Heavily processed, oily and junk food cause problems like acidity, bloating, and gas. They cause excess production of acid in the stomach by the gastric glands. The over secretion of this acid leads to a sensation of burning in the stomach, causes stomach aches, constipation and even loss of appetite in some cases.
Practicing yoga regularly will get you on the path towards good health, longevity, fitness, increased stamina, and boost immunity as well. Grand Master Akshar shares four simple yoga ashanas that can help get rid of bloating and boost digestion.
Vajrasana
The only pose that can be done right after a meal, can be performed on a full stomach.
Formation of the posture
Stand in Samasthithi, slowly breathing in and out
You may keep your eyes closed
Keep your arms straight by your side
Slowly open your eyes and kneel down on your mat
Sit on your heels turning your toes outward
Keep your heels close
Place your palms on your knees facing
Keep your spine erect and look forward
Hold this asana for a while
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Malasana
Formation of the posture
From Samasthiti, bend your knees and lower your pelvis
You are in a full squat position
Keep your feet flat on the ground and knees apart
Stretch your arms out ahead resting them on the knees
Spine is erect
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Eka Paad Badha Malasana
Formation of the posture
From Samasthiti, bend your knees and lower your pelvis
You are in a full squat position
Keep your feet flat on the ground and knees apart
Stretch your right arm up and wrap it around your right knee from the outside
Lock your right hand from behind with your left
Look ahead keeping your spine as erect as possible
Repeat on the other side
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Dandasana
Formation of the posture
Sit with your legs stretched out
Activate your toes keeping them in a flexed position
Back remains straight
Stretch out both arms holding them parallel to the floor
The expert says: "Yoga postures are designed to optimize the functioning of the internal organs keeping your body free from toxins, and working smoothly. Yoga can also be an excellent way to boost your digestive system as the practice of yoga keeps away stress."(Puja Gupta)
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टाइफाइड, एक प्रकार की संक्रामक बीमारी है जो साल्मोनेला टाइफी नामक बैक्टीरिया की वजह से होती है। यह बीमारी मुख्य रूप से बरसात के दिनों में ज़्यादा देखने को मिलती है। भूख न लगना और तेज बुखार आना इस बीमारी के मुख्य लक्षण है। यह एक ऐसे बीमारी है जिससे विकासशील देशो जैसे भारत आदि में लगभग १० लाख लोग , उनमे भी बच्चे ज़्यादा पीड़ित होते है जबकि विकसित देशों में यह कम देखने को मिलता है।
आयुर्वेद में टाइफाइड - Typhoid in Ayurveda in Hindi
वैसे तो आयुर्वेद की अपनी व्याधियाँ है जो वातादि दोषों में असंतुलन की वजह से होती है। फिर भी यदि मोटे मोटे तौर पर देखा जाये तो टाइफॉइड के लक्षण आयुर्वेद में वर्णित कफ प्रधान सन्निपातज संतत ज्वर के लक्षणों से समानता रखते है। यह संतत ज्वर दोषो के बल अबल के आधार पर सात , दस तथा बारह दिनों में या तो सही हो जाता है या फिर कभी कभी दोषो के अत्यधिक कुपित हो जाने रोगी की मृत्यु तक का कारण बन जाता है। इस ज्वर का मुख्य लक्षण यह होता है की यह दिन रात में दो बार आता है।
टाइफाइड के लक्षण - Symptoms of Typhoid in Hindi
बुखार
सर दर्द
भूख न लगना
शरीर में लाल रंग के चक्कत्ते हो जाना
