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Home Blogs NirogStreet News पीएम मोदी का आयुर्वेद दिवस पर दिया पूरा भाषण

पीएम मोदी का आयुर्वेद दिवस पर दिया पूरा भाषण

By NS Desk| NirogStreet News| posted on :   06-Nov-2018

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वर्ष 2018 में आयुर्वेद दिवस के दिन पीएम मोदी का दिए पूरे भाषण का टेक्स्ट

डायबिटीज के लिए diabe 250, यूएस पेटेंट अवार्ड से सम्मानित

यहां उपस्थित आयुर्वेद प्रेमी सभी महानुभव।

धन्वंतरि जयंती और आयुर्वेद दिवस की आप सभी को और पूरे देश को बहुत-बहुत शुभकामनाएं। एक प्रकार से विधिवत रूप से दीपावली का त्यौहार भी आरम्भ हो जाता है। मैं देशवासियों को और विश्व में फैले सभी भारतीय समुदाय को दीपावली के पावन पर्व की बहुत – बहुत शुभकामनाएं देता हूं। मुझे बताया गया कि देश की बहुत सी आयुर्वेदिक कॉलेज technology के माध्यम से इस कार्यक्रम में जुड़ी हुई हैं उन सबका भी मैं स्वागत करता हूं।

देश के पहले अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान पर भी आप सबको बहुत-बहुत बधाई देता हूँ बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। धन्वंतरि जंयती को आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने और इस संस्थान की स्थापना के लिए आयुष मंत्रालय को और उस मंत्रालय से जुड़े सभी महानुभव को मैं हृद्य से बहुत-बहुत साधुवाद देता हूं।

साथियों, कोई भी देश विकास की कितनी ही चेष्टा करे, कितना ही प्रयत्न करे, लेकिन वो तब तक आगे नहीं बढ़ सकता, जब तक वो अपने इतिहास, अपनी विरासत, अपनी संस्कृति, अपनी उज्जवल परम्पराएं, उनके प्रति अगर वो गर्व करना नहीं जानता। अपनी विरासत को छोड़कर के आगे बढ़ने वाले देशों की पहचान खत्म होना तय होता है। | साथियों, अगर हमारे देश का इतिहास देखें, तो हम पाएंगे कि वो दौर इतना समृद्धशाली था , शक्तिशाली था कि जब बाकी दुनिया ने उसके विषय में जाना पहचाना, देखा तो लग गया कि भारत के ज्ञान और बुद्धिमता से मुकाबला असंभव था। और इसलिए इतिहास बताता है कि उन्होंने अलग मार्ग अपनाया। हमारे पास जो श्रेष्ठ है, उसे ध्वस्त करना ये रास्ता शायद उनको ज्यादा उचित लगा। अपनी लकीर लम्बी करने की बजाय हमारी लकीर छोटी करने के लिये शक्तियां जुट गईं। और गुलामी के कालखंड में हमारी ऋषि परंपरा, हमारे आचार्य, हमारे किसान, हमारे वैज्ञानिक, हमारे ज्ञान, हमारे योग, हमारे आयुर्वेद, इन सभी की शक्ति का उपहास उड़ाया गया, उसे कमजोर करने की कोशिश हुई और यहां तक की उन शक्तियों पर ही हमारे लोगों के बीच आस्था कम होने लगी। जब गुलामी से मुक्ति मिली, तो एक उम्मीद थी कि जो बच पाया है, उसे संरक्षित किया जाए, समय के अनुकूल परिवर्तन किया जाए, लेकिन ये भी दुर्भाग्य से प्राथमिकता नहीं बनी। जो था, उसको, उसके हाल पर छोड़ दिया गया। हमारी शक्तियों को गुलामी के कालखंड में नष्ट करने का प्रयास हुआ और आजादी के बाद एक लंबा समय ऐसा आया जब इन शक्तियों को भुलाने के प्रयास बंद नहीं हुए। एक तरह से अपनी ही विरासत से मुंह मोड़ लिया गया। इन्हीं वजहों से ऐसी तमाम जानकारियों के पेटेंट दूसरे देशों के पास चले गए, जिन्हें हम कभी दादी मां के नुस्खे के तौर पर हर घर में इस्तेमाल करते थे। वो आज किसी और के intellectual property right बन गया। आज मुझे गर्व है कि पिछले तीन वर्षों में इस स्थिति को काफी हद तक बदलने का प्रयास हुआ है। जो हमारी विरासत है, जो श्रेष्ठ है, उसकी प्रतिष्ठा जन-जन के मन में आज स्थापित होना पुनः आरम्भ हुआ है। आज जब हम सभी आयुर्वेद दिवस पर एकत्र हुए हैं, या जब 21 जून को लाखों की संख्या में लोग घर से बाहर निकलकर के सामूहिक रूप से योग दिवस मनाते हैं, तो अपनी विरासत के इसी गर्व से भरे होते हैं। जब अलग-अलग देशों में उस दिन लाखों लोग योग करते हैं, तो उन तस्वीरों को देखकर के लगता है कि हां, लाखों लोगों को जोड़ने वाला ये योग भारत की विरासत है।

