आयुर्वेद अनुसार शरीर मूल रूप से दोष, धातु और मल से बना है। भोजन के पाचन और चयापचय की प्रक्रिया के बाद मूत्र तथा मल आदि उत्पाद बनते हैं। जब मल अपनी सामान्य मात्रा से अधिक बढ़ जाता है तो यह शरीर में दर्दनाक विकार पैदा करता है। आयुर्वेद में शब्द विबंध कब्ज़ के लिये प्रयोग किया गया है तथा यह विशेष रूप से पुरीषवह श्रोतों(उत्सर्जन तंत्र) में दुष्टि को इंगित करता है। यह दुष्टि शौच के दमन, बड़ी मात्रा में भोजन का सेवन, पिछले भोजन के पाचन से पहले भोजन का सेवन इन कारणों से होती है। यह विशेष रूप से उन लोगों में होता है जो क्षीण(पतले) होते हैं और पाचन की शक्ति कमज़ोर होती है। किंतु आधुनिक समय में जीवनशैली कुछ इस तरह बदली है कि यह रोग बहुत आम हो गया है। तो आइये समझते हैं यह रोग क्यों होता है, इसके लक्षण क्या हैं, तथा इससे कैसे बचा जा सकता है।
विषय - सूची
कब्ज़ क्या है
कब्ज़ के कारण
कब्ज़ के लक्षण
निदान
कब्ज़ के सामान्य उपाय
क्या खाएं और किससे बचें
अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
कब्ज़ क्या है ?
कब्ज पेट की शिकायतों में से सबसे आम समस्या है, जिसके परिणामस्वरूप प्रति वर्ष २ मिलियन से अधिक कब्ज़ के रोगी चिकित्सक के पास आते हैं। भारत में, पश्चिम में प्रति सप्ताह 3 के विपरीत सामान्य मल आवृत्ति प्रति दिन 1 है। इससे कम मल त्याग को ही कब्ज़ कहा जाता है।
कब्ज से तात्पर्य ऐसे मल त्याग से है, जो कठिन तथा असामान्य हो। कब्ज दर्दनाक शौच का एक आम कारण है। इसमें कम से कम 3 महीनों के लिए निम्नलिखित लक्षणों में से किसी दो या अधिक की उपस्थिति होनी चाहिये(ROME II मानदंड): 1. मल का अपर्याप्त त्याग करना (3 मल त्याग / सप्ताह) 2. कठिन मल 3. मल पर दबाव डालना 4. पूर्णतः मलत्याग न होना।
आयुर्वेद में कब्ज का वर्णन, वमन और विरेचन के व्यापद में आता है। यह अपतर्पणजन्य रोग (पोषण की कमी के कारण होने वाली बीमारी) बताया गया है।
कब्ज़ के कारण
सामान्य मल त्याग न होने से जन्मी अनियमित शौच प्रवृत्ति की आदतों के कारण कब्ज़ की उत्पत्ति होती है। आयुर्वेद में वात दोष का दूषित होना कब्ज़ का कारण बताया गया है। अपान वायु एक प्रकार का वात है जो अधोमुख गति को नियंत्रित करता है। मल का उत्सर्जन अपान वायु द्वारा नियंत्रित होता है। अपान वायु में असंतुलन बृहदान्त्र को और इसकी मांसपेशियों के काम को प्रभावित कर सकता है जो कब्ज पैदा करता है। आयुर्वेद में इसके निम्न कारण बताये गये हैं-
सन्निरुद्ध गुद (गुदा की सिकुडन)।
क्षीर(दूध)- वात दूषित स्तन सेवन, कषाय रस प्रधान क्षीर सेवन।
मल में उत्पन्न कृमि- कृमि से भी कब्ज़ होता है।
मल का वेग धारण करना।
पुरीषवह श्रोतों(उत्सर्जन तंत्र) में दुष्टि।
कब्ज़ को कई बीमारियों में लक्षण के रूप में भी देखा जा सकता है, जैसे- आंतो का कैंसर, फिशर, बवासीर, डाइबिटीज़, थायराइड डिसआर्डर इत्यादि। इसके अलावा कम खाना, भोजन में फाइबर की कमी, रुखा और भारी भोजन करना, पानी कम पीना, शारीरिक गतिविधियों का कम होना, कुछ दवाओं का सेवन(आयरन सप्लीमेंट, ओपिएट्स आदि) इनके कारण भी कब्ज़ होती है।
कब्ज़ के लक्षण
आचार्य चरक के अनुसार, यदि कोई शौच को रोक के रखता है तो इससे पेट दर्द, सिरदर्द, मल और वायु का प्रतिधारण, पिंडली की मांसपेशियों में ऐंठन और पेट का फूलना ये लक्षण आते हैं। इसके अलावा कब्ज़ के निम्न लक्षण बताये गए हैं-
मल का निष्कासन न होना
मल त्याग के समय गुदा द्वार के आस-पास दर्द होना
अधिक बदबू आना
मल का ग्रथित रूप में निकलना
भोजन का पाचन न होना
भूख न लगना
एसिडिटी होना तथा अधिक डकार आना
उल्टी आने की प्रतीति होना
उत्साह में कमी होना
आलस्य आना
निदान
रोम II मानदंड के अनुसार कब्ज के लिए निम्न में से दो या अधिक लक्षण कम से कम 12 सप्ताह (जरूरी नहीं कि लगातार) के लिये होने चाहिये:
1) 25% से अधिक बार मल त्याग के दौरान तनाव होना
2) 25% से अधिक बार मल त्याग के दौरान ढेलेदार या कठोर मल का आना
3) 25% से अधिक बार मल त्याग के दौरान मल का अधूरा निष्कासन होने की अनुभूति
4) 25% से अधिक बार मल त्याग के दौरान अवरोध होने का अहसास होना
5) प्रति सप्ताह 3 से कम बार मल त्याग होना
6) मल सख्त हैं, और इरिटेबल बाउल सिंड्रोम के लिए अपर्याप्त मापदंड मिले।
इसके अलावा डिजिटल मलाशय परीक्षा, प्रोक्टोस्कोपी और सिग्मायोडोस्कोपी कब्ज का सही कारण जानने के लिए उपयोगी जांच है। यदि लक्षण बने रहते हैं, तो असली बीमारी जानने के लिए बेरियम एनीमा और कोलोनोस्कोपी की जानी चाहिए।
कब्ज़ के सामान्य उपाय
संक्षेप में, कब्ज को ठीक करने के लिये इसके कारणों का निवारण ज़रूरी है। जैसे- डाइट का ठीक न होना, खान-पान की गलत आदतें, कम फाइबर की मात्रा, पानी कम पीना, इन चीज़ों की बदलने की आवश्यकता है। इसके अलावा कब्ज़ को कम करने के लिये निम्न सुझाव अपनाए जा सकते हैं-
सुबह जल्दी उठ कर एक गिलास गर्म पानी पिएं -यह गैस्ट्रो-कोलिक रिफ्लेक्स में मदद करता है और इसके फलस्वरूप मल त्याग होता है।
आधे से एक चम्मच त्रिफला चूर्ण को पानी के साथ ले सकते हैं। यह मल त्याग में सहायक है।
एक से दो चम्मच इसबगोल को गर्म पानी में घोल के पी सकते हैं। यह मल में फाइबर की मात्रा बढा के उसको ढीला कर आसानी से निकाल देता है।
अलसी के बीजों का चूर्ण भी गर्म पानी के साथ लेने से मलत्याग को आसान करता है।
रात को सोने से पहले एक गिलास गर्म दूध में एक चम्मच घी डाल के पीना भी कब्ज़ में सहायक है। यह वात दोष को शांत कर देता है।
6-7 मुनक्को को दूध में उबाल कर पीने से भी कब्ज़ दूर होती है।
गर्म पानी में भीगी हुई अंजीर का सेवन कर सकते है, यह मल के निष्कासन में सहायक है।
भोजन के बाद सौंफ का गर्म पानी के साथ सेवन भी पाचन में सहायक है तथा यह रेचक(माइल्ड लैक्सेटिव) भी है।
विभिन्न योगाभ्यास भी कब्ज़ में लाभदायक हैं जैसे- कुर्मासन, वक्रासन, कटिचक्रासन, सर्वांगासन, शवासन, पवनमुक्तासन, मंडुकासन, वज्रासन आदि एवम शंख प्रक्षालन, नाडिशोधन, सूर्य नमस्कार, अनुलोम विलोम भी इसके लक्षणों को कम करता है।
क्या खाएं और किससे बचें?
