2019 में जब कोरोना वायरस ने हर जगह अपने पैर पसारे तो सारी दुनिया में एक भयावह स्थिति बन गयी। किसी दवाई या वैक्सीन का उपलब्ध न होना भी लोगों को डरा रहा था। ऐसे में डाक्टर्स का कहना था कि अपनी इम्युनिटी को बढाना ही एकमात्र उपाय है। उस समय भारत की हज़ारों वर्ष पुरानी चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद ने लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। भारत में कम मृत्यु दर की एक बडी वजह यह भी रही कि लोगों ने समय रहते आयुर्वेद के सिद्धांतों को अपनाया। इसी कारण और देशो की तुलना में यहाँ इम्युनिटी बढ गयी और रिकवरी रेट 95% से भी अधिक रहा। तो आइये समझते हैं आखिर क्या है इम्युनिटी तथा कौन से कारक इसे स्वाभाविक रूप से प्रभावित करते हैं?
इम्युनिटी क्या है?- What is Immunity
आयुर्वेद का प्रयोजन स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना तथा बीमार व्यक्ति की व्याधि का नाश करना है। यहाँ व्यक्ति को स्वस्थ रखने की बात पहले कही गयी है। इसे देख कर अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि आयुर्वेद में इम्युनिटी या प्रतिरक्षा सिद्धांत का कितना महत्व है।
आयुर्वेद में प्रतिरक्षा के सिद्धांत को कई विषयों के अंतर्गत बताया गया है जैसे बल, ओज और व्याधि क्षमत्व।
बल का तात्पर्य है शरीर के विभिन्न तंत्रो की खुद ही पोषण करने और ठीक करने की क्षमता और रोग की रोकथाम में प्रभावी होने की क्षमता, जबकि व्याधि क्षमत्व रोग पैदा करने वाले रोगजनकों(पैथोजन) से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली की क्षमता है। बल शरीर के कार्यों, ऊतकों, पाचन और उत्सर्जन तंत्र के समग्र संतुलन से आता है, जबकि रोगजनक जीवों के संपर्क में आने के बाद विशुद्ध रूप से हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली के शरीर का बचाव कार्य करती है।
हमारे शरीर के पोषण के लिये होने वाली चयापचय प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप अंत में ओज का निर्माण होता है। ओज को हमारे द्वारा ग्रहण किए जाने वाले भोजन का सार माना जाता है, और व्यक्ति में अच्छे ओज का स्तर उचित पोषण का परिचायक है। ओज को शरीर की सात धातुओ( रस, रक्त, मास, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र) का सार माना गया है। हमारा प्रतिरक्षा तंत्र मुख्यतः पाचन तंत्र से संबंधित है। ओज का सिद्धांत पाचन और प्रतिरक्षा के बीच सीधा संबंध स्थापित करता है। ओज का कार्य केवल रोग प्रतिरोधक के रूप में ही नहीं है, बल्कि यह प्रतिकूल शारीरिक, मानसिक या पर्यावरणीय परिवर्तन में भी सहायक है तथा व्यक्ति को बीमार नहीं होने देता।
व्याधिक्षमत्व शब्द दो शब्दों से बना है: व्याधि (रोग) और क्षमत्व (दूर करना)।
आयुर्वेद के अनुसार, व्याधि तब उत्पन्न होती है जब दोष(वात, पित्त और कफ), धातू(ऊतक प्रणाली) और मल (शरीर के उत्सर्जन उत्पाद) के बीच संतुलन नहीं रहता। क्षमत्व से तात्पर्य है, व्याधि को शांत करना या उसका विरोध करना। अतः व्याधिक्षमत्व का अर्थ है रोग को उत्पन्न होने से रोकना और जीवाणुओ का विरोध करना। आयुर्वेद में इसकी व्याख्या निम्न प्रकार भी की गई:
व्याधि-बलविरोधित्वम्: यह रोगों के बल(गंभीरता) को नियंत्रित करने या उनका सामना करने की क्षमता है यानी रोग की प्रगति को रोकता है।
व्याधि-उत्पादक प्रतिबंधकत्त्व: शरीर की प्रतिरोधक क्षमता जो रोग की उत्पत्ति और पुन: उत्पत्ति को रोकती है। ये दोनों ही मिल कर शरीर में प्रतिरक्षा तंत्र कहलाते हैं।
इम्युनिटी के प्रकार- Types of Immunity
आयुर्वेद में तीन प्रकार की इम्युनिटी बताई गई हैं:
सहज: जन्मजात या प्राकृतिक
सहज बल माता-पिता द्वारा बच्चों में आता है। जैसा कि आज कल देखा जाता है कि कुछ बच्चों में विभिन्न प्रकार की एलर्जी देखी जाती हैं। यह गुण उनमें पूर्वजों द्वारा आते हैं। आयुर्वेद में बताया गया है कि यह गुण सूत्र के स्तर से ही शुरु हो जाता है। यदि माता-पिता का स्वास्थ्य अच्छा होगा तो बच्चों का स्वास्थ्य भी अच्छा होगा, परंतु यदि उनमें ही बीमारियाँ होंगी तो वे बीमारियाँ पीढी दर पीढी भी चल सकती हैं यथा डायबिटीज़।
कालज
कालज बल दिन के समय, मौसम, आयु और जन्म स्थान जैसे कारकों पर आधारित है, ये प्रतिरक्षा को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण कारक हैं। जैसे वयस्कों में अधिक आयु वालो की तुलना में अधिक बल होता है। इसी तरह हेमंत ऋतु में ग्रीष्म ऋतु की तुलना में अधिक बल होता है। ऐसे स्थान जहां पानी, तालाब आदि अधिक हो और सुखद वातावरण हो, ये कफकारक स्थान होते हैं जहां प्राकृतिक रूप से अधिक इम्युनिटी होती है।
युक्तिकृत
यह वो इम्युनिटी है जो व्यक्ति जन्म के बाद अर्जित करता है। आयुर्वेद में इसके लिये विभिन्न सुझाव दिये गये हैं जैसे व्यायाम, सात्म्य एवम रसायनों (जडी-बूटियो) का प्रयोग।
शरीर में बल बढाने वाले कारक- Body Boosting Factors
