार्यप्रणाली, स्मृति, एकाग्रता और फोकस को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। इसके अलावा इससे आंखों का स्वास्थ्य खराब, अनियमित नींद चक्र या अनिद्रा एवम व्यक्ति की उत्पादकता कम होती है।
माइग्रेन के लक्षण - Migraine Symptoms in Hindi
माइग्रेन का सबसे मुख्य लक्षण है, "अर्धशीर्ष वेदना", जिसका अर्थ है सिर के आधे क्षेत्र में दर्द।
इसके अलावा ग्रीवा क्षेत्र(गर्दन), भौंहें, कान, आंख और ललाट में तीव्र वेदना होती है। इस विकार से पीड़ित लोगों को चक्कर आना और आँखों के लाल होना के साथ दर्द का अनुभव होता है।
माइग्रेन बचपन, किशोरावस्था या शुरुआती वयस्कता में शुरू हो सकता है। इसमें चार चरण हो सकते है: प्रॉडोम, ऑरा, अटैक और पोस्ट-ड्रोम।
प्राथमिक अथवा प्रारम्भिक लक्षण: माइग्रेन के लक्षण जो सिरदर्द शुरू होने के एक या दो दिन पहले शुरू होते हैं, उन्हें प्रोड्रोम स्टेज कहते हैं।
डिप्रेशन
भोजन की अधिक इच्छा
थकान
उबासी लेना
अधिक सक्रियता
चिड़चिड़ापन
गर्दन में अकड़न
ऑरा: ऑरा के साथ माइग्रेन, प्रॉडोम स्टेज के बाद होता है। ऑरा के दौरान रोगी को दृष्टि, चलने-फिरने और बोलने में समस्या हो सकती है।
बोलने में कठिनाई
चेहरे, हाथ या पैर में सनसनाहट
प्रकाश में चमक या चमकीले धब्बों का दिखना
अस्थायी रूप से दिखना बंद होना
शोर सुनना
दौरे आना
अटैक: माइग्रेन के अटैक के कारण इस चरण में सबसे गंभीर दर्द होता है।
प्रकाश और ध्वनि की संवेदनशीलता बढ़ना
जी मिचलाना
बेहोश होने जैसा महसूस करना
सिर के एक तरफ दर्द, या तो बाएं, दाएं, आगे या पीछे
उल्टी
पोस्टड्रोम: इस स्टेज के दौरान, रोगी के मनोभाव और भावनाएँ बदल सकती हैं, जैसे कि बहुत खुशी, बहुत थकान और उदासीनता महसूस करना।
माइग्रेन के कारण Migraine Causes in Hindi
आयुर्वेद में दर्द को वात दोष का लक्षण बताया गया है और जब यह मस्तिष्क के तंत्रिका तंत्र में संचित होता है तो यह माइग्रेन का कारण बनता है। बाहरी उत्तेजना जैसे अत्यधिक शोर, प्रकाश और तनाव सभी माइग्रेन दर्द को बढ़ाने में योगदान देते हैं। कमजोर पाचन भी एक कारक है जो शरीर में आम को बढ़ाता है और शरीर और मस्तिष्क में रक्त के उचित परिसंचरण को रोकता है।
यह कहा जाता है कि माइग्रेन मस्तिष्क में असामान्य गतिविधि के परिणामस्वरूप होते हैं। यह नसों के संचार के साथ-साथ मस्तिष्क में रसायनों और रक्त वाहिकाओं को भी प्रभावित कर सकता है। आनुवंशिक कारण भी किसी को अधिक संवेदनशील बना सकते हैं जो माइग्रेन का कारण बन सकती है। हालांकि निम्नलिखित ट्रिगर्स माइग्रेन बढाने की संभावना रखते हैं:
हार्मोनल बदलाव:महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान बदलते हार्मोन के स्तर के कारण माइग्रेन के लक्षणों का अनुभव हो सकता है ।
भावनात्मक ट्रिगर: तनाव, अवसाद, चिंता, उत्तेजना आदि भी माइग्रेन को ट्रिगर कर सकते हैं।
शारीरिक कारण: थकान और अपर्याप्त नींद, कंधे या गर्दन में तनाव, खराब मुद्रा और अत्यधिक शारीरिक गतिविधि सभी को माइग्रेन से जोड़ा गया है। निम्न रक्त शर्करा और जेट लैग भी ट्रिगर के रूप में कार्य कर सकते हैं।
आहार में ट्रिगर: शराब और कैफीन भी माइग्रेन को ट्रिगर कर सकते हैं। कुछ विशिष्ट खाद्य पदार्थों से भी यह हो सकता है, जिसमें चॉकलेट, पनीर, खट्टे फल, और एडिटिव टाइरामाइन वाले खाद्य पदार्थ शामिल हैं। अनियमित भोजन और निर्जलीकरण को संभावित ट्रिगर बताया गया है।
दवाएं: कुछ नींद की गोलियाँ, हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (एचआरटी) दवाएं, और संयुक्त गर्भनिरोधक गोली सभी संभावित ट्रिगर्स हैं।
