डायाबिटीज और किडनी
खून में चीनी की मात्रा में कमी दिखे या डायाबिटीज ठीक हो जाए, तो यह किडनी डिजीज की निशानी हो सकती है।
पूरे संसार में मधुमेह/प्रमेह/डायबिटीज के रोगियों के संख्या तेजी से बढ़ी है. डायबिटीज का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव ये है कि बाद में यह शरीर के दूसरे अंगों पर भी दुष्प्रभाव डालने लगता है. किडनी पर भी इसका बुरा असर पड़ता है और डायाबिटीज के मरीजों में क्रोनिक किडनी डिजीज (डायाबिटीक नेफ्रोपैथी) और पेशाब में संक्रंमण के रोग होने की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है। एक आंकड़े के मुताबिक़ डायालिसिस करानेवाले हर तीन मरीजों में से एक मरीज की किडनी खराब होने का कारण डायाबिटीज होता है।
डायाबिटिक किडनी डिजीज
लम्बे समय से चली आ रही मधुमेह की बीमारी में लगातार उच्च शर्करा से किडनी की छोटी रक्त वाहिकाओं को काफी नुकसान होता है। शुरू में इस नुकसान के कारण पेशाब में प्रोटीन की मात्रा दिखाई देती है। जिसके फलस्वरूप उच्च रक्तचाप, शरीर में सूजन जैसे लक्षण भी उत्पन्न हो जाते हैं जो धीरे-धीरे किडनी को ओर नुकसान पहुँचते हैं। किडनी की कार्य क्षमता में लगातार गिरावट होती जाती है और किडनी, विफलता की ओर अग्रसर हो जाती हैं।
डायाबिटीज के कारण होनेवाले किडनी डिजीज से जुड़े कुछ जरुरी तथ्य:
1. क्रोनिक किडनी डिजीज के विभिन्न कारणों में सबसे महत्वपूर्ण कारण डायाबिटीज है जो अत्यंत विकराल रूप से फैल रहा है।
2. डायालिसिस करा रहे क्रोनिक किडनी डिजीज के 100 मरीजों में 35 से 40 मरीजों की किडनी खराब होने का कारण डायाबिटीज होता है।
3. डायाबिटीज के कारण मरीजों की किडनी पर हुए असर का जरूरी उपचार यदि जल्दी करा लिया जाए, तो भयंकर रोग किडनी डिजीज को रोका जा सकता है।
4. डायाबिटिक किडनी डिजीज से पीड़ित रोगियों में ह्रदय रोगों के होने एवं उनसे मृत्यु होने का खतरा बढ़ जाता है।
5. डायाबिटीज के कारण किडनी खराब होना प्रारंभ होने के बाद यह रोग ठीक हो सके ऐसा संभव नहीं है। परन्तु शीघ्र उचित और परहेज द्वारा डायालिसिस और किडनी प्रत्यारोपण जैसे महंगे और मुश्किल उपचार को काफी समय के लिए (सालों तक भी) टाला जा सकता है।
डायाबिटीज के मरीजों की किडनी खराब होने की संभावना
टाइप - 1, अथवा इंसुलिन डीपेन्डेन्ट डायाबिटीज (iddm-insulin dependent diabetes mellitus) साधारणतः कम उम्र में होनेवाले इस प्रकार के डायाबिटीज के उपचार में इंसुलिन की जरूरत पडती है। इस प्रकार के डायाबिटीज में बहुत ज्यादा अर्थात 30 से 35 प्रतिशत मरीजों की किडनी खराब होने की संभावना रहती है।
टाइप - 2 , अथवा नॉन- इंसुलिन डीपेन्डेन्ट डायाबिटीज (n.i.d.d.m.-non-insulin dependent diabetes mellitus) डायाबिटीज के अधिकतर मरीज इसी प्रकार के होते हैं। वयस्क (adults) मरीजों में इसी प्रकार की डायाबिटीज होने की संभावनाएँ ज्यादा होती हैं, जिसे मुख्यतः दवा की मदद से नियंत्रण में लिए जा सकता है। इसी प्रकार के डायाबिटीज के मरीजों में 10 से 40 प्रतिशत मरीजों की किडनी खराब होने की संभावना रहती है।
मधुमेह के रोगी में डायाबिटिक किडनी डिजीज होने में कई साल लग जाते हैं। इसलिए मधुमेह होने के बाद पहले 10 साल में यह बीमारी शायद ही कभी हो। टाइप 1 मधुमेह की शुरुआत के 15 से 20 साल के बाद किडनी की बीमारी के लक्षण प्रगट हो सकते है। मधुमेह की शुरुआत से ही सही उपचार से एक मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति को शुरू के 25 वर्षों में डायाबिटिक किडनी डिजीज होने का खतरा कम हो सकता है।
डायाबिटीज से किडनी को नुकसान
