हिमालया सर्पिना टैबलेट की जानकारी - Himalaya Serpina Tablet in Hindi
हिमालया सर्पिना टैबलेट एक हर्बल दवा है जो उच्च रक्तचाप के उपचार में मदद करती है। यह टेबलेट अश्वगंधा और सर्पगंधा जैसी जड़ी-बूटियों का मिश्रण होता है जो दिल के रक्तवाहिकाओं को शांत करने और उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। यह टेबलेट ब्लड प्रेशर कम करने के साथ-साथ श्वसन संबंधी समस्याओं जैसे अस्थमा और ब्रोंकाइटिस के इलाज में भी मदद करती है।
हिमालया सर्पिना टैबलेट के मुख्य तत्व - Himalaya Serpina Tablet Ingredients in Hindi
इस टैबलेट में उपस्थित जड़ी बूटियों में से कुछ मुख्य हैं जैसे कि सर्पगंधा, नागरमोथा, गुडूची और अमृता। इन जड़ी बूटियों में विशिष्ट गुण होते हैं जो शरीर के रोगों से लड़ने में मदद करते हैं। यह टैबलेट इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने वाली एंटी-ऑक्सिडेंट प्रदान करती है। हिमालया सर्पिना टैबलेट के मुख्य तत्व इस प्रकार से है:
सर्पगंधा (Rauwolfia Serpentina): इस टैबलेट का मुख्य तत्व सर्पगंधा होता है, जो एक प्राकृतिक औषधि होती है जो उच्च रक्तचाप और तनाव को कम करने में मदद करती है।
जटामांसी (Nardostachys Jatamansi): यह एक औषधीय पौधा होता है जो तनाव को कम करने में मदद करता है। इसके अलावा यह नींद को बढ़ाने और दिमाग की क्षमता को बढ़ाने में भी मदद करता है।
ज्योतिष्मती (Celastrus Paniculatus): यह भी एक प्राकृतिक औषधि होती है जो तनाव को कम करने में मदद करती है और दिमाग की क्षमता को बढ़ाती है।
शंखपुष्पी (Convolvulus Pluricaulis): यह एक प्राकृतिक औषधि होती है जो दिमाग की क्षमता को बढ़ाती है।
जहरमोहरा (Delphinium Denudatum): इस औषधीय पौधे के फूलों से तैयार की जाने वाली एक प्रकार की चूर्ण होती है, जो तनाव को कम करने में मदद करता है।
हिमालया सर्पिना टैबलेट के फायदे - Himalaya Serpina Tablet Benefits in Hindi
हिमालया सर्पिना टैबलेट प्राकृतिक जड़ी बूटियों से बना हुआ आयुर्वेदिक दवा है जो उच्च रक्तचाप, मांसपेशियों में दर्द, घुटने के दर्द, खुजली और त्वचा के रोग जैसी कुछ समस्याओं के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है। यह टेबलेट मुख्य तौर पर नागदोना, गुग्गुल और गुडूची जैसी जड़ी बूटियों से बना हुआ है जो संभवतः उपचार में मदद करते हैं। इसके अन्य फायदों में शामिल हैं:
स्वस्थ रक्तचाप: हिमालया सर्पिना टैबलेट में मौजूद जड़ी बूटियाँ रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद कर सकती हैं।
मांसपेशियों के दर्द को कम करना: इस टेबलेट में मौजूद नागदोना मांसपेशियों में दर्द को कम करने में मदद कर सकता है।
खुजली को कम करना: हिमालया सर्पिना टैबलेट त्वचा की खुजली को कम करने में मदद करता है।
श्वसन संबंधी समस्याओं को दूर करना: इस टेबलेट में मौजूद गुग्गुल विशेष रूप से श्वसन संबंधी समस्याओं में उपयोगी साबित होता है।
पेट की समस्याओं में लाभ: हिमालया सर्पिना टैबलेट पेट की समस्याओं में लाभकारी होती है। यह पेट में गैस बनने से रोकती है और एसिडिटी को कम करने में मदद करती है।
पाचन शक्ति को बढ़ाना: हिमालया सर्पिना टैबलेट आपकी पाचन शक्ति को बढ़ाने में मदद करती है। यह आपके शरीर को पोषण प्रदान करने में मदद करती है और आपके भोजन को अधिक उपचार्य बनाती है।
मलत्याग में सुधार: हिमालया सर्पिना टैबलेट मलत्याग में सुधार लाने में मदद करती है।
हिमालया सर्पिना टैबलेट के दुष्प्रभाव - Himalaya Serpina Tablet Side Effects in Hindi
हिमालया सर्पिना टैबलेट एक आयुर्वेदिक दवा है जो हार्ट और ब्लड प्रेशर समस्याओं के इलाज में प्रयोग किया जाता है। यह दवा सर्पिन नामक प्रोटीन के उत्पादन में मदद करता है जो ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में मदद करता है।
हिमालया सर्पिना टैबलेट का इस्तेमाल सामान्यतः सुरक्षित होता है लेकिन कुछ लोगों को इसके सेवन से एलर्जी, उल्टी, चक्कर या अन्य दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
अधिकतर मामलों में, हिमालया सर्पिना टैबलेट के सेवन से संबंधित कुछ सामान्य दुष्प्रभाव हो सकते हैं, जैसे कि नींद आने में परेशानी, दस्त, गैस, उल्टी आदि।
इसलिए, इस दवा का उपयोग करने से पहले अपने चिकित्सक से सलाह लें और उन्हें अपनी मेडिकल हिस्ट्री बताएं, ताकि वे आपको सही राह दिखा सकें।
हिमालया सर्पिना की खुराक - Himalaya Serpina Dosages in Hindi
हिमालय सर्पिना टैबलेट जो हाई ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने के लिए उपयोग की जाती है, उसकी सुझाई गई खुराक निम्नलिखित है।
सामान्यतः एक दिन में दो या तीन बार एक-एक टैबलेट का सेवन किया जाता है। आपके डॉक्टर द्वारा अलग-अलग स्थितियों और रोग के लिए भी अनुसूचित खुराक निर्धारित की जा सकती है।
इससे पहले और उसके बाद भोजन करना उचित होता है। इस दवा को पानी के साथ लेना उचित होता है।
यदि आप अपनी खुराक में कोई बदलाव करना चाहते हैं, तो कृपया अपने डॉक्टर से परामर्श करें। वे आपको सही खुराक की सलाह देंगे।
यह भी पढ़े►Himalaya Liv 52 in Hindi - हिमालय लिव 52 की जानकारी
2019 में जब कोरोना वायरस ने हर जगह अपने पैर पसारे तो सारी दुनिया में एक भयावह स्थिति बन गयी। किसी दवाई या वैक्सीन का उपलब्ध न होना भी लोगों को डरा रहा था। ऐसे में डाक्टर्स का कहना था कि अपनी इम्युनिटी को बढाना ही एकमात्र उपाय है। उस समय भारत की हज़ारों वर्ष पुरानी चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद ने लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। भारत में कम मृत्यु दर की एक बडी वजह यह भी रही कि लोगों ने समय रहते आयुर्वेद के सिद्धांतों को अपनाया। इसी कारण और देशो की तुलना में यहाँ इम्युनिटी बढ गयी और रिकवरी रेट 95% से भी अधिक रहा। तो आइये समझते हैं आखिर क्या है इम्युनिटी तथा कौन से कारक इसे स्वाभाविक रूप से प्रभावित करते हैं?