उल्टी तथा दस्त होना
पेट में दर्द होना
शरीर में कमजोरी और दर्द होना
टाइफाइड के कारण - Cause of Typhoid in Hindi
साल्मोनेला टाइफी बैक्टीरिया का संक्रमण
टाइफॉइड संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आना
टाइफाइड से बचाव - Prevention of Typhoid in Hindi
वैसे तो टाइफॉइड के लिए वैक्सीन उपलब्ध है लेकिन कभी कभी वैक्सीन के बाद भी टाइफॉइड हो जाता है इसलिए साफ सफाई का ध्यान रख कर और कुछ छोटी छोटी बातो ध्यान रख कर टाइफॉइड से बचा जा सकते है। टाइफॉइड से बचाव हेतु निम्न बातो का ध्यान रखना चाहिए -
नियमित रूप अर्थात खाना खाने से पहले , टॉयलेट का प्रयोग करने के बाद हाथो को पानी तथा साबुन से धोये ; पानी या साबुन उपलब्ध न होने पर एल्कोहल युक्त सैनिटाइज़र का प्रयोग करे।
पानी को उबालकर पिए।
कच्चे फल तथा सब्जियों का सेवन न करे।
टाइफाइड फीवर डायग्नोसिस - Typhoid Fever Diagnosis in Hindi
सी.बी. सी ( कम्पलीट ब्लड सेल काउंट )
विडाल टेस्ट
स्टूल कल्चर
टाइफी डॉट आई जी एम
टाइफाइड से बचाव के लिए घरेलु उपचार - Home Remedies to Prevent Typhoid in Hindi
बुखार को कम करने के लिए सर पर ठन्डे पानी की पट्टियों का प्रयोग करे।
पानी की कमी को दूर करने के लिए एक लीटर पानी को उबालकर उसमे नमक और चीनी मिलाकर पीते रहे।
तुलसी (जिसमे की एंटीबायोटिक गुण पाए जाते है ) को पानी में उबालकर उसका काढ़ा प्रयोग करे।
षडङ्गपानी अर्थात मोथा , पित्तपापड़ा , खस , रक्त चन्दन , सुगंदबाला और सौंठ से सिद्ध किया हुआ पानी पिए।
क्या करे? - What to Do in Hindi
पानी को उबालकर प्रयोग करे।
ताज़ा तथा गर्म भोजन का सेवन करे।
पचने में हलके भोजन का सेवन करे जैसे पतली दाल , पतली सब्जी , खिचड़ी आदि।
क्या न करे? - What Not to Do in Hindi
पचने में भारी चीजों जैसे दूध , पनीर आदि का सेवन न करे।
अल्कोहल का सेवन न करे।
दही का सेवन न करे।
खुले में मिलने वाले भोज्य पदार्थो जैसे खुले में मिलने वाले समोसे , कचौड़ी , चाट आदि का सेवन न करे।
प्रश्न उत्तर - Question & Answer in Hindi
प्रश्न- टाइफॉइड होने पर तुरंत हो लैब इन्वेस्टीगेशन करा लेनी चाहिए ?
उत्तर- वैसे तो चिकित्सक लक्षण देख कर ही लैब इन्वेस्टीगेशन कराता है फिर भी यदि आप खुद से बिना चिकित्सक को दिखाए टाइफॉइड का अंदेशा होने पर खुद से लैब इन्वेस्टीगेशन कराना चाहे तो तुरंत न करा कर के कुछ दिन व्यतीत हो जाने पर करानी चाहिए क्योकि इसका इन्क्यूबेशन पीरियड् तीन दिन से लेकर १०- १४ दिन का होता है यदि तुरंत ही लैब इन्वेस्टीगेशन करा ली जाये तो रिपोर्ट सटीक नहीं आ पाती है।
प्रश्न- टाइफॉइड मुख्य रूप से किन लोगो को होने की सम्भावना होती है ?
उत्तर- टाइफॉइड वैसे तो किसी को भी सकता है लेकिन बच्चों और ऐसे लोग जिनका पाचन तंत्र कमजोर होता है उनको टाइफॉइड होने की ज्यादा सम्भावना होती है।
प्रश्न- टाइफॉइड या अन्य कोई व्याधि होने पर खुद से ही आयुर्वेदिक दवा ले लेना कितना सही है?
उत्तर- आधुनिक डायग्नोसिस के आधार पर तथा बिना ये जाने की रोगी व्यक्ति के शरीर में कौन से दोष का असंतुलन हुआ है , चिकित्सा करने पर या रोगी द्वारा खुद ही सोशल मीडिया में देख कर किसी भी आयुर्वेदिक दवा का सेवन करना बिल्कुल भी सही नहीं है खुद से दवा लेने के कई दुष्परिणाम हो सकते है इसलिए टाइफॉइड हो या अन्य कोई व्याधि शरीर में व्याधि के लक्षण दिखाई देने पर किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह पर ही आयुर्वेदिक दवाई का सेवन करे।
प्रश्न- यदि टाइफॉइड के लिए उपचार न लिया जाये तो क्या क्या कॉम्प्लीकेशन्स हो सकते है ?
उत्तर- टाइफॉइड होने पर इलाज न करने या देरी से इलाज करने पर मुख्य रूप से जो कॉम्प्लीकेशन्स हो सकते है वो है -
पाचन तंत्र के किसी भाग से आंतरिक रक्तस्राव होना।
पाचन तंत्र के किसी हिस्से में परफोरेशन हो जाना तथा परफोरेशन की वजह से इन्फेक्शन का आस पास के हिस्सों में भी फ़ैल जाना।
प्रश्न- आयुर्वेद में टाइफॉइड के लिए क्या उपचार उपलब्ध है ?