ऐसे देश में जन्म लेना जहां प्राकृतिक रूप से लोग बलशाली हो।
शिशिर और हेमंत ऋतु में जन्म होना जब स्वाभाविक रूप से बल बढ जाता है।
सुखद और अनुकूल जलवायु का होना।
बीज के गुण अर्थात शुक्राणु और डिंब उत्कृष्ट हो और माँ के गर्भाशय की उचित शारीरिक स्थिति में उत्कृष्टता।
ग्रहण किया गया भोजन शरीर के रख-रखाव के लिए उत्तम हो।
शारीरिक संगठन उत्तम होना।
मन की उत्कृष्टता।
व्यक्ति की प्रकृति का उत्तम होना।
माता-पिता दोनों की कम उम्र यानी कि उनकी आयु अधिक नहीं होनी चाहिए।
नियमित व्यायाम का अभ्यास करना।
हंसमुख स्वभाव और एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सद्भाव की भावना।
ये सभी गुण जिन लोगों में पाये जाते हैं, वे स्वाभाविक रूप से कम बीमार होते हैं। उनकी व्याधि क्षमत्व कि शक्ति या इम्युनिटी अधिक होती है।
आपने अकसर ऐसे लोगों को देखा होगा जो ज़रा से मौसम के बदलाव से भी बीमार हो जाते हैं, जबकि कुछ लोग उसी वातावरण में रह कर भी बीमार नहीं होते। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि कुछ लोगों की इम्युनिटी बाकी लोगों के मुकाबले में बेहतर होती है। कम इम्युनिटी के कारण भिन्न बीमारियाँ जैसे इंफेक्शन, आटो-इम्यून विकार एवं विभिन्न एलर्जी होने का खतरा बढ जाता है। आखिर ऐसे कौन से कारण हैं जो उन लोगों की इम्युनिटी बेहतर बनाते हैं और ऐसे कौन से कारण हैं जो इम्युनिटी कम करने के लिये ज़िम्मेदार हैं। तो आइये समझते हैं इम्युनिटी कम या ज़्यादा होने के कारण तथा इसके लक्षण।
इम्युनिटी कम होने के कारण- Causes of Lacking Immunity
आयुर्वेद में नौ कारकों का उल्लेख किया गया है जो शरीर की रोगों से लडने की क्षमता को कम करता है अर्थात् प्रतिरक्षा तंत्र को कमज़ोर करने के लिए जिम्मेदार है:
अति-स्थूल (अत्यधिक मोटे व्यक्ति)
अति-कृश (अत्यधिक दुबले-पतले व्यक्ति)
अनिविस्ट-मास (व्यक्ति का शरीर ठीक से मांसल न होना)
अनिविस्ट-अस्थि (दोषपूर्ण अस्थि ऊतक वाले व्यक्ति)
अनिविस्ट-शोणित (दोषपूर्ण रक्त होना)
दुर्बल (कमजोर व्यक्ति)
असात्म्य-आहारोपाचिता (ऐसे व्यक्ति जिनका पोषण सही भोजन द्वारा न हुआ हो)
अल्प-आहारोपाचिता (अल्प मात्रा में आहार लेने वाले)
अल्प-सत्त्व (कमज़ोर दिमाग वाले व्यक्ति)
ओज की हानि क्रोध, भूख, चिंता, दु: ख और अत्यधिक परिश्रम आदि से भी होती है। ये सभी मनुष्य की प्रतिरक्षा प्रणाली को कम करते हैं। इसके अलावा सबसे आम कारणों में कुपोषण, सफाई की कमी होना और कई तरह के वायरस संक्रमण (जैसे एचआईवी) शामिल हैं। अन्य कारणों में वृद्धावस्था, दवाएं (जैसे कोर्टिसोन, साइटोस्टैटिक ड्रग्स), रेडियोथेरेपी, सर्जरी के बाद तनाव और अस्थि मज्जा के घातक ट्यूमर भी शामिल हैं।
अच्छी इम्युनिटी होने के कारण- Causes of Good Immunity
कुछ कारण ऐसे होते हैं जो व्यक्ति में प्राकृतिक रूप से अधिक इम्युनिटी के लिये ज़िम्मेदार होते हैं। ऐसे व्यक्ति असात्म्य आहार-विहार के बाद भी इतनी जल्दी बीमार नहीं होते। निम्न कारक अच्छी इम्युनिटी के लिये ज़िम्मेदार हैं:
माता के गर्भाशय का स्वस्थ होना: जैसे अच्छी खेती के लिये भूमि तथा मिट्टी का उपजाऊ होना आवश्यक है, उसी प्रकार माता के गर्भाशय का स्वास्थ्य अच्छा होना भी बच्चे के सही से बढने के लिये आवश्यक है। ऐसे बच्चों के बीमार पडने की सम्भावना कम होती है।
जन्म के पश्चात पोषण: बचपन से ही समय पर सही मात्रा में पोषण होना भी इम्युनिटी को बढाने में सहायक है। जैसे जन्म से लेकर छः माह तक सिर्फ माँ का दूध पिलाने की सलाह दी जाती है, यह बच्चे में बीमारियों से लडने की क्षमता का विकास करता है।
व्यक्ति की प्रकृति: आम तौर पर कफ प्रकृति के व्यक्तियों का प्रतिरक्षा तंत्र वातिक और पैत्तिक प्रकृति के लोगों की तुलना में मजबूत होता है। सामान्य अवस्था में कफ को बल और ओज माना जाता है जबकि असामान्य अवस्था में यह मल और व्याधि उत्पन्न करता है। सामान्यतः कफ का कार्य ओज के समान है। सामान्य अवस्था में कफ स्थिरता, भारीपन, पौरुष, प्रतिरक्षा, प्रतिरोध, साहस और धैर्य प्रदान करता है।
देहाग्नि या जठराग्नि: पेट की पाचन शक्ति त्वचा की चमक, शक्ति, स्वास्थ्य, उत्साह, कोमलता, रंग, ओज, शरीर के तेज और प्राण या जीवन शक्ति के लिये ज़िम्मेदार है। पाचन शक्ति सही होने से व्यक्ति को लंबी उम्र जीने में मदद मिलती है और कमज़ोर पाचन शक्ति बीमारियों को जन्म देती है। पाचन अग्नि मानव शरीर में पोषक तत्वों को पचाने, आत्मसात करने और अवशोषित करने में शरीर की मदद करता है तथा प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करता है।
मनः स्थिति: जीवन के प्रति सकारात्मक सोच का होना बहुत महत्वपूर्ण है। यह मजबूत मानसिक शक्ति को दर्शाता है तथा निश्चित रूप से अच्छी इम्युनिटी में सहायक है।
ध्यान लगाना: मन को आध्यात्मिक रूप से एक ही जगह लगाने से आत्म-जागरूकता और सकारात्मक सोच आती है, जिससे मानसिक शक्ति और इम्युनिटी में वृद्धि होती है।