कब्ज का इलाज करने के लिए आहार में परिवर्तन आवश्यक है। सेवन किए जाने वाला आहार ऐसा होना चाहिए जो वात दोष को शांत करे। आयुर्वेद में गर्म और पके हुए खाद्य पदार्थों के सेवन की सलाह दी जाती है। कोल्ड ड्रिंक और ठंडे भोजन से सख्ती से बचना चाहिए। आयुर्वेद अनुसार कुछ आहार संबंधी सुझाव निम्न हैं:
भोजन गर्म और ताजा पकाया हुआ खाना चाहिए।
भोजन में लहसुन, हल्दी, जीरा, और हींग जैसे मसालों का उपयोग करना चाहिये।
खाना बनाते समय घी या तेलों का उपयोग करें। यह वात का शमन करेगा।
अदरक का रस कब्ज को ठीक करता है। इसकी चाय बना कर पी सकते हैं।
गेहूं, हरे चने, फल और फाइबर से भरपूर सब्जियों और हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करना चाहिए। कब्ज के लिए सेब, केला, अमरूद, अंजीर, संतरा और पालक आहार में शामिल करे।
काला नमक पाचन में सहायक होता है तथा कब्ज को कम करता है।
विबंध या कब्ज़ अपतर्पण जन्य रोगो में से एक है, अतः इसके उपचार में भुना हुआ मकई का आटा, शहद और चीनी से बने पेय उपयोगी साबित होते हैं।
तला हुआ भोजन, प्रोसेस्ड फूड, मसालेदार भोजन और मांसाहारी भोजन से बचना चाहिए।
अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
कब्ज को जल्दी से कैसे ठीक कर सकते हैं?
कब्ज़ को ठीक करने के लिये सबसे सरल तरीका है रेचक दवा का उपयोग करना। त्रिफला एक प्राकृतिक रेचक है जो कब्ज़ के लिये प्रयोग कर सकते हैं। कब्ज के तेजी से इलाज के लिये इसबगोल के उपयोग की भी सलाह दी जाती है।
कब्ज़ के क्या-क्या काम्प्लीकेशन हो सकते हैं?
मल को पास करने से गुदा के आसपास की नसों में सूजन हो सकती है। इससे बवासीर हो सकता है। ये बवासीर रक्तस्राव शुरू कर सकते हैं, जो एक गंभीर रोग है।
मल त्याग के समय अत्यधिक तनाव देने से मलाशय के अपने स्थान से बाहर आने का खतरा होता है। मलाशय कर निकल कर गुदा से बाहर आ सकता है।
जब मल बहुत कठिन होता है, तो मल त्याग करने से गुदा पर दबाव पड़ता है और गुदा द्वार पर कट भी लग सकता है। यह बेहद दर्दनाक होता है और यहां तक कि रक्तस्राव भी हो सकता है।
जब लंबे समय तक कब्ज होता है, तो बृहदान्त्र में मल फंस जाता है। यह दर्द, सूजन और अगर अनुपचारित रहे तो गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकता है।
कब्ज के इलाज के लिये घरेलू उपाय क्या हैं?
कब्ज के लिए कई घरेलू उपचार हैं जो कब्ज के इलाज में सहायक हो सकते हैं।
खूब पानी पीना। पानी के साथ नींबू का रस पाचन में सुधार और कब्ज का इलाज करने में मदद कर सकता है।
अदरक का उपयोग करके बनाई गई हर्बल चाय सहायक हो सकती है।
बेल के गूदे को गुड के साथ लिया जा सकता है।
मुलेठी एक आयुर्वेदिक जड़ी बूटी है जो प्राकृतिक रेचक के रूप में काम करती है। इसे गुड़ के साथ मिलाकर लिया जा सकता है।
किशमिश और अंजीर उच्च फाइबर की मात्रा के कारण कब्ज़ में सहायक होते हैं।
पका हुआ केला भी मल त्याग में मदद करता है।
ल्यूकोडर्मा (Leukoderma) एक प्रकार का त्वक विकार है जिसमे शरीर के कुछ हिस्से की या संपूर्ण शरीर की त्वचा अपने प्राकृतिक रंग को खो देती है अर्थात त्वचा (skin) में सफ़ेद रंग के पैचेज बन जाते हैl एक अन्य त्वक विकार विटिलिगो (Vitiligo) में भी शरीर पर सफ़ेद रंग के पैचेज बन जाते है परन्तु वह ल्युकोडेर्मा से भिन्न होता हैl ल्युकोडेर्मा और विटिलिगो के बीच का यह अल्प अंतर सिर्फ चिकित्सक ही समझ पाते है आम जनमानस तो ल्युकोडेर्मा और विटिलिगो दोनों से सफ़ेद दाग ही समझते हैl इस रोग की शुरुआत में सफ़ेद रंग के पैचेज पहले एक छोटे हिस्से तक ही सिमित रहते है लेकिन समय व्यतित होने के साथ साथ काफी बड़े हिस्से में विस्तृत हो जाते हैl
आयुर्वेद में ल्यूकोडर्मा
आयुर्वेद में ल्यूकोडर्मा को किलास के नाम से जाना जाता है जो वात और पित्त दोष की विकृति से होता हैl यह एक ऐसा रोग है जिसमे रोगी को शारीरक रूप से कोई दर्द आदि कष्ट न होकर तनाव आदि मानसिक कष्ट ज्यादा होता हैl
ल्यूकोडर्मा के लक्षण
1-हाथ मुँह होंठ तथा बाजू की त्वचा में सफ़ेद रंग के पैचेज होना
2-पलकों मूंछ और सर के बालों का असमय सफ़ेद होना
चिकत्सीय परामर्श कब ले?
चूँकि इस व्याधि में रोगी को किसी भी प्रकार की शारीरिक पीड़ा नहीं होती है इसलिए रोगी का ध्यान इस पर नहीं जाता I अतः दूसरे व्यक्ति द्वारा बताये जाने पर या स्वयं से ही खुद की त्वचा के प्राकृतिक रंग में कोई भी परिवर्तन दिखाई देने पर या शरीर में कहिं पे भी सफ़ेद दाग दिखाई देने पर शीघ्र ही चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिएl
ल्यूकोडर्मा के कारण
1-आग से जल जाना
2-दुर्घटना होने पे शरीर की त्वचा का कट जाना
3-कई प्रकार की त्वक विधि जैसे एक्जिमा,सोरायसिस
4-ऑटो इम्यून डिसऑर्डर्स जैसे थाइरोइड की विकृति
5-कुछ दवाई के दुष्प्रभाव स्वरुप
ल्यूकोडर्मा से बचाव
1-अत्यधिक मात्रा में खट्टी चीजों का सेवन करने से बचेl
2-मांसाहार के साथ दूध या दूध से बने खाद्य पदार्थ न ले
ल्यूकोडर्मा के लिए डायग्नोसिस
1-स्किन बायोप्सी
2-ब्लड टेस्ट
ल्यूकोडर्मा के लिए घरेलू उपाय
1-नीम के तेल की दो तीन बूँद को रूई के फाहे की सहायता से त्वचा में उपस्थित सफ़ेद दाग के ऊपर लगाकर तीस मिनट बाद पानी से धो ले
2-एक चम्मच हल्दी को एक चम्मच सरसो के तेल में मिलाकर त्वचा में लगाकर तीस मिनट के लिए छोड़ दे और फिर पानी से धो दे
ल्यूकोडर्मा में क्या करे
1-साधारण नमक के स्थान पर सैंधव नमक का प्रयोग करे
2-करेला अनार आदि पित्त शामक चीजों को आहार में शामिल करे
3-पर्याप्त मात्रा में जल पिए
4-मानसिक शांति के लिए योग को अपनी दिनचर्या में शामिल करे
ल्यूकोडर्मा में क्या न करे?
