अहमदाबाद. गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में आगामी फरवरी में 'वर्ल्ड आयुर्वेद कांफ्रेंस' का आयोजन किया जा रहा है. यह कांफ्रेंस 15,16 और 17 फरवरी को होगा. आयोजन का मुख्य उद्देश्य आयुर्वेद को बढ़ावा देना और खासकर युवाओं में इसे लेकर जागरूकता पैदा करना है ताकि वे दिन-प्रतिदिन के जीवन में भी इसका उपयोग करे और प्राकृतिक तरीके से स्वस्थ और प्रसन्न रह सके.
सम्मेलन का दूसरा उद्देश्य आयुर्वेद बिरादरी के शोधकर्ताओं, शिक्षकों, चिकित्सकों, दवा निर्माताओं, आयुर्वेद से जुड़े व्यापारियों को एक साथ एक मंच पर लाना है। सम्मेलन के दौरान कई चिकित्सकों को सम्मानित भी किया जाएगा.
आयुर्वेद के लिए समर्पित निरोगस्ट्रीट 'वर्ल्ड आयुर्वेद कांफ्रेंस' का डिजिटल पार्टनर है. नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके कार्यक्रम का रजिस्ट्रेशन और कार्यक्रम की पूरी रूपरेखा की जानकारी आप ले सकते हैं.
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उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय का 2019 का कैलेंडर जारी - उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय ने नए साल पर अकादमिक कैलेंडर जारी कर दिया है। इसके तहत यूजी और पीजी के दाखिले अक्तूबर में होंगे। इसके अलावा परीक्षा के महीने आदि की जानकारी भी जारी की गई है।
आयुर्वेद विवि के प्रभारी कुलसचिव डॉ. राजेश कुमार के मुताबिक यूजी प्रथम से तृतीय वर्ष तक के छात्रों के दाखिले अक्तूबर 2019, कक्षाएं एक नंवबर से शुरू होंगी। टर्मिनल एग्जाम 30 अप्रैल से और वार्षिक परीक्षाएं 20 अक्तूबर से होंगी। इसके बाद सप्लीमेंट्री एग्जाम 30 अप्रैल से होंगे। चतुर्थ वर्ष के छात्रों के टर्मिनल एग्जाम 20 अक्तूबर से, वार्षिक परीक्षाएं 30 अप्रैल से और सप्लीमेंट्री एग्जाम 22 जुलाई से होंगे।
पीजी के छात्रों के दाखिले अक्तूबर में, कक्षाएं एक नवंबर से होंगी। प्रथम वर्ष की परीक्षाएं 20 अक्तूबर से, सप्लीमेंट्री एग्जाम चार फरवरी से और फाइनल ईयर की परीक्षाएं 20 अक्तूबर से होंगी। विवि का वार्षिक खेल एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम 9 से 14 दिसंबर तक होगा।
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(मूलस्रोत -अमर उजाला)
जोधपुर संभाग में स्वाइन फ्लू पैर पसार रहा है. जांच में 20- 25 लोग रोजाना इस बीमारी के पॉजिटिव पाए जा रहे हैं. लोगोंं में स्वाइन फ्लू बीमारी को लेकर डर बैठ गया है. ऐसे में चिकित्सा विभाग गांव-गांव और गली-गली सर्वे कराकर संभावित रोगियों की तलाश कर रहा है, स्वाइन फ्लू के खिलाफ लड़ाई में आयुर्वेद विभाग भी पीछे नहींं है. आयुर्वेद विभाग के संभाग के सबसे बड़े अस्पताल खांडा फलसा चिकित्सालय में लोगोंं को रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला काढ़ा पिलाया जा रहा है, ताकि यह बीमारी संभावित रोगी को अपनी चपेट में ले ही नहीं पाए.
