By NS Desk | 10-Jul-2019
आयुर्वेद में प्रकृति के करीब रहने का संदेश छुपा है. वह पंचभूत के सिद्धांतों पर टिका है. लेकिन बढ़ती तकनीक हमें इससे दूर कर रही है. तकनीक हमें एक तरफ सुविधाएं प्रदान करती है तो दूसरी तरफ इसके दुष्प्रभाव भी भुगतने पड़ते हैं. मोबाइल एक ऐसी ही तकनीक है जिसने हमारी जिंदगी को बदल दी. अब एक स्मार्टफोन में दुनिया भर की चीजें मौजूद है. यही वजह है सोते-उठते हम मोबाइल से ही चिपके रहते हैं और ये हमारे वजूद का एक हिस्सा सा बन गया है. कुछ लोग इसका जरुरत भर इस्तेमाल करते हैं तो कुछ लोगों को इसकी लत सी लग गयी है और वे बेवजह भी चौबीसों घंटे मोबाइल ही देखते रहते हैं. ऐसे लोगों कि संख्या बेताहासा बढ़ रही है. इसलिए मोबाइल की इस लत से छुटकारा दिलाने के लिए अब क्लिनिक खुलने लगे हैं. इसी कड़ी में अमृतसर में एक क्लिनिक खुला है जो मोबाइल की लत से छुटकारा दिलाएगा. यह देश में अपनी तरह का पहला क्लिनिक होगा. पढ़िए दैनिक जागरण की पूरी रिपोर्ट -
अमृतसर. भारत में मोबाइल प्रयोग करने वालों की संख्या 104 करोड़ तक जा पहुंची है। इंटरनेट के विस्तार और सोशल साइट के तिलिस्म ने लोगों को मोबाइल का लती बना दिया है। यह ऐसा लत है जो व्यक्ति को मदहोश नहीं करता परंतु उसकी मनोदशा बिगाड़ देता है। हर वक्त सिर झुकाकर मोबाइल स्क्रीन से चिपके रहने वाले यानी मोबाइल के लती लोगों में युवा और बुजुर्ग ही नहीं बल्कि 2 से 14 साल की आयु वर्ग के बच्चे व किशोर भी हैं। अब ऐसे लोगों के इलाज के लिए अमृतसर में मोबाइल नशा मुक्ति उपचार केंद्र खोला गया है।
गुरुनगरी में इस केंद्र का संचालन कर रहे तंत्र मनोचिकित्सक (न्यूरोसाइकेट्रिक) डॉ. जेपीएस भाटिया ने दावा किया कि यह देश का पहला मोबाइल नशा मुक्ति उपचार केंद्र है। इससे पहले बेंगलूरु में इंटरनेट नशा केंद्र खुले हैं लेकिन किसी राज्य में मोबाइल नशा मुक्ति केंद्र नहीं खुला। यहां 2 से 50 साल तक के मोबाइल के लती लोगों का उपचार किया जा रहा है। उनके पास 25 मामले आ चुके हैं। इनमें छह युवा, तीन बुजुर्ग और बाकी सब बच्चे हैं। इन सभी को मनोवैज्ञानिक परामर्श दिया जा रहा है।
डॉ. जेपीएस भाटिया बताते हैं कि कुछ समय पर 2 वर्ष के बच्चे को उनके पास लाया गया। उसका व्यवहार अन्य बच्चों से अलग था। मैं बच्चे के माता पिता से बात कर रहा था और मेरा मोबाइल टेबल पर पड़ा था। मोबाइल देख बच्चे की आंखों में चमक आ गई। उसे मोबाइल थमाया गया तो वह खुश हो गया। मोबाइल वापस मांगा तो उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया। वह तब तक रोता रहा जब तक दोबारा मोबाइल नहीं दिया गया। उनके पास युवाओं, महिलाओं और बुजुर्गों के ऐसे कई केस आए जिनकी दुनिया मोबाइल तक सीमित है।
स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए चेतावनी:
उन्होंने कहा कि मोबाइल के नशे का शिकार अधिकतर बच्चे स्कूल जाने वाले हैं। वह लगातार मोबाइल से जूझते दिखाई देते हैं। इस कारण उनमें शारीरिक समस्याएं बढ़ रही हैं। मधुमेह का खतरा, अनिद्रा, कब्ज, मोटापा, उच्चतनाव, आंखों में जलन, अस्थमा आदि आम है।
स्कूलों का चलन भी गलत:
डॉ. भाटिया कहते हैं कि आज कल बच्चों का होमवर्क अभिभावकों के मोबाइल पर भेजा जाता है। ऐसे में बच्चे अभिभावकों के मोबाइल पर होमवर्क देखते हैं और फिर कई एप्लीकेशन्स व सोशल साइट्स भी खोल लेते हैं। इसके बाद उन्हें इसकी लत लग जाती है।