सिंगापुर/दिल्ली - सिंगापुर में आयुर्वेद चिकित्सकों के लिए असीम संभावनाएं हैं लेकिन आयुर्वेद चिकित्सा को प्रोटोकॉल बेस्ड व सही ढ़ंग से क्वालिटी कंट्रोल करके पेश करने की आवश्यकता है. यह कहना है निरोगस्ट्रीट के सीएमओ और को-फाउंडर डॉ. अभिषेक गुप्ता का. गौरतलब है कि वे इन दिनों सिंगापुर के दौरे पर हैं जहाँ हो रहे बिजनेस समिट और प्रदर्शनी में निरोगस्ट्रीट भी भागीदारी कर रहा है. सिंगापुर में आयुर्वेद की संभावनाओं को लेकर सुनिए उनकी पूरी बात जो नीचे वीडियो में मौजूद है -
बाल झड़ना एक आम समस्या है. लेकिन इसका निदान विज्ञापनों में दिखने वाले किसी तेल या शैम्पू के लगाने से नहीं हो सकता. 90% बालों की समस्या का कारण आंतरिक होता है. दरअसल शरीर की बहुत सारी आंतरिक समस्याओं की वजह से बालों की समस्या पैदा होती है.
बालों की समस्याओं के संभावित कारण :
1-हार्मोन : हार्मोनल असंतुलन एक प्रमुख वजह है.
2-जेनेटिक : जेनेटिक समस्याओं की वजह से भी बाल गिरते हैं.
3-बीमारी और एंटीबायोटिक दवाएं : यदि लम्बी बीमारी से आप गुजरे हो तो भी बाल गिरने की समस्या उत्पन्न होती है. इन बीमारियों के दौरान एंटीबायोटिक दवाइयों के खाने से भी बालों की समस्या पैदा होती है.
4-स्थान परिवर्तन और पानी : स्थान परिवर्तन की वजह से भी कई बार बालों की झड़ने की समस्या पैदा होती है. स्थान परिवर्तन से मौसम और पानी बदलता है. उसकी जगह से भी बालों की समस्या पैदा होती है.
5- कैप और हैल्मेट : यदि आप लगातार कैप या हैल्मेट पहने रहते हैं तो उसकी वजह से भी बाल झड़ने की समस्या पैदा हो सकती है.
6- थायराइड : थाइराइड की समस्या खासतौर पर महिलाओं में बहुत सामान्य है. इसकी वजह से बालों के झड़ने की समस्या पैदा होती है. थायराइड के रोगी जब भी आते हैं तो सबसे पहले दो बातें जरुर कहते हैं. पहली बात कहते हैं कि वजन बढ़ रहा है और दूसरा कि बाल झड़ रहे हैं.
बालों की समस्या के निदान के लिए जरुरी है कि सबसे पहले उसके असली कारणों को जाना जाए. इसके लिए जरुरी है कि आप अपने नजदीक के आयुर्वेदिक डॉक्टर से मिले, अपनी प्रकृति की जांच कराएँ और तमाम शारीरिक समस्याओं के बारे में बताएं. इससे समस्या का सही समाधान निकल कर सामने आएगा. देखें पूरा वीडियो -
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सवाल- मेरे गले में रात को सोने के बाद कफ बनता है। दिन में भी गले में खरखराहट बनी रहती है। जांच कराने पर कोई तकलीफ नहीं निकली। किस वजह से ऐसा हो रहा है और इसके क्या उपाय हैं?जवाब - आपके प्रश्न में कई ऐसी जानकारियां हैं जो मौजूद नहीं हैं, जैसे आपको यह समस्या कब से है ? आपका पाचन कैसा है? आपकी उम्र कितनी है? किसी तरह का व्यसन आप करते है या नहीं? किसी खाने की चीज़, तेज़ महक, घूल-धुएं से आपको एलर्जी तो नहीं है? आपको किसी अन्य तरह का कोई रोग जैसे शुगर या बी.पी. की कोई शिकायत तो नहीं है आदि?जितना भी आपके प्रश्न से समझ में आ रहा है संभवतः यह अधिक कफ की विकृति के कारण हो रहा है, शरीर में जब हम ऐसे आहार-विहार का सेवन नियमित रूप से करते हैं जो शरीर में कफ बढ़ा देता है, ऐसे में यह समस्या होना स्वाभाविक होती है। इसके लिए सबसे पहले आप दिन में 2-3 बार 1 कप गुनगुने पानी में 1/2 चम्मच सैंधा नमक मिलाकर सेवन करें, इसके अतरिक्त तुलसी, इलाइची, गिलोय, अदरख एवं मुलेठी को बराबर मात्रा में मिलाकर (सभी को लगभग 1/4 चम्मच या 1 ग्राम की मात्रा में लें) 1 गिलास पानी में डालकर उबालें, उबलकर जब आधा रह जाए तब छानकर इसे चाय की तरह पियें। इसे आप दिन में 2 बार ले सकते हैं।