(मूलस्रोत - न्यूज़18)
आयुर्वेद द्वारा मातृ एवं शिशु परिरक्षा पर परिचर्चा
महात्मा गांधी आयुर्वेद चिकित्सा महाविद्यालय वर्धा, महाराष्ट्र में राष्ट्रीय सेमिनार 'वात्सल्यम' का आयोजन किया गया था। इसमें आयुर्वेद द्वारा मातृ एवं शिशु परिरक्षा पर परिचर्चा तथा विभिन्न प्रतियोगिताएं हुई। इसमें राजीव लोचन आयुर्वेद चिकित्सा महाविद्यालय अंडा के छात्रों में भाग लेकर उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।
प्रतियोगिताओं का आयोजन
आयोजित कार्यक्रम में राजीव लोचन आयुर्वेद चिकित्सा महाविद्यालय की डॉ. रूमीना खान, असिस्टेंट प्रोफेसर, प्रसूति तंत्र विभाग के मार्गदर्शन में बीएएमएस तृतीय व्यावसायिक पाठ्यक्रम की छात्र-छात्राएं कुमार विक्रम साहू, हेमपुष्पा साहू, हिमानी वर्मा, निशि त्रिपाठी, सुनंदा चतुर्वेदी तथा शारदा उपाध्याय ने सेमिनार में विभिन्ना प्रतियोगिताओं में भाग लिया।
सेमिनार में आयोजित गर्भीणी परिचर्या विषय पर वाद विवाद प्रतियोगिता में कुमार विक्रम साहू, हेमपुष्पा साहू तथा शारदा उपाध्याय का गु्रप द्वितीय स्थान पर रहा तथा कुमार विक्रम साहू को ग्रुप में उत्कृष्ट वक्ता चुना गया। इसी प्रकार सेमिनार में आयोजित पोस्टर प्रतियोगिता में सुनंदा चतुर्वेदी को प्रथम स्थान प्राप्त हुआ।
छात्र-छात्राओं ने प्रसूति तंत्र विभाग एवं महाविद्यालय से प्राप्त मार्गदर्शन को इस उपलब्धि का श्रेय दिया। प्राचार्या डॉ. वंदना फटिंग ने छात्र-छात्राओं की इस उपलब्धि पर खुशी जाहिर की है।
(मूलस्रोत - नयी दुनिया )
आयुर्वेद चिकित्सा और औषधियों का लोहा अब पूरी दुनिया मान रही है लेकिन आम जन में अब भी ये भ्रान्ति है कि आयुर्वेद दवाइयों का असर बहुत धीमे-धीमे होता है. आयुर्वेद के बारे में यह भ्रांति चाहे जैसे भी फैली हो, बिलकुल गलत है. आयुर्वेद असर के मामले में भी सबसे तेज है. आयुर्वेद में ऐसी बहुत सारी दवाइयाँ है जिसका असर तेजी से होता है. इस बारे में डॉ. अभिषेक गुप्ता का यह लेख काफी कुछ स्पष्ट करता है-
सबसे तेज आयुर्वेद : आयुर्वेद में ऐसे अनगिनत योग हैं जो रोग पर तेजी से असर करते हैं
आयुर्वेद के विषय में सामान्यतया ये धारणा है कि इसकी औषधियों का प्रभाव रोग पर होता तो है लेकिन थोड़ा धीरे-धीरे होता है जबकि सच्चाई यह है कि आयुर्वेद में ऐसे अनगिनत योग हैं जो रोग पर तेजी से असर करते हैं. रोग पर औषधि का असर रोग की अवधि से होता है अर्थात यदि किसी व्यक्ति का रोग 3-5 दिन पुराना है तो इसका रोग में लाभ भी 3-5 दिन में ठीक हो जाता है. इसी प्रकार किसी व्यक्ति का कोई रोग कई वर्ष कई वर्षों से तो कैसे उनको 2-3 दिन में लाभ पहुंचाया जा सकता है? इसके लिए चाहे कोई भी चिकित्सा पद्धति क्यों न हो उसके प्रयोग के बाद औषधियों का असर आने में थोड़ा समय तो लगेगा ही. आयुर्वेद की औषधियों की एक विशेषता ये है कि इसकी औषधियों का दुष्प्रभाव नगण्य होता है व रोग का समूल नाश संभव है. आयुर्वेद चिकित्सा की इन्हीं विशेषताओं को इस लेख के माध्यम से रेखांकित करने की कोशिश है. इस संदर्भ में नीचे कुछ औषधियों के नाम दिया गया है जिनका प्रभाव तेजी से और सफलतापूर्वक होता है.
