क्या आपने कभी किसी ऐसे व्यक्ति को देखा है जो भविष्य के बारे में लगातार चिंता करता है और अनिश्चितता का डर उसे सताता रहता है? वे स्थिति की हर नकारात्मक संभावना के बारे में सोचते रहते हैं। क्यों उन्हें यह डर लगा रह्ता है? क्या इस तरह महसूस करना सामान्य है? हम इन भावनाओं से कैसे छुटकारा पा सकते हैं? आपको इस लेख में इन सभी प्रश्नों का उत्तर मिलेगा।
विषय - सूची
चिंता क्या है
चिंता के लक्षण
चिंता के कारण
निदान
चिंता के सामान्य उपाय
क्या खाएं और किससे बचें
अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
चिंता क्या है?
आयुर्वेद में, मन के तीन गुण हैं (मनो गुण) मुख्य रूप से सत्व, रज और तम।
सत्त्वगुण सकारात्मकता, चेतना और आध्यात्मिकता से जुड़ा है। यह ज्ञान और बुद्धि का प्रतिनिधित्व करता है और जीवन में शांति लाता है।
रज गुण तीनों में सबसे अधिक सक्रिय गुण है। यह अत्यधिक गति और उत्तेजना का परिचायक है। ऐसे व्यक्ति में कुछ पाने का जुनून होता है।
तम गुण भारीपन और जड़ता से संबंधित है। यह व्यक्ति के अंदर नकारात्मक सोच उत्पन्न करता है तथा सुस्ती, अत्यधिक नींद लाता है।
आयुर्वेद में, चिंता को चित्त उद्वेग कहा गया है। चित्त उद्वेग को इस रूप में परिभाषित किया जा सकता है; चित्त(मन) + उद्वेग(अस्थिरता) = चित्त उद्वेग (चित्त की चंचल अवस्था)। चित्त उद्वेग
वात और पित्त के साथ-साथ रज और तम दोषों में विकृति के कारण उत्पन्न होने वाला मनोरोग है।
अल्प सत्त्व होने से चिंता अधिक होती है।
चिंता में मुख्य रूप से दो कारक हैं:
भय = किसी भी खतरे में डर का एहसास।
चिंता करना = अप्रिय चीजों के बारे में सोचना जो आपको दुखी करता है और आपको परेशान करता है।
तो चित्त उद्वेग या चिंता विकार में व्यक्ति तर्कहीन हो कर दैनिक रूप से अत्यधिक चिन्ता करता है।
चिंता के लक्षण:
चिंता के लक्षण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न हो सकते हैं लेकिन कुछ लक्षण आम हैं।
ऐसे व्यक्ति लगातार अवास्तविक चिंता करते है जो अकसर मांसपेशियों में तनाव, बेचैनी महसूस करना, एकाग्रता में कमी, अनिद्रा से जुड़ी होती है।
चिंता के अन्य लक्षण हैं:
सम्मोह (भ्रम)
अंगमर्द (शारीरिक दर्द)
आयास (थकान)
उच्छ्वास आधिक्यम (सांस फूलना)
अनन्न अभिलाषा (खाने में अरुचि)
अनिद्रा (नींद न आना)
शिरः शून्यता(दिमाग का सुन्न होना)
उन्मत्त चित्तत्त्वम (एकाग्रता की कमी)
क्रोध (गुस्सा आना)
उद्वेग (घबराहट)
स्वनकर्णयो (कानों में शब्द गूंजना।)
चिंता के कारण:
आयुर्वेद में यह माना जाता है कि अल्प सत्व चिंता का कारण बनता है। रज और तम के साथ वात और पित्त का विकृत होना इस मनोविकार को उत्पन्न करता है।
चिंता के निम्न कारक है:
1. आनुवंशिक कारक- कुछ परिवारों में, यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चलता है।
2. अप्रिय घटनाएं- जीवन में तनावपूर्ण घटनाएं जैसे कार्यस्थल तनाव, वित्तीय तनाव, किसी प्रियजन की मृत्यु चिंता का कारण हो सकती है।
3. मद का अत्यधिक सेवन- मादक प्रवृति से रज और तम दोषों की विकृति होती है।
4. स्वास्थ्य में कमी - कुछ बीमारियां जैसे हृदय रोग, थायरॉइड विकार व्यक्ति में अवसाद को जन्म दे सकते हैं । समय के साथ धीरे-धीरे यह चित्त उद्वेग का कारण बन जाता है।
निदान:
आम तौर पर, आप परीक्षा या नौकरी के लिए इंटरव्यू लेने से पहले चिंतित महसूस करते हैं। लेकिन जब कोई व्यक्ति दैनिक जीवन के निर्णय लेने में समस्याएँ महसूस करने लगे तथा अधिक चिंता के कारण वह कही भी ध्यान केंद्रित न कर पाये तो उसे डॉक्टर से परामर्श करने की आवश्यकता है। आम तौर पर जब चिंता का निदान किया जाता है तब यदि एक व्यक्ति लगातार 6 महीने से अधिक समय तक रोजमर्रा की समस्याओं के बारे में चिंतित महसूस करता है, तो उसे चित्त उद्वेग रोग से ग्रस्त समझा जाता है।
चिंता के सामान्य उपाय:
आज की दुनिया में जीवन शैली तेजी से बदल रही है और हर कोई सभी भौतिक सुखों को पूरा करने की कोशिश कर रहा है। हर कोई ऐसा लगता है जैसे अपने कंधे पर वजन ढो रहा है। ऐसे में चिंता जैसे मनोविकार युवा पीढ़ी में भी काफी देखे जाते हैं। लेकिन कुछ निम्नलिखित सुझाव आपको उस मानसिक बोझ से छुटकारा दिला सकते हैं:
1.आयुर्वेद में अल्प सत्त्व को इस मानसिक विकार का कारक माना जाता है। इसलिए सत्त्वावजय चिकित्सा (मन को नियंत्रण में लाना) मन की शांति के लिए बतायी गयी है। इसके लिये हमें इन युक्तियों का पालन करना चाहिए:
क) ऋतुचर्या और दिनचर्या: हमें अपनी दैनिक जीवनशैली में कुछ चीजों को शामिल करना चाहिए जैसे प्रार्थना, हमारे पास जो कुछ भी है उसमें संतुष्ट रहना, उसके प्रति आभार व्यक्त करना, स्वच्छता और व्यायाम आदि हमारे जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। कुछ खास ऋतु में लोग अधिक चिंतित महसूस करते हैं जैसे गर्मी तो हमें उसके अनुरूप शीतल चीज़ों का प्रयोग अपने आहार विहार में करना चाहिए।
