पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित भारतीय जब प्लास्टिक का बीइंग ह्यूमन, फ्रेंड फॉरेवर, लव इत्यादि का बेल्ट बांधने लगे हैं तब ब्रिटिश पीएम की रेस में सबसे आगे ऋषि सुनक को कलाइयों पर रक्षासूत्र बांधे देखना किसी सुखद आश्चर्य से कम नहीं। भारत में रक्षासूत्र बांधने का रिवाज अत्यंत प्राचीन है। हरेक धार्मिक अनुष्ठान में रक्षासूत्र अधिष्ठाता समेत परिवार के सभी सदस्यों को बांधा जाता है। वैसे तो भारत में रक्षासूत्र को धार्मिक दृष्टिकोण से देखा जाता है लेकिन स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी इसका विशेष महत्व है। वैद्य रेणुका तिवारी इस संबंध में सोशल मीडिया पर लिखती हैं-
"कच्चे सूत का ये लाल पीला सफेद रंग का अभिमंत्रित बंधन, तीन बार ही लपेटा जाता है ! शरीर में भी तीन नाड़ियां होती है, तीन दोष होते हैं इनका संबंध समझिए ये स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है। शरीर विज्ञान के अनुसार शरीर के कई प्रमुख अंगों तक पहुंचने वाली नसें कलाई से भी होकर गुजरती है। कलाई पर कलावा बांधने से इन नसों की क्रिया नियंत्रित रहती है।
आप वैद्य के पास नाड़ी दिखाने जाते हो तो यही नाड़ी तो पकड़ते हैं वैद्य भी न तो मौली भी त्रिदोष यानी वात, पित्त और कफ का सामंजस्य बने रहने में सहायता करती है। शरीर की संरचना का कुछ नियंत्रण कलाई में भी होता है इसीलिए कलाई में मौली बांधने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है। माना जाता है कि कलावा बांधने से रक्तचाप, हृदय रोग, मधुमेह और लकवा जैसे गंभीर रोगों से काफी हद तक बचाव होता है तभी तो इसे रक्षा सूत्र कहा जाता है और त्रिदेव और त्रिदेवियों का आशीर्वाद माना जाता है । तो गर्व से जहां मिले तुरंत कलावा बांधो रक्षा बंधन हो या फ्रेंडशिप डे!"
वैद्य प्रशांत मिश्र 'भास्कर' अखबार के साथ बातचीत में कहते हैं कि सुश्रुत संहिता में बताया गया है कि सिर के बीच का हिस्सा और गुप्त स्थान का अगला हिस्सा मणि कहलाता है। वहीं, कलाई को मणिबंध कहा गया है। मानसिक विकृति और मूत्र संबंधी बीमारियों से बचने के लिए मणिबंध यानी कलाई वाले हिस्से को बांधना चाहिए।
आचार्य सुश्रुत ने अपने ग्रंथ में मर्म चिकित्सा में कलाई को भी शरीर का मर्म स्थान बताया है। यानी कलाई से शरीर की क्रियाओं को नियंत्रित किया जा सकता है। इस पर वैद्य मिश्र का कहना है कि जी मचलने पर या घबराहट होने पर एक हाथ की कलाई पर दूसरे हाथ की हथेली को गोल-गोल घुमाना चाहिए। इससे राहत मिलने लगती है।
कहने का अभिप्राय है कि रक्षासूत्र का धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी काफी ज्यादा महत्व है। यही वजह है कि यह हमारी प्राचीन संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा है।
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नई दिल्ली| लोकसभा ने सोमवार को नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (संशोधन) विधेयक 2021 पारित किया, जो संस्थानों के बीच गतिविधियों के समन्वय के लिए एक परिषद प्रदान करने के लिए 1998 के कानून में संशोधन के लिए लाया गया है और यह फार्मास्युटिकल शिक्षा और अनुसंधान मानकों के विकास को भी सुनिश्चित करता है।
बहस का जवाब देते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि कुल 24 सदस्यों ने भाग लिया और सभी ने अच्छे सुझाव दिए।
उन्होंने यह भी कहा कि आज 8,500 स्टोर हैं और उनमें 600 से अधिक प्रकार की दवाएं और 56 चिकित्सा उपकरण बेचे जा रहे हैं।
कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी और अन्य सदस्यों के सवाल के जवाब में, जिन्होंने अन्य देशों पर सक्रिय फार्मास्युटिकल संघटक (एपीआई) के लिए भारत की निर्भरता का मामला उठाया, मंडाविया ने यह भी कहा कि सरकार ने 51 एपीआई के निर्माण के लिए 14,000 करोड़ रुपये की पीएलआई-1 योजना जारी की है।
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार ने एपीआई निर्माण इकाइयों के लिए 1,000 करोड़ रुपये के निवेश से चार फार्मा पार्क बनाने का फैसला किया है।
संशोधनों पर, मंडाविया ने कहा कि राष्ट्रीय परिषद सभी एनआईपीईआर के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के लिए सलाहकार पैनल के रूप में कार्य करेगी।
कुछ सदस्यों के जवाब में जिन्होंने यह मुद्दा उठाया कि सरकार ने बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में एससी और एसटी सदस्यों के प्रतिनिधित्व को मिटा दिया, उन्होंने कहा कि यह सच नहीं है, लेकिन चूंकि सरकार ने प्रत्येक संस्थान के लिए बोर्ड के सदस्यों की संख्या 23 से घटाकर 12 कर दी है, इसलिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को परिषद में ले जाया जाएगा।
इससे पहले, बहस में भाग लेते हुए, भाजपा के अनुराग शर्मा ने कहा कि सभी एनआईपीईआर को आयुर्वेद में दवाओं की स्वदेशी प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए उच्च शोध करना चाहिए, जबकि मोहम्मद जावेद ने कहा कि हाजीपुर में एनआईपीईआर की हालत बेहद खराब है और इसके संचालन के लिए एक स्थायी परिसर भी नहीं है।
सीपीआई के एम. सेल्वराज ने कहा कि यह दुखद है कि अधिकांश एनआईपीईआर स्थायी परिसर सहित उचित बुनियादी ढांचे के बिना काम कर रहे हैं, जबकि रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के नेता एन. के. प्रेमचंद्रन ने कहा कि अगर स्वास्थ्य मंत्री ने तिरुवनंतपुरम के गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ फामेर्सी को राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित कर दिया तो वह छह और एनआईपीईआर को राष्ट्रीय महत्व के संस्थान घोषित करने के विधेयक का समर्थन करेंगे।
भाजपा की सुनीता दुग्गल ने सरकार से एनआईपीईआर में महिलाओं और एससी/एसटी समुदाय के सदस्यों का उचित प्रतिनिधित्व रखने के लिए कहा और सुझाव दिया कि एनआईपीईआर को जनशक्ति बढ़ाने के लिए अल्पकालिक पाठ्यक्रम भी पेश करना चाहिए।
शिवसेना के श्रीकांत एकनाथ शिंदे ने कहा कि एक एनआईपीईआर के बोर्ड के अध्यक्ष की नियुक्ति के लिए योग्यता और अनुभव विधेयक में स्पष्ट रूप से निर्धारित किया जाना चाहिए।
चौधरी ने इस बीच कहा कि भारत को ड्रग सुरक्षा की जरूरत है। उन्होंने कहा, हम अपनी थोक दवा की जरूरतों का 70 फीसदी आयात करते हैं, लेकिन अगर चीन हमें और नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है तो हमें ऐसी स्थिति के लिए तैयार रहने की जरूरत है।
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आयुर्वेद में विरुद्ध आहार - Viruddh Ahara in Ayurveda in Hindi
स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से पौष्टिक भोजन का विशेष महत्व है. लेकिन शरीर का पोषण और ऊर्जा देने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन गलत समय और गलत तरीके से किया जाए तो शरीर पर उसका प्रतिकूल असर भी पड़ सकता है. आयुर्वेद में वर्णित विरुद्ध आहार की अनूठी अवधारणा खान-पान की ऐसी ही विसंगतियों के बारे में बताती है. विरुद्ध आहार का अभिप्राय ऐसे दो भोजन या खाद्य पदार्थ से है जिसका एकसाथ सेवन करना स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से हानिकारक सिद्ध हो सकता है. इसके अलावा गलत समय, गलत खुराक और गलत मौसम में भोजन का सेवन भी विरुद्ध आहार का कारण बन सकता है. विरुद्ध आहार कई तरह के रोगों जैसे त्वचा रोग, बवासीर, जुकाम, मधुमेह आदि का कारण बन सकता है. आइये जानते हैं कुछ ऐसे खाद्य पदार्थों के बारे में जिनका एक साथ सेवन विरुद्ध आहार का कारण बन सकता है -