पर्यावरण: तेज़ी से बदलती स्क्रीन, तेज़ गंध, धुआं, और शोर से माइग्रेन बढता है। तापमान में परिवर्तन और तेज़ रोशनी भी माइग्रेन बढाते हैं।
माइग्रेन के निदान - Migraine Treatment
माइग्रेन के निदान के लिए कई मापदंड और परीक्षण हैं। माइग्रेन का निदान आम तौर पर विभिन्न माइग्रेन के लक्षणों के आधार पर किया जा सकता है जैसे वे कितने समय तक होते हैं और कितने समय तक चलते हैं। यह निर्धारित करने में मदद करेगा कि आपके लक्षणों के अन्य कारणों का पता लगाने के लिए कौन से परीक्षण आवश्यक हैं। इसके लिये कुछ परीक्षण किए जा सकते हैं उनमें एमआरआई, सीटी / कैट स्कैन, कंप्यूटेड टोमोग्राफी, रक्त और मूत्र विश्लेषण, साइनस एक्स-रे, ईईजी, नेत्र परीक्षा आदि शामिल हैं।
माइग्रेन के सामान्य उपाय - Migraine Home Remedies
स्वस्थ जीवन शैली का पालन करके माइग्रेन और अन्य प्रकार के सिरदर्द को रोका जा सकता है। नियमित रूप से नींद लेना, दिनचर्या और नियमित काम करने की आदतें, माइग्रेन ट्रिगर करने वाले कारणों से बचना माइग्रेन की आवृत्ति और गंभीरता को कम कर सकता है। स्वस्थ जीवनशैली के लिये निम्न उपाय अपनाये:
सुबह की दिनचर्या: नियमित मल त्याग करना, दांतों को ब्रश करना / फ्लॉस करना, मसूड़ों की मालिश करना, नाक के मार्ग की सफाई, त्वचा पर दैनिक तेल की मालिश करना, तेल से कानों की मालिश करना, ध्यान का अभ्यास करना।
उचित नींद लेना: उचित नींद पैटर्न का अर्थ है कि व्यक्ति को प्रकृति के अनुसार बिस्तर पर जाना चाहिए और उठना चाहिए। वात प्रकृति के लोगों को सूर्य के साथ जागना चाहिए, पित्तज प्रकृति को सूर्य से आधा घंटा पहले और कफज प्रकृति के लोगो को सूर्य से एक घंटे पहले उठना चाहिए। सभी को 10:00 बजे तक सो जाना चाहिये।
स्वस्थ खाने के दिशानिर्देशों का पालन करें: स्वस्थ भोजन के लिए सामान्य दिशानिर्देशों में उचित भोजन करना, बिना किसी व्याकुलता के भोजन करना, पूरे मन के साथ भोजन करना, भोजन को सही से चबाना शामिल है। सुनिश्चित करें कि भोजन गर्म हो। भोजन के साथ केवल थोड़ी मात्रा में तरल पदार्थ पीएं और कोल्ड ड्रिंक से बचें। भोजन के बाद आराम करने के लिए हमेशा कुछ समय लें और भोजन को पाचन के लिए 3-5 घंटे का समय दें।
स्ट्रेस (तनाव) प्रबंधन: किसी को भी ऐसे कारकों से बचना चाहिए जो तनाव को उत्पन्न करते हैं और दोष को असंतुलित करते हैं। तनाव उत्प्रेरण कारकों में शामिल हो सकते हैं:
शारीरिक तनाव जैसे अधिक व्यायाम, उपवास, थकावट, अनुचित शारीरिक मुद्राएँ, चोट / आघात।
मनोवैज्ञानिक तनाव जैसे क्रोध, चिंता / घबराहट, उत्तेजना, भ्रम, दुःख, भय।
लंबे समय तक सूरज या गर्मी के संपर्क में आने जैसे पर्यावरणीय तनाव।
तनाव से बचाव सबसे अच्छा तरीका है। कुछ रसायन जड़ी-बूटियाँ शारीरिक / मानसिक शक्ति और प्रतिरक्षा को बेहतर बनाती हैं। कई रसायन जड़ी बूटियों में एंटीऑक्सिडेंट, इम्युनोमोड्यूलेटर, हेपेटोप्रोटेक्टिव, एंटीडिप्रेसेंट प्रभाव दिखाई देते हैं। इस तरह की जड़ी-बूटियों के कुछ उदाहरण शतावरी, ब्राह्मी, शंख पुष्पी, आंवला, अश्वगंधा हैं।
नियमित व्यायाम: माइग्रेन के दर्द की तीव्रता को कम करने के लिए नियमित दैनिक व्यायाम प्रभावशाली साबित हुआ है। हालांकि, व्यायाम की तीव्रता, आवृत्ति, अवधि और प्रकार के साथ-साथ वार्म अप समय महत्वपूर्ण कारक हैं जिनकी निगरानी करने की आवश्यकता होती है और यह सिरदर्द को कम करते हैं। माइग्रेन के लिए आइसोमेट्रिक व्यायाम बहुत फायदेमंद है।
