By NS Desk | 21-Dec-2021
संहिता अध्ययन हम चिकित्सा की दृष्टि से और चिकित्सा करने के लिये कर रहे है । केवल साहित्यिकीय दृष्टि पर्याप्त नही ।
किसी भी संहिता के केवल सारे 'अथ से इति' श्लोक पढना या बिना श्लोक पढे केवल भाषांतर पढना यह "संहिता अध्ययन" नही है।संहिता अध्ययन करते समय निम्नलिखित बाते पहले से ही नित्य ध्यान मे रहनी चाहिये :
१. संहिता अध्ययन हम चिकित्सा की दृष्टि से और चिकित्सा करने के लिये कर रहे है ।
२. केवल साहित्यिकीय दृष्टि पर्याप्त नही ।
३. जिस संहिता का अध्ययन करने जा रहे है उस संहिता का और उससे संबंधित आचार्यो का ऐतिहासिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक पर्याप्त ज्ञान अत्यावश्यक है ।
४. तन्त्रयुक्तियों का पर्याप्त ज्ञान अत्यावश्यक है ।
५. संहिता की रचना शैली एवं भाषा शैली का भी अध्ययन आवश्यक है ।
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१. अधिकरण - हर सूत्र का अधिकरण पहले निश्चित करना चाहिये । तंत्र, स्थान, अध्याय और प्रकरण कौन सा है यह देखना चाहिये। केवल किसी एक ही सूत्र का अर्थ लगाना हमेशा अव्याप्त होता है । वह सूत्र कहाँ आया है, उसके पहले और बाद मे क्या वर्णन है , विषय क्या चल रहा है यह सब देखना अनिवार्य है । जैसे -
तमके तु विरेचनम् यह सूत्रार्ध हिक्काश्वास के उपद्रवों का सूत्र है जो अध्याय के अंतिम स्तर पर वर्णित है (च.चि.१७/१२१)
२. पूरे सूत्र का विचार करना । जैसे केवल 'तमके तु विरेचनम्' इस सूत्र का केवल एक चरण पढकर अर्थ लगाना गलत हो सकता है । पूरा सूत्र जब पढेंगे तो उस सूत्र का अर्थ स्पष्ट होता है ।
३. अन्वय - गद्य और पद्य सूत्रोका यथायथ अन्वय लगाना यह आगे की अवस्था है ।
४. शब्दशः अर्थ - सूत्र का पदशः अर्थ निश्चित करना । इस के लिये विविध शब्दकोश, डिक्शनरी का उपयोग होता है ।
५. उपलब्ध टीका वाचन और विचार - उस सूत्र पर उपलब्ध सभी टीकाऐ पढकर टीकाकारों का मंतव्य देखना आवश्यक होता है । टीकाकार कभी कभी अलग ही दृष्टीसे सूत्र का वर्णन करते है । वोह भी विचार करना जरुरी है ।
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६. तन्त्रयुक्ति - संहिताकर्ता ने सूत्र रचना करते समय कौन सी तन्त्रयुक्ति का उपयोग किया है वोह विचार करना । जैसे वाक्यशेष,अर्थापत्ति,व्याख्यान,संभव इत्यादि
७. अभिप्रेतार्थ - टीका और तंत्रयुक्ति का विचार करके शब्दार्थ और अभिप्रेतार्थ निश्चित करना ।
८. वर्ण्य सूत्र का अन्य सूत्रो से संबंध - अध्ययन चल रहे सूत्र का संहिता के अन्यत्र वर्णित सूत्रो से क्या संबंध है वोह देखना । जैसे
- चरक विमान ६/१२ मे अग्नि के वर्णन पढते समय चरक चिकित्सा १५ ग्रहणी मे वर्णित सूत्रो का विचार करना ।
- चरक सूत्र ७/३६ मे सात्म्य का वर्णन पढते समय चरक विमान १, चरक सूत्र ५ और चरक शारीर ६ के सूत्रो का विचार करना ।
- तमके तु विरेचनम् इस सूत्रार्थ मे तमक पद का अर्थ के लिये पित्त के नानात्मज विकारों का च.सू.२० के सूत्र और पित्तज कास च.चि.१८/१३१ का वर्णन देखना ।
९. स्वतंत्र प्रत्यय - उस वर्ण्य विषय का अन्य आयुर्वेद के ग्रंथो मे क्या वर्णन आया है वोह देखना । जैसे -
- चरक की ऋतचर्या का वर्णन देखते समय सुश्रुत और काश्यप मे वर्णित वैशिष्ट्यपूर्ण द्विविध ऋतुक्रमों का वर्णन देखना ।
- चरक चिकित्सा गुल्म का अध्ययन करते समय, गुल्म की शल्यचिकित्सा की अवस्थाओं का वर्णन सुश्रुत संहिता से पढना ।
१०. परतंत्र प्रत्यय - वर्ण्य विषय का आयुर्वेद के अतिरिक्त अन्य उपलब्ध शास्त्रो मे से अध्ययन करना । जैसे
- दिनचर्या का अध्ययन करते समय कौटिल्य और वात्स्यायन के ग्रंथो मे वर्णित दिनचर्या का वर्णन देखना ।
- वायु की संकल्पना का अध्ययन करते समय विविध उपनिषदों मे आया हुआ वर्णन देखना ।
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११. आयुर्वेद के सूत्रो का अर्थ आधुनिक चिकित्सा शास्त्र की दृष्टी से पढना अयोग्य है । क्योंकी इन दो शास्त्रो मे कालतः बहोत बडा अंतर है और मूल विचारणीय घटक ही अलग है । अॅलोपॅथी के विचारों को अपनी जगह रखकर आयुर्वेद की दृष्टी से ही सूत्रो का अर्थ निश्चित करना आवश्यक है । जैसे रस का अर्थ प्लाझ्मा, रक्त का अर्थ ब्लड, मेद का अर्थ फॅट, शुक्र का अर्थ सीमेन, मज्जा का अर्थ बोन मॅरो ऐसे लगाना शास्त्रार्थ को दूषित कर सकता है ।
१२. अर्थ निश्चिती (अध्यवसाय) - सभी घटको के परिशीलन के बाद सूत्र का प्रमाणाधिष्ठित अर्थ निश्चय करना ।
१३. अवबोध और व्यवहार - अर्थनिश्चिती के बाद सूत्र के वर्णन का अवबोध करके उसका व्यवहार मे उपयोग करना ।
संहिता अध्ययन करते समय आवश्यक अन्य शास्त्रो का ज्ञान -
संहिता और टीका की रचना जिस काल मे हुई थी उस काल के उपलब्ध सभी शास्त्रो का स्वशास्त्र उपबृंहणार्थ जितना आवश्यक है उतना अध्ययन करना
उदा. उपनिषद,स्मृतिग्रंथ,दर्शनशास्त्र,काव्य,सुभाषित, पाकशास्त्र,कामशास्त्र,मनोविज्ञान,अध्यात्मशास्त्र, मोक्षशास्त्र शब्दकोश इत्यादि
(वैद्य अभिजित सराफ के सोशल मीडिया प्रोफ़ाइल से साभार)
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