प्रतिरक्षा तंत्र कमज़ोर होने के लक्षण- Symptoms of Weakened Immune System
हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली या इम्यून सिस्टम कीटाणुओं और जीवाणुओं के खिलाफ लडती है जो की बीमारियों का कारण बन सकते हैं। हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को स्वस्थ और संतुलित रखना व्याधि मुक्त जीवन शैली के लिए महत्वपूर्ण है। किंतु हमारा इम्यून सिस्टम कमज़ोर हो तो हमें कैसे पता लगेगा? निम्न कुछ लक्षण कमज़ोर इम्यून सिस्टम की ओर इशारा करते हैं:
बार-बार संक्रमण: यदि आपका प्रतिरक्षा तंत्र कमज़ोर है तो आप सामान्य प्रतिरक्षा प्रणाली वाले किसी व्यक्ति की तुलना में अधिक, लगातार, लंबे समय तक चलने वाले संक्रमण का शिकार हो सकते हैं।
थकान: थकान कमज़ोर प्रतिरक्षा तंत्र के प्रमुख लक्षणों में से एक है। अगर आप लगातार थकावट महसूस कर रहे हैं या आप आसानी से थक जाते हैं, तो हो सकता है कि आपका इम्यून सिस्टम ठीक नहीं है। ज़्यादा या कम कोर्टिसोल का स्तर आपके प्रतिरक्षा प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, जिससे थकान होती है। कुछ ऑटोइम्यून बीमारियों से भी थकान होती है।
ठंड और गले में खराश: यदि आपको बार-बार सर्दी-ज़ुकाम होती है, आप ठंड के प्रति संवेदनशील हैं और बार-बार गले में खराश होती है, तो यह कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली की ओर इशारा करता है।
एलर्जी: एलर्जी तब होती है जब आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली धूल, पराग जैसे हानिरहित पदार्थों के प्रति असामान्य रूप से प्रतिक्रिया करती है। यदि आप घरघराहट, खुजली, बहती नाक, आंखों से पानी आना या खुजली होने का अनुभव करते हैं, तो इसका मतलब है कि आपकी इम्युनिटी कमज़ोर हो रही है।
चोट लगने पर उनका घाव जल्दी न भरना: हमारी त्वचा वायरस और बैक्टीरिया के खिलाफ सबसे पहले रक्षा करती है। यदि प्रतिरक्षा प्रणाली कमज़ोर है, तो घाव पर बैक्टीरिया संक्रमण होना आसान हो जाता है और उस घाव को भरना मुश्किल हो जाता है।
कब्ज़, दस्त या पेट में दर्द होना: जब आंत के बैक्टीरिया संतुलित होते हैं, तो आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली भी संतुलित रहती है। परन्तु यदि आप बार-बार दस्त, पेट में संक्रमण और मतली जैसी पाचन समस्याओं से पीड़ित हैं, तो यह संकेत है कि आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर है।
रक्ताल्पता या एनीमिया: एनीमिया एक ऐसी स्थिति है जहां लाल रक्त कोशिकाओं या हीमोग्लोबिन में कमी होती है। कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली कभी-कभी लाल रक्त कोशिकाओं को नष्ट कर देती है, जिससे एनीमिया हो सकता है। इससे थका हुआ महसूस करना, कमजोरी, सांस की तकलीफ या व्यायाम करने की क्षमता का कम होना जैसे लक्षण आ सकते हैं।
जोड़ों का दर्द: जोडो में दर्द इम्यून सिस्टम में असंतुलन का एक परिणाम हो सकता है। जब प्रतिरक्षा प्रणाली कमज़ोर होती है, तो गठिया, संधिशोथ जैसी स्थितियां होती हैं। यह रुमेटाइड आर्थरायटिस जैसे ऑटोइम्यून रोगों को ट्रिगर कर सकता है, जिसमें प्रतिरक्षा प्रणाली स्वस्थ ऊतक पर हमला करती है। इसमें जोडो की सूजन, लालिमा, गर्मी, कठोरता, दर्द और बुखार जैसे लक्षण आते हैं।
इन लक्षणों के अलावा ऐसे व्यक्ति में झल्लाहट, दुर्बलता, बिना कारण चिंता, असुविधा महसूस करना, त्वचा का रंग खराब होना और त्वचा का सूखापन आदि लक्षण पाये जाते हैं।
कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों के स्वास्थ्य के लिए क्या किया जा सकता है?- What can be done for the health of people with weakened immune systems?
यदि आप या आपके आस-पास किसी व्यक्ति की इम्युनिटी कमज़ोर है, तो ऐसे में स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। इसके लिये निम्न कुछ उपाय अपनाये जा सकते हैं:
ऐसे व्यक्तियों को साफ-सफाई का बहुत ध्यान रखना चाहिये। प्रतिदिन नहाना, बार-बार हाथ धोना, घर की सतहों को साफ रखना चाहिये।
जितना संभव हो सके बीमार लोगों के साथ संपर्क सीमित करें। वायरस या बैक्टीरिया एक-दूसरे के संपर्क में आने से फैल सकते हैं। इसलिये बेहतर है कि निश्चित दूरी बना कर रहेँ।
तनाव से बचें। विभिन्न शोध में ये बात सामने आई है कि तनाव व्यक्ति के इम्यून सिस्टम पर बुरा प्रभाव डालता है। ऐसे व्यक्ति अधिक बीमार होते हैं। इसी लिये व्यक्ति को तनाव दूर करने के लिए अपने जीवन में योग, मेडिटेशन तथा मन-पसंद रुचियों को शामिल करना चाहिये। सोशल मीडिया से थोडी दूरी बना के रहे व परिवार तथा दोस्तों के साथ वक़्त बिताएँ।
घर का बना शुद्ध भोजन करें। अधिक से अधिक फलो तथा सब्जियों को अपने भोजन में शामिल करें। सभी चीजो को धो कर ही खाये। फ्रीज़ किये गये पदार्थ, डिब्बा बंद खाने न खाये। सही से न पका हुआ मीट, मछली खाने से परहेज़ करें।
नियमित रूप से व्यायाम करें। यह शरीर में एंडोर्फिन्स का स्राव कराता है जो तनाव का स्तर भी कम करता है। परंतु अपनी शक्ति से अधिक व्यायाम न करें।
