By NS Desk | 17-Dec-2020
कोरोना माहमारी ने आज सभी की सोच मे व्यापक परिवर्तन किया है. स्वास्थ्य के सभी समीकरण बदल रहे हैं जहां पहले आयुर्वेद को लेकर कुछ भ्रांतिया व संशय था वो अब धीरे धीरे पूर्ण आस्था व विश्वास में बदल रहा है. भारत ही नहीं पूरे विश्व के लोगों के बीच आयुर्वेद व परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों पर विश्वास पहले से अधिक हुआ है.
डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के अनुसार आज भी भारत में लगभग 80% जनता आयुर्वेद, योग नेचरोपैथी व अपने आयुष पद्धतियों पर भरोसा करती है और प्राथमिक उपचार के लिए इन्ही पद्धितियो का सहारा लिया जाता है. किंतु भारत सरकार की नीतियों के आयुर्वेद समेत अन्य आयुष पद्धतियों के विकास पर ना ध्यान ना देने के कारण बहुत से लोग मजबूरियों में एलोपैथी चिकित्सा की शरण में जाते रहे हैं. किंतु कोरोना माहमारी काल में जिस तरह से आयुर्वेद व अन्य आयुष पद्धतियां ने प्रभावी तौर पर कोरोना के उपचार व रोकथाम मैं अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है, उससे समस्त विश्व के लोगों में आयुर्वेद व अपनी परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों में भरोसा बढ़ा .
पहले आयुर्वेदिक चिकित्सकों व सामान्य जन के मध्य एक भ्रांति थी कि आयुर्वेद के माध्यम से इनफेक्शियस रोग, ज्वर आदि का उपचार सफलता से नहीं हो सकता वही इस कॉल में आयुर्वेद औषधियों के माध्यम से विभिन्न चिकित्सकों ने करोना के हजारों मरीजों को सफलतापूर्वक ठीक करके इस भ्रांति को भी सदा के लिए मिटा दिया. अब आयुर्वेदिक चिकित्सको का आत्मविश्वास इतना बढ़ गया है कि आयुर्वेदिक औषधियों के द्वारा नव व जीर्ण ज्वर, मलेरिया, टाइफाइड दिमागी बुखार PUO आदि का सफल उपचार कर रहे हैं .
अब लोगों को भी लगने लगा है कि आयुर्वेदिक ही एकमात्र ऐसी चिकित्सा पद्धति है जिसमें सभी लाइव स्टार डिसऑर्डर के अलावा साइको सोमेटिक, मानसिक, आध्यात्मिक के साथ-साथ संक्रमित रोगों का भी पूर्ण इलाज संभव है जो किसी और अन्य पद्धति से संभव नहीं है . इसलिए कहा जा सकता है कि इस कोरोना काल ने आयुर्वेद समेत सभी आयुष पद्धतियों के सर्वण काल का शुभारंभ कर दिया है जिसके द्वारा भारत ही नहीं पूरे विश्व की स्वास्थ्य समस्याओ को न केवल बेहतर ढंग से सुधारा जा सकता है अपितु पूरे विश्व को रोग मुक्त भी किया जा सकता है.
(वैद्य विजय बेरीवाल के सोशल मीडिया एकाउंट से साभार)