बसंतकुमार रस (Basant Kumar Ras)
यह हृदय के लिए लाभदायक होता है और साथ ही बलवर्धक भी है. यह रस स्वर्ण, मोती, अभ्रक, रससिन्दू आदि बलवर्धक औषध द्रव्यों के संयोग से मिलकर तैयार होता है. इसका प्रभाव मधुमेह, प्रमेह, श्वेत प्रदर, हृदय, फेफड़ों के रोग व् शुक्र से संबंधित विकारों में होता है. हृदय की कमजोरी, मस्तिष्क निर्बलता, नींद न आना, खून की कमी, क्षय रोग व जरा (बुढ़ापा) अवस्था में इसका प्रयोग विशेष लाभकारी है. मधुमेह रोग की यह प्रसिद्द औषधि है. किसी प्रकार के रक्तस्त्राव में इसका प्रयोग अनार शरबत, दाड़िमावलेह, आंवला मुरब्बा या गुलकंद के साथ देने पर शीघ्र लाभ होता है. अत्यधिक रक्तस्त्राव में भी यह विशेष लाभदायक है. जिन लोगों का रक्त देर से जमता है या बी.टी. (ब्लीडिंग टाइम), पी.टी. (प्रोथाम्बिन टाइम) व आइएनआर रेशियो ( inr ratio) अधिक होता है ऐसी अवस्था में रक्त को गाढ़ा करने के लिए वसंतकुसुमाकर रस बहुत लाभकारी है. इन्द्रियों की शक्ति बढ़ाने, रस रक्तादी धातुओं की वृद्धि कर हृदय, मस्तिष्क को बल प्रदान करने, शारीरिक कांति बढ़ाने में , शुक्र और ओज को बढाकर यह रसायन स्वास्थ्य को स्थिर करता है.
त्रिवंग भस्म (Trivang Bhasma)
यह भस्म तीन भस्मों से मिलाकर तैयार होती है. शुद्ध नाग, शुद्ध वंग व शुद्ध यशद को समान मात्रा में लेकर इस भस्म को तैयार किया जाता है. मूत्रवह स्रोतस से संबंधित रोगों में इस भष्म के प्रयोग से विशेष लाभ होता है. यह भष्म विशेषकर मूत्रवाहिनी नली पर असर करती है. प्रमेह विकार में त्रिवंग भस्म का बहुत अच्छा प्रभाव होता है. वैसे तो मधुमेह में सिर्फ नाग भष्म का प्रयोग लाभदायक होता है किन्तु जिन मधुमेह रोगियों में सन्धि स्थानों (जोड़ों) में दर्द, मन्दाग्नि शारीरिक कमजोरी, प्रमेह पीड़िकायें जैसे समस्याएं हो उनमें त्रिवंग भस्म बहुत लाभ करती है. यह भस्म वीर्यवर्धक है जिन स्त्रियों में गर्भधारण शक्ति कमजोर हो या गर्भ न ठहरता हो ऐसी स्थिति में यह भष्म विशेष लाभकारी है. श्वेतप्रदर में भी यह भष्म विशेष लाभकारी है.