प्रत्येक दिन 7-8 घंटे की नींद आवश्यक रूप से लें। ठीक से नींद न लेना भी आपकी इम्युनिटी को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है।
अतः ये कुछ उपाय अपना कर आप भी बीमारियों से मुक्त एक स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।
संदर्भ:
अष्टांग हृदयम् १ / त्रिपाठी ब्रह्मानंद; चौखम्बा संस्कृत प्रतिष्ठान, दिल्ली, प्रथम संस्करण।
चरक संहिता, त्रिपाठी ब्रह्मानंद, चौखम्बा प्रकाशन, वाराणसी, प्रथम संस्करण।
सुश्रुत संहिता; घनेकर भास्कर; मेहरचंद लछमणदास प्रकाशन, नई दिल्ली।
चरक संहिता (चक्रपाणिदत्त द्वारा आयुर्वेद दीपिका टीका) यादवजी त्रिकमजी, संपादक-वाराणसी: चौखम्भा सुरभारती प्रकाशन।
एम.के. शर्मा- व्याधिमक्षत्व की अवधारणा और बल के साथ इसका संबंध।
चरक संहिता (विद्योतिनी हिंदी टीका), भाग- I काशीनाथ शास्त्री, गोरखा नाथ चतुर्वेदी, संपादक-वाराणसी: चौखम्भा भारती अकादमी।
अस्थमा या दमा : Asthma in Hindi
क्या आपको खांसी, घरघराहट, सीने में जकड़न, सांस की तकलीफ और सीने में दर्द जैसे लक्षण हैं? तो संभव है कि आप अस्थमा से पीड़ित हैं। दुनिया भर में 300 मिलियन रोगियों के साथ अस्थमा दुनिया में सबसे ज़्यादा होने वाले गैर-संचारी रोगों में से एक है। यह बीमारी बच्चों में भी बढ़ी है।
आयुर्वेद में, ब्रोन्कियल अस्थमा को तमक श्वास के रूप में जाना जाता है। यह व्याधि व्यक्ति के फेफडो को प्रभावित करती है। लेकिन जीवनशैली में कुछ बदलाव और आयुर्वेदिक उपचार से अस्थमा का निवारण हो सकता है। इससे पहले कि हम इसके समाधानों की ओर चले, आइए समझते हैं: अस्थमा क्या है, यह किस कारण से होता है और इस समस्या को दूर करने के लिए हमें अपने जीवन में क्या उपाय अपना सकते हैं।
विषय - सूची
अस्थमा क्या है?: What is asthma?
अस्थमा के कारण: Causes of asthma
अस्थमा के लक्षण: Symptoms of asthma
अस्थमा के लिए टेस्ट : Test for Asthma
अस्थमा से बचाव के सामान्य उपाय: Home Remedies for Asthama
क्या खाएं और किससे बचें: What to eat and what to avoid
अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू): Frequently Asked Questions (FAQs)
अस्थमा क्या है?
आयुर्वेद में, सांस लेने में तकलीफ को श्वास रोग कहा जाता है। श्वास रोग मुख्य रूप से वात और कफ दोषों के कारण होता है। श्वास को पांच प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है- महाश्वास, उर्ध्व श्वास, छिन्न श्वास, क्षुद्र श्वास, तमक श्वास । आयुर्वेद के अनुसार, अस्थमा या दमा रोग तमक श्वास के अंतर्गत आता है। इसमें शरीर में कफ दोष के बढ़ने से वायु का प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है तथा वायुमार्ग में सिकुड़न पैदा हो जाती है। इससे विशेष रूप से रात या सुबह में घरघराहट, सांस फूलना, सीने में जकड़न और खांसी की शिकायत होती है। यह मुख्य रूप से एलर्जी के कारण होने वाला रोग है क्योंकि रोगी धूल और प्रदूषण या कुछ खाद्य पदार्थों के प्रति संवेदनशील हो जाता है.
अस्थमा के कारण
अस्थमा प्राथमिक रूप से वात दोष बढाने वाले कारकों के अधिक सेवन, कफ बढाने वाले खाद्य पदार्थों के सेवन, फेफड़ों के ऊतकों के कमजोर होने और फेफड़ों के रोगों के कारण होने वाली समस्याओं के कारण होता है। पर्यावरण और जीवन शैली भी अस्थमा में अहम भूमिका निभाते हैं। जैसे ठंडे या बासी खाद्य पदार्थों का पाचन करना आसान नहीं होता, इससे आम (बलगम) का निर्माण होता है। यह श्वसन नलिका में रुकावट पैदा करता है जिसके फलस्वरूप सांस लेने में कठिनाई होती है। ठंडे और नम वातावरण में रहना भी अस्थमा का एक कारण है।
आयुर्वेद में अस्थमा के निम्न कारण बताये गये हैं जिनमें से कुछ इस तरह से है :
भोजन का अनियमित सेवन करना।
सूखा, ठंडा, भारी, असंगत भोजन करना।
उडद की दाल, सेम, तिल का तेल, केक और पेस्ट्री, विष्टम्भी अन्न(वात दोष को बढ़ाने वाला भोजन), विदाही अन्न(पेट में जलन करने वाले पदार्थ), पचने में भारी भोजन , दही, कच्चा दूध तथा कफ दोष की वृद्धि करने वाले भोजन का सेवन करना।
ठंडे पानी का सेवन और ठंडी जलवायु के संपर्क में आना।
धूल, धुएँ और हवा के संपर्क में आना।
अत्यधिक व्यायाम करना।
यौन क्रिया में अधिक लिप्त रहना।
गले, छाती और महत्वपूर्ण अंगों को आघात पहुँचना।
प्राकृतिक वेगो को रोकना।
अस्थमा के लक्षण
अस्थमा रोग में कफ दोष बढ जाता है और वात दोष विपरीत दिशा में जा कर श्वसन पथ में रुकावट पैदा करता है। अतः रोगी में निम्न लक्षण मिलते हैं-
सांस फूलने के साथ सांस छोडने में अत्यंत तकलीफ
अत्यधिक खांसी
घरघराहट की आवाज़
छाती की जकड़न
गाढ़ा बलगम
माथे पर पसीना आना
रात और सुबह के समय उपरोक्त लक्षणों का बढ़ना
बिस्तर पर लेट जाने पर बेचैनी बढ़ जाती है, बैठने की मुद्रा में आराम मिलता है।
