2019 में जब कोरोना वायरस ने हर जगह अपने पैर पसारे तो सारी दुनिया में एक भयावह स्थिति बन गयी। किसी दवाई या वैक्सीन का उपलब्ध न होना भी लोगों को डरा रहा था। ऐसे में डाक्टर्स का कहना था कि अपनी इम्युनिटी को बढाना ही एकमात्र उपाय है। उस समय भारत की हज़ारों वर्ष पुरानी चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद ने लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। भारत में कम मृत्यु दर की एक बडी वजह यह भी रही कि लोगों ने समय रहते आयुर्वेद के सिद्धांतों को अपनाया। इसी कारण और देशो की तुलना में यहाँ इम्युनिटी बढ गयी और रिकवरी रेट 95% से भी अधिक रहा। तो आइये समझते हैं आखिर क्या है इम्युनिटी तथा कौन से कारक इसे स्वाभाविक रूप से प्रभावित करते हैं?
इम्युनिटी क्या है?- What is Immunity
आयुर्वेद का प्रयोजन स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना तथा बीमार व्यक्ति की व्याधि का नाश करना है। यहाँ व्यक्ति को स्वस्थ रखने की बात पहले कही गयी है। इसे देख कर अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि आयुर्वेद में इम्युनिटी या प्रतिरक्षा सिद्धांत का कितना महत्व है।
आयुर्वेद में प्रतिरक्षा के सिद्धांत को कई विषयों के अंतर्गत बताया गया है जैसे बल, ओज और व्याधि क्षमत्व।
बल का तात्पर्य है शरीर के विभिन्न तंत्रो की खुद ही पोषण करने और ठीक करने की क्षमता और रोग की रोकथाम में प्रभावी होने की क्षमता, जबकि व्याधि क्षमत्व रोग पैदा करने वाले रोगजनकों(पैथोजन) से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली की क्षमता है। बल शरीर के कार्यों, ऊतकों, पाचन और उत्सर्जन तंत्र के समग्र संतुलन से आता है, जबकि रोगजनक जीवों के संपर्क में आने के बाद विशुद्ध रूप से हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली के शरीर का बचाव कार्य करती है।
हमारे शरीर के पोषण के लिये होने वाली चयापचय प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप अंत में ओज का निर्माण होता है। ओज को हमारे द्वारा ग्रहण किए जाने वाले भोजन का सार माना जाता है, और व्यक्ति में अच्छे ओज का स्तर उचित पोषण का परिचायक है। ओज को शरीर की सात धातुओ( रस, रक्त, मास, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र) का सार माना गया है। हमारा प्रतिरक्षा तंत्र मुख्यतः पाचन तंत्र से संबंधित है। ओज का सिद्धांत पाचन और प्रतिरक्षा के बीच सीधा संबंध स्थापित करता है। ओज का कार्य केवल रोग प्रतिरोधक के रूप में ही नहीं है, बल्कि यह प्रतिकूल शारीरिक, मानसिक या पर्यावरणीय परिवर्तन में भी सहायक है तथा व्यक्ति को बीमार नहीं होने देता।
व्याधिक्षमत्व शब्द दो शब्दों से बना है: व्याधि (रोग) और क्षमत्व (दूर करना)।
आयुर्वेद के अनुसार, व्याधि तब उत्पन्न होती है जब दोष(वात, पित्त और कफ), धातू(ऊतक प्रणाली) और मल (शरीर के उत्सर्जन उत्पाद) के बीच संतुलन नहीं रहता। क्षमत्व से तात्पर्य है, व्याधि को शांत करना या उसका विरोध करना। अतः व्याधिक्षमत्व का अर्थ है रोग को उत्पन्न होने से रोकना और जीवाणुओ का विरोध करना। आयुर्वेद में इसकी व्याख्या निम्न प्रकार भी की गई:
व्याधि-बलविरोधित्वम्: यह रोगों के बल(गंभीरता) को नियंत्रित करने या उनका सामना करने की क्षमता है यानी रोग की प्रगति को रोकता है।
व्याधि-उत्पादक प्रतिबंधकत्त्व: शरीर की प्रतिरोधक क्षमता जो रोग की उत्पत्ति और पुन: उत्पत्ति को रोकती है। ये दोनों ही मिल कर शरीर में प्रतिरक्षा तंत्र कहलाते हैं।
इम्युनिटी के प्रकार- Types of Immunity
आयुर्वेद में तीन प्रकार की इम्युनिटी बताई गई हैं:
सहज: जन्मजात या प्राकृतिक
सहज बल माता-पिता द्वारा बच्चों में आता है। जैसा कि आज कल देखा जाता है कि कुछ बच्चों में विभिन्न प्रकार की एलर्जी देखी जाती हैं। यह गुण उनमें पूर्वजों द्वारा आते हैं। आयुर्वेद में बताया गया है कि यह गुण सूत्र के स्तर से ही शुरु हो जाता है। यदि माता-पिता का स्वास्थ्य अच्छा होगा तो बच्चों का स्वास्थ्य भी अच्छा होगा, परंतु यदि उनमें ही बीमारियाँ होंगी तो वे बीमारियाँ पीढी दर पीढी भी चल सकती हैं यथा डायबिटीज़।
कालज
कालज बल दिन के समय, मौसम, आयु और जन्म स्थान जैसे कारकों पर आधारित है, ये प्रतिरक्षा को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण कारक हैं। जैसे वयस्कों में अधिक आयु वालो की तुलना में अधिक बल होता है। इसी तरह हेमंत ऋतु में ग्रीष्म ऋतु की तुलना में अधिक बल होता है। ऐसे स्थान जहां पानी, तालाब आदि अधिक हो और सुखद वातावरण हो, ये कफकारक स्थान होते हैं जहां प्राकृतिक रूप से अधिक इम्युनिटी होती है।
युक्तिकृत
यह वो इम्युनिटी है जो व्यक्ति जन्म के बाद अर्जित करता है। आयुर्वेद में इसके लिये विभिन्न सुझाव दिये गये हैं जैसे व्यायाम, सात्म्य एवम रसायनों (जडी-बूटियो) का प्रयोग।
शरीर में बल बढाने वाले कारक- Body Boosting Factors
ऐसे देश में जन्म लेना जहां प्राकृतिक रूप से लोग बलशाली हो।
शिशिर और हेमंत ऋतु में जन्म होना जब स्वाभाविक रूप से बल बढ जाता है।
सुखद और अनुकूल जलवायु का होना।
बीज के गुण अर्थात शुक्राणु और डिंब उत्कृष्ट हो और माँ के गर्भाशय की उचित शारीरिक स्थिति में उत्कृष्टता।
ग्रहण किया गया भोजन शरीर के रख-रखाव के लिए उत्तम हो।
शारीरिक संगठन उत्तम होना।
मन की उत्कृष्टता।
व्यक्ति की प्रकृति का उत्तम होना।
माता-पिता दोनों की कम उम्र यानी कि उनकी आयु अधिक नहीं होनी चाहिए।
नियमित व्यायाम का अभ्यास करना।
हंसमुख स्वभाव और एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सद्भाव की भावना।
ये सभी गुण जिन लोगों में पाये जाते हैं, वे स्वाभाविक रूप से कम बीमार होते हैं। उनकी व्याधि क्षमत्व कि शक्ति या इम्युनिटी अधिक होती है।
आपने अकसर ऐसे लोगों को देखा होगा जो ज़रा से मौसम के बदलाव से भी बीमार हो जाते हैं, जबकि कुछ लोग उसी वातावरण में रह कर भी बीमार नहीं होते। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि कुछ लोगों की इम्युनिटी बाकी लोगों के मुकाबले में बेहतर होती है। कम इम्युनिटी के कारण भिन्न बीमारियाँ जैसे इंफेक्शन, आटो-इम्यून विकार एवं विभिन्न एलर्जी होने का खतरा बढ जाता है। आखिर ऐसे कौन से कारण हैं जो उन लोगों की इम्युनिटी बेहतर बनाते हैं और ऐसे कौन से कारण हैं जो इम्युनिटी कम करने के लिये ज़िम्मेदार हैं। तो आइये समझते हैं इम्युनिटी कम या ज़्यादा होने के कारण तथा इसके लक्षण।
इम्युनिटी कम होने के कारण- Causes of Lacking Immunity
आयुर्वेद में नौ कारकों का उल्लेख किया गया है जो शरीर की रोगों से लडने की क्षमता को कम करता है अर्थात् प्रतिरक्षा तंत्र को कमज़ोर करने के लिए जिम्मेदार है:
अति-स्थूल (अत्यधिक मोटे व्यक्ति)
