गर्भावस्था के दौरान और इसके बाद पेट व अन्य अंगों पर खिंचाव के निशान (स्ट्रेच मार्क्स) का होना बेहद आम है। हालांकि बेहतर ढंग से त्वचा की देखभाल कर इनसे छुटकारा पाया जा सकता है। गर्भावस्था की दूसरी तिमाही के दौरान शरीर में कई तरह के बदलाव देखने को मिलते हैं, ऐसे में अकसर पेट, जांघों, स्तन और कूल्हों पर ये निशान देखने को मिलते हैं।
स्ट्रेच मार्क्स के होने से त्वचा ढीली पड़ जाती है और पर्याप्त नमीं के अभाव में त्वचा रूखी भी हो जाती है, जिससे खुजली की समस्या पैदा होना आम है। हालांकि बच्चे के जन्म के बाद वक्त रहते सही स्किनकेयर रूटीन से ये हल्के पड़ने लगते हैं और धीरे-धीरे गायब भी हो जाते हैं।
हिमालया ड्रग कंपनी में रिसर्च एंड डेवलपमेंट टीम से जुड़ीं आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. प्रतिभा बाबशेत ने कहा, "गर्भावस्था के दौरान त्वचा में कई तरह के बदलाव आते हैं, ऐसे में नियमित रूप से त्वचा की देखभाल करने से भी कोई खास फर्क नहीं पड़ता। इस वक्त त्वचा के लिए पर्याप्त पोषण की जरूरत को समझें और इसी के अनुरूप अपनी खानपान की शैली पर ध्यान दें।" स्ट्रेच मार्क्स या त्वचा की झुर्रियों के लिए उन्होंने दो टिप्स सुझाए हैं -
रात में सोने से पहले मसाज और नहाने के बाद मॉइश्चराइजर लगाएं। डॉ. प्रतिभा ने आगे कहा, "मसाज से बॉडी में खून का प्रवाह काफी अच्छे से होता है, जिससे झुर्रियों के निशान मिटने लगते हैं। नई मां बनी महिलाएं रात में सोने से पहले मसाज को अपनी स्किनकेयर रूटीन का हिस्सा बना सकती हैं। इसके लिए वे अपने हिसाब से जैतून, बादाम, तिल का तेल या व्हीट जर्म ऑयल का इस्तेमाल कर सकती हैं।" उनके मुताबिक, नहाने के बाद मॉइश्चराइजर को बॉडी में अप्लाई करने से त्वचा में नमीं की सही मात्रा बरकरार रहती है, जिससे बॉडी सॉफ्ट तो रहती ही है, खुजली होने की समस्या भी दूर होती है और झुर्रियों के निशान भी मिटते जाते हैं।
उन्होंने बताया कि मॉइश्चराइजर का एक बेहतर विकल्प भी बताया, जिसके इस्तेमाल से त्वचा को खूब लाभ पहुंचाया जा सकता है। डॉ. प्रतिभा ने कहा, "आमंड ऑयल, व्हीट जर्म ऑयल, ऑलिव ऑयल, मैंगो बटर, कोकुम बटर, शिया बटर और सेंटेला, अनार व मुलेठी जैसे हर्ब्स के मिश्रण से झुर्रियों को स्वाभाविक रूप से कम किया जा सकता है।"
इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा, "स्किनकेयर के अलावा एक हेल्दी डायट और नियमित एक्सरसाइज करने की भी सलाह दी जाती है। पर्याप्त मात्रा में पानी के सेवन से त्वचा में नमी बनी रहती है। इसी के साथ बाहर के जंक फूड और कैफिन को अपनी डायट से दूर रखना ही फायदेमंद है।"
काढ़ा पियो इम्युनिटी बढ़ाओ ! आजकल उपरोक्त हैडिंग या इससे मिलती-जुलती हेडिंग्स संभवतः आपको सभी जगह देखने को मिल जाएगी या सुनने को मिल जायेगा की यह कोरोना का अचूक उपचार है या आपकी इम्युनिटी इतनी बढ़ जाएगी की आपको कोई रोग नहीं होगा! इस तरह के किसी भी दावे और किसी भी बात को जानने से पहले आपके लिए यह जानना आवश्यक है कि आयुर्वेद कोई नुस्खा या कोई घरेलु उपचार जैसी पद्धति नहीं है और न ही आयुर्वेद गरम मसाला या किचिन में मिलने वाली चीज़ों तक सीमित है,