गंभीर हालत में रोगी को गंभीर खांसी होती है और वह बेहोश हो जाता है। रोगी को कफ को निष्कासित करना मुश्किल लगता है और कफ के निष्कासन के बाद 1 मुहूर्त (3 घंटे) की अवधि के लिए राहत महसूस होती है। ऐसे व्यक्ति को गर्म चीजें पसंद आती हैं। आकाश में बादलों की उपस्थिति, बारिश, ठंड के मौसम, तेज हवाओं और कफ दोष में वृद्धि करने वाले भोजन का सेवन इसके लक्षणों को बढा देता है।
अस्थमा के लिए टेस्ट
अस्थमा रोग के निदान के लिये विभिन्न प्रकार के श्वास परीक्षण किये जाते हैं जैसे स्पाइरोमीट्री और पीक फ्लो। इससे बाहर निकलने वाली हवा की मात्रा और गति को मापते हैं। यह ये देखने में मदद करता है कि आपके फेफड़े कितनी अच्छी तरह काम कर रहे हैं। अन्य परीक्षणों में एलर्जी परीक्षण, रक्त परीक्षण, नाइट्रिक ऑक्साइड या FeNo परीक्षण, और मेथाकोलीन जैसे परीक्षण शामिल हो सकते हैं। इसके अलावा छाती का एक्स-रे अस्थमा को अन्य फेफड़ों के रोगों से अलग करने में उपयोगी है।
अस्थमा निदान के सामान्य उपाय
आयुर्वेद के अनुसार अस्थमा वातकफज रोग है, यह पेट से शुरू होकर फेफड़े और श्वसन नलिकाओं तक बढ़ता है। इसलिए उपचार का प्राथमिक उद्देश्य अतिरिक्त कफ को समाप्त करना है। इसके अलावा प्राणवहस्त्रोत(श्वसन तंत्र) को मजबूत करने और उत्तेजित अवस्थाओं को संतुलित करने पर ध्यान दिया जाता है। इस उद्देश्य के लिए निम्नलिखित उपायों को हम अपने दैनिक जीवन में अपना सकते हैं-
आम को कम करने के लिए-
प्रातः काल उठ कर नियमित रूप से गर्म पानी में नमक डाल कर गरारा करें तथा सबसे पहले ऊष्ण जल का सेवन करें।
अदरक को पानी में उबाल कर उसका भी सेवन लाभकारी है. इसमें अपनी इच्छा अनुसार नीम्बू भी शामिल कर सकते हैं।
जीरा तथा काली मिर्च का सेवन भी आम को कम करने में सहायक है।
यह रोग पेट से शुरु होता है अतः पेट को साफ करने के लिये-
अपने भोजन में फाइबर युक्त खाद्य पदार्थों को शामिल करें।
गर्म पानी में भीगी हुई अंजीर का सेवन भी कर सकते हैं।
पानी की मात्रा अपने भोजन तथा पेय पदार्थों में ज़्यादा रखे।
कफ को कम करने के लिये-
अदरक और लहसुन को कूट कर पानी में उबाल कर पी सकते हैं।
पानी में शहद घोल कर पीना भी कफ को कम करता है।
भोजन में हल्दी, अदरक आदि मसालों का सेवन करें।
योग एवम प्राणायाम-
अस्थमा रोग में प्राणायाम बेहद कारगर है। भ्रस्त्रिक, अनुलोम-विलोम, कपालभाति तथा नाडी शोधन आदि श्वसन तंत्र के लिये फायदेमंद हैं। अर्ध-मत्स्येन आसन, भुजंग आसन, पूर्वोत्तासन आदि योगासन भी अस्थमा रोग में सहायक हैं।
गर्म तेल-
पीठ और छाती पर तिल के तेल का गर्म सेंक अस्थमा के लक्षणों से राहत दिलाता है।
क्या खाएं और किससे बचें?
आयुर्वेद में बताया गया है कि व्यक्ति के जीवन में आहार अहम भूमिका निभाता है। बहुत सारे रोगो से सिर्फ आहार-विहार ठीक करके भी बचा जा सकता है। अतः अस्थमा में भी निम्न आहार-विहार का पालन करना बताया गया है-
गेहूँ, पुराना चावल, मूंग की दाल, जौ, लहसुन, हल्दी, अदरक, काली मिर्च का भोजन में उपयोग करें।
अपने पेय और खाद्य पदार्थों में शहद का इस्तेमाल करें।
मुलेठी और दालचीनी की चाय भी बना कर पी सकते हैं।
नट्स और ड्राई फ्रूट्स को मध्यम मात्रा में लिया जा सकता है।
एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर खाद्य पदार्थ खाएं।
भारी, ठंडा आहार, उडद की दाल, तैलीय, चिकना और तले हुए खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए।
दूध, पनीर, दही, छाछ और केला जैसे भारी खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए।
प्रोसेस्ड फूड, एडिटिव्स, व्हाइट शुगर और आर्टिफिशियल मिठास से बचें।
धूम्रपान, धूल और धुएं, प्रदूषण और एलर्जी के संपर्क में आने से बचें।
ठन्डे और नमीयुक्त वातावरण से बचे।
प्राकृतिक वेगो का दमन न करें।
अत्यधिक शारीरिक परिश्रम न करें।
योग और ध्यान सहायक हो सकते हैं।
ठंड के मौसम में बाहर निकलते समय अपना मुंह और नाक ढक लें।
अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
अस्थमा होने की सबसे अधिक सम्भावना किन लोगों में होती है?
यदि परिवार में किसी को पहले से ही अस्थमा है, तो ऐसे व्यक्तियों को अस्थमा विकसित होने की अधिक संभावना है। एक्जिमा या खाद्य पदार्थों से एलर्जी वाले बच्चों में अन्य बच्चों की तुलना में अस्थमा विकसित होने की संभावना अधिक होती है। पराग, घर की धूल, घुन या पालतू जानवरों से एलर्जी भी अस्थमा के विकास की संभावना को बढ़ाती है। तंबाकू के धुएं, वायु प्रदूषण के संपर्क में आने पर भी अस्थमा के लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं।
अस्थमा को बढाने वाले मुख्य कारक क्या हैं?
घर की धूल, पराग कण, ठंडी और शुष्क जलवायु, खाना पकाने के गैस धुएं, धूम्रपान, पेंट, स्प्रे जैसे एलर्जी के संक्रमण। ऊपरी श्वसन पथ के संक्रमण, वायरल संक्रमण। एस्पिरिन, दर्द निवारक दवाये, भोजन में प्रयोग होने वाले रंग, खाद्य संरक्षक, बर्फ क्रीम, अत्यधिक व्यायाम विशेष रूप से ठंड और शुष्क दिन में, तनाव, लकड़ी और कपास की धूल, रसायन आदि।
क्या मौसम में बदलाव से अस्थमा हो सकता है?
