By NS Desk | 19-Mar-2021
इसबगोल का पौधा ‘ प्लांटगो आवेट’ के नाम से जाना जाता है और इसे मुख्यतः भारत और पाकिस्तान में उगाया जाता है। इस पौधे की पत्तियां एलोवेरा के पौधे की पत्तियों के जैसी होती हैं तथा यह गेहूं के पौधे के समान दिखता है। इसके भूसी वाले बीज बड़े आकर के फूलों से प्राप्त होते हैं। इसबगोल को आयुर्वेद में विशेष स्थान प्राप्त है और इससे कई प्रकार के लाभ मिलते हैं। यह मृदु विरेचक, मूत्रवर्धक, शीत प्रकृति का होता है। दक्षिण एशिया के अधिकांश घरों में यह आसानी से मिल जाता है। भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में इसके पौधों को सालाना फसल के रूप में उगाया जाता है। प्लांटगो ओवाटा के भूसी युक्त बीज होते हैं। यह पानी में भिगोने पर जेल में बदल कर श्लेष्मिक हो जाता है। इसके बीज में प्रचुर मात्रा में फाइबर मौजूद होता है।
इसबगोल 30% से 70% तक अघुलनशील होता है लेकिन इसमें कुछ घुलनशील फाइबर मौजूद पाए जाते हैं। प्लांटगो ओवाटा के पके बीज अधिचर्म युक्त होते हैं तथा सूखने पर इसकी संलग्न परते छिटक कर अलग हो जाती हैं। इसके भूसी वाले बीजों को संसाधित करके जो फाइबर युक्त छिलका प्राप्त होता है उसका प्रयोग औषधियों, प्रसाधन सामग्री, खाद्य -पदार्थ आदि बनाने वाले विभिन्न उद्योगों में किया जाता किया जाता है। यह अपनी शुद्धता के आधार पर हल्का-भूरा या सफेद रंग का होता है।
इसबगोल का प्रयोग कई तरह के रोगों के उपचार में किया जाता है, जोसे- चिड़चिड़ाहट, आइवी के विष की प्रतिक्रिया, कीटों द्वारा काटना आदि। भारत विश्व में इसबगोल का सहसे बड़ा उत्पादक देश है। यह लगभग साठ प्रतिशत इसबगोल का उत्पादन करता है। भारत तथा चीन में इसबगोल का उपयोग विभिन्न रोगों, जैसे-पित्त से संबंधित समस्याओं, ह्रदय की धमनी संबंधित रोग, अंधवर्धी या डाइवर्टिकुलर रोग, हैमोराइड्स, हाइपरटेंशन, मूत्राशय से संबंधित समस्याओं आदि के उपचार के लिए एक पारंपरिक औषधि के रूप में किया जाता है। इसबगोल की फसल मुख्यतः गुजरात तथा राजस्थान के कई जिलों में 50,000 हेक्टेयर से ज्यादा कृषि क्षेत्र में उगाई जाती है। गुजरात में इसे महसाना, बंसकंठा, साबरकंठा में तथा राजस्थान में जालोर, पाली,, जोधपुर, बाड़मेर, नागौर तथा सिरोही जिलों में उगाया जाता है।
इसके कुछ अन्य नाम हैं,जैसे- पाइसिलयम सीड हस्क, अश्वकर्ण, इंडियन प्लांटगो, सपोगेल, इसबगुला, इसबगोल, पायसिलियम, सैंड प्लांटेन, फ्ली सीड, प्लांटाजिनिस ओवाटै सी-मेन, सी-मेन इसबगुलै आदि। संस्कृत में इसे अश्वगोला, अश्वकर्ण, अश्वकर्ण बीजा आदि कहते हैं । अंग्रेजी में इसे इसपगुला, ब्लांड पायसिलियम, स्पोजेल सीड्स, पायसिलियम, रिप्पल ग्रास आदि कहते हैं। हिंदी में इसे इसबघुल, स्निग्धजीरक, निगधाबीज, इसुफगुल, आदि कई नामों से जाना जाता है। इसे उड़िया में इस्सागोलु, तेलुगु में इस्पगोला, इस्सपगलुवित्तुलु, इसपगल, तमिल में इशप्पुकोल, इस्कोल, इस्कोलवरै, इसफगोल, घोड़ा जीरु उमतोजीरु, उथमुजीरुन , मराठी में इसबगोल, मलयालम में करकलसरिंगी, इसफघल आदि नमों से जाना जाता है। इसके वानस्पतिक या वैज्ञानिक नाम हैं- प्लांटगो पायसिलियम, प्लांटगो ओवाटा, प्लांटगो इसपघुला तथा प्लांटगो ओवाटा हस्क आदि। बांग्ला भाषा में इसे इसफोपगोल, इसबगुल, इस्शोपगुल इसफगुल, युसूफगुल आदि के नाम से जाना जाता है। पंजाबी इसे लिस्पघोल, बरतंग, अबघोल आदि नामों से तथा कश्मीरी में इस-मोगुल के नाम से जाना जाता है।
