By Dr Abhishek Gupta | 14-Jan-2020
मकर संक्रांति की वैज्ञानिकता व क्यों यह त्यौहार स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद महत्त्वपूर्ण है!
यह एक मात्र ऐसा भारतीय त्यौहार है जो सौर कैलेंडर के एक निश्चित कैलेंडर दिवस पर मनाया जाता है। अन्य सभी भारतीय त्यौहार चंद्र कैलेंडर के अनुसार मनाए जाते हैं।
भारत में, हम चंद्र कैलेंडर का पालन करते हैं; चंद्रमा 29.5 दिनों में अमावस्या से पूर्णिमा तक या पूर्णिमा से अमावस्या तक जाता है। इस प्रकार हम 354 दिनों में 12 पूर्ण चंद्रमा प्राप्त करते हैं, जिससे एक चंद्र कैलेंडर वर्ष 354 दिन लंबा बनाता है। लेकिन, सूर्य प्रत्येक 365.25 दिनों में आकाश में एक ही स्थान पर लौटता है। इस प्रकार सौर और चंद्र वर्षों के बीच 11.25 दिनों का अंतर होता है। इसलिए प्रत्येक 2.5 वर्ष में एक कैलेंडर माह (आधि मास) को चंद्र कैलेंडर में जोड़ा जाता है जिससे दोनों को लगभग बराबर किया जा सके।
हमारे देश में मौसम का पैटर्न पता करने के लिए सौर कैलेंडर का अनुसरण किया जाता है, वहीं दूसरी ओर सटीक मुहूर्त की गणना के लिए सौर कैलेंडर कि अपेक्षा तेज़ गति से चलने वाले चंद्रमा के साथ की जाती है।
मुहूर्त की गणना के लिए व इनको अधिक सटीक बनाने के लिए, चंद्रमा का मार्ग, जो सूर्य के मार्ग से थोड़ा दूर है, को 27 नक्षत्रों में विभाजित किया गया है, जबकि सूर्य के मार्ग को 12 राशियों में विभाजित किया गया है।
मकर संक्रांति की गणना करने का तरीका अद्वितीय है: यह पूरी तरह से सौर कैलेंडर द्वारा किया जाता है। इसका रहस्य हम इस सुराग से निकाल सकते हैं कि मकर संक्रांति को उत्तरायण भी कहा जाता है, या जिस दिन सूर्य अपनी उत्तरवर्ती यात्रा शुरू करता है।
हम 14 जनवरी को उस दिन के रूप में मनाते हैं जिस दिन मकर राशि में सूर्य उदय होता है।
मकर संक्रांति पर्व मुख्यतः सूर्य पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। एक राशि को छोड़ के दूसरे में प्रवेश करने की सूर्य की इस विस्थापन क्रिया को संक्रांति कहते है, (संक्रांति का अर्थ है प्रवेश करना) चूँकि सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है इसलिए इस समय को मकर संक्रांति कहा जाता है।
इस दिन सूर्य दक्षिणायन से अपनी दिशा बदलकर उत्तरायण हो जाता है अर्थात सूर्य उत्तर दिशा की ओर बढ़ने लगता है, जिससे दिन की लंबाई बढ़नी और रात की लंबाई छोटी होनी शुरू हो जाती है। भारत में इस दिन से बसंत ऋतु की शुरुआत मानी जाती है। अत: मकर संक्रांति को उत्तरायण के नाम से भी जाना जाता है।
पहले समय में संक्रांति के दिन लोग सुबह सूर्य उदय के साथ ही पतंग उड़ाना शुरू कर देते थे, वर्तमान में अब यह परंपरा कुछ स्थानों तक ही सीमित होती जा रही है। पतंग उड़ाने के पीछे मुख्य कारण है कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में बिताना, यह समय सर्दी का होता है और इस मौसम में सुबह का सूर्य प्रकाश शरीर के लिए स्वास्थवर्धक और त्वचा व हड्डियों के लिए अत्यंत लाभदायक होता है क्योंकि सूर्य के सुबह के प्रकाश में प्राकृतिक रूप से विटामिन-डी तो होता ही है साथ में शरीर की कई प्रकार की जैविक प्रक्रियाओं को भी बेहतर बनाता है जैसे: शरीर का कोर्टिसोल हॉर्मोन उत्तेजित होता है जिससे शरीर का मेटाबोलिज्म बेहतर होता है साथ में इससे शरीर सक्रीय हो जाता है, जिससे हम अपने कार्यों को सही ऊर्जा के साथ कर पाते हैं।
इसलिए इस पर्व पर पतंग उड़ाने का प्रावधान किया गया जिससे लोग पतंग के बहाने ही सही सूर्य के प्रकाश के समक्ष आयें व नियमित रूप से सुबह के समय के सूर्य के प्रकाश को ग्रहण करके स्वस्थ रह सकें!
सर्दी के मौसम में वातावरण का तापमान बहुत कम होने के कारण शरीर में रोग और बीमारी जल्दी लगते हैं। इसलिए इस दिन गुड और तिल से बने मिष्ठान खाए जाते हैं। इनमें गर्मी पैदा करने वाले तत्व के साथ ही शरीर के लिए लाभदायक पोषक पदार्थ भी होते हैं। इसलिए इस दिन खासतौर से तिल और गुड़ के लड्डू खाए जाते हैं। तिल में फाइबर की मात्रा अधिक होती है इससे हमारा पाचन बेहतर होता है, शरीर के कोलेस्ट्रॉल व ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखता है, विटामिन-बी, कैल्शियम, मैग्नीशियम का बेहतर स्रोत होता है जिससे हमारी हड्डिया मजबूत होती हैं। इसी तरह गुड़ में एंटी-ऑक्सीडेंट गुण होते हैं व जिंक व सेलेनियम जैसे मिनरल्स होते हैं जो आपको असमय बूढ़ा नहीं होने देते व शरीर की इम्युनिटी को बेहतर बनाता है।
माना जाता है कि इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से नाराजगी त्याग कर उनके घर गए थे। इसलिए इस दिन को सुख और समृद्धि का दिन माना जाता है व इस दिन पवित्र नदी में स्नान, दान, पूजा आदि करने से पुण्य हजार गुना हो जाता है।
यह पर्व पूरे भारत और नेपाल में फसलों के आगमन की खुशी के रूप में मनाया जाता है। खरीफ की फसलें कट चुकी होती है और खेतो में रबी की फसलें लहलहा रही होती है। खेत में सरसो के फूल मनमोहक लगते हैं। पूरे देश में इस समय ख़ुशी का माहौल होता है। अलग-अलग राज्यों में इसे अलग-अलग स्थानीय तरीकों से मनाया जाता है। क्षेत्रो में विविधता के कारण इस पर्व में भी विविधता है। दक्षिण भारत में इस त्यौहार को पोंगल के रूप में मनाया जाता है। उत्तर भारत में इसे लोहड़ी कहा जाता है। मध्य भारत में इसे संक्रांति कहा जाता है। मकर संक्रांति को उत्तरायण, माघी, खिचड़ी आदि नाम से भी जाना जाता है।
आशा है आपको यह लेख अच्छा लगा होगा व आप संक्रांति की वैज्ञानिकता को समझ पाए होंगे, यह संक्रांति आपके व आपके परिवार के लिए नई प्रगति लेकर आये व आपके स्वस्थ व दीर्धायु जीवन मिले, संक्रांति की अनंत शुभकामनाओं के साथ!
आपका!
डॉ. अभिषेक गुप्ता