इम्युनिटी क्या है?- What is Immunity
आयुर्वेद का प्रयोजन स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना तथा बीमार व्यक्ति की व्याधि का नाश करना है। यहाँ व्यक्ति को स्वस्थ रखने की बात पहले कही गयी है। इसे देख कर अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि आयुर्वेद में इम्युनिटी या प्रतिरक्षा सिद्धांत का कितना महत्व है।
आयुर्वेद में प्रतिरक्षा के सिद्धांत को कई विषयों के अंतर्गत बताया गया है जैसे बल, ओज और व्याधि क्षमत्व।
बल का तात्पर्य है शरीर के विभिन्न तंत्रो की खुद ही पोषण करने और ठीक करने की क्षमता और रोग की रोकथाम में प्रभावी होने की क्षमता, जबकि व्याधि क्षमत्व रोग पैदा करने वाले रोगजनकों(पैथोजन) से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली की क्षमता है। बल शरीर के कार्यों, ऊतकों, पाचन और उत्सर्जन तंत्र के समग्र संतुलन से आता है, जबकि रोगजनक जीवों के संपर्क में आने के बाद विशुद्ध रूप से हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली के शरीर का बचाव कार्य करती है।
हमारे शरीर के पोषण के लिये होने वाली चयापचय प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप अंत में ओज का निर्माण होता है। ओज को हमारे द्वारा ग्रहण किए जाने वाले भोजन का सार माना जाता है, और व्यक्ति में अच्छे ओज का स्तर उचित पोषण का परिचायक है। ओज को शरीर की सात धातुओ( रस, रक्त, मास, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र) का सार माना गया है। हमारा प्रतिरक्षा तंत्र मुख्यतः पाचन तंत्र से संबंधित है। ओज का सिद्धांत पाचन और प्रतिरक्षा के बीच सीधा संबंध स्थापित करता है। ओज का कार्य केवल रोग प्रतिरोधक के रूप में ही नहीं है, बल्कि यह प्रतिकूल शारीरिक, मानसिक या पर्यावरणीय परिवर्तन में भी सहायक है तथा व्यक्ति को बीमार नहीं होने देता।
व्याधिक्षमत्व शब्द दो शब्दों से बना है: व्याधि (रोग) और क्षमत्व (दूर करना)।
आयुर्वेद के अनुसार, व्याधि तब उत्पन्न होती है जब दोष(वात, पित्त और कफ), धातू(ऊतक प्रणाली) और मल (शरीर के उत्सर्जन उत्पाद) के बीच संतुलन नहीं रहता। क्षमत्व से तात्पर्य है, व्याधि को शांत करना या उसका विरोध करना। अतः व्याधिक्षमत्व का अर्थ है रोग को उत्पन्न होने से रोकना और जीवाणुओ का विरोध करना। आयुर्वेद में इसकी व्याख्या निम्न प्रकार भी की गई:
व्याधि-बलविरोधित्वम्: यह रोगों के बल(गंभीरता) को नियंत्रित करने या उनका सामना करने की क्षमता है यानी रोग की प्रगति को रोकता है।
व्याधि-उत्पादक प्रतिबंधकत्त्व: शरीर की प्रतिरोधक क्षमता जो रोग की उत्पत्ति और पुन: उत्पत्ति को रोकती है। ये दोनों ही मिल कर शरीर में प्रतिरक्षा तंत्र कहलाते हैं।
इम्युनिटी के प्रकार- Types of Immunity
आयुर्वेद में तीन प्रकार की इम्युनिटी बताई गई हैं:
सहज: जन्मजात या प्राकृतिक
सहज बल माता-पिता द्वारा बच्चों में आता है। जैसा कि आज कल देखा जाता है कि कुछ बच्चों में विभिन्न प्रकार की एलर्जी देखी जाती हैं। यह गुण उनमें पूर्वजों द्वारा आते हैं। आयुर्वेद में बताया गया है कि यह गुण सूत्र के स्तर से ही शुरु हो जाता है। यदि माता-पिता का स्वास्थ्य अच्छा होगा तो बच्चों का स्वास्थ्य भी अच्छा होगा, परंतु यदि उनमें ही बीमारियाँ होंगी तो वे बीमारियाँ पीढी दर पीढी भी चल सकती हैं यथा डायबिटीज़।
कालज
कालज बल दिन के समय, मौसम, आयु और जन्म स्थान जैसे कारकों पर आधारित है, ये प्रतिरक्षा को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण कारक हैं। जैसे वयस्कों में अधिक आयु वालो की तुलना में अधिक बल होता है। इसी तरह हेमंत ऋतु में ग्रीष्म ऋतु की तुलना में अधिक बल होता है। ऐसे स्थान जहां पानी, तालाब आदि अधिक हो और सुखद वातावरण हो, ये कफकारक स्थान होते हैं जहां प्राकृतिक रूप से अधिक इम्युनिटी होती है।
युक्तिकृत
यह वो इम्युनिटी है जो व्यक्ति जन्म के बाद अर्जित करता है। आयुर्वेद में इसके लिये विभिन्न सुझाव दिये गये हैं जैसे व्यायाम, सात्म्य एवम रसायनों (जडी-बूटियो) का प्रयोग।
शरीर में बल बढाने वाले कारक- Body Boosting Factors
ऐसे देश में जन्म लेना जहां प्राकृतिक रूप से लोग बलशाली हो।
शिशिर और हेमंत ऋतु में जन्म होना जब स्वाभाविक रूप से बल बढ जाता है।
सुखद और अनुकूल जलवायु का होना।
बीज के गुण अर्थात शुक्राणु और डिंब उत्कृष्ट हो और माँ के गर्भाशय की उचित शारीरिक स्थिति में उत्कृष्टता।
ग्रहण किया गया भोजन शरीर के रख-रखाव के लिए उत्तम हो।
शारीरिक संगठन उत्तम होना।
मन की उत्कृष्टता।
व्यक्ति की प्रकृति का उत्तम होना।
माता-पिता दोनों की कम उम्र यानी कि उनकी आयु अधिक नहीं होनी चाहिए।
नियमित व्यायाम का अभ्यास करना।
हंसमुख स्वभाव और एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सद्भाव की भावना।
ये सभी गुण जिन लोगों में पाये जाते हैं, वे स्वाभाविक रूप से कम बीमार होते हैं। उनकी व्याधि क्षमत्व कि शक्ति या इम्युनिटी अधिक होती है।
आपने अकसर ऐसे लोगों को देखा होगा जो ज़रा से मौसम के बदलाव से भी बीमार हो जाते हैं, जबकि कुछ लोग उसी वातावरण में रह कर भी बीमार नहीं होते। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि कुछ लोगों की इम्युनिटी बाकी लोगों के मुकाबले में बेहतर होती है। कम इम्युनिटी के कारण भिन्न बीमारियाँ जैसे इंफेक्शन, आटो-इम्यून विकार एवं विभिन्न एलर्जी होने का खतरा बढ जाता है। आखिर ऐसे कौन से कारण हैं जो उन लोगों की इम्युनिटी बेहतर बनाते हैं और ऐसे कौन से कारण हैं जो इम्युनिटी कम करने के लिये ज़िम्मेदार हैं। तो आइये समझते हैं इम्युनिटी कम या ज़्यादा होने के कारण तथा इसके लक्षण।