अति-कृश (अत्यधिक दुबले-पतले व्यक्ति)
अनिविस्ट-मास (व्यक्ति का शरीर ठीक से मांसल न होना)
अनिविस्ट-अस्थि (दोषपूर्ण अस्थि ऊतक वाले व्यक्ति)
अनिविस्ट-शोणित (दोषपूर्ण रक्त होना)
दुर्बल (कमजोर व्यक्ति)
असात्म्य-आहारोपाचिता (ऐसे व्यक्ति जिनका पोषण सही भोजन द्वारा न हुआ हो)
अल्प-आहारोपाचिता (अल्प मात्रा में आहार लेने वाले)
अल्प-सत्त्व (कमज़ोर दिमाग वाले व्यक्ति)
ओज की हानि क्रोध, भूख, चिंता, दु: ख और अत्यधिक परिश्रम आदि से भी होती है। ये सभी मनुष्य की प्रतिरक्षा प्रणाली को कम करते हैं। इसके अलावा सबसे आम कारणों में कुपोषण, सफाई की कमी होना और कई तरह के वायरस संक्रमण (जैसे एचआईवी) शामिल हैं। अन्य कारणों में वृद्धावस्था, दवाएं (जैसे कोर्टिसोन, साइटोस्टैटिक ड्रग्स), रेडियोथेरेपी, सर्जरी के बाद तनाव और अस्थि मज्जा के घातक ट्यूमर भी शामिल हैं।
अच्छी इम्युनिटी होने के कारण- Causes of Good Immunity
कुछ कारण ऐसे होते हैं जो व्यक्ति में प्राकृतिक रूप से अधिक इम्युनिटी के लिये ज़िम्मेदार होते हैं। ऐसे व्यक्ति असात्म्य आहार-विहार के बाद भी इतनी जल्दी बीमार नहीं होते। निम्न कारक अच्छी इम्युनिटी के लिये ज़िम्मेदार हैं:
माता के गर्भाशय का स्वस्थ होना: जैसे अच्छी खेती के लिये भूमि तथा मिट्टी का उपजाऊ होना आवश्यक है, उसी प्रकार माता के गर्भाशय का स्वास्थ्य अच्छा होना भी बच्चे के सही से बढने के लिये आवश्यक है। ऐसे बच्चों के बीमार पडने की सम्भावना कम होती है।
जन्म के पश्चात पोषण: बचपन से ही समय पर सही मात्रा में पोषण होना भी इम्युनिटी को बढाने में सहायक है। जैसे जन्म से लेकर छः माह तक सिर्फ माँ का दूध पिलाने की सलाह दी जाती है, यह बच्चे में बीमारियों से लडने की क्षमता का विकास करता है।
व्यक्ति की प्रकृति: आम तौर पर कफ प्रकृति के व्यक्तियों का प्रतिरक्षा तंत्र वातिक और पैत्तिक प्रकृति के लोगों की तुलना में मजबूत होता है। सामान्य अवस्था में कफ को बल और ओज माना जाता है जबकि असामान्य अवस्था में यह मल और व्याधि उत्पन्न करता है। सामान्यतः कफ का कार्य ओज के समान है। सामान्य अवस्था में कफ स्थिरता, भारीपन, पौरुष, प्रतिरक्षा, प्रतिरोध, साहस और धैर्य प्रदान करता है।
देहाग्नि या जठराग्नि: पेट की पाचन शक्ति त्वचा की चमक, शक्ति, स्वास्थ्य, उत्साह, कोमलता, रंग, ओज, शरीर के तेज और प्राण या जीवन शक्ति के लिये ज़िम्मेदार है। पाचन शक्ति सही होने से व्यक्ति को लंबी उम्र जीने में मदद मिलती है और कमज़ोर पाचन शक्ति बीमारियों को जन्म देती है। पाचन अग्नि मानव शरीर में पोषक तत्वों को पचाने, आत्मसात करने और अवशोषित करने में शरीर की मदद करता है तथा प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करता है।
मनः स्थिति: जीवन के प्रति सकारात्मक सोच का होना बहुत महत्वपूर्ण है। यह मजबूत मानसिक शक्ति को दर्शाता है तथा निश्चित रूप से अच्छी इम्युनिटी में सहायक है।
ध्यान लगाना: मन को आध्यात्मिक रूप से एक ही जगह लगाने से आत्म-जागरूकता और सकारात्मक सोच आती है, जिससे मानसिक शक्ति और इम्युनिटी में वृद्धि होती है।
प्रतिरक्षा तंत्र कमज़ोर होने के लक्षण- Symptoms of Weakened Immune System
हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली या इम्यून सिस्टम कीटाणुओं और जीवाणुओं के खिलाफ लडती है जो की बीमारियों का कारण बन सकते हैं। हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को स्वस्थ और संतुलित रखना व्याधि मुक्त जीवन शैली के लिए महत्वपूर्ण है। किंतु हमारा इम्यून सिस्टम कमज़ोर हो तो हमें कैसे पता लगेगा? निम्न कुछ लक्षण कमज़ोर इम्यून सिस्टम की ओर इशारा करते हैं:
बार-बार संक्रमण: यदि आपका प्रतिरक्षा तंत्र कमज़ोर है तो आप सामान्य प्रतिरक्षा प्रणाली वाले किसी व्यक्ति की तुलना में अधिक, लगातार, लंबे समय तक चलने वाले संक्रमण का शिकार हो सकते हैं।
थकान: थकान कमज़ोर प्रतिरक्षा तंत्र के प्रमुख लक्षणों में से एक है। अगर आप लगातार थकावट महसूस कर रहे हैं या आप आसानी से थक जाते हैं, तो हो सकता है कि आपका इम्यून सिस्टम ठीक नहीं है। ज़्यादा या कम कोर्टिसोल का स्तर आपके प्रतिरक्षा प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, जिससे थकान होती है। कुछ ऑटोइम्यून बीमारियों से भी थकान होती है।
ठंड और गले में खराश: यदि आपको बार-बार सर्दी-ज़ुकाम होती है, आप ठंड के प्रति संवेदनशील हैं और बार-बार गले में खराश होती है, तो यह कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली की ओर इशारा करता है।
एलर्जी: एलर्जी तब होती है जब आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली धूल, पराग जैसे हानिरहित पदार्थों के प्रति असामान्य रूप से प्रतिक्रिया करती है। यदि आप घरघराहट, खुजली, बहती नाक, आंखों से पानी आना या खुजली होने का अनुभव करते हैं, तो इसका मतलब है कि आपकी इम्युनिटी कमज़ोर हो रही है।
चोट लगने पर उनका घाव जल्दी न भरना: हमारी त्वचा वायरस और बैक्टीरिया के खिलाफ सबसे पहले रक्षा करती है। यदि प्रतिरक्षा प्रणाली कमज़ोर है, तो घाव पर बैक्टीरिया संक्रमण होना आसान हो जाता है और उस घाव को भरना मुश्किल हो जाता है।
कब्ज़, दस्त या पेट में दर्द होना: जब आंत के बैक्टीरिया संतुलित होते हैं, तो आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली भी संतुलित रहती है। परन्तु यदि आप बार-बार दस्त, पेट में संक्रमण और मतली जैसी पाचन समस्याओं से पीड़ित हैं, तो यह संकेत है कि आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर है।
रक्ताल्पता या एनीमिया: एनीमिया एक ऐसी स्थिति है जहां लाल रक्त कोशिकाओं या हीमोग्लोबिन में कमी होती है। कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली कभी-कभी लाल रक्त कोशिकाओं को नष्ट कर देती है, जिससे एनीमिया हो सकता है। इससे थका हुआ महसूस करना, कमजोरी, सांस की तकलीफ या व्यायाम करने की क्षमता का कम होना जैसे लक्षण आ सकते हैं।
जोड़ों का दर्द: जोडो में दर्द इम्यून सिस्टम में असंतुलन का एक परिणाम हो सकता है। जब प्रतिरक्षा प्रणाली कमज़ोर होती है, तो गठिया, संधिशोथ जैसी स्थितियां होती हैं। यह रुमेटाइड आर्थरायटिस जैसे ऑटोइम्यून रोगों को ट्रिगर कर सकता है, जिसमें प्रतिरक्षा प्रणाली स्वस्थ ऊतक पर हमला करती है। इसमें जोडो की सूजन, लालिमा, गर्मी, कठोरता, दर्द और बुखार जैसे लक्षण आते हैं।
इन लक्षणों के अलावा ऐसे व्यक्ति में झल्लाहट, दुर्बलता, बिना कारण चिंता, असुविधा महसूस करना, त्वचा का रंग खराब होना और त्वचा का सूखापन आदि लक्षण पाये जाते हैं।
कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों के स्वास्थ्य के लिए क्या किया जा सकता है?- What can be done for the health of people with weakened immune systems?