मानव जाति की विरासत, और हर युग में हर समय हर भू-भाग के लोगों ने उसमें कुछ न कुछ contribution किया है कुछ न कुछ नया जोड़ा है। जो योग भारत की विरासत रहा, वो अब विस्तारित होते – होते पूरी मानव जाति की विरासत होता जा रहा है। ये बदलाव सिर्फ तीन वर्षों की देन है और निश्चित तौर पर इसमें आयुष मंत्रालय की भी बहुत बड़ी भूमिका है। साथियों, आयुर्वेद सिर्फ एक चिकित्सा पद्धति नहीं है। इसके दायरे में सामाजिक स्वास्थ्य, सार्वजनिक स्वास्थ्य, पर्यावरण स्वास्थ्य, जैसे अनेक विषय भी उसके दायरे में आते हैं। इसी आवश्यकता को समझते हुए ये सरकार आयुर्वेद, योग और अन्य आयुष पद्धतियों के public healthcare system में integration पर जोर दे रही है। आयुष को सरकार ने अपने चार priority areas में रखा हुआ है। एक अलग मंत्रालय बनाने के साथ ही हमने नेशनल हेल्थ पॉलिसी का निर्माण करते समय, स्वास्थ्य सेवाओं और आयुष सिस्टम के integration के लिए व्यापक नियम बनाए हैं, दिशानिर्देश दिए हैं।

साथियों, सरकार ये मानकर और ये ठानकर चल रही है कि आयुष का स्वास्थ्य सेवा में integration पहले की तरह सिर्फ फाइलों तक सीमित नहीं रहेगा उसे जमीन तक उतारा जाएगा। इस दिशा में आयुष मंत्रालय की तरफ से अनेक प्रकार के उपक्रम प्रारम्भ किये गए हैं। राष्ट्रीय आयुष मिशन शुरू करना, स्वास्थ्य रक्षण कार्यक्रम चलाना, मिशन मधुमेह, आयुष ग्राम की परिकल्पना ऐसे तमाम विषय हैं, जिनके बारे में अभी यहां श्रीमान श्रीपाद नाइक जी चर्चा की है। |