उत्तर- टाइफॉइड के लक्षण आयुर्वेद में वर्णित सन्निपातज प्रधान कफज संतत ज्वर से मिलते है तथा इसकी चिकित्सा में दोष , दुष्य , काल , प्रकृति आदि को देखते हुए अपतर्पण अर्थात लंघन चिकित्सा कराने का वर्णन मिलता है।
रक्तचाप अर्थात ब्लड प्रेशर का कम या जयदा होना, दोनों ही स्वास्थ के लिए हानिकारक होता है। ब्लड प्रेशर जयदा हो तो इसे हाइपरटेंशन या उच्च रक्त दाब कहा जाता है तथा इसके विपरीत यदि ब्लड प्रेशर कम हो तो इसे निम्न रक्त दाब या हाइपोटेंशन के नाम से जाना जाता है।
वैसे तो हाइपो तथा हाइपरटेंशन दोनों ही स्वास्थ की दृष्टि से हानिकारक होते है लेकिन इन दोनों में भी हाइपोटेंशन जयदा नुकसानदायक होता है , क्योकि बहुत से लोगो में हाइपोटेंशन से सम्बंधित लक्षण या तो बहुत देर से दिखाई देते है या फिर दिखाई ही नहीं देते है इसलिए हाइपरटेंशन से ज़्यादा हाइपोटेंशन हानिकारक होता है।
हाइपोटेंशन के प्रकार - Types of Hypotension in Hindi
प्राइमरी हाइपोटेंशन- बिना किसी बीमारी अथवा बिना किसी निश्चित कारण के होता है। इसे एसेंशियल हाइपोटेंशन भी कहते है। लगातार थकान तथा कमजोरी बने रहना इसका मुख्य लक्षण है।
सेकेंडरी हाइपोटेंशन- इस हाइपोटेंशन का कारण मायोकार्डियल इन्फार्क्शन, ट्यूबरक्लोसिस, नर्वस डिसऑर्डर्स, पिट्यूटरी तथा एड्रेनल ग्रंथि का कम सक्रिय होना ये सब होते है।
हाइपोटेंशन के लक्षण - Symptoms of Hypotension in Hindi
1. चक्कर आना
2. सर घूमना
3. जी मिचलाना
4. आँखों से धुंधला दिखाई देना
5. अधिक नींद आना
6. पूरे शरीर में थकान तथा कमजोरी का अनुभव होना
7. लम्बे समय तक बैठने या लेटने के बाद उठने पर आँखों के सामने अँधेरा सा छा जाना
8. ऊंचाई वाले स्थानो में जाने पर सांस लेने में कठिनाई होना या सांस फूलना
9. किसी भी कार्य को करने में मन न लगना अर्थात मन एकाग्रचीत न होना
10. हाथ पैर ठन्डे पड़ जाना
11. धड़कन का अनियमित होना अर्थात कभी कम तो कभी जयादा हो जाना
चिकित्सीय परामर्श कब ले? - When to Seek Medical Advice in Hindi?
स्फिग्मोमेनोमीटर के द्वारा नापे जाने पर यदि आपका ब्लड प्रेशर ९०/६० mmhg या इससे कम आये तथा साथ में चक्कर आना , थकान होना , आँखों के सामने अँधेरा छाना जैसे लक्षण न हो तो आपको चिकित्सक को दिखाने की जरूरत नहीं होती है लेकिन यदि ब्लड प्रेशर ९०/६०mmhg या इससे कम हो और साथ में थकान होना, आँखों के सामने अँधेरा छा जाना आदि लक्षण भी हो तो चिकित्सक से संपर्क कर के ब्लड प्रेशर कम होने के कारण का पता लगा उपचार लेना चाहिए।
हाइपोटेंशन के कारण - Causes of Hypotension in Hindi
1. किसी बीमारी ( जैसे अतिसार आदि ) की वजह से या कम मात्रा में तरल पदार्थो का सेवन करने से शरीर में पानी की कमी अर्थात डिहाइड्रेशन हो जाना।
2. डेंगू , मलेरिआ आदि किसी बीमारी के कारण या किसी दुर्घटना के कारण शरीर में खून की कमी हो जाना।
3. हृदय सम्बंधी कोई विकार होना।
4. प्रेगनेंसी
5. एंडोक्राइन डिसऑर्डर्स जैसे डायबिटीज, थाइरोइड ग्रंथि के विकार से ग्रसित होना।
हाइपोटेंशन डायग्नोसिस - Hypotension Diagnosis in Hindi
हाइपोटेंशन के निदान के लिए कोई विशेष टेस्ट नहीं कराया जाता है। चिकित्सक रोगी के लक्षणों के आधार पर तथा sphygmomanometer के द्वारा रोगी का ब्लड प्रेशर चेक कर के हाइपोटेंशन का निदान करते है। इसके अतिरिक्त हाइपोटेंशन हृदय सम्बंधित बीमारियों की वजह से है या किसी एंडोक्राइन डिसऑर्डर्स जैसे डायबिटीज, थाइरोइड आदि की वजह से इसका पता लगाने के लिए चिकित्सक ई . सी .जी तथा रक्त सम्बन्धी टेस्ट कराते है।
हाइपोटेंशन होने पर क्या करे और क्या न करे? - What to do and what not to do when you have hypotension in Hindi?