आयुर्वेद को इस रूप में प्रस्तुत करने वाले लोग वास्तविकता में आयुर्वेद की 1% भी समझ नहीं रखते हैं! आयुर्वेद एक पूर्ण चिकित्सा विज्ञान है जिसके सिद्धांत प्रकृति पर आधारित हैं व इसमें चिकित्सा के लिए किसी भी दवाई/औषधि का चयन इन्हीं सिद्धांतों के आधार पर रोगी से उसके शरीर व रोग से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करके किया जाता है, अन्यथा बिना सही जाँच के दी जाने वाली औषधि लाभ न करके नुकसान करती है! जैसे इम्युनिटी बढ़ाने वाले काढ़े के रूप में प्रचारित की जा रही दवाओं को आजकल सभी लोग बिना कुछ समझे पीने में लग गए हैं, जबकि पहले तो काढ़ा या कुछ अन्य भी बिना किसी आयुर्वेद चिकित्सक के परामर्श के बिना बिल्कुल भी प्रयोग नहीं करना चाहिए दूसरा यह काढ़ा दरअसल तासीर में गर्म होता है और इसे तब लेना चाहिए जब बहुत ज्यादा कफ, सर्दी या बुखार बढ़ गया हो!
एक तो काढ़ा गर्म तासीर का होता है दूसरा अभी जो मौसम है वह भी गर्म है और साथ ही साथ ज्यादातर लोगों के शरीर भी गर्म (पित्त) प्रकृति के होते हैं जिससे इसका लाभ तो कोई विशेष मिलता नहीं उल्टा इसकी तासीर गर्म होने के कारण लोगों के नाक से खून आना, पेट में जलन होना, दस्त लग जाना, पेट से जुड़ी कोई अन्य परेशानी का बढ़ जाना, महिलाओं में समय से पहले माहवारी आ जाना या लम्बे समय तक माहवारी आते रहना, लिवर सम्बंधित परेशानी या कई लोगों को बवासीर भी हो सकती है।
काढ़े का सेवन शुरुआती सर्दी, जुकाम या कफ की समस्या में भी नहीं करना चाहिए क्योंकि हमारा शरीर प्राकृतिक रूप से बीमारियों से लड़ता है और इस तरह की शुरुआती दिक्कत 2-4 दिनों में अपने आप ठीक हो जाती है, इस दौरान गुनगुने पानी की भाप, गुनगुने पानी का सेवन व ठंडी चीज़ों व ठंडे मौसम में रहने से बचना चाहिए! इस तरह की परेशानियों में आरम्भिक समय में काढ़ा पीने से कई बार कफ सूख जाता है जिससे सूखी खांसी की समस्या बढ़ सकती है! समझने वाली एक बात और है कि जब हम खाना खाते हैं तो क्या मिर्च या नमक किसी भी मात्रा में लेते हैं?
शायद कोई भी इनका सेवन बहुत थोड़ी ही मात्रा में करता है और यदि ज्यादा मात्रा में इनका सेवन कर ले तो उसे कुछ न कुछ शारीरिक परेशानी होती ही है, इसी तरह जब किसी रोग के उपचार की बात आती है तो उसमें हम क्यों लापरवाह होकर अपने शरीर को प्रयोगशाला समझकर कुछ भी इस्तेमाल कर लेते हैं?
विशेषज्ञ इसलिए ही होते हैं उनसे परामर्श करके ही उपचार करें, और अपने शरीर को स्वयं से प्रयोगशाला न बनायें या सोशल मीडिया पर कुछ भी पढ़कर अति ज्ञानी न बनें और यदि ऐसा कुछ करें तो कम से कम आयुर्वेद को उसके लिए न कोसें क्योंकि आयुर्वेद प्राकृतिक सिद्धांतों पर आधारित एक पूर्ण चिकित्सा विज्ञान है जिसका चिकित्सक बनने के लिए 5.5 वर्ष की BAMS की पढ़ाई और अन्य विशेषज्ञताओं को प्राप्त करने के लिए 3-5 वर्ष (MD/MS/PhD) तक की पढाई और करनी पड़ती है, इसलिए कृपया विषय के विशेषज्ञ के पास ही जाकर अपना उपचार करवायें!