यदि आप या आपके आस-पास किसी व्यक्ति की इम्युनिटी कमज़ोर है, तो ऐसे में स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। इसके लिये निम्न कुछ उपाय अपनाये जा सकते हैं:
ऐसे व्यक्तियों को साफ-सफाई का बहुत ध्यान रखना चाहिये। प्रतिदिन नहाना, बार-बार हाथ धोना, घर की सतहों को साफ रखना चाहिये।
जितना संभव हो सके बीमार लोगों के साथ संपर्क सीमित करें। वायरस या बैक्टीरिया एक-दूसरे के संपर्क में आने से फैल सकते हैं। इसलिये बेहतर है कि निश्चित दूरी बना कर रहेँ।
तनाव से बचें। विभिन्न शोध में ये बात सामने आई है कि तनाव व्यक्ति के इम्यून सिस्टम पर बुरा प्रभाव डालता है। ऐसे व्यक्ति अधिक बीमार होते हैं। इसी लिये व्यक्ति को तनाव दूर करने के लिए अपने जीवन में योग, मेडिटेशन तथा मन-पसंद रुचियों को शामिल करना चाहिये। सोशल मीडिया से थोडी दूरी बना के रहे व परिवार तथा दोस्तों के साथ वक़्त बिताएँ।
घर का बना शुद्ध भोजन करें। अधिक से अधिक फलो तथा सब्जियों को अपने भोजन में शामिल करें। सभी चीजो को धो कर ही खाये। फ्रीज़ किये गये पदार्थ, डिब्बा बंद खाने न खाये। सही से न पका हुआ मीट, मछली खाने से परहेज़ करें।
नियमित रूप से व्यायाम करें। यह शरीर में एंडोर्फिन्स का स्राव कराता है जो तनाव का स्तर भी कम करता है। परंतु अपनी शक्ति से अधिक व्यायाम न करें।
प्रत्येक दिन 7-8 घंटे की नींद आवश्यक रूप से लें। ठीक से नींद न लेना भी आपकी इम्युनिटी को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है।
अतः ये कुछ उपाय अपना कर आप भी बीमारियों से मुक्त एक स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।
संदर्भ:
अष्टांग हृदयम् १ / त्रिपाठी ब्रह्मानंद; चौखम्बा संस्कृत प्रतिष्ठान, दिल्ली, प्रथम संस्करण।
चरक संहिता, त्रिपाठी ब्रह्मानंद, चौखम्बा प्रकाशन, वाराणसी, प्रथम संस्करण।
सुश्रुत संहिता; घनेकर भास्कर; मेहरचंद लछमणदास प्रकाशन, नई दिल्ली।
चरक संहिता (चक्रपाणिदत्त द्वारा आयुर्वेद दीपिका टीका) यादवजी त्रिकमजी, संपादक-वाराणसी: चौखम्भा सुरभारती प्रकाशन।
एम.के. शर्मा- व्याधिमक्षत्व की अवधारणा और बल के साथ इसका संबंध।
चरक संहिता (विद्योतिनी हिंदी टीका), भाग- I काशीनाथ शास्त्री, गोरखा नाथ चतुर्वेदी, संपादक-वाराणसी: चौखम्भा भारती अकादमी।
एनीमिया की परिभाषा - Anemia Defination in Hindi
सामान्य भाषा में शरीर में खून की कमी होने की एनीमिया कहा जाता है लेकिन चिकित्सीय परिभाषा के अनुसार एनीमिया वह अवस्था है जिसमे रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा अर्थात लाल रक्त कणिकाओं की संख्या सामान्य से इतनी कम हो जाए की वह उस व्यक्ति की शारीरिक आवश्यकता को भी पूर्ण न कर पाए।
आयुर्वेद में एनीमिया - Anemia in Ayurveda
एनीमिया स्वतंत्र व्याधि होने के साथ साथ कई व्याधियों जैसे ख़ूनी बवासीर, रक्तप्रदर, डेंगू , मलेरिया या अन्य कोई व्याधि जिसमे रक्त का क्षय होता हो, उनमें उपद्रवस्वरुप भी देखने को मिलता है। वैसे तो एनीमिया बहुत छोटी सी व्याधि प्रतीत होती है लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार यह सबसे गंभीर वैश्विक सार्वजनिक समस्याओं में से एक है। आयुर्वेद में इसे पाण्डु नाम से कहा जाता है , जो मुख्य रूप से पित्त ( भ्राजक पित्त ) तथा पितवर्गीय रक्त की दुष्टि या अल्पता से होता है।
एनीमिया के लक्षण - Anemia Symptoms in Hindi
त्वचा नख नेत्र का वर्ण पीला सफ़ेद हो जाना
थोड़ा सा काम करने पर ही पूरे शरीर में कमजोरी का अनुभव होना
सांस फूलना
नेत्र के आस पास सूजन होना
हृदय गति का बढ़ जाना
स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाना
घबराहट होना
हमेशा नींद आते रहना
पिंडलियों , कमर और पैरों में दर्द होना
ठंडी चीजे पसंद न होना।
एनीमिया के कारण - Anemia Causes in Hindi
किसी बीमारी के चलते या किसी अन्य कारण की वजह से शरीर में लाल रक्त कणिकाओं या हीमोग्लोबिन का कम मात्रा में बनना या अधिक मात्रा में लाल रक्त कणिकाओं का नष्ट होना।
भूखा रहना
लौह युक्त आहार का सेवन बिलकुल न करना या कम मात्रा में करना।
रक्तस्रावजन्य बीमारियों जैसे रक्तार्श , रक्तपित्त , रक्तप्रदर , हीमोफिलिया आदि से ग्रसित होना।
पाचन शक्ति का कम होना।
यकृत सम्बंधित कोई विकार होना।
शक्ति से अधिक व्यायाम करना।
दिवास्वपन( सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक किसी भी समय सोना।
दुर्घटना होने या आघात लगने पर अत्यधिक मात्रा में रक्तस्राव हो जाना।
अत्यधिक मात्रा में खट्टे , मिर्च मसालों वाले तथा नमक युक्त आहार का सेवन करना।
आये हुए मल - मूत्र आदि के वेगों को रोकना।
मिट्टी खाना।
एनीमिया डायग्नोसिस - Anemia Diagnosis
सी बी सी ( कम्पलीट ब्लड सेल काउंट )
बोन मेरो एनालिसिस
एनीमिया से बचने के लिए हमें क्या-क्या खाना चाहिए?
पाचन तंत्र को अच्छा बनाये रखने के लिए नियमित रूप से व्यायाम करे।
अपने आहार में रक्त को बढ़ाने वाले भोज्य पदार्थो जैसे पालक , किसमिस , अनार , चुकुन्दर , आंवला , छुहारे आदि को शामिल करे।
गेहूं , यव तथा मूंग , अरहर , मसूर की दाल का सेवन करे।
खाना बनाने के लिए आयरन के बर्तन का प्रयोग करे।
पचने में आसान भोजन का सेवन करे।
एनीमिया में क्या न करे?
मिर्च मसालो युक्त भोजन का सेवन अधिक मात्रा में न करे।
दिवास्वपन न करे।
अधिक मात्रा में अल्कोहल का सेवन न करे।
नॉन वेज, अंडा तथा पचने में भारी और अपच करने वाले आहार का सेवन न करे।
एनीमिया के घरेलू उपाय ? - Anemia Home Remedies in Hindi
२५-३० किसमिश लेकर उनको रात भर पानी में भिगो दे और सुबह नाश्ते में खा ले।
दूध के साथ ख़जूर और भीगे हुए अंजीर का सेवन करे।
२-३ चम्मच मेथी में बीज लेकर रात में भिगो दे और फिर सुबह इस भीगी हुए मेथी में चावल बनाकर उसमे सैंधा नामक मिलकर लगभग एक महिने तक सेवन करे।
काले तिल को २-३ घंटे तक गर्म पानी में भिगो कर उसका पेस्ट बना ले फिर इस पेस्ट में गुण और शहद मिलाकर दूध से ले।
तक्र का सेवन करे।
एनीमिया से संबंधित प्रश्न और उत्तर - Anemia Related FAQs in Hindi
प्रश्न - क्या एनीमिया एक आनुवंशिक विकार है?
उत्तर - सभी तो नहीं लेकिन कुछ एनीमिया आनुवंशिक होते है जैसे सिक्क्ल सेल एनीमिया , थलेसिमिआ आदि ।
प्रश्न - यदि समय से एनीमिया का उपचार न किया जाये तो क्या कॉम्प्लीकेशन्स हो सकते है?
उत्तर - यदि समय से एनीमिया का उपचार न कराया जाये तो ह्रदय और फेफड़ो सम्बन्धी विकार होने का खतरा बढ़ जाता है।
प्रश्न - एनीमिया का मुख्य लक्षण क्या है?
उत्तर- एनीमिया का मुख्य लक्षण है थोड़ा सा काम करने पर ही कमजोरी का अनुभव होना , आँखों के सामने अँधेरा छा जाना।
प्रश्न - गर्भावस्था के दौरान होने वाले एनीमिया कौन से है?
उत्तर- गर्भावस्था के दौरान मुख्य रूप से होने वाले एनीमिया है - आयरन डेफिशियेंसी एनीमिया , फॉलेट डेफिशियेंसी एनीमिया , विटामिन बी की कमी से होने वाला एनीमिया।
प्रश्न - गर्भावस्थाजन्य एनीमिया के क्या क्या कॉम्प्लीकेशन्स हो सकते है?