किडनी में सामान्यतः प्रत्येक मिनट में 1200 मिली लीटर खून प्रवाहित होकर शुद्ध होता है। डायाबिटीज नियंत्रण में नहीं होने के कारण किडनी में से प्रवाहित होकर जानेवाले खून की मात्रा 40 प्रतिशत तक बढ़ जाती है, जिससे किडनी को ज्यादा श्रम करना पड़ता है, जो नुकसानदायक है। यदि लम्बे समय तक किडनी को इसी तरह के नुकसान का सामना करना पड़े, तो खून का दबाव बढ़ जाता है और किडनी को नुकसान भी पहुँच सकता है। किडनी के इस नुकसान से शुरू -शुरू में पेशाब में प्रोटीन जाने लगता है, जो भविष्य में होनेवाले किडनी के गंभीर रोग की प्रथम निशानी है। इसके बाद शरीर से पानी और क्षार का निकलना जरूरत से कम हो जाता है, फलस्वरूप शरीर में सूजन होने लगती है, (शरीर का वजन बढ़ने लगता है) और खून का दबाव बढ़ने लगता है। किडनी को अधिक नुकसान होने पर किडनी का शुद्धीकरण का कार्य कम होने लगता है और खून में क्रीएटिनिन और यूरिया की मात्रा बढ़ने लगती है। इस समय की गई खून की जाँच से क्रोनिक किडनी डिजीज का निदान होता है।
सामान्यतः डायाबिटीज होने के सात से दस साल के बाद किडनी को नुकसान होने लगता है। डायाबिटीज से पीड़ित किस मरीज की किडनी को नुकसान होनेवाला है यह जानना बडा कठिन है। नीचे बताई गई परिस्थितियों में किडनी डिजीज होने की संभवना ज्यादा होता है:
• डायाबिटीज कम उम्र में हुआ हो।
• लम्बे समय से डायाबिटीज हो।
• उपचार में शुरू से ही इंसुलिन की जरूरत पड़ रही हो।
• डायाबिटीज और खून के दबाव पर नियंत्रण नहीं हो।
• पेशाब में प्रोटीन का जाना।
• पेशाब में प्रोटीन और बढ़ा हुआ सीरम लिपिड डायाबिटिक किडनी डिजीज के मुख्य लक्षण है जो पेशाब व रक्त जाँच में दिखाई पड़ते हैं।
• मोटापा और धूम्रपान इसे और बढ़ा देते हैं।
• डायाबिटीज के कारण रोगी की आँखों में कोई नुकसान हुआ हो (diabetic retinopathy)।
• परिवारिक सदस्यों में डायाबिटीज के कारण किडनी डिजीज हुई हो।
डायाबिटीज से किडनी को होने वाले नुकसान के लक्षण
पेशाब में प्रोटीन, खून का ऊँचा दबाव और सूजन किडनी डायाबिटीज की असर के लक्षण हैं। पर प्रारंभिक अवस्था में किडनी के रोग के कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। डॉक्टर द्वारा कराये गये पेशाब की जाँच में आल्ब्यूमिन (प्रोटीन) जाना, यह किडनी के गंभीर रोग की पहली निशानी है।
• धीरे-धीरे खून का दबाव बढ़ता है और साथ ही पर और चेहरे पैर सूजन आने लगती है।
• डायाबिटीज के लिए जरुरी दवा या इन्सुलिन की मात्रा में क्रमशः कमी होने लगती है।
• पहले जितनी मात्रा से डायाबिटीज काबू में नहीं रहता था बाद में उसी मात्रा लेने से डायाबिटीज पर अच्छी तरह नियंत्रण रहता है।
• बार-बार खून में चीनी की मात्रा कम होना।
• किडनी के ज्यादा ख़राब होने पर कई मरीजों में डायाबिटीज की दवाई लिए बिना ही डायाबिटीज नियंत्रण में रहता है। ऐसे कई मरीज, डायाबिटीज खत्म हो गया है, यह सोच कर गर्व और खुशी का अनुभव करते हैं, पर दरअसल यह किडनी डिजीज की चिंताजनक निशानी हो सकती है।
• आँखों पर डायाबिटीज का असर हो और इसके लिए मरीज द्वारा लेजर का उपचार कराने वाले प्रत्येक तीन मरीजों में से एक मरीज की किडनी भविष्य में खराब होती देखी गई है।
किडनी खराब होने के साथ-साथ खून में क्रीएटिनिन और यूरिया की मात्रा भी बढ़ने लगती है। क्रोनिक किडनी रोग के लक्षण जैसे कमजोरी, थकान, मितली, भूख में कमी, उल्टी, खुजली, पीलापन और सांस लेने में तकलीफ आदि बीमारी के बाद के चरणों में दिखाई पड़ते हैं।
डायाबिटीज के रोगी की किडनी की सुरक्षा के उपाय
1 - डॉक्टर से नियमित चेकअप कराना।
2 - डायाबिटीज और हाई ब्लडप्रेशर पर नियंत्रण।
3- लक्षण पता चलते ही शीघ्र जांच और उसका उपचार
4 - नियमित कसरत करना, तम्बाकू, गुटखा, पान, बीडी, सिगरेट तथा अल्कोहल (शराब) का सेवन नहीं करना।
5 - चीनी और नमक का सेवन प्रतिबंधित रखें। भोजन में प्रोटीन, वसा और कोलेस्ट्रोल की मात्रा कम रखे.