ख) सत्त्वगुण को सद्वृत्त(सदाचार) के द्वारा सुधारा जा सकता है। नैतिक आचरण, सत्य, अहिंसा,व्यक्तिगत स्वच्छता आदि का अभ्यास तनाव और चिंता को कम करेगा।
ग) अन्नपान विधी (आहार संबंधी नियम): खाने-पीने की आदतों में सुधार भी चिन्ता रोग को कम करने में सहायक है।
मिर्च और कैफीन जैसे राजसिक और तामसिक भोजन से परहेज करना।
नियमित समय पर भोजन करना।
आहार में क्षीर (दूध), घृत (घी), द्राक्षा (अंगूर) जैसे खाद्य पदार्थ शामिल करना।
2.अभ्यंग (शरीर की मालिश): शरीर की मालिश तनाव और चिंता को दूर करने का शानदार तरीका है। तिल के तेल या सरसों के तेल से मालिश कर सकते हैं।
3. शिरोधारा (माथे पर औषधीय तेल, दूध या काढ़ा डालना): माथे पर चंदनादि तेल या तिल का तेल जैसे साधारण तेल डालना भी उन तनावग्रस्त तंत्रिकाओं को शांत कर सकता है।
4.प्राणायाम: प्राणायाम का चिंता रोग पर वास्तव में अच्छा प्रभाव पड़ता है। सांस लेने और साँस छोड़ने पर ध्यान केन्द्रित कर कुछ ठहराव के साथ उन्हें लंबा करने की कोशिश करनी चाहिए। अनुलोम-विलोम, कपालभाति, भस्त्रिक और भ्रामरी जैसे प्राणायाम आपको इस रोग से छुटकारा दिला सकते हैं।
5.योग और ध्यान: योग में कुछ आसनों का नियमित रूप से अभ्यास चिंता के लक्षणों को दूर करने में सहायक है जैसे कि धनुरासन, सेतु बंधासन, मर्जरीआसन, शीर्षासन आदि।
क्या खाएं और क्या न खाएं:
आयुर्वेद में, किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य का निर्धारण करने के लिए आहार संबंधी आदतें अत्यन्त महत्वपूर्ण है। चिंता रोग में अरुचि तथा खाने का पाचन न होने जैसे लक्षणों को देखते हुए इन नियमों का पालन करना चाहिए:
नियमित समय पर भोजन करें।
वात दोष को संतुलित करने के लिए थोड़ा तेल या घृत (घी) में पकाया गया गर्म भोजन खाएं।
आहार में अधिक सात्विक खाद्य पदार्थ शामिल करें जैसे मौसमी फल और घर का बना साधारण भोजन।
सोने से पहले केसर मिला हुआ दूध पियें क्योंकि यह नींद आने में मदद करेगा।
बेकरी आइटम, फ्रोजन फूड और डीप फ्राइड फूड जैसे प्रोसेस्ड फूड से बचें।
राजसिक और तामसिक खाद्य पदार्थों जैसे मिर्च, कैफीन और मांस से बचें।
अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQS)
चिंता क्या है?
चिंता या जैसा कि हम इसे आयुर्वेद में चित्त उद्वेग कहते हैं, इसमें व्यक्ति अत्यधिक चिंता के कारण अपने रोजमर्रा के जीवन में कठिनाई महसूस करता है। व्यक्ति में धीरे-धीरे शारीरिक लक्षण जैसे अनिद्रा, शरीर में दर्द, खाने में अरुचि आदि भी आने लगते है।
हम इससे कैसे बच सकते हैं?
जैसा कि आयुर्वेद में निदान परिवर्जन (कारण खत्म करना) को प्राथमिक उपचार माना गया है, अतः यौगिक जीवन शैली अपनाने से चिंता को रोकने में मदद मिल सकती है। योग के सिद्धांत यम और नियम आपको उस सात्विक जीवन शैली को प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं। उदाहरण के लिए शौच में मन और शरीर की स्वच्छता के बारे में बताया गया है। संतोष सिद्धांत व्यक्ति को उसके जीवन में जो भी है, उसी में खुश रहना सिखाता है। साथ ही अपरिग्रह सिद्धांत हमारी इच्छाओं को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है। व्यक्ति को पौष्टिक भोजन भी करना चाहिए और योग, प्राणायाम और ध्यान की मदद से स्वस्थ जीवन शैली का पालन करना चाहिए।
सभ्यता के विकास के साथ मनुष्य शारीरिक रूप से निष्क्रिय हो गया है। आधुनिकीकरण, संपन्नता, विज्ञान और तकनीकी विकास के फलस्वरूप आधुनिक जीवन शैली गतिहीन होती जा रही है। बढ़ती निष्क्रिय जीवनशैली के साथ आहार में बदलाव ने कई देशों में मोटापे की महामारी को जन्म दिया है। शारीरिक गतिविधि में कमी के साथ वसा और गुरु आहार द्रव्यों की भोजन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। औद्योगिकीकरण और आर्थिक प्रगति में उन्नति के साथ साथ आज कल अधिक से अधिक नौकरियां सिर्फ ऑफिस डेस्क तक सिमट के रह गई हैं तथा आहार के पैटर्न में बदलाव के साथ चीनी और वसा के सेवन में वृद्धि हो रही है। इस सबके कारण ही मोटापे तथा इससे जुडी समस्याओं में वृद्धि हुई है। तो आइये जानते हैं मोटापा क्या है, इसके कारण तथा इससे कैसे छुटकारा कैसे पाया जा सकता है।
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मोटापा क्या है
मोटापे के कारण
मोटापे के लक्षण
निदान
मोटापे के सामान्य उपाय
क्या खाएं और किससे बचें
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
मोटापा क्या है?
