एलोवेरा जूस की जानकारी - Aloe Vera Juice in Hindi
एलोवेरा या घृतकुमार के पौधों से एलोवेरा जूस बनाया जाता है। यह पूर्णतया प्राकृतिक होता है और इसके अनेक स्वास्थ्य लाभ हैं। इसमें मौजूद विटामिन ए, सी, ई, बी, फोलिक एसिड, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस और पोटेशियम जैसे पोषक तत्व मानव शरीर के स्वास्थ्य को सुदृढ़ बनाता है। इसमें एंटीऑक्सिडेंट भी मौजूद होता है जो कई घातक बीमारियों से लड़ने में मदद करता है।
एलोवेरा जूस के फायदे - Aloe Vera Juice Benefits in Hindi
एलोवेरा जूस में विटामिन, मिनरल और एंटीऑक्सिडेंट होते हैं जिसकी वजह से इसके सेवन से कई तरह के स्वास्थ्य लाभ होते हैं।
चमकदार त्वचा: त्वचा के लिए एलोवेरा जूस बेहद फायदेमंद साबित होता है। यह त्वचा संबंधी रोगों में उपयोगी साबित होता है और दाग-धब्बों को कम करता है। रूखी - सूखी त्वचा (डेड स्किन) को पुनर्जीवित करता है और साथ ही त्वचा के रंग को भी सुधारता है।
बालों के लिए सेहतमंद: एलोवेरा जूस बालों को मजबूत और चमकीला बनाता है।
पेट की समस्याओं को कम करने में मदद करता है
ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में मदद करता है
इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है
शरीर में विषैले पदार्थों को खत्म करने में मदद करता है
एलोवेरा जूस से संबंधित प्रश्न - Aloe Vera Juice FAQ's in Hindi
एलोवेरा जूस कितने दिन तक पीना चाहिए?
एलोवेरा जूस को कितने दिनों तक पीना चाहिए यह आपके स्वास्थ्य के स्थिति और एलोवेरा जूस की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। यदि आप किसी तरह की बीमारी से पीड़ित हैं या कोई औषधि ले रहे हैं, तो आपको अपने चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए
एलोवेरा कौन कौन सी बीमारी में काम आता है?
एलोवेरा के उपयोग से निम्नलिखित बीमारियों में लाभ हो सकता है:
त्वचा समस्याएं: एलोवेरा त्वचा के लिए बहुत उपयोगी होता है। इसे त्वचा से जुड़ी कुछ समस्याओं जैसे कि एक्ने, डार्क स्पॉट्स, सूखी त्वचा आदि के इलाज में उपयोग किया जाता है।
पाचन विकार: एलोवेरा उपाय पाचन के लिए भी बहुत उपयोगी होता है। यह अपच, गैस, एसिडिटी आदि जैसी समस्याओं के इलाज में भी उपयोग किया जाता है।
शरीर के विभिन्न हिस्सों में दर्द: एलोवेरा शरीर के विभिन्न हिस्सों में दर्द को कम करने में मदद कर सकता है। इसे घुटनों, कमर आदि के दर्द को कम करने के लिए उपयोग किया जा सकता है।
बालों की समस्याएं: एलोवेरा को बालों की समस्याओं जैसे कि रूसी, असमय झड़ते बाल, और सूखे बालों के इलाज में भी उपयोग किया जाता है।
एलोवेरा कब नहीं पीना चाहिए?
एलोवेरा जूस के सेवन के बारे में सावधानियों के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य हैं।
गर्भवती महिलाएं: एलोवेरा जूस का सेवन गर्भवती महिलाओं के लिए असुरक्षित हो सकता है क्योंकि यह पाचन तंत्र को प्रभावित कर सकता है और गर्भपात के खतरे को बढ़ा सकता है।
खून की थकान: एलोवेरा जूस में उपस्थित एन्जाइम कुछ लोगों में थकान, चक्कर, त्वचा पर लाल दाने, जैसे लक्षणों का कारण बन सकते हैं।
दवाओं के साथ सेवन: अगर आप दवाओं का सेवन कर रहे हैं, तो एलोवेरा जूस का सेवन करने से पहले अपने चिकित्सक से सलाह लें। एलोवेरा जूस कुछ दवाओं के साथ संयुक्त रूप से सेवन करने पर उनके प्रभावों को बढ़ा सकता है जिससे आपको अनुचित परिणामों का सामना करना पड़ सकता है।
सड़न वाली त्वचा: एलोवेरा जूस त्वचा के अलर्जिक विकारों, जैसे बड़ी मात्रा में एसिडिटी, सड़न या सूखापन की समस्याओं को बढ़ा सकता है।
एलोवेरा के साइड इफेक्ट क्या है?
एलोवेरा एक प्राकृतिक उपचार है जो त्वचा, बाल और शरीर के लिए फायदेमंद होता है। इसके बावजूद, कुछ लोगों को इसके सेवन से संबंधित साइड इफेक्ट हो सकते हैं। निम्नलिखित हैं एलोवेरा के कुछ साइड इफेक्ट:
त्वचा उत्तेजना: कुछ लोगों को एलोवेरा से त्वचा उत्तेजना हो सकती है। इसलिए इसका उपयोग करने से पहले आपको एक छोटी सी परीक्षा करनी चाहिए।
खुजली और धुंधला भाव: कुछ लोगों को एलोवेरा से खुजली या धुंधला भाव हो सकता है। यदि आप इस प्रकार के रिएक्शन का सामना करते हैं, तो इसका उपयोग करना बंद कर दें और अपने चिकित्सक से सलाह लें।
स्किन एलर्जी: एलोवेरा का उपयोग त्वचा एलर्जी के लिए भी जाना जाता है, इसलिए यदि आपको त्वचा एलर्जी होती है, तो आपको इसका उपयोग नहीं करना चाहिए।
एलोवेरा जूस रोज पीने से क्या होता है?
एलोवेरा जूस एक प्रकार का पेय है जो एलोवेरा प्लांट से निकाला जाता है। एलोवेरा जूस कई स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है जो निम्नलिखित हैं:
पाचन शक्ति को बढ़ावा देता है: एलोवेरा जूस में मौजूद एंजाइम आपके पाचन तंत्र को मजबूत बनाते हैं और उसमें सुधार करते हैं।
वजन घटाने में मददगार होता है: एलोवेरा जूस आपको सुगंधित पानी के साथ मिलाकर पीने से भूख कम होती है और यह वजन घटाने में मदद करता है।
त्वचा के लिए फायदेमंद होता है: एलोवेरा जूस में मौजूद एंटीऑक्सिडेंट त्वचा को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं। इसके अलावा, यह त्वचा को नमी प्रदान करता है और त्वचा को सूखापन से बचाता है।
सामान्य बुखार और सर्दी के लिए फायदेमंद होता है: एलोवेरा जूस में एंटीबैक्टीरियल और एंटीवायरल गुण होते हैं, जो सामान्य बुखार और सर्दी को कम करने में मदद करते हैं।
एलोवेरा जूस पीने का सबसे अच्छा समय कौन सा है?