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आयुर्वेद में इसबगोल का उपयोग कब्ज से जुड़ी अनेक समस्याओं के उपचार के लिए किया जाता है तथा इसे पारंपरिक औषधि के रूप में जाना जाता है। सामान्यतः इसबगोल अत्यधिक ताकतवर, स्तंभक तथा शीतल प्रकृति की होती है। यह पाचक मार्ग की प्रदाह,कब्ज, हैमोराइड्स आदि की समस्याओं को कम करने तथा साथ शरीर में वात, कफ, पित्त आदि को ठीक करने में महत्वपूर्ण योगदान देती है। मूलतः यह गैस का कारण बन सकती है मगर इसमें प्रचुर मात्रा में फाइबर मौजूद पाया जाता है।
आयुर्वेद में पायसिलियम की भूसी या इसबगोल को अश्वगोला या अश्वकर्ण के नाम से जाना जाता है। इसका बीज शंकु के आकार का तथा लंबा होता है और घोड़े के कान के समान दिखता है तथा अश्वगोला कहलाता है जिसका अर्थ अश्व वर्तुल होता है। अन्य शब्दों में इसे अश्वकर्ण कहते हैं जिसका अर्थ होता है- अश्व या घोड़े का कान।
रस: मधुर यानी मीठा, गुण: स्निग्ध यानी चिकना, भारी, पिच्चिल, वीर्य: शीत यानी ठंडा, विपाका: मधुर यानी मीठा, त्रिदोष: वात,पित्त शामक, उपयोग योग्य भाग: बीज तथा बीजों की भूसी।
प्र. इसबगोल कब्ज से किस प्रकार राहत देती है?
उ. आयुर्वेदिक मत- इसबगोल कब्ज का बहुत ही अच्छी तरह से इलाज करती है और इसमें घुलनशील व अघुलनशील दोनों तरह के फाइबर विद्यमान पाए जाते हैं। यह मल की संघनता में वृद्धि करती है तथा इसमें हाइग्रोस्कोपिक गुण मौजूद होते हैं जो पाचक मार्ग से पानी को अवशोषित करने में मदद करते हैं।
कब्ज के उपचार हेतु इसबगोल के सेवन का तरीका
एक गिलास गरम दूध में दो चम्मच इसबगोल मिलाकर रात को सोने से पहले लेने से कब्ज की समस्या से राहत मिलेगी
नोट: अपनी सेहत को लेकर किसी भी प्रकार की औषधि के सेवन से पूर्व चिकित्सक का परामर्श लेना अनिवार्य है।
प्र. डायरिया का प्राकृतिक उपचार क्या है?
उ. आयुर्वेद मत- इसबगोल में ऐसे गुण मौजूद पाए जाते हैं जो डायरिया के उपचार में मदद करते हैं,क्योंकि यह कब्ज से छुटकारा दिलाने में भी कारगर सिद्ध होती है। इसबगोल कब्ज तथा डायरिया दोनों के उपचार में मदद करती है। यह संक्रमण की रोकथाम में सहायक होती है।
डायरिया से राहत पाने के लिए इसबगोल के सेवन का तरीका
• इसबगोल को गरम दूध में लेना लाभदायक रहता है। यह कब्ज के मामले में बेहतर आराम देता है।
• दो चम्मच इसबगोल तथा तीन चम्मच दही को आपस में अच्छी तरह से मिला लें।
• दही में मिलाकर इसबगोल का सेवन भोजन के उपरांत करना चाहिए।
• अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए इसका दिन में दो बार सेवन करें।
नोट: अपनी सेहत को लेकर किसी भी प्रकार की औषधि के सेवन से पूर्व चिकित्सक का परामर्श लेना अनिवार्य है।
प्र. इसबगोल पाचन में सुधार कैसे करती है?