आयुर्वेद में आचार्य चरक ने अष्ट निंदित पुरुष का वर्णन किया है तथा इनमे भी इन दो रोगों का विशेष रूप से वर्णन किया है- अतिस्थूल(अधिक मोटा) तथा अतिकार्श्य(अधिक पतला)। इनमें अतिस्थूल(अधिक मोटे) व्यक्ति को इसके जटिल व्याधिजनन और उपचार के कारण अतिनिंदित माना गया है। आयुर्वेद में मोटापे को स्थौल्य या मेदोरोग कहा गया है। यह संतर्पणोत्थ विकारो (अति पोषण के कारण होने वाला रोग) के अंतर्गत आता है। आयुर्वेद में शारीरिक व मानसिक संतुलन को ही स्वास्थ्य की परिभाषा दी गयी है। इसके अनुसार, मोटापा एक ऐसी स्थिति है, जिसमें मेद धातु (फैटी टिश्यू) की विकृति/ वृद्धि की होती है।
आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से, किसी भी अन्य बीमारी की तरह, मोटापा गलत भोजन के सेवन या अनुचित आहार की आदतों और जीवनशैली के विकास के साथ शुरू होता है, जिसके परिणामस्वरूप पाचन अग्नि की समस्या होती है, जो आगे जा कर आम को बढ़ाती है। बढे हुए आम के कारण चयापचय प्रक्रिया विचलित हो कर अधिक मेद धातू (फैटी टिश्यू) का निर्माण करती है और आगे की धातू निर्माण जैसे कि अस्थि (हड्डियों) के निर्माण को अवरुद्ध करती है। अत्यधिक रूप से बढी हुई मेद धातू कफ के कार्यों में अवरोध उत्पन्न करती हैं।
दूसरी ओर, जब आम सभी शारीरिक चैनलों को अवरुद्ध करता है तो यह वात दोष में असंतुलन पैदा करता है। वात दोष पाचन अग्नि (जठराग्नि) को उत्तेजित करता रहता है, जिससे भूख में वृद्धि होती है इसलिए व्यक्ति अधिक से अधिक भोजन करता है। मेद धात्वाग्नि मांद्य (कमजोर वसा चयापचय) के कारण अनुचित या असामान्य मेद धातु बनती है, जो मोटापे का मूल कारण है।
अतः मोटापा या स्थौल्य एक ऐसा रोग है जिसमें व्यक्ति मेद(फैटी टिश्यू) और मांस के अत्यधिक विकास के कारण काम करने में असमर्थ होता है और उसके नितंबों, पेट और स्तनों के अधिक विकास के कारण शारीरिक विघटन खराब हो जाता है।
मोटापे के कारण
मोटापा एक ऐसी अवस्था है जिसमें त्वचा तथा आंतरिक अंगों के आस-पास वसा का अत्यधिक संचय हो जाता है। जब लोग अधिक वसायुक्त भोजन करते हैं तथा शारीरिक श्रम नहीं करते तब शरीर में जरूरत से ज्यादा कैलोरी संचित हो जाती है जो वजन बढने का कारण है। कई अन्य कारण भी मोटापा बढाते हैं जैसे कि गर्भावस्था, ट्यूमर, हार्मोनल विकार और कुछ दवाएं जैसे साइकोटिक ड्रग्स, एसट्रोजन्, कॉर्टिकॉ-स्टेरायड्स और इंसुलिन।
आयुर्वेद तथा आधुनिक चिकित्सा प्रणाली दोनो ने मोटापे को कई कारणो की वजह से उत्पन्न माना है। मोटापे के आयुर्वेद में निम्न कारण बताये गए हैं-
अध्यशन (दोपहर के भोजन या रात के खाने के बाद दोबारा भोजन लेना)
अति बृन्हण (अति पोषण)
गुरु आहार सेवन (कठिनाई से पचने वाला भोजन करना)
मधुर आहार सेवन (मीठी वस्तुओं का सेवन)
स्निग्ध भोजन सेवन (कफ बढाने वाला भोजन करना)
अव्यायाम (व्यायाम न करना)
अव्यवाय (यौन गतिविधियों की कमी)
दिवा स्वप्न (दिन में सोना)
अतिस्नान सेवन
बीज दोष (आनुवान्शिक कारण)
अग्निमांद्य (पाचक अग्नि में कमी होना)
मोटापे के लक्षण
मोटापा व्यक्ति के जीवन में नकारात्मक प्रभाव डालता है। इससे ग्रसित व्यक्ति न सिर्फ शरीरिक रूप से परेशान रहता है, बल्कि मानसिक रूप से भी वह हीन भावना का शिकार हो कर अवसाद में जा सकता है। इसके सामान्यतः निम्न लक्षण होते हैं-
अतिस्वेद [अत्यधिक पसीना आना]
श्रमजन्य श्वास [हल्के परिश्रम पर सांस फूलना]
अति निंद्रा [अत्यधिक नींद आना]
कार्य दौर्बल्यता [भारी काम करने में कठिनाई]
जाड्यता [आलस्य]
अल्पायु [लघु जीवन काल]
अल्पबल [शक्ति में कमी]
शरीर दुर्गन्धता [शरीर की दुर्गंध]
गदगदत्व [अस्पष्ट आवाज]
क्षुधा वृद्धि (अत्यधिक भूख)
अति तृष्णा [अत्यधिक प्यास]।
मोटापे का निदान
वैसे तो मोटापे के निदान के लिये बहुत से वर्गीकरण हैं। लेकिन बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) पर आधारित विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का वर्गीकरण व्यापक रूप से स्वीकृत है। व्यक्ति के वजन(किलोग्राम में) को उसकी लम्बाई(मीटर में) के वर्ग द्वारा विभाजित कर बीएमआई निकाला जाता है। यह लम्बाई और आकार के आधार पर व्यक्ति के आदर्श वजन का अनुमान लगाता है।
18.5 से ले कर 24.9 तक बीएमआई सामान्य माना जाता है। 25 या इससे ऊपर बीएमआई वाल्रे मोटापे की श्रेणी में आते हैं।
मोटापे के सामान्य उपाय