वैसे इम्युनिटी कोई खाने का लड्डू जैसा नहीं है कि कुछ दिन आपने कोई दवा खरीद के सेवन कर ली और आपकी इम्युनिटी जादू की तरह बढ़ गई! इम्युनिटी बढ़ाने के लिए जब आप नियमित रूप से आसानी से पचने वाले फल, सब्जियों, दालों आदि का सेवन करते हैं व इसके साथ-साथ मन से भी लगातार सकारात्मक चिंतन व प्रसन्न रहना जरुरी है, क्योंकि मानसिक रूप से प्रसन्न रहने पर आपके शरीर में अच्छे हॉर्मोन्स निकलते हैं जो आपकी इम्युनिटी को बढ़ाने का काम अपने-आप करते हैं, आप सिर्फ 7 दिन एक बेहतर लाइफ स्टाइल व खान-पान को अपनाकर देखें वह आपकी इम्युनिटी को इतना बढ़ा देगा जितना आप महीनों और ट्रक भर-भर के दवाओं को खाने के बाद भी नहीं बढ़ा पायेंगे!
बारिश के मौसम में हम स्ट्रीट फूड से परहेज करने या बारिश में भीगने जैसी सावधानियां तो बरतते हैं, लेकिन इस दौरान अपनी आंखों को भूल जाते हैं। जबकि मॉनसून अपने साथ आद्र्रता लाता है, जो आंखों के संक्रमण का मुख्य कारण है। आंखों को लेकर यह लापरवाही बच्चों के मामले में ज्यादा खतरनाक होती है। बच्चों में वयस्कों की तुलना में कम प्रतिरक्षा होने के कारण उनमें संक्रमण होने का खतरा अधिक होता है।
बच्चों में आंखों में होने वाले कुछ सामान्य संक्रमणों में कंजेक्टिवायटिस, स्टाय और आंखों की एलर्जी शामिल हैं।
मुलुंड स्थित फोर्टिस अस्पताल की बाल नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. गिरिजा सुरेश कहती हैं कि हालांकि इन संक्रमणों के पीछे कई कारण हैं, जिनमें बैक्टीरिया या वायरल संक्रमण जैसे सामान्य सर्दी, फ्लू या यहां तक कि आंखों को बार-बार रगड़ना भी शामिल हैं। इसे लेकर अभिभावकों को खासा सावधानी बरतनी चाहिए और बच्चों को समझाने की कोशिश भी करनी चाहिए।
बार-बार हाथ धुलाना
बच्चे अनजाने में कई तरह की चीजों को छूते हैं और फिर अपने चेहरे को छूते हैं। इससे भी आंखों में संक्रमण होता है। लिहाजा माता-पिता अपने बच्चों को बार-बार हाथ धोना सिखाएं।
नियमित तौर पर आंखों की जांच कराएं
बच्चों में आंखों के संक्रमण को रोकने का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह है कि उनकी हर साल नियमित तौर पर स्थानीय नेत्र विशेषज्ञ से जांच करवाएं। इससे न केवल आंख में किसी भी प्रकार की असामान्यता का पता लगाने में मदद मिलती है, बल्कि भविष्य में बच्चों को आंखों की परेशानी से बचाती है।
बाहरी तत्वों से सुरक्षा
कंजेक्टिवायटिस जैसे संचार वाले संक्रमण एक बच्चे से दूसरे में फैलते हैं। इसे लेकर सतर्क रहें और बच्चों को स्वच्छता का पालन करना सिखाएं। सार्वजनिक स्थानों, पार्क आदि से खेलकर लौटने पर उनके हाथ-मुंह साफ कराएं।
उचित उपचार
सबसे जरूरी चीज यह है कि कोई भी समस्या होने पर विशेषज्ञ से सही उपचार कराएं। एंटीबायोटिक और ल्युब्रिकेंट वाले आई ड्रॉप उपचार में खासा मददगार हैं।
सावन का महीना आरम्भ हो चुका है, इस काल को वर्षा ऋतु के नाम से भी जाना जाता है। सावन के महीने से जुड़े कई सारे मिथ व भ्रांतियां हैं, आईये डॉ. अभिषेक गुप्ता से जानते हैं क्या है इनसे जुड़ी वैज्ञानिकता !
