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मधुमेह रोगियों में हृदयघात के खतरे को 50 फीसदी तक कम करता है आयुर्वेद

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By NS Desk | 02-Jan-2019

 Ayurveda reduces the risk of cardiovascular disease by 50% in diabetic patients

Ayurveda reduces the risk of cardiovascular disease by 50% in diabetic patients

मधुमेह रोगियों में हार्ट अटैक का खतरा कम करता है आयुर्वेद

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) द्वारा विकसित आयुर्वेदिक दवा बीजीआर-34 मधुमेह रोगियों में हार्ट अटैक के खतरे को पचास फीसदी तक कम कर देती है। इस दवा के करीब 50 फीसदी सेवनकर्ताओं में ग्लाइकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन का स्तर नियंत्रित पाया गया। शोध में यह बात सामने आई है।

जर्नल ऑफ टड्रिशनल एंड कंप्लीमेंट्री मेडिसिन के ताजा अंक में इससे जुड़े शोध को प्रकाशित किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार बीजीआर-34 मधुमेह रोगियों के लिए एक कारगर दवा के रूप में पहले से ही स्थापित है। मौजूदा एलोपैथी दवाएं शर्करा का स्तर तो कम करती हैं लेकिन इससे जुड़ी अन्य दिक्कतों को ठीक नहीं कर पाती हैं। बीजीआर में इन दिक्कतों को भी दूर करने के गुण देखे गए हैं।

जर्नल के अनुसार भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के दिशा-निर्देशों के तहत एक अस्पताल में 64 मरीजों पर चार महीने तक इस दवा का परीक्षण किया गया है। इस दौरान दो किस्म के नतीजे सामने आए। 80 फीसदी तक मरीजों के शर्करा के स्तर में कमी दर्ज की गई। दवा शुरू करने से पहले शर्करा का औसत स्तर 196 (खाली पेट) था जो चार महीने बाद घटकर 129 एमजीडीएल रह गया। जबकि भोजन के बाद यह स्तर 276 से घटकर 191 एमजीडीएल रह गया। ये नतीजे अच्छे हैं लेकिन इस प्रकार के नतीजे कई एलोपैथिक दवाएं भी देती हैं। सीएसआईआर ने बीजीआर-34 के निर्माण की अनुमति एमिल फार्मास्युटिकल को दे रखी है।

रिपोर्ट के अनुसार दूसरा उत्साहजनक नतीजा ग्लाइकोसिलेटेड हिमोग्लोबिन (एचबीए1सी) को लेकर है। 30-50 फीसदी मरीजों में इस दवा के सेवन से ग्लाइकोसिलेटेड हिमोग्लोबिन नियंत्रित हो गया जबकि बाकी मरीजों में भी इसके स्तर में दस फीसदी तक की कमी आई थी। दरअसल, ग्लाइकोसिलेटेड हिमोग्लोबिन की रक्त में अधिकता रक्त कोशिकाओं से जुड़ी बीमारियों का कारण बनती है। जिसमें हार्ट अटैक होना और दौरे पड़ना प्रमुख है। मधुमेह रोगियों में ये दोनों ही मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।

हिमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं के भीतर होता है। इसका कार्य आक्सीजन का संचार करना होता है। लेकिन जब हिमोग्लोबिन में शर्करा की मात्रा घुल जाती है तो हिमोग्लोबिन का कार्य बाधित हो जाता है इसे ही ग्लाइकोसिलेटेड हिमोग्लोबिन कहते हैं। इसका प्रभाव कई महीनों तक रहता है। किन्तु बीजीआर-34 से यह स्तर नियंत्रित हो रहा है। (एजेंसी - आईएएनएस)

डिस्क्लेमर - लेख का उद्देश्य आपतक सिर्फ सूचना पहुँचाना है. किसी भी औषधि,थेरेपी,जड़ी-बूटी या फल का चिकित्सकीय उपयोग कृपया योग्य आयुर्वेद चिकित्सक के दिशा निर्देश में ही करें।