साथियों, आयुर्वेद के विस्तार के लिए ये बहुत आवश्यक है कि देश के हर जिले में आयुर्वेद से जुड़ा एक अच्छा, सारी सुविधाओं से युक्त अस्पताल जरूर हो। इस दिशा में आयुष मंत्रालय तेजी से काम कर रहा है और तीन वर्ष में ही 65 से ज्यादा आयुष अस्पताल विकसित किए जा चुके हैं। आज दिल्ली में एम्स की ही तर्ज पर एम्स की ही तरह अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान का भी उद्घाटन भी इसी कड़ी का हिस्सा है। अभी शुरूआती तौर पर इसमें हर रोज साढ़े सात सौ से ज्यादा मरीज आ रहे हैं। आने वाले दिनों में मरीजों की संख्या दोगुनी होने का अनुमान है। एक ऐसा कार्यक्रम का उद्घाटन है...आमतौर पर कार्यक्रम में बोला जाता है की आपका काम बढ़े पर इस कार्यक्रम में मैं यह नहीं चाहता कि मरीजों की संख्या बढे और इसलिये मेरी शुभकामना ऐसी है कि wellness का ऐसा वातावरण बने कि लोगों को यहां तक आने की नौबत न आए। इस संस्थान को आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर से युक्त बनाया गया है। इसकी मदद से कई गंभीर बीमारियों के आयुर्वेदिक उपचार में भी अच्छी खासी मदद मिलेगी। मुझे प्रसन्नता है कि आज आयुर्वेद संस्थान की स्थापना से आयुर्वेद की विद्या, आयुर्वेद की ज्ञान संपदा को फिर एक बार पुनः बल मिल रहा है। एक नई ऊर्जा मिल रही है। ये भी बहुत आशाजनक स्थिति है कि ये आयुर्वेदिक संस्थान एम्स, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रीसर्च और कुछ अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ मिलकर काम करेगा। मुझे उम्मीद है कि इस रास्ते पर चलते हुए अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान इंटर- डिसिप्लीनरी और इंटीग्रेटिव हेल्थ प्रैक्टिस का मुख्य केंद्र बनेगा। साथियों, आयुर्वेद के गुणों की लंबी सूची है।

दुनिया अब सिर्फ healthy ही नहीं रहना चाहती, अब उसे wellness चाहिए और ये चीज उसे आयुर्वेद और योग से मिल सकती है। आज विश्व के सभी देशों में back to the basics, back to the nature यानि ‘पुनः प्रकृति की ओर’ ये भाव प्रबल होता जा रहा है। उसकी तरफ लोगों का झुकाओ बढ़ता जा रहा है। ऐसी पद्धतियों की तरफ, जो सीधे प्रकृति के साथ जोड़ दे, उसकी तरफ लोगों का आकर्षण पैदा हो रहा है। ऐसे में आयुर्वेद के लिए अनुकूल माहौल बनना जरा भी कठिन नहीं है। बस हमें आज की आवश्यकताओं में आयुर्वेद की उपयोगिता को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाना होगा। क्या सचमुच में आज जो आयुर्वेद पढ़कर के निकलते हैं, उसमें कितने परसेंट रहे हैं, जिनकी शत प्रतिशत श्रद्धा इस विज्ञान पर समर्पित है। आप देखिये जैसे ही वो अस्पताल खोलता है, ओपीडी शुरू करता है। पेशेंट कहता है जरा जल्दी ठीक हो जाए तो अच्छा होगा। मजदूरी पर जाना है ,काम करने भी जाना है। परिवार में तकलीफ हो रही है, तो आयुर्वेद डॉक्टर को भी लगता है कि अच्छा होगा कि गोली तो एलोपैथी वाली दे दो। इंजैक्शन लगा दो। बाहर साइनबोर्ड तो लगा है आयुर्वेद का, लोकिन भीतर शत प्रतिशत समर्पण का भाव नहीं है। आयुर्वेद की फिर से एक बार विश्व में स्वीकृति बनाने की पहली आवश्यकता यह है कि आयुर्वेद से पढ़े लिखे नौजवानों का आयुर्वेद के प्रति शत प्रतिशत समर्पण चाहिए। अगर हमें ही अपना भरोसा नहीं है। बचपन में चुटकुला सुनते थे कि एक आदमी ने खाने का ढाबा खोला और जब उसके यहाँ एक आदमी खाना खाने आया तो मालिक नहीं मिला| नौकर से आदमी ने पूछा की मालिक कहाँ है? तो उसने बताया कि वह तो सामने के होटल पर खाना खाने गए हैं| ऐसे में कौन उसके यहाँ खायेगा और इसलिये दोस्तों आज जरूरत इस बात की भी है कि आयुर्वेद से जुड़े विशेषज्ञ आयुर्वेद की सेवाओं का विस्तार करें। उन्हें उन क्षेत्रों के बारे में भी सोचना होगा, जहां आयुर्वेद और ज्यादा प्रभावी हो सकता है। ऐसा ही एक क्षेत्र है- sports का। आपने देखा होगा कि हाल के कुछ वर्षों में फिजियोथेरेपी करने वाले डॉक्टरों की भूमिका कितनी ज्यादा बढ़ गई है। बड़े-बड़े खिलाड़ी अपने पर्सनल फिजियोथेरेपिस्ट रखते हैं। बड़े-बड़े खिलाड़ी जाने-अनजाने दर्द की दवाइयों के फेर में भी फंस जाते हैं। आपको-मुझे-हम सभी को मालूम है कि आयुर्वेद और योग इस विषय में ज्यादा प्रभावी हो सकते हैं। आयुर्वेद और योग आधारित फिजियोथेरेपी में किसी तरह की प्रतिबंधित दवा के गलती से सेवन का कोई खतरा नहीं रहेगा।

