जोधपुर संभाग में स्वाइन फ्लू पैर पसार रहा है. जांच में 20- 25 लोग रोजाना इस बीमारी के पॉजिटिव पाए जा रहे हैं. लोगोंं में स्वाइन फ्लू बीमारी को लेकर डर बैठ गया है. ऐसे में चिकित्सा विभाग गांव-गांव और गली-गली सर्वे कराकर संभावित रोगियों की तलाश कर रहा है, स्वाइन फ्लू के खिलाफ लड़ाई में आयुर्वेद विभाग भी पीछे नहींं है. आयुर्वेद विभाग के संभाग के सबसे बड़े अस्पताल खांडा फलसा चिकित्सालय में लोगोंं को रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला काढ़ा पिलाया जा रहा है, ताकि यह बीमारी संभावित रोगी को अपनी चपेट में ले ही नहीं पाए.
(मूलस्रोत - न्यूज़18)
आयुर्वेद चिकित्सा और औषधियों का लोहा अब पूरी दुनिया मान रही है लेकिन आम जन में अब भी ये भ्रान्ति है कि आयुर्वेद दवाइयों का असर बहुत धीमे-धीमे होता है. आयुर्वेद के बारे में यह भ्रांति चाहे जैसे भी फैली हो, बिलकुल गलत है. आयुर्वेद असर के मामले में भी सबसे तेज है. आयुर्वेद में ऐसी बहुत सारी दवाइयाँ है जिसका असर तेजी से होता है. इस बारे में डॉ. अभिषेक गुप्ता का यह लेख काफी कुछ स्पष्ट करता है-
सबसे तेज आयुर्वेद : आयुर्वेद में ऐसे अनगिनत योग हैं जो रोग पर तेजी से असर करते हैं
आयुर्वेद के विषय में सामान्यतया ये धारणा है कि इसकी औषधियों का प्रभाव रोग पर होता तो है लेकिन थोड़ा धीरे-धीरे होता है जबकि सच्चाई यह है कि आयुर्वेद में ऐसे अनगिनत योग हैं जो रोग पर तेजी से असर करते हैं. रोग पर औषधि का असर रोग की अवधि से होता है अर्थात यदि किसी व्यक्ति का रोग 3-5 दिन पुराना है तो इसका रोग में लाभ भी 3-5 दिन में ठीक हो जाता है. इसी प्रकार किसी व्यक्ति का कोई रोग कई वर्ष कई वर्षों से तो कैसे उनको 2-3 दिन में लाभ पहुंचाया जा सकता है? इसके लिए चाहे कोई भी चिकित्सा पद्धति क्यों न हो उसके प्रयोग के बाद औषधियों का असर आने में थोड़ा समय तो लगेगा ही. आयुर्वेद की औषधियों की एक विशेषता ये है कि इसकी औषधियों का दुष्प्रभाव नगण्य होता है व रोग का समूल नाश संभव है. आयुर्वेद चिकित्सा की इन्हीं विशेषताओं को इस लेख के माध्यम से रेखांकित करने की कोशिश है. इस संदर्भ में नीचे कुछ औषधियों के नाम दिया गया है जिनका प्रभाव तेजी से और सफलतापूर्वक होता है.
बसंतकुमार रस (Basant Kumar Ras)
यह हृदय के लिए लाभदायक होता है और साथ ही बलवर्धक भी है. यह रस स्वर्ण, मोती, अभ्रक, रससिन्दू आदि बलवर्धक औषध द्रव्यों के संयोग से मिलकर तैयार होता है. इसका प्रभाव मधुमेह, प्रमेह, श्वेत प्रदर, हृदय, फेफड़ों के रोग व् शुक्र से संबंधित विकारों में होता है. हृदय की कमजोरी, मस्तिष्क निर्बलता, नींद न आना, खून की कमी, क्षय रोग व जरा (बुढ़ापा) अवस्था में इसका प्रयोग विशेष लाभकारी है. मधुमेह रोग की यह प्रसिद्द औषधि है. किसी प्रकार के रक्तस्त्राव में इसका प्रयोग अनार शरबत, दाड़िमावलेह, आंवला मुरब्बा या गुलकंद के साथ देने पर शीघ्र लाभ होता है. अत्यधिक रक्तस्त्राव में भी यह विशेष लाभदायक है. जिन लोगों का रक्त देर से जमता है या बी.टी. (ब्लीडिंग टाइम), पी.टी. (प्रोथाम्बिन टाइम) व आइएनआर रेशियो ( inr ratio) अधिक होता है ऐसी अवस्था में रक्त को गाढ़ा करने के लिए वसंतकुसुमाकर रस बहुत लाभकारी है. इन्द्रियों की शक्ति बढ़ाने, रस रक्तादी धातुओं की वृद्धि कर हृदय, मस्तिष्क को बल प्रदान करने, शारीरिक कांति बढ़ाने में , शुक्र और ओज को बढाकर यह रसायन स्वास्थ्य को स्थिर करता है.