इम्युनिटी कम होने के कारण- Causes of Lacking Immunity
आयुर्वेद में नौ कारकों का उल्लेख किया गया है जो शरीर की रोगों से लडने की क्षमता को कम करता है अर्थात् प्रतिरक्षा तंत्र को कमज़ोर करने के लिए जिम्मेदार है:
अति-स्थूल (अत्यधिक मोटे व्यक्ति)
अति-कृश (अत्यधिक दुबले-पतले व्यक्ति)
अनिविस्ट-मास (व्यक्ति का शरीर ठीक से मांसल न होना)
अनिविस्ट-अस्थि (दोषपूर्ण अस्थि ऊतक वाले व्यक्ति)
अनिविस्ट-शोणित (दोषपूर्ण रक्त होना)
दुर्बल (कमजोर व्यक्ति)
असात्म्य-आहारोपाचिता (ऐसे व्यक्ति जिनका पोषण सही भोजन द्वारा न हुआ हो)
अल्प-आहारोपाचिता (अल्प मात्रा में आहार लेने वाले)
अल्प-सत्त्व (कमज़ोर दिमाग वाले व्यक्ति)
ओज की हानि क्रोध, भूख, चिंता, दु: ख और अत्यधिक परिश्रम आदि से भी होती है। ये सभी मनुष्य की प्रतिरक्षा प्रणाली को कम करते हैं। इसके अलावा सबसे आम कारणों में कुपोषण, सफाई की कमी होना और कई तरह के वायरस संक्रमण (जैसे एचआईवी) शामिल हैं। अन्य कारणों में वृद्धावस्था, दवाएं (जैसे कोर्टिसोन, साइटोस्टैटिक ड्रग्स), रेडियोथेरेपी, सर्जरी के बाद तनाव और अस्थि मज्जा के घातक ट्यूमर भी शामिल हैं।
अच्छी इम्युनिटी होने के कारण- Causes of Good Immunity
कुछ कारण ऐसे होते हैं जो व्यक्ति में प्राकृतिक रूप से अधिक इम्युनिटी के लिये ज़िम्मेदार होते हैं। ऐसे व्यक्ति असात्म्य आहार-विहार के बाद भी इतनी जल्दी बीमार नहीं होते। निम्न कारक अच्छी इम्युनिटी के लिये ज़िम्मेदार हैं:
माता के गर्भाशय का स्वस्थ होना: जैसे अच्छी खेती के लिये भूमि तथा मिट्टी का उपजाऊ होना आवश्यक है, उसी प्रकार माता के गर्भाशय का स्वास्थ्य अच्छा होना भी बच्चे के सही से बढने के लिये आवश्यक है। ऐसे बच्चों के बीमार पडने की सम्भावना कम होती है।
जन्म के पश्चात पोषण: बचपन से ही समय पर सही मात्रा में पोषण होना भी इम्युनिटी को बढाने में सहायक है। जैसे जन्म से लेकर छः माह तक सिर्फ माँ का दूध पिलाने की सलाह दी जाती है, यह बच्चे में बीमारियों से लडने की क्षमता का विकास करता है।
व्यक्ति की प्रकृति: आम तौर पर कफ प्रकृति के व्यक्तियों का प्रतिरक्षा तंत्र वातिक और पैत्तिक प्रकृति के लोगों की तुलना में मजबूत होता है। सामान्य अवस्था में कफ को बल और ओज माना जाता है जबकि असामान्य अवस्था में यह मल और व्याधि उत्पन्न करता है। सामान्यतः कफ का कार्य ओज के समान है। सामान्य अवस्था में कफ स्थिरता, भारीपन, पौरुष, प्रतिरक्षा, प्रतिरोध, साहस और धैर्य प्रदान करता है।
देहाग्नि या जठराग्नि: पेट की पाचन शक्ति त्वचा की चमक, शक्ति, स्वास्थ्य, उत्साह, कोमलता, रंग, ओज, शरीर के तेज और प्राण या जीवन शक्ति के लिये ज़िम्मेदार है। पाचन शक्ति सही होने से व्यक्ति को लंबी उम्र जीने में मदद मिलती है और कमज़ोर पाचन शक्ति बीमारियों को जन्म देती है। पाचन अग्नि मानव शरीर में पोषक तत्वों को पचाने, आत्मसात करने और अवशोषित करने में शरीर की मदद करता है तथा प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करता है।
मनः स्थिति: जीवन के प्रति सकारात्मक सोच का होना बहुत महत्वपूर्ण है। यह मजबूत मानसिक शक्ति को दर्शाता है तथा निश्चित रूप से अच्छी इम्युनिटी में सहायक है।
ध्यान लगाना: मन को आध्यात्मिक रूप से एक ही जगह लगाने से आत्म-जागरूकता और सकारात्मक सोच आती है, जिससे मानसिक शक्ति और इम्युनिटी में वृद्धि होती है।
प्रतिरक्षा तंत्र कमज़ोर होने के लक्षण- Symptoms of Weakened Immune System
हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली या इम्यून सिस्टम कीटाणुओं और जीवाणुओं के खिलाफ लडती है जो की बीमारियों का कारण बन सकते हैं। हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को स्वस्थ और संतुलित रखना व्याधि मुक्त जीवन शैली के लिए महत्वपूर्ण है। किंतु हमारा इम्यून सिस्टम कमज़ोर हो तो हमें कैसे पता लगेगा? निम्न कुछ लक्षण कमज़ोर इम्यून सिस्टम की ओर इशारा करते हैं:
बार-बार संक्रमण: यदि आपका प्रतिरक्षा तंत्र कमज़ोर है तो आप सामान्य प्रतिरक्षा प्रणाली वाले किसी व्यक्ति की तुलना में अधिक, लगातार, लंबे समय तक चलने वाले संक्रमण का शिकार हो सकते हैं।
थकान: थकान कमज़ोर प्रतिरक्षा तंत्र के प्रमुख लक्षणों में से एक है। अगर आप लगातार थकावट महसूस कर रहे हैं या आप आसानी से थक जाते हैं, तो हो सकता है कि आपका इम्यून सिस्टम ठीक नहीं है। ज़्यादा या कम कोर्टिसोल का स्तर आपके प्रतिरक्षा प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, जिससे थकान होती है। कुछ ऑटोइम्यून बीमारियों से भी थकान होती है।
ठंड और गले में खराश: यदि आपको बार-बार सर्दी-ज़ुकाम होती है, आप ठंड के प्रति संवेदनशील हैं और बार-बार गले में खराश होती है, तो यह कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली की ओर इशारा करता है।
एलर्जी: एलर्जी तब होती है जब आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली धूल, पराग जैसे हानिरहित पदार्थों के प्रति असामान्य रूप से प्रतिक्रिया करती है। यदि आप घरघराहट, खुजली, बहती नाक, आंखों से पानी आना या खुजली होने का अनुभव करते हैं, तो इसका मतलब है कि आपकी इम्युनिटी कमज़ोर हो रही है।