विरुद्ध आहार - Viruddh Ahara in Hindi
भोजन के साथ फल : फलों का सेवन उत्तम स्वास्थ्य के लिए जरुरी है. लेकिन फलों के सेवन को लेकर कई तरह के सवाल आम लोगों के मन में उठते रहते हैं. मसलन, क्या फलों को भोजन के साथ लेना सही है? इसी तरह, क्या फलों का सेवन खाली पेट करना चाहिए या भोजन से कम से कम 30-40 मिनट पहले करना चाहिए? आयुर्वेद की माने तो यह वास्तव में फल की प्रकृति और व्यक्ति की पाचन शक्ति पर निर्भर करता है। फलों का सेवन भोजन के दौरान या भोजन से पहले या बाद में और साथ ही व्यक्ति के पाचन के अनुसार किया जा सकता है। भोजन के क्रम में पहले मीठे पदार्थों का सेवन करना चाहिए, उसके बाद खट्टा, नमकीन, तीखे, कड़वे और कसैला फलों का स्वाद लेना चाहिए। इसलिए मीठे फलों को भोजन के पहले भाग में शामिल किया जा सकता है।
फल के साथ दूध - दही : मीठे फलों के साथ दूध लेना ठीक है और इसका स्वास्थ्य पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। लेकिन खट्टे फल के साथ दूध से परहेज करना बेहतर है। आयुर्वेद के अनुसार किसी भी डेयरी प्रोडक्ट के साथ खट्टा फल नहीं खाने की सलाह दी जाती है क्योंकि यह पाचन को प्रभावित कर सकता है। साथ ही शरीर में विषाक्त पदार्थों का उत्पादन कर सकता है। साइनस, सर्दी-खांसी और एलर्जी का यह कारण बन सकता है।
मछली और दूध : आयुर्वेद में मछली और दूध का सेवन एक साथ करने की सख्त मनाही है. दोनों के एकसाथ सेवन से अपच और त्वचा रोग हो सकता है। इन दोनों की प्रकृति अलग - अलग होती है। दूध ठंडा होता है और मछलियाँ गर्म। इन्हें एक साथ लेने से दोष उत्पन्न होता है जिससे त्वचा रोग होने की संभावना प्रबल हो जाती है।
केला और दूध : आयुर्वेद में केला और दूध को एक साथ खाने की सलाह नहीं दी जाती है। आयुर्वेद इस संयोजन को विष के समान मानता है। ऐसा कहा जाता है कि यह शरीर में भारीपन पैदा करता है और दिमाग को धीमा कर देता है। लेकिन इसके बावजूद केला और दूध आपका प्रिय भोजन है तो यह सुनिश्चित करें कि केला बहुत पका हुआ हो। साथ ही पाचन संबंधी विकारों से बचने के लिए उसमें इलायची और जायफल मिला ले तो बेहतर होगा।
दही के सेवन का समय : दही का सेवन हमेशा दिन के समय करना चाहिए। रात के समय दही के सेवन से बचें। इससे कफ की प्रवृति बढ़ने की संभावना रहती है। साथ ही दही को गर्म नहीं करना चाहिए क्योंकि गर्म करने से दही के गुण खत्म हो जाते हैं। मोटापे, कफ रोग और रक्तस्राव विकारों और सूजन संबंधी बीमारियों वाले लोगों को इससे बचना चाहिए। खट्टे दही से बचना चाहिए क्योंकि इससे गैस्ट्राइटिस हो सकता है।
दूध और चावल : दूध और चावल को एक साथ लिया जा सकता है लेकिन इसका भी एक तरीका है. यदि पके हुए चावल को दूध के साथ मिलाकर सेवन किया जाए तो कोई नुकसान नहीं होता. दूध और चावल के साथ नमक का प्रयोग वर्जित है क्योंकि इससे अपच की समस्या हो सकती है।
मीठे खाद्य पदार्थ : रात के समय मीठे खाद्य पदार्थों के सेवन से बचना बेहतर है क्योंकि इससे कफ दोष बढ़ सकता है।
सब्जियां और दूध : हरी पत्तेदार सब्जियों और मूली का सेवन करने के बाद दूध पीने से बचना चाहिए। इससे अपच, त्वचा का रंग फीका पड़ना और त्वचा रोग हो सकते हैं।
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Baidyanath Garbhchintamani Ras Vrihat is an Ayurvedic formulation medicine in tablet form. Mostly used in the treatment of menorrhagia, metrorrhagia. This medicine contains heavy metal ingredients.