हां, अचानक मौसम में बदलाव (जैसे ठंडी हवाएं, नमी और तूफान) कुछ लोगों में अस्थमा को बढा सकते हैं। इन अचानक बदलावों से एलर्जी पैदा हो सकती है जैसे कि पराग कण उन लोगों में अस्थमा को बदतर बना सकते हैं जिनका अस्थमा एलर्जी से संबंधित है। ठंडी हवा का सीधा असर वायुमार्ग पर भी पड़ सकता है।
सभ्यता के विकास के साथ मनुष्य शारीरिक रूप से निष्क्रिय हो गया है। आधुनिकीकरण, संपन्नता, विज्ञान और तकनीकी विकास के फलस्वरूप आधुनिक जीवन शैली गतिहीन होती जा रही है। बढ़ती निष्क्रिय जीवनशैली के साथ आहार में बदलाव ने कई देशों में मोटापे की महामारी को जन्म दिया है। शारीरिक गतिविधि में कमी के साथ वसा और गुरु आहार द्रव्यों की भोजन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। औद्योगिकीकरण और आर्थिक प्रगति में उन्नति के साथ साथ आज कल अधिक से अधिक नौकरियां सिर्फ ऑफिस डेस्क तक सिमट के रह गई हैं तथा आहार के पैटर्न में बदलाव के साथ चीनी और वसा के सेवन में वृद्धि हो रही है। इस सबके कारण ही मोटापे तथा इससे जुडी समस्याओं में वृद्धि हुई है। तो आइये जानते हैं मोटापा क्या है, इसके कारण तथा इससे कैसे छुटकारा कैसे पाया जा सकता है।
विषय - सूची
मोटापा क्या है
मोटापे के कारण
मोटापे के लक्षण
निदान
मोटापे के सामान्य उपाय
क्या खाएं और किससे बचें
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
मोटापा क्या है?
आयुर्वेद में आचार्य चरक ने अष्ट निंदित पुरुष का वर्णन किया है तथा इनमे भी इन दो रोगों का विशेष रूप से वर्णन किया है- अतिस्थूल(अधिक मोटा) तथा अतिकार्श्य(अधिक पतला)। इनमें अतिस्थूल(अधिक मोटे) व्यक्ति को इसके जटिल व्याधिजनन और उपचार के कारण अतिनिंदित माना गया है। आयुर्वेद में मोटापे को स्थौल्य या मेदोरोग कहा गया है। यह संतर्पणोत्थ विकारो (अति पोषण के कारण होने वाला रोग) के अंतर्गत आता है। आयुर्वेद में शारीरिक व मानसिक संतुलन को ही स्वास्थ्य की परिभाषा दी गयी है। इसके अनुसार, मोटापा एक ऐसी स्थिति है, जिसमें मेद धातु (फैटी टिश्यू) की विकृति/ वृद्धि की होती है।
आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से, किसी भी अन्य बीमारी की तरह, मोटापा गलत भोजन के सेवन या अनुचित आहार की आदतों और जीवनशैली के विकास के साथ शुरू होता है, जिसके परिणामस्वरूप पाचन अग्नि की समस्या होती है, जो आगे जा कर आम को बढ़ाती है। बढे हुए आम के कारण चयापचय प्रक्रिया विचलित हो कर अधिक मेद धातू (फैटी टिश्यू) का निर्माण करती है और आगे की धातू निर्माण जैसे कि अस्थि (हड्डियों) के निर्माण को अवरुद्ध करती है। अत्यधिक रूप से बढी हुई मेद धातू कफ के कार्यों में अवरोध उत्पन्न करती हैं।
दूसरी ओर, जब आम सभी शारीरिक चैनलों को अवरुद्ध करता है तो यह वात दोष में असंतुलन पैदा करता है। वात दोष पाचन अग्नि (जठराग्नि) को उत्तेजित करता रहता है, जिससे भूख में वृद्धि होती है इसलिए व्यक्ति अधिक से अधिक भोजन करता है। मेद धात्वाग्नि मांद्य (कमजोर वसा चयापचय) के कारण अनुचित या असामान्य मेद धातु बनती है, जो मोटापे का मूल कारण है।
अतः मोटापा या स्थौल्य एक ऐसा रोग है जिसमें व्यक्ति मेद(फैटी टिश्यू) और मांस के अत्यधिक विकास के कारण काम करने में असमर्थ होता है और उसके नितंबों, पेट और स्तनों के अधिक विकास के कारण शारीरिक विघटन खराब हो जाता है।
मोटापे के कारण
मोटापा एक ऐसी अवस्था है जिसमें त्वचा तथा आंतरिक अंगों के आस-पास वसा का अत्यधिक संचय हो जाता है। जब लोग अधिक वसायुक्त भोजन करते हैं तथा शारीरिक श्रम नहीं करते तब शरीर में जरूरत से ज्यादा कैलोरी संचित हो जाती है जो वजन बढने का कारण है। कई अन्य कारण भी मोटापा बढाते हैं जैसे कि गर्भावस्था, ट्यूमर, हार्मोनल विकार और कुछ दवाएं जैसे साइकोटिक ड्रग्स, एसट्रोजन्, कॉर्टिकॉ-स्टेरायड्स और इंसुलिन।
आयुर्वेद तथा आधुनिक चिकित्सा प्रणाली दोनो ने मोटापे को कई कारणो की वजह से उत्पन्न माना है। मोटापे के आयुर्वेद में निम्न कारण बताये गए हैं-
अध्यशन (दोपहर के भोजन या रात के खाने के बाद दोबारा भोजन लेना)
अति बृन्हण (अति पोषण)
गुरु आहार सेवन (कठिनाई से पचने वाला भोजन करना)
मधुर आहार सेवन (मीठी वस्तुओं का सेवन)
स्निग्ध भोजन सेवन (कफ बढाने वाला भोजन करना)
अव्यायाम (व्यायाम न करना)
अव्यवाय (यौन गतिविधियों की कमी)
दिवा स्वप्न (दिन में सोना)
अतिस्नान सेवन
बीज दोष (आनुवान्शिक कारण)
अग्निमांद्य (पाचक अग्नि में कमी होना)
मोटापे के लक्षण
मोटापा व्यक्ति के जीवन में नकारात्मक प्रभाव डालता है। इससे ग्रसित व्यक्ति न सिर्फ शरीरिक रूप से परेशान रहता है, बल्कि मानसिक रूप से भी वह हीन भावना का शिकार हो कर अवसाद में जा सकता है। इसके सामान्यतः निम्न लक्षण होते हैं-
अतिस्वेद [अत्यधिक पसीना आना]
श्रमजन्य श्वास [हल्के परिश्रम पर सांस फूलना]
अति निंद्रा [अत्यधिक नींद आना]
कार्य दौर्बल्यता [भारी काम करने में कठिनाई]
जाड्यता [आलस्य]
अल्पायु [लघु जीवन काल]
अल्पबल [शक्ति में कमी]
शरीर दुर्गन्धता [शरीर की दुर्गंध]
गदगदत्व [अस्पष्ट आवाज]