1. कॉफ़ी का सेवन करे।
2. अपने आहार में सैंधा नमक़ का प्रयोग करे अर्थात फलों तथा सब्जी में ऊपर से नमक़ लगा के खाये।
3. अल्कोहल का सेवन न करे।
4. शरीर में पानी की कमी न होने दे।
5. पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थो जैसे निम्बू पानी, अनार, गाजर, चुकुन्दर आदि का जूस रूप में या सूप रूप में सेवन करे।
6. थकाने वाले काम अधिक न करे।
हाइपोटेंशन से निजात के लिए घरेलु उपाय - Home Remedy for Relieving Hypotension in Hindi
1. दूध के साथ ख़ज़ूर का सेवन करे।
2. आंवले का प्रयोग जूस या किसी अन्य रूप में करे।
3. गाजर , चुकुन्दर के जूस का सेवन करे।
4. अदरक के छोटे छोटे टुकड़े कर उनमे सैंधा नमक मिलाकर खाये।
5. किसमिस तथा चने का सेवन करे।
प्रश्न उत्तर - Question & Answer in Hindi
प्रश्न- हाइपोटेंशन से ग्रसित होने पर किडनी तथा मस्तिष्क अंगो पर बुरा प्रभाव पडता है?
उत्तर- हां , हाइपोटेंशन होने पर यदि उपचार न किया जाने तो किडनी तथा मस्तिष्क आदि अंगो पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न- यदि अचानक से किसी का ब्लड प्रेशर कम हो जाये तो क्या करना चाहिए?
उत्तर- यदि अचानक से किसी का ब्लड प्रेशर कम हो जाये उस व्यक्ति को तुरंत निम्बू पानी देना चाहिए या फिर उसको लेटा कर उसके पैर की तरफ वाले हिस्से को थोड़ा ऊचां कर देना चाहिए। चिकित्सीय भाषा में इसे फुट एन्ड रेज(foot end raise ) करना बोलते है।
प्रश्न- हाइपोटेंशन होने पर दवाओं का सेवन करना जरूरी है या यह खुद ही सही हो जाता है?
उत्तर- दवाओं का सेवन करना है या नहीं यह इस बात पर निर्भर करता है की हाइपोटेंशन का कारण क्या है , क्या सिर्फ स्फिग्मोमेनोमीटर में ही ब्लड प्रेशर कम आ रहा है या साथ में कोई लक्षण भी है।
मिसकैरेज, यह एक ऐसा शब्द है जिसके बारे में लगभग सभी लोगो ने फिल्मो में या वास्तिक जीवन में सुना ही होगा। चिकित्सीय भाषा में इसे स्पॉन्टेनियस एबॉर्शन बोला जाता है। गर्भावस्था के २० सप्ताह पुरे होने के पहले ही अर्थात भ्रूण के पूर्ण रूप से विकसित होने से पहले ही गर्भावस्था का सहज ही समाप्त हो जाना ही मिसकैरेज कहलाता है। यह महिला को शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से नुकसान देने वाला तथा दर्दनाक होता है।
प्रकार-
1. Threatened
2. Inevitable
3. Complete
4. Incomplete
5. Missed
आयुर्वेद के अनुसार मिसकैरेज - Miscarriage According to Ayurveda in Hindi
आयुर्वेद में मिसकैरेज का वर्णन गर्भस्राव नाम से आया है। चरक आदि सभी आचार्यो ने गर्भस्राव का वर्णन इस प्रकार किया है- गर्भावस्था के चौथे महिने तक अर्थात जब गर्भ द्रव रूप में होता है उस समय गर्भ के स्वस्थान से अलग होकर गिरने को गर्भस्राव कहते है।
मधुकोष व्याख्याकार भोज ने गर्भस्राव की मर्यादा तीन महिने तक मानी है।
मिसकैरेज के लक्षण
1. गर्भाशय , कटी (क़मर ), वंक्षण प्रदेश में दर्द होना।
2. योनि मार्ग से दर्द के साथ या बिना दर्द के रक्त स्राव होना।
3. मूत्र संग अर्थात मूत्र का रुक जाना।
चिकित्सीय परामर्श कब ले ? - When to Seek Medical Advice in Hindi?