Herbs/Components Used in the Baidyanath Garbhchintamani Ras Vrihat
Ingredients that are used in the Baidyanath Garbhchintamani Ras Vrihat:
10 g fine powder of each of-
Shuddha Parada – Herbal purified Mercury
Shuddha Gandhaka – Herbal purified Sulphur
Swarna Bhasma – Bhasma of Gold
Loha Bhasma – Bhasma prepared from Iron
Rajata Bhasma – Bhasma of Silver
Makshika Bhasma – Bhasma of Copper-Iron Pyrite
Shuddha Haratala – Purified and processed Orpiment
Vanga Bhasma – Tin Calx
Abhraka Bhasma – Purified and processed Mica
Quantity sufficient of Juice extract-
Brahmi – Thyme leaved gratiola – Bacopa monnieri
Vasa – Malabar nut tree – Adhatoda vasica
Bhringaraja – Eclipta alba
Parpataka – Hedyotis corymbosa
Dashamoola
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Baidyanath Garbhchintamani Ras Vrihat Benefits
Specially used in the treatment of menorrhagia, metrorrhagia, leucorrhea, Burning sensation during pregnancy, Pyrexia during pregnancy, Post partum disorder, puerperal disorders.
Baidyanath Garbhchintamani Ras Vrihat Side Effects
May prove to be dangerous, since it contains Aconitum as ingredient.Over-dosage may cause sever poisonous effect.
Baidyanath Garbhchintamani Ras Vrihat Dosage
Baidyanath Garbhchintamani Ras Vrihat about 250 mg after food once or twice a day with anupan of different ayurvedic medicine prescribed by doctor.
Baidyanath Garbhchintamani Ras Vrihat Shelf life
Maximum up to 5 years from the date of manufacturing.
Baidyanath Garbhchintamani Ras Vrihat Reference
Rasendra Sara Sangraha Sutika Roga Chikitsa 20 -22
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Frequently Asked Questions (FAQs)
Q. What is the dosage of Baidyanath Garbhchintamani Ras Vrihat?
Ans. Baidyanath Garbhchintamani Ras Vrihat about 250 mg after food once or twice a day with anupan of different ayurvedic medicine prescribed by the ayurvedic doctor.
Q. What is Baidyanath Garbhchintamani Ras Vrihat?
Ans. Baidyanath Garbhchintamani Ras Vrihat is an Ayurvedic formulation medicine in tablet form. Mostly used in the treatment of menorrhagia, metrorrhagia. This medicine contains heavy metal ingredients.
Q. Is the use of Baidyanath Garbhchintamani Ras Vrihat safe for children?
Ans. Baidyanath Garbhchintamani Ras Vrihat is not considered safe for children.
Q. Is Baidyanath Garbhchintamani Ras Vrihat addictive or habit-forming?
Ans. No, addictive or habit-forming is produce by Baidyanath Garbhchintamani Ras Vrihat.
Q. Can I take Baidyanath Garbhchintamani Ras Vrihat with alcohol?
Ans. Baidyanath Garbhchintamani Ras Vrihat effect with alcohol is unknown because research has not been done yet on this.
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सभ्यता के विकास के साथ मनुष्य शारीरिक रूप से निष्क्रिय हो गया है। आधुनिकीकरण, संपन्नता, विज्ञान और तकनीकी विकास के फलस्वरूप आधुनिक जीवन शैली गतिहीन होती जा रही है। बढ़ती निष्क्रिय जीवनशैली के साथ आहार में बदलाव ने कई देशों में मोटापे की महामारी को जन्म दिया है। शारीरिक गतिविधि में कमी के साथ वसा और गुरु आहार द्रव्यों की भोजन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। औद्योगिकीकरण और आर्थिक प्रगति में उन्नति के साथ साथ आज कल अधिक से अधिक नौकरियां सिर्फ ऑफिस डेस्क तक सिमट के रह गई हैं तथा आहार के पैटर्न में बदलाव के साथ चीनी और वसा के सेवन में वृद्धि हो रही है। इस सबके कारण ही मोटापे तथा इससे जुडी समस्याओं में वृद्धि हुई है। तो आइये जानते हैं मोटापा क्या है, इसके कारण तथा इससे कैसे छुटकारा कैसे पाया जा सकता है।
विषय - सूची
मोटापा क्या है
मोटापे के कारण
मोटापे के लक्षण
निदान
मोटापे के सामान्य उपाय
क्या खाएं और किससे बचें
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
मोटापा क्या है?