एलोवेरा जूस को सुबह के समय पीना अच्छा माना जाता है। सुबह के समय एलोवेरा जूस के पीने से शरीर के अनुसंधान तंत्र को जग्रत होने में मदद मिलती है, जो शरीर के संचार को बेहतर बनाता है। इसके अलावा, एलोवेरा जूस को खाली पेट पीना अच्छा होता है क्योंकि इससे अधिक से अधिक लाभ मिलते हैं।
सुबह खाली पेट एलोवेरा पीने से क्या होता है?
सुबह खाली पेट एलोवेरा पीने के कुछ लाभ हो सकते हैं।
पाचन क्रिया को सुधारता है: एलोवेरा पेट की सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इसमें पाचन तंत्र के लिए अनेक गुण होते हैं जो सेहत के लिए बहुत ही फायदेमंद होते हैं। सुबह खाली पेट एलोवेरा जूस पीने से पाचन क्रिया को सुधारा जा सकता है।
वजन को कम करने में मददगार: एलोवेरा जूस वजन को कम करने में मददगार होता है। इसमें पाचन को सुधारने वाले तत्व होते हैं जो वजन कम करने में मदद करते हैं।
शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है: एलोवेरा पेट की सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इसमें ऊर्जा प्रदान करने वाले तत्व होते हैं जो सेहत के लिए बहुत ही फायदेमंद होते हैं।
शरीर को विषाक्त करता है: एलोवेरा पेट को साफ रखने के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इसमें विषाक्त करने वाले तत्व होते हैं जो शरीर के विषैले पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करते हैं।
क्या मैं रोजाना एलोवेरा जूस पी सकती हूं?
हाँ, आप रोजाना एलोवेरा जूस पी सकते हैं। एलोवेरा जूस एक स्वस्थ पेय होता है जो शरीर के लिए कई फायदों से भरपूर होता है। यह पाचन को सुधारता है, शरीर में विषैले पदार्थों को निकालता है और त्वचा के स्वास्थ्य को बढ़ाता है।
अगर आप एलोवेरा जूस के नए प्रयोग कर रहे हैं, तो आप पहले थोड़ा जूस पी कर देख सकते हैं कि आपके शरीर को इसे सहने में कोई परेशानी नहीं हो रही है। अगर आप किसी खास समस्या से पीड़ित हैं, तो आप एक चिकित्सक से परामर्श करने से पहले एलोवेरा जूस के सेवन से पहले उनसे परामर्श करना चाहिए।
एलोवेरा में जहर होता है क्या?
नहीं, एलोवेरा में जहर नहीं होता है। वास्तव में, एलोवेरा को औषधीय गुणों के कारण जाना जाता है। एलोवेरा एक सुगंधित पौधा है जो विभिन्न प्रकार की त्वचा समस्याओं के लिए उपयोग किया जाता है। इसकी जड़ों, पत्तियों और रस में विभिन्न पोषक तत्वों और एंटीऑक्सिडेंट पाए जाते हैं, जो त्वचा के लिए फायदेमंद होते हैं। एलोवेरा को सही तरीके से उपयोग करने के लिए, आपको एक विशेषज्ञ या वैद्य की सलाह लेनी चाहिए।
एलोवेरा से कितने रोग ठीक हो सकते हैं?
एलोवेरा के प्रयोग से कई समस्याएं ठीक हो सकती हैं। यह जीवनदायी फलों से पर्याप्त मात्रा में पानी और पोषक तत्वों का सम्पन्न स्रोत है। यह एक प्राकृतिक औषधि है जो कि अधिकतर त्वचा संबंधी समस्याओं के इलाज में उपयोग की जाती है। एलोवेरा का प्रयोग निम्न रोगों के इलाज में किया जाता है:
त्वचा संबंधी समस्याएं: एलोवेरा त्वचा को मौजूदा स्थिति से बेहतर बनाने में मदद करता है जैसे कि एक्जिमा, सुन-तन, दाद, छाले, और फोड़े।
बालों संबंधी समस्याएं: एलोवेरा बालों के झड़ने, रूखापन और सफेदी को रोकने में मदद करता है।
अल्सर: एलोवेरा का उपयोग अल्सर जैसी पाचन तंत्र से संबंधित समस्याओं में मदद करता है।
श्वसन संबंधी समस्याएं: एलोवेरा श्वसन रोगों जैसे ब्रोंकाइटिस, एस्थमा और एलर्जी में उपयोगी होता है।
घावों की समस्याएं: एलोवेरा का जेल सीधे घाव पर लगाया जा सकता है।
क्या एलोवेरा जूस पीना हानिकारक हो सकता है?
नहीं, एलोवेरा जूस पीने से कोई बड़ी हानि नहीं होती है, लेकिन कुछ लोगों को इससे एलर्जी हो सकती है। इसलिए, एलोवेरा जूस का सेवन करने से पहले, आपको अपने चिकित्सक से सलाह लेना चाहिए, विशेष रूप से अगर आपको पहले से कोई एलर्जी की समस्या है।
एलोवेरा जूस में कुछ औषधीय गुण होते हैं, जो शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं। यह पेट संबंधी समस्याओं, त्वचा संबंधी समस्याओं, एलर्जी, एक्जिमा, और सूखी त्वचा जैसी कई समस्याओं के इलाज में उपयोग किया जाता है।
क्या एलोवेरा कैंसर का कारण बन सकता है?
नहीं, एलोवेरा कैंसर का कारण नहीं बनता है। एलोवेरा एक प्राकृतिक उपचार है जो त्वचा के लिए उपयोग किया जाता है और आमतौर पर इसे सुरक्षित माना जाता है। अधिकतर तथ्यों के अनुसार, एलोवेरा का सेवन कैंसर के विकास का कोई संबंध नहीं है।
वास्तव में, एलोवेरा शरीर के विभिन्न समस्याओं के इलाज में मददगार साबित होता है, जैसे कि त्वचा संबंधी समस्याएं, पेट संबंधी समस्याएं, जड़ों के रोग आदि। लेकिन यदि आपको कैंसर होने का डर है तो आपको एक विशेषज्ञ की सलाह लेना चाहिए।
यदि आप इस सम्बन्ध में अधिक जानना चाहते हैं तो आप अपने डॉक्टर से सलाह ले सकते हैं या कैंसर संबंधी सत्यापित संसाधनों से जानकारी ले सकते हैं।
एलोवेरा जूस को काम करने में कितना समय लगता है?
एलोवेरा जूस का काम करने में समय निर्भर करता है कि आप इसे कैसे उपयोग कर रहे हैं।
एलोवेरा जूस किसे नहीं पीना चाहिए?