6 - तीन महीने में एकबार रक्तचाप की जाँच और पेशाब में एल्ब्यूमिन की जाँच कराना। यह सरल एवं कम खर्चे की ऐसी पध्दति है, जो हर जगह उपलब्ध है। कोई लक्षण न होने के बावजूद उच्च रक्तचाप और पेशाब में प्रोटीन का जाना डायाबिटीज की किडनी पर असर का संकेत है। है। वैसे पेशाब में प्रोटीन की मानक जाँच इस रोग के व्यापक और नियमित निदान के लिए श्रेष्ठ पध्दति है।
डायाबिटीक नेफ्रोपैथी का बचाव और उपचार
1- डायाबिटीज पर हमेंशा उचित नियंत्रण बनाये रखना।
2- किडनी डिजीज के बाद डायाबिटीज की दवा में जरुरी परिवर्तन करना आवश्यक है। किडनी डिजीज के बाद डायाबिटीज की दवा में जरुरी परिवर्तन सिर्फ खून में शक्कर की जाँच की रिपोर्ट के आधार पर ही करना चाहिए। केवल पेशाब में शक्कर की रिपोर्ट के आधार पर दवा में परिवर्तन नहीं करना चाहिए।
3- सतर्कतापूर्वक हमेंशा के लिए उच्च रक्तचाप को नियंत्रण में रखना, प्रतिदिन ब्लडप्रेशर मापकर उसे लिखकर रखना चाहिए। खून का दबाव 130/80 से बढ़े नहीं, यह किडनी की कार्यक्षमता को स्थिर बनाये रखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपचार है। किडनी डिजीज के बाद साधारणतः डायाबिटीज की दवा की मात्रा को कम करने की जरूरत पडती है।
4- सूजन घटाने के लिए दवाओं के साथ खाने में नमक और पानी कम लेने जरूरत होती है।
5- धूम्रपान, उच्च रक्तचाप, उच्च रक्त शर्करा, रक्त में वसा की मात्रा में वृद्धि आदि को नियंत्रित करने की जरुरत । क्योंकि इस रोग के मरीज में हृदय की बीमारी होने का खतरा भी काफी ज्यादा होता है।
डायाबिटिक किडनी डिजीज के लक्षण
• अप्रत्याशित रूप से वजन में वृद्धि, पेशाब की मात्रा में उल्लेखनीय कमी, चेहरे और पैर में सूजन में वृद्धि या साँस लेने में तकलीफ हो।
• छाती में दर्द, पूर्व से मौजूद उच्च रक्त्चाप में ओर वृद्धि, ह्रदय गति में असामान्यताएँ हों।
• अत्यधिक कमजोरी, भूख में कमी, उल्टी और शरीर में पीलापन होना आदि।
• लगातार बुखार, ठंड लगना, पेशाब के दौरान जलन या दर्द, पेशाब में रक्त या पेशाब में मवाद जाना।
• बार-बार हाइपोग्लाइसिमिया होना अर्थात् रक्त में शर्करा का स्तर अत्यधिक कम होना।
• इंसुलिन या मधुमेह की दवाओं की आवश्यकता में कमी होना।
• भम्र, उनींदापन या शरीर में ऐंठन होना आदि।
(स्रोत - किडनी एजयूकेशन)