स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन पर विशेष
विश्व को अध्यात्म और धर्म का संदेश देने वाले स्वामी विवेकानंद का जन्म आज ही के दिन 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता में हुआ था। वे अपने समय के महान दार्शनिक थे। उन्होंने महज 25 वर्ष की अवस्था में मानव सेवा के लिए संन्यास ले लिया था। अमेरिका में विश्व धर्म महासभा में दिया हुआ उनका भाषण आज भी याद किया जाता है। उन्होंने लोगों को जीवन जीने की कला भी सिखाई। उनके जन्मादिन को भारत में राष्ट्री य युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। वे बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे और बेहद कम उम्र में ही वेद और दर्शन शास्त्र का ज्ञान हासिल कर लिया था। उनका कहना था कि सिर्फ अद्वैत वेदांत के आधार पर ही विज्ञान और धर्म साथ-साथ चल सकते हैं। उन्होंने 'योग', 'राजयोग' और 'ज्ञानयोग' जैसे ग्रंथों की रचना भी की। ये नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम में व खेलों में भाग लिया करते थे और इसे स्वास्थ्य के लिए जरुरी मानते थे।
31 बीमारियों से ग्रस्त, 39 की उम्र में निधन
लेकिन महज 39 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। 4 जुलाई 1902 को बेलूर स्थित रामकृष्णइ मठ में ध्यासनमग्ने अवस्था में महासमाधि धारण कर प्राण त्याग दिए।कहा जाता है कि वे 31 बीमारियों से ग्रस्त थे। मशहूर बांग्ला लेखक शंकर ने अपनी किताब 'द मॉन्क ऐज मैन' में अध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद के बारे में लिखा कि वो अनिद्रा, मलेरिया, माइग्रेन, डायबिटीज़ समेत दिल, किडनी और लिवर से जुड़ी पूरी 31 बीमारियों के शिकार थे। यही बीमारियाँ उनके निधन की वजह बनी।
आयुर्वेद चिकित्सा भी नहीं बचा पाया
'द मॉन्क ऐज मैन' में आगे लिखा गया कि विवेकानंद ने बीमारियों से निजात पाने के लिए कई तरह के साधनों का प्रयोग किया था, उन्होंने ठीक होने के लिए एलोपैथिक, होम्योपैथिक के साथ आयुर्वेद का सहारा लिया था लेकिन रोगमुक्त नहीं हो पाए। उन्हें नींद नहीं आती थी, जिसके कारण वो काफी मानसिक रूप से भी परेशान रहते थे। उनका लीवर सही ढंग से काम नहीं करता था, जिसके कारण वो ठीक से खाना भी नहीं खा पाते थे। अधिक तनाव और भोजन की कमी के कारण काफी बीमार हो गए थे लेखक के मुताबिक स्वामी विवेकानंद 1887 में अधिक तनाव और भोजन की कमी के कारण काफी बीमार हो गए थे। उन्हें पथरी भी थी, अनेक रोगों से लड़ते हुए वो काफी कमजोर हो गए थे जिसके कारण ही उन्हें चार जुलाई, 1902 को तीसरी बार दिल का दौरा पड़ा था जिसकी वजह से उन्हें 39 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहना पड़ा और इस तरह उन्हें आयुर्वेद भी नहीं बचा पाया.