स्पोर्ट्स की तरह ही हमारे सुरक्षाबलों के लिए भी योग और आयुर्वेद काफी महत्वपूर्ण हैं। हमारे जवान बहुत ही मुश्किल परिस्थितियों में देश की रक्षा करते हैं। कभी पोस्टिंग पहाड़ों पर होती है, तो कभी रेगिस्तान में, तो कभी बीच समंदर के बीच, तो कभी घने जंगलों में। अलग-अलग मौसम, अलग-अलग माहैल अलग – अलग परिस्थितियां। ऐसे में आयुर्वेद और योग उन्हें कितनी ही बीमारियों से बचाकर रख सकता है। मानसिक तनाव दूर रख सकता है। एकाग्रता बढ़ाने में काम आ सकता है, immune system मजबूत करने में योग और आयुर्वेद बहुत कारगर साबित हो सकते हैं।

क्वालिटी आयुर्वेदिक शिक्षा पर भी बहुत ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। बल्कि और इसका दायरा भी बढ़ाया जाना चाहिए। जैसे पंचकर्म थेरेपिस्ट, आयुर्वेदिक डायटीशियन, पराकृति एनालिस्ट, आयुर्वेद फार्मासिस्ट, आयुर्वेद की पूरी सपोर्टिंग chain को भी विकसित किया जाना चाहिए। इसके अलावा मेरा एक सुझाव और भी है कि आयुर्वेदिक शिक्षा में कराए जा रहे अलग-अलग कोर्स के अलग-अलग स्तर पर एक बार फिर से उनको reroute करने की मुझको जरूरत लगती है। जब कोई छात्र bachelor of ayurveda, medicine and surgery- bams का कोर्स करता है, तो प्राकृतिक, आयुर्वेदिक आहार-विहार, आयुर्वेदिक फार्मास्यूटिकल्स के बारे में पढ़ता ही है। पाँच-साढ़े पाँच साल पढ़ने के बाद उसे डिग्री मिलती है और फिर वो अपनी खुद की प्रैक्टिस या नौकरी या फिर और ऊंची पढ़ाई के लिए प्रयास करता है। |