उत्तर- गर्भवस्थाजन्य एनीमिया का यदि समय रहते उपचार न किया जाये तो इसकी वजह से विभिन्न प्रकार की जन्म्जात विकृति जैसे इस्पीना बाइफिडा जो की एक प्रकार की न्यूरल टियूब विकृति है हो जाती है और साथ ही समय पूर्व प्रसव होने की सम्भावना भी बढ़ जाती है।
प्रश्न -आयुर्वेद में एनीमिया के लिए क्या उपचार है?
उत्तर-आयुर्वेद में एनीमिया का वर्णन पाण्डु नाम से आया है और इसके उपचार के लिए तीक्ष्ण वमन और विरेचन कराने को कहा गया है।
Read in English ► Anemia: Symptoms, Causes, and Treatment
वर्तमान समय में बढ़ते प्रदूषण की वजह से बालों से संबंधित समस्या जैसे बालों का झड़ना, असमय सफ़ेद होना, डैंड्रफ (Dandruff) आदि काफी आम हो गया है। जब सर की त्वचा को उचित रूप से पोषण नहीं मिल पाता या धूल - मिटटी के कारण सर की त्वचा के छिद्र बंद हो जाते है तो सर की त्वचा मृत हो जाती है और उसमें सफ़ेद रंग की पपड़ी सी जम जाती है इसे ही डैंड्रफ कहते है। डैंड्रफ को आम भाषा में रुसी नाम से भी जाना जाता है और इसका मुख्य कारण विभिन्न प्रकार के केमिकल युक्त हेयर प्रोडक्ट्स का उपयोग करना और बालो की सफाई न करना है।
आयुर्वेद में डैंड्रफ - Dandruff in Ayurveda
आयुर्वेद में डैंड्रफ का वर्णन दारुणक नाम से आया है और इसमें मुख्य रूप से वात तथा कफ दोष की दुष्टि देखने को मिलती है। वैसे तो इसमें मुख्य रूप से खुजली ही लक्षण स्वरुप देखने को मिलता है लेकिन कभी कभी खुजली के साथ साथ इन्फ़्लेमेशन भी देखने को मिलता है तो इसे सेबोरिक डर्मेटाइटिस कहते है। छोटे बच्चों में सेबोरिक डर्मेटाइटिस को क्रैडल कैप के नाम से जाना जाता है।
डैंड्रफ के लक्षण - Dandruff Symptoms in Hindi
सिर में खुजली होना
बालों का झड़ना
सिर की त्वचा में रूक्षता होना सिर की त्वचा का फट जाना
सिर की त्वचा और बालों पर सफ़ेद रंग की पपड़ी नजर आना
सिर की त्वचा पर संक्रमण होना , घाव सा महसूस होना
सिर की त्वचा पर लाली नजर आना और जलन होना
चिकत्सीय परामर्श कब ले? When to See Your Doctor for Dandruff in Hindi
नियमित रूप से बालो की सफाई करने और बालो में तेल लगाने के बाद भी डैंड्रफ की समस्या कम न हो और सिर में खुजली और जलन बने रहे तो चिकित्सक से सलाह ले लेनी चाहिए।
डैंड्रफ के कारण - Dandruff Causes in Hindi
नियमित रूप से बालो की सफाई न करना।
बालो में तेल न लगाना।
विज्ञापनों में दिखाए जाने वाले तरह तरह के शैम्पू तेल का अधिक मात्रा में प्रयोग करना।
हार्मोनल असंतुलन।
तनाव।
गलत आहार विहार।
बचाव
नियमित रूप से बालो की सफाई करे।
नित्य प्रति बालो में तेल लगाकर मसाज करें।
खुजली होने पर सिर की त्वचा को हाथ से या अन्य किसी चीज से खुरचे न।
बालो को ठन्डे या हल्के गुनगुने पानी से धोये।
डायग्नोसिस
सामान्यतया इसके निदान के लिए कोई टेस्ट नहीं होता है लेकिन सेबोरिक डर्मेटाइटिस पुष्टि करने के लिए चिकित्सक सिर की लालिमा और पपड़ी को देखते है तथा फंगल इन्फेक्शन की पुष्टि के लिए त्वचा का सैंपल लिया
डैंड्रफ के घरेलू उपाय - Dandruff Home Remedies in Hindi
1-बालो को धोने के लिए मुल्तानी मिट्टी या त्रिफला क्वाथ का प्रयोग करे।
2-बालो को धोने से पहले बालो में दही लगाए।
3-महीने में एक बार मेंहदी शिकाकाई आंवला को मिलाकर बनाये गए हेयर पैक का प्रयोग करे।
4-एक चम्मच जैतून के तेल में एक चम्मच नारियल तेल एक चम्मच तिल का तेल और दो से तीन बूद सीडर वुड तेल की मिलाकर हेयर पैक बना ले और बालो को धोने से आधा घंटा पहले लगा कर फिर बालो में शैम्पू कर ले।
क्या करें और क्या न करे
क्या करे
साधारण नमक के स्थान में सैंधा नमक का प्रयोग करे।
बालो को धोने के लिए हर्बल शैम्पू का प्रयोग करे।
तनाव कम करने के लिए नियमित रूप से योग करे।
नित्य बालो में तेल लगाए।
विटामिन बी युक्त आहार का सेवन करे।
क्या न करे?
बालो को धोने के लिए केमिकल युक्त शैम्पू का प्रयोग न करे।
खुजली होने पर सिर की त्वचा को हाथ से या अन्य किसी चीज से खुरचे न।
डैंड्रफ से संबंधित प्रश्न और उत्तर - FAQs
प्रश्न -डैंड्रफ क्यों होता है?
उत्तर- डैंड्रफ होने का मुख्य कारण है बालो की सफाई न रखना , बालो में तेल न लगाना , केमिकल युक्त हेयर प्रोडक्ट्स का अधिक मात्रा में प्रयोग करना आदि।
प्रश्न - सामान्य डैंड्रफ और सेबोरिक डर्मेटाइटिस की वजह से होने वाले डैंड्रफ में क्या अंतर है ?
उत्तर- सामान्य डैंड्रफ होने पर सिर में सफ़ेद पपड़ी सी होती है , खुजली होती है जबकि सेबोरिक डर्मेटाइटिस में पपड़ी कुछ लालिमा लिए हुए होती है तथा खुजली के साथ साथ जलन भी होती है।
प्रश्न - क्या डैंड्रफ के कारण बाल झड़ते है?
उत्तर - हां , डैंड्रफ के कारण बाल झड़ते है।
प्रश्न - डैंड्रफ के लिए उपलब्ध सबसे अच्छा उपचार क्या है?
