By NS Desk | 19-Jan-2021
न्यूयॉर्क। एक नए अध्ययन में पैरेंट्स को शिशु के लिए सुझाव दिया गया है। इसमें कहा गया है कि पैरेंट्स सुनिश्चि करें कि उनका बच्चा अपने बचपन के भाव को न नकारे।
अध्ययन में बताया गया कि जिन मांओं ने अपने बचपन की भावनाओं को नकार दिया था, उनके दिमाग में एनेक्जाइटी और डरने की प्रतिक्रिया दिखाई दी है।
अमेरिका में न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी लैंगोन हेल्थ के अध्ययन के मुख्य लेखक कैसेंड्रा हेंड्रिक्स ने कहा, ये परिणाम दिखाते हैं कि हमारा दिमाग हमारे जीवन में होने वाली घटनाओं से प्रभावित होने के साथ-साथ उस वक्त या घटना से भी प्रभावित होता है, जब बच्चों में उसकी समझ भी नहीं होती।
ये अध्ययन बायोलॉजिकल साइकाइट्री : कोग्निटिव न्यूरोसाइंस एंड न्यूरोइमेजिंग जर्नल में छपा है, जो कि 48 मां-शिशु के जोड़े पर हुआ है। इस अध्ययन के शोध की शुरुआत गर्भावस्था के पहले तीन महीने से हुई।
मांओं को बचपन की घटनाओं की एक प्रश्नावली दी गई। मांओं ने वर्तमान, प्रसव से पहले के तनाव के स्तर और एंनेग्जाइटी और डिप्रेशन का भी विश्लेषण किया।
जन्म के एक महीने बाद, शिशु के दिमाग को स्कैन किया गया। इसमें एक नॉन-इनवैसिव प्रौद्यगिकी का इस्तेमाल किया गया, जोकि उस वक्त किया जाता है, जब शिशु स्वाभाविक तौर पर सोता है।
शोधकर्ताओं ने दिमाग और अमिगडाला के बीच जुड़ाव और दिमाग के दो अन्य क्षेत्रों प्रीफ्रॉन्टल कोरटेक्स और एंटिरिअर सिंगुलेट कोरटेक्स, पर फोकस किया, जोकि डर वाले भावनाओं की केंद्रीय प्रक्रिया होती है।
ये दोनों क्षेत्र भावनाओं को नियमित करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। जिन शिशुओं की मां ने बचपन की भावनाओं को नकार दिया था, उनके अमिगडाला और कोर्टिकल क्षेत्र के बीच मजूबत कार्यात्मक संबंध देखा गया।
मां के वर्तमान स्ट्रेस स्तर को नियंत्रित करने के बाद, शोधकर्ताओं ने पाया कि एक मां ने अपने बचपन के दौरान अपनी भावनाओं को नकारा था, उनके शिशु का अमिगडाला फ्रोंटल कोर्टिकल से मजबूती से जुड़ा था। (आईएएनएस)