चोट लगने पर उनका घाव जल्दी न भरना: हमारी त्वचा वायरस और बैक्टीरिया के खिलाफ सबसे पहले रक्षा करती है। यदि प्रतिरक्षा प्रणाली कमज़ोर है, तो घाव पर बैक्टीरिया संक्रमण होना आसान हो जाता है और उस घाव को भरना मुश्किल हो जाता है।
कब्ज़, दस्त या पेट में दर्द होना: जब आंत के बैक्टीरिया संतुलित होते हैं, तो आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली भी संतुलित रहती है। परन्तु यदि आप बार-बार दस्त, पेट में संक्रमण और मतली जैसी पाचन समस्याओं से पीड़ित हैं, तो यह संकेत है कि आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर है।
रक्ताल्पता या एनीमिया: एनीमिया एक ऐसी स्थिति है जहां लाल रक्त कोशिकाओं या हीमोग्लोबिन में कमी होती है। कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली कभी-कभी लाल रक्त कोशिकाओं को नष्ट कर देती है, जिससे एनीमिया हो सकता है। इससे थका हुआ महसूस करना, कमजोरी, सांस की तकलीफ या व्यायाम करने की क्षमता का कम होना जैसे लक्षण आ सकते हैं।
जोड़ों का दर्द: जोडो में दर्द इम्यून सिस्टम में असंतुलन का एक परिणाम हो सकता है। जब प्रतिरक्षा प्रणाली कमज़ोर होती है, तो गठिया, संधिशोथ जैसी स्थितियां होती हैं। यह रुमेटाइड आर्थरायटिस जैसे ऑटोइम्यून रोगों को ट्रिगर कर सकता है, जिसमें प्रतिरक्षा प्रणाली स्वस्थ ऊतक पर हमला करती है। इसमें जोडो की सूजन, लालिमा, गर्मी, कठोरता, दर्द और बुखार जैसे लक्षण आते हैं।
इन लक्षणों के अलावा ऐसे व्यक्ति में झल्लाहट, दुर्बलता, बिना कारण चिंता, असुविधा महसूस करना, त्वचा का रंग खराब होना और त्वचा का सूखापन आदि लक्षण पाये जाते हैं।
कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों के स्वास्थ्य के लिए क्या किया जा सकता है?- What can be done for the health of people with weakened immune systems?
यदि आप या आपके आस-पास किसी व्यक्ति की इम्युनिटी कमज़ोर है, तो ऐसे में स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। इसके लिये निम्न कुछ उपाय अपनाये जा सकते हैं:
ऐसे व्यक्तियों को साफ-सफाई का बहुत ध्यान रखना चाहिये। प्रतिदिन नहाना, बार-बार हाथ धोना, घर की सतहों को साफ रखना चाहिये।
जितना संभव हो सके बीमार लोगों के साथ संपर्क सीमित करें। वायरस या बैक्टीरिया एक-दूसरे के संपर्क में आने से फैल सकते हैं। इसलिये बेहतर है कि निश्चित दूरी बना कर रहेँ।
तनाव से बचें। विभिन्न शोध में ये बात सामने आई है कि तनाव व्यक्ति के इम्यून सिस्टम पर बुरा प्रभाव डालता है। ऐसे व्यक्ति अधिक बीमार होते हैं। इसी लिये व्यक्ति को तनाव दूर करने के लिए अपने जीवन में योग, मेडिटेशन तथा मन-पसंद रुचियों को शामिल करना चाहिये। सोशल मीडिया से थोडी दूरी बना के रहे व परिवार तथा दोस्तों के साथ वक़्त बिताएँ।
घर का बना शुद्ध भोजन करें। अधिक से अधिक फलो तथा सब्जियों को अपने भोजन में शामिल करें। सभी चीजो को धो कर ही खाये। फ्रीज़ किये गये पदार्थ, डिब्बा बंद खाने न खाये। सही से न पका हुआ मीट, मछली खाने से परहेज़ करें।
नियमित रूप से व्यायाम करें। यह शरीर में एंडोर्फिन्स का स्राव कराता है जो तनाव का स्तर भी कम करता है। परंतु अपनी शक्ति से अधिक व्यायाम न करें।
प्रत्येक दिन 7-8 घंटे की नींद आवश्यक रूप से लें। ठीक से नींद न लेना भी आपकी इम्युनिटी को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है।
अतः ये कुछ उपाय अपना कर आप भी बीमारियों से मुक्त एक स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।
संदर्भ:
अष्टांग हृदयम् १ / त्रिपाठी ब्रह्मानंद; चौखम्बा संस्कृत प्रतिष्ठान, दिल्ली, प्रथम संस्करण।
चरक संहिता, त्रिपाठी ब्रह्मानंद, चौखम्बा प्रकाशन, वाराणसी, प्रथम संस्करण।
सुश्रुत संहिता; घनेकर भास्कर; मेहरचंद लछमणदास प्रकाशन, नई दिल्ली।
चरक संहिता (चक्रपाणिदत्त द्वारा आयुर्वेद दीपिका टीका) यादवजी त्रिकमजी, संपादक-वाराणसी: चौखम्भा सुरभारती प्रकाशन।
एम.के. शर्मा- व्याधिमक्षत्व की अवधारणा और बल के साथ इसका संबंध।
चरक संहिता (विद्योतिनी हिंदी टीका), भाग- I काशीनाथ शास्त्री, गोरखा नाथ चतुर्वेदी, संपादक-वाराणसी: चौखम्भा भारती अकादमी।
आयुर्वेद अनुसार शरीर मूल रूप से दोष, धातु और मल से बना है। भोजन के पाचन और चयापचय की प्रक्रिया के बाद मूत्र तथा मल आदि उत्पाद बनते हैं। जब मल अपनी सामान्य मात्रा से अधिक बढ़ जाता है तो यह शरीर में दर्दनाक विकार पैदा करता है। आयुर्वेद में शब्द विबंध कब्ज़ के लिये प्रयोग किया गया है तथा यह विशेष रूप से पुरीषवह श्रोतों(उत्सर्जन तंत्र) में दुष्टि को इंगित करता है। यह दुष्टि शौच के दमन, बड़ी मात्रा में भोजन का सेवन, पिछले भोजन के पाचन से पहले भोजन का सेवन इन कारणों से होती है। यह विशेष रूप से उन लोगों में होता है जो क्षीण(पतले) होते हैं और पाचन की शक्ति कमज़ोर होती है। किंतु आधुनिक समय में जीवनशैली कुछ इस तरह बदली है कि यह रोग बहुत आम हो गया है। तो आइये समझते हैं यह रोग क्यों होता है, इसके लक्षण क्या हैं, तथा इससे कैसे बचा जा सकता है।
विषय - सूची
कब्ज़ क्या है
कब्ज़ के कारण
कब्ज़ के लक्षण
निदान
कब्ज़ के सामान्य उपाय
क्या खाएं और किससे बचें
अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
कब्ज़ क्या है ?