श्रावण का महीना - जुलाई से अगस्त के बीच के समय को माना जाता है, इस ऋतु में सूर्य का बल क्षीण और चन्द्रमा का बल पूर्ण होता है, वातावरण का स्वभाव स्निग्ध होता है और द्रव्यों में अम्ल रस की वृद्धि अधिक होती है, लोगों के शरीर में बल अल्प होता है व पित्त शरीर में धीरे-धीरे इकठ्ठा होता है और वात का प्रकोप होता है। इस ऋतु से पहले आदान काल अर्थात गर्मी के कारण शरीर दुर्बल होता है व जठराग्नि भी कमजोर होती है, इसके बाद जब बारिश (बरसात) होती है तो जमीन से भाप निकलती है (जिससे वातावरण में नमी/humidity बढ़ जाती है) ऐसे में भूमिगत (जमीन से प्राप्त होने वाला) जल अम्ल विपाक का हो जाता है, यदि इसे पीने के लिए प्रयोग किया जाता है तो वह अग्नि को और अधिक कमजोर / मंद कर देता है! इन्हीं कारणों से इस मौसम में हमारा इम्यून सिस्टम भी बहुत कमजोर हो जाता है जिसके कारण शरीर को कई बीमारियां अपना शिकार बना लेती हैं।
क्या करें और क्या न करें !
बरसात के मौसम में जहाँ एक ओर चारो तरफ हरियाली छा जाती है, वहीं दूसरी ओर बीमारियों का भी खतरा बना रहता है। इस मौसम में उत्पन्न होने वाले भूमिगत सब्जियों में वर्षा के कारण कीड़े-मकोड़े उत्पन्न होने लगते हैं इसलिए इस मौसम में बहुत सोच समझकर खाद्य पदार्थ खाने चाहिए, विशेषकर के हरी सब्जियां, दूध व मांस-मछली आदि।
खाने योग्य आहार: पुराना अन्न जैसे - जौ, चावल, गेहूं आदि, अरिष्ट, उबला हुआ पानी, क्लेद नाशक व वात नाशक और मधु मिश्रित आहार।
करने योग्य विहार: वमन-विरेचन से शरीर का संशोधन करके बस्तिकर्म का सेवन इस मौसम में बहुत लाभदायक रहता है, आम पाचन व दीपन करवाकर इन क्रियाओं का सेवन हितकर रहता है। कॉकरोच-चूहे आदि से रहित घर में निवास, उबटन, सुगन्धित द्रव्यों और धूपन का प्रयोग।
अपथ्य (बिल्कुल प्रयोग न करें) : नदियों का जल, दिन में सोना, अधिक पतला आहार, अधिक मैथुन, अधिक व्यायाम या पैदल चलना, ठन्डे वातावरण जैसे ए.सी. कूलर आदि में रहना।
कुछ भ्रांतियां और वास्तविक तथ्य
भ्रांति - सावन में बैगन नहीं खाना चाहिए क्योंकि इसे भगवान पर चढ़ाया जाता है !
सच्चाई - इसे इस ऋतु में इसलिए नहीं खाया जाता क्योंकि सबसे जल्दी कीड़े बैगन में ही पड़ते हैं, जिसके कारण यह कई प्रकार की बीमारियों का वाहक बन जाता है, इस कारण ही संभवतः इसे पहले के लोगों ने भगवान से जोड़ दिया होगा, जिससे वे इसका सेवन करके रोग ग्रस्त न हो जायें।
भ्रांतियां और आयुर्वेदिक/वैज्ञानिक दृष्टिकोण
शिवलिंग पर दूध चढ़ाने से भगवान प्रसन्न होते हैं!