क्षुधा वृद्धि (अत्यधिक भूख)
अति तृष्णा [अत्यधिक प्यास]।
मोटापे का निदान
वैसे तो मोटापे के निदान के लिये बहुत से वर्गीकरण हैं। लेकिन बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) पर आधारित विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का वर्गीकरण व्यापक रूप से स्वीकृत है। व्यक्ति के वजन(किलोग्राम में) को उसकी लम्बाई(मीटर में) के वर्ग द्वारा विभाजित कर बीएमआई निकाला जाता है। यह लम्बाई और आकार के आधार पर व्यक्ति के आदर्श वजन का अनुमान लगाता है।
18.5 से ले कर 24.9 तक बीएमआई सामान्य माना जाता है। 25 या इससे ऊपर बीएमआई वाल्रे मोटापे की श्रेणी में आते हैं।
मोटापे के सामान्य उपाय
मोटापा दूर करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है इसके कारणों को दूर करना। यह एक ऐसी बीमारी है जो शरीर की आवश्यकता से अधिक कैलोरी लेने की वजह से होती है। आयुर्वेद में, मोटापे का इलाज केवल वजन घटाने तक सीमित नहीं है, बल्कि चयापचय प्रक्रियाओं को ठीक कर आम को कम करके तथा वात-कफ के कार्य को नियमित कर अतिरिक्त वसा को कम किया जाता है।
चयापचय को ठीक करने के साथ-साथ पाचन अग्नि बढाने तथा स्रोतस शोधन के लिये, आहार की आदतों में सुधार करना और तनाव को कम करना महत्वपूर्ण है। इसके लिये निम्न कुछ उपाय घर में सरलता से किये जा सकते हैं-
लंघन- लंघन यानी ऐसे उपाय जो शरीर में हल्कापन लाये। जैसे-
ऊष्ण जल सेवन- सुबह उठने के पश्चात गर्म पानी का सेवन करें, यह न सिर्फ शरीर में लघुता लायेगा बल्कि आम पाचन भी करेगा।
उपवास- सप्ताह में एक दिन उपवास का सेवन करें। इस अवधि में आप मूंग की दाल का पानी या नारियल का जूस इत्यादि ले सकते हैं।
नियमित व्यायाम- माथे पर पसीना आने तक दैनिक नियमित रूप से व्यायाम जरूरी है। सुबह नियमित रूप से 30 मिनट तक पैदल चलें व व्यक्तिगत क्षमता के अनुसार व्यायाम करे। इसमें योगासन भी सहायक हैं, जैसे- सूर्य नमस्कार, धनुरासन, भुजंगासन, पवनमुक्तासन, पस्चिमोत्तानासन, ताड़ासन इत्यादि।
आम पाचन- आम की उपस्थिति में वजन कम करना बेहद मुश्किल है। इस कारण से लोग सीमित भोजन का सेवन करते हुए भी अपना वजन कम करने में असफल रहते हैं। इसलिए पहले आम से छुटकारा पाना महत्वपूर्ण है.
आम को खत्म करने के लिये पहले उन कारणों से बचना है जो आम की उत्पत्ति कर रहे हैं। पिछला भोजन ठीक से पचने से पहले खाने से बचें। आसानी से पचने वाला तथा मात्रा में कम भोजन खाएं। ठंडा या बासी भोजन न करें।
इसके लिये सौंफ और गुनगुने पानी का सेवन लाभदायक है।
अदरक भी आम पाचन में सहायक है। आप इसका काढा बना कर पी सकते हैं।
हल्दी, काली मिर्च जैसे मसाले अपने आहार में नियमित रूप से शामिल करें।
इसबगोल और त्रिफला को रोजाना रात को सोने से पहले लें। एक कप गर्म दूध में एक चम्मच घी मिलाकर पीना भी सहायक होता है।
कफ दोष शमन- मोटापे में कफ दोष बढ जाता है। इसके संतुलन के लिये निम्न उपाय अपनाये-
अपने आहार में मिर्च, सरसों के बीज और अदरक जैसे तीखे मसालों का उपयोग करें।
शहद को छोड़कर मीठे पदार्थों से बचें। रोजाना एक चम्मच या दो (लेकिन अधिक नहीं) शहद का सेवन करे। इसे सादा पानी में मिला कर पी सकते हैं।
तिक्त रस(कड्वा) सेवन- कफ दोष के शमन के लिये कड्वी चीज़ों को अपने आहार में शामिल करिये जैसे गिलोय, नीम, करेले का जूस इत्यादि।
गुरु अपतर्पण- यानी ऐसा आहार लेना जो भूक को भी शांत कर दे व मोटापा भी न बढाये।
इसके लिये जौ बेहद कारगर उपाय है. जौ का नमकीन दलिया या इसके आटे की रोटी का प्रयोग करे।
चावल का मांड- आयुर्वेद में इसे बनाने के लिये 14 गुना जल डाल कर चावल का मांड बताया गया है। इसमे आप अपने स्वाद के अनुसार हींग और सेंधा नमक डाल सकते हैं।
क्या खाएं और किससे बचें
अस्वास्थ्यकर आहार से शरीर में वसा ऊतक(फैटी टिश्यू) का निर्माण होता है जिसके परिणामस्वरूप मोटापा होता है। इसलिए पर्याप्त फाइबर युक्त स्वस्थ आहार का सेवन, सक्रिय जीवन शैली को अपनाना और तनाव और थकान को प्रबंधित करने के लिए योग और ध्यान का अभ्यास करना अधिक वजन / मोटापे की रोकथाम के लिए आवश्यक है। इसके लिए जीवन शैली में निम्न संशोधन किये जा सकते हैं-
नियमित समय पर भोजन करें।
पीने के लिए गर्म पानी का उपयोग करें।
सेहतमंद खाद्य पदार्थ जैसे - यव(जौ), हरा चना (मूंग की दाल), करेला, शिग्रू(ड्रमस्टिक), आंवला, अनार लें।
भोजन में तक्र(छाछ) का प्रयोग करें।
तली हुई के बजाय उबली हुई और बेक्ड सब्जियाँ प्रयोग करे।
आहार और पेय में नींबू शामिल करें। प्रातः काल एक गिलास गर्म पानी में एक नीम्बू का रस निचोड कर पिये, इसमे चीनी या नमक न मिलाये।
कम कैलोरी वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करें जैसे लौकी का जूस, सब्जियों का सूप इत्यादि।
अधिक मीठा, अधिक डेयरी उत्पाद, तले हुए और तैलीय पदार्थ, फास्ट फूड से दूर रहे।
भोजन में नमकीन भोजन या अत्यधिक नमक न ले।
मदिरा पान और धूम्रपान से बचें।
दिन में सोना सर्वथा त्याग दे।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
1)मोटापा किन कारणों से होता है?