अपने सीने पर सरसों के तेल को हल्का सा गर्म करके उसमें थोड़ा सैंधा नमक मिलाकर हल्के हाथों से मालिश करें, इससे आपके शरीर में कफ बनना कम होगा व इससे तत्काल लाभ भी मिलेगा। कफ की समस्या में दूध का सेवन भी नहीं करना चाहिए, यदि आप नियमित रूप से दूध पीते हैं तो दूध में हल्दी व सौंफ मिलकर उसको उबाल लें, सामान्य तापमान पर आने के बाद उसका सेवन करना चाहिए।अपने आहार में दही, मठ्ठा, छाछ, क्रीम युक्त दूध व सादा दूध, लाल मिर्च, अचार, खटाई, शराब, तली-भुनी चीजें, मैदा से बने पदार्थ, आइस क्रीम, कोल्ड ड्रिंक्स, ठंडा पानी, चावल, पूड़ी-पराठें, मक्खन, घी, मिठाई आदि का सेवन न करें। ए. सी., कूलर, पंखा आदि की सीधी हवा से बचें यह सभी शरीर में कफ को बढ़ाते हैं।2 दिन में लाभ न होने पर तत्काल अपने निकट के चिकित्सक से परामर्श करें। आयुर्वेद में इस तरह की समस्या में स्थाई समाधान संभव हैं, यदि यह समस्या आपको लम्बे समय तक बनी रहती है तो आपको एलर्जिक टेस्ट अवश्य करवाना चाहिए। लम्बे समय तक ऐसे लक्षण tb की समस्या के कारण भी हो सकते हैं, इसलिए ऐसे लक्षणों को बिल्कुल नजरअंदाज न करें!( डॉ. अभिषेक गुप्ता ) (मूलतः दैनिक भास्कर में प्रकाशित )
निरोग रहने की चाहत सबमें होती है. इसी चाहत में कई लोग योगाभ्यास समेत कई शारीरिक भागदौड़ वाले कसरत करते हैं. लेकिन इनमें से ढेरों ऐसे लोग हैं जो सही तरीके से कसरत नहीं करते या फिर बहुत अधिक शारीरिक कसरत करते हैं. इससे कई दूसरे तरह की समस्याएं पैदा हो सकती है. इसी विषय पर निरोगस्ट्रीट के सह-संस्थापक और सीएमओ डॉ. अभिषेक गुप्ता अपने चिकित्सीय अनुभव को यहाँ साझा कर रहे हैं. उनके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के शरीर की एक निश्चित शक्ति या क्षमता होती है, यदि उस व्यक्ति को कोई कसरत करनी है तो अपने शरीर की कुल शक्ति का सिर्फ आधी क्षमता तक ही करनी चाहिए. शारीरिक क्षमता के अनुसार ही कसरत करे -डॉ. अभिषेक गुप्ता आजकल चिकित्सकीय सलाह के समय कुछ रोगी ऐसे भी आते हैं:मरीज - सर पिछले कुछ समय से दिन में 1 घंटे योग और 30 मिनट प्राणायाम कर रही हूँ , शुरुआत में थोड़ा ठीक लगता था लेकिन अब योग और प्राणायाम करने के बाद शरीर काँपने लगता है, घबराहट, बेचैनी, चक्कर और आँखों के सामने अँधेरा छाने लगता है, मेरा वजन भी तेज़ी से गिरता जा रहा है, पहले 52 किलो था अब 45 हो गया है सिर्फ 2 माह में! ऐसा क्यों हो रहा है? कोई तरीका बतायें जिससे यह समस्या न हो!डॉ. अभिषेक - आपको इतना अधिक देर तक व्यायाम करने को किसने कहा था ?मरीज - रोगी महिला का श्रद्धा भाव से भरा उत्तर: सर एक बाबा जी को टी.वी. पर सुना था , उन्होंने ने इतनी देर तक करने को कहा था इसलिए कर रही हूँ !