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एक आयुर्वेदिक चिकित्सक के पास ये गुण अनिवार्य रूप से होने चाहिए

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By NS Desk | 17-Dec-2020

Ayurvedic physician qualities

आज भारत सरकार कई सालों से दबे हुए आयुर्वेद को आजादी देने में लगी है तो मैं आज आपको आयुर्वेद में भविष्य के वैद्य को क्या सूचना दी जाती है वह बता रहा हूं, आज एक आदर्श डॉक्टर की पहचान करना मुश्किल है। आयुर्वेद में हर अध्याय मे वैद्य को सूचना दी जाती है, जो एक आदर्श चिकित्सक के पास होना चाहिए।  उनमें से, कुछ लिख रहा हूँ कि एक आयुर्वेदिक चिकित्सक के पास अनिवार्य यह गुण होने चाहिए।

दक्ष: प्रतिभाशाली, बुद्धिमान, कुशल, विश्लेषणात्मक, विवेकशील - डॉक्टर को बुद्धिमान होना चाहिए और एक स्थितिजन्य समझ होनी चाहिए।  उसे रोगी और परिचारकों से सभी स्पष्ट जानकारी इकट्ठा करने के लिए पर्याप्त बुद्धिमान होना चाहिए और एक सटीक निदान तक पहुंचने के लिए स्थिति को पढ़ने और सहसंबंधित करने में सक्षम होना चाहिए।  वह रोगी के कैडर के अनुसार सही दवा और उपचार का विकल्प बनाने में सक्षम होना चाहिए।  उसे अपनी पहुंच से बाहर की स्थितियों को सही समय पर अपने सीनियर वैद्य तक पहुंचाने में सक्षम होना चाहिए।

शास्त्रार्थो: परिपूर्ण सैद्धांतिक ज्ञान- बुद्धिमान चिकित्सक वह है जिसने अध्ययन के सभी संभावित विकल्पों के लिए अपने आप को आत्मसमर्पण कर दिया है और ज्ञान का दास है। उसे रोग, रोग और चिकित्सा का सही सैद्धांतिक ज्ञान होना चाहिए।  उन्हें प्रतिष्ठित संस्थानों से सीखा होना चाहिए और अच्छे शिक्षकों और डॉक्टरों के तहत प्रशिक्षित होना चाहिए।  साथ ही उसे ज्ञान के सभी पहलुओं से अच्छी तरह वाकिफ होना चाहिए। जब चिकित्सा विज्ञान अपडेट हो जाता है, उसे ज्ञान को अद्यतन करने का अभ्यास होना चाहिए । उसे उतना ही अच्छा होना चाहिए जितना कि एक ही ज्ञान को आम भाषा (आम समझ) में आम आदमी को हस्तांतरित कर सके।  

आयुर्वेद बताता है कि एक बुद्धिमान, अनुभवी आयुर्वेद चिकित्सक (जैसे कि गुरुकुलों में अतीत में हुआ करते थे) के सान्निध्य में रहकर चिकित्सक को सब कुछ सीखना चाहिए। शुचि: पवित्रता, मन, शरीर और विचारों से स्वच्छ, हमने डॉक्टरों को दुर्व्यवहार, मारपीट और कई चीजों के मामले में रुग्ण के साथ दुर्व्यवहार करते देखा है।  लेकिन आयुर्वेद का कहना है कि पवित्रता एक ऐसा गुण है जिसे एक चिकित्सक को हर चीज मे रखना चाहिए।

चिकित्सक को हृदय, विचार, मन, चेतना, आत्मा और शरीर से शुद्ध एव पवित्र होना चाहिए। इससे डॉक्टर को मान्यता, नाम, प्रसिद्धि और धन सबकुछ मिलेगा।  जिस प्रकार एक माँ अपने नवजात शिशु का ख्याल रखती है उसी प्रकार वैद्य को अपने रुग्ण का ख्याल रखना चाहिए। यह सब आयुर्वेद के विद्यार्थियों को पढ़ाई के दौरान सिखाया जाता है। जय भारत, जय आयुर्वेद। (सौजन्य - शर्मा बलराम तेवानिया)

डिस्क्लेमर - लेख का उद्देश्य आपतक सिर्फ सूचना पहुँचाना है. किसी भी औषधि,थेरेपी,जड़ी-बूटी या फल का चिकित्सकीय उपयोग कृपया योग्य आयुर्वेद चिकित्सक के दिशा निर्देश में ही करें।