कब्ज पेट की शिकायतों में से सबसे आम समस्या है, जिसके परिणामस्वरूप प्रति वर्ष २ मिलियन से अधिक कब्ज़ के रोगी चिकित्सक के पास आते हैं। भारत में, पश्चिम में प्रति सप्ताह 3 के विपरीत सामान्य मल आवृत्ति प्रति दिन 1 है। इससे कम मल त्याग को ही कब्ज़ कहा जाता है।
कब्ज से तात्पर्य ऐसे मल त्याग से है, जो कठिन तथा असामान्य हो। कब्ज दर्दनाक शौच का एक आम कारण है। इसमें कम से कम 3 महीनों के लिए निम्नलिखित लक्षणों में से किसी दो या अधिक की उपस्थिति होनी चाहिये(ROME II मानदंड): 1. मल का अपर्याप्त त्याग करना (3 मल त्याग / सप्ताह) 2. कठिन मल 3. मल पर दबाव डालना 4. पूर्णतः मलत्याग न होना।
आयुर्वेद में कब्ज का वर्णन, वमन और विरेचन के व्यापद में आता है। यह अपतर्पणजन्य रोग (पोषण की कमी के कारण होने वाली बीमारी) बताया गया है।
कब्ज़ के कारण
सामान्य मल त्याग न होने से जन्मी अनियमित शौच प्रवृत्ति की आदतों के कारण कब्ज़ की उत्पत्ति होती है। आयुर्वेद में वात दोष का दूषित होना कब्ज़ का कारण बताया गया है। अपान वायु एक प्रकार का वात है जो अधोमुख गति को नियंत्रित करता है। मल का उत्सर्जन अपान वायु द्वारा नियंत्रित होता है। अपान वायु में असंतुलन बृहदान्त्र को और इसकी मांसपेशियों के काम को प्रभावित कर सकता है जो कब्ज पैदा करता है। आयुर्वेद में इसके निम्न कारण बताये गये हैं-
सन्निरुद्ध गुद (गुदा की सिकुडन)।
क्षीर(दूध)- वात दूषित स्तन सेवन, कषाय रस प्रधान क्षीर सेवन।
मल में उत्पन्न कृमि- कृमि से भी कब्ज़ होता है।
मल का वेग धारण करना।
पुरीषवह श्रोतों(उत्सर्जन तंत्र) में दुष्टि।
कब्ज़ को कई बीमारियों में लक्षण के रूप में भी देखा जा सकता है, जैसे- आंतो का कैंसर, फिशर, बवासीर, डाइबिटीज़, थायराइड डिसआर्डर इत्यादि। इसके अलावा कम खाना, भोजन में फाइबर की कमी, रुखा और भारी भोजन करना, पानी कम पीना, शारीरिक गतिविधियों का कम होना, कुछ दवाओं का सेवन(आयरन सप्लीमेंट, ओपिएट्स आदि) इनके कारण भी कब्ज़ होती है।
कब्ज़ के लक्षण
आचार्य चरक के अनुसार, यदि कोई शौच को रोक के रखता है तो इससे पेट दर्द, सिरदर्द, मल और वायु का प्रतिधारण, पिंडली की मांसपेशियों में ऐंठन और पेट का फूलना ये लक्षण आते हैं। इसके अलावा कब्ज़ के निम्न लक्षण बताये गए हैं-
मल का निष्कासन न होना
मल त्याग के समय गुदा द्वार के आस-पास दर्द होना
अधिक बदबू आना
मल का ग्रथित रूप में निकलना
भोजन का पाचन न होना
भूख न लगना
एसिडिटी होना तथा अधिक डकार आना
उल्टी आने की प्रतीति होना
उत्साह में कमी होना
आलस्य आना
निदान
रोम II मानदंड के अनुसार कब्ज के लिए निम्न में से दो या अधिक लक्षण कम से कम 12 सप्ताह (जरूरी नहीं कि लगातार) के लिये होने चाहिये:
1) 25% से अधिक बार मल त्याग के दौरान तनाव होना
2) 25% से अधिक बार मल त्याग के दौरान ढेलेदार या कठोर मल का आना
3) 25% से अधिक बार मल त्याग के दौरान मल का अधूरा निष्कासन होने की अनुभूति
4) 25% से अधिक बार मल त्याग के दौरान अवरोध होने का अहसास होना
5) प्रति सप्ताह 3 से कम बार मल त्याग होना
6) मल सख्त हैं, और इरिटेबल बाउल सिंड्रोम के लिए अपर्याप्त मापदंड मिले।
इसके अलावा डिजिटल मलाशय परीक्षा, प्रोक्टोस्कोपी और सिग्मायोडोस्कोपी कब्ज का सही कारण जानने के लिए उपयोगी जांच है। यदि लक्षण बने रहते हैं, तो असली बीमारी जानने के लिए बेरियम एनीमा और कोलोनोस्कोपी की जानी चाहिए।
कब्ज़ के सामान्य उपाय
संक्षेप में, कब्ज को ठीक करने के लिये इसके कारणों का निवारण ज़रूरी है। जैसे- डाइट का ठीक न होना, खान-पान की गलत आदतें, कम फाइबर की मात्रा, पानी कम पीना, इन चीज़ों की बदलने की आवश्यकता है। इसके अलावा कब्ज़ को कम करने के लिये निम्न सुझाव अपनाए जा सकते हैं-
सुबह जल्दी उठ कर एक गिलास गर्म पानी पिएं -यह गैस्ट्रो-कोलिक रिफ्लेक्स में मदद करता है और इसके फलस्वरूप मल त्याग होता है।
आधे से एक चम्मच त्रिफला चूर्ण को पानी के साथ ले सकते हैं। यह मल त्याग में सहायक है।
एक से दो चम्मच इसबगोल को गर्म पानी में घोल के पी सकते हैं। यह मल में फाइबर की मात्रा बढा के उसको ढीला कर आसानी से निकाल देता है।
अलसी के बीजों का चूर्ण भी गर्म पानी के साथ लेने से मलत्याग को आसान करता है।
रात को सोने से पहले एक गिलास गर्म दूध में एक चम्मच घी डाल के पीना भी कब्ज़ में सहायक है। यह वात दोष को शांत कर देता है।
6-7 मुनक्को को दूध में उबाल कर पीने से भी कब्ज़ दूर होती है।
गर्म पानी में भीगी हुई अंजीर का सेवन कर सकते है, यह मल के निष्कासन में सहायक है।
भोजन के बाद सौंफ का गर्म पानी के साथ सेवन भी पाचन में सहायक है तथा यह रेचक(माइल्ड लैक्सेटिव) भी है।
विभिन्न योगाभ्यास भी कब्ज़ में लाभदायक हैं जैसे- कुर्मासन, वक्रासन, कटिचक्रासन, सर्वांगासन, शवासन, पवनमुक्तासन, मंडुकासन, वज्रासन आदि एवम शंख प्रक्षालन, नाडिशोधन, सूर्य नमस्कार, अनुलोम विलोम भी इसके लक्षणों को कम करता है।
क्या खाएं और किससे बचें?
