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आयुर्वेद को कम मत समझिए, यह है सबसे तेज !

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By Dr Abhishek Gupta | 05-Jan-2019

emergency management through ayurveda

आयुर्वेद चिकित्सा और औषधियों का लोहा अब पूरी दुनिया मान रही है लेकिन आम जन में अब भी ये भ्रान्ति है कि आयुर्वेद दवाइयों का असर बहुत धीमे-धीमे होता है. आयुर्वेद के बारे में यह भ्रांति चाहे जैसे भी फैली हो, बिलकुल गलत है. आयुर्वेद असर के मामले में भी सबसे तेज है. आयुर्वेद में ऐसी बहुत सारी दवाइयाँ है जिसका असर तेजी से होता है. इस बारे में डॉ. अभिषेक गुप्ता का यह लेख काफी कुछ स्पष्ट करता है

सबसे तेज आयुर्वेद : आयुर्वेद में ऐसे अनगिनत योग हैं जो रोग पर तेजी से असर करते हैं 

आयुर्वेद के विषय में सामान्यतया ये धारणा है कि इसकी औषधियों का प्रभाव रोग पर होता तो है लेकिन थोड़ा धीरे-धीरे होता है जबकि सच्चाई यह है कि आयुर्वेद में ऐसे अनगिनत योग हैं जो रोग पर तेजी से असर करते हैं. रोग पर औषधि का असर रोग की अवधि से होता है अर्थात यदि किसी व्यक्ति का रोग 3-5 दिन पुराना है तो इसका रोग में लाभ भी 3-5 दिन में ठीक हो जाता है. इसी प्रकार किसी व्यक्ति का कोई रोग कई वर्ष कई वर्षों से तो कैसे उनको 2-3 दिन में लाभ पहुंचाया जा सकता है? इसके लिए चाहे कोई भी चिकित्सा पद्धति क्यों न हो उसके प्रयोग के बाद औषधियों का असर आने में थोड़ा समय तो लगेगा ही. आयुर्वेद की औषधियों की एक विशेषता ये है कि इसकी औषधियों का दुष्प्रभाव नगण्य होता है व रोग का समूल नाश संभव है. आयुर्वेद चिकित्सा की इन्हीं विशेषताओं को इस लेख के माध्यम से रेखांकित करने की कोशिश है. इस संदर्भ में नीचे कुछ औषधियों के नाम दिया गया है जिनका प्रभाव तेजी से और सफलतापूर्वक होता है.

बसंतकुमार रस (Basant Kumar Ras)

यह हृदय के लिए लाभदायक होता है और साथ ही बलवर्धक भी है. यह रस स्वर्ण, मोती, अभ्रक, रससिन्दू आदि बलवर्धक औषध द्रव्यों के संयोग से मिलकर तैयार होता है. इसका प्रभाव मधुमेह, प्रमेह, श्वेत प्रदर, हृदय, फेफड़ों के रोग व् शुक्र से संबंधित विकारों में होता है. हृदय की कमजोरी, मस्तिष्क निर्बलता, नींद न आना, खून की कमी, क्षय रोग व जरा (बुढ़ापा) अवस्था में इसका प्रयोग विशेष लाभकारी है. मधुमेह रोग की यह प्रसिद्द औषधि है. किसी प्रकार के रक्तस्त्राव में इसका प्रयोग अनार शरबत, दाड़िमावलेह, आंवला मुरब्बा या गुलकंद के साथ देने पर शीघ्र लाभ होता है. अत्यधिक रक्तस्त्राव में भी यह विशेष लाभदायक है. जिन लोगों का रक्त देर से जमता है या बी.टी. (ब्लीडिंग टाइम), पी.टी. (प्रोथाम्बिन टाइम) व आइएनआर रेशियो ( inr ratio) अधिक होता है ऐसी अवस्था में रक्त को गाढ़ा करने के लिए वसंतकुसुमाकर रस बहुत लाभकारी है. इन्द्रियों की शक्ति बढ़ाने, रस रक्तादी धातुओं की वृद्धि कर हृदय, मस्तिष्क को बल प्रदान करने, शारीरिक कांति बढ़ाने में , शुक्र और ओज को बढाकर यह रसायन स्वास्थ्य को स्थिर करता है.