उ. इसबगोल में फाइबर प्रचुर मात्रा में मौजूद पाए जाते हैं और इसीलिए यह भोजन को पचाने में योग देती है। यह आंत में भोजन को गति प्रदान कर आमाशय की मदद करती है। यह आमाशय की दीवारों से अतिरिक्त टोक्सिन या जीव विष को साफ कर उसकी सफाई में भी योग देती है।
पाचन में सुधार के उद्देश्य से इसबगोल या पायसिलियम की भूसी के सेवन की विधि
• एक गिलास इसबगोल का पानी पीने से पाचन में सुधार आ सकता है।
• प्रतिदिन भोजन के उपरांत एक गिलास छाछ में इसबगोल का सेवन करने से काफी लाभ मिलता है।
नोट: अपनी सेहत के लिए किसी भी प्रकार की औषधि के सेवन से पूर्व चिकित्सक का परामर्श लेना अनिवार्य है।
प्र. इसबगोल आपकी बड़ी आंत की सफाई कैसे करती है?
उ. पहले ही बताया जा चुका है कि इसबगोल में हाइग्रोस्कोपिक गुण मौजूद होते हैं और यह बड़ी आंत या कोलोन की सफाई में सहायक होती है। यह बड़ी आंत में से गुजरते हुए खतरनाक टोक्सिन या जीव विष को सोख लेती है। इस टोक्सिन या जीव विष को को आयुर्वेद में आम कहते हैं जो एक विषैला अपशिष्ट होता है और आमाशय की दीवारों पर जम जाता है। इसबगोल बड़ी आंत की सफाई में मदद करती है।
बड़ी आंत की सफाई हेतु इसबगोल के सेवन का तरीका
महीने में तीन या चार बार इसबगोल का गरम दूध या अपनी पसंद के किसी भी जूस में रात को सोने से पहले सेवन करें।
नोट: अपनी सेहत के लिए किसी भी प्रकार की औषधि के सेवन से पूर्व चिकित्सक का परामर्श लेना अनिवार्य है।
प्र. इसबगोल की मदद से वज़न कम करने का उद्देश्य कैसे पूरा हो सकता है?
उ. इसबगोल बड़ी आंत की सफाई, अपच या अजीर्ण तथा कब्ज में आराम देता है और इस तरह यह वज़न कम करने में मदद करती है। इसबगोल के कारण पेट लंबे समय तक भरा रहता है तथा भूख का एहसास नहीं होता है और इस प्रकार यह आपको अतिरिक्त भोजन या जंक फूड आदि के सेवन से बचाकर आपके वज़न को कम करने में मदद करती है।
वज़न कम करने के लिए इसबगोल के सेवन का तरीका
• इसबगोल, गरम पानी तथा नींबू का रस लें।
• इन्हें अच्छी तरह से मिला लें।
• इसे सुबह खाली पेट पीना चाहिए।
• जब भी चाहें इसबगोल का पानी के साथ सेवन कर सकते हैं। इसके सेवन से आपको भूख से आजादी मिलेगी और आप बेकार की कैलोरी के सेवन से बच पाएंगे।
नोट: अपनी सेहत के लिए किसी भी प्रकार की औषधि के सेवन से पूर्व चिकित्सक का परामर्श लेना अनिवार्य है।
प्र. इसबगोल एसिडिटी में आराम कैसे देती है?
उ. सामान्यतः पेट में जलन एसिडिटी के संकेत होते हैं। इसबगोल पेट में एसिडिटी की जलन से राहत पाने का सबसे अच्छा प्राकृतिक उपचार है।
• इसबगोल एसिडिटी की जलन से सुरक्षित रखती है तथा आमाशय को एक सुरक्षित परत प्रदान करती है।
• यह आमाशय में एसिड के प्रभाव को मिटाती है तथा पाचन में सुधार लाती है व साथ ही पाचक एसिड के असामान्य स्राव को नियंत्रित करती है।
नोट: अपनी सेहत के लिए किसी भी प्रकार की औषधि के सेवन से पूर्व चिकित्सक का परामर्श लेना अनिवार्य है।
प्र. बवासीर एवं फिशर के उपचार में इसबगोल कैसे मदद करती है?