त्रिवंग भस्म (Trivang Bhasma)
यह भस्म तीन भस्मों से मिलाकर तैयार होती है. शुद्ध नाग, शुद्ध वंग व शुद्ध यशद को समान मात्रा में लेकर इस भस्म को तैयार किया जाता है. मूत्रवह स्रोतस से संबंधित रोगों में इस भष्म के प्रयोग से विशेष लाभ होता है. यह भष्म विशेषकर मूत्रवाहिनी नली पर असर करती है. प्रमेह विकार में त्रिवंग भस्म का बहुत अच्छा प्रभाव होता है. वैसे तो मधुमेह में सिर्फ नाग भष्म का प्रयोग लाभदायक होता है किन्तु जिन मधुमेह रोगियों में सन्धि स्थानों (जोड़ों) में दर्द, मन्दाग्नि शारीरिक कमजोरी, प्रमेह पीड़िकायें जैसे समस्याएं हो उनमें त्रिवंग भस्म बहुत लाभ करती है. यह भस्म वीर्यवर्धक है जिन स्त्रियों में गर्भधारण शक्ति कमजोर हो या गर्भ न ठहरता हो ऐसी स्थिति में यह भष्म विशेष लाभकारी है. श्वेतप्रदर में भी यह भष्म विशेष लाभकारी है.
शिलाजीत (Shilajit)
शिलाजीत के विषय में एक भ्रांति है कि इसका प्रयोग मर्दाना कमजोरी में करना चाहिए. कुछ औषधि निर्माता फार्मेसी अपने व्यवसाय व इस उत्पाद की बिक्री को बढ़ाने के लिए ऐसा भ्रामक प्रचार करते हैं जबकि सच्चाई ये है कि शिलाजीत बहुत ही उन्नत किस्म का रसायन है जिसका प्रयोग शरीर के नाड़ी दौर्बल्य व मधुमेह / प्रमेह ( डायबिटीज) के रोगों में अमृत तुल्य है. मधुमेह के रोगी यह शिकायत करते हैं कि उन्हें शारीरिक थकान महसूस होती है या पैरों में जलन या सूनापन रहता है. ऐसे रोगियों में शिलाजीत का प्रयोग गिलोय सत्व, जामुन गुठली चूर्ण व हरिद्रा के साथ करने पर विशेष लाभ होता है. कुछ रोगियों में शिलाजीत के प्रयोग से अतिसार या पेट में जलन पैदा हो जाता है. ऐसे रोगियों में इसका प्रयोग अल्प मात्रा में शाम के समय दूध के साथ करना चाहिए.
अर्जुनारिष्ट (Arjunarishta)
अर्जुनारिष्ट का प्रयोग हृदय से संबंधित रोगों में विशेष लाभकारी है . इसका लाभ बढे हुए ब्लड प्रेशर में भी मिलता है. जिन हृदय रोगियों को घबराहट, बेचैनी, मुंह सूखना, शरीर में पसीना आना, नींद कम आना, अनियमित रक्तचाप की समस्या रहती है ऐसे ह्रदय रोगियों में इसका प्रयोग विशेष लाभदायक होता है.
