75 साल की उम्र, 500 के करीब हर्बल दवाओं का ज्ञान : लक्ष्मीकुट्टी
घने जंगलों के बीच एक छोटा सा झोपड़ा. इस झोपड़े में दूर-दूर से लोग आते हैं और खुशी-खुशी जाते हैं. इस झोपड़े की धमक सिर्फ यही तक नहीं बल्कि दिल्ली के पीएम हाउस तक है. यह पद्मश्री अम्मा की झोपड़ी है जिन्हें लोग जंगल की दादी माँ के नाम से भी जानते हैं. हम बात कर रहे हैं लक्ष्मीकुट्टी के बारे में जो केरल राज्य के तिरुवनंतपुरम के कल्लार के जंगल क्षेत्र में रहती हैं. स्वयं प्रधानमंत्री मोदी अपने रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' में उनकी प्रशंसा कर चुके हैं. उन्हें साल 2018 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया. वे सर्प दंश, जहरीले कीड़े के काटने का इलाज करती हैं. खासकर सांप के काटने पर फैलने वाले जहर के काट के रूप में इनकी औषधियां न जाने कितने लोगों की जान बचा चुकी है. 75 साल की लक्ष्मीकुट्टी आज भी 500 के करीब हर्बल दवाएं अपनी याददाश्त से तैयार कर लेती हैं.
माँ से मिला जड़ी-बूटियों का ज्ञान
लक्ष्मीकुट्टी को जड़ी-बूटी और पेड़ों का इस्तेमाल कर उसे औषधि के रूप में इस्तेमाल करने का गुण उनकी मां से मिला. बीच जंगल में रहने वाली लक्ष्मीकुट्टी के पास अब तक हजारों लोग पहाड़ों को पार कर इलाज कराने आ चुके हैं. साल 1995 में केरल सरकार ने उन्हें नेचुरोपैथी अवॉर्ड से सम्मानित किया था.
बाँट रही हैं जड़ी-बूटियों का ज्ञान
लक्ष्मीकुट्टी ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हैं लेकिन जड़ी-बूटियों का उनका ज्ञान अथाह है. वे उन शुरूआती आदिवासी महिलाओं में से एक हैं जिन्होंने 1950 के दशक में स्कूल जाने की हिम्मत की जब वहां शिक्षा को लेकर उतनी जागरूकता नहीं थी. ख़ास बात ये है कि वे सिर्फ आयुर्वेदिक दवाएं ही नहीं बनाती बल्कि कविता भी लिखती हैं. उसके अलावा दक्षिण भारत के इंस्टीट्यूट में नैचुरल मेडिसिन पर व्याख्यान भी देती हैं. वे कल्लार में केरल लोक साहित्य अकादमी में शिक्षिका भी हैं. वह अपने ज्ञान को छात्रों, शोधकर्ताओं और आयुर्वेद की जड़ी-बूटियों में दिलचस्पी रखने वालों के बीच बांटती भी हैं. साल 2016 में उन्हें इंडियन बायोडाइवर्सिटी कांग्रेस ने हर्बल मेडिसिन के क्षेत्र में योगदान के लिए सम्मानित किया.
जंगल की दादी माँ जंगल को बचाना चाहती हैं
जंगल की दादी अम्मा लक्ष्मीकुट्टी को जब पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया तब उन्होंने कहा था , "मुझे बहुत खुशी है कि सरकार ने मुझे इतना बड़ा सम्मान दिया, मैं जंगल में रहती हूं और पेड़, पौधों का इस्तेमाल कर औषधि बनाती हूं, आजकल हर तरफ जंगल और पेड़ नष्ट किए जा रहे हैं, मैं चाहती हूं कि सरकार इस ओर भी ध्यान दे, शोध की मदद से हम कई बीमारियों का इलाज इन्हीं पेड़-पौधों से निकाल सकते हैं. लेकिन हमें अपने जंगलों को बचाना होगा.”
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