शिलाजीत (Shilajit)
शिलाजीत के विषय में एक भ्रांति है कि इसका प्रयोग मर्दाना कमजोरी में करना चाहिए. कुछ औषधि निर्माता फार्मेसी अपने व्यवसाय व इस उत्पाद की बिक्री को बढ़ाने के लिए ऐसा भ्रामक प्रचार करते हैं जबकि सच्चाई ये है कि शिलाजीत बहुत ही उन्नत किस्म का रसायन है जिसका प्रयोग शरीर के नाड़ी दौर्बल्य व मधुमेह / प्रमेह ( डायबिटीज) के रोगों में अमृत तुल्य है. मधुमेह के रोगी यह शिकायत करते हैं कि उन्हें शारीरिक थकान महसूस होती है या पैरों में जलन या सूनापन रहता है. ऐसे रोगियों में शिलाजीत का प्रयोग गिलोय सत्व, जामुन गुठली चूर्ण व हरिद्रा के साथ करने पर विशेष लाभ होता है. कुछ रोगियों में शिलाजीत के प्रयोग से अतिसार या पेट में जलन पैदा हो जाता है. ऐसे रोगियों में इसका प्रयोग अल्प मात्रा में शाम के समय दूध के साथ करना चाहिए.
अर्जुनारिष्ट (Arjunarishta)
अर्जुनारिष्ट का प्रयोग हृदय से संबंधित रोगों में विशेष लाभकारी है . इसका लाभ बढे हुए ब्लड प्रेशर में भी मिलता है. जिन हृदय रोगियों को घबराहट, बेचैनी, मुंह सूखना, शरीर में पसीना आना, नींद कम आना, अनियमित रक्तचाप की समस्या रहती है ऐसे ह्रदय रोगियों में इसका प्रयोग विशेष लाभदायक होता है.
अकीक पिष्टी (Akik pishti)
अकीक एक प्रकार का खनिज पत्थर है. यह पिष्टी ह्रदय और मस्तिष्क को बल देने तथा वात पित्त शामक होती है, यह यकृत से संबंधित विकारों में भी लाभदायक होती है. इसके अतिरिक्त यह वातजन्य उन्माद, मूर्छा, सभी प्रकार के रक्तस्त्राव, व्रण, अश्मरी को नष्ट करने में समर्थ हैं. ये नेत्रों की ज्योति को बढ़ाने में भी सहायक है. अकीक के ब्राह्य या आभायान्तर प्रयोग से ह्रदय रोग से पीड़ित रोगियों को विशेष लाभ मिलता है. कुछ वैद्य ह्रदय रोगियों अकीक का लाकेट बनाकर भी पहनाते हैं. अकीक का ह्रदय क्षेत्र पर लेपन ह्रदय रोगियों के लिए बहुत लाभदायक होता है. हाई कोलेस्ट्रोल के रोगियों में इसके प्रयोग से सफल परिणाम मिलते हैं.
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कुंभ मेले में निःशुल्क आयुर्वेद चिकित्सा की व्यवस्था, 14 अस्पताल बनाने की तैयारी
प्रयागराज. कुंभ मेला में आने वाले लोगों के लिए अबकी निःशुल्क आयुर्वेद चिकित्सा की व्यवस्था सरकार की तरफ से की गयी है. इसके लिए सरकार के तरफ से चल रही तैयारियों के तहत वहां 14 अस्थायी अस्पतालों को बनाने की योजना है. खबर के मुताबिक़ मेले में आयुष चिकित्सा पद्धति के 8 बेड का एक मुख्य अस्पताल और 14 अन्य अस्पताल बनाए जा रहे हैं. इन अस्पतालों में इलाज के साथ-साथ योगाभ्यास भी कराया जाएगा. इसके साथ-साथ चलते-फिरते एक अस्पताल की भी व्यवस्था की गयी है जो पूरे मेले में घूमती रहेगी और जरुरतमंदों को आयुर्वेद चिकित्सकीय परामर्श और औषधी प्रदान करेगी. गौरतलब है कि आयुर्वेद चिकित्सा को लेकर इतने बड़े पैमाने पर पहले कभी व्यवस्था नहीं की गयी थी.
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