साथियों, क्या ये संभव है कि bams के कोर्स को इस तरह डिजाइन किया जाए कि हर परीक्षा पास करने के बाद छात्र को कोई ना कोई सर्टिफिकेट मिले। ऐसा होने पर दो फायदे होंगे। जो छात्र आगे की पढ़ाई के साथ-साथ अपनी प्रैक्टिस शुरू करना चाहेंगे, उन्हें सहूलियत होगी और जिन छात्रों की पढ़ाई किसी कारणवश बीच में ही छूट गई, उनके पास भी आयुर्वेद के किसी ना किसी स्तर का एक सर्टिफिकेट होगा। जो उसको, उसके जीवन में काम आएगा, इतना ही नहीं, जो छात्र पाँच साल का पूरा कोर्स करके निकलेंगे, उनके पास भी रोजगार के और बेहतर विकल्प होंगे। अभी श्रीपाद नाइक जी ने स्पॉल्डिंग रीहैब हॉस्पिटल और हॉर्वर्ड मेडिकल स्कूल के साथ collaboration का जिक्र किया था। मुझे ये सुनकर बहुत प्रसन्नता हुई है और मैं दोनों पक्षों को बहुत-बहुत बधाई देता हूं। मुझे उम्मीद है कि इस collaboration से स्पोर्ट्स मेडिसिन, रीहैबिलिटेशन मेडिसिन, दर्द के निवारण में आयुर्वेदिक उपचार की संभावनाओं को तलाशने में अवश्य मदद मिलेगी। भाइयों और बहनों, मैंने अब से कुछ देर पहले ही आयुर्वेद से ट्रीटमेंट के लिए standard guidelines और standard टर्मिनॉलॉजी पोर्टल लॉन्च किया है। इन दोनों ही पहलों से बड़ी मात्रा में data generate होगा जिसका इस्तेमाल आयुर्वेद को आधुनिक तौर-तरीके के अनुरूप वैज्ञानिक मान्यता दिलाने में इसका बहुत उपयोग हो सकता है। और मुझे लगता है कि ये पहल आयुष विज्ञान के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगी। इसकी मदद से आयुर्वेद की वैश्विक स्वीकार्यता भी बढ़ेगी। आयुर्वेद में standard guidelines और standard टर्मिनॉलॉजी का होना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि इसके ना होने की वजह से ऐलोपैथिक की दुनिया और उसकी प्रक्रियाएं आसानी से आयुर्वेद पर हावी हो जाती थीं। हमारे देश में भी अलग – अलग भागों में एक ही बीमारी को अलग-अलग शब्दों में वर्णित किया जाता है। उस पर जो उपचार होता है उपचार वही है, लेकिन वर्णन अलग है। और इस प्रकार दुनिया में भी हम एक सही तरीके से चीजों को पहुंचा नहीं पाते हैं। अगर हम मिलकर के इस दिशा में ये जो portal बनाया है, वो काफी उपयोगी हो सकता है। एक जमाने में भारत सरकार के एक कमीशन ने भी अपनी रिपोर्ट में साफ कहा था कि हमारे यहां आयुर्वेद लोगों के घरों से दूर है क्योंकि उसकी पद्धति आज के समय के अनुकूल नहीं है। और इसलिये एक तरफ एलौपैथिक दवाइयां हैं, जिन्हें खट से खोला और खा लिया। वहीं दूसरी तरफ आयुर्वेद इसलिए मात खा जाता है क्योंकि दवाई बनाने की प्रक्रिया इतनी लंबी है कि सामान्य व्यक्ति सोचता है, कौन इतना समय खराब करेगा। fast food के इस दौर में आयुर्वेदिक दवाइयों की पुरानी स्टाइल की पैकेजिंग से काम नहीं चलेगा। जैसे-जैसे आयुर्वेदिक दवाइयों की पैकेजिंग आधुनिक होती जाएगी, इलाज की प्रक्रियाओं का स्टैडर्ड तय होंगे, टर्मिनॉलॉजी कॉमन हो जाएगी, आप देखिएगा कितनी तेजी से फर्क आने लगेगा।