1-खट्टी चीजों का सेवन न करे
2-दही का सेवन न करे
3-मांसाहार का सेवन न करे
4-अल्कोहल चाय कॉफ़ी का सेवन न करे
5-अत्यधिक गर्म और ठंडी चीजों से बचे
प्रश्न उत्तर
प्रश्न - ल्यूकोडर्मा के लिए उपलब्ध सबसे अच्छा उपचार क्या है?
उत्तर -ल्यूकोडर्मा के लिए सबसे अच्छा उपचार है अपने आहार विहार अच्छा रखना विरुद्धाहार (जैसे दूध और मछली उड़द की दाल और दूध मूली और दूध को एक साथ मिलकर खाना) का सेवन न करना।
प्रश्न- ल्यूकोडर्मा का मुख्य लक्षण क्या है?
उत्तर -ल्यूकोडर्मा का मुख्य लक्षण यह है की इसमें त्वचा अपने प्राकृतिक रंग को खो देती है तथा शरीर में सफ़ेद रंग के पैचेज अर्थात सफ़ेद दाग हो जाते है ।
प्रश्न - ल्यूकोडर्मा और विटिलिगो में क्या अंतर है?
उत्तर- ल्यूकोडर्मा और विटिलिगो दोनों में ही त्वचा अपने प्राकृतिक रंग को खो देती है लेकिन दोनों में अंतर होता है ल्यूकोडर्मा में होने वाले सफ़ेद दाग का कारण आग से जल जाना, सड़क दुर्घटना में त्वचा का कट जाना आदि कारणों से मिलेनिन हार्मोन बनाने वाली मिलेनोसाईट सेल्स का नष्ट हो जाना है जबकि विटिलिगो में होने वाले सफ़ेद दाग का कारण ऑटो इम्यून डिसऑर्डर के कारण मिलेनिन हार्मोन बनाने वाली मिलेनोसाईट सेल्स का नष्ट हो जाना है।
प्रश्न - क्या ल्यूकोडर्मा का स्थाई उपचार संभव है ?
उत्तर - ल्यूकोडर्मा का स्थाई उपचार तो संभव नहीं है लेकिन ऐसे दवाई जरूर उपलब्ध है जो ल्युकोडेर्मा की अवस्था को और ज्यादा बढ़ने से रोक देती है ।
प्रश्न - ल्यूकोडर्मा के केस में आयुर्वेदिक उपचार कितना कारगर है ?
उत्तर - ल्यूकोडर्मा के केस में आयुर्वेदिक उपचार कारगर तो है लेकिन तभी जब रोगी चिकित्सक द्वारा बताई गई दवाई के साथ साथ चिकित्सक द्वारा बताये गए पथय अपथय का भी पालन करे ।
अस्थमा या दमा : Asthma in Hindi
क्या आपको खांसी, घरघराहट, सीने में जकड़न, सांस की तकलीफ और सीने में दर्द जैसे लक्षण हैं? तो संभव है कि आप अस्थमा से पीड़ित हैं। दुनिया भर में 300 मिलियन रोगियों के साथ अस्थमा दुनिया में सबसे ज़्यादा होने वाले गैर-संचारी रोगों में से एक है। यह बीमारी बच्चों में भी बढ़ी है।
आयुर्वेद में, ब्रोन्कियल अस्थमा को तमक श्वास के रूप में जाना जाता है। यह व्याधि व्यक्ति के फेफडो को प्रभावित करती है। लेकिन जीवनशैली में कुछ बदलाव और आयुर्वेदिक उपचार से अस्थमा का निवारण हो सकता है। इससे पहले कि हम इसके समाधानों की ओर चले, आइए समझते हैं: अस्थमा क्या है, यह किस कारण से होता है और इस समस्या को दूर करने के लिए हमें अपने जीवन में क्या उपाय अपना सकते हैं।
विषय - सूची
अस्थमा क्या है?: What is asthma?
अस्थमा के कारण: Causes of asthma
अस्थमा के लक्षण: Symptoms of asthma
अस्थमा के लिए टेस्ट : Test for Asthma
अस्थमा से बचाव के सामान्य उपाय: Home Remedies for Asthama
क्या खाएं और किससे बचें: What to eat and what to avoid
अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू): Frequently Asked Questions (FAQs)
अस्थमा क्या है?
आयुर्वेद में, सांस लेने में तकलीफ को श्वास रोग कहा जाता है। श्वास रोग मुख्य रूप से वात और कफ दोषों के कारण होता है। श्वास को पांच प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है- महाश्वास, उर्ध्व श्वास, छिन्न श्वास, क्षुद्र श्वास, तमक श्वास । आयुर्वेद के अनुसार, अस्थमा या दमा रोग तमक श्वास के अंतर्गत आता है। इसमें शरीर में कफ दोष के बढ़ने से वायु का प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है तथा वायुमार्ग में सिकुड़न पैदा हो जाती है। इससे विशेष रूप से रात या सुबह में घरघराहट, सांस फूलना, सीने में जकड़न और खांसी की शिकायत होती है। यह मुख्य रूप से एलर्जी के कारण होने वाला रोग है क्योंकि रोगी धूल और प्रदूषण या कुछ खाद्य पदार्थों के प्रति संवेदनशील हो जाता है.
अस्थमा के कारण
अस्थमा प्राथमिक रूप से वात दोष बढाने वाले कारकों के अधिक सेवन, कफ बढाने वाले खाद्य पदार्थों के सेवन, फेफड़ों के ऊतकों के कमजोर होने और फेफड़ों के रोगों के कारण होने वाली समस्याओं के कारण होता है। पर्यावरण और जीवन शैली भी अस्थमा में अहम भूमिका निभाते हैं। जैसे ठंडे या बासी खाद्य पदार्थों का पाचन करना आसान नहीं होता, इससे आम (बलगम) का निर्माण होता है। यह श्वसन नलिका में रुकावट पैदा करता है जिसके फलस्वरूप सांस लेने में कठिनाई होती है। ठंडे और नम वातावरण में रहना भी अस्थमा का एक कारण है।
आयुर्वेद में अस्थमा के निम्न कारण बताये गये हैं जिनमें से कुछ इस तरह से है :
भोजन का अनियमित सेवन करना।
सूखा, ठंडा, भारी, असंगत भोजन करना।
उडद की दाल, सेम, तिल का तेल, केक और पेस्ट्री, विष्टम्भी अन्न(वात दोष को बढ़ाने वाला भोजन), विदाही अन्न(पेट में जलन करने वाले पदार्थ), पचने में भारी भोजन , दही, कच्चा दूध तथा कफ दोष की वृद्धि करने वाले भोजन का सेवन करना।
ठंडे पानी का सेवन और ठंडी जलवायु के संपर्क में आना।
धूल, धुएँ और हवा के संपर्क में आना।
अत्यधिक व्यायाम करना।
यौन क्रिया में अधिक लिप्त रहना।
गले, छाती और महत्वपूर्ण अंगों को आघात पहुँचना।
प्राकृतिक वेगो को रोकना।
अस्थमा के लक्षण
अस्थमा रोग में कफ दोष बढ जाता है और वात दोष विपरीत दिशा में जा कर श्वसन पथ में रुकावट पैदा करता है। अतः रोगी में निम्न लक्षण मिलते हैं-
सांस फूलने के साथ सांस छोडने में अत्यंत तकलीफ