उत्तर - डैंड्रफ के लिए उपलब्ध सबसे अच्छा उपचार है डैंड्रफ करने वाले कारणों का त्याग करना तथा जरूरत पड़ने पर तुरंत चिकित्सक से संपर्क करना।
प्रश्न - डैंड्रफ न हो इसके लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर - डैंड्रफ न हो इसके लिए बालो को धोने के लिए केमिकल फ्री शैम्पू तथा तेल का प्रयोग करने के साथ साथ अपने खान - पान , तनाव आदि को भी नियंत्रित रखना चाहिए।
एसिडिटी क्या होता है - What Is Acidity In Hindi
एसिडिटी (Acidity) एक ऐसी बीमारी है जो हज़ारों वर्षों से चली आ रही है परंतु बढती आधुनिकता के कारण लोगों के अनियमित खान-पान से यह बीमारी (Disease) कुछ ज़्यादा ही आम हो गयी है। शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण मानव जाति की जीवनशैली (Lifestyle) में भारी बदलाव हुआ है। तेज़ी से बदलती दुनिया का सामना करने के लिये मानव को जंक फूड (Junk Food), अधिक काम और तनावपूर्ण ड्यूटी शेड्यूल को अपनाना पडा। इसी के फलस्वरूप करीब 30% आबादी गैस्ट्रो-ईसोफेगल रिफ्लेक्स (Gastro-esophageal reflex) और गैस्ट्राइटिस (Gastritis) से पीड़ित है जिससे एसिडिटी या अम्लपित्त की उत्पत्ति होती है। तो आइये समझते हैं एसिडिटी क्या है, इसके विभिन्न कारण क्या हैं एवं इसके लक्षण तथा उपाय क्या हैं।
विषय – सूची
एसिडिटी क्या होता है
एसिडिटी के लक्षण
एसिडिटी के कारण
निदान
पेट में एसिड बनने के घरेलू उपाय
क्या खाएं और किससे बचें
अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
एसिडिटी क्या होता है ? What Is Acidity In Hindi
आयुर्वेद में स्वस्थ दिनचर्या के अंतर्गत दिनचर्या और ऋतुचर्या का वर्णन किया गया है लेकिन वर्तमान समय में व्यस्त जीवन शैली के कारण लोग दिनचर्या और ऋतुचर्या का पालन करने में असमर्थ हैं, जिसके परिणामस्वरूप अग्निमांद्य होता है जो अंततः अम्लपित्त जैसी बीमारियों का कारण बनता है। आयुर्वेद में, अधिकतर रोगों का कारण अग्निमांद्य को बताया गया है। अम्लपित्त या एसिडिटी अन्नवहस्त्रोतस (जीआईटी) की एक आम व्याधि है।
"अम्लपित्त" शब्द दो शब्दों से मिल कर बना है- ‘अम्ल’ और 'पित्त'। इसमें पाचक पित्त (गैस्ट्रिक रस) की मात्रा बढ़ जाती है तथा इसका सामान्य कड़वा स्वाद (क्षारीय) अधिक खट्टे स्वाद (अम्लीय) में बदल जाता है। पित्त के अम्ल गुण की अत्यधिक वृद्धि के कारण पित्त विदग्ध हो जाता है, इसे अम्लपित्त कहा जाता है। एसिडिटी पेट में जलन और गैस बनने से संबंधित है। इसमें गैस्ट्रिक जूस पेट से ईसोफेगस के निचले हिस्से की ओर गति करता है। आयुर्वेद में इसका कारण पित्त दोष की अत्यधिक वृद्धि को माना गया है।
एसिडिटी के लक्षण - Acidity Symptoms in Hindi
आयुर्वेदिक ग्रंथों में उल्लिखित अम्लपित्त के लक्षण गैस्ट्राइटिस या हाइपर एसिडिटी के समान हैं। अम्लपित्त का सबसे महत्वपूर्ण लक्षण पेट, हृदय और गले में जलन महसूस होना है। यह पित्त दोष के द्रव्य गुण और विदग्धता के बढ़ने के कारण है।
इसके अलावा निम्न लक्षण पाये जाते हैं-
अविपाक (पाचन न होना)
क्लम (बिना कारण थकावट)
उत्क्लेश (उल्टी आने की प्रतीति)
तिक्त-अम्ल उदगार (खट्टी डकारे)
गौरव (उदरशूल)
हृत-कंठ दाह (छाती और गले में जलन)
आंत्रकूजन (आंतो का शोर)
विड्भेद (दस्त)
ह्रदय शूल (छाती में दर्द)
उल्टी होना
करचरण दाह (हथेलियों और तलवों में जलन)
ऊष्ण (तीव्र गर्मी महसूस करना),
महति अरुचि (भूक में अत्यधिक कमी)
एसिडिटी ज़्यादा होने पर बुखार, उल्टी, खुजली, त्वचा पर रैशेज़ जैसे लक्षण भी आ सकते हैं।
एसिडिटी के कारण - Acidity Causes in Hindi
अम्लपित्त व्याधि उल्टे सीधे खान-पान और पित्त दोष को बढाने वाले खाद्य पदार्थों के सेवन से होती है। ऐसे लोग जिनका पित्त संतुलन में नहीं होता, वे व्यक्ति हाइपरएसिडिटी, पेप्टिक अल्सर जैसे विकारों के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं। अम्लपित्त की उत्पत्ति में तीन घटक मुख्य भूमिका निभाते हैं- अग्निमांद्य, आम और अन्नवह स्रोतो दुष्टि। इसके साथ-साथ, पित्त दोष की विकृति के कारण, विशेष रूप से पाचक पित्त की मात्रात्मक और गुणात्मक वृद्धि होती है, जिससे अम्लपित्त की उत्पत्ति होती है।
गैस्ट्रिक ग्रंथियाँ एसिड का उत्पादन करती हैं, जो भोजन के पाचन में मदद करता है। पेट में एसिड के अतिरिक्त उत्पादन को हाइपर एसिडिटी कहा जाता है। आयुर्वेद के अनुसार निम्न कारण एसिडिटी को उत्पन्न करते हैं-
1) आहारज कारण: इसमें विभिन्न प्रकार की आहार सम्बंधी गलत आदतें शामिल हैं।
विरुद्ध आहार (असंगत आहार)
अध्यशन (भोजन के बाद भोजन)
भोजन के पाचन से पहले ही दोबारा भोजन करना
बहुत समय तक भूका रहना, नाश्ता न करना
अजीर्ण भोजन (निरंतर भोजन का पाचन न होना)
गुरु (भारी भोजन करना)
स्निग्ध भोजन (तैलीय भोजन करना)
अत्यधिक रूखा-सूखा भोजन आदि अग्निमांद्य (भूख न लगना) का कारण बनते हैं, जो अम्लपित्त उत्पन्न करता है।
2) विहारज कारण: इसमें जीवन शैली सम्बंधित कारक शामिल हैं। यह दो प्रकार का है-
अत्यधिक शारीरिक कार्य- अत्यधिक व्यायाम करना, रात में जागना तथा उपवास रखना। यह वात तथा पित्त दोष को बढाते हैं।
बहुत कम शारीरिक काम करना- प्राकृतिक वेगो को धारण करना, भोजन के बाद दिन में सो जाना, अत्यधिक स्नान आदि। ये सभी पाचक अग्नि को कम करते हैं तथा अम्लपित्त उत्पन्न करते हैं।
3) मानसिक कारण: मनोवैज्ञानिक कारक जैसे चिंता, शोक, क्रोध आदि भी एसिडिटी उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण कारण है।
4) अन्य कारण: शरद ऋतु (पतझड़ का मौसम), शराब, धूम्रपान, चाय-काफी का अधिक सेवन, तम्बाकू चबाना, NSAIDS (दर्द निवारक गोलियों) का लंबे समय तक सेवन, हेलिकोबैक्टर पाइलोरिक संक्रमण, कब्ज़ इत्यादि। उपरोक्त सभी कारक शरीर में 'पित्त दोष' की अत्यधिक वृद्धि के परिणामस्वरूप अम्लपित्त के लक्षणों को उत्पन्न करते हैं।
निदान - Acidity Treatment in Hindi
वैसे तो लक्षणों, जीवन शैली तथा आहार सम्बंधी आदतों के आधार पर एसिडिटी का निदान कर लिया जाता है, परंतु यदि दवाओं या जीवनशैली में बदलाव से मदद नहीं मिलती है और लगातार गंभीर लक्षण आ रहे हैं, तो निम्न परीक्षण करवाए जाते हैं:
ईसोफेगल बेरियम टेस्ट
एसोफैगल मैनोमेट्री
पीएच परीक्षण
एंडोस्कोपी
बायोप्सी
पेट में एसिड बनने के घरेलू उपाय - Acidity Home Remedies in Hindi
आयुर्वेद में एसिडिटी के लिए बहुत ही सरल और प्रभावी उपाय बताये गये हैं। इसके उपचार में मुख्यतः आम(विषाक्त पदार्थ) और अग्निमांद्य(अल्प पाचन शक्ति) को ठीक करना है। इसके लिये आयुर्वेद में भिन्न औषधियाँ विधियाँ बताई गई हैं यथा मृदु वमन, मृदु विरेचन, अनुवासन और निरुह वस्ति इत्यादि। परंतु घर में भी कुछ उपाय किये जा सकते हैं जो एसिडिटी को कम करने में सहायक हैं-
लंघन- खाने में हल्का भोजन लें। यह सुपाच्य होता है।
पीने के लिये हल्के गर्म पानी का उपयोग करें।
तिक्त रस वाली औषधियाँ लेँ जैसे गिलोय, त्रिफला, शतावरी, हरड़ इत्यादि।
धनिये के बीज (धान्यक) का काढा चीनी मिला कर लिया जा सकता है। यह पाचन में सहायक है।
नारियल पानी को 100-500 मिली तक दिन में दो बार लेना चाहिए।
3-6 ग्राम आंवले का चूर्ण पानी के साथ लिया जा सकता है।
खाने के बाद 1 चम्मच सौंफ चबा लें या सौंफ का चूर्ण एक गिलास पानी में चीनी के साथ लिया जा सकता है। यह पाचक अग्नि बढाने में सहायक है।
ठंडा दूध भी एसिडिटी कम करता है।
क्या खाएं और किससे बचें - Diet for Acidity in Hindi
एसिडिटी का एक मुख्य कारण गलत खान-पान की आदतें हैं। इसीलिये आयुर्वेद में विशेषतः पथ्य-अपथ्य(क्या करें-क्या न करें) का वर्णन किया गया है। निम्न कुछ टिप्स एसिडिटी को कम करने में सहायक हैं-
नियमित समय पर हल्का भोजन करें तथा चबा-चबा कर खाये।
खाने से पहले पानी पिये।
शरीर को ठंडा करने वाले पदार्थ जैसे नारियल पानी आदि का सेवन करें।
सफेद कद्दू, करेला, खीरा,पत्तेदार सब्जियों को भोजन में शामिल करें।
गेहूं, पुराना चावल, जौ, हरा चना जैसे अनाज खाये।
आंवले, अंगूर, नीबू, अनार, अंजीर जैसे फल खाये।
अनार का रस, नींबू का रस, आंवले का रस तथा खस-खस, धनिये के बीज से बनाये गये तरल पदार्थों को पर्याप्त मात्रा में ले।
गुलकंद (गुलाब की पंखुड़ियों से बना जैम) दूध के साथ लिया जा सकता है।
एक चम्मच घी को गर्म दूध के साथ लिया जा सकता है।
पर्याप्त नींद लें और आराम करें।
मानसिक तनाव से बचने के लिये योग, प्राणायाम, ध्यान का सहारा लेँ ।
अम्लपित्त मुख्य रूप से पित्त की वृद्धि के कारण होता है। इस पित्त दोष के बढ़ने का कारण तीखे और खट्टे खाद्य पदार्थों, मादक पदार्थों, नमक, गर्म और तीखे पदार्थों का अत्यधिक सेवन है जो जलन का कारण बनता है। अतः इनसे बचें।
तली-भुनी और जंक फूड वाली चीजों से परहेज करें।
भूखे न रहें। उपवास से बचें।
अधिक भोजन न करें, कम मात्रा में भूख लगने पर ही भोजन लें।
असमय और अनियमित भोजन की आदत से बचें।
चावल, दही और खट्टे फलों से बचें।
धूम्रपान, शराब, चाय, कॉफी और दर्द निवारक गोलियों के सेवन से बचें।
क्रोध, भय, आग के अत्यधिक संपर्क, सूखी सब्जियों और क्षार का सेवन, आदि से यथासंभव दूर रहना चाहिए।
एसिडिटी को लेकर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू) - FAQs
एसिडिटी के क्या-क्या काम्प्लीकेशन हो सकते हैं?