मोटापा दूर करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है इसके कारणों को दूर करना। यह एक ऐसी बीमारी है जो शरीर की आवश्यकता से अधिक कैलोरी लेने की वजह से होती है। आयुर्वेद में, मोटापे का इलाज केवल वजन घटाने तक सीमित नहीं है, बल्कि चयापचय प्रक्रियाओं को ठीक कर आम को कम करके तथा वात-कफ के कार्य को नियमित कर अतिरिक्त वसा को कम किया जाता है।
चयापचय को ठीक करने के साथ-साथ पाचन अग्नि बढाने तथा स्रोतस शोधन के लिये, आहार की आदतों में सुधार करना और तनाव को कम करना महत्वपूर्ण है। इसके लिये निम्न कुछ उपाय घर में सरलता से किये जा सकते हैं-
लंघन- लंघन यानी ऐसे उपाय जो शरीर में हल्कापन लाये। जैसे-
ऊष्ण जल सेवन- सुबह उठने के पश्चात गर्म पानी का सेवन करें, यह न सिर्फ शरीर में लघुता लायेगा बल्कि आम पाचन भी करेगा।
उपवास- सप्ताह में एक दिन उपवास का सेवन करें। इस अवधि में आप मूंग की दाल का पानी या नारियल का जूस इत्यादि ले सकते हैं।
नियमित व्यायाम- माथे पर पसीना आने तक दैनिक नियमित रूप से व्यायाम जरूरी है। सुबह नियमित रूप से 30 मिनट तक पैदल चलें व व्यक्तिगत क्षमता के अनुसार व्यायाम करे। इसमें योगासन भी सहायक हैं, जैसे- सूर्य नमस्कार, धनुरासन, भुजंगासन, पवनमुक्तासन, पस्चिमोत्तानासन, ताड़ासन इत्यादि।
आम पाचन- आम की उपस्थिति में वजन कम करना बेहद मुश्किल है। इस कारण से लोग सीमित भोजन का सेवन करते हुए भी अपना वजन कम करने में असफल रहते हैं। इसलिए पहले आम से छुटकारा पाना महत्वपूर्ण है.
आम को खत्म करने के लिये पहले उन कारणों से बचना है जो आम की उत्पत्ति कर रहे हैं। पिछला भोजन ठीक से पचने से पहले खाने से बचें। आसानी से पचने वाला तथा मात्रा में कम भोजन खाएं। ठंडा या बासी भोजन न करें।
इसके लिये सौंफ और गुनगुने पानी का सेवन लाभदायक है।
अदरक भी आम पाचन में सहायक है। आप इसका काढा बना कर पी सकते हैं।
हल्दी, काली मिर्च जैसे मसाले अपने आहार में नियमित रूप से शामिल करें।
इसबगोल और त्रिफला को रोजाना रात को सोने से पहले लें। एक कप गर्म दूध में एक चम्मच घी मिलाकर पीना भी सहायक होता है।
कफ दोष शमन- मोटापे में कफ दोष बढ जाता है। इसके संतुलन के लिये निम्न उपाय अपनाये-
अपने आहार में मिर्च, सरसों के बीज और अदरक जैसे तीखे मसालों का उपयोग करें।
शहद को छोड़कर मीठे पदार्थों से बचें। रोजाना एक चम्मच या दो (लेकिन अधिक नहीं) शहद का सेवन करे। इसे सादा पानी में मिला कर पी सकते हैं।
तिक्त रस(कड्वा) सेवन- कफ दोष के शमन के लिये कड्वी चीज़ों को अपने आहार में शामिल करिये जैसे गिलोय, नीम, करेले का जूस इत्यादि।
गुरु अपतर्पण- यानी ऐसा आहार लेना जो भूक को भी शांत कर दे व मोटापा भी न बढाये।
इसके लिये जौ बेहद कारगर उपाय है. जौ का नमकीन दलिया या इसके आटे की रोटी का प्रयोग करे।
चावल का मांड- आयुर्वेद में इसे बनाने के लिये 14 गुना जल डाल कर चावल का मांड बताया गया है। इसमे आप अपने स्वाद के अनुसार हींग और सेंधा नमक डाल सकते हैं।
क्या खाएं और किससे बचें
अस्वास्थ्यकर आहार से शरीर में वसा ऊतक(फैटी टिश्यू) का निर्माण होता है जिसके परिणामस्वरूप मोटापा होता है। इसलिए पर्याप्त फाइबर युक्त स्वस्थ आहार का सेवन, सक्रिय जीवन शैली को अपनाना और तनाव और थकान को प्रबंधित करने के लिए योग और ध्यान का अभ्यास करना अधिक वजन / मोटापे की रोकथाम के लिए आवश्यक है। इसके लिए जीवन शैली में निम्न संशोधन किये जा सकते हैं-
नियमित समय पर भोजन करें।
पीने के लिए गर्म पानी का उपयोग करें।
सेहतमंद खाद्य पदार्थ जैसे - यव(जौ), हरा चना (मूंग की दाल), करेला, शिग्रू(ड्रमस्टिक), आंवला, अनार लें।
भोजन में तक्र(छाछ) का प्रयोग करें।
तली हुई के बजाय उबली हुई और बेक्ड सब्जियाँ प्रयोग करे।
आहार और पेय में नींबू शामिल करें। प्रातः काल एक गिलास गर्म पानी में एक नीम्बू का रस निचोड कर पिये, इसमे चीनी या नमक न मिलाये।
कम कैलोरी वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करें जैसे लौकी का जूस, सब्जियों का सूप इत्यादि।
अधिक मीठा, अधिक डेयरी उत्पाद, तले हुए और तैलीय पदार्थ, फास्ट फूड से दूर रहे।
भोजन में नमकीन भोजन या अत्यधिक नमक न ले।
मदिरा पान और धूम्रपान से बचें।
दिन में सोना सर्वथा त्याग दे।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
1)मोटापा किन कारणों से होता है?