अत्यधिक खांसी
घरघराहट की आवाज़
छाती की जकड़न
गाढ़ा बलगम
माथे पर पसीना आना
रात और सुबह के समय उपरोक्त लक्षणों का बढ़ना
बिस्तर पर लेट जाने पर बेचैनी बढ़ जाती है, बैठने की मुद्रा में आराम मिलता है।
गंभीर हालत में रोगी को गंभीर खांसी होती है और वह बेहोश हो जाता है। रोगी को कफ को निष्कासित करना मुश्किल लगता है और कफ के निष्कासन के बाद 1 मुहूर्त (3 घंटे) की अवधि के लिए राहत महसूस होती है। ऐसे व्यक्ति को गर्म चीजें पसंद आती हैं। आकाश में बादलों की उपस्थिति, बारिश, ठंड के मौसम, तेज हवाओं और कफ दोष में वृद्धि करने वाले भोजन का सेवन इसके लक्षणों को बढा देता है।
अस्थमा के लिए टेस्ट
अस्थमा रोग के निदान के लिये विभिन्न प्रकार के श्वास परीक्षण किये जाते हैं जैसे स्पाइरोमीट्री और पीक फ्लो। इससे बाहर निकलने वाली हवा की मात्रा और गति को मापते हैं। यह ये देखने में मदद करता है कि आपके फेफड़े कितनी अच्छी तरह काम कर रहे हैं। अन्य परीक्षणों में एलर्जी परीक्षण, रक्त परीक्षण, नाइट्रिक ऑक्साइड या FeNo परीक्षण, और मेथाकोलीन जैसे परीक्षण शामिल हो सकते हैं। इसके अलावा छाती का एक्स-रे अस्थमा को अन्य फेफड़ों के रोगों से अलग करने में उपयोगी है।
अस्थमा निदान के सामान्य उपाय
आयुर्वेद के अनुसार अस्थमा वातकफज रोग है, यह पेट से शुरू होकर फेफड़े और श्वसन नलिकाओं तक बढ़ता है। इसलिए उपचार का प्राथमिक उद्देश्य अतिरिक्त कफ को समाप्त करना है। इसके अलावा प्राणवहस्त्रोत(श्वसन तंत्र) को मजबूत करने और उत्तेजित अवस्थाओं को संतुलित करने पर ध्यान दिया जाता है। इस उद्देश्य के लिए निम्नलिखित उपायों को हम अपने दैनिक जीवन में अपना सकते हैं-
आम को कम करने के लिए-
प्रातः काल उठ कर नियमित रूप से गर्म पानी में नमक डाल कर गरारा करें तथा सबसे पहले ऊष्ण जल का सेवन करें।
अदरक को पानी में उबाल कर उसका भी सेवन लाभकारी है. इसमें अपनी इच्छा अनुसार नीम्बू भी शामिल कर सकते हैं।
जीरा तथा काली मिर्च का सेवन भी आम को कम करने में सहायक है।
यह रोग पेट से शुरु होता है अतः पेट को साफ करने के लिये-
अपने भोजन में फाइबर युक्त खाद्य पदार्थों को शामिल करें।
गर्म पानी में भीगी हुई अंजीर का सेवन भी कर सकते हैं।
पानी की मात्रा अपने भोजन तथा पेय पदार्थों में ज़्यादा रखे।
कफ को कम करने के लिये-
अदरक और लहसुन को कूट कर पानी में उबाल कर पी सकते हैं।
पानी में शहद घोल कर पीना भी कफ को कम करता है।
भोजन में हल्दी, अदरक आदि मसालों का सेवन करें।
योग एवम प्राणायाम-
अस्थमा रोग में प्राणायाम बेहद कारगर है। भ्रस्त्रिक, अनुलोम-विलोम, कपालभाति तथा नाडी शोधन आदि श्वसन तंत्र के लिये फायदेमंद हैं। अर्ध-मत्स्येन आसन, भुजंग आसन, पूर्वोत्तासन आदि योगासन भी अस्थमा रोग में सहायक हैं।
गर्म तेल-
पीठ और छाती पर तिल के तेल का गर्म सेंक अस्थमा के लक्षणों से राहत दिलाता है।
क्या खाएं और किससे बचें?
आयुर्वेद में बताया गया है कि व्यक्ति के जीवन में आहार अहम भूमिका निभाता है। बहुत सारे रोगो से सिर्फ आहार-विहार ठीक करके भी बचा जा सकता है। अतः अस्थमा में भी निम्न आहार-विहार का पालन करना बताया गया है-
गेहूँ, पुराना चावल, मूंग की दाल, जौ, लहसुन, हल्दी, अदरक, काली मिर्च का भोजन में उपयोग करें।
अपने पेय और खाद्य पदार्थों में शहद का इस्तेमाल करें।
मुलेठी और दालचीनी की चाय भी बना कर पी सकते हैं।
नट्स और ड्राई फ्रूट्स को मध्यम मात्रा में लिया जा सकता है।
एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर खाद्य पदार्थ खाएं।
भारी, ठंडा आहार, उडद की दाल, तैलीय, चिकना और तले हुए खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए।
दूध, पनीर, दही, छाछ और केला जैसे भारी खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए।
प्रोसेस्ड फूड, एडिटिव्स, व्हाइट शुगर और आर्टिफिशियल मिठास से बचें।
धूम्रपान, धूल और धुएं, प्रदूषण और एलर्जी के संपर्क में आने से बचें।
ठन्डे और नमीयुक्त वातावरण से बचे।
प्राकृतिक वेगो का दमन न करें।
अत्यधिक शारीरिक परिश्रम न करें।
योग और ध्यान सहायक हो सकते हैं।
ठंड के मौसम में बाहर निकलते समय अपना मुंह और नाक ढक लें।
अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
अस्थमा होने की सबसे अधिक सम्भावना किन लोगों में होती है?
यदि परिवार में किसी को पहले से ही अस्थमा है, तो ऐसे व्यक्तियों को अस्थमा विकसित होने की अधिक संभावना है। एक्जिमा या खाद्य पदार्थों से एलर्जी वाले बच्चों में अन्य बच्चों की तुलना में अस्थमा विकसित होने की संभावना अधिक होती है। पराग, घर की धूल, घुन या पालतू जानवरों से एलर्जी भी अस्थमा के विकास की संभावना को बढ़ाती है। तंबाकू के धुएं, वायु प्रदूषण के संपर्क में आने पर भी अस्थमा के लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं।
अस्थमा को बढाने वाले मुख्य कारक क्या हैं?
घर की धूल, पराग कण, ठंडी और शुष्क जलवायु, खाना पकाने के गैस धुएं, धूम्रपान, पेंट, स्प्रे जैसे एलर्जी के संक्रमण। ऊपरी श्वसन पथ के संक्रमण, वायरल संक्रमण। एस्पिरिन, दर्द निवारक दवाये, भोजन में प्रयोग होने वाले रंग, खाद्य संरक्षक, बर्फ क्रीम, अत्यधिक व्यायाम विशेष रूप से ठंड और शुष्क दिन में, तनाव, लकड़ी और कपास की धूल, रसायन आदि।
क्या मौसम में बदलाव से अस्थमा हो सकता है?