त्रिवंग भस्म (Trivang Bhasma)

यह भस्म तीन भस्मों से मिलाकर तैयार होती है. शुद्ध नाग, शुद्ध वंग व शुद्ध यशद को समान मात्रा में लेकर इस भस्म को तैयार किया जाता है. मूत्रवह स्रोतस से संबंधित रोगों में इस भष्म के प्रयोग से विशेष लाभ होता है. यह भष्म विशेषकर मूत्रवाहिनी नली पर असर करती है. प्रमेह विकार में त्रिवंग भस्म का बहुत अच्छा प्रभाव होता है. वैसे तो मधुमेह में सिर्फ नाग भष्म का प्रयोग लाभदायक होता है किन्तु जिन मधुमेह रोगियों में सन्धि स्थानों (जोड़ों) में दर्द, मन्दाग्नि शारीरिक कमजोरी, प्रमेह पीड़िकायें जैसे समस्याएं हो उनमें त्रिवंग भस्म बहुत लाभ करती है. यह भस्म वीर्यवर्धक है जिन स्त्रियों में गर्भधारण शक्ति कमजोर हो या गर्भ न ठहरता हो ऐसी स्थिति में यह भष्म विशेष लाभकारी है. श्वेतप्रदर में भी यह भष्म विशेष लाभकारी है.

शिलाजीत (Shilajit)

शिलाजीत के विषय में एक भ्रांति है कि इसका प्रयोग मर्दाना कमजोरी में करना चाहिए. कुछ औषधि निर्माता फार्मेसी अपने व्यवसाय व इस उत्पाद की बिक्री को बढ़ाने के लिए ऐसा भ्रामक प्रचार करते हैं जबकि सच्चाई ये है कि शिलाजीत बहुत ही उन्नत किस्म का रसायन है जिसका प्रयोग शरीर के नाड़ी दौर्बल्य व मधुमेह / प्रमेह ( डायबिटीज) के रोगों में अमृत तुल्य है. मधुमेह के रोगी यह शिकायत करते हैं कि उन्हें शारीरिक थकान महसूस होती है या पैरों में जलन या सूनापन रहता है. ऐसे रोगियों में शिलाजीत का प्रयोग गिलोय सत्व, जामुन गुठली चूर्ण व हरिद्रा के साथ करने पर विशेष लाभ होता है. कुछ रोगियों में शिलाजीत के प्रयोग से अतिसार या पेट में जलन पैदा हो जाता है. ऐसे रोगियों में इसका प्रयोग अल्प मात्रा में शाम के समय दूध के साथ करना चाहिए.

अर्जुनारिष्ट (Arjunarishta)

अर्जुनारिष्ट का प्रयोग हृदय से संबंधित रोगों में विशेष लाभकारी है . इसका लाभ बढे हुए ब्लड प्रेशर में भी मिलता है. जिन हृदय रोगियों को घबराहट, बेचैनी, मुंह सूखना, शरीर में पसीना आना, नींद कम आना, अनियमित रक्तचाप की समस्या रहती है ऐसे ह्रदय रोगियों में इसका प्रयोग विशेष लाभदायक होता है.

अकीक पिष्टी (Akik pishti)

अकीक एक प्रकार का खनिज पत्थर है. यह पिष्टी ह्रदय और मस्तिष्क को बल देने तथा वात पित्त शामक होती है, यह यकृत से संबंधित विकारों में भी लाभदायक होती है. इसके अतिरिक्त यह वातजन्य उन्माद, मूर्छा, सभी प्रकार के रक्तस्त्राव, व्रण, अश्मरी को नष्ट करने में समर्थ हैं. ये नेत्रों की ज्योति को बढ़ाने में भी सहायक है. अकीक के ब्राह्य या आभायान्तर प्रयोग से ह्रदय रोग से पीड़ित रोगियों को विशेष लाभ मिलता है. कुछ वैद्य ह्रदय रोगियों अकीक का लाकेट बनाकर भी पहनाते हैं. अकीक का ह्रदय क्षेत्र पर लेपन ह्रदय रोगियों के लिए बहुत लाभदायक होता है. हाई कोलेस्ट्रोल के रोगियों में इसके प्रयोग से सफल परिणाम मिलते हैं.

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डिस्क्लेमर - लेख का उद्देश्य आपतक सिर्फ सूचना पहुँचाना है. किसी भी औषधि,थेरेपी,जड़ी-बूटी या फल का चिकित्सकीय उपयोग कृपया योग्य आयुर्वेद चिकित्सक के दिशा निर्देश में ही करें।