अकीक पिष्टी (Akik pishti)
अकीक एक प्रकार का खनिज पत्थर है. यह पिष्टी ह्रदय और मस्तिष्क को बल देने तथा वात पित्त शामक होती है, यह यकृत से संबंधित विकारों में भी लाभदायक होती है. इसके अतिरिक्त यह वातजन्य उन्माद, मूर्छा, सभी प्रकार के रक्तस्त्राव, व्रण, अश्मरी को नष्ट करने में समर्थ हैं. ये नेत्रों की ज्योति को बढ़ाने में भी सहायक है. अकीक के ब्राह्य या आभायान्तर प्रयोग से ह्रदय रोग से पीड़ित रोगियों को विशेष लाभ मिलता है. कुछ वैद्य ह्रदय रोगियों अकीक का लाकेट बनाकर भी पहनाते हैं. अकीक का ह्रदय क्षेत्र पर लेपन ह्रदय रोगियों के लिए बहुत लाभदायक होता है. हाई कोलेस्ट्रोल के रोगियों में इसके प्रयोग से सफल परिणाम मिलते हैं.
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कुंभ मेले में निःशुल्क आयुर्वेद चिकित्सा की व्यवस्था, 14 अस्पताल बनाने की तैयारी
प्रयागराज. कुंभ मेला में आने वाले लोगों के लिए अबकी निःशुल्क आयुर्वेद चिकित्सा की व्यवस्था सरकार की तरफ से की गयी है. इसके लिए सरकार के तरफ से चल रही तैयारियों के तहत वहां 14 अस्थायी अस्पतालों को बनाने की योजना है. खबर के मुताबिक़ मेले में आयुष चिकित्सा पद्धति के 8 बेड का एक मुख्य अस्पताल और 14 अन्य अस्पताल बनाए जा रहे हैं. इन अस्पतालों में इलाज के साथ-साथ योगाभ्यास भी कराया जाएगा. इसके साथ-साथ चलते-फिरते एक अस्पताल की भी व्यवस्था की गयी है जो पूरे मेले में घूमती रहेगी और जरुरतमंदों को आयुर्वेद चिकित्सकीय परामर्श और औषधी प्रदान करेगी. गौरतलब है कि आयुर्वेद चिकित्सा को लेकर इतने बड़े पैमाने पर पहले कभी व्यवस्था नहीं की गयी थी.
डॉ. पूजा सबरवाल जानी-मानी आयुर्वेद डॉक्टर हैं. इस क्षेत्र में 12 वर्ष से अधिक का अनुभव उनके पास है. महिला रोग विशेषज्ञ के रूप में उनकी ख़ास पहचान है. तीन हिस्सों के निरोगस्ट्रीट वीडियो सीरिज में वे महिलाओं से संबंधित कई रोगों और उसके आयुर्वेदिक बारे में बता रही हैं. देखिये -
mother health with ayurveda with dr pooja sabharwal part i
mother health with ayurveda with dr pooja sabharwal part ii
mother health with ayurveda with dr pooja sabharwal part iii
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व्हाट्सएप के लिए राहत की बात है क्योंकि पतंजलि आयुर्वेद ने अपनी मैसेजिंग एप की महत्वकांक्षी योजना किम्भो (kimbho) को फिलहाल ठंढे बस्ते में डाल दिया है. यह मैसेजिंग एप्प व्हाट्सएप को टक्कर देने के लिए मेड इन इंडिया चैट एप की तर्ज पर लॉन्च किया जा रहा था. किम्भो (kimbho) एप को लॉन्च भी किया गया लेकिन फिर इसे हटा भी लिया गया. उस वक़्त साइबर सिक्योरिटी के विशेषज्ञों ने एप को यूजर्स के लिए असुरक्षित कहा था. किम्भो एप को 30 मई, 2018 को पहली लॉन्च किया गया था, लेकिन 24 घंटे के अंदर ही इसे प्ले स्टोर से हटा लिया गया. दुबारा इसे अगस्त महीने में लॉन्च किया गया और फिर कमियों की वजह से तुरंत हटा भी लिया. उसके बाद किम्भो एप की हेड डेवलपर अदिति कमल ने इस्तीफा दे दिया था. उसके बावजूद पतंजलि ने दुबारा इसे वर्ष 2018 में ही लॉन्च करने की बात कही थी. लेकिन अब खबर आ रही है कि पतंजलि ने इसे रीलॉन्च करने के प्लान को टाल दिया है.