हां, अचानक मौसम में बदलाव (जैसे ठंडी हवाएं, नमी और तूफान) कुछ लोगों में अस्थमा को बढा सकते हैं। इन अचानक बदलावों से एलर्जी पैदा हो सकती है जैसे कि पराग कण उन लोगों में अस्थमा को बदतर बना सकते हैं जिनका अस्थमा एलर्जी से संबंधित है। ठंडी हवा का सीधा असर वायुमार्ग पर भी पड़ सकता है।
ल्यूकोरिया, श्वेत प्रदर या सफ़ेद पानी : Leucorrhea - White discharge in Hindi
वर्तमान समय में गलत दिनचर्या और खान पान की आदतों की वजय से ल्यूकोरिया (Leucorrhea) या सफ़ेद पानी की समस्या महिलाओ में आम हो गयी है पहले ये समस्या शादी शुदा महिलाओ में ही ज्यादा देखने को मिला करती थी परन्तु आधुनिक समय में ये समस्या अविवाहित लड़कियों में भी देखने को मिल रही हैl
आयुर्वेद अनुसार इसे श्वेत प्रदर या प्रदर कहा जाता है तथा आम भाषा में White discharge के नाम से जाना जाता है क्योकि इसमें महिलाओ के योनि मार्ग से सफ़ेद चिपचिपा,गाढ़ा पानी निकलता है l
वास्तव में श्वेत प्रदर या ल्यूकोरिया कोई स्वतंत्र व्याधि न होकर अनेक व्याधियों के परिणाम स्वरुप स्त्री शरीर में दिखाई देने वाले लक्षणों में से एक हैl
परन्तु कभी कभी यह लक्षण इतना तीव्र होता है की स्त्री को व्याधि के अन्य लक्षणों की अनुभूति ही नहीं हो पाती एवं वह मात्र इसी लक्षण की चिकित्सा चाहती है l
कभी कभी यह लक्षण बिना किसी व्याधि के अन्य कारणो जैसे पोषण की कमी,अत्यधिक मानसिक तनाव , शक्ति से अधिक थकान वाले कार्य करने के कारण भी दृष्टिगोचर होता है l
ल्यूकोरिया के लक्षण : Symptoms of Leucorrhea in Hindi
योनि मार्ग से असामान्य मात्रा में श्वेत वर्ण के गाढ़े , चिपचिपे और बदबूदार तरल पदार्थ का निकलना
योनि मार्ग में कण्डू (खुजली) होना
हाथ पैर पेट पेडू तथा कमर में दर्द होना
भूख ना लगना
खुलकर शौच ना होना
शरीर का पतला हो जाना तथा पूरे शरीर में कमजोरी का अनुभव होना
किसी भी कार्य को करने में मन न लगना
चिड़चिड़ापन
चक्कर आना
बार मूत्र त्याग होना
चिकित्सीय परामर्श कब ले
मासिक धर्म से कुछ दिन पहले तथा मासिक धर्म से कुछ दिन बाद , शारीरिक सम्बन्ध बनाते समय तथा गर्भावस्था के समय योनि से अल्प मात्रा में निकलने वाला जलीय श्वेत वर्ण का जिससे गन्दी बदबू न आती हो ऐसा योनि स्राव सामान्य योनि स्राव कहलाता है जो खुद ही सही हो जाता है l इसके विपरीत यदि योनि से निकलने वाला स्राव मात्रा में अधिक चिपचिपा श्वेत वर्णी व बदबूदार हो तो महिला को चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए अगर महिला सफ़ेद पानी की समस्या को छुपाते रहे तो आगे चलकर ये PID बन्ध्यत्व तक का कारण बन सकता हैl
ल्यूकोरिया के कारण: Leucorrhoea Causes in Hindi
योनि मार्ग में सफाई न रखना
गर्भ निरोधक गोलियों का अधिक मात्रा में सेवन करना
शारीरिक समबंध बनाते समय कंडोम का प्रयोग न करना
माहवारी के समय सम्यक परिचर्या का पालन न करना
अत्यधिक मैथुन करना
शरीर में खून की कमी होना
अत्यधिक उपवास करना
योनि मार्ग में रोग करने वाले बैक्टीरिया का उपस्थित होना
अत्यधिक मात्रा में गुरु तैलीय मिर्च मसाले वाले भोजन का सेवन करना
व्यायाम न करना
अत्यधिक मात्रा में थकाने वाले काम करना
ल्यूकोरिया से बचाव : Prevention of Leucorrhoea in Hindi
शारीरिक सम्बंध बनाने के बाद और पब्लिक टॉयलेट का प्रयोग करने के बाद योनि मार्ग को अच्छे से साफ करना
शारीरिक सम्बंध बनाते समय कंडोम का प्रयोग करना
माहवारी के समय सम्यक परिचर्या का पालन करने
संतुलित आहार का सेवन करना
अंडरवियर को अच्छे से धोकर धूप में सुखाकर पहनना
नियमित रूप से व्यायाम करना
ल्यूकोरिया के घरेलू उपाय : Leucorrhea Home remedies in Hindi
चावल के पानी का सेवन करना
फिटकरी के पानी से सिट्जस बाथ लेना
छाछ का सेवन करना
आंवला के चूरन का ३ ग्राम की मात्रा में गुनगुने पानी के साथ सेवन करना
दूध का सेवन करना
ल्यूकोरिया में क्या करे ?
योनि मार्ग को धोने के लिए सादे पानी या फिटकरी के पानी का प्रयोग करे
शारीरिक सम्बंध बनाते समय कंडोम का प्रयोग करे
शारीरिक सम्बंध बनाने के बाद मूत्र त्याग जरूर करे
कॉटन के अंडरवियर का प्रयोग करे
तरल पदार्थो जैसे दूध सूप फलो के जूस का सेवन करे
खाना खाने के बाद सुपारी का सेवन करे
अंडरवियर को अच्छी तरह से धोकर धूप में सूखाने के बाद ही पहने.
ल्यूकोरिया में क्या न करे ?
योनि मार्ग को धोने के लिए बाजार में मिलने वाले वैजिनल वशेस का अधिक मात्रा में प्रयोग न करे
चाय काफी अल्कोहल और नॉन वेज का सेवन न करे
सेक्सुअल फीलिंग्स को बढाने वाले साहित्य तथा वीडियो को न देखे
गरम और मिर्च मसालो वाले भोजन का सेवन न करे
अधिक मात्रा में योनि स्राव होने पर पेस्ट्री कस्टर्ड या अन्य किसी प्रकार की मीठी चीजों का सेवन न करे
ल्यूकोरिया से संबंधित प्रश्न और उत्तर : Questions and answers related to leucorrhea
ल्यूकोरिया के लिए उपलब्ध सबसे अच्छा उपचार क्या है ?
ल्यूकोरिया के लिए सबसे अच्छा उपचार है योनि मार्ग की साफ सफाई का ध्यान रखना और संतुलित आहार का सेवन करने के साथ नित्य व्यायाम करना l
ल्यूकोरिया का मुख्य लक्षण क्या है?
ल्यूकोरिया का मुख्य लक्षण योनि मार्ग से अत्यधिक मात्रा में सफ़ेद रंग के जलीय चिपचिपे और बदबूदार स्राव का निकलना है और कमर पेडू तथा सम्पूर्ण शरीर में कमजोरी होना.
प्राकृतिक योनि स्राव और ल्यूकोरिया में क्या अंतर है?
प्राकृतिक योनि स्राव मात्रा में कम और बिना बदबू वाला होता है जबकि ल्यूकोरिया में स्रवित होने वाला मात्रा में अधिक चिपचिपा और बदबूदार होता है .
यदि अधिक समय तक ल्यूकोरिया की समस्या को छुपा के रखा जाये और डॉक्टर को नहीं दिखाया जाये तो क्या क्या कॉम्प्लीकेशन्स हो सकते है?
लम्बे समय तक ल्यूकोरिया का उपचार न कराने से पीआईडी और बन्ध्यत्व होने का खतरा बढ़ जाता है.
ल्यूकोरिया के केस में आयुर्वेदिक उपचार कितना कारगर है?
ल्यूकोरिया के केस में आयुर्वेदिक उपचार प्रभावी है क्योकि आयुर्वेद में सिर्फ रोग के लक्षण की चिकत्सा न कर के रोग के कारण की चिकित्सा कर के शोधन और शमन चिकित्सा के साथ साथ दिनचर्या में बदलाव कर के रोग को जड़ से खत्म किया जाता है.
क्या आपने कभी किसी ऐसे व्यक्ति को देखा है जो भविष्य के बारे में लगातार चिंता करता है और अनिश्चितता का डर उसे सताता रहता है? वे स्थिति की हर नकारात्मक संभावना के बारे में सोचते रहते हैं। क्यों उन्हें यह डर लगा रह्ता है? क्या इस तरह महसूस करना सामान्य है? हम इन भावनाओं से कैसे छुटकारा पा सकते हैं? आपको इस लेख में इन सभी प्रश्नों का उत्तर मिलेगा।
विषय - सूची
चिंता क्या है
चिंता के लक्षण
चिंता के कारण
निदान
चिंता के सामान्य उपाय
क्या खाएं और किससे बचें
अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
चिंता क्या है?