आयुर्वेद में आचार्य चरक ने अष्ट निंदित पुरुष का वर्णन किया है तथा इनमे भी इन दो रोगों का विशेष रूप से वर्णन किया है- अतिस्थूल(अधिक मोटा) तथा अतिकार्श्य(अधिक पतला)। इनमें अतिस्थूल(अधिक मोटे) व्यक्ति को इसके जटिल व्याधिजनन और उपचार के कारण अतिनिंदित माना गया है। आयुर्वेद में मोटापे को स्थौल्य या मेदोरोग कहा गया है। यह संतर्पणोत्थ विकारो (अति पोषण के कारण होने वाला रोग) के अंतर्गत आता है। आयुर्वेद में शारीरिक व मानसिक संतुलन को ही स्वास्थ्य की परिभाषा दी गयी है। इसके अनुसार, मोटापा एक ऐसी स्थिति है, जिसमें मेद धातु (फैटी टिश्यू) की विकृति/ वृद्धि की होती है।
आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से, किसी भी अन्य बीमारी की तरह, मोटापा गलत भोजन के सेवन या अनुचित आहार की आदतों और जीवनशैली के विकास के साथ शुरू होता है, जिसके परिणामस्वरूप पाचन अग्नि की समस्या होती है, जो आगे जा कर आम को बढ़ाती है। बढे हुए आम के कारण चयापचय प्रक्रिया विचलित हो कर अधिक मेद धातू (फैटी टिश्यू) का निर्माण करती है और आगे की धातू निर्माण जैसे कि अस्थि (हड्डियों) के निर्माण को अवरुद्ध करती है। अत्यधिक रूप से बढी हुई मेद धातू कफ के कार्यों में अवरोध उत्पन्न करती हैं।
दूसरी ओर, जब आम सभी शारीरिक चैनलों को अवरुद्ध करता है तो यह वात दोष में असंतुलन पैदा करता है। वात दोष पाचन अग्नि (जठराग्नि) को उत्तेजित करता रहता है, जिससे भूख में वृद्धि होती है इसलिए व्यक्ति अधिक से अधिक भोजन करता है। मेद धात्वाग्नि मांद्य (कमजोर वसा चयापचय) के कारण अनुचित या असामान्य मेद धातु बनती है, जो मोटापे का मूल कारण है।
अतः मोटापा या स्थौल्य एक ऐसा रोग है जिसमें व्यक्ति मेद(फैटी टिश्यू) और मांस के अत्यधिक विकास के कारण काम करने में असमर्थ होता है और उसके नितंबों, पेट और स्तनों के अधिक विकास के कारण शारीरिक विघटन खराब हो जाता है।
मोटापे के कारण
मोटापा एक ऐसी अवस्था है जिसमें त्वचा तथा आंतरिक अंगों के आस-पास वसा का अत्यधिक संचय हो जाता है। जब लोग अधिक वसायुक्त भोजन करते हैं तथा शारीरिक श्रम नहीं करते तब शरीर में जरूरत से ज्यादा कैलोरी संचित हो जाती है जो वजन बढने का कारण है। कई अन्य कारण भी मोटापा बढाते हैं जैसे कि गर्भावस्था, ट्यूमर, हार्मोनल विकार और कुछ दवाएं जैसे साइकोटिक ड्रग्स, एसट्रोजन्, कॉर्टिकॉ-स्टेरायड्स और इंसुलिन।
आयुर्वेद तथा आधुनिक चिकित्सा प्रणाली दोनो ने मोटापे को कई कारणो की वजह से उत्पन्न माना है। मोटापे के आयुर्वेद में निम्न कारण बताये गए हैं-
अध्यशन (दोपहर के भोजन या रात के खाने के बाद दोबारा भोजन लेना)
अति बृन्हण (अति पोषण)
गुरु आहार सेवन (कठिनाई से पचने वाला भोजन करना)
मधुर आहार सेवन (मीठी वस्तुओं का सेवन)
स्निग्ध भोजन सेवन (कफ बढाने वाला भोजन करना)
अव्यायाम (व्यायाम न करना)
अव्यवाय (यौन गतिविधियों की कमी)
दिवा स्वप्न (दिन में सोना)
अतिस्नान सेवन