डॉ. अभिषेक - बहन जी, पहले तो आप यह जान लीजिए कि जो आप करती हैं वह योग नहीं है अपितु योग का एक छोटा सा अंग आसन है, जिसे आजकल लोगों ने बढ़ा-चढ़ाकर योग का नाम दे दिया है, योग का अर्थ स्वयं के शरीर व मन को अष्टांग योग के माध्यम से ईश्वर के साथ जोड़ना होता है। दूसरा प्रत्येक व्यक्ति के शरीर की एक निश्चित शक्ति या क्षमता होती है यदि उस व्यक्ति को कोई कसरत करनी है तो अपने शरीर की कुल शक्ति का सिर्फ आधी क्षमता तक ही करना चाहिए और तीसरी और सबसे जरुरी बात कि कभी भी टी.वी. या इंटरनेट में देखकर खुद का उपचार नहीं करना चाहिए, साथ में किसी भी व्यायाम को सुबह के समय खाली पेट में करें व शरीर पर हल्के हाथ से तेल की मालिश के बाद ही करें।20 दिन बाद कुछ आयुर्वेद की सामान्य हृद व बल्य औषधियों, आहार क्रम व उपरोक्त सलाह के बाद उन महिला को भेजा, आज पुनः 20 दिन बाद उनसे भेट हुई तो वे काफी स्वस्थ दिखीं, शरीर भार में 2 किलो की वृद्धि मिली व अब वे व्यायाम व प्राणायाम भी सिर्फ 20 मिनट करती हैं।मूल बात जो सबको रखनी चाहिए याद कृपया आप भी यदि ऐसा कुछ टी.वी. या इंटरनेट में देखकर करते हैं तो कृपया अपने शरीर के भले के लिये न करें, अपने पास के आयुर्वेद चिकित्सक के परामर्श के पश्चात ही कोई क्रिया या औषध करें, अन्यथा आप लाभ के स्थान पर हानि भी उठा सकते हैं।
आयुर्वेद की मदद से आपातकाल चिकित्सा - Emergency Management through Ayurveda
नोयडा। निरोगस्ट्रीट द्वारा आयुर्वेद को लेकर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी कल नोयडा के जेपी अस्पताल में सफलता पूर्वक संपन्न हुआ। इसमें आयुर्वेद के द्वारा इमरजेंसी मैनेजमेंट पर वक्ताओं ने अपनी बात रखी। इस मौके पर देश के जाने-माने वैद्य अच्युतानंद त्रिपाठी पूरे सत्र के दौरान न केवल मौजूद रहे, बल्कि समय-समय पर उन्होंने आयुर्वेद चिकित्सा और औषधियों से संबंधित ज्ञान को भी सभा में उपस्थित चिकित्सकों और छात्रों से बांटा। उन्होंने कहा कि ये विषय बेहद समसामयिक है और यदि इसपर गंभीरता से विचार किया जाए तो इससे आयुर्वेद चिकित्सा का भला होगा.
डॉ. नवीन चौहान ने क्षारसूत्र पर अपनी बात रखी और किस तरह से उसका मैनेजमेंट किया जाए, इसे विस्तार से बताया जबकि डॉ. आँचल माहेश्वरी ने पंचकर्म के द्वारा रोगियों को तुरंत राहत देने के उपायों पर बात की। निरोगस्ट्रीट की तरफ से डॉ. अभिषेक गुप्ता ने आपातकालीन प्रबंधन (emergency management through ayurveda) पर विस्तार से चर्चा की और पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन की मदद से उदाहरण समेत इसे समझाया। इस दौरान पूछे गए प्रश्नों का उत्तर भी उन्होंने दिया। इसी मसले पर सीताराम आयुर्वेदिक चैरिटेबल फाउंडेशन की डायरेक्टर डॉ. वंदना गुप्ता ने भी अपनी बात रखी।
डॉ. एम शाहिद ने मर्म चिकित्सा के द्वारा रोगी को तुरंत राहत देने के उपायों को लाइव डेमो के जरिये दिखाया। उन्होंने कुछ ऐसे वीडियो दिखाए जिसमें मर्म चिकित्सा के जरिये रोगियों को कुछ मिनटों में राहत मिली। मिला-जुला कर संगोष्ठी में यही स्वर उभरा कि आपातकालीन चिकित्सा के मामले में भी आयुर्वेद है सबसे तेज, बस इसे थोड़ा व्यवस्थित बनाने की जरूरत है। निरोगस्ट्रीट के फाउंडर और सीईओ राम एन. कुमार ने भी इस दौरान आयुर्वेद को व्यवस्थित करने की बात पर प्रकाश डाला और निरोगस्ट्रीट के उद्देश्य को रेखांकित किया।