एलोवेरा जूस अधिक मात्रा में लेने से कुछ लोगों को तकलीफ हो सकती है। निम्नलिखित लोगों को एलोवेरा जूस नहीं पीना चाहिए:
गर्भवती महिलाएं: गर्भावस्था के दौरान, एलोवेरा जूस का सेवन नुकसानदायक हो सकता है। इसलिए, गर्भवती महिलाओं को एलोवेरा जूस पीने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए।
स्तनपान कराने वाली महिलाएं: स्तनपान कराने वाली महिलाओं को भी एलोवेरा जूस का सेवन कम से कम करना चाहिए। इसका मात्रा ज्यादा होने से बचना चाहिए।
शुगर के मरीज: एलोवेरा जूस में शक्कर होती है, इसलिए शुगर के मरीजों को एलोवेरा जूस का सेवन कम से कम करना चाहिए। वे अपने डॉक्टर से सलाह ले सकते हैं कि वे कितनी मात्रा में ले सकते हैं।
आयरिटेशन के मरीज: एलोवेरा जूस में आयरिटेशन के लिए उपयोग किए जाने वाले दवाओं के संयोजन से परेशानी हो सकती है। इसलिए, इस समय एलोवेरा जूस का सेवन कम से कम करना चाहिए।
क्या एलोवेरा जूस आपके खून को पतला करता है?
एलोवेरा जूस खून को पतला नहीं करता है। वास्तव में, एलोवेरा जूस खून को साफ करने में मदद करता है जिससे कि शरीर से टॉक्सिन निकालने में मदद मिलती है। इसके अलावा, एलोवेरा जूस में पोषण और एंटीऑक्सिडेंट्स होते हैं जो आपके शरीर के लिए बहुत लाभकारी होते हैं। लेकिन जैसा कि हर चीज का अधिक सेवन हानिकारक हो सकता है, इसलिए एलोवेरा जूस को अधिक से अधिक मात्रा में नहीं लेना चाहिए। विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार, एक दिन में एक छोटी कप एलोवेरा जूस पीना सुरक्षित होता है।
सबसे अच्छा एलोवेरा जूस कौन सा है?
एलोवेरा जूस का उत्पादन अनेक कंपनियों द्वारा किया जाता है और उनमें से हर एक का गुणवत्ता स्तर अलग हो सकता है। एलोवेरा जूस की गुणवत्ता उसके उत्पादन तकनीक, संश्लेषण, संरचना और उत्पाद के उपयोग से प्रभावित होती है।
यदि आप एलोवेरा जूस खरीदना चाहते हैं तो आपको एक ऐसी कंपनी का चयन करना चाहिए जो एलोवेरा पत्तों को उच्च गुणवत्ता वाले तरीके से प्रबंधित करती हो और अपने उत्पादों में सिर्फ असली एलोवेरा उपयोग करती हो।
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सच्चा प्यार और मोहब्बत यह एक ऐसा माया मृग (छल/झूठ) बनता जा रहा है जिसको पाने के लिए हर कोई उतावला है लेकिन जब इस ओर लोग बढ़ते हैं तब समझ आता है कि जिंदगी तो कुछ और ही है।
वैसे मेरी इस बात से बहुत से लोग भरोसा नहीं करेंगे या संभव है कि नाक-मुंह भी बना लें, खासकर के प्यार की चासनी में लिपटे या यूँ कहूं कि नहाये हुए वो लोग जिनके दिन की शुरुआत और अंत बाबू, सोना, जानू, I love you जैसे शब्दों से शुरू होती है या दिन के कई घंटे इसी तरह की चैट या कॉल में जाते हों! लेकिन यक़ीन मानिये जैसे-जैसे यह लेख आप पढ़ते जायेंगे तो निश्चित ही यह भरोसा तो आपको हो ही जायेगा कि जो विचार और सोच या रिश्ते लेकर आप चल रहे हैं उसपर एक बार गंभीरता से विचार करना कितना जरुरी है, कृपया एक बार गंभीरता से पूरे लेख को अवश्य पढ़ें!
इस लेख में बात शुरू करते हैं दुनिया के सबसे बड़े टॉपिक "मोहब्बत और सेक्स" से (यह बात कई तरह के रिसर्च में सिद्ध हो चुकी है की लोगों के लिए यही विषय सबसे पसंदीदा हैं), आम तौर पर इस संसार में मौजूद लगभग प्रत्येक प्राणी के जीवनचक्र का यह एक ऐसा पहलु है जिससे शायद ही कोई अछूता रहा हो, इससे न इंसान बचा और न जानवर!
जाहिर सी बात है कि जब इतने तरह के प्राणी और इतना बड़ा संसार इसी ओर भाग रहा है तो कुछ तो विशिष्ट होगा ही इसमें, वैसे यदि विज्ञान की भाषा में इसको कहें तो यह हमारे शरीर में मौजूद कुछ विशेष तरह के Hormones से जुड़ा हुआ है, और यदि आध्यात्म या आयुर्वेद की भाषा में कहें तो यह यह मानवीय संवेदनाओं, भावनाओं और जीवन की इच्छा से जुड़ा हुआ है।
अब जब बात रिश्तों की आती है , खासकर के जिसे आज के समय में विपरीत लिंग के साथ आकर्षण को प्रेम का नाम दे दिया गया है उसमें कई तरह के विकार या गलत भाव आ चुके हैं, यदि इसकी जड़ में जाएँ तो विज्ञान के हिसाब से इसके लिए जो सबसे बड़ा हॉर्मोन जिम्मेदार है वो है टेस्टोस्टेरोन (Testosterone) इसे हम male (पुरुष) हॉर्मोन भी कहते हैं, यह हॉर्मोन आदमियों में या इस दुनिया के सभी तरह के नर चाहे वो गधा, घोड़ा, कुत्ता, हाथी, शेर आदि कोई भी हो उन सभी में मौजूद होता है जिसका काम है पुरुषों में सेक्स ड्राइव को बढ़ाना!
प्राकृतिक रूप से 99.99% पुरुषों में जब विपरीत लिंग के प्रति जब प्यार / मोहब्बत और इश्क़ जैसा कुछ भी आता है तो उसके दिमाग में शुरुआत से लेकर आगे तक अपने साथी के साथ सेक्स ही आकर्षण का सबसे पहला और अंतिम पहलु होता है, संभव है आप में से कुछ लोग इससे सहमत न हों लेकिन पुरुषों की यह प्राकृतिक स्थिति होती है और विज्ञान के कई रिसर्च भी यही सिद्ध करते हैं!
हालाकिं निश्चित रूप से अपवाद भी होते हैं और कई परिस्थितियों और रिश्तों के अनुरूप भी पुरुषों का व्यवहार बदल जाता है जैसे परिवार में मौजूद अन्य महिलाओं जैसे : माता, बहन, दादी, बेटी आदि के प्रति निश्चित रूप से पुरुषों के विचार और सोच अलग चलती है, लेकिन जैसे ही वह इन रिश्तों के दायरे के बाहर खड़ा होता है और उसे विपरीत लिंग का कोई दिखता है तो स्वतः ही उसका टेस्टोस्टेरोन हॉर्मोन उसके ऊपर हावी होने लगता है, हालाँकि वर्तमान समय में यह सब इसलिए भी बहुत अधिक बढ़ा है क्योंकि आज के समय में सोशल मीडिया और इंटरनेट के माध्यम से प्रत्येक तरह की सामग्री और अश्लीलता इतने सहजता से सभी के लिए उपलब्ध है कि लोगों ने इन बातों को ही सही दुनिया समझ लिया है साथ ही इस विषय पर सही एजुकेशन के नाम पर महज मजाक भर ही हमारे समाज के बीच में है। वहीं इसके विपरीत सात्विक (मन की बेहद ही प्रसन्न और संतुष्ट रहने वाली अवस्था) आचरण, सदाचार या ब्रह्म की चर्या जिसे ब्रह्मचर्य का नाम दिया गया इस सभी की भी व्याख्या लोगों ने अपने-अपने मन से करके ऐसी बना दी है कि इसे या तो मजाक का विषय समझा जाता है या फिर कुछ आदर्श पुरुषों की स्थिति की तरह देखा जाने लगा है!