उ. हम इस बात का वर्णन पहले ही कर चुके हैं कि इसबगोल में घुलनशील तथा अघुलनशील दोनों प्रकार के फाइबर मौजूद पाए जाते हैं। यह अपने लैक्सटिव गुणों के कारण आंतों की प्राकृतिक गति को नियंत्रित करने में मदद करती है। बवासीर तथा फिशर जैसी पीडादायक समस्याओं का इसबगोल सेवन से उपचार किया जा सकता है। इसबगोल बावेल मवमेंट को शांत करती है। इसबगोल के हाइग्रोस्कोपिक गुण आंतों के चारों तरफ के भागों से पानी को सोखने में मदद करते हैं । यह प्रक्रिया मल को नरम बनाती है तथा वह बिना कोई परेशानी या दर्द पैदा किए आसानी से शरीर से बाहर मुक्त हो जाता है। इसबगोल की भूसी विदर या फिशर के उपचार में मदद करती है, क्योंकि यह मलत्याग को प्राकृतिक तौर पर परेशानी रहित बनाती है। इसके अलावा यह घावों का भरना भी आसान बनाती है।
बवासीर और फिशर के उपचार हेतु इसबगोल के सेवन का तरीका
रात को सोने से पहले गरम पानी में इसबगोल का सेवन करने से स्थिति में सुधार आ जाएगा।
नोट: अपनी सेहत के लिए किसी भी प्रकार की औषधि के सेवन से पूर्व चिकित्सक का परामर्श लेना अनिवार्य है।
प्र. इसबगोल ह्रदय की स्थिति में सुधार कैसे लाती है?
उ. इसबगोल का उपभोग सुनिश्चित करता है कि आपका ह्रदय की धमनियों से जुड़े रोगों का खतरा कम हो गया है। आधुनिक अध्ययन इस बात पर बहुत जोर देते हैं कि आहार में घुलनशील फाइबर अवश्य सम्मिलित होना चाहिए। इसबगोल आहार में फाइबर की कमी को पूरा करके दिल या ह्रदय से जुड़े जोखिम को कम करता है। अतः अपने आहार में ऐसे फाइबर युक्त अनाजों को अवश्य जगह देनी चाहिए।
इस तरह के आहार से ह्रदय से जुड़े रोगों की संभावना बहुत कम हो जाती है। अनेक अध्ययन यह दर्शाते हैं कि फाइबर जैसे की इसबगोल की भूसी आदि को आहार का हिस्सा बना लिया जाए तो ह्रदय की स्थिति में सुधार आ सकता है। इसके अलावा यह ह्रदय की मांसपेशियों को मजबूत बनाती है तथा रक्तचाप को कम करने व लिपिड के लेवल को बढ़ाने में मदद भी करती है।
नोट: अपनी सेहत के लिए किसी भी प्रकार की औषधि के सेवन से पूर्व चिकित्सक का परामर्श लेना अनिवार्य है।
प्र. इसबगोल उच्च कोलेस्ट्रॉल लेवल को कैसे नियंत्रित करती है?
उ. इसबगोल का सेवन अपने हाइग्रोस्कोपिक गुणों के कारण दिल के लिए काफी फायदेमंद होता है। यह भोजन से कोलेस्ट्रॉल के अवशोषण से बचाव कर रक्त में सीरिम कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को सफलतापूर्वक कम करता है तथा आंतों की दीवारों के चारों तरफ एक पतली परत का निर्माण कर देता है। इसीलिए स्वास्थ्य विशेषज्ञ इसबगोल के उपभोग पर बहुत अधिक जोर देते हैं। यदि आहार में कम वसा, कम कोलेस्ट्रॉल, घुलनशील फाइबर, जैसे इसबगोल की भूसी, गुड़, अलसी के बीज, जईं का चोकर आदि शामिल हों तो शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा के नियंत्रित होने में बहुत अधिक मदद मिल सकती है।
यह ह्रदय रोगों का खतरा कम करता है तथा शरीर में बुरे कोलेस्ट्रॉल का लेवल कम करता है और इसके साथ ही इसबगोल की भूसी का उपभोग कोलेस्ट्रॉल के लेवल में कमी लाने में काफी मददगार साबित होता है। इस प्रकार लोग इसबगोल के उपभोग से आसानी से कोलेस्ट्रॉल का लेवल कम कर सकते हैं तथा इसके दुष्प्रभाव भी नाममात्र ही देखने को मिलते हैं।
नोट: अपनी सेहत के लिए किसी भी प्रकार की औषधि के सेवन से पूर्व चिकित्सक का परामर्श लेना अनिवार्य है।
प्र. इसबगोल मधुमेह का उपचार कैसे करती है?
