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इम्यूनिटी का मानसिक तनाव से सीधा सम्बन्ध - डॉ. सुनील आर्य

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By NS Desk | 28-Dec-2021

dr. sunil arya

डॉ. सुनील आर्य - Dr. Sunil Arya, MD, Ayurveda

महर्षि चरक ने लगभग  चार-पाँच हज़ार साल पहले  सुझाया था  ‘विषादो रोगवर्धनानाम्’। मतलब रोग बढ़ाने में तनाव  सबसे बड़ा कारण है ! यानि जो रोग बढ़ाएगा  वो ‘इम्यूनिटी’ घटाएगा ! 

ये सुनकर हम सब लोग  मुँह बिचका कर बुदबुदा देंगे  ‘हाँ हाँ पता ही है इसमें क्या ख़ास है?‘ 

लेकिन बात यहीं से शुरू होती है...

पिछले पचीस-तीस वर्षों में चिकित्सा विज्ञान ने तनाव  की करामात रोग बढ़ाने में  जानी है ,पहचानी है , साबित की है !  दिमाग़ की घुमावदार खाइयों  में कैसा कैसा पानी रिसता  रहता है। ये आम आदमी नहीं  जानता लेकिन चिकित्सा वैज्ञानिक  अच्छी तरह जानते हैं कि ये Neurotransmitters / हॉर्मोन  मन-शरीर की हरेक गतिविधि, उत्तेजनाएँ, भावुकताएँ, चिंतन,  बौद्धिकता, नींद, भूख, प्यास, उत्साह, नींद और जो कुछ भी  आप कह सोच सकते हैं, पर नियंत्रण करते हैं।   

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मोटे तौर पर दो समूहों में  आप इन्हें बाँट सकते हैं - तनाव से बढ़ने और  तनाव को बढ़ाने वाले  और दूसरा समूह इसके उलट।  एक समूह का हॉर्मोन बढ़ेगा तो  दूसरा अपने आप घटेगा .. ऐसा नहीं होता कि दोनों एक  साथ बढ़ें । 

एंडोरफ़िन उत्साह और ख़ुशी  बढ़ाने लिए ज़िम्मेदार है , हैपी हॉर्मोन कहलाता है ,  हीलिंग हॉर्मोन भी कहते  हैं  कोई व्यक्ति उदास बैठा  हो  उसे बिना मन के भी सौ मीटर तेज दौड़ने को भेजिए वो लौट कर  आएगा तो एंडोरफ़िन बढ़ने  की वजह से उसका मूड बदल  चुका होगा , ये प्रयोग स्वयं  पर भी आज़माया जा सकता है ! 

ऐसे ही डोपामिन , ओक्सिटोसिन, टेस्टास्टरोन,अड्रेनलिन ..अलग  अलग तरह  से अच्छेपन का  प्रभाव देते हैं । जो तनाव से बढ़ने व बढ़ाने  वाले हॉर्मोन होते हैं जैसे कॉर्टिसोन , ये शरीर में ऑक्सिजन की माँग  बढ़ाते हैं ,शरीर में तरल का  संचय बढ़ाते हैं ,वजन बढ़ाते हैं , शुगर, बी पी ,कोलेस्ट्रोल बढ़ाते हैं, नींद उड़ाते हैं वग़ैरह वग़ैरह ..  सोचने की बात ये है कि चरक  की बात से यहाँ क्या ताल्लुक? 

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Neuro Endocrinological Axis दिमाग़ में बुना एक ऐसा  कमाल का ताना बाना है जो  थोड़ा समझने से चरक की ये  बात स्पष्ट  हो जाती है  ..दिमाग़ की कोशिकाओं के ये neurotransmitters होते  तो केमिकल ही हैं लेकिन वे  दिमाग़ की दूसरी कोशिकाओं , माँसपेशियों और ग्रंथि कोशिकाओं  के लिए संदेशवाहक का काम  करते हैं ,उनके संदेशों की  वजह से हृदय गति का बढ़ना, श्वसन गति का बढ़ना , सूजन  बढ़ाने की प्रक्रिया का शुरू होना , ऐलर्जी की प्रक्रिया होना ,  उत्तेजनाएँ , अवसाद आदि की  स्थितियों का शुरू होना होता है।   

अब वो संदेश उन तीनों तरह की कोशिकाओं के लिए उत्तेजक (Excitatory) होंगे या  अवसादक (Inhibitory) होंगे  ये निर्धारित होता है मन में चल  रहे चाहे-अनचाहे विचारों से ,  सोच  से , ख़्यालों से , कल्पनाओं से .. ये ना दिखने वाली कल्पनाओं  को शरीर  पर दिखने वाले प्रभावों  में बदलने की क्षमता रखते हैं .. इसीलिए केन्सर जैसे घातक  और असाध्य रोग  में भी यदि  विचार सकारात्मक हों  तो परिणाम बेहतर होता है ये बार बार साबित  हुआ है और यही इस कोविड काल  में भी देखा गया है कि कोविड  से बचाव और इलाज में उत्साह ,  आत्मविश्वास और सकारात्मकता का महत्वपूर्ण प्रभाव होता है। इसी से इम्यूनिटी के घटने-बढ़ने  या घटाने-बढ़ाने के लिए प्रयास  करने को जोड़ा जा सकता है  और  ये सकारात्मक चिंतन  बाज़ार  में नहीं मिलता लेकिन अभ्यास से पाया भी जा सकता   है ..  कोई पूछे कैसे हो ? तो कहिए ‘ बहुत आनंद में हूँ’ अरे कहिए तो  ..  कुछ ही दिनों में इसका प्रभाव स्वयं दिख जाएगा !! 

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डिस्क्लेमर - लेख का उद्देश्य आपतक सिर्फ सूचना पहुँचाना है. किसी भी औषधि,थेरेपी,जड़ी-बूटी या फल का चिकित्सकीय उपयोग कृपया योग्य आयुर्वेद चिकित्सक के दिशा निर्देश में ही करें।