वहीं दूसरी ओर जब हम महिलाओं की बात करते हैं तो उनमें प्रोजेस्टेरोन (Progesterone) हॉर्मोन शरीर के सेक्सुअल व्यवहार, मासिक चक्र आदि के लिए जिम्मेदार होता है, साथ ही यह हार्मोन महिलाओं में चिड़चिड़ापन, उदासी, चिंता आदि जैसे इमोशनल बदलावों के लिए भी जिम्मेदार होता है। इसलिए ही जब महिलाएं अपनी मर्जी से किसी के साथ शारीरिक संपर्क में आती हैं तो उनके साथ बेहद ही ज्यादा भावनात्मक रूप से खुद को जोड़ लेती हैं और ऐसे पुरुष के लिए भी वे कुछ भी करने को तैयार हो जाती हैं!
महिलाओं और पुरुषों के इन्हीं अलग-अलग हॉर्मोन्स के कारण जो प्यार को लेकर ग्राफ की स्थिति बनती है वो कुछ इस तरह की होती है:
पुरुष जो आरम्भ में बेहद प्यार करने वाले, उतावले, अपनी प्रेमिका के लिए कुछ भी कर डालने की बात करने वाले आदि-आदि तरीके के आदर्श आचरण और व्यवहार करते हैं वे अचानक ही जैसे ही उनका मुख्य काम होता है अर्थात जैसे ही उनका टेस्टोस्टेरोन हॉर्मोन से जुड़ा काम या यह संतुष्ट होता है मतलब उसका सेक्स से जुड़ा कार्य पूरा होता है वैसे ही वो रंग बदलना आरम्भ कर देता है। वह व्यक्ति धीरे-धीरे फिर कोई और की तलाश की ओर बढ़ जाता है या जिसके साथ है तो वह और अधिक आनंद प्राप्त नहीं कर पाता है। (निश्चित रूप से इस लेख में मेरे द्वारा लिखी जा रहीं बातें एक आदर्श स्थिति नहीं है बल्कि आज के विकृत हो चुके विचारों, परिस्थितियों और सामाजिक स्थिति है, लेकिन न चाहते हुए भी एक कटु सत्य ही है!) अर्थात पुरुषों का प्यार का ग्राफ जो शुरू में चरम सीमा पर या अपने टॉप स्तर पर था वो ऊपर से नीचे और नीचे से और धरातल यानी की निगेटिव की ओर बढ़ता जाता है। (हाँ यह संभव है कि कुछ पुरुषों में यह प्यार का ग्राफ एकदम तेज़ी से कुछ ही हफ़्तों या महीनों में नीचे चला जाता है और कुछ में नीचे जाने में कुछ वर्ष भी लगते हैं लेकिन वर्तमान समय के पुरुष स्वाभाव के अनुसार यह ग्राफ जाता नीचे ही है।)
जबकि इसके विपरीत महिलाओं की स्थिति एकदम अलग होती है, आरम्भ में उनके प्यार का ग्राफ एक सामान्य लेवल पर या बिल्कुल ही प्रारंभिक स्थिति में होता है, जो धीरे-धीरे कई तरह की स्थितियों और सामने वाले की ओर से किये जा रहे कई प्रयासों और आकर्षण से धीरे-धीरे बढ़ता जाता हैं और जब वे इस स्तर पर पहुँच जातीं हैं कि वे पुरुष के साथ शारीरिक संपर्क स्थापित कर लेती हैं तो वे किसी भी स्थिति में अपने उस प्यार करने वाले पुरुष के साथ ही रहना चाहती हैं। यहाँ तक कि वे उसके लिए घर-परिवार, माता-पिता आदि सभी को छोड़ने के लिए तैयार हो जाती हैं, अभी दिल्ली में हुआ श्रद्धा मर्डर केस इसका एकदम आदर्श उदाहरण है, कि आफताब नाम के लड़के के साथ उसकी लगातार हिंसा होती थी, रिश्ता बिगड़ता ही जा रहा था, लेकिन उस सबके बाद भी वो किसी न किसी बहकावे में आकर उस लड़के से अलग नहीं हो पा रही थी, यहाँ तक कि अपने परिवार और दोस्तों से भी अच्छी खासी दूरी बनाकर के रह रही थी, उसके पिता को उसके दोस्तों से बात करके या सोशल मीडिया के उसके अकाउंट से उसका हाल पता चलता था। हालाकिं लड़कियों से माता-पिता या परिवार के साथ सही से न जुड़ पाने को लेकर या अपनी बात खुलकर न कर पाने के कई और सामाजिक पहलु हैं जिन्हें हम इसी लेख में आगे पढ़ेंगे!
महिलाओं के प्यार का ग्राफ नीचे या बीच से ऊपर और उससे और ऊपर की ओर ही बढ़ता जाता है। और उनकी इन्हीं भावनाओं और पहलु के कारण उनमें शुरू होती है एक अजीब सी स्थिति जिसे साइकोलॉजी की भाषा में "Bad Faith" कहते हैं, वैसे तो इस शब्द की व्याख्या में कई लम्बे-लम्बे विचार लिखे गए हैं, लेकिन इस लेख के विषय के सन्दर्भ में यदि लिखूं तो इसका अर्थ यह है कि लड़कियां खुद को झूठी तसल्ली या झूठा भरोसा देना शुरू कर देती हैं, और अधिक सरल भाषा में कहूं तो रिश्तों में दिख रही समस्याओं को नज़रअंदाज करना आरम्भ कर देती हैं!
जैसे जब उनका पुरुष पार्टनर उनको कम समय देना शुरू करता है तो वे समझ नहीं पातीं या समझकर भी "Bad Faith" के भरोसे बैठी होती हैं शायद सब अच्छा हो जायेगा या शायद बेचारा काम में या परिवार में उलझ रहा है, या वो बहाने जो लड़का बनाना शुरू करता है या अलग-अलग इमोशनल तरीके से बहलाता है तो उसमें बिना दिमाग लगाए भरोसा करती चली जाती हैं!
आजकल के दौर में इस तरह कि स्थितियां सबसे ज्यादा लिव-इन रिलेशन में या लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप में या लम्बे समय से प्यार में डूबे तथाकथित प्यार करने वाले युवाओं में ज्यादा दिखाई देती हैं, जिसके कई सामाजिक पहलु भी होते हैं!
जैसे लड़के-लड़की का अलग-अलग जाति (कास्ट) या धर्म का होना, यह आजकल की एक बहुत कॉमन समस्या है!