बीज दोष (आनुवान्शिक कारण)
अग्निमांद्य (पाचक अग्नि में कमी होना)
मोटापे के लक्षण
मोटापा व्यक्ति के जीवन में नकारात्मक प्रभाव डालता है। इससे ग्रसित व्यक्ति न सिर्फ शरीरिक रूप से परेशान रहता है, बल्कि मानसिक रूप से भी वह हीन भावना का शिकार हो कर अवसाद में जा सकता है। इसके सामान्यतः निम्न लक्षण होते हैं-
अतिस्वेद [अत्यधिक पसीना आना]
श्रमजन्य श्वास [हल्के परिश्रम पर सांस फूलना]
अति निंद्रा [अत्यधिक नींद आना]
कार्य दौर्बल्यता [भारी काम करने में कठिनाई]
जाड्यता [आलस्य]
अल्पायु [लघु जीवन काल]
अल्पबल [शक्ति में कमी]
शरीर दुर्गन्धता [शरीर की दुर्गंध]
गदगदत्व [अस्पष्ट आवाज]
क्षुधा वृद्धि (अत्यधिक भूख)
अति तृष्णा [अत्यधिक प्यास]।
मोटापे का निदान
वैसे तो मोटापे के निदान के लिये बहुत से वर्गीकरण हैं। लेकिन बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) पर आधारित विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का वर्गीकरण व्यापक रूप से स्वीकृत है। व्यक्ति के वजन(किलोग्राम में) को उसकी लम्बाई(मीटर में) के वर्ग द्वारा विभाजित कर बीएमआई निकाला जाता है। यह लम्बाई और आकार के आधार पर व्यक्ति के आदर्श वजन का अनुमान लगाता है।
18.5 से ले कर 24.9 तक बीएमआई सामान्य माना जाता है। 25 या इससे ऊपर बीएमआई वाल्रे मोटापे की श्रेणी में आते हैं।
मोटापे के सामान्य उपाय
मोटापा दूर करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है इसके कारणों को दूर करना। यह एक ऐसी बीमारी है जो शरीर की आवश्यकता से अधिक कैलोरी लेने की वजह से होती है। आयुर्वेद में, मोटापे का इलाज केवल वजन घटाने तक सीमित नहीं है, बल्कि चयापचय प्रक्रियाओं को ठीक कर आम को कम करके तथा वात-कफ के कार्य को नियमित कर अतिरिक्त वसा को कम किया जाता है।
चयापचय को ठीक करने के साथ-साथ पाचन अग्नि बढाने तथा स्रोतस शोधन के लिये, आहार की आदतों में सुधार करना और तनाव को कम करना महत्वपूर्ण है। इसके लिये निम्न कुछ उपाय घर में सरलता से किये जा सकते हैं-
लंघन- लंघन यानी ऐसे उपाय जो शरीर में हल्कापन लाये। जैसे-
ऊष्ण जल सेवन- सुबह उठने के पश्चात गर्म पानी का सेवन करें, यह न सिर्फ शरीर में लघुता लायेगा बल्कि आम पाचन भी करेगा।
उपवास- सप्ताह में एक दिन उपवास का सेवन करें। इस अवधि में आप मूंग की दाल का पानी या नारियल का जूस इत्यादि ले सकते हैं।
नियमित व्यायाम- माथे पर पसीना आने तक दैनिक नियमित रूप से व्यायाम जरूरी है। सुबह नियमित रूप से 30 मिनट तक पैदल चलें व व्यक्तिगत क्षमता के अनुसार व्यायाम करे। इसमें योगासन भी सहायक हैं, जैसे- सूर्य नमस्कार, धनुरासन, भुजंगासन, पवनमुक्तासन, पस्चिमोत्तानासन, ताड़ासन इत्यादि।
आम पाचन- आम की उपस्थिति में वजन कम करना बेहद मुश्किल है। इस कारण से लोग सीमित भोजन का सेवन करते हुए भी अपना वजन कम करने में असफल रहते हैं। इसलिए पहले आम से छुटकारा पाना महत्वपूर्ण है.