मोटापा कई कारणों से होता है। मुख्य कारण हैं-
क)आनुवन्शिक कारण ख) ज़रुरत से ज़्यादा भोजन करना ग)हाइपोथायरायडिज्म और कुशिंग सिंड्रोम जैसी कुछ हार्मोनल स्थितियां मोटापे का कारण बन सकती हैं। कुछ दवाओं से भी मोटापा हो सकता है।
2) क्या मोटे लोगों को जल्दी मौत का खतरा है?
मोटे लोगों को जीवनशैली से जुड़ी बीमारियां जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल संबंधी रोग होने का खतरा होता है। ये रोग व्यक्ति की मृत्यु का कारण बन सकते हैं।
3) वज़न घटाने का सबसे अच्छा तरीका क्या है?
शारीरिक गतिविधि में वृद्धि, स्वस्थ आहार में बदलाव और अपने चिकित्सक से मिल कर प्रति सप्ताह 1 से 2 पाउंड वज़न कम करने का लक्ष्य रखें। वजन घटाने के लिये अपने आहार और दिनचर्या को ज़्यादा मुश्किल न बनाये। नियमित रूप से व्यायाम करें व मिताहार(नपा-तुला भोजन) करें।
गृध्रसी / सायटिका (Sciatica) क्या है - Sciatica Kya Hai In Hindi
गृधसी एक वेदना प्रधान कष्टदायक व्याधि है। इस मे रोगी गिद्ध पक्षी की तरह चलता है, इसलिए इसे गृधसी नाम दिया गया। Allopathy में sciatica रोग से इसे जाना जाता है । Sciatic Nerve में शोथ होने की वजह से जहाँ जहाँ से sciatic nerve जाती है , उन उन जगहों पर दर्द होता है। साइटिका नस रीढ़ की हड्डी से शुरू होती है और कमर से होती हुई दोनों पैरों के नीचे तक जाती है। यह हमारे शरीर की एक मुख्य और लंबी नस होती है जो की पैरो को नियंत्रित करने का काम करती है। साइटिका का दर्द (sciatica ka dard) मुख्य रूप से शरीर की साइटिका नस के दबने से होता है, जिसमे पैर और कूल्हों में काफी दर्द रहता है।
साइटिका के लक्षण (कैसे पहचाने) - Sciatica Ke Lakshan
कमर से लेकर घुटना ,एड़ी ऐसे एक पैर में सुई के चुभने जैसा दर्द
इस दर्द की वजह से रोगी टेढ़ा होकर चलता है।
दर्द ज्यादातर एक पैर में ही होता है। Sciatic nerve के कमर की जगह पर दबने से यह दर्द होता है।
साइटिका के कारण - Sciatica Ke Karan
किसी भी प्रकार से कमर पर झटका लगना
उपवास अधिक करना,
कमर पर चोट लगना
अत्यधिक खड़े रहना या चलने का काम करनेवालोंको
अत्यधिक व्यायाम या जिम करने वालो को
अधिक भार उठाने पर।
कठिन बिस्तर पर सोना
अत्यधिक गाड़ियों की सवारी करना
डॉक्टर को दिखाने का समय
चलते समय कमर से पैर तक अधिक वेदना होने पर दर्द की वजह से शरीर मे जकड़न व टेड़ा पन शुरू होजाये।
साइटिका बीमारी में कौन-कौनसी जांच करवाना जरूरी
X-ray lumbar- कमर का X-ray करवाना जरूरी है ,इससे यह पता लगेगा कि उस स्थान पर कोई विकृति तो नही हुई है।
MRI- कभी कभी xray में ठीक से विकृति समझ नही आती तो MRI से रोग की जानकारी स्पष्ट होजाती है।
रक्त जांच- रक्त कमी ,या अन्य कोई इंफेक्शन का पता लगाने के लिए।
Bone Mass Density- अस्थियों की गुणवत्ता जांचने के लिए साइटिका से बचने के उपाय सही तरीके नियमित व्यायाम करें अपने शरीर बल के अनुसार भार उठाये। ज्यादा खड़ा न रहे , चले न। कोई चोट लगी हो तो तुरंत अच्छे से उसका उपचार करवाये। व्यायाम किसी जानकार व्यक्ति की देखरेख में करे।
साइटिका ठीक करने के लिए घरेलू उपचार - Home Remedies for Sciatica pain in Hindi
नीम की जड़ का काढ़ा बनाकर उसीका लेप करने से दर्द कम होता है।
लहसुन 10-15gm, गुइ़ 2gm चटनी बनाकर खाये
सरसो का तैल और तारपीन का तैल बराबर मात्रा में मिलाकर दर्द की जगह पर मालिश करे।
काली मिर्च,लौंग और जायफल की पोटलिया बनाकर सेक करे
मेथी दाना ,कलौंजी अजवायन चूर्ण मिलाकर 1 चम्मच सुबह शाम ले।
रोज सुबह एरंड तैल 2 चम्मच कैब 1 कप दूध में मिलाकर पिएं।
सावधान, अगर इन सब का प्रयोग करने पर भी कुछ दिनों में आराम न मिलता हो तो तुरंत वैद्य या डॉक्टर की सलाह ले।
साइटिका के मरीज को क्या-क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए
साइटिका के मरीज को क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए इन सभी बातों पर ध्यान देने की बहुत जरूरत है। अगर हम लोग अपने खान-पान को सही कर लें तो हमारी बीमारी अपने आप ही कम हो जायेगी।
साइटिका में क्या खाना चाहिए - Sciatica Me Kya Khana Chahiye
गेहूं की रोटी
उबली हुई सब्जियां
मूंग व मसूर की दाल
चीनी के स्थान पर गुड़ व शहद का प्रयोग
दूध
मुनक्का
सेब अंगूर इत्यादि फल खाएं