यह एक बड़ी समस्या तब और बन जाती है जब लड़का या लड़की में से कोई एक अपने माँ-बाप के साथ रह रहा होता है, क्योंकि ऐसे में उस लड़के या लड़की के ऊपर माता-पिता का इमोशनल प्यार या आज की भाषा में कहें तो अत्याचार चल रहा होता है, क्योंकि माँ या बाप या कभी-कभी दोनों को यह लगता है कि इस बच्चे को तो हमने बचपन से पाला है, बड़ा किया है और अचानक से कुछ महीनों से या सालों में मेरा यह बच्चा / बच्ची इस लड़की या लड़के से कनेक्ट हो गई है और अब यह हमारी जगह उसको ज्यादा तबज्जो कैसे दे सकता है!! कई बार यह स्थिति उन माँ-बाप के ईगो को हर्ट कर देता है जो वे या तो गुस्से में बातों के माध्यम से निकालते हैं या कई बार माँ-बाप या परिवार के लोग अपने झूठे अहंकार या झूठी सामाजिक इज्जत के नाम पर इतना गंभीरता से ले जाते हैं कि अपने ही बच्चे या बच्ची की हॉनर किलिंग तक पहुंच जाते हैं लेकिन ज्यादातर मामले स्लो पाइजन (धीमे जहर) के रूप में आगे बढ़ते हैं!
स्लो पाइजन वाली स्थिति ज्यादातर बार लड़कियों के साथ शादी के बाद ज्यादा होती है, इसकी एक बेहद बड़ी वजह उत्तर भारत में मुझे देखने को मिली वो है ऐसे रिश्तों में लड़के वालों के घर वालों की कई इच्छाएं अधूरी रह जाती हैं जो वे लड़के के दवाब में उस समय तो नहीं बोल पाते लेकिन धीरे-धीरे जैसे ही कुछ समय बीतता है वो स्लो पाइजन के रूप में बाहर निकलती हैं, जैसे जब लड़का-लड़की लव मैरिज या इंटरकास्ट मैरिज कर लेते हैं तब शुरुआत शादी और परिवार के रीति-रिवाजों से शुरू होती है कि.... लड़की के घर वालों को तो ये नहीं पता वो नहीं पता!! इन्होने वो सम्मान नहीं किया!! ये गलत कर दिया...शुरू में प्यार में डूबे लोग इसको हँसते हुए नज़रअंदाज करते हैं!!
कई बार यह स्थिति अच्छे से दहेज़ न मिल पाने के कारण भी बनती है (हमारे देश में विशेषकर के उत्तर भारत में यदि किसी का लड़का थोड़ा सा पढ़-लिख जाता है या कुछ सही कमाने लगता है तो वो उनके लिए एक दुधारू गाय की तरह होता है, जिसे बाजार में कई तरह की बोली लगाकर लोग अपनी लड़कियों के लिए रिश्ता करने के लिए एक पैर पर तैयार खड़े होते हैं), लेकिन ऐसे आकर्षक पैसों से भरे ऑफर के बीच में जो माँ-बाप या परिवार इस काम में अपने बच्चे की लव मैरिज के चक्कर में चूक जाते हैं वे शादी के बाद बेहद अजीब-अजीब से तर्कों के साथ उनकी यह अधूरी इच्छा कई तरह की भड़ास के रूप में बाहर निकलती है और इसका पूरा सामना लड़की को अकेले ही झेलना पड़ता है! और इस स्थिति में कोढ़ में खाज वाली बात यह और होती है कि लड़की के घर वाले भी उसका साथ नहीं दे रहे होते क्योंकि लड़की ने अपनी जिद से शादी की होती है तो जिससे उसके खुद के माँ-बाप का पहले ही ईगो हर्ट हुआ होता है और ऐसी स्थिति देखकर उनको कहने या बातें सुनाने का मौका मिल जाता है कि तुम्हें तो हमने पहले ही मना किया था लेकिन तुमने हमारी बात कहाँ मानी...., कई बार तो लड़कियां खुल के अपने दिल की बात और स्थिति अपने माँ-बाप को इस कारण ही नहीं बताती क्योंकि वो ही स्वयं को इस स्थिति का जिम्मेदार मानती हैं और एक Bad Faith के सहारे खुद को समझातीं रहती हैं!
कुछ महिलाएं ऐसी स्थिति से बचने के लिए यह सोचती हैं कि शायद उनका बच्चा हो जायेगा तो ऐसा नहीं होगा, लेकिन अधिकांश हालातों में यह रुकता नहीं बस स्थिति एक अलग तरह की ढलान की ओर बढ़ जाती है जहाँ से ऊपर आना बेहद मुश्किल या यूँ कहें नामुमकिन सा होता है!!
अब ऐसे में वे लड़कियां ज्यादा खुशकिस्मत होती हैं जो शादी से पहले ही ऐसी किसी स्थिति का सामना करती हैं, जहाँ लड़के के घरवाले उसे किसी और जगह दवाब बनाने के लिए कह रहे होते हैं, वो भी यही कह रहा होता है कि बाबू तुमसे तो मैं दिल-जहाँ से प्यार करता हूँ लेकिन अब घर वालों को कैसे समझाऊं मैं नहीं समझ पा रहा, कई लड़के खुल के नहीं बोलते तो कई मन में उस लड़की से सही में पूरी तरह से ऊब चुके होते हैं और नए रिश्ते में एक नया साथी और पैसा दोनों ही उसको दिख रहा होता है ......कई हिम्मत करके यह बोल देते हैं कि मैं शादी नहीं कर सकता .... लड़कियों को इस स्थिति में तत्काल समझ जाना चाहिए कि यह एक अलार्म वाली स्थिति है लेकिन उनको लगता है कि नहीं ऐसा कैसे हो सकता है जो लड़का दिन रात मेरे पीछे दुम हिलाता था, या जो अभी भी मुझे चाहता है, या यह तो मेरे हुस्न या सुंदरता पर लट्टू था, अचानक इसको क्या हो गया (ऐसा ही वहम शायद दीपिका पादुकोण को रहा होगा लेकिन वो भी ऐसे ही टॉक्सिक रिलेशनशिप के चक्कर में डिप्रेशन में जा चुकी हैं, जिन लोगों को यह किस्सा पता नहीं तो वे गूगल अवश्य करें)..... किसी भी लड़की के लिए यह बात निश्चित रूप से ख़राब ही लगेगी कि उसके साथ हर तरह का समय बिताने के बाद यह लड़का अपने घर की या किसी स्थिति से अब पीछे हटने की बात कर रहा है, या कई बार लड़के पीछा छुड़ाने के लिए लड़ाई-झगड़ा, मार-पिटाई भी कर देते हैं ...