पतंजलि आयुर्वेद के मैनेजिंग डायरेक्टर और चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर आचार्य बाल कृष्ण ने द प्रिंट को बताया कि वे एक ऐसा ऐप लॉन्च करना चाहते थे जो पूरी तरह से सिक्योर हो लेकिन हम इससे संतुष्ट नहीं हुए जिसके कारण हमने इसे लॉन्च करने का प्लान ड्रॉप कर दिया है क्योंकि हम अभी आधे-अधूरे प्रोडक्ट को लॉन्च करना सही नहीं समझते हैं. उन्होंने आगे कहा कि उनकी टीम अभी अन्य प्रोजेक्ट्स में व्यस्त है ऐसे में उन्हें नहीं लगता कि किम्भो ऐप पर काम किया जा सकता है. अभी के लिए यह कहा जा सकता है कि इसे किनारे कर दिया गया है और इसके लॉन्चिंग की कोई डेट नहीं रखी गई है.
वर्ष 2018 आयुर्वेद जगत के लिए बेहद महत्वपूर्ण रहा. बहुत सारी गतिविधियाँ हुई. आयुर्वेद की दुनिया का विस्तार हुआ. आयुर्वेद अस्पतालों का पूरे देश में जाल बिछाने की बात सरकार के तरफ से सामने आयी. निजी और सरकारी स्तर पर आयुर्वेदिक अस्पताल खुले भी . मेदांता जैसे बड़े अस्पताल भी अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए आयुर्वेद के क्षेत्र में और सक्रिय हुए. लेकिन आयुर्वेद जगत के लिए सबसे बड़ी घटना फार्माकोपिया की शुरुआत रही. वर्ष 2018 के अंतिम महीने में लांच हुई फार्माकोपिया आयुर्वेद के भविष्य के दृष्टिकोण से सबसे बड़ी घटना साबित हुई.
केंद्रीय आयुष मंत्री श्रीपद येसो नाईक ने फार्माकोपिया की शुरुआत करते हुए कहा कि 700 तरह की आयुर्वेदिक दवाओं की जानकारी भारतीय प्रमाण के साथ सार्वजनिक की गई है. उन्होंने कहा कि आयुर्वेद के मानकों को विकसित करने और उनकी उपयोगिता के साथ क्रियान्वयन के लिए ये बहुत जरूरी कदम था. इससे न सिर्फ आयुर्वेद औषधियों की गुणवत्ता में सुधार होगा, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इन्हें ख्याति भी हासिल हो सकेगी.
फार्माकोपिया से फायदा
आयुर्वेदिक दवाओं की गुणवत्ता में सुधार होगा और भारत के आयुर्वेद की दुनिया में अब कोई चोरी नहीं कर सकेगा. शुरूआती दौर में 700 दवाओं के वैज्ञानिक ब्यौरे एक क्लिक पर उपलब्ध होंगे. इससे दवा निर्माताओं को आयुर्वेदिक दवाओं के पादपों, उनमें मौजूद विभिन्न तत्वों और उनके इस्तेमाल की मात्रा को लेकर वैज्ञानिक जानकारी हासिल होगी.
फार्माकोपिया कमीशन फॉर इंडियन मेडिसिन एंड होम्योपैथी के निदेशक डॉ. केसीआर रेड्डी के अनुसार अब तक आयुर्वेद की 400 एकल दवाओं तथा करीब 300 एक से ज्यादा मालीक्यूल वाली दवाओं का फार्माकोपिया तैयार किया जा चुका है। अभी तक यह सिर्फ दस्तावेज के रूप में उपलब्ध थी।
वर्ष 2010 में अमेरिका ने हल्दी और नीम से जुड़े हर्बल उत्पाद तैयार कर खुद का पेटेंट घोषित कर दिया था, लेकिन जब भारत ने इस पर ऐतराज जताया तो अमेरिका ने सात अंतर्राष्ट्रीय भाषाओं में आयुर्वेद दवाओं का ब्योरा उपलब्ध नहीं होने का तर्क दिया था. अब फॉर्माकोपिया और फॉर्मालुरी के ऑनलाइन होने के बाद कोई भी देश भारतीय आयुर्वेद की दवाओं पर अपनी मुहर नहीं लगा सकेगा.
आयुर्वेद पर शोध करने वालों के लिए भी ऑनलाइन फार्माकोपिया फायदेमंद साबित होगा. स्पष्ट है कि फार्माकोपिया से भारतीय आयुर्वेद की दुनिया बदलने वाली है और इस लिहाज से हम इसे वर्ष 2018 की सबसे बड़ी घटना मान सकते हैं.
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