कार्यक्रम में देश भर से आये आयुर्वेद के चिकित्सक और छात्रों ने उत्साह से हिस्सा लिया। परिचर्चा के दौरान सवाल-जवाब भी हुए। कार्यक्रम के अंत में सर्टिफिकेट भी दिया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. रंजन ने किया और बोलने के अपने खास अंदाज से उन्होंने कार्यक्रम को जीवंत बनाये रखा। इस मौके पर इंटीग्रेटिड मेडिकल एसोसियेशन (IMA-AYUSH) के पदाधिकारी भी मौजूद रहे और नोयडा व गाजियाबाद के नए अध्यक्ष व उनकी टीम के सदस्यों के नाम की भी घोषणा की।
आयुर्वेद चिकित्सा और औषधियों का लोहा अब पूरी दुनिया मान रही है लेकिन आम जन में अब भी ये भ्रान्ति है कि आयुर्वेद दवाइयों का असर बहुत धीमे-धीमे होता है. आयुर्वेद के बारे में यह भ्रांति चाहे जैसे भी फैली हो, बिलकुल गलत है. आयुर्वेद असर के मामले में भी सबसे तेज है. आयुर्वेद में ऐसी बहुत सारी दवाइयाँ है जिसका असर तेजी से होता है. इस बारे में डॉ. अभिषेक गुप्ता का यह लेख काफी कुछ स्पष्ट करता है-
सबसे तेज आयुर्वेद : आयुर्वेद में ऐसे अनगिनत योग हैं जो रोग पर तेजी से असर करते हैं
आयुर्वेद के विषय में सामान्यतया ये धारणा है कि इसकी औषधियों का प्रभाव रोग पर होता तो है लेकिन थोड़ा धीरे-धीरे होता है जबकि सच्चाई यह है कि आयुर्वेद में ऐसे अनगिनत योग हैं जो रोग पर तेजी से असर करते हैं. रोग पर औषधि का असर रोग की अवधि से होता है अर्थात यदि किसी व्यक्ति का रोग 3-5 दिन पुराना है तो इसका रोग में लाभ भी 3-5 दिन में ठीक हो जाता है. इसी प्रकार किसी व्यक्ति का कोई रोग कई वर्ष कई वर्षों से तो कैसे उनको 2-3 दिन में लाभ पहुंचाया जा सकता है? इसके लिए चाहे कोई भी चिकित्सा पद्धति क्यों न हो उसके प्रयोग के बाद औषधियों का असर आने में थोड़ा समय तो लगेगा ही. आयुर्वेद की औषधियों की एक विशेषता ये है कि इसकी औषधियों का दुष्प्रभाव नगण्य होता है व रोग का समूल नाश संभव है. आयुर्वेद चिकित्सा की इन्हीं विशेषताओं को इस लेख के माध्यम से रेखांकित करने की कोशिश है. इस संदर्भ में नीचे कुछ औषधियों के नाम दिया गया है जिनका प्रभाव तेजी से और सफलतापूर्वक होता है.
बसंतकुमार रस (Basant Kumar Ras)
यह हृदय के लिए लाभदायक होता है और साथ ही बलवर्धक भी है. यह रस स्वर्ण, मोती, अभ्रक, रससिन्दू आदि बलवर्धक औषध द्रव्यों के संयोग से मिलकर तैयार होता है. इसका प्रभाव मधुमेह, प्रमेह, श्वेत प्रदर, हृदय, फेफड़ों के रोग व् शुक्र से संबंधित विकारों में होता है. हृदय की कमजोरी, मस्तिष्क निर्बलता, नींद न आना, खून की कमी, क्षय रोग व जरा (बुढ़ापा) अवस्था में इसका प्रयोग विशेष लाभकारी है. मधुमेह रोग की यह प्रसिद्द औषधि है. किसी प्रकार के रक्तस्त्राव में इसका प्रयोग अनार शरबत, दाड़िमावलेह, आंवला मुरब्बा या गुलकंद के साथ देने पर शीघ्र लाभ होता है. अत्यधिक रक्तस्त्राव में भी यह विशेष लाभदायक है. जिन लोगों का रक्त देर से जमता है या बी.टी. (ब्लीडिंग टाइम), पी.टी. (प्रोथाम्बिन टाइम) व आइएनआर रेशियो ( inr ratio) अधिक होता है ऐसी अवस्था में रक्त को गाढ़ा करने के लिए वसंतकुसुमाकर रस बहुत लाभकारी है. इन्द्रियों की शक्ति बढ़ाने, रस रक्तादी धातुओं की वृद्धि कर हृदय, मस्तिष्क को बल प्रदान करने, शारीरिक कांति बढ़ाने में , शुक्र और ओज को बढाकर यह रसायन स्वास्थ्य को स्थिर करता है.