लेकिन इन सबके बाद भी लड़कियां कई बार यह सोचती हैं कि जिस लड़के के सामने उन्होंने अपना सबकुछ दे दिया अब कोई और उनको स्वीकार कैसे करेगा!! किसी और के सामने वो खुलकर कैसे बता पाएंगी कि उनका किसी के साथ रिश्ता था!! या अभी जो लड़का उनके साथ है वो इतना अच्छा है या देखने में इतना सुन्दर है या कोई और तर्क से सिर्फ यह सोचती हैं कि यह चला गया तो कोई दूसरा कैसे मिलेगा ...और इन्हीं सब कारणों, अपने हॉर्मोन और Bad Faith के आगे मजबूर होकर उस हिस्से की ओर आगे बढ़ जाती हैं जहाँ शुरू से ही उन्हें आगे न बढ़ने के कई indication उन्हें मिल रहे होते हैं, लड़कियों को अपने ऐसे कदम के चक्कर में समाज, परिवार और यहाँ तक की अपने जीवन के लिए देखे जाने वाले कई सपनों से समझौता या बगावत करनी पड़ती है लेकिन बस इस भरोसे से वो आगे बढ़ती जाती हैं कि उनके साथ कुछ गलत नहीं हो सकता और हकीकत कभी श्रद्धा मर्डर के रूप में तो कभी दहेज़ हत्या के रूप में तो कभी खुद जाकर सुसाइड जैसे भयावह कदम उठाने पड़ते हैं।
इस लेख में एक अंतिम बात और जोडू तो लड़कियों की फंतासी (Fantasy) की स्थिति भी कई बार गंभीर परिणामों को लेकर के आती हैं, क्योंकि हमारे भारत में लड़कियों को माँ-बाप या परिवार हमेशा बेहद देखरेख वाले तरीके से पालने की कोशिश करता हैं जैसे यह ड्रेस क्यों पहनी, इसके साथ क्यों जा रही हो, इतना क्यों खर्च कर रही हो, यह बनाना सीखो, ससुराल जाकर यह करना यहाँ नहीं चलेगा यह सब, या लड़की कमाने लगती हैं तो उसकी आमदनी पर नियंत्रण करते हैं, रात में यहाँ क्यों जा रही हो, यह क्यों कर रही हो वो क्यों कर रही हो आदि....आदि... ऐसे सब में लड़की के अंदर एक अनचाही फंतासी (Fantasy) बढ़ती जाती है कि जब शादी होगी तो यह करुँगी, वहां घूमूंगी, या कोई शादी से पहले मिल जाता है तो उससे उम्मीदें होती हैं कि वो ऐसा करेगा या उसके साथ ऐसा करुँगी!
शादी या प्यार की आरम्भिक स्थिति तो अच्छी लगती है, गाड़ियों या बाइक में बैठकर हाथ में हाथ डालकर घूमना या कुछ न कुछ जुगाड़ बनाकर पैसे इकट्ठे करके छोटे-मोटे ट्रिप प्लान करना या यादगार लम्हे गुजारना नए-नए प्रेमी युगलों को बेहद अच्छा लगता है लेकिन जब जिंदगी की हकीकत सामने आती है जिसमें रोज पेट भरने का जुगाड़ करना होता है, जिसमें एक-दूसरे के अलावा भी बहुत से काम और सपने पूरे करने होते हैं और किसी कारण से वो पूरे नहीं होते तो शुरू हो जाता है Bad Faith का खेल या कुछ सपनों को ख़त्म करने का काम और बस यहीं से रिश्तों की जटिलता समझ आनी शुरू हो जाती है।
वैसे ऊपर लिखा गया जो कुछ भी लिखा गया है वो किसी भी आदर्श रिश्ते में हो सकता है क्योंकि दुनिया में आदर्श रिश्ता जैसा कुछ नहीं होता, हाँ इतना जरूर है कि अच्छे रिश्तों में कड़वाहट इतनी नहीं होती कि बहुत कुछ दांव पर लगाना पड़ता है, हाँ संघर्ष तो होता है लेकिन जीवन में संघर्ष उतना ही होना चाहिए जो सहने लायक हो, गंभीर होती स्थिति को समय से पहले पहचानना ही समझदारी होती है अन्यथा भाग्य को, लोगों को दोष देना दुनिया में सबसे आसान काम है।
चलते-चलते ऐसी अप्रिय स्थितियों से बचने के लिए कुछ प्रैक्टिकल समाधानों को भी लिख रहा हूँ:
दुनिया में सबसे ज्यादा खुद को प्यार करें, और किसी भी चीज़ से ज्यादा अपने भविष्य के सपनों को सबसे ज्यादा सम्मान दें!
अपने जीवन का निर्धारण किसी और के भरोसे या हाथों करने से पहले खुद के हाथों से करें, अर्थात सबसे पहले अपने लिए सोचें, अपने जीवन और अपने करियर के लिए निर्धारित सपनों के लिए सोचें।
चाहें कोई प्राणों से भी ज्यादा प्यारा क्यों न हो उसपर भरोसा एक तय दायरे में ही करें, और साथ ही स्वयं से झूठ या स्वयं को झूठी तसल्ली बिल्कुल न दें, स्वयं के जीवन की स्थिति का आंकलन 100% ईमानदारी के साथ करें!
अपने माता-पिता, परिवार, मित्र या किसी भी अन्य पर एक सीमा तक ही भरोसा करें, अंत में वे भी एक इंसान हैं और वे भी इमोशन के साथ जीते हैं, संभव है कि वे आपका अच्छा ही सोचेंगे लेकिन सबकुछ ही अच्छा सोचेंगे या करेंगे ऐसा हमेशा सही नहीं होता।
अपने जीवन में किसी के भरोसे ख़ुशी पाने से पहले अपने आपको इतना प्यार दें किसी से कुछ न मिले तब भी ख़ुशी के लिए किसी का मोहताज न होना पड़े!
इमोशनल रहें, भावनाओं में बहें, अपने भरोसे या श्रद्धा को खूब कायम रखें लेकिन तर्क का भी उतना ही इस्तेमाल करें जितना आपके लिए कुछ और जरुरी है।
जीवन में कुछ भी करने से पहले अपने स्वयं के लिए एक अपनी क्षमताओं और उन क्षमताओं से कुछ ज्यादा एक लक्ष्य जरूर निर्धारित करें!
सकारात्मक साहित्य और अच्छे विचारों वाले लेखकों को लगातार पढ़ें!
जीवन में तकदीर के भरोसे न रहें क्योकिं ज्यादातर बार तकदीर हमारे किये गए कार्यों के भरोसे बैठी होती है और जीवन में हमें वैसे ही परिणाम मिलते हैं जो काम हम करते हैं। (जो बोया जाता है वो काटना ही पड़ता है, यह प्रकृति का और कर्म का अटल नियम है)
हो सके तो किसी बात का यदि आप अकेले निर्णय नहीं ले पा रहे हैं तो ऐसे लोगों से परामर्श अवश्य लें जिनसे आपको लगता है कि अच्छा समाधान या सुझाव मिल सकता है!
ऐसे कामों में समय ज्यादा दें जो आपके जीवन में बेहतर लाभ दे सकते हैं, सोशल मीडिया पर बहुत ज्यादा समय खर्च करने से बचें!