सच्चाई: शिवलिंग पर दूध चढ़ाने की परम्परा इसलिए आरम्भ हुई क्योंकि पहले के समय में दूध ही मुख्य आहार था, दूध से बने पदार्थ ही लोग ज्यादा खाते थे, आज भी बहुत बड़े हिस्से में लोग दूध से बने पदार्थों का ही सेवन करते हैं, वर्षा ऋतु या सावन के मौसम में हरी सब्जियों या घास आदि में कीड़े-मकोड़े ज्यादा उत्पन्न होते हैं व अम्ल विपाक भी अधिक बढ़ जाता है, जब पशु ऐसे आहार का सेवन करेगा तो निश्चित ही उसका दूध भी दूषित हो जाता है, साथ ही हमारे देश में भैंस का दूध अधिक पिया जाता है जो अग्नि को मंद करता है ऐसे में उस दूषित दूध का सेवन करने से कई तरह के रोग होने की सम्भावना बढ़ जाती है, और यदि यह दूध जानवरों के बच्चे अधिक पियें या उन्हें दुहा न जाये तो कई तरह के रोग उनको भी हो सकते हैं, ऐसे दूध को निकालकर फेंका भी नहीं जा सकता ऐसे में इस तरह के दूषित दूध को सावन का महीना होने के कारण भगवान शिव पर चढ़ाया जाने लगा!!
इस कार्य को संभवतः यह कहकर प्रचारित कर दिया गया की शिवलिंग पर दूध चढ़ाने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं जो एक अलग तरह की परंपरा बन गई। यदि किसी व्यक्ति की अग्नि अच्छी है और दूध देने वाले पशु ने शुद्ध आहार का सेवन किया है तो निश्चित ही इसे सेवन कर सकते हैं और ऐसे शुद्ध दूध को शिवलिंग पर चढ़ाने की भी आवश्यकता नहीं है, भोलेनाथ तो आपके पानी से भी प्रसन्न हो जायेंगे ।
सावन में मांस-मछली और प्याज-लहसुन खाना वर्जित क्यों?
सच्चाई: सावन के महीने मांस और मछली खाने और प्याज-लहसुन का सेवन करने की मनाही इसलिए नहीं होती क्योंकि उससे पाप बढ़ता है। इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि यदि आप इस मौसम में अपनी अग्नि बेहतर करना चाहते हैं व आध्यात्म से जुड़ना चाहते हैं तो तामसिक प्रवृत्ति वाले भोजनों से अध्यात्म के मार्ग में बाधा आती है व ऐसे आहार गुरु होने के कारण अग्नि भी कमजोर करते है, जिससे कई तरह के उदर सम्बंधित रोगों की उत्पत्ति होती है। इतना ही नहीं मांस खाने से उनमें मौजूद बैक्टीरिया और कीटाणु से भी बीमारी हो सकती है। इसके अलावा एक और तथ्य यह है कि सावन माह में मछलियों के लिए प्रजनन का समय होता है इसलिए इस समय मछलियों का शिकार करना और खाना वर्जित होता है।
दिल की बाईपास सर्जरी करा चुके लोग यदि रात को अच्छी नींद चाहते हैं तो उन्हें सुबह आधा घंटा टहलना चाहिए। यह बात एक अध्ययन में कही गई है। मिस्र की काहिरा यूनिवर्सिटी के अध्ययन के लेखक हादी आतेफ ने कहा है, "दिल की बाईपास सर्जरी कराने के बाद कई मरीजों में नींद की समस्या पैदा हो जाती है।"
उन्होंने कहा, "यह स्थिति छह महीने से ज्यादा बने रहने के बाद दिल की स्थिति बिगड़ जाती है और मरीज में दोबारा सर्जरी का जोखिम बढ़ जाता है। लिहाजा बाईपास सर्जरी कराने के बाद नींद में सुधार के उपाय खोजना अत्यंत जरूरी है।"
इस अध्ययन में नींद और कार्यक्षमता दोनों पर कसरत के असर की पड़ताल की गई है। इसमें 45 से 65 साल के ऐसे 80 मरीजों को शामिल किया गया, जिनमें दिल की बाईपास सर्जरी के छह सप्ताह बाद नींद की समस्या थी और उनकी कार्यक्षमता भी घट गई थी।
मरीजों को रैंडमली दो कसरत समूह आवंटित किए गए : एयरोबिक एक्सरसाइज और रजिस्टैंस एक्सरसाइज।
दोनों समूहों ने 10 सप्ताह की अवधि के दौरान सुबह 30 एक्सरसाइज सत्र किए।