यदि समय पर इलाज नहीं किया जाता और अस्वास्थ्यकर आहार, विहार और आदतों को नहीं बदला जाता तो एसिडिटी से भयंकर बीमारियाँ हो सकती हैं यथा गैस्ट्रिक अल्सर, जीर्ण जठरशोथ, ग्रहणीशोथ, इरिटेबल बावल सिंड्रोम, एनीमिया, पेप्टिक स्टेनोसिस इत्यादि।
एसिडिटी से बचने के लिये क्या उपाय अपनाये जा सकते हैं?
आयुर्वेद में निदान परिवर्जन को प्राथमिक चिकित्सा बताया गया है, अतः एसिडिटी से बचने के लिये भी इसके कारणों से बचना चाहिये।
अत्यधिक नमकीन, तैलीय, खट्टे और मसालेदार भोजन से बचें।
भारी और असमय भोजन से बचें।
धूम्रपान और शराब के सेवन से बचें।
आहार में जौ, गेहूं, पुराना चावल शामिल करें।
बासी और दूषित भोजन से बचें।
भोजन ठीक से पकाया जाना चाहिए।
मानसिक तनाव से बचने के लिये ध्यान आदि का पालन करें।
क्या पंचकर्म एसिडिटी को ठीक करने में मदद करेगा?
हाँ, यह शरीर को साफ करता है तथा उत्क्लेशित पित्त को संतुलित करता है।
संदर्भ:
अष्टांग हृदयम् १ / त्रिपाठी ब्रह्मानंद; चौखम्बा संस्कृत प्रतिष्ठान, दिल्ली, प्रथम संस्करण।
चरक संहिता, त्रिपाठी ब्रह्मानंद, चौखम्बा प्रकाशन, वाराणसी, प्रथम संस्करण।
भावप्रकाश निघंटु - श्रीभावप्रकाश सम्पादन विद्यादिनी हिंदी भाष्य श्री ब्रह्मसंस्कार मिश्र और श्री रूपलालजी वैश्य।
सुश्रुत संहिता; घनेकर भास्कर; मेहरचंद लछमणदास प्रकाशन, नई दिल्ली, संस्करण।
विजय रक्षित कन्ठदत्त, माधव निदान, चौखम्बा प्रकाशन, वाराणसी।
www.webmd.com
माइग्रेन दुनिया में सबसे सामान्य न्यूरोलॉजिकल बीमारियों में से एक है। कोरोना महामारी और लॉकडाउन के दौरान, माइग्रेन के रोगियों को स्वास्थ्य सेवायें प्राप्त करने में भारी समस्या का सामना करना पडा। ऐसे समय में इसकी रोकथाम के लिये लोगों ने विभिन्न घरेलू आयुर्वेदिक उपाय अपनाये।
आयुर्वेद में माइग्रेन - Migraine in Ayurveda
आयुर्वेद में माइग्रेन को अर्धावभेदक के रूप में वर्णित किया गया है। इसमें माइग्रेन के इलाज के लिए विभिन्न प्रक्रियाओं को समझाया गया। आयुर्वेद में माइग्रेन के उपचार के लिए योग, स्वस्थ जीवन शैली और हर्बल उपचार का उपयोग भी बताया गया। तो आइये समझते हैं माइग्रेन क्या है, यह किन कारणों से होता है और इसके लिये क्या आयुर्वेदिक उपाय अपनाये जा सकते हैं।
विषय - सूची
माइग्रेन क्या है
माइग्रेन के लक्षण
माइग्रेन के कारण
निदान
माइग्रेन के सामान्य उपाय
क्या खाएं और किससे बचें
अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
माइग्रेन क्या है - Migraine defination in Hindi
आयुर्वेद में 11 प्रकार के शिरो रोगों का वर्णन किया गया है, अर्धावभेदक भी इनमें से एक है। इस रोग में कपाल के आधे हिस्से में भेदने जैसा अत्यंत कष्टदायी दर्द महसूस होता है। ज़रूरी नहीं है कि इस दर्द की एक नियमित अवधि हो। कभी-कभी यह 10 दिनों या एक पखवाड़े के नियमित अंतराल पर भी आता है।
माइग्रेन त्रिदोष के असन्तुलन के कारण होता है, जो मुख्यतः वात-पित्त दोष के असंतुलन या आम (विषाक्त पदार्थों) के संचय के कारण होता है। यह तंत्रिका तंत्र की कार्यप्रणाली, स्मृति, एकाग्रता और फोकस को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। इसके अलावा इससे आंखों का स्वास्थ्य खराब, अनियमित नींद चक्र या अनिद्रा एवम व्यक्ति की उत्पादकता कम होती है।
माइग्रेन के लक्षण - Migraine Symptoms in Hindi
माइग्रेन का सबसे मुख्य लक्षण है, "अर्धशीर्ष वेदना", जिसका अर्थ है सिर के आधे क्षेत्र में दर्द।
इसके अलावा ग्रीवा क्षेत्र(गर्दन), भौंहें, कान, आंख और ललाट में तीव्र वेदना होती है। इस विकार से पीड़ित लोगों को चक्कर आना और आँखों के लाल होना के साथ दर्द का अनुभव होता है।
माइग्रेन बचपन, किशोरावस्था या शुरुआती वयस्कता में शुरू हो सकता है। इसमें चार चरण हो सकते है: प्रॉडोम, ऑरा, अटैक और पोस्ट-ड्रोम।
प्राथमिक अथवा प्रारम्भिक लक्षण: माइग्रेन के लक्षण जो सिरदर्द शुरू होने के एक या दो दिन पहले शुरू होते हैं, उन्हें प्रोड्रोम स्टेज कहते हैं।
डिप्रेशन
भोजन की अधिक इच्छा
थकान
उबासी लेना
अधिक सक्रियता
चिड़चिड़ापन
गर्दन में अकड़न
ऑरा: ऑरा के साथ माइग्रेन, प्रॉडोम स्टेज के बाद होता है। ऑरा के दौरान रोगी को दृष्टि, चलने-फिरने और बोलने में समस्या हो सकती है।
बोलने में कठिनाई
चेहरे, हाथ या पैर में सनसनाहट
प्रकाश में चमक या चमकीले धब्बों का दिखना
अस्थायी रूप से दिखना बंद होना
शोर सुनना
दौरे आना
अटैक: माइग्रेन के अटैक के कारण इस चरण में सबसे गंभीर दर्द होता है।
प्रकाश और ध्वनि की संवेदनशीलता बढ़ना
जी मिचलाना
बेहोश होने जैसा महसूस करना
सिर के एक तरफ दर्द, या तो बाएं, दाएं, आगे या पीछे
उल्टी
पोस्टड्रोम: इस स्टेज के दौरान, रोगी के मनोभाव और भावनाएँ बदल सकती हैं, जैसे कि बहुत खुशी, बहुत थकान और उदासीनता महसूस करना।
माइग्रेन के कारण Migraine Causes in Hindi
आयुर्वेद में दर्द को वात दोष का लक्षण बताया गया है और जब यह मस्तिष्क के तंत्रिका तंत्र में संचित होता है तो यह माइग्रेन का कारण बनता है। बाहरी उत्तेजना जैसे अत्यधिक शोर, प्रकाश और तनाव सभी माइग्रेन दर्द को बढ़ाने में योगदान देते हैं। कमजोर पाचन भी एक कारक है जो शरीर में आम को बढ़ाता है और शरीर और मस्तिष्क में रक्त के उचित परिसंचरण को रोकता है।
यह कहा जाता है कि माइग्रेन मस्तिष्क में असामान्य गतिविधि के परिणामस्वरूप होते हैं। यह नसों के संचार के साथ-साथ मस्तिष्क में रसायनों और रक्त वाहिकाओं को भी प्रभावित कर सकता है। आनुवंशिक कारण भी किसी को अधिक संवेदनशील बना सकते हैं जो माइग्रेन का कारण बन सकती है। हालांकि निम्नलिखित ट्रिगर्स माइग्रेन बढाने की संभावना रखते हैं:
हार्मोनल बदलाव:महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान बदलते हार्मोन के स्तर के कारण माइग्रेन के लक्षणों का अनुभव हो सकता है ।
भावनात्मक ट्रिगर: तनाव, अवसाद, चिंता, उत्तेजना आदि भी माइग्रेन को ट्रिगर कर सकते हैं।
शारीरिक कारण: थकान और अपर्याप्त नींद, कंधे या गर्दन में तनाव, खराब मुद्रा और अत्यधिक शारीरिक गतिविधि सभी को माइग्रेन से जोड़ा गया है। निम्न रक्त शर्करा और जेट लैग भी ट्रिगर के रूप में कार्य कर सकते हैं।
आहार में ट्रिगर: शराब और कैफीन भी माइग्रेन को ट्रिगर कर सकते हैं। कुछ विशिष्ट खाद्य पदार्थों से भी यह हो सकता है, जिसमें चॉकलेट, पनीर, खट्टे फल, और एडिटिव टाइरामाइन वाले खाद्य पदार्थ शामिल हैं। अनियमित भोजन और निर्जलीकरण को संभावित ट्रिगर बताया गया है।