श्रीमदभगवत गीता के अध्याय 13 के इन श्लोकों में सम्पूर्ण जीवन का सार है, हालाँकि सिर्फ इतने से बहुत कुछ समझ में आ जाये यह कठिन है, लेकिन भगवत गीता का नियमित अध्ययन आपको बहुत सी समस्याओं के समाधान प्राप्त करने में निश्चित मदद करेगा ! इसलिए जब भी समय मिले श्रीमदभगवत गीता का अध्ययन अवश्य करें!
अमानित्वमदम्भित्वमहिंसा क्षान्तिरार्जवम् । आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्मविनिग्रहः ॥ ८ ॥
इन्द्रियार्थेषु वैराग्यमनहङ्कार एव च । जन्ममृत्युजराव्याधिदुःखदोषानुदर्शनम् ॥ ९ ॥
असक्तिरनभिष्वङ्ग: पुत्रदारगृहादिषु । नित्यं च समचित्तत्वमिष्टानिष्टोपपत्तिषु ॥ १० ॥
मयि चानन्ययोगेन भक्तिरव्यभिचारिणी । विविक्तदेशसेवित्वमरतिर्जनसंसदि ॥ ११ ॥
अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं तत्वज्ञानार्थदर्शनम् । एतज्ज्ञानमिति प्रोक्तमज्ञानं यदतोऽन्यथा ॥ १२ ॥
भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि: विनम्रता, अभिमान का त्याग (दम्भहीनता), अहिंसा, सहिष्णुता, सरलता, ज्ञानवान व्यक्ति को गुरु मानकर उनसे सीखना, पवित्रता, स्थिरता, आत्मसंयम, इन्द्रियतृप्ति के विषयों का त्याग करना, अहंकार का अभाव, जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था तथा रोग के दोषों की अनुभूति, वैराग्य, सन्तान, स्त्री, घर तथा अन्य वस्तुओं की ममता से मुक्ति, अच्छी तथा बुरी घटनाओं के प्रति समभाव, ईश्वर (भगवान कृष्ण) के प्रति निरन्तर अनन्य भक्ति, एकान्त स्थान में रहने की इच्छा, जन समूह से विलगाव, आत्म-साक्षात्कार की महत्ता को स्वीकारना, तथा परम सत्य की दार्शनिक खोज - इन सबको मैं ज्ञान घोषित करता हूँ और इनके अतिरिक्त जो भी है, वह सब अज्ञान है।
इस लेख में मेरी ओर से कोशिश की गई है कि तथ्यों, तर्कों और जीवन में सैकड़ों लोगों से मिले अनुभवों के आधार पर ही विचारों को संकलित करके आप सभी को साझा करूँ, वैसे अभी भी इस विषय पर लिखने को इतना कुछ है कि एक बड़ा संकलन तैयार किया जा सकता है, और साथ ही मेरे पुरुष मित्रों को लेकर भी बहुत कड़ा लिखा हूँ जिसके लिए दिल से खेद हैं लेकिन क्योंकि लेख का जो विषय है उसके इर्द-गिर्द ईमानदारी से लिखने का प्रयास किया है, लेकिन यह वादा है कि मानवीय रिश्तों और उनके व्यवहारों के ऊपर मेरी ओर से यह श्रंखला अब लगातार जारी रहेगी जिसमें पुरुषों के भावनात्मक पहलुओं पर भी गहराई से लिखूंगा!
आशा है कि आप सभी को इस लेख में दिए गए विचार सही लगे होंगे, यदि किसी विषय, तथ्य या विचार से आपकी कोई असहमति है या आपके पास भी इस लेख के विषय के इर्द-गिर्द कुछ और विचार या अनुभव साझा करने हों तो मुझे मेरी ईमेल [email protected] पर अवश्य लिखकर के भेजें, आपके सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी!
आपका !
आयुर्वेदाचार्य डॉ. अभिषेक !!
Menstrual health comprises the physical, social and mental aspects related to menstruation or periods. In India, women's health has been given secondary importance due to a male dominant society, illiteracy, low socio-economic conditions and ignorance.
The most common causes of menstrual problems are PCOS (Polycystic Ovarian Syndrome), and abnormal or heavy menstrual bleeding. Menstruation or monthly periods have been associated with a lot of social and cultural taboos in India.
Many young girls and women do not have facilities to manage their menses hygienically, maintaining their privacy, dignity and gender equality at home, schools and workplaces.
So, what are normal periods? A normal menstrual period lasts from 2-7 days and comes at an interval of 21-35 days. It is difficult to quantify the actual menstrual flow. In general, use of three to four XL or regular size sanitary pads per day (since they need to be changed every six to eight hours) can be considered normal on an average, but it may vary depending on the individual.
Common Menstrual Problems
1. Menstrual hygiene
2. Menstrual flow
3. Menstrual cycle
4. Menstrual hormones
Menstrual Hygiene Related Problems: Use of unclean sanitary pads or clothes can give rise to genital tract infections, anaemia and urinary tract Infection. This can be prevented by social awareness and easy availability of affordable sanitary products. It is also important to have the right knowledge about menstrual hygiene to avoid such issues from taking place.
Menstrual Flow Related Problems: One can experience excess or scanty flow during periods. Usually heavy menstrual flow can be for 1-2 days but if it continues for more than 5-7 days, it can lead to low haemoglobin and anaemia. This definitely needs to be investigated and treated along with oral iron replacement therapy. The less flow or change in flow over years can be due to hormonal imbalance. This can occur mostly after completion of family in perimenopausal age.
Menstrual Cycle Related Problems: Irregular periods, skipping or not getting periods for more than six months (also known as secondary amenorrhoea) and bleeding in between periods (called inter menstrual bleeding) are a few problems under this type of problem. The most common cause for this is Polycystic Ovarian Syndrome (PCOS), stress, anxiety and depression. Investigations in the form of pelvic sonography and hormonal investigations are necessary to make a diagnosis. Regular exercise, a balanced diet and healthy lifestyle changes are important.
Menstrual Hormone Related Problems: This usually gives rise to psychomotor issues. They can be symptoms of Premenstrual Syndrome (PMS) at any age group or peri/postmenopausal vasomotor symptoms after the age of 45. Bloating, breast tenderness, irritability and depression which occur premenstrually and disappear with onset of periods are classical symptoms of PMS. If they are affecting day to day family life, then it needs to be treated.
Every woman experiences menopausal symptoms in varying severity, starting usually 4-5 years before menopause. The night sweats, hot flushes, low moods, anxiety, irritability, joint and muscle pain, loss of interest in having sex, and weight gain are typical menopausal symptoms due to deficiency of oestorgen hormones.
No matter which type of menstrual problem you're facing, it is always advisable to visit a gynaecologist who will be able to identify all your queries after making the right diagnosis.