कब्ज का इलाज करने के लिए आहार में परिवर्तन आवश्यक है। सेवन किए जाने वाला आहार ऐसा होना चाहिए जो वात दोष को शांत करे। आयुर्वेद में गर्म और पके हुए खाद्य पदार्थों के सेवन की सलाह दी जाती है। कोल्ड ड्रिंक और ठंडे भोजन से सख्ती से बचना चाहिए। आयुर्वेद अनुसार कुछ आहार संबंधी सुझाव निम्न हैं:
भोजन गर्म और ताजा पकाया हुआ खाना चाहिए।
भोजन में लहसुन, हल्दी, जीरा, और हींग जैसे मसालों का उपयोग करना चाहिये।
खाना बनाते समय घी या तेलों का उपयोग करें। यह वात का शमन करेगा।
अदरक का रस कब्ज को ठीक करता है। इसकी चाय बना कर पी सकते हैं।
गेहूं, हरे चने, फल और फाइबर से भरपूर सब्जियों और हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करना चाहिए। कब्ज के लिए सेब, केला, अमरूद, अंजीर, संतरा और पालक आहार में शामिल करे।
काला नमक पाचन में सहायक होता है तथा कब्ज को कम करता है।
विबंध या कब्ज़ अपतर्पण जन्य रोगो में से एक है, अतः इसके उपचार में भुना हुआ मकई का आटा, शहद और चीनी से बने पेय उपयोगी साबित होते हैं।
तला हुआ भोजन, प्रोसेस्ड फूड, मसालेदार भोजन और मांसाहारी भोजन से बचना चाहिए।
अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
कब्ज को जल्दी से कैसे ठीक कर सकते हैं?
कब्ज़ को ठीक करने के लिये सबसे सरल तरीका है रेचक दवा का उपयोग करना। त्रिफला एक प्राकृतिक रेचक है जो कब्ज़ के लिये प्रयोग कर सकते हैं। कब्ज के तेजी से इलाज के लिये इसबगोल के उपयोग की भी सलाह दी जाती है।
कब्ज़ के क्या-क्या काम्प्लीकेशन हो सकते हैं?
मल को पास करने से गुदा के आसपास की नसों में सूजन हो सकती है। इससे बवासीर हो सकता है। ये बवासीर रक्तस्राव शुरू कर सकते हैं, जो एक गंभीर रोग है।
मल त्याग के समय अत्यधिक तनाव देने से मलाशय के अपने स्थान से बाहर आने का खतरा होता है। मलाशय कर निकल कर गुदा से बाहर आ सकता है।
जब मल बहुत कठिन होता है, तो मल त्याग करने से गुदा पर दबाव पड़ता है और गुदा द्वार पर कट भी लग सकता है। यह बेहद दर्दनाक होता है और यहां तक कि रक्तस्राव भी हो सकता है।
जब लंबे समय तक कब्ज होता है, तो बृहदान्त्र में मल फंस जाता है। यह दर्द, सूजन और अगर अनुपचारित रहे तो गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकता है।
कब्ज के इलाज के लिये घरेलू उपाय क्या हैं?
कब्ज के लिए कई घरेलू उपचार हैं जो कब्ज के इलाज में सहायक हो सकते हैं।
खूब पानी पीना। पानी के साथ नींबू का रस पाचन में सुधार और कब्ज का इलाज करने में मदद कर सकता है।
अदरक का उपयोग करके बनाई गई हर्बल चाय सहायक हो सकती है।
बेल के गूदे को गुड के साथ लिया जा सकता है।
मुलेठी एक आयुर्वेदिक जड़ी बूटी है जो प्राकृतिक रेचक के रूप में काम करती है। इसे गुड़ के साथ मिलाकर लिया जा सकता है।
किशमिश और अंजीर उच्च फाइबर की मात्रा के कारण कब्ज़ में सहायक होते हैं।
पका हुआ केला भी मल त्याग में मदद करता है।
सभ्यता के विकास के साथ मनुष्य शारीरिक रूप से निष्क्रिय हो गया है। आधुनिकीकरण, संपन्नता, विज्ञान और तकनीकी विकास के फलस्वरूप आधुनिक जीवन शैली गतिहीन होती जा रही है। बढ़ती निष्क्रिय जीवनशैली के साथ आहार में बदलाव ने कई देशों में मोटापे की महामारी को जन्म दिया है। शारीरिक गतिविधि में कमी के साथ वसा और गुरु आहार द्रव्यों की भोजन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। औद्योगिकीकरण और आर्थिक प्रगति में उन्नति के साथ साथ आज कल अधिक से अधिक नौकरियां सिर्फ ऑफिस डेस्क तक सिमट के रह गई हैं तथा आहार के पैटर्न में बदलाव के साथ चीनी और वसा के सेवन में वृद्धि हो रही है। इस सबके कारण ही मोटापे तथा इससे जुडी समस्याओं में वृद्धि हुई है। तो आइये जानते हैं मोटापा क्या है, इसके कारण तथा इससे कैसे छुटकारा कैसे पाया जा सकता है।
विषय - सूची
मोटापा क्या है
मोटापे के कारण
मोटापे के लक्षण
निदान
मोटापे के सामान्य उपाय
क्या खाएं और किससे बचें
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
मोटापा क्या है?