आयुर्वेद में, मन के तीन गुण हैं (मनो गुण) मुख्य रूप से सत्व, रज और तम।
सत्त्वगुण सकारात्मकता, चेतना और आध्यात्मिकता से जुड़ा है। यह ज्ञान और बुद्धि का प्रतिनिधित्व करता है और जीवन में शांति लाता है।
रज गुण तीनों में सबसे अधिक सक्रिय गुण है। यह अत्यधिक गति और उत्तेजना का परिचायक है। ऐसे व्यक्ति में कुछ पाने का जुनून होता है।
तम गुण भारीपन और जड़ता से संबंधित है। यह व्यक्ति के अंदर नकारात्मक सोच उत्पन्न करता है तथा सुस्ती, अत्यधिक नींद लाता है।
आयुर्वेद में, चिंता को चित्त उद्वेग कहा गया है। चित्त उद्वेग को इस रूप में परिभाषित किया जा सकता है; चित्त(मन) + उद्वेग(अस्थिरता) = चित्त उद्वेग (चित्त की चंचल अवस्था)। चित्त उद्वेग
वात और पित्त के साथ-साथ रज और तम दोषों में विकृति के कारण उत्पन्न होने वाला मनोरोग है।
अल्प सत्त्व होने से चिंता अधिक होती है।
चिंता में मुख्य रूप से दो कारक हैं:
भय = किसी भी खतरे में डर का एहसास।
चिंता करना = अप्रिय चीजों के बारे में सोचना जो आपको दुखी करता है और आपको परेशान करता है।
तो चित्त उद्वेग या चिंता विकार में व्यक्ति तर्कहीन हो कर दैनिक रूप से अत्यधिक चिन्ता करता है।
चिंता के लक्षण:
चिंता के लक्षण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न हो सकते हैं लेकिन कुछ लक्षण आम हैं।
ऐसे व्यक्ति लगातार अवास्तविक चिंता करते है जो अकसर मांसपेशियों में तनाव, बेचैनी महसूस करना, एकाग्रता में कमी, अनिद्रा से जुड़ी होती है।
चिंता के अन्य लक्षण हैं:
सम्मोह (भ्रम)
अंगमर्द (शारीरिक दर्द)
आयास (थकान)
उच्छ्वास आधिक्यम (सांस फूलना)
अनन्न अभिलाषा (खाने में अरुचि)
अनिद्रा (नींद न आना)
शिरः शून्यता(दिमाग का सुन्न होना)
उन्मत्त चित्तत्त्वम (एकाग्रता की कमी)
क्रोध (गुस्सा आना)
उद्वेग (घबराहट)
स्वनकर्णयो (कानों में शब्द गूंजना।)
चिंता के कारण:
आयुर्वेद में यह माना जाता है कि अल्प सत्व चिंता का कारण बनता है। रज और तम के साथ वात और पित्त का विकृत होना इस मनोविकार को उत्पन्न करता है।
चिंता के निम्न कारक है:
1. आनुवंशिक कारक- कुछ परिवारों में, यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चलता है।
2. अप्रिय घटनाएं- जीवन में तनावपूर्ण घटनाएं जैसे कार्यस्थल तनाव, वित्तीय तनाव, किसी प्रियजन की मृत्यु चिंता का कारण हो सकती है।
3. मद का अत्यधिक सेवन- मादक प्रवृति से रज और तम दोषों की विकृति होती है।
4. स्वास्थ्य में कमी - कुछ बीमारियां जैसे हृदय रोग, थायरॉइड विकार व्यक्ति में अवसाद को जन्म दे सकते हैं । समय के साथ धीरे-धीरे यह चित्त उद्वेग का कारण बन जाता है।
निदान:
आम तौर पर, आप परीक्षा या नौकरी के लिए इंटरव्यू लेने से पहले चिंतित महसूस करते हैं। लेकिन जब कोई व्यक्ति दैनिक जीवन के निर्णय लेने में समस्याएँ महसूस करने लगे तथा अधिक चिंता के कारण वह कही भी ध्यान केंद्रित न कर पाये तो उसे डॉक्टर से परामर्श करने की आवश्यकता है। आम तौर पर जब चिंता का निदान किया जाता है तब यदि एक व्यक्ति लगातार 6 महीने से अधिक समय तक रोजमर्रा की समस्याओं के बारे में चिंतित महसूस करता है, तो उसे चित्त उद्वेग रोग से ग्रस्त समझा जाता है।
चिंता के सामान्य उपाय:
आज की दुनिया में जीवन शैली तेजी से बदल रही है और हर कोई सभी भौतिक सुखों को पूरा करने की कोशिश कर रहा है। हर कोई ऐसा लगता है जैसे अपने कंधे पर वजन ढो रहा है। ऐसे में चिंता जैसे मनोविकार युवा पीढ़ी में भी काफी देखे जाते हैं। लेकिन कुछ निम्नलिखित सुझाव आपको उस मानसिक बोझ से छुटकारा दिला सकते हैं:
1.आयुर्वेद में अल्प सत्त्व को इस मानसिक विकार का कारक माना जाता है। इसलिए सत्त्वावजय चिकित्सा (मन को नियंत्रण में लाना) मन की शांति के लिए बतायी गयी है। इसके लिये हमें इन युक्तियों का पालन करना चाहिए:
क) ऋतुचर्या और दिनचर्या: हमें अपनी दैनिक जीवनशैली में कुछ चीजों को शामिल करना चाहिए जैसे प्रार्थना, हमारे पास जो कुछ भी है उसमें संतुष्ट रहना, उसके प्रति आभार व्यक्त करना, स्वच्छता और व्यायाम आदि हमारे जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। कुछ खास ऋतु में लोग अधिक चिंतित महसूस करते हैं जैसे गर्मी तो हमें उसके अनुरूप शीतल चीज़ों का प्रयोग अपने आहार विहार में करना चाहिए।
ख) सत्त्वगुण को सद्वृत्त(सदाचार) के द्वारा सुधारा जा सकता है। नैतिक आचरण, सत्य, अहिंसा,व्यक्तिगत स्वच्छता आदि का अभ्यास तनाव और चिंता को कम करेगा।
ग) अन्नपान विधी (आहार संबंधी नियम): खाने-पीने की आदतों में सुधार भी चिन्ता रोग को कम करने में सहायक है।
मिर्च और कैफीन जैसे राजसिक और तामसिक भोजन से परहेज करना।
नियमित समय पर भोजन करना।
आहार में क्षीर (दूध), घृत (घी), द्राक्षा (अंगूर) जैसे खाद्य पदार्थ शामिल करना।
2.अभ्यंग (शरीर की मालिश): शरीर की मालिश तनाव और चिंता को दूर करने का शानदार तरीका है। तिल के तेल या सरसों के तेल से मालिश कर सकते हैं।
3. शिरोधारा (माथे पर औषधीय तेल, दूध या काढ़ा डालना): माथे पर चंदनादि तेल या तिल का तेल जैसे साधारण तेल डालना भी उन तनावग्रस्त तंत्रिकाओं को शांत कर सकता है।
4.प्राणायाम: प्राणायाम का चिंता रोग पर वास्तव में अच्छा प्रभाव पड़ता है। सांस लेने और साँस छोड़ने पर ध्यान केन्द्रित कर कुछ ठहराव के साथ उन्हें लंबा करने की कोशिश करनी चाहिए। अनुलोम-विलोम, कपालभाति, भस्त्रिक और भ्रामरी जैसे प्राणायाम आपको इस रोग से छुटकारा दिला सकते हैं।
5.योग और ध्यान: योग में कुछ आसनों का नियमित रूप से अभ्यास चिंता के लक्षणों को दूर करने में सहायक है जैसे कि धनुरासन, सेतु बंधासन, मर्जरीआसन, शीर्षासन आदि।
क्या खाएं और क्या न खाएं:
आयुर्वेद में, किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य का निर्धारण करने के लिए आहार संबंधी आदतें अत्यन्त महत्वपूर्ण है। चिंता रोग में अरुचि तथा खाने का पाचन न होने जैसे लक्षणों को देखते हुए इन नियमों का पालन करना चाहिए:
नियमित समय पर भोजन करें।
वात दोष को संतुलित करने के लिए थोड़ा तेल या घृत (घी) में पकाया गया गर्म भोजन खाएं।
आहार में अधिक सात्विक खाद्य पदार्थ शामिल करें जैसे मौसमी फल और घर का बना साधारण भोजन।
सोने से पहले केसर मिला हुआ दूध पियें क्योंकि यह नींद आने में मदद करेगा।
बेकरी आइटम, फ्रोजन फूड और डीप फ्राइड फूड जैसे प्रोसेस्ड फूड से बचें।
राजसिक और तामसिक खाद्य पदार्थों जैसे मिर्च, कैफीन और मांस से बचें।
अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQS)
चिंता क्या है?