Nua, a new-age brand transforming the women's wellness space in India with holistic and personalised solutions that addresses real problems faced by women in managing their menstrual health and personal hygiene, provides an innovative range of products and services, including India's first customizable pack of sanitary pads and self-heating menstrual cramp patches, also available on a subscription basis. (Vaishali Joshi, #NuaExpert on Gynaecology, is an Obstetrician and Gynaecologist at Kokilaben Dhirubhai Ambani Hospital, Mumbai)
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New York, Aug 18 (IANS) Rates of physical and psychological aggression among couples increased six to eight-fold at the outset of the Covid-19 pandemic in the US, according to a new study.The study led by Georgia State University (GSU) researchers showed that physical aggression increased from two acts per year before the pandemic to 15 acts per year after lockdowns were imposed due to Covid-19. Psychological aggression increased from 16 acts per year to 96 acts per year.The findings indicate that stress related to the pandemic was strongly associated with perpetration of intimate partner aggression.While rates of intimate partner aggression remained high among heavy drinkers, it was non-heavy drinkers who were most affected by Covid-related stress. The association between physical aggression after the onset of the pandemic and Covid-19 stress was apparent only in people who consumed fewer drinks per day."If you think about it, that (increase) represents an enormous shift in people's day-to-day lives," said lead author Dominic Parrott, Professor of Psychology and Director of the GSU's Center for Research on Interpersonal Violence."It's the difference between having a bad fight with your partner once a month versus twice a week," Parrott added.The study published in the journal Psychology of Violence recruited 510 participants in April 2020 -- during the height of shelter-in-place restrictions across the US -- and asked them questions related to the period prior to and after the onset of Covid-19 in their community."There's data showing that after natural disasters, for example, when basic resources are lost and people have to live in close proximity, intimate partner violence goes up. Our fundamental aim was to document what was happening as a result of the pandemic," Parrott said.Policies designed to alleviate negative impacts of the pandemic -- such as economic relief packages or policies that provide increased access to childcare and healthcare -- may in turn reduce stress and perpetration of intimate partner aggression.In addition, broad implementation of public health policies aimed at mitigating the spread of the virus may also mitigate physical and psychological aggression, the researchers said.--IANSrvt/khz/bg
Mostly, women are aware of reproductive facts and something called a biological clock ticking away. This comes into prominence especially when couples plan their pregnancy. One should keep in mind that fertility is age-related for both men and women and this understanding is pivotal because it helps in conceiving, the baby's health depends on it and one can make informed choices during pregnancy.
How age affects a women's fertility as compared to men?
Fertility with age has a different effect on men and women. A woman is born with certain number of eggs that only get depleted over a period of time, and after some time she can't produce any more eggs. But in the case of a man, he can produce sperms his entire life. Therefore, it signifies the women's pregnancy health window is short as compared to a man's, who can even father a child in their 60s and 70s. So, let's have a look at the fertility across different age groups:
Fertility in their 20s:
According to the experts, this is the perfect age group for a woman to have a healthy pregnancy. This is the age when women are most fertile. The difference in fertility in their early 20s and late 20s is almost negligible.
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Some of the great advantages of pregnancy during this age group are:
* As your eggs have lesser odds of carrying genetic abnormalities, the chances of your child having any genetic disorders such as Down Syndrome, Thalassemia, etc. is minimal.
* The risk of miscarriage lays only 10 per cent.
* Less likely that you will have premature baby or baby with low birth weight.
* Even the mother has lower risk of any health complications like gestational diabetes or hypertension.
The disadvantages of this phase are:
* In first pregnancy, the risk of pre-eclampsia, a pregnancy complication, becomes higher
* If you have PCOD or uterine fibroids or any underlying medical condition, achieving a pregnancy is complicated.
* When it comes to male fertility, they don't have to worry at all. If at all infertility has been diagnosed in a man, then it's all because of his lifestyle choices that lead to obesity, hypertension, contraction of any sexually transmitted infection and diabetes. This can be reversed in the case of men by altering lifestyle choices. Sexually Transmitted Infections in men affect the motility and concentration of sperms.
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Fertility in their 30s:
If a woman wants to conceive in this phase of her life, then the chances of expecting are between 15 and 20 per cent each month provided they don't have any underlying health conditions. A study has confirmed that women in 30s have 30 per cent chances of conceiving in their first try. But, fertility tends to decline when a woman reaches 35 because of the decreased quality and quantity of the eggs. Even the chances of conceiving naturally after 35 are also minimal. The increased level of the follicle-stimulating hormone in a female body makes her more prone to having twins or triplets.
The risks of conceiving in 30s are:
* Higher C-section rates
* Higher chances of genetic issues in the newborn
* Increased rates of miscarriages and stillbirths
* Elevated risks of ectopic pregnancy
Fertility in your 40s and beyond:
In case of a woman, it's not impossible to conceive in this age but one should take notice of the fact that during each ovulatory cycle, pregnancy rate dips to 5 per cent between 40 and 44, whereas beyond 45 it gets reduced to 1 per cent. According to Center for Disease Control, half of women across the globe undergo fertility issues in 40s.
The risk factors of conceiving remains the same as it is in their 30s. Since there are risk factors involved, there is no guarantee that a female can conceive for sure. Even a man's fertility also declines in this age group as the sperm count and semen volume also decreases. But, one should not give up hope and consult a fertility expert at the right time.
Ultimately, the perfect time to get pregnant is when you feel it's the right time for you. It's completely fine if want to feel more confident in your career and finances to start building your family. If you do choose to wait, do consult with your doctor or a fertility specialist to make sure no health issues will come as surprise once you're ready. The fertility expert will not only help you know your ovarian reserve but can also suggest ways and means to preserve your fertility till you are ready to become a mother.
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London, May 20 (IANS) The human body's endocrine system that makes hormones is strongly involved in the SARS-Cov-2 infection -- the virus behind Covid-19 -- so much so that evidence of an "endocrine phenotype" of Coronavirus has emerged, according to a statement by the European Society of Endocrinology.A team of scientists from the Universitat Autonoma de Barcelona in Spain looked at the available evidence with respect to Covid-19 across a number of endocrine conditions and related factors: diabetes, obesity, nutrition, hypocalcemia, vitamin D insufficiency, vertebral fractures, adrenal insufficiency, as well as pituitary/thyroid issues and sex hormones.The effect on hormones cannot be ignored in the context of Covid-19," said lead author Manel Puig from the varsity, adding "the evidence is clear"."We need to be aware of the endocrine consequences of Covid-19 for patients with a known endocrine condition such as diabetes, obesity or adrenal insufficiency, but also for people without a known condition. Vitamin D insufficiency for example is very common, and the knowledge that this condition has emerged frequently in the hospitalised Covid-19 population and may negatively impact outcomes should not be taken lightly," Puig added, in the statement published in the journal Endocrine.Diabetes has emerged as one of the most frequent comorbidities associated with severity and mortality of Covid-19, according to a rapidly increasing amount of published data on the incidence of Covid-19 in patients over the last year.Mortality in Type-1 or Type-2 diabetes has consistently increased during the year of pandemic,A and evidence is emerging that a bidirectional relationship between diabetes and Covid-19 may exist, both in terms of worsening existing conditions and new onset of diabetes.Similar trends were identified for people with obesity. Obesity increases susceptibility to SARS-CoV-2 and the risk for Covid-19 adverse outcomes.The researchers posit that nutritional management is important both for patients with obesity or undernourishment in order to limit their increased susceptibility and severity of infection. Vitamin D, calcium and bone are other areas showing a growing body of evidence that better monitoring and solutions for patients are needed in the context of Covid-19.--IANSrvt/ash
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