दवाएं: कुछ नींद की गोलियाँ, हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (एचआरटी) दवाएं, और संयुक्त गर्भनिरोधक गोली सभी संभावित ट्रिगर्स हैं।
पर्यावरण: तेज़ी से बदलती स्क्रीन, तेज़ गंध, धुआं, और शोर से माइग्रेन बढता है। तापमान में परिवर्तन और तेज़ रोशनी भी माइग्रेन बढाते हैं।
माइग्रेन के निदान - Migraine Treatment
माइग्रेन के निदान के लिए कई मापदंड और परीक्षण हैं। माइग्रेन का निदान आम तौर पर विभिन्न माइग्रेन के लक्षणों के आधार पर किया जा सकता है जैसे वे कितने समय तक होते हैं और कितने समय तक चलते हैं। यह निर्धारित करने में मदद करेगा कि आपके लक्षणों के अन्य कारणों का पता लगाने के लिए कौन से परीक्षण आवश्यक हैं। इसके लिये कुछ परीक्षण किए जा सकते हैं उनमें एमआरआई, सीटी / कैट स्कैन, कंप्यूटेड टोमोग्राफी, रक्त और मूत्र विश्लेषण, साइनस एक्स-रे, ईईजी, नेत्र परीक्षा आदि शामिल हैं।
माइग्रेन के सामान्य उपाय - Migraine Home Remedies
स्वस्थ जीवन शैली का पालन करके माइग्रेन और अन्य प्रकार के सिरदर्द को रोका जा सकता है। नियमित रूप से नींद लेना, दिनचर्या और नियमित काम करने की आदतें, माइग्रेन ट्रिगर करने वाले कारणों से बचना माइग्रेन की आवृत्ति और गंभीरता को कम कर सकता है। स्वस्थ जीवनशैली के लिये निम्न उपाय अपनाये:
सुबह की दिनचर्या: नियमित मल त्याग करना, दांतों को ब्रश करना / फ्लॉस करना, मसूड़ों की मालिश करना, नाक के मार्ग की सफाई, त्वचा पर दैनिक तेल की मालिश करना, तेल से कानों की मालिश करना, ध्यान का अभ्यास करना।
उचित नींद लेना: उचित नींद पैटर्न का अर्थ है कि व्यक्ति को प्रकृति के अनुसार बिस्तर पर जाना चाहिए और उठना चाहिए। वात प्रकृति के लोगों को सूर्य के साथ जागना चाहिए, पित्तज प्रकृति को सूर्य से आधा घंटा पहले और कफज प्रकृति के लोगो को सूर्य से एक घंटे पहले उठना चाहिए। सभी को 10:00 बजे तक सो जाना चाहिये।
स्वस्थ खाने के दिशानिर्देशों का पालन करें: स्वस्थ भोजन के लिए सामान्य दिशानिर्देशों में उचित भोजन करना, बिना किसी व्याकुलता के भोजन करना, पूरे मन के साथ भोजन करना, भोजन को सही से चबाना शामिल है। सुनिश्चित करें कि भोजन गर्म हो। भोजन के साथ केवल थोड़ी मात्रा में तरल पदार्थ पीएं और कोल्ड ड्रिंक से बचें। भोजन के बाद आराम करने के लिए हमेशा कुछ समय लें और भोजन को पाचन के लिए 3-5 घंटे का समय दें।
स्ट्रेस (तनाव) प्रबंधन: किसी को भी ऐसे कारकों से बचना चाहिए जो तनाव को उत्पन्न करते हैं और दोष को असंतुलित करते हैं। तनाव उत्प्रेरण कारकों में शामिल हो सकते हैं:
शारीरिक तनाव जैसे अधिक व्यायाम, उपवास, थकावट, अनुचित शारीरिक मुद्राएँ, चोट / आघात।
मनोवैज्ञानिक तनाव जैसे क्रोध, चिंता / घबराहट, उत्तेजना, भ्रम, दुःख, भय।
लंबे समय तक सूरज या गर्मी के संपर्क में आने जैसे पर्यावरणीय तनाव।
तनाव से बचाव सबसे अच्छा तरीका है। कुछ रसायन जड़ी-बूटियाँ शारीरिक / मानसिक शक्ति और प्रतिरक्षा को बेहतर बनाती हैं। कई रसायन जड़ी बूटियों में एंटीऑक्सिडेंट, इम्युनोमोड्यूलेटर, हेपेटोप्रोटेक्टिव, एंटीडिप्रेसेंट प्रभाव दिखाई देते हैं। इस तरह की जड़ी-बूटियों के कुछ उदाहरण शतावरी, ब्राह्मी, शंख पुष्पी, आंवला, अश्वगंधा हैं।
नियमित व्यायाम: माइग्रेन के दर्द की तीव्रता को कम करने के लिए नियमित दैनिक व्यायाम प्रभावशाली साबित हुआ है। हालांकि, व्यायाम की तीव्रता, आवृत्ति, अवधि और प्रकार के साथ-साथ वार्म अप समय महत्वपूर्ण कारक हैं जिनकी निगरानी करने की आवश्यकता होती है और यह सिरदर्द को कम करते हैं। माइग्रेन के लिए आइसोमेट्रिक व्यायाम बहुत फायदेमंद है।
सिरदर्द के लिए योग: चूंकि माइग्रेन और तनाव दोनों में सिरदर्द पैदा करने के लिए तनाव एक महत्वपूर्ण कारक है, इसलिए योग संदेह के बिना इस प्रकार के सिरदर्द को रोकने में मदद कर सकता है। योग गर्दन, पीठ और सिर की मांसपेशियों में तनाव को भी कम करता है। योग मन को शांत करने में मदद करता है। इसमें विपरीतकरणी, अर्ध हलासन, जानू शीर्शासन, पश्चिमोत्तानासन, मत्स्य क्रीड़ासन व अन्य योग आसन माइग्रेन और तनाव से बचाव में सहायक होते हैं। इसके बाद दोनों हाथों की हथेलियों को आपस में रगड़ना चाहिये जब तक कि वे गर्म महसूस न करें और धीरे-धीरे दोनों आँखों पर रखना चाहिये।
ध्यान: तनाव और माइग्रेन दोनों सिरदर्द में तनाव का बहुत बड़ा योगदान है। ध्यान तनाव को कम कर सकता है।
प्राणायाम (साँस लेने के व्यायाम): विभिन्न प्रकार के प्राणायाम का शरीर, मन और आत्मा पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। अनुलोम-विलोम, शीतली प्राणायाम एवम कपाल-भाति अत्यंत फायदेमंद हैं।
क्या खाएं और किससे बचें- Diet for Migraine in Hindi
माइग्रेन के सिरदर्द के लिए विशिष्ट उपचार विकल्पों के अलावा खान-पान पर भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। इसके लिए निम्न बातों का ध्यान रख सकते हैं।
घर में बना ताज़ा गर्म भोजन ही करे।
भोजन हल्के तेल या घी में पकाया हुआ होना चाहिये।
अपने भोजन में ओमेगा-3 फैटी एसिड वाले खाद्य पदार्थ जैसे- सालमन मछली, अलसी के बीज, ओलिव तेल, अखरोट शामिल करे।
नियमित रूप से पानी पीते रहे। डिहाइड्रेशन भी माइग्रेन को बढाने में सहायक है।
नियमित रूप से भोजन लेते रहे, ज़्यादा समय तक भोजन न लेना भी सरदर्द को बढाता है।
दूध में एक चम्मच घी डाल कर रात को सोने से पहले ले सकते हैं।
आंवला, नीम, हल्दी आदि माइग्रेन को कम करने में सहायक है, अतः इन्हे लेते रहे।
अदरक की चाय भी माइग्रेन को कम करती है।
नारंगी, पीली और हरी सब्जियां, जैसे कि शकरकंद, गाजर और पालक, ब्राउन राइस, सूखे या पके हुए फल, जैसे चेरी और क्रैनबेरी ये माइग्रेन में खायी जा सकती हैं।
माइग्रेन को ट्रिगर करने वाले खाद्य पदार्थ हर व्यक्ति में अलग हो सकते हैं और इन खाद्य पदार्थों को खोजने से माइग्रेन को कम करने में मदद मिल सकती है।
कुछ सामान्य ट्रिगर खाद्य पदार्थों में डेयरी उत्पाद (गाय का दूध, बकरी का दूध, पनीर, दही आदि), चॉकलेट, अंडे, मांस, खट्टे फल, गेहूं, नट, टमाटर, प्याज, मक्का, सेब, केला, मादक पेय शामिल हैं (विशेष रूप से रेड वाइन), कैफीन युक्त पेय, बीटा - फेनिलथाइलामाइन (जैसे चॉकलेट), मोनोसोडियम ग्लूटामेट (एमएसजी), एस्पार्टेम स्वीटनर्स, नाइट्राइट्स, टाइरामाइन युक्त खाद्य पदार्थ।
माइग्रेन को लेकर अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)- FAQs
1)अपने चिकित्सक को कब दिखाना ज़रूरी होता है?