आज के युग में लोग तत्काल परिणाम चाहते हैं। तत्काल इफेक्ट मिलता है तो लोग साइड इफेक्ट की परवाह नहीं करते। ये सोच गलत है, लेकिन यही हर तरफ दिखता भी है। और इसलिए आयुर्वेद के जानकारों को चाहिए इफेक्ट यानि तत्काल परिणाम देने वाली और फिर भी साइड इफेक्ट्स से बचाने वाली दवाईयों पर शोध करना समय की मांग है, ऐसी औषधियों के बारे में हम सोचें और उनका निर्माण भी करें। | भाइयों और बहनों, मुझे बताया गया है कि आयुष मंत्रालय के तहत 600 से ज्यादा आयुर्वेदिक दवाइयों के फार्मेसी स्टैन्डर्ड को पब्लिश किया गया है। इसका जितना ज्यादा प्रचार-प्रसार होगा, उतना ही आयुर्वेदिक दवाइयों की पैठ भी बढ़ेगी। हर्बल दवाइयों का आज विश्व में एक बड़ा मार्केट तैयार हो रहा है। भारत को इसमें भी अपनी पूर्ण क्षमताओं का इस्तेमाल करना होगा। हर्बल और मेडिसिनल प्लांट्स कमाई का बहुत बड़ा माध्यम बन रहे हैं। आयुर्वेद में तो तमाम ऐसे पौधों से दवा बनती है जिन्हें ना ज्यादा पानी चाहिए होता है और ना ही उपजाऊ जमीन की जरूरत होती है। कई चिकित्सीय पौधे तो ऐसे ही उग आते हैं। लेकिन उन पौधों का असली महत्व ना पता होने की वजह से उन्हें झाड़-झंखाड़ समझकर उखाड़ दिया जाता है। जागरूकता की कमी की वजह से हो रहे इस नुकसान से कैसे बचा जाए, इस पर भी विचार किए जाने की आवश्यकता है। मेडिसिनल प्लांट्स की खेती से रोजगार के नए अवसर भी खुल रहे हैं। मैं चाहूंगा कि आयुष मंत्रालय कौशल विकास मंत्रालय के साथ मिलकर इस दिशा में किसानों या छात्रों के लिए कोई short-term course भी develop कर सकते हैं क्या। क्या आयुर्वेदिक अभी sea weed के पौधों पर रीसर्च किया है। भारत का समुद्री तट एक बहुत बड़ी सम्पदा है। आयुर्वेदिक मैडिसिन के आधार के लिये काम आ सकती है क्या। और मैं मानता हूं, मैं इस विषय का ज्ञाता नहीं हूं। लेकिन हम इस प्रकार के नये क्षेत्रों में भी पदापर्ण करें रीसर्च करें, तो हम शायद उन मछुआरों की जिन्दगी में बदलाव ला सकते हैं। और हम वनस्पति आधारित दवाइयों को और अधिक समृद्ध दवाई बनाकर के जो wellness में interest रखते हैं। उस वर्ग की सेवा कर सकते हैं। पारंपरिक खेती के साथ-साथ किसान जब खेत के किनारे पर जो जमीन बड़ी खाली पड़ी रहती है, दीवार के जैसी बड़ी बाड़ लगा दी जाती है। अगर उसी का जमीन का इस्तेमाल करें, और अगर मेडिसिनल प्लांट्स के लिए करने लगेगा, तो उसकी भी आय बढ़ेगी। और 2022 में आजादी के 75 साल हो तब हम हिन्दुस्तान के किसान की आय दोगुना करना चाहते हैं। अगर उसके खेत के किनारे पर मेडिसिनल प्लांट के लिये आयुष मंत्रालय, एग्रीकल्चरल मंत्रालय मिलकर के हमारे किसानों को गाइड करे, उनको मदद करे तो ये भी एक नई आय का साधन हमारे किसान भाइयों – बहनों को हो सकता है। | साथियों इस सेक्टर को विकास और विस्तार के लिए अभी काफी निवेश की आवश्यकता है। सरकार ने health care system में सौ प्रतिशत foreign direct investment- fdi को स्वीकृति दी है। health care में fdi का फायदा आयुर्वेद और योग को कैसे मिले, इस बारे में भी प्रयास किए जाने चाहिए। मैं देश की तमाम कंपनियों और प्राइवेट सेक्टर से भी आग्रह करूंगा कि जिस तरह वो ऐलोपैथिक based बड़े-बड़े अस्पतालों के लिए आगे आते हैं, वैसे ही योग और आयुर्वेद के लिए भी आगे आना चाहिए। अपने corporate social responsibility यानि csr फंड का कुछ हिस्सा आयुर्वेद और योग पर भी वो जरा लगाएं। हमें ये भी ध्यान रखना होगा कि हजारों वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों ने जो ज्ञान प्राप्त किया था, उसके पीछे अथक परिश्रम था, मानव-जाति के कल्याण की प्रेरणा थी। कुछ नया experiment करने, कुछ innovative करने की सोच ने ही योग और आयुर्वेद जैसे चमत्कारों को जन्म दिया। लेकिन जैसे ही हम innovation से पीछे हटे, स्थितियां बदलने लगीं, हमारा प्रभाव कम होने लगा। इस स्थिति को अब पूरी तरह वापस बदलने की आवश्यकता है। आज समय की ही नहीं, पूरी मानवीयता की मांग है कि भारत अपनी स्थिति को बदले। साथियों, आज दुनिया holistic health care का रास्ता खोज रही है, लेकिन उसे रास्ता नहीं मिल रहा है। वो बहुत उम्मीद से भारत और भारत के आयुर्वेद की तरफ भारत की योगिक शक्ति की ओर बड़ी आशा भरी नज़र से देख रही है। उसे भी भरोसा हो रहा है कि योग और आयुर्वेद में भारत का अनुभव पूरे विश्व के कल्याण के काम में आ सकता है। और इसलिए हमारे लिए भी ये महत्वपूर्ण समय है कि अब एक पल भी ना गंवाया जाए। संकल्प लेकर आगे बढ़ा जाए, उसे सिद्ध किया जाए। | साथियों, भारत की ‘एकम शत विप्रा बहुधा वदंति’ की सोच सभी तरह की औषध-प्रणालियों या हेल्थ सिस्टमस पर भी लागू है। हम हर तरह के हेल्थ सिस्टम का सम्मान करते हैं और सभी की प्रगति हो ये कामना करते हैं। भारत में आध्यात्मिक जनतंत्र की तरह की उपचार प्रणालियों का भी जनतंत्र है। सभी को अपनी प्रगति का अधिकार है, सभी का सम्मान है। सभी तरह के हेल्थ सिस्टम को आगे बढ़ाने के पीछे सरकार का ध्येय है कि गरीबों को सस्ते से सस्ता इलाज, सहजता से उपचार उपलब्ध हो। इस वजह से हेल्थ सेक्टर में हमारा जोर दो प्रमुख चीजों पर लगातार रहा है - पहला preventive health care और