साइटिका में क्या नहीं खाना चाहिए - Sciatica Me Kya nahi Khana Chahiye
सलाद
ठन्डी चीजे
आइसक्रीम
ठंड पेय,केक
फ़ास्ट फूड
दही
चावल
घी
तैलीय पदार्थ जैसी चीजें न ले।
सब्जियों में अरबी, भिंडी, आलू , टमाटर न खाए।
साइटिका मे क्या करें और क्या न करें
आराम करें।
शरीर को गर्म रखे।
शरीर का भार अनुपात में रखे।
भोजन के तुरंत बाद या दिन में न सोयें।
ठंडे पानी से स्नान , या ठन्डी जगहों पर वास न करे
संधिवात / जोड़ो का दर्द / आर्थराइटिस - Arthritis in Hindi
आज हमारे परिवार में बड़े बुजुर्ग जिस तकलीफ से ज्यादा त्रस्त है वो है जोड़ो के दर्द। आम जनता के लिए जोड़ो का दर्द केवल एक प्रकार का ही लगता है । किंतु एक वैद्य या चिकित्सक के नजरिये से देखा जाए तो संधिवात, आमवात, वातरक्त इत्यादि अनेक प्रकार से होते है जिनकी चिकित्सा भी अलग होती है। शरीर के सभी जोड़ों(संधियों) में या कोई विशेष जोड़ में दर्द होना संधिवात कहलाता है। संधि मतलब शरीर मे जहाँ दो या दो से ज्यादा हडडियों(अस्थियों) का मेल होता है जैसे घुटना, कन्धा, मन्या(गर्दन),कमर इत्यादि इन स्थानों पर वात दोष की गड़बड़ी की वजह से रुक्षता बढ़ जाती है । इन सन्धियों में मौजूद तरल द्रव की कमी होने से हड्डियों में घर्षण होता रहता है। जब इनका अति होजाता है तो एक अवस्था के बाद उन जोड़ो में दर्द होना शुरू हो जाता है । जिसे संधिवात कहा जाता है।
आर्थराइटिस के लक्षण कैसे पहचाने - Symptoms of Arthritis in Hindi
ज्यादातर उंगलियो के जोड़ो में, अंगूठे के मूल में, मन्या, पीठ के निचले हिस्से में, पैर के अँगूठे, कमर और घुटनों में दर्द होना व सूजन होना
वजन उठाने पर दर्द बढ़ जाना
सामान्यतः एक घुटने में ज्यादा तकलीफ
सो कर उठने पर अकड़न महसूस होना
रीड़ की हड्डियों में गड़बड़ी की वजह से हाथों या पैरों में झुनझुनी,दर्द या कमजोरी जैसे लक्षण मिलते है।
आर्थराइटिस के संधिवात के कारण - Causesof Arthritis in Hindi
गलत खान पान व असमय खानपान
उपवास अधिक करना
नियमित बासी भोजन खाना
अत्यधिक ठंडी चीजे जैसे कुल्फी,कोल्डिक, फ़ास्ट फूड दही,चावल इत्यादि खाना
व्यायाम बिल्कुल न करना या अतिमात्रा में व्यायाम करना
वयानुसर हड्डियों की गुणवता में कमी होना
भोजन के तुरंत बाद आराम करना
ठंड स्थान या AC, कूलर के आगे काफी समय से सोने की वजह से
वजन ज्यादा होने की वजह से सन्धियों पर भार ज्याद होना
रक्त की कमी होने से
कभी कोई चोट या आघात होने की वजह से।
डॉक्टर को दिखाने का समय
जब चलते समय जोड़ो में दर्द बहुत अधिक होगया हो
चलने में ,उठकर बैठने में दर्द, सूजन आने पर या फिर जोड़ो की जगह पर वक्रता होगयी हो ,तो तुरंत वैद्य या चिकित्सक के पास जाएं।
कौन-कौनसी जांच करवाना जरूरी
X-ray- ग्रस्त सन्धियों का X-ray करवाना जरूरी है ,इससे यह पता लगेगा कि उस स्थान पर कोई विकृति तो नही हुई है।
रक्त जांच- रक्त कमी ,या अन्य कोई इंफेक्शन का पता लगाने के लिए।
Bone Mass Density- अस्थियों की गुणवता जांचने के लिए
संधिवात से बचने के उपाय
सही तरीके से नियमित व्यायाम करें
अपने शरीर प्रमाण व बल के अनुसार वजन बना कर रखे
कोई चोट लगी हो तो तुरंत अच्छे से उसका उवचार करवाये।
सन्धिवात ठीक करने के लिए घरेलू उपचार
2 लीटर पानी में 20 gm कुचला हुआ आद्रक या 10 gm पिसी हुई शोठ मिलाकर उबाले । जब आधा शेष रहे तो ठंडा होने पर पिये।
लहसुन 10-15gm, गुड 2gm चटनी बनाकर खाये
सरसो का तैल और तारपीन का तैल बराबर वजन में मिलाकर जो़ो पर मालिश करे।
काली मिर्च लौंग और जायफल की पोटलिया बनाकर सेक करे
मेथी दाना ,कलौंजी अजवायन चूर्ण मिलाकर 1 चम्मच सुबह शाम ले।
सावधान, अगर इन सब का प्रयोग करने पर भी कुछ दिनों में आराम न मिलता हो तो तुरंत वैद्य या डॉक्टर की सलाह ले।
आर्थराइटिस में आहार
यह खाएं -गेहू की रोटी ,उबली हुई सब्जियां, मूंग व मसूर की दाल, चीनी के स्थान पर गुड़ व शहद का प्रयोग,दूध,मुनक्का,सेब ,अंगूर इत्यादि फल खाएं।
यह न खाएं -सलाद, ठन्डी चीजे,आइसक्रीम,ठंड पेय,केक,फास्ट फूड ,दही,चावल ,घी,तैलीय पदार्थ जैसी चीजें न ले। सब्जियों में अरबी ,भिंडी आलू टमाटर न खाए।
आर्थराइटिस में विहार
नियमित हल्का व्यायाम करें। पैदल चले।
शरीर को गर्म रखे।
शरीर का भार अनुपात में रखे।
भोजन के तरंत बाद या दिन में न सोयें।
ठंडे पानी से स्नान , या ठन्डी जगहों पर वास न करे