चिंता या जैसा कि हम इसे आयुर्वेद में चित्त उद्वेग कहते हैं, इसमें व्यक्ति अत्यधिक चिंता के कारण अपने रोजमर्रा के जीवन में कठिनाई महसूस करता है। व्यक्ति में धीरे-धीरे शारीरिक लक्षण जैसे अनिद्रा, शरीर में दर्द, खाने में अरुचि आदि भी आने लगते है।
हम इससे कैसे बच सकते हैं?
जैसा कि आयुर्वेद में निदान परिवर्जन (कारण खत्म करना) को प्राथमिक उपचार माना गया है, अतः यौगिक जीवन शैली अपनाने से चिंता को रोकने में मदद मिल सकती है। योग के सिद्धांत यम और नियम आपको उस सात्विक जीवन शैली को प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं। उदाहरण के लिए शौच में मन और शरीर की स्वच्छता के बारे में बताया गया है। संतोष सिद्धांत व्यक्ति को उसके जीवन में जो भी है, उसी में खुश रहना सिखाता है। साथ ही अपरिग्रह सिद्धांत हमारी इच्छाओं को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है। व्यक्ति को पौष्टिक भोजन भी करना चाहिए और योग, प्राणायाम और ध्यान की मदद से स्वस्थ जीवन शैली का पालन करना चाहिए।
सभ्यता के विकास के साथ मनुष्य शारीरिक रूप से निष्क्रिय हो गया है। आधुनिकीकरण, संपन्नता, विज्ञान और तकनीकी विकास के फलस्वरूप आधुनिक जीवन शैली गतिहीन होती जा रही है। बढ़ती निष्क्रिय जीवनशैली के साथ आहार में बदलाव ने कई देशों में मोटापे की महामारी को जन्म दिया है। शारीरिक गतिविधि में कमी के साथ वसा और गुरु आहार द्रव्यों की भोजन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। औद्योगिकीकरण और आर्थिक प्रगति में उन्नति के साथ साथ आज कल अधिक से अधिक नौकरियां सिर्फ ऑफिस डेस्क तक सिमट के रह गई हैं तथा आहार के पैटर्न में बदलाव के साथ चीनी और वसा के सेवन में वृद्धि हो रही है। इस सबके कारण ही मोटापे तथा इससे जुडी समस्याओं में वृद्धि हुई है। तो आइये जानते हैं मोटापा क्या है, इसके कारण तथा इससे कैसे छुटकारा कैसे पाया जा सकता है।
विषय - सूची
मोटापा क्या है
मोटापे के कारण
मोटापे के लक्षण
निदान
मोटापे के सामान्य उपाय
क्या खाएं और किससे बचें
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
मोटापा क्या है?
आयुर्वेद में आचार्य चरक ने अष्ट निंदित पुरुष का वर्णन किया है तथा इनमे भी इन दो रोगों का विशेष रूप से वर्णन किया है- अतिस्थूल(अधिक मोटा) तथा अतिकार्श्य(अधिक पतला)। इनमें अतिस्थूल(अधिक मोटे) व्यक्ति को इसके जटिल व्याधिजनन और उपचार के कारण अतिनिंदित माना गया है। आयुर्वेद में मोटापे को स्थौल्य या मेदोरोग कहा गया है। यह संतर्पणोत्थ विकारो (अति पोषण के कारण होने वाला रोग) के अंतर्गत आता है। आयुर्वेद में शारीरिक व मानसिक संतुलन को ही स्वास्थ्य की परिभाषा दी गयी है। इसके अनुसार, मोटापा एक ऐसी स्थिति है, जिसमें मेद धातु (फैटी टिश्यू) की विकृति/ वृद्धि की होती है।
आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से, किसी भी अन्य बीमारी की तरह, मोटापा गलत भोजन के सेवन या अनुचित आहार की आदतों और जीवनशैली के विकास के साथ शुरू होता है, जिसके परिणामस्वरूप पाचन अग्नि की समस्या होती है, जो आगे जा कर आम को बढ़ाती है। बढे हुए आम के कारण चयापचय प्रक्रिया विचलित हो कर अधिक मेद धातू (फैटी टिश्यू) का निर्माण करती है और आगे की धातू निर्माण जैसे कि अस्थि (हड्डियों) के निर्माण को अवरुद्ध करती है। अत्यधिक रूप से बढी हुई मेद धातू कफ के कार्यों में अवरोध उत्पन्न करती हैं।
दूसरी ओर, जब आम सभी शारीरिक चैनलों को अवरुद्ध करता है तो यह वात दोष में असंतुलन पैदा करता है। वात दोष पाचन अग्नि (जठराग्नि) को उत्तेजित करता रहता है, जिससे भूख में वृद्धि होती है इसलिए व्यक्ति अधिक से अधिक भोजन करता है। मेद धात्वाग्नि मांद्य (कमजोर वसा चयापचय) के कारण अनुचित या असामान्य मेद धातु बनती है, जो मोटापे का मूल कारण है।
अतः मोटापा या स्थौल्य एक ऐसा रोग है जिसमें व्यक्ति मेद(फैटी टिश्यू) और मांस के अत्यधिक विकास के कारण काम करने में असमर्थ होता है और उसके नितंबों, पेट और स्तनों के अधिक विकास के कारण शारीरिक विघटन खराब हो जाता है।
मोटापे के कारण
मोटापा एक ऐसी अवस्था है जिसमें त्वचा तथा आंतरिक अंगों के आस-पास वसा का अत्यधिक संचय हो जाता है। जब लोग अधिक वसायुक्त भोजन करते हैं तथा शारीरिक श्रम नहीं करते तब शरीर में जरूरत से ज्यादा कैलोरी संचित हो जाती है जो वजन बढने का कारण है। कई अन्य कारण भी मोटापा बढाते हैं जैसे कि गर्भावस्था, ट्यूमर, हार्मोनल विकार और कुछ दवाएं जैसे साइकोटिक ड्रग्स, एसट्रोजन्, कॉर्टिकॉ-स्टेरायड्स और इंसुलिन।
आयुर्वेद तथा आधुनिक चिकित्सा प्रणाली दोनो ने मोटापे को कई कारणो की वजह से उत्पन्न माना है। मोटापे के आयुर्वेद में निम्न कारण बताये गए हैं-
अध्यशन (दोपहर के भोजन या रात के खाने के बाद दोबारा भोजन लेना)
अति बृन्हण (अति पोषण)
गुरु आहार सेवन (कठिनाई से पचने वाला भोजन करना)
मधुर आहार सेवन (मीठी वस्तुओं का सेवन)
स्निग्ध भोजन सेवन (कफ बढाने वाला भोजन करना)
अव्यायाम (व्यायाम न करना)
अव्यवाय (यौन गतिविधियों की कमी)
दिवा स्वप्न (दिन में सोना)
अतिस्नान सेवन
बीज दोष (आनुवान्शिक कारण)
अग्निमांद्य (पाचक अग्नि में कमी होना)
मोटापे के लक्षण
मोटापा व्यक्ति के जीवन में नकारात्मक प्रभाव डालता है। इससे ग्रसित व्यक्ति न सिर्फ शरीरिक रूप से परेशान रहता है, बल्कि मानसिक रूप से भी वह हीन भावना का शिकार हो कर अवसाद में जा सकता है। इसके सामान्यतः निम्न लक्षण होते हैं-
अतिस्वेद [अत्यधिक पसीना आना]
श्रमजन्य श्वास [हल्के परिश्रम पर सांस फूलना]
अति निंद्रा [अत्यधिक नींद आना]
कार्य दौर्बल्यता [भारी काम करने में कठिनाई]
जाड्यता [आलस्य]
अल्पायु [लघु जीवन काल]
अल्पबल [शक्ति में कमी]
शरीर दुर्गन्धता [शरीर की दुर्गंध]
गदगदत्व [अस्पष्ट आवाज]
क्षुधा वृद्धि (अत्यधिक भूख)
अति तृष्णा [अत्यधिक प्यास]।
मोटापे का निदान