जब आपको हर महीने 15 दिनों से अधिक समय तक सिरदर्द रहता है, या माइग्रेन आपके जीवन को प्रभावित करने लगे तो डॉक्टर को अवश्य दिखाना चाहिए।
2)क्या माइग्रेन किसी गंभीर बीमारी की ओर संकेत करता है?
सिरदर्द शायद ही कभी गंभीर स्थिति की ओर संकेत करे परंतु निम्न लक्षण एक गंभीर स्थिति का संकेत हो सकते हैं:
अनियंत्रित उल्टी
दौरे पडना
स्तब्ध हो जाना
दुर्बलता
बोलने में परेशानी
गर्दन में अकड़न
धुंधला या दोहरा दिखाई देना
चेतना नाश
3)माइग्रेन से पहले दृष्टि और सुनने में क्यों बदलाव आते हैं?
इन परिवर्तनों को माइग्रेन का एक फेज़ कहा जाता है। ये लक्षण जो कुछ लोग माइग्रेन से ठीक पहले अनुभव करते हैं। इसमें वे ज़िगज़ैग पैटर्न देख सकते हैं, अजीब शोर सुन सकते हैं, या अपने शरीर में झुनझुनी जैसी असामान्य उत्तेजना महसूस कर सकते हैं।
दस्त, डायरिया या अतिसार: Diarrhea, Loose Motion or Atisara in Hindi
डायरिया (Diarrhea) या दस्त एक सामान्य सी लगने वाली बीमारी भले लगती हो, लेकिन न जाने प्रतिवर्ष इस सामान्य सी दिखने वाली व्याधि से कितने ही मासूमों की जान तक चली जाती है। डायरिया वह व्याधि (disease) है जिसमे गुदा मार्ग से बार-बार जल की अधिकता वाले मल का त्याग (Loose Motion) होता है। यह एक स्वतंत्र व्याधि होने के साथ-साथ अन्य व्याधियों (जैसे ग्रहणी जिसे एलोपैथी में इर्रिटेबल बोवेल सिंड्रोम के नाम से जाना जाता है) में लक्षण स्वरुप भी देखने को मिलता है । आयुर्वेद में इसे अतिसार (atisara) कहते है जिसका कारण पाचकाग्नि (digestive) का धीमा हो जाना और वात दोष (Vata Dosha) का दूषित हो जाना है।
डायरिया या दस्त के लक्षण: Diarrhea Symptoms in Hindi
गुदा मार्ग से जल की अधिकता वाले मल का त्याग होना।
पेट में दर्द होना।
जी मिचलाना।
मूत्र तथा स्वेद की प्रवृति कम हो जाना।
शरीर में कमजोरी महसूस होना।
अधिक मात्रा में मल की प्रवृति होने पर डिहाइड्रेशन के लक्षण जैसे मुँह सुखना, शरीर में रूक्षता होना , चक्कर आना आदि लक्षणो का होना ।
डायरिया में चिकित्सीय परामर्श कब ले? When to see your Doctor for Diarrhea in Hindi
आमतौर पर डायरिया कुछ दिनों में लगभग 3 से 4 दिनों में खुद ही सही हो जाता है लेकिन जब डायरिया 3-4 दिनों के अंतराल में ठीक न हो और साथ में मल के साथ पस, ब्लड या फिर म्यूकस निकलता हो और डिहाइड्रेशन में भी लक्षण नजर आने लगे तो शीघ्र ही चिकित्सा से संपर्क करना चाहिए।
डायरिया या दस्त के कारण: Diarrhea Causes in Hindi
अत्यधिक मात्रा में गुरु आहार अर्थात पचने में भारी चीजों का सेवन करना ।
पहले किये गए भोजन के बिना पचे हुए ही फिर से भोजन कर लेना ।
दूषित जल तथा मद्य ।
भय, शोक, विषमासन (अकाल में भोजन करना ) ।
कई प्रकार के बैक्टीरिया , वायरस जैसे साल्मोनेला, रोटा वायरस का संक्रमण ।
कई व्याधिया जैसे अल्सरेटिव कोलाइटिस , इर्रिटेबल बोवेल सिंड्रोम ।
डायरिया से बचाव: Diarrhea Prevention in Hindi
डायरिया करने वाले सभी कारणों का त्याग करना।
भोजन करने से पहले तथा शौच के बाद हाथों को अच्छे से साबुन व पानी से धोना।
बैक्टीरिया वायरस आदि के संक्रमण से बचाव हेतु सफाई का ध्यान रखे।
रोटा वायरस जिसकी वजह से हर वर्ष बहुत से बच्चे डायरिया से पीड़ित होते है उस रोटा वायरस से बचाव हेतु बच्चों को रोटा वायरस की वैक्सीन लगाए और आयुर्वेद में वर्णित सुवर्ण प्राशन संस्कार कराये।
डायरिया के घरेलू उपाय? Diarrhea Home remedies in Hindi
हरड़ को पानी में उबालकर प्रयोग करे।
छाछ में भुना हुआ जीरा और काला नमक मिलाकर पिए।
कच्चे केले को उबालकर मुलायम कर ले और उसमे काला नमक मिलाकर खांए।
डायरिया में क्या करे?
लघु व सुपाचित आहार का सेवन करे।
तरल पदार्थों जैसे निम्बू पानी ओ आर अस का पर्याप्त मात्रा में सेवन करे।
शुरुआत में एक दो बार मल का त्याग होने दे।
डायरिया में क्या न करे?
पचने में भारी चीजों का सेवन न करे।
शुरुआत में ही मल को रोकने वाली दवाइयों का सेवन न करे।
डायरिया संबंधित प्रश्न और उत्तर (FAQ)
प्रश्न -क्या डायरिया के कारण मौत हो सकती है?
उत्तर - हां डायरिया के कारण मौत हो सकती है क्योकि डायरिया में जल की अधिकता वाले मल का त्याग होता है और अगर रोगी डायरिया होने पर पर्याप्त मात्रा में पानी न पिए तो शरीर में पानी की कमी होने से व्यक्ति की मृत्यु तक हो सकती है।
प्रश्न -डायरिया का मुख्य लक्षण क्या है?
उत्तर -डायरिया का मुख्य लक्षण गुदा मार्ग से बार बार जलीय मल का त्याग होना है।
प्रश्न -क्या डायरिया होने पर तुरंत दवाई खा लेनी चाहिए?
उत्तर -अगर व्यक्ति का बल अच्छा है और उसके शरीर में डिहाइड्रेशन के कोई लक्षण न हो तो तीन चार बार मल का त्याग हो जाने के बाद ही दवा लेनी चाहिए परन्तु यदि व्यक्ति के शरीर का बल अल्प हो और साथ में डिहाइड्रेशन के लक्षण भी हो तो तुरंत ही चिकित्सक से संपर्क कर दवा ले लेनी चाहिए।
प्रश्न -सामान्य रूप से होने वाले स्टूल, लूज़ स्टूल और डायरिया में क्या अंतर है?
उत्तर -सामान्य रूप से प्रतिदिन होने वाले मल की कंसिस्टेंसी सेमि सॉलिड होती है जबकि लूज स्टूल और डायरिया में निकलने वाले मल में जल की अधिकता रहती है , लेकिन लूज स्टूल और डायरिया इन दोनों में से अधिक खतरनाक डायरिया होता है।
प्रश्न -आयुर्वेद में डायरिया का क्या उपचार है?
उत्तर -आयुर्वेद में डायरिया की आम और पक्व अवस्था देखकर रोगी का लंघन करा के फिर दीपनीय और पाचनीय दवाओँ का अर्थात पाचन शक्ति को बढ़ाने वाली तथा दोषो का पाचन करने वाली दवाओं का प्रयोग करा जाता है।
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