Weight Loss Home Remedy In Hindi : क्या आप अपना वजन कुछ किलोग्राम घटाना चाहते हैं? तो आपको यहां-वहां देखने की जरूरत नहीं है, क्योंकि आपकी रसोईघर में ही कुछ ऐसे तत्व आपको मिल जाएंगे जो वजन कम करने में आपकी मदद करेंगे।
प्रतिष्ठित आयुर्वेदाचार्य और जीवा आयुर्वेद के निदेशक डॉ. प्रताप चौहान ने कहा, "आहार और व्यायाम वजन कम करने का स्वास्थ्यवर्धक जरिया है, लेकिन किसी को यह नहीं पता है कि उनकी रसोईघर में ही कुछ ऐसी चीजें हैं जो उनका वजन कुछ किलोग्राम तक कम करने में मदद कर सकता है। प्रतिदिन के आहार में रसोईघर के उन कुछ तत्वों को शामिल करना आपके वजन कम करने में काफी प्रभावी हो सकता है।"
उन्होंने रसोईघर में आसानी से मिलने वाले पांच तत्वों के बारे में बताया, जो आपके मेटाबॉलिज्म और पाचन को दुरुस्त करता है।
दालचीनी : आयुर्वेद में दालचीनी का प्रयोग इसके कीटाणुनाशक, जलन कम करने, एंटी-बैक्टिरियल गुणों के कारण किया जाता है। जब बात वजन कम करने की आती है, तो मीठी सुगंध वाला यह तत्व मेटाबॉलिज्म को बढ़ाता है, ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करता है। सुबह उठने के बाद सबसे पहले दालचीनी मिला पानी का सेवन करने से यह भूख कम करने में मदद करने के साथ बुरे कोलेस्ट्रॉल को भी कम करता है।
काली मिर्च : आयुर्वेद के अनुसार, काली मिर्च वजन कम करने में काफी प्रभावी है। यह शरीर के ब्लॉकेज को घटाता है, सर्कुलेशन को सुचारु करता है और मेटाबॉलिज्म को बढ़ाता है। यह शरीर को डिटॉक्स करने के साथ चर्बी को भी कम करता है।
अदरख : आयुर्वेद का यह जादुई तत्व मेटाबॉलिज्म को 20 प्रतिशत तक बढ़ा देता है, यह पेट को स्वस्थ रखता है, चर्बी को घटाता है और शरीर से टॉक्सिन को बाहर निकालता है। इसमें ज्वलन कम करने वाले और एंटी-बैक्टीरियल तत्व हैं। इसके निरंतर सेवन से न सिर्फ आपका वजन कम होता है, बल्कि यह आपके पूरे स्वास्थ्य को दुरुस्त रखता है।
नींबू : खाने में इस्तेमाल से या सलाद पर डालकर नींबू के सेवन से वजन काफी जल्द कम होता है। नींबू में विटामिन सी और घुलने वाली फाइबर की प्रचुर मात्रा होती है, जिससे कई स्वास्थयवर्धक फायदे होते हैं। नींबू से हृदय संबंधी बीमारी, एनीमिया, किडनी में पथरी, सुचारु पाचन और कैंसर में फायदा मिलता है।
शहद : बिस्तर पर जाने के ठीक पहले शहद के सेवन से नींद के शुरुआती घंटों में कैलोरी कम होती है। शहद में शामिल फायदेमंद हार्मोन से भूख कम लगती है और तेजी से वजन कम होता है। इसके इस्तेमाल से पेट की चर्बी आसानी से कम होती है।
(एजेंसी)
Maa Ka Dudh Badhane Ke Ayurvedic Upay : माँ के दूध से बेहतर बच्चे के लिए कुछ भी नहीं। आयुर्वेद में भी स्तनपान को माँ और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद बताया गया है। माँ का दूध बच्चों में अस्थमा, एलर्जी, सांस की बीमारियों, कान के संक्रमण, दस्त, आदि जैसे रोगों के जोखिम को कम करता है (breast milk badhane ke upay)। स्तनपान बच्चों के लिए पोषण का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। इससे बच्चों को एंटीबॉडी, विटामिन, प्रोटीन और वसा मिलती है।
स्तनपान बच्चे के स्वास्थ्य के साथ-साथ माँ के स्वास्थ्य के लिए भी अहम है। स्तनपान कराने का सबसे बड़ा फायदा ये है कि यह गर्भावस्था के दौरान बढे वजन को नियंत्रित करता है, अतिरिक्त कैलोरी को कम करता है और हार्मोन ऑक्सीटोसिन को रिलीज करता है। इससे गर्भाशय को गर्भावस्था से पूर्व के स्वरूप में आने में मदद मिलती है। इसके अलावा स्तनपान स्तन और अंडाशयी (डिम्बग्रंथि) के कैंसर के खतरे को कम करता है।
लेकिन कई बार स्तनपान से संबंधित कई समस्याओं का सामना माँ को करना पड़ता है। इन समस्याओं में प्रमुख है दूध का कम आना, जलन, स्तन में दर्द आदि। लेकिन सबसे बड़ी समस्या होती है दूध का कम आना। इसके लिए आयुर्वेद में कई उपाय सुझाए गए हैं। आयुर्वेद के इन आसान उपायों पर यदि अमल किया जाए तो आसानी से इस समस्या का समाधान हो सकता है। इसके लिए आहार संबंधी कुछ सुझाव इस तरह से है ( breast milk increase tips in hindi)-
आयुर्वेद में माँ का दूध बढ़ाने के लिए भोजन (Food for increase Breast Milk - In Ayurveda)
आयुर्वेद में माँ के दूध को बढ़ाने के कई उपाय बताए गए हैं. ये उपाय बेहद आसान है और बेहद सुगमता से उपलब्ध भी हो जाती है.