दूसरा ये कि हेल्थ सेक्टर में affordability और access बढ़े। preventive health care पर जोर देते हुए हमने मिशन इन्द्रधनुष की शुरुआत की थी ताकि 2020 तक उन सभी बच्चों का टीकाकरण किया जा सके जो सामान्य टीकाकरण अभियान में छूट जाते हैं। सरकार ने तय किया कि ऐसे बच्चों का पूर्ण रूप से टीकाकरण करके उन्हें 12 तरह की बीमारियों से बचाया जाए। मिशन इन्द्रधनुष के तहत अब तक ढाई करोड़ से ज्यादा बच्चों और लगभग 70 लाख गर्भवती महिलाओं को टीका लगाया जा चुका है। ये सरकार के प्रयास का ही असर है कि देश में टीकाकरण की जो रफ्तार सालाना एक प्रतिशत की दर से बढ़ रही थी, हमने पिछले तीन साल से ये अभियान चलाया और आज ये करीब-करीब साढ़े 6 प्रतिशत पहुंच गया। कहां एक प्रतिशत वृद्धि और कहां साढ़े 6 प्रतिशत वृद्धि। वही मशीनरी अगर लक्ष्य तय करके जोर लगा दे तो परिणाम मिलते हैं और ये परिणाम नजर आ रहा है। अभी इसी महीने सरकार ने इस मिशन को और केंद्रित कर दिया है। intensified mission indradhanush की शुरुआत की गई है जिसके तहत उन जिलों-शहरों-कस्बों पर focus किया जाएगा यहां टीकाकरण की कवरेज पीछे रह गयी है, कम है। अगले एक साल तक देश के 173 जिलों में हर महीने हफ्ते में 7 दिन लगातार टीकारकरण अभियान चला जाएगा। सरकार का लक्ष्य है कि दिसंबर 2018 तक देश में full इम्युनायजेशन कवरेज को प्राप्त कर लिया जाए। साथियों, पहले ये समझा जाता था कि हेल्थ केयर की जिम्मेदारी सिर्फ health ministry की है। लेकिन हमारी सोच अलग है। intensified mission indradhanush में अब सरकार के 12 अलग-अलग मंत्रालयों को, यहां तक की रक्षा मंत्रालय को भी हमने इस अभियान के साथ जोड़ा है।

