आयुर्वेद में नयी खोज का सिलसिला जारी है. इसी कड़ी में जलकुम्भी भस्म कैप्सूल नाम से एक नयी दवा इजाद हुई है. दावा है कि इससे हाइपो-थायरॉइड यानी मोटापा, याददाश्त कमजोर होना, बाल गिरना, रूखी त्वचा, माहवारी में अनियमितता, हाथ-पैर में ऐंठन होना और पेट साफ न होने जैसी समस्याओं से जूझ रहे लोगों को फायदा होगा। इस शोध को बांदा में हुए एक स्टार्ट-अप कार्यक्रम में गेस्ट ऑफ ऑनर का पुरस्कार भी मिल चुका है।
जलकुंभी भस्म कैप्सूल बनाने में राजकीय आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज कार्य चिकित्सा विभाग के हेड डॉ. कमल सचदेवा, डॉ. अनंत कृष्णा और डॉ. सोनल चौधरी को दो साल लगे। डॉ. कमल ने बताया कि पिस्टिया स्ट्रेशियोट्स प्रजाति की जलकुंभी लेकर इसे 21 बार गो-मूत्र डालकर सामान्य तापमान पर सुखाया गया। इस प्रक्रिया को भावना कहा जाता है। फिर जलकुंभी का भस्म बनाया गया और इससे कैप्सूल तैयार किया गया।
डॉ. अनंत कृष्णा ने बताया कि कई जलकुंभियां जहरीली भी होती हैं। ऐसे जलकुंभी ऐसे तालाब से ली गई, जहां किसी कारखाने का गंदा पानी न जाता हो। यही नहीं, जलकुंभी की भस्म तैयार करते वक्त विशेष सावधानी भी बरती गईं। इसे बंद चैंबर में डालकर जलाया गया, वरना में खुले भस्म तैयार करने पर इसमें मौजूद आयोडीन उड़ जाता।
डॉ. अनंत ने बताया कि कैप्सूल तैयार करने के बाद मरीजों पर इसका ट्रायल किया गया। इसके लिए मरीजों के दो ग्रुप बनाए गए। पहले ग्रुप में 17 मरीज थे तो दूसरे में 22 मरीज। पहले ग्रुप के मरीजों को सिर्फ कैप्सूल दिया गया, जबकि दूसरे ग्रुप में कैप्सूल के साथ पिपली और गुग्गल भी दी गईं। पहले ग्रुप का परिणाम तो सकारात्मक आया, लेकिन दूसरे ग्रुप का रिजल्ट ज्यादा बेहतर था।
डॉक्टरों ने बताया कि मरीजों को जलकुंभी भस्म कैप्सूल का सेवन तीन महीने करना होगा, हालांकि ट्रायल के दौरान इसके परिणाम एक महीने में आने लगे थे। एक कैप्सूल 500 एमजी का है। इसको खाली पेट खाना होगा।
डॉ. अनंत ने बताया कि इस शोध में किसी तरह की कोई आर्थिक मदद नहीं मिली। पूरा खर्च उन्होंने और उनकी टीम ने किया है। अगर मदद मिलती तो और भी बेहतर शोध करने में आसानी होती। (साभार - नवभारत टाइम्स)