वैसे तो मिसकैरेज होने का अंदेसा होने पर तुरंत या कुछ समय पश्चात ही डाक्टरी सलाह लेनी चाहिए परन्तु यदि मिसकैरेज होने पर आपको रक्त स्राव तथा दर्द होने से अलग यदि बुखार , ठण्ड लगाना , शरीर में कम्पन होना आदि लक्षण दिखाई दे तो तुरंत बिना देर किये हुए चिकित्सीय परामर्श लेना चाहिए क्योकि ये लक्षण शरीर में होने वाले इन्फेक्शन की ओर इशारा करते है और यदि समय रहते इन्फेक्शन सही न किया जाये तो आगे चलकर महिला को काफी परेशानियों का सामना करना पड सकता है।
मिसकैरेज के कारण - Causes of Miscarriage in Hindi
आधुनिक चिकित्सा शास्त्रियों के अनुसार ५० % मिसकैरेज आनुवंशिक कारणों से , १०-१५ % अन्तःश्रावी (एंडोक्राइन ) तथा चयापचय (मेटाबोलिक) कारणों जैसे - luteal phase defect(LPD), thyroid abnormalities like hypo or hyperthyroidism, diabetes से , १०-१५% ऐनाटॉमिकल विकृतियों जैसे सर्वाइकल इंकपेटेंस , congenital malformation of the uterus , uterine fibroid से , ५% rubella , Chlamydia जैसे इन्फेक्शन्स की वजह से तथा ५-१०% इम्युनोलॉजिकल डिसऑर्डर्स के कारण होते है।
आयुर्वेद के अनुसार मिसकैरेज के कारण - Causes of Miscarriage in Ayurveda in Hindi
1. महिला का पुत्रघ्नी , वामिनी , अप्रजा जैसे योनि विकारो से ग्रसित होना।
2. गर्भ धारण के पश्चात भी अधिक मात्रा में व्यायाम करना
3. विषम स्थान अर्थात उबड़ खाबड़ रास्तों से पैदल चलकर या गाड़ी से जाना।
4. अधिक मात्रा में गर्म भोज्य पर्दार्थो जैसे मांसाहार , कच्चे पपीते , गुड़ , अखरोट , बादाम आदि का सेवन करना। ५-मैथुन करना।
5. आये हुए मल मूत्र आदि के वेगो को रोकना ।
6. उपवास करना
7. गर्भाशय , रज तथा शुक्र में किसी प्रकार की विकृति होना
8. क्रोध
9. शोक
10. भय
मिसकैरेज के डायग्नोसिस - Diagnosis of Miscarriage in Hindi
1. सोनोग्राफी (टी . वी .एस )
2. यूरिन एनालिसिस
3. कम्पलीट ब्लड सेल काउंट (सी. बी. सी. )
मिसकैरेज से बचाव - Prevention of Miscarriage in Hindi
1. यदि आपको योनि मार्ग से सम्बंधित या फिर माहवारी से सम्बंधित कोई बीमारी हो तो पहले उसका उपचार कराये।
2. गर्भ धारण के पश्चात चिकित्सक द्वारा बताई बातों का पालन करे।
3. अधिक मात्रा में परिश्रम करना , गर्म चीजों का सेवन करना तथा ऐसे सभी कार्य जो गर्भ के स्राव का कारण
बनते है उनका परित्याग करना चाहिए।
प्रश्न उत्तर - Question & Answer in Hindi
प्रश्न- मिसकैरेज होने पर कितने समय तक शारीरिक सम्बन्ध नहीं बनाने चाहिए?
उत्तर- मिसकैरेज होने पर लगभग तीन से चार महीने तक सम्बन्ध नहीं बनाने चाहिए।
प्रश्न - मिसकैरेज होने के बाद दुबारा से माँ बनने की सम्भावना कितने % होती है ?
उत्तर- यदि मिसकैरेज के कारणों का पता लगा उनकी संपूर्ण चिकित्सा की जाये तथा मिसकैरेज होने के एक निश्चित समय बाद ही फिर से प्रेग्नेंट होने का सोचा जाये तो मिसकैरेज होने के बाद दुबारा से प्रेग्नेंट होने की सम्भावना ८५-९५% होती है।
प्रश्न- बार बार होने वाले मिसकैरेज का क्या कारण होता है?
उत्तर- बार बार मिसकैरेज होने के कई कारण हो सकते है जैसे किसी बीमारी (थाइरोइड , डायबिटीज आदि ) से ग्रसित होना , मोटापा आदि।
प्रश्न- मिसकैरेज के केस में आयुर्वेद उपचार कितना कारगर है ?