मोटापा कई कारणों से होता है। मुख्य कारण हैं-
क)आनुवन्शिक कारण ख) ज़रुरत से ज़्यादा भोजन करना ग)हाइपोथायरायडिज्म और कुशिंग सिंड्रोम जैसी कुछ हार्मोनल स्थितियां मोटापे का कारण बन सकती हैं। कुछ दवाओं से भी मोटापा हो सकता है।
2) क्या मोटे लोगों को जल्दी मौत का खतरा है?
मोटे लोगों को जीवनशैली से जुड़ी बीमारियां जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल संबंधी रोग होने का खतरा होता है। ये रोग व्यक्ति की मृत्यु का कारण बन सकते हैं।
3) वज़न घटाने का सबसे अच्छा तरीका क्या है?
शारीरिक गतिविधि में वृद्धि, स्वस्थ आहार में बदलाव और अपने चिकित्सक से मिल कर प्रति सप्ताह 1 से 2 पाउंड वज़न कम करने का लक्ष्य रखें। वजन घटाने के लिये अपने आहार और दिनचर्या को ज़्यादा मुश्किल न बनाये। नियमित रूप से व्यायाम करें व मिताहार(नपा-तुला भोजन) करें।
टोक्यो। मंगल ग्रह के एक प्राचीन उल्कापिंड का विश्लेषण करने के बाद जापानी शोधकर्ताओं की एक टीम ने खुलासा किया है कि इस ग्रह पर पानी करीब 4.4 अरब साल पहले बना था।
कई साल पहले सहारा के रेगिस्तान में दो उल्कापिंड मिले थे, जिन्हें एनडब्ल्यूए 7034 और एनडब्ल्यूए 7533 नाम दिया गया था। इनके विश्लेषण से पता चला है कि ये उल्कापिंड मंगल ग्रह के नए प्रकार के उल्कापिंड हैं और अलग-अलग चट्टानों के टुकड़ों के मिश्रण हैं। इस तरह की चट्टानें दुर्लभ होती हैं।
हाल ही में एक अंतर्राष्ट्रीय टीम ने एनडब्ल्यूए 7533 का विश्लेषण किया, जिसमें टोक्यो विश्वविद्यालय के प्रो. ताकाशी मिकोची भी शामिल थे।
साइंस एडवांस नाम के जर्नल में प्रकाशित हुए पेपर में मिकोची ने कहा, एनडब्ल्यूए 7533 के नमूनों पर 4 अलग-अलग तरह के स्पेक्ट्रोस्कोपिक विश्लेषण और रासायनिक परीक्षण किए। इससे मिले नतीजों से हमें रोचक निष्कर्ष मिले।
ग्रह विज्ञानियों को यह तो ज्ञात है कि मंगल पर कम से कम 3.7 अरब वर्षों से पानी है। लेकिन उल्कापिंड की खनिज संरचना से, मिकोची और उनकी टीम ने खुलासा किया कि यह संभव है कि पानी करीब 4.4 अरब साल पहले मौजूद था।
मिकोची ने कहा, उल्का पिंड या खंडित चट्टान, उल्कापिंड में मैग्मा से बनते हैं और आमतौर पर ऐसा ऑक्सीकरण के कारण होता है।
यह ऑक्सीकरण तब संभव है जब मंगल की परत पर 4.4 अरब साल पहले या उस दौरान पानी मौजूद रहा हो।
यदि मंगल ग्रह पर पानी की मौजूदगी हमारे सोचे गए समय से पहले की थी तो इससे पता चलता है कि ग्रह निर्माण की शुरुआती प्रक्रिया में संभवत: पानी भी बना हो। ऐसे में यह खोज शोधकर्ताओं को इस सवाल का जवाब देने में मदद कर सकती है कि आखिर पानी कहां से आता है। इससे जीवन की उत्पत्ति और पृथ्वी से परे जीवन की खोज पर सिद्धांतों पर खासा असर पड़ सकता है। (आईएएनएस)
Kanpur (Uttar Pradesh), June 17 (IANS) There is bad news for those who crave for 'pani puri'. The sale of 'pani puri' has been banned in Kanpur from Tuesday.District Magistrate Brahmadeo Ram Tiwari said there were inputs that corona safety norms were being flouted at street food carts after the relaxation in curbs under 'Unlock 1.0'."Besides, there was a lack of social distancing at these stalls and we have banned the sale of pani puri so that there is no further spike in corona cases," he said.According to the health officials, most pani puri vendors were not seen wearing masks. Many of them were also not using gloves while serving customers.A health official said, "People should refrain from consuming pani puri. If they want to have it, they can purchase the raw material and prepare the stuffing and water at home. This would be a safer option."Kanpur is one of the 11 corona-hit districts in Uttar Pradesh where the increasing number of positive cases has been a cause for worry.--IANSamita/dpb
Hyderabad, May 26 (IANS) As many as 40 children were taken ill after eating pani puri in Adilabad town of Telangana on Monday night, officials said here on Tuesday.The children, aged aged 5-10 years, are undergoing treatment at Rajiv Gandhi Institute of Medical Sciences (RIMS) in the town, about 300 km from here.RIMS Director Balram Banoth said condition of two children was serious, but under control. "The children are out of danger. But it will take 24 hours for total improvement," he said.According to the police, the children in Khurshid Nagar and Sundarayya Nagar areas had pani puri from a pushcart vendor. After some time they started vomiting and suffered diarrhea. They were rushed to the hospital. By 11 p.m, the number of ill children increased to 40.Two-three elders, who had also consumed pani puri, complained of stomach pain.The vendor was selling pani puri (fried puff-pastry balls filled with spiced mashed potato, spiced water and tamarind juice) in violation of the lockdown restrictions, said municipal officials.Some contamination in water or other material used by the vendor to make pani puri could have caused the illness, they added.--IANSms/pcj
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