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कीमोथेरेपी से होने वाले दर्द को कम करने के लिए बीएचयू ने सुझाया तरीका

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By NS Desk | 11-Feb-2022

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कैंसर रोगियों के उपचार में सहायक कीमोथेरेपी से रोगियों को अत्यंत दर्द झेलना पड़ता है। बीएचयू के सहयोग से आईएमएस और आईआईटी के संयुक्त शोध में इस दर्द को कम करने का तरीका ढूंढ निकाला गया है।

शोधकतार्ओं ने एक नई टीआरपीबी-1 एसआईआरएनए फामुर्लेशन योजना सुझाई है। इससे किमोथेरेपी से होने वाले दर्द को बिना किसी साइड इफेक्ट्स के नियन्त्रित किया जा सकता है। यह प्रयोग जनवरी 2022 में एक वैश्विक प्रतिष्ठित जनरल (लाइफ साइंस) में प्रकाशित हुआ है।

गौरतलब है कि कैंसर के मरीजों को काफी दर्द झेलना पड़ता है। इतना ही नहीं, इस बीमारी का इलाज भी उतना ही दर्द देने वाला होता है। कैंसर के उपचार में इस्तेमाल होने वाली विधि कीमोथेरेपी के बहुत सारे साइड इफेक्ट्स भी होते हैं, जिनमें तंत्रिकाओं का दर्द सबसे ज्यादा परेशान करने वाला होता है।

शोध में यह पाया गया है कि कि कीमोथेरेपी देने के बाद लगभग 68.1 प्रतिशत लोगों को तंत्रिकाओं में दर्द की शिकायत पाई जाती है। दर्द कम करने वाली दवाओं का भी कीमोथेरेपी से उत्पन्न दर्द पर खास असर नहीं होता है। साथ ही साथ, यह भी पाया गया है कि टीआरपीवी-1 (एक प्रकार का जीन) के व्यवहार में बढ़ोत्तरी की वजह से यह दर्द होता है।

आनुवंशिक चिकित्सा की मदद से इस जीन की बढ़ोत्तरी को कम किया जा सकता है। शोध के दौरान पाया गया कि एसआईआरएनए एक आनुवंशिक साधन है जो कि इस जीन को शान्त कर सकता है और दर्द के निवारण में काम आ सकता है।

इस दर्द के निवारण हेतु एनेस्थीजि़योलॉजी विभाग, चिकित्सा विज्ञान संस्थान, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की डॉ. निमिषा वर्मा एवं फार्मास्यूटिकल इंजीनियरिंग विभाग, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बीएचयू, के डॉ विनोद तिवारी व उनके सहयोगियों के शोध ने एक नई टीआरपीबी-1 एसआईआरएनए फामुर्लेशन योजना सुझाई है।

इससे किमोथेरेपी से होने वाले दर्द को बिना किसी साइड इफेक्ट्स के नियन्त्रित किया जा सकता है। यह प्रयोग जनवरी 2022 में एक वैश्विक प्रतिष्ठित जनरल (लाइफ साइंस) में प्रकाशित हो चुका है।

बीएचयू केंद्रीय विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में रोगियों में बिना चीरफाड़ के सर्वाइकल कैंसर का पता लगाने का तरीका ढूंढ निकाला है।अध्ययन सर्वाइकल कैंसर का पता लगाने के लिए निदान विकसित करने में बहुत उपयोगी हो सकता है जो दुनिया भर में महिलाओं की मृत्यु के शीर्ष कारको में से एक है।

विश्वविद्यालय की रिसर्च टीम ने पाया कि सर्वाइकल कैंसर रोगियों के रक्त-नमूनों में सक्युर्लेटिंग सेल फ्री डीएनए की मात्रा बढ़ जाती है। विश्वविद्यालय ने बताया कि बिना चीरफाड़ के वह रोगियों में ट्यूमर लोड का निदान कर सकते हैं। साथ ही इलाज की प्रगति को भी देख सकते हैं।

ये अध्ययन अपनी तरह का पहला ऐसा अध्ययन है, जो जर्नल ऑफ कैंसर रिसर्च एंड थेराप्यूटिक्स (जेसीआरटी) नामक प्रतिष्ठित पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

इस शोध के नतीजे सर्वाइकल कैंसर के इलाज में महत्वपूर्ण नई दिशा दिखा सकते हैं, क्योंकि अभी तक सर्वाइकल कैंसर का पता लगाने का एकमात्र तरीका टिश्यू बायोप्सी ही था, जो काफी दर्द भरा तो होता ही है, ये सबके लिए आसानी से उपलब्ध भी नहीं होता।
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डिस्क्लेमर - लेख का उद्देश्य आपतक सिर्फ सूचना पहुँचाना है. किसी भी औषधि,थेरेपी,जड़ी-बूटी या फल का चिकित्सकीय उपयोग कृपया योग्य आयुर्वेद चिकित्सक के दिशा निर्देश में ही करें।