भाइयों और बहनों, preventive healthcare एक और सस्ता और स्वस्थ तरीका है और वो है स्वच्छता। स्वच्छता को इस सरकार ने जनआंदोलन की तरह घर-घर जन जन-जन तक पहुंचाया है। सरकार ने तीन वर्षों में 5 करोड़ से ज्यादा शौचालयों का निर्माण करवाया है। स्वच्छता को लेकर लोगों की सोच किस तरह बदली है, इसका उदाहरण है कि अब शौचालयों को कुछ लोगों ने इज्जतघर कहना शुरू कर दिया। अभी आपने कुछ दिनों पहले आई unicef की रिपोर्ट आई है। शायद आपने पढ़ा होगा। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जो परिवार गांव में रहता है और वो एक शौचालय बनवाता है, तो unicef का कहना है एक परिवार शौचालय बनाता है तो उसके घर में सालाना बीमारी के पीछे जो 50 हजार तक खर्च होता है, वो खर्च बच जाता है। आप विचार कीजिये एक गरीब की जिन्दगी में टॉयलेट बनने से अगर 50 हजार रुपए बच जाता है, तो उस गरीब की कितनी सेवा होगी। preventive healthcare को बढ़ावा देने के साथ ही सरकार स्वास्थ्य सेवा में affordability और access बढ़ाने के लिए शुरू से ही holistic approach लेकर चल रही है। मेडिकल कॉलेजों में डॉक्टरी की पढ़ाई करने वाले छात्रों के लिए पीजी मेडिकल सीट में वृद्धि की गई है। इसका सीधा लाभ हमारे युवाओं को तो मिलेगा ही साथ ही गरीबों को इलाज के लिए भी डॉक्टर भी आसानी से उपलब्ध होंगे। देशभर के लोगों को बेहतर इलाज और स्वास्थ्य उपलब्ध कराने के लिए विभिन्न राज्यों में नए-नए एम्स भी खोले जा रहे हैं। स्टेंट के दामों में भी भारी कटौती, हमें मालूम है हृदय के अन्दर स्टेंट डलवाना है तो कहीं जाओ तो बोले 50 हजार, कोई कहे एक लाख कोई कहे दो लाख, कोई कहे ढाई लाख। एक मध्यम वर्ग का परिवार अगर उसको हृदय की बीमारी हो गई, और उसको अगर जाना पड़ा इतने रुपये पूरा मकान गिरवी रख दे तो भी नहीं निकाल पाता। सरकार ने उनसे बातें की, उनको बुलाया, भई इतना महंगा क्यों है, बातें करते – करते जो पहले कीमत थी करीब – करीब तीस चालीस प्रतिशत कम कर दी। कुछ चीजें तो तीस प्रतिशत में बिकना शुरू हो गया। आज ज्यादातर बड़ी आयु के लोग सीनियर सिटिजन knee operation करवाते हैं, knee implants की कीमतों को भी हमनें उसमें भी कटौती की। जन औषधि केन्द्रों के माध्यम से भी गरीबों को सस्ती दवाएं उपलब्ध हों और इसके लिये भी जन औषधि केन्द्र अस्पतालों में खोले गए। वही उत्तम से उत्तम दवाएं, जो कभी 12 रुपये में मिलती थी, वो डेढ़ रुपये में मिल जाए ये प्रबंध करने का काम सरकार ने किया है। |

साथियों, मुझे बताया गया है कि इस वर्ष लगभग 24 देशों में हमारे विदेश स्थित मिशन भी आयुर्वेद दिवस मना रहे हैं। पिछले 30 वर्षों से दुनिया में आईटी क्रांति देखी गई है। अब आयुर्वेद की अगुवाई में स्वास्थ्य क्रांति होनी चाहिए। आइए हम इस शुभ दिन पर शपथ लें 'हम आयुर्वेद का अभ्यास करेंगे, हम आयुर्वेद को जीवित रखेंगे और हम आयुर्वेद के लिए जीएंगे " साथियों आप सभी को आयुर्वेद दिवस पर अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान की बहुत- बहुत शुभकामनाओं के साथ मैं अपनी बात समाप्त करता हूं और फिर मैं एक बार आप सबको बहुत बहुत शुभकामनाएं देता हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद !!!

(साभार - नरेंद्र मोदी डॉट इन)

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