आम को खत्म करने के लिये पहले उन कारणों से बचना है जो आम की उत्पत्ति कर रहे हैं। पिछला भोजन ठीक से पचने से पहले खाने से बचें। आसानी से पचने वाला तथा मात्रा में कम भोजन खाएं। ठंडा या बासी भोजन न करें।
इसके लिये सौंफ और गुनगुने पानी का सेवन लाभदायक है।
अदरक भी आम पाचन में सहायक है। आप इसका काढा बना कर पी सकते हैं।
हल्दी, काली मिर्च जैसे मसाले अपने आहार में नियमित रूप से शामिल करें।
इसबगोल और त्रिफला को रोजाना रात को सोने से पहले लें। एक कप गर्म दूध में एक चम्मच घी मिलाकर पीना भी सहायक होता है।
कफ दोष शमन- मोटापे में कफ दोष बढ जाता है। इसके संतुलन के लिये निम्न उपाय अपनाये-
अपने आहार में मिर्च, सरसों के बीज और अदरक जैसे तीखे मसालों का उपयोग करें।
शहद को छोड़कर मीठे पदार्थों से बचें। रोजाना एक चम्मच या दो (लेकिन अधिक नहीं) शहद का सेवन करे। इसे सादा पानी में मिला कर पी सकते हैं।
तिक्त रस(कड्वा) सेवन- कफ दोष के शमन के लिये कड्वी चीज़ों को अपने आहार में शामिल करिये जैसे गिलोय, नीम, करेले का जूस इत्यादि।
गुरु अपतर्पण- यानी ऐसा आहार लेना जो भूक को भी शांत कर दे व मोटापा भी न बढाये।
इसके लिये जौ बेहद कारगर उपाय है. जौ का नमकीन दलिया या इसके आटे की रोटी का प्रयोग करे।
चावल का मांड- आयुर्वेद में इसे बनाने के लिये 14 गुना जल डाल कर चावल का मांड बताया गया है। इसमे आप अपने स्वाद के अनुसार हींग और सेंधा नमक डाल सकते हैं।
क्या खाएं और किससे बचें
अस्वास्थ्यकर आहार से शरीर में वसा ऊतक(फैटी टिश्यू) का निर्माण होता है जिसके परिणामस्वरूप मोटापा होता है। इसलिए पर्याप्त फाइबर युक्त स्वस्थ आहार का सेवन, सक्रिय जीवन शैली को अपनाना और तनाव और थकान को प्रबंधित करने के लिए योग और ध्यान का अभ्यास करना अधिक वजन / मोटापे की रोकथाम के लिए आवश्यक है। इसके लिए जीवन शैली में निम्न संशोधन किये जा सकते हैं-
नियमित समय पर भोजन करें।
पीने के लिए गर्म पानी का उपयोग करें।
सेहतमंद खाद्य पदार्थ जैसे - यव(जौ), हरा चना (मूंग की दाल), करेला, शिग्रू(ड्रमस्टिक), आंवला, अनार लें।
भोजन में तक्र(छाछ) का प्रयोग करें।
तली हुई के बजाय उबली हुई और बेक्ड सब्जियाँ प्रयोग करे।
आहार और पेय में नींबू शामिल करें। प्रातः काल एक गिलास गर्म पानी में एक नीम्बू का रस निचोड कर पिये, इसमे चीनी या नमक न मिलाये।
कम कैलोरी वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करें जैसे लौकी का जूस, सब्जियों का सूप इत्यादि।
अधिक मीठा, अधिक डेयरी उत्पाद, तले हुए और तैलीय पदार्थ, फास्ट फूड से दूर रहे।
भोजन में नमकीन भोजन या अत्यधिक नमक न ले।
मदिरा पान और धूम्रपान से बचें।
दिन में सोना सर्वथा त्याग दे।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
1)मोटापा किन कारणों से होता है?
मोटापा कई कारणों से होता है। मुख्य कारण हैं-
क)आनुवन्शिक कारण ख) ज़रुरत से ज़्यादा भोजन करना ग)हाइपोथायरायडिज्म और कुशिंग सिंड्रोम जैसी कुछ हार्मोनल स्थितियां मोटापे का कारण बन सकती हैं। कुछ दवाओं से भी मोटापा हो सकता है।
2) क्या मोटे लोगों को जल्दी मौत का खतरा है?
मोटे लोगों को जीवनशैली से जुड़ी बीमारियां जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल संबंधी रोग होने का खतरा होता है। ये रोग व्यक्ति की मृत्यु का कारण बन सकते हैं।
3) वज़न घटाने का सबसे अच्छा तरीका क्या है?
