Ayurveda Street
भागमभाग भरी जिन्दगी में लोगों को शारीरिक बीमारियों के साथ कई तरह की मानसिक बीमारियाँ भी जकड़ लेती है. तनाव में लोगों के आपसी संबंधों को भी प्रभावित करना शुरू कर दिया है. इनसे बचने के लिए लोग हर्बल थेरेपी की शरण में जा रहे हैं. ऐसी ही एक हर्बल थेरेपी पंचकर्म चिकित्सा है जो लोगों के तन और मन को नयी स्फूर्ति प्रदान करती है.
पंचकर्म चिकित्सा आयुर्वेद का मौलिक अधिकार - Ayurvdea and Panchakarma therapy
आयुर्वेद जीवन विज्ञान होने के नाते आरोग्य के संरक्षण द्वारा रोग के बचाव का कार्य तो करता ही है. इसमें दीर्घकालिक रोगों के बेहतर उपचार की एक से एक पद्धति है. दीर्घकालिक रोगों की चिकित्सा व्यवस्था में पंचकर्म चिकित्सा आयुर्वेद का मौलिक अधिकार है. आयुर्वेदाशास्त्र में पंचकर्म चिकित्सा पद्धति का गौरवशाली स्थान है. दीर्घायु प्राप्त करने, स्वास्थ्य लाभ लेने व् स्वास्थ्य की रक्षा के लिए यह चिकित्सा पद्धति प्रयोग में लायी जाती है. पंचकर्म पद्धति के जरिए रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है. साधारण से लेकर गंभीर बीमारियों तक में वह बेहद असरकारक सिद्ध होता है.
आयुर्वेद में महर्षि चरक ने वमन, विरेचन, अस्थापन, अनुवाशन और शिरोवाचन या नस्य जैसे पांच कर्मो का उल्लेख पंचकर्म में किया है. इन्हीं कर्मों के आधार पर पंचकर्म चिकित्सा की जाती है. आयुर्वेद के अनुसार इससे शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है. यादाश्त और हमारी ज्ञानेन्द्रियों की संवेदनशीलता बढ़ाने में भी वह सहायक होती है. स्वास्थ्य रक्षा के मनुष्यों के दिनचर्या और वेगाविरोधी जन्य पंचकर्म किया जाता है. रसायन और वाजीकरण आयुर्वेद का विशिष्ट तंत्र है. रसायन प्राप्ति से स्वास्थ्य के प्रति उत्साह बना रहता है जबकि वाजीकरण में यौन संबंध व संतानोत्पति की शक्ति बढ़ती है.
रोग जिनमें उपयोगी है पंचकर्म - Panchakarma therapy and Diseases
पक्षाघात, गठिया, रक्तचाप, मधुमेह, मोटापा, बवासीर, थायराइड, पथरी, यौन संबंधी दुर्बलता, स्त्री व प्रसूति संबंधी बीमारी, मानसिक बीमारी, पेट संबंधी बीमारी, त्वचा संबंधी रोग आदि.
विशेष पंचकर्म थेरेपी
शिरोधारा, वाष्पस्वेद, वमन, विरेचन, अक्षितर्पण, लेप, नस्य, सर्वांगपिंड स्वेद, सर्वांग शरीर धारा, मात्रावस्ति, अनुवाशन वस्ति, अस्थापनवस्ति, उत्तरवस्ति, शिरोवस्ति, पुल्टिस.
पंचकर्म के अंतर्गत आहार निर्देश
भोजन ताजा व स्वादिष्ट हो
अति लवणीय, कटु व अम्लीय पदार्थ न लें.
भोजन बहुत गर्म व अत्यंत ठंढा न हो
कम मात्रा में पानी बार-बार लें.
भारी आहार सीमित मात्रा में ले
शांतचित्त से भोजन करें
भूख लगने पर ही खाएं
भारी आहार रात्रि में न लें.
रात्रि भोजन सोने से दो तीन घंटे पहले लें और भोजन के बाद थोड़ा टहलें.
अधिक भोजन न करें.
आयुर्वेद के अनुसार दिनचर्या
जागने का समय - सुबह तीन से छह के बीच. अध्ययन और ज्ञानोपार्जन के लिए यह उत्तम समय है.
उषपान - क्षमता अनुसार समशीतोष्ण जल पीएं. इससे मल शुद्धि होती है.
मलमूत्र त्याग - मलमूत्र की प्राकृतिक वेग पर ध्यान देना चाहिए. इसे किसी भी सूरत में रोकना नहीं चाहिए.
दंत एवं मुख प्रक्षालन - खदिर, करंज, अर्क, अपामार्ग, बबूल, नीम तथा विल्व की टहनी से नियमित दातुन करें. तत्पश्चात जिह्वा और मुख का प्रक्षालन करे.
अंजन - शीतल जल से आँखे धोएं. आँख की रौशनी बढ़ाने व आँखों के रोग से बचने के लिए नित्य त्रिफला के पानी से आँख धोएं.
तांबूल - पानी के साथ खदिर, सुपारी, इलायची, लौंग आदि सेवन करने से मुख शुद्धि और आहार पाचन ठीक से होता है.
(मणिभूषण कुमार, बी.ए.एम.एस. (पैट), सी.आर.ए.डी., नयी दिल्ली, आर.सी.पी. (पैट), सी.एम.ई. (पैट) का यह लेख आयुर्वेद पर्व की स्मारिका से साभार लिया गया है)