त्रिवंग भस्म (Trivang Bhasma)
यह भस्म तीन भस्मों से मिलाकर तैयार होती है. शुद्ध नाग, शुद्ध वंग व शुद्ध यशद को समान मात्रा में लेकर इस भस्म को तैयार किया जाता है. मूत्रवह स्रोतस से संबंधित रोगों में इस भष्म के प्रयोग से विशेष लाभ होता है. यह भष्म विशेषकर मूत्रवाहिनी नली पर असर करती है. प्रमेह विकार में त्रिवंग भस्म का बहुत अच्छा प्रभाव होता है. वैसे तो मधुमेह में सिर्फ नाग भष्म का प्रयोग लाभदायक होता है किन्तु जिन मधुमेह रोगियों में सन्धि स्थानों (जोड़ों) में दर्द, मन्दाग्नि शारीरिक कमजोरी, प्रमेह पीड़िकायें जैसे समस्याएं हो उनमें त्रिवंग भस्म बहुत लाभ करती है. यह भस्म वीर्यवर्धक है जिन स्त्रियों में गर्भधारण शक्ति कमजोर हो या गर्भ न ठहरता हो ऐसी स्थिति में यह भष्म विशेष लाभकारी है. श्वेतप्रदर में भी यह भष्म विशेष लाभकारी है.
शिलाजीत (Shilajit)
शिलाजीत के विषय में एक भ्रांति है कि इसका प्रयोग मर्दाना कमजोरी में करना चाहिए. कुछ औषधि निर्माता फार्मेसी अपने व्यवसाय व इस उत्पाद की बिक्री को बढ़ाने के लिए ऐसा भ्रामक प्रचार करते हैं जबकि सच्चाई ये है कि शिलाजीत बहुत ही उन्नत किस्म का रसायन है जिसका प्रयोग शरीर के नाड़ी दौर्बल्य व मधुमेह / प्रमेह ( डायबिटीज) के रोगों में अमृत तुल्य है. मधुमेह के रोगी यह शिकायत करते हैं कि उन्हें शारीरिक थकान महसूस होती है या पैरों में जलन या सूनापन रहता है. ऐसे रोगियों में शिलाजीत का प्रयोग गिलोय सत्व, जामुन गुठली चूर्ण व हरिद्रा के साथ करने पर विशेष लाभ होता है. कुछ रोगियों में शिलाजीत के प्रयोग से अतिसार या पेट में जलन पैदा हो जाता है. ऐसे रोगियों में इसका प्रयोग अल्प मात्रा में शाम के समय दूध के साथ करना चाहिए.
अर्जुनारिष्ट (Arjunarishta)
अर्जुनारिष्ट का प्रयोग हृदय से संबंधित रोगों में विशेष लाभकारी है . इसका लाभ बढे हुए ब्लड प्रेशर में भी मिलता है. जिन हृदय रोगियों को घबराहट, बेचैनी, मुंह सूखना, शरीर में पसीना आना, नींद कम आना, अनियमित रक्तचाप की समस्या रहती है ऐसे ह्रदय रोगियों में इसका प्रयोग विशेष लाभदायक होता है.
अकीक पिष्टी (Akik pishti)
अकीक एक प्रकार का खनिज पत्थर है. यह पिष्टी ह्रदय और मस्तिष्क को बल देने तथा वात पित्त शामक होती है, यह यकृत से संबंधित विकारों में भी लाभदायक होती है. इसके अतिरिक्त यह वातजन्य उन्माद, मूर्छा, सभी प्रकार के रक्तस्त्राव, व्रण, अश्मरी को नष्ट करने में समर्थ हैं. ये नेत्रों की ज्योति को बढ़ाने में भी सहायक है. अकीक के ब्राह्य या आभायान्तर प्रयोग से ह्रदय रोग से पीड़ित रोगियों को विशेष लाभ मिलता है. कुछ वैद्य ह्रदय रोगियों अकीक का लाकेट बनाकर भी पहनाते हैं. अकीक का ह्रदय क्षेत्र पर लेपन ह्रदय रोगियों के लिए बहुत लाभदायक होता है. हाई कोलेस्ट्रोल के रोगियों में इसके प्रयोग से सफल परिणाम मिलते हैं.
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