वैसे तो मोटापे के निदान के लिये बहुत से वर्गीकरण हैं। लेकिन बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) पर आधारित विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का वर्गीकरण व्यापक रूप से स्वीकृत है। व्यक्ति के वजन(किलोग्राम में) को उसकी लम्बाई(मीटर में) के वर्ग द्वारा विभाजित कर बीएमआई निकाला जाता है। यह लम्बाई और आकार के आधार पर व्यक्ति के आदर्श वजन का अनुमान लगाता है।
18.5 से ले कर 24.9 तक बीएमआई सामान्य माना जाता है। 25 या इससे ऊपर बीएमआई वाल्रे मोटापे की श्रेणी में आते हैं।
मोटापे के सामान्य उपाय
मोटापा दूर करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है इसके कारणों को दूर करना। यह एक ऐसी बीमारी है जो शरीर की आवश्यकता से अधिक कैलोरी लेने की वजह से होती है। आयुर्वेद में, मोटापे का इलाज केवल वजन घटाने तक सीमित नहीं है, बल्कि चयापचय प्रक्रियाओं को ठीक कर आम को कम करके तथा वात-कफ के कार्य को नियमित कर अतिरिक्त वसा को कम किया जाता है।
चयापचय को ठीक करने के साथ-साथ पाचन अग्नि बढाने तथा स्रोतस शोधन के लिये, आहार की आदतों में सुधार करना और तनाव को कम करना महत्वपूर्ण है। इसके लिये निम्न कुछ उपाय घर में सरलता से किये जा सकते हैं-
लंघन- लंघन यानी ऐसे उपाय जो शरीर में हल्कापन लाये। जैसे-
ऊष्ण जल सेवन- सुबह उठने के पश्चात गर्म पानी का सेवन करें, यह न सिर्फ शरीर में लघुता लायेगा बल्कि आम पाचन भी करेगा।
उपवास- सप्ताह में एक दिन उपवास का सेवन करें। इस अवधि में आप मूंग की दाल का पानी या नारियल का जूस इत्यादि ले सकते हैं।
नियमित व्यायाम- माथे पर पसीना आने तक दैनिक नियमित रूप से व्यायाम जरूरी है। सुबह नियमित रूप से 30 मिनट तक पैदल चलें व व्यक्तिगत क्षमता के अनुसार व्यायाम करे। इसमें योगासन भी सहायक हैं, जैसे- सूर्य नमस्कार, धनुरासन, भुजंगासन, पवनमुक्तासन, पस्चिमोत्तानासन, ताड़ासन इत्यादि।
आम पाचन- आम की उपस्थिति में वजन कम करना बेहद मुश्किल है। इस कारण से लोग सीमित भोजन का सेवन करते हुए भी अपना वजन कम करने में असफल रहते हैं। इसलिए पहले आम से छुटकारा पाना महत्वपूर्ण है.
आम को खत्म करने के लिये पहले उन कारणों से बचना है जो आम की उत्पत्ति कर रहे हैं। पिछला भोजन ठीक से पचने से पहले खाने से बचें। आसानी से पचने वाला तथा मात्रा में कम भोजन खाएं। ठंडा या बासी भोजन न करें।
इसके लिये सौंफ और गुनगुने पानी का सेवन लाभदायक है।
अदरक भी आम पाचन में सहायक है। आप इसका काढा बना कर पी सकते हैं।
हल्दी, काली मिर्च जैसे मसाले अपने आहार में नियमित रूप से शामिल करें।
इसबगोल और त्रिफला को रोजाना रात को सोने से पहले लें। एक कप गर्म दूध में एक चम्मच घी मिलाकर पीना भी सहायक होता है।
कफ दोष शमन- मोटापे में कफ दोष बढ जाता है। इसके संतुलन के लिये निम्न उपाय अपनाये-
अपने आहार में मिर्च, सरसों के बीज और अदरक जैसे तीखे मसालों का उपयोग करें।
शहद को छोड़कर मीठे पदार्थों से बचें। रोजाना एक चम्मच या दो (लेकिन अधिक नहीं) शहद का सेवन करे। इसे सादा पानी में मिला कर पी सकते हैं।
तिक्त रस(कड्वा) सेवन- कफ दोष के शमन के लिये कड्वी चीज़ों को अपने आहार में शामिल करिये जैसे गिलोय, नीम, करेले का जूस इत्यादि।
गुरु अपतर्पण- यानी ऐसा आहार लेना जो भूक को भी शांत कर दे व मोटापा भी न बढाये।
इसके लिये जौ बेहद कारगर उपाय है. जौ का नमकीन दलिया या इसके आटे की रोटी का प्रयोग करे।
चावल का मांड- आयुर्वेद में इसे बनाने के लिये 14 गुना जल डाल कर चावल का मांड बताया गया है। इसमे आप अपने स्वाद के अनुसार हींग और सेंधा नमक डाल सकते हैं।
क्या खाएं और किससे बचें
अस्वास्थ्यकर आहार से शरीर में वसा ऊतक(फैटी टिश्यू) का निर्माण होता है जिसके परिणामस्वरूप मोटापा होता है। इसलिए पर्याप्त फाइबर युक्त स्वस्थ आहार का सेवन, सक्रिय जीवन शैली को अपनाना और तनाव और थकान को प्रबंधित करने के लिए योग और ध्यान का अभ्यास करना अधिक वजन / मोटापे की रोकथाम के लिए आवश्यक है। इसके लिए जीवन शैली में निम्न संशोधन किये जा सकते हैं-
नियमित समय पर भोजन करें।
पीने के लिए गर्म पानी का उपयोग करें।
सेहतमंद खाद्य पदार्थ जैसे - यव(जौ), हरा चना (मूंग की दाल), करेला, शिग्रू(ड्रमस्टिक), आंवला, अनार लें।
भोजन में तक्र(छाछ) का प्रयोग करें।
तली हुई के बजाय उबली हुई और बेक्ड सब्जियाँ प्रयोग करे।
आहार और पेय में नींबू शामिल करें। प्रातः काल एक गिलास गर्म पानी में एक नीम्बू का रस निचोड कर पिये, इसमे चीनी या नमक न मिलाये।
कम कैलोरी वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करें जैसे लौकी का जूस, सब्जियों का सूप इत्यादि।
अधिक मीठा, अधिक डेयरी उत्पाद, तले हुए और तैलीय पदार्थ, फास्ट फूड से दूर रहे।
भोजन में नमकीन भोजन या अत्यधिक नमक न ले।
मदिरा पान और धूम्रपान से बचें।
दिन में सोना सर्वथा त्याग दे।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
1)मोटापा किन कारणों से होता है?
मोटापा कई कारणों से होता है। मुख्य कारण हैं-
क)आनुवन्शिक कारण ख) ज़रुरत से ज़्यादा भोजन करना ग)हाइपोथायरायडिज्म और कुशिंग सिंड्रोम जैसी कुछ हार्मोनल स्थितियां मोटापे का कारण बन सकती हैं। कुछ दवाओं से भी मोटापा हो सकता है।
2) क्या मोटे लोगों को जल्दी मौत का खतरा है?
मोटे लोगों को जीवनशैली से जुड़ी बीमारियां जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल संबंधी रोग होने का खतरा होता है। ये रोग व्यक्ति की मृत्यु का कारण बन सकते हैं।
3) वज़न घटाने का सबसे अच्छा तरीका क्या है?
शारीरिक गतिविधि में वृद्धि, स्वस्थ आहार में बदलाव और अपने चिकित्सक से मिल कर प्रति सप्ताह 1 से 2 पाउंड वज़न कम करने का लक्ष्य रखें। वजन घटाने के लिये अपने आहार और दिनचर्या को ज़्यादा मुश्किल न बनाये। नियमित रूप से व्यायाम करें व मिताहार(नपा-तुला भोजन) करें।
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