आयुर्वेद में आचार्य चरक ने अष्ट निंदित पुरुष का वर्णन किया है तथा इनमे भी इन दो रोगों का विशेष रूप से वर्णन किया है- अतिस्थूल(अधिक मोटा) तथा अतिकार्श्य(अधिक पतला)। इनमें अतिस्थूल(अधिक मोटे) व्यक्ति को इसके जटिल व्याधिजनन और उपचार के कारण अतिनिंदित माना गया है। आयुर्वेद में मोटापे को स्थौल्य या मेदोरोग कहा गया है। यह संतर्पणोत्थ विकारो (अति पोषण के कारण होने वाला रोग) के अंतर्गत आता है। आयुर्वेद में शारीरिक व मानसिक संतुलन को ही स्वास्थ्य की परिभाषा दी गयी है। इसके अनुसार, मोटापा एक ऐसी स्थिति है, जिसमें मेद धातु (फैटी टिश्यू) की विकृति/ वृद्धि की होती है।
आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से, किसी भी अन्य बीमारी की तरह, मोटापा गलत भोजन के सेवन या अनुचित आहार की आदतों और जीवनशैली के विकास के साथ शुरू होता है, जिसके परिणामस्वरूप पाचन अग्नि की समस्या होती है, जो आगे जा कर आम को बढ़ाती है। बढे हुए आम के कारण चयापचय प्रक्रिया विचलित हो कर अधिक मेद धातू (फैटी टिश्यू) का निर्माण करती है और आगे की धातू निर्माण जैसे कि अस्थि (हड्डियों) के निर्माण को अवरुद्ध करती है। अत्यधिक रूप से बढी हुई मेद धातू कफ के कार्यों में अवरोध उत्पन्न करती हैं।
दूसरी ओर, जब आम सभी शारीरिक चैनलों को अवरुद्ध करता है तो यह वात दोष में असंतुलन पैदा करता है। वात दोष पाचन अग्नि (जठराग्नि) को उत्तेजित करता रहता है, जिससे भूख में वृद्धि होती है इसलिए व्यक्ति अधिक से अधिक भोजन करता है। मेद धात्वाग्नि मांद्य (कमजोर वसा चयापचय) के कारण अनुचित या असामान्य मेद धातु बनती है, जो मोटापे का मूल कारण है।
अतः मोटापा या स्थौल्य एक ऐसा रोग है जिसमें व्यक्ति मेद(फैटी टिश्यू) और मांस के अत्यधिक विकास के कारण काम करने में असमर्थ होता है और उसके नितंबों, पेट और स्तनों के अधिक विकास के कारण शारीरिक विघटन खराब हो जाता है।
मोटापे के कारण
मोटापा एक ऐसी अवस्था है जिसमें त्वचा तथा आंतरिक अंगों के आस-पास वसा का अत्यधिक संचय हो जाता है। जब लोग अधिक वसायुक्त भोजन करते हैं तथा शारीरिक श्रम नहीं करते तब शरीर में जरूरत से ज्यादा कैलोरी संचित हो जाती है जो वजन बढने का कारण है। कई अन्य कारण भी मोटापा बढाते हैं जैसे कि गर्भावस्था, ट्यूमर, हार्मोनल विकार और कुछ दवाएं जैसे साइकोटिक ड्रग्स, एसट्रोजन्, कॉर्टिकॉ-स्टेरायड्स और इंसुलिन।
आयुर्वेद तथा आधुनिक चिकित्सा प्रणाली दोनो ने मोटापे को कई कारणो की वजह से उत्पन्न माना है। मोटापे के आयुर्वेद में निम्न कारण बताये गए हैं-
अध्यशन (दोपहर के भोजन या रात के खाने के बाद दोबारा भोजन लेना)
अति बृन्हण (अति पोषण)
गुरु आहार सेवन (कठिनाई से पचने वाला भोजन करना)
मधुर आहार सेवन (मीठी वस्तुओं का सेवन)
स्निग्ध भोजन सेवन (कफ बढाने वाला भोजन करना)
अव्यायाम (व्यायाम न करना)
अव्यवाय (यौन गतिविधियों की कमी)
दिवा स्वप्न (दिन में सोना)
अतिस्नान सेवन
बीज दोष (आनुवान्शिक कारण)
अग्निमांद्य (पाचक अग्नि में कमी होना)
मोटापे के लक्षण
मोटापा व्यक्ति के जीवन में नकारात्मक प्रभाव डालता है। इससे ग्रसित व्यक्ति न सिर्फ शरीरिक रूप से परेशान रहता है, बल्कि मानसिक रूप से भी वह हीन भावना का शिकार हो कर अवसाद में जा सकता है। इसके सामान्यतः निम्न लक्षण होते हैं-
अतिस्वेद [अत्यधिक पसीना आना]
श्रमजन्य श्वास [हल्के परिश्रम पर सांस फूलना]
अति निंद्रा [अत्यधिक नींद आना]
कार्य दौर्बल्यता [भारी काम करने में कठिनाई]
जाड्यता [आलस्य]
अल्पायु [लघु जीवन काल]
अल्पबल [शक्ति में कमी]
शरीर दुर्गन्धता [शरीर की दुर्गंध]
गदगदत्व [अस्पष्ट आवाज]
क्षुधा वृद्धि (अत्यधिक भूख)
अति तृष्णा [अत्यधिक प्यास]।
मोटापे का निदान
वैसे तो मोटापे के निदान के लिये बहुत से वर्गीकरण हैं। लेकिन बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) पर आधारित विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का वर्गीकरण व्यापक रूप से स्वीकृत है। व्यक्ति के वजन(किलोग्राम में) को उसकी लम्बाई(मीटर में) के वर्ग द्वारा विभाजित कर बीएमआई निकाला जाता है। यह लम्बाई और आकार के आधार पर व्यक्ति के आदर्श वजन का अनुमान लगाता है।
18.5 से ले कर 24.9 तक बीएमआई सामान्य माना जाता है। 25 या इससे ऊपर बीएमआई वाल्रे मोटापे की श्रेणी में आते हैं।
मोटापे के सामान्य उपाय
मोटापा दूर करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है इसके कारणों को दूर करना। यह एक ऐसी बीमारी है जो शरीर की आवश्यकता से अधिक कैलोरी लेने की वजह से होती है। आयुर्वेद में, मोटापे का इलाज केवल वजन घटाने तक सीमित नहीं है, बल्कि चयापचय प्रक्रियाओं को ठीक कर आम को कम करके तथा वात-कफ के कार्य को नियमित कर अतिरिक्त वसा को कम किया जाता है।
चयापचय को ठीक करने के साथ-साथ पाचन अग्नि बढाने तथा स्रोतस शोधन के लिये, आहार की आदतों में सुधार करना और तनाव को कम करना महत्वपूर्ण है। इसके लिये निम्न कुछ उपाय घर में सरलता से किये जा सकते हैं-
लंघन- लंघन यानी ऐसे उपाय जो शरीर में हल्कापन लाये। जैसे-
ऊष्ण जल सेवन- सुबह उठने के पश्चात गर्म पानी का सेवन करें, यह न सिर्फ शरीर में लघुता लायेगा बल्कि आम पाचन भी करेगा।
उपवास- सप्ताह में एक दिन उपवास का सेवन करें। इस अवधि में आप मूंग की दाल का पानी या नारियल का जूस इत्यादि ले सकते हैं।
नियमित व्यायाम- माथे पर पसीना आने तक दैनिक नियमित रूप से व्यायाम जरूरी है। सुबह नियमित रूप से 30 मिनट तक पैदल चलें व व्यक्तिगत क्षमता के अनुसार व्यायाम करे। इसमें योगासन भी सहायक हैं, जैसे- सूर्य नमस्कार, धनुरासन, भुजंगासन, पवनमुक्तासन, पस्चिमोत्तानासन, ताड़ासन इत्यादि।
आम पाचन- आम की उपस्थिति में वजन कम करना बेहद मुश्किल है। इस कारण से लोग सीमित भोजन का सेवन करते हुए भी अपना वजन कम करने में असफल रहते हैं। इसलिए पहले आम से छुटकारा पाना महत्वपूर्ण है.