एयरोबिक एक्सरसाइज सत्र के दौरान भागीदारों ने एक ट्रेडमिल पर 30-45 मिनट तक वाक की।
एयरोबिक और रजिस्टैंस एक्सरसाइज सत्रों के दौरान भागीदारों ने एक ट्रेडमिल पर 30-45 मिनट तक वाक की और सर्किट वेट ट्रेनिंग (हल्के रजिस्टैंस एक्सरसाइज का एक रूप) की।
10 सप्ताह बाद दोनों एक्सरसाइज समूहों के बीच नींद और कार्यक्षमता में बदलावा की तुलना की गई।
दोनों एक्सरसाइज कार्यक्रमों -अकेले एयरोबिक और एयरोबिक व रजिस्टैंस संयुक्त रूप से- से 10 सप्ताह की अवधि के दौरान नींद और कार्यक्षमता में सुधार हुआ।
अध्ययन के अनुसार, लेकिन अकेले एयरोबिक एक्सरसाइज संयुक्त एक्सरसाइज की तुलना में नींद और कार्यक्षमता के लिए बहुत लाभकारी रहा।
इस अध्ययन को यूरोपियन सोसायटी ऑफ कार्डियोलॉजी (ईएससी) के एक वैज्ञानिक प्लेटफॉर्म, 'एसीएनएपी एसेंसियल्स 4 यू' पर प्रस्तुत किया गया है।
आतेफ ने कहा, "नींद की समस्या और सामान्य गतिविधि में समस्या महसूस करने वाले हर्ट बाईपास मरीजों के लिए हमारी रिफारिश है कि वे सिर्फ एयरोबिक एक्सरसाइज करें।" (एजेंसी)
कोरोना महामारी के बीच रमजान का पवित्र महीना शुरू हो चुका है। लोगों को घरों में रहकर ही इबादत करनी होगी। पोषण विशेषज्ञ का कहना है कि रमजान में सहरी और इफ्तार के वक्त एहतियात बरतना जरूरी है। रोजा रखने वालों को अपने खान-पान पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। यहां के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी की पोषण विशेषज्ञ डॉ़ सुनीता सक्सेना का कहना है कि इफ्तार व सहरी के समय विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है। दिन की शुरुआत सहरी से होती है। सहरी का समय बहुत सुबह का होता है। उस समय नाश्ते में हाई प्रोटीन, हाई काबरेहाइड्रेट, हाई फाइबर और हाईलिक्विड वाली डाइट लेनी चाहिए, जिससे हमारे शरीर का मेटाबॉलिज्म संतुलित रहे। इसके संतुलित रहने से ब्लड शुगर लेवल भी संतुलित रहेगा।
उन्होंने कहा, "रोजेदार सहरी के समय नाश्ते में हाई प्रोटीन जैसे पनीर सैंडविच, वेजिटेबल टोस्ट, स्टफ पराठे, उबले हुए अंडे व आमलेट लें। नींबू शिकंजी में थोड़ा सा शहद डालें, जिससे शरीर में पानी की कमी नहीं रहेगी और शरीर ऊर्जावान रहेगा।"
डॉ. सुनीता ने कहा कि इफ्तारी व सहरी के बीच 7-8 घंटे का गैप होता है, इसलिए रोजा खोलते समय जो भी खाएं उसे जल्दबाजी में न खाएं। आराम से व चबाकर खाएं। इफ्तार में हमें स्टीम्ड, ग्रिल्ड, बेक्ड, रोस्टेड फॉर्म में डाइट लेनी चाहिए। इफ्तार की शुरुआत फ्रूट चाट या खजूर से या फ्रूट जूस या स्टीम स्प्राउट्स (अंकुरित चने या दालें) या ड्राई फ्रूट्स से कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि रोजेदार इफ्तार व सहरी में मछली व चिकन ले सकते हैं, मगर रेड मीट खाने से बचें, क्योंकि यह भारी होता है और देर से पचता है। मछली व चिकन के साथ सलाद व हरी सब्जियां जरूर लें, क्योंकि सलाद व हरी सब्जियों में मौजूद खनिज व विटामिन चिकन व मछली में मौजूद प्रोटीन को आसानी से पचा देते हैं।
डॉ. सुनीता ने कहा, "डिनर के बाद 5-10 मिनट जरूर टहलें। तुरंत न सोएं। अगर रमजान के दौरान खाने में इन सभी चीजों का ध्यान रखेंगे तो आप स्वस्थ भी रहेंगे। स्वास्थ्य विभाग से जो भी गाइडलाइन जारी हुई है, उसका पालन जरूर करें।।" (एजेंसी)
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