शारीरिक गतिविधि में वृद्धि, स्वस्थ आहार में बदलाव और अपने चिकित्सक से मिल कर प्रति सप्ताह 1 से 2 पाउंड वज़न कम करने का लक्ष्य रखें। वजन घटाने के लिये अपने आहार और दिनचर्या को ज़्यादा मुश्किल न बनाये। नियमित रूप से व्यायाम करें व मिताहार(नपा-तुला भोजन) करें।
Dr. Yogeshwar Pawale , BAMS, MD (Masters in Ayurveda) & MS (Psychotherapy & Family Counselling) is a leading expert of Ayurveda specializing in Skin & Cancer. He is an educator, practitioner and speaker of international repute. He brings more than 20 years of experience in the field of Ayurveda involving various aspects of clinical, research, teaching and education.
His passion and love for Ayurveda fuels his vision for the development and growth of Ayurveda in the Western word, including creating and implementing high quality education and training programs as well as practicing various aspects of Ayurveda for optimal health and wellbeing. He is a rank holder of Kannur University during his Post Graduation studies. He has been awarded with many awards to name a few Dhanwantri awards at New Delhi, Award for Excellence in Cancer . He can be reached at http://www.kalpataruayurved.com/
Please tell us about how your Ayurveda journey began.
Please tell us about your educational background and professional qualifications.
I am BAMS from N.K. Jabshetty Ayurvedic Medical College & PG Centre, Bidar, karnataka followed by my post-graduation from Government Ayurveda Medical College Kannur.
Why did you choose Ayurvedic practices?
Ayurveda is my passion; I have full faith in this science & during my studies I saw many patients getting cured so thought of starting pure ayurvedic practice only.
What is your experience when it comes to treating patients? Do they trust the treatment?
From the last 12 years of my practice & study period also it has been a great experience treating patients with Ayurveda. Yes, there were days when people used to have doubts on Ayurveda but it’s our duty to make them understand & trust in Ayurveda. After understanding patients follow all the advice with full faith.
Any challenge that you face as a practitioner?
Yes, starting practice was itself a challenge for me due to financial issues. Then got support from few of my well-wishers & started practice in the year 2007.
Was there someone in your family already in Ayurveda, who acted as a motivation?
Basically there was no one from the family, eventually I met a few people who acted as a motivational force like Prof.Kuldip Raj Kohli, Director AYUSH, Maharashtra & my PG guide Dr.John K. George. former HOD, Department of Roga-Nidana, GAC, Kannur, Kerala
How do you see Ayurveda's future?
Future of Ayurveda is definitely bright, the only concern of mine is we need to motivate our future generation to go for Ayurvedic practice only.
What more should be done in Ayurveda today?
Delivering standardized medicine, quality education is the need of the hour. There must be an Ayurveda OPD as well as few beds in every hospital across the country
What about the quality of medicines? A lot of practitioners are not happy.
Yes, earlier there was a challenge of getting quality Ayurveda medicines which are now resolved by NirogStreet.
Coming to complex and chronic diseases, can Ayurveda really help?
Yes, definitely, from past last almost 20 years I have seem various chronic patients like Cancer, Skin disorder, Infertility etc Ayurveda is working well in all such cases.
Please tell us something about the achievements of your Center in Ayurveda.
Kalpataru Ayurveda Chikitsalay(KAC) is a first Hospital in Pune with a well qualified doctors team engaged in the practice and propagation of Ayurveda, the ancient health care system of India. KAC offers classical Ayurvedic medicines and authentic Ayurvedic treatments and therapies to patients from all over India and abroad. Recently we have received Excellence award for treating Cancer patients.
Do you think Nirogstreet is making a difference by connecting and empowering the Ayurveda community through its efforts and platforms?
Yes, Definitely NirogStreet has made a huge difference in Ayurveda Sector. Earlier getting any literature online about Ayurveda was a challenge now it's easily accessible because of NirogStreet. Android application of Nirogstreet itself is a great contribution as doctors can discuss their cases & the young generation can learn a lot.
Dr. Pawale, what are your hobbies?
Reading is one of my passions & yoga.
What's your advice to the students?
I would like to advise students to be focused & start your practice as soon as you complete your degree with full faith in Ayurveda. Treating patients is the most pleasant thing you have in your life.
What is your view about the role of ayurveda in COVID-19?
Ayurveda intervention is must in COVID-19, as far as I understand Ayurveda is only science which can help masess to boost their immunity as prevention. Application of various preventative aspects of Ayurveda based on its fundamental principles like Sadvrutta, Panchkarma,Dincharya,Rituchraya successfully empowers the person to fight against this virus.
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