सौंफ और मेथी के बीज - Fennel Seeds and Fenugreek Seeds
सौंफ और मेथी स्तनपान कराने वाली माँ के लिए बेहद उपयोगी है। इससे दूध बढ़ता है। यह दोनों शरीर में एस्ट्रोजन के स्तर को बढ़ाते हैं। यह एक हार्मोन है जो दूध के उत्पादन में मदद करता है। सौंफ के बीज को गर्म पानी में उबालकर चाय की तरह पी जा सकती है। स्वाद के लिए इसमें शहद मिलाया जा सकता है। इस चाय को दिन में कई बार लिया जा सकता है या फिर एक -एक चम्मच कर दिन में सीधे भी खाया जा सकता है। मेथी के बीज को पानी में भिंगोकर दिन में दो से तीन बार लिया जा सकता है।
शतावरी - Shatavari
यह आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी माताओं में दूध की कमी को दूर करने में बेहद प्रभावी है क्योंकि यह शरीर में हार्मोनल संतुलन को नियंत्रित और संतुलित बनाये रखता है। इसे पानी में मिलाकर लिया जा सकता है।
दालचीनी - Cinnamon
रसोईघरों में आमतौर पर दालचीनी पाया जाता है। दूध बढ़ाने में यह बेहद प्रभावी है। एक - दो महीने के सेवन में ही अंतर साफ-साफ देखा जा सकता है। इसके चूर्ण को पानी के साथ मिलाकर आसानी से लिया जा सकता है।
जीरा - Cumin seeds
दूध कम होने की समस्या में जीरा भी बेहद कारगर है। यह भी सभी रसोईघर में अमूमन पाया ही जाता है। दूध कम बनने की समस्या से जूझ रही माताएं सोने के पहले गर्म दूध के साथ जीरा मिलाकर पी सकती हैं। चाहे तो थोड़ी चीनी भी मिला सकती है।
लहसुन और अदरक - Garlic and Ginger
दैनिक आहार में अदरक और लहसुन को शामिल करने से भी काफी फायदा होता है और यह समस्या उत्पन्न ही नहीं होती।
मोटी सौंफ (Anise) -
शहद और पानी के साथ मोटी सौंफ को भिंगोना चाहिए और इस पानी को दिनभर में दो-तीन कप लिया जा सकता है। इसमें न केवल एस्ट्रोजन गुण होते हैं बल्कि प्रवाह को बढ़ाने के लिए अवरुद्ध दूध नलिकाएं भी साफ होती हैं।
सहजन - Drumsticks
एक महीने तक रोजाना आधा गिलास दूध के साथ सहजन के रस का सेवन भी एक प्रभावी इलाज है।
तुलसी - Basil
तुलसी के 5-6 पत्तों को 2 मिनट तक उबालें और लगभग 5 मिनट तक यूँ ही छोड़ दे। फिर इस पानी में शहद मिलाकर पीएं। इसे कुछ महीनों तक दिन में दो बार लिया जा सकता है। इससे फायदा होगा।
मसूरदाल - Massordaal
एक चुटकी नमक और एक चम्मच घी के साथ मसूर दाल का नियमित सेवन भी उपयोगी सिद्ध होता है।
गाजर और बीट्स - Carrots and Beets
स्तनपान कराने वाली माँ के आहार में गाजर और बीट सलाद का समावेश काफी मददगार सिद्ध होता है।
बादाम - Almonds
प्रतिदिन 5 से 6 बादाम के सेवन से भी काफी फायदा होता है। इसके लिए बादाम को रात में ही पानी में फूलने के लिए डाल देना चाहिए और सुबह पानी से छानकर खा लेना चाहिए। यह एक सरल और बेहतरीन आयुर्वेदिक उपाय है।
आयुर्वेद के इन आहार को अपने डायट चार्ट में शामिल करने के साथ-साथ सक्रिय जीवनशैली को अपनाना भी बेहद आवश्यक है, तभी ज्यादा अच्छे परिणाम निकलते हैं। पर इसके लिए जरुरी नहीं है कि बहुत भारी-भरकम कसरत की जाए। हालाँकि इसका कोई नुकसान नहीं है, लेकिन इसे आदर्श नहीं माना जाता। भारी कसरत की बजाए योग, पिलेट्स और एरोबिक्स जैसे व्यायाम करना ज्यादा सही है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है, अपने-आप को हाइड्रेट रखना। इसके लिए खूब पानी और तरल पदार्थ का सेवन करते रहना चाहिए.
(मूलतः अमर उजाला अखबार में प्रकाशित)
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