उत्तर- मिसकैरेज अर्थात बार बार गर्भास्राव होने पर आयुर्वेद में संशोधन चिकित्सा कर के द्वारा तथा गर्भस्राव होने के कारण का पता लगा उसको जड़ से खत्म किया जाता है। अतः मिसकैरेज के केस में आयुर्वेद का उपचार काफी कारगर है।
जॉन्डिस , सामान्य बोल चाल की भाषा में इसे पीलिया कहा जाता है। इस रोग में रक्त में बिलीरुबिन की मात्रा सामान्य से ज्यादा बढ़ जाने पर त्वचा तथा आंख के सफ़ेद भाग का रंग पीला हो जाता है। यह बीमारी नवजात शिशु तथा वयस्क दोनों में ही देखने को मिलती है। नवजात शिशुओं में इसे निओनेटल जॉन्डिस के नाम से जाना जाता है। यह निओनेटल जॉन्डिस दो प्रकार का होता है - फिजियोलॉजिकल जॉन्डिस और पैथोलॉजिकल जॉन्डिस।
आयुर्वेद में जॉन्डिस - Jaundice in Ayurveda in Hindi
आयुर्वेद में जॉन्डिस के लक्षण कामला रोग से मिलते जुलते है। आयुर्वेद के कुछ लोगो ने कामला को स्वतंत्र रोग माना है तो कुछ ने पाण्डु रोग की प्रवर्धमानावस्था को कामला माना है तथा कुछ लोगो का मानना है की कामला रोग पाण्डु तथा अन्य किसी व्याधि के बाद होने वाला उपद्रव है।
जॉन्डिस के लक्षण - Symptoms of Jaundice in Hindi
नेत्र , त्वचा , मुख एवं नाखून का वर्ण हल्दी के समान पीला हो जाना।
अपच होना अर्थात भोजन का ठीक प्रकार से न पचना।
मल तथा मूत्र का रक्त मिश्रित पीले रंग का हो जाना।
पूरे शरीर में कमजोरी होना।
अरुचि ( खाना खाने की अथवा किसी कार्य को करने की इच्छा न होना।
दाह
नासिका तथा मसूड़ो से रक्तस्राव होना।
जॉन्डिस के कारण - Causes of Jaundice in Hindi
अत्यधिक मात्रा में पित्त्तवर्धक आहार ( खट्टे , तीखे , मिर्च मसालों युक्त ) का सेवन करना।
किन्ही कारणों के चलते या मलेरिआ , ब्लैक वाटर फीवर जैसे रोगो से ग्रसित होने के कारण अधिक मात्रा में रक्त कणों का नष्ट हो जाना।
यकृत सम्बंधित बिमारियों जैसे अल्कोहलिक हेपेटाइटिस , अल्कोहलिक सिरोसिस से ग्रसित होना।
पित्त ( बाइल जूस ) का वहन करने वाली नली का पित्ताश्मरी ( गॉल ब्लैडर स्टोन ) के कारण ब्लॉक हो जाना।
लिवर पर बुरा प्रभाव डालने वाली दवाइयों जैसे पेनिसिलिन , बर्थ कण्ट्रोल पिल्स और स्टेरॉइड्स का अधिक मात्रा में प्रयोग करना।
जॉन्डिस डायग्नोसिस - Jaundice Diagnosis
सी बी सी (कम्पलीट ब्लड सेल काउंट )
एल अफ टी( लिवर फंक्शनल टेस्ट )
क्या करे?
पचने में आसान चीजों का सेवन करे।
तक्र का सेवन करे।
उबली हुए सब्जी का सेवन करे।
दलिया , पोहा , उपमा , बेसन का चीला , हरी पत्तेदार सब्जी , मूली , नारियल पानी आदि चीजों को अपने आहार में शामिल करे।
खाने में कम मात्रा में सैन्धा नमक का प्रयोग करे।
क्या न करे?
अल्कोहल का सेवन न करे।
दूध या दूध से बने खाद्य पर्दाथ का सेवन न करे।
अधिक मात्रा में फिजिकल वर्क न करे।
कच्ची सब्जी का प्रयोग न करे।
जॉन्डिस के घरेलू उपाय - Home Remedies for Jaundice in Hindi
प्रातः काल आंवले या आंवले के जूस का सेवन करे।
करेले का जूस तिक्त रस होने से पित्त दोष का शमन करने से कामला में उपयोगी होता है अतः इसका सेवन करे।
ऐसे फलों का सेवन करे जो अग्नि ( डाइजेस्टिव पावर ) को बढ़ाये जैसे पपीता , अन्नानास आदि।
गन्ने के जूस का सेवन करे यह यकृत को बल देता है।
एक चम्मच भूने हुए जौ का चूर्ण और एक चम्मच शहद को आपस में मिलाकर गुनगुने पानी के साथ लेने से यह योग शरीर में संचित आम को कम करने में मदद करता है।
प्रश्न उत्तर - FAQ's
प्रश्न- निओनेटल जॉन्डिस के क्या क्या कॉम्प्लीकेशन्स हो सकते है?