सिरदर्द के लिए योग: चूंकि माइग्रेन और तनाव दोनों में सिरदर्द पैदा करने के लिए तनाव एक महत्वपूर्ण कारक है, इसलिए योग संदेह के बिना इस प्रकार के सिरदर्द को रोकने में मदद कर सकता है। योग गर्दन, पीठ और सिर की मांसपेशियों में तनाव को भी कम करता है। योग मन को शांत करने में मदद करता है। इसमें विपरीतकरणी, अर्ध हलासन, जानू शीर्शासन, पश्चिमोत्तानासन, मत्स्य क्रीड़ासन व अन्य योग आसन माइग्रेन और तनाव से बचाव में सहायक होते हैं। इसके बाद दोनों हाथों की हथेलियों को आपस में रगड़ना चाहिये जब तक कि वे गर्म महसूस न करें और धीरे-धीरे दोनों आँखों पर रखना चाहिये।
ध्यान: तनाव और माइग्रेन दोनों सिरदर्द में तनाव का बहुत बड़ा योगदान है। ध्यान तनाव को कम कर सकता है।
प्राणायाम (साँस लेने के व्यायाम): विभिन्न प्रकार के प्राणायाम का शरीर, मन और आत्मा पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। अनुलोम-विलोम, शीतली प्राणायाम एवम कपाल-भाति अत्यंत फायदेमंद हैं।
क्या खाएं और किससे बचें- Diet for Migraine in Hindi
माइग्रेन के सिरदर्द के लिए विशिष्ट उपचार विकल्पों के अलावा खान-पान पर भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। इसके लिए निम्न बातों का ध्यान रख सकते हैं।
घर में बना ताज़ा गर्म भोजन ही करे।
भोजन हल्के तेल या घी में पकाया हुआ होना चाहिये।
अपने भोजन में ओमेगा-3 फैटी एसिड वाले खाद्य पदार्थ जैसे- सालमन मछली, अलसी के बीज, ओलिव तेल, अखरोट शामिल करे।
नियमित रूप से पानी पीते रहे। डिहाइड्रेशन भी माइग्रेन को बढाने में सहायक है।
नियमित रूप से भोजन लेते रहे, ज़्यादा समय तक भोजन न लेना भी सरदर्द को बढाता है।
दूध में एक चम्मच घी डाल कर रात को सोने से पहले ले सकते हैं।
आंवला, नीम, हल्दी आदि माइग्रेन को कम करने में सहायक है, अतः इन्हे लेते रहे।
अदरक की चाय भी माइग्रेन को कम करती है।
नारंगी, पीली और हरी सब्जियां, जैसे कि शकरकंद, गाजर और पालक, ब्राउन राइस, सूखे या पके हुए फल, जैसे चेरी और क्रैनबेरी ये माइग्रेन में खायी जा सकती हैं।
माइग्रेन को ट्रिगर करने वाले खाद्य पदार्थ हर व्यक्ति में अलग हो सकते हैं और इन खाद्य पदार्थों को खोजने से माइग्रेन को कम करने में मदद मिल सकती है।
कुछ सामान्य ट्रिगर खाद्य पदार्थों में डेयरी उत्पाद (गाय का दूध, बकरी का दूध, पनीर, दही आदि), चॉकलेट, अंडे, मांस, खट्टे फल, गेहूं, नट, टमाटर, प्याज, मक्का, सेब, केला, मादक पेय शामिल हैं (विशेष रूप से रेड वाइन), कैफीन युक्त पेय, बीटा - फेनिलथाइलामाइन (जैसे चॉकलेट), मोनोसोडियम ग्लूटामेट (एमएसजी), एस्पार्टेम स्वीटनर्स, नाइट्राइट्स, टाइरामाइन युक्त खाद्य पदार्थ।
माइग्रेन को लेकर अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)- FAQs
1)अपने चिकित्सक को कब दिखाना ज़रूरी होता है?
जब आपको हर महीने 15 दिनों से अधिक समय तक सिरदर्द रहता है, या माइग्रेन आपके जीवन को प्रभावित करने लगे तो डॉक्टर को अवश्य दिखाना चाहिए।
2)क्या माइग्रेन किसी गंभीर बीमारी की ओर संकेत करता है?
सिरदर्द शायद ही कभी गंभीर स्थिति की ओर संकेत करे परंतु निम्न लक्षण एक गंभीर स्थिति का संकेत हो सकते हैं:
अनियंत्रित उल्टी
दौरे पडना
स्तब्ध हो जाना
दुर्बलता
बोलने में परेशानी
गर्दन में अकड़न
धुंधला या दोहरा दिखाई देना
चेतना नाश
3)माइग्रेन से पहले दृष्टि और सुनने में क्यों बदलाव आते हैं?
इन परिवर्तनों को माइग्रेन का एक फेज़ कहा जाता है। ये लक्षण जो कुछ लोग माइग्रेन से ठीक पहले अनुभव करते हैं। इसमें वे ज़िगज़ैग पैटर्न देख सकते हैं, अजीब शोर सुन सकते हैं, या अपने शरीर में झुनझुनी जैसी असामान्य उत्तेजना महसूस कर सकते हैं।
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