आम को खत्म करने के लिये पहले उन कारणों से बचना है जो आम की उत्पत्ति कर रहे हैं। पिछला भोजन ठीक से पचने से पहले खाने से बचें। आसानी से पचने वाला तथा मात्रा में कम भोजन खाएं। ठंडा या बासी भोजन न करें।
इसके लिये सौंफ और गुनगुने पानी का सेवन लाभदायक है।
अदरक भी आम पाचन में सहायक है। आप इसका काढा बना कर पी सकते हैं।
हल्दी, काली मिर्च जैसे मसाले अपने आहार में नियमित रूप से शामिल करें।
इसबगोल और त्रिफला को रोजाना रात को सोने से पहले लें। एक कप गर्म दूध में एक चम्मच घी मिलाकर पीना भी सहायक होता है।
कफ दोष शमन- मोटापे में कफ दोष बढ जाता है। इसके संतुलन के लिये निम्न उपाय अपनाये-
अपने आहार में मिर्च, सरसों के बीज और अदरक जैसे तीखे मसालों का उपयोग करें।
शहद को छोड़कर मीठे पदार्थों से बचें। रोजाना एक चम्मच या दो (लेकिन अधिक नहीं) शहद का सेवन करे। इसे सादा पानी में मिला कर पी सकते हैं।
तिक्त रस(कड्वा) सेवन- कफ दोष के शमन के लिये कड्वी चीज़ों को अपने आहार में शामिल करिये जैसे गिलोय, नीम, करेले का जूस इत्यादि।
गुरु अपतर्पण- यानी ऐसा आहार लेना जो भूक को भी शांत कर दे व मोटापा भी न बढाये।
इसके लिये जौ बेहद कारगर उपाय है. जौ का नमकीन दलिया या इसके आटे की रोटी का प्रयोग करे।
चावल का मांड- आयुर्वेद में इसे बनाने के लिये 14 गुना जल डाल कर चावल का मांड बताया गया है। इसमे आप अपने स्वाद के अनुसार हींग और सेंधा नमक डाल सकते हैं।
क्या खाएं और किससे बचें
अस्वास्थ्यकर आहार से शरीर में वसा ऊतक(फैटी टिश्यू) का निर्माण होता है जिसके परिणामस्वरूप मोटापा होता है। इसलिए पर्याप्त फाइबर युक्त स्वस्थ आहार का सेवन, सक्रिय जीवन शैली को अपनाना और तनाव और थकान को प्रबंधित करने के लिए योग और ध्यान का अभ्यास करना अधिक वजन / मोटापे की रोकथाम के लिए आवश्यक है। इसके लिए जीवन शैली में निम्न संशोधन किये जा सकते हैं-
नियमित समय पर भोजन करें।
पीने के लिए गर्म पानी का उपयोग करें।
सेहतमंद खाद्य पदार्थ जैसे - यव(जौ), हरा चना (मूंग की दाल), करेला, शिग्रू(ड्रमस्टिक), आंवला, अनार लें।
भोजन में तक्र(छाछ) का प्रयोग करें।
तली हुई के बजाय उबली हुई और बेक्ड सब्जियाँ प्रयोग करे।
आहार और पेय में नींबू शामिल करें। प्रातः काल एक गिलास गर्म पानी में एक नीम्बू का रस निचोड कर पिये, इसमे चीनी या नमक न मिलाये।
कम कैलोरी वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करें जैसे लौकी का जूस, सब्जियों का सूप इत्यादि।
अधिक मीठा, अधिक डेयरी उत्पाद, तले हुए और तैलीय पदार्थ, फास्ट फूड से दूर रहे।
भोजन में नमकीन भोजन या अत्यधिक नमक न ले।
मदिरा पान और धूम्रपान से बचें।
दिन में सोना सर्वथा त्याग दे।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
1)मोटापा किन कारणों से होता है?
मोटापा कई कारणों से होता है। मुख्य कारण हैं-
क)आनुवन्शिक कारण ख) ज़रुरत से ज़्यादा भोजन करना ग)हाइपोथायरायडिज्म और कुशिंग सिंड्रोम जैसी कुछ हार्मोनल स्थितियां मोटापे का कारण बन सकती हैं। कुछ दवाओं से भी मोटापा हो सकता है।
2) क्या मोटे लोगों को जल्दी मौत का खतरा है?
मोटे लोगों को जीवनशैली से जुड़ी बीमारियां जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल संबंधी रोग होने का खतरा होता है। ये रोग व्यक्ति की मृत्यु का कारण बन सकते हैं।
3) वज़न घटाने का सबसे अच्छा तरीका क्या है?
शारीरिक गतिविधि में वृद्धि, स्वस्थ आहार में बदलाव और अपने चिकित्सक से मिल कर प्रति सप्ताह 1 से 2 पाउंड वज़न कम करने का लक्ष्य रखें। वजन घटाने के लिये अपने आहार और दिनचर्या को ज़्यादा मुश्किल न बनाये। नियमित रूप से व्यायाम करें व मिताहार(नपा-तुला भोजन) करें।
मोटापे से ग्रस्त है पाकिस्तान की 50 प्रतिशत से अधिक आबादी : अध्ययन
इस्लामाबाद | पाकिस्तान की 50 प्रतिशत से अधिक आबादी मोटापे से ग्रस्त है और लोगों को मोटापे के कारण घातक बीमारियों का खतरा है। हालिया अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है। द न्यूज इंटरनेशनल ने रविवार को बताया कि पाकिस्तान हेल्थ रिसर्च काउंसिल के अध्ययन में कहा गया है कि देश में मोटे बच्चों की संख्या भी बढ़ती जा रही है।
अर्ल्ड ओबेसिटी फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित एटलस ऑफ चाइल्डहुड ओबेसिटी की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक पाकिस्तान में मोटापे से ग्रस्त बच्चों की संख्या 50 लाख को पार करने की आशंका जताई गई है।
आंकड़ों के मुताबिक, 5-19 साल के बीच के देश के 5,412,457 बच्चे मोटे होंगे।
2030 में मोटापे के साथ जीने वाले 10 लाख से अधिक स्कूली बच्चों और युवाओं की सूची में शामिल देशों की सूची में चीन और अमेरिका के शीर्ष पर रहने के साथ पाकिस्तान नौवें स्थान पर रहा। (आईएएनएस)
Dear Patron, Please provide additional information to validate your profile and continue to participate in engagement activities and purchase medicine.