उत्तर- निओनेटल जॉन्डिस को सामान्य समझ के अगर उपचार न किया जाये तो नवजात शिशु का ब्रेन डैमेज होने के साथ साथ वह सेरिब्रल पाल्सी , बहरापन से भी ग्रसित हो सकता है।
प्रश्न- जॉन्डिस होने पर अल्कोहल और मांसाहार का सेवन करना चाहिए ?
उत्तर- जॉन्डिस होने पर अल्कोहल और मांसाहार में साथ साथ ऐसे किसी भी खाद्य पदार्थ का प्रयोग नहीं करना चाहिए जो पचने में भारी हो या जिसके सेवन से यकृत पे बुरा प्रभाव पढ़े।
प्रश्न- क्या जॉन्डिस होने से किसी की मृत्यु भी हो सकती है?
उत्तर- हाँ , जॉन्डिस होने पर यदि व्यक्ति समय रहते उचित उपचार न कराये तो मृत्यु भी हो सकती है।
प्रश्न- उपचार के पश्चात् जॉन्डिस सही हो जाने पर पुनः जॉन्डिस हो सकता है ?
उत्तर- उपचार के पश्चात् यदि जॉन्डिस करने वाले कारणों का त्याग नहीं किया जाये या उपचार करते समय सिर्फ लक्षणों की चिकित्सा कर, जॉन्डिस होने के मूल कारण की चिकित्सा न की गयी हो तो एक बार ठीक होने पर भी पुनः जॉन्डिस होने की सम्भावना रहती है।
प्रश्न- जॉन्डिस सही हो जाने के पश्चात कितने समय तक पथ्य पालन करना होता है?
उत्तर- जॉन्डिस सही हो जाने पर पथ्य पालन कितने समय तक करना होगा ये रोगी व्यक्ति के शारीरिक बल और अग्नि बल पर निर्भर करता है। सामान्यतया रोग सही हो जाने पर दो से तीन महीने तक पथ्य पालन करते हुए धीरे धीरे सामान्य आहार लेना चाहिए।
प्रश्न- जॉन्डिस के केस में आयुर्वेदिक उपचार कितना कारगर है ?
उत्तर- जॉन्डिस हो या अन्य कोई व्याधि सभी में आयुर्वेदिक उपचार काफी कारगर है क्योकि आयुर्वेद रोग के लक्षण की चिकित्सा करने के साथ साथ रोग के मूल कारण की भी चिकित्सा करता है। जॉन्डिस को आयुर्वेद में कामला नाम से बोला गया है तथा जॉन्डिस होने पर मृदु विरेचन देने और पथ्य अपथ्य के द्वारा चिकित्सा करने का वर्णन मिलता है।
आए दिन बहुत से लोग किसी न किसी प्रकार के त्वक विकार से जूझते रहते है , जिसमे से कुछ त्वचा विकार किसी संक्रमण के कारण होते है तो कुछ खान पान और बिगड़ी आहार शैली के कारण होते है। इन्ही त्वक विकारो में से एक त्वक विकार है शीतपित्त/अर्टीकेरिआ। वैसे तो अर्टीकेरिआ किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है लेकिन मुख्यतया यह मिडिल ऐज के लोगो में देखने को मिलता है। इसमें मुख्यतया मुख तथा हाथो और पैरो की त्वचा में रक्त वर्ण के ततैये से काटने के समान चकक़ते हो जाते है। इन चक्कतो की विशेषता यह होती है कि यह खुद ही गायब हो जाते है और निदान सेवन करने पर फिर से खुद ही प्रकट हो जाते है। ये चक्कते ज़्यादातर खुजली युक्त होते है तथा इनके आकार और माप में भिन्नता देखने को मिलती है।
शीतपित्त / अर्टीकेरिआ के प्रकार - Types of Urticaria in Hindi
एक्यूट अर्टीकेरिआ- एलर्जेन के संपर्क में आने पर कुछ मिनट के बाद ही त्वचा में चक्कते उत्पन्न हो जाते है जो कुछ घंटो से लेकर कुछ हफ्तों ( ६ हफ्तों से कम समय में ) तक बने रहते है।
क्रोनिक अर्टीकेरिआ- जब उत्पन्न चक्कतें ६ हफ्तों से ज्यादा समय तक बने रहे तो इसे क्रोनिक कहते है।
आयुर्वेद में इसे शीतपित्त के नाम से जाना जाता है और इसका मुख्य कारण शीतल हवा के स्पर्श से अथवा शीतल हवा के संपर्क में आने से कफ तथा वात दोष का प्रकुपित हो जाना है। इस बीमारी में मुख्य रूप से त्वचा के ऊपर ततैया के काटने जैसा शोथ उत्पन्न हो जाता है।
शीतपित्त/ अर्टीकेरिआ के लक्षण - Symptoms of Urticaria in Hindi
त्वचा के ऊपर ततैया के काटने के समान शोथयुक्त चक्कते होना।
अधिक मात्रा में कण्डू ( खुजली ) और सुई चुभोने के समान पीड़ा होना।
छर्दि (उल्टी) , ज्वर , दाह आदि होना।
चिकत्सीय परामर्श कब ले? - When to Get a Medical Consultation?
अमूमन शीतपित्त का प्रभाव कुछ मिनटों तक रहकर खुद ही समाप्त हो जाता है लेकिन कभी कभी यह खुद से समाप्त न हो तथा शीतपित्त मुँह और गले में होने से व्यक्ति को सांस लेने में कठिनाई हो रही हो तो शीघ्र ही चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।
शीतपित्त/अर्टीकेरिआ के कारण - Causes of Urticaria in Hindi
ठंडी और गर्म चीजों का एक साथ सेवन करना।
शीतल हवा का स्पर्श
छर्दि (उल्टी ) को रोक के रखना।
विकृत मांस , मछली , अंडे का सेवन करना।
किसी विशेष प्रकार के पौधो के पॉलेन ग्रेन , जानवरो की लालास्राव आदि के सम्पर्क में आ जाना।
अत्यधिक मात्रा में व्यायाम करना।
दूध या दूध से बने खाद्य पदार्थो , अंडा , मछली , चॉकलेट आदि से एलर्जी होना।
किसी प्रकार का तनाव होना।
कुछ दवाइयों जैसे पेनिसिलिन ए सी इ इन्हिबिटर्स आदि का अधिक मात्रा में प्रयोग करना।
अधिक समय तक पानी में रहना।
शीतपित्त / अर्टीकेरिआ डायग्नोसिस - Urticaria Diagnosis
कम्पलीट हीमोग्राम
ब्लड केमिस्ट्री
सीरम आई . जी . ई . लेवल्स
शीतपित्त / अर्टीकेरिआ के लिए घरेलु उपाय - Home Remedy for Urticaria in Hindi
सरसों के तैल से मसाज करे।
प्रभावित स्थान में एलो वेरा जेल का प्रयोग करे।
एक चम्मच अदरख के जूस को दो चम्मच शहद के साथ मिलाकर दिन में दो तीन बार पिए।
एक चम्मच हल्दी पाउडर को एक गिलास पानी में मिलाकर हल्दी वाला पानी बनाये और इस पानी का सेवन दिन में दो से तीन बार करे।
खुजली के लिए लगभग आधा चम्मच अजवाइन को एक चम्मच गुड़ के साथ दिन में तीन बार खाये।
दो गिलास पानी में एक चम्मच खाने का सोडा मिलाकर इससे प्रभावित स्थान में स्पंज करे।
क्या करे? (शीतपित्त में क्या खाना चाहिए)
पीने के लिए हल्के गुनगुने पानी का प्रयोग करे।
पुराने शालि चावल , मूगं , कुल्थी , करेला , काली मिर्च , दाड़िम , हल्दी आदि को अपने आहार में शामिल करे।
क्या न करे? (शीतपित्त में परहेज)
प्रभावित स्थान में साबुन का प्रयोग न करे।
धूप , शीतल हवा में जाने से बचे।
पचने में भारी आहार , मछली अंडा , मद्य आदि का सेवन न करे।
दिन में न सोयें।
उलटी के वेग को न रोके।
रात में कड़ी का सेवन न करे।
खट्टी , तीखी और नमक वाली चीजों का अधिक सेवन न करे।
प्रश्न उत्तर - FAQ's
प्रश्न- एक बार अर्टीकेरिआ सही हो जाने पर त्वचा पे कोई निशान रहते है ?
उत्तर- नहीं , अर्टीकेरिआ के सही ही जाने पर त्वचा में किसी प्रकार का कोई निशान नहीं रहता है।
प्रश्न- अर्टीकेरिआ का मुख्य लक्षण क्या है?
उत्तर- अर्टीकेरिआ का मुख्य लक्षण त्वचा पे ततैये से काटने के समान लालिमा छा जाना और तीव्र कण्डु ( खुजली ) होना है।
प्रश्न- अर्टीकेरिआ के लिए आयुर्वेद में क्या उपचार उपलब्ध है ?
उत्तर- आयुर्वेद में को अर्टीकेरिआ शीतपित्त के नाम से जाना जाता है और इस बीमारी में पथ्य पालन के साथ साथ अभ्यंग , स्वेदन , वमन , विरेचन तथा रक्तमोक्षण कराने का निर्देश है।
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