उ. शरीर में इसबगोल ग्लूकोज को सोखती है और इसमें गेलाटिन नाम का एक प्राकृतिक तत्व मौजूद पाया जाता है जो तोड़ने या अनुविभाजित करने की प्रक्रिया को मंद करता है और मधुमेह को नियंत्रित करने में मदद करता है। यह फाइबर के रूप में समृद्ध होता है और फाइबर युक्त खाद्य-पदार्थ शरीर में इंसुलिन के लेवल को कम करने के लिए जाने जाते हैं। यह मधुमेह के रोगियों में कोलेस्ट्रॉल के लेवल को कम करती है और यह साबित करती है कि फाइबर युक्त खाद्य-पदार्थों के सेवन से इंसुलिन तथा रक्त शर्करा के लेवल में कमी आती है। यह जिन लोगों को मधुमेह के होने की संभावना होती है उनको इसके खतरे से बचाने में सहायता कर सकती है।
मधुमेह के रोगियों के लिए इसबगोल के सेवन का तरीका
इसके उपचार के लिए व्यक्ति भोजन के उपरांत इसबगोल को पानी के साथ उपभोग कर सकता है।
नोट: अपनी सेहत के लिए किसी भी प्रकार की औषधि के सेवन से पूर्व चिकित्सक का परामर्श लेना अनिवार्य है।
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आधार | आयुर्वेदिक मत |
विशेषज्ञों की राय | • इसकी भारी प्रकृति की वजह से इसका ज्यादा मात्रा में सेवन पेट के भारीपन कारण बन सकती है। • इसबगोल का निर्देशित मात्रा में तथा निर्देशित अवधि में ही सेवन करें। |
मधुमेह के रोगी | • यदि इसबगोल का सेवन मधुमेह की दवाइयां खाने के साथ-साथ कर रहे हैं तो रक्त शर्करा के स्तर की नियमित जांच कराते रहें। |
ह्रदय रोगी | • यदि उच्च रक्तचाप की दवाइयां खाने के साथ-साथ इसबगोल का सेवन भी कर रहे हैं तो रक्तचाप की नियमित जांच की सलाह दी जाती है। |
इसबगोल की मात्रा
इसबगोल पाउडर: एक से दो चम्मच दिन में एक या दो बार लें।
इसबगोल कैपसूल: 1-2 कैपसूल दिन में एक या दो बार लें।
प्र. क्या इसबगोल का अधिक मात्रा में सेवन किया जा सकता है?
उ. इसबगोल अपनी विरेचक प्रकृति के कारण कब्ज के उपचार में काफी मदद करता है मगर यदि आप इसका अधिक मात्रा में सेवन करते हैं तो यह डायरिया या दस्त का कारण बन सकता है।
प्र. क्या गरम पानी से इसबगोल का सेवन डायरिया का कारण बनता है?
उ. हां, यदि आप गरम पानी के साथ अधिक मात्रा में इसबगोल लेते हैं तो यह अपनी विरेचक प्रकृति के कारण डायरिया का कारण बन सकती है।
प्र. क्या वज़न कम करने के लिए इसबगोल का सेवन किया जा सकता है?
उ. आयुर्वेदिक मत- कमजोर पाचन के कारण शरीर में अतिरिक्त वसा या टोक्सिन या जीव विष का जमाव होने से शारीरिक मोटापा आता है। यह अपनी स्निग्ध व मूत्रवर्धक प्रकृति के कारण भी वजन कम करती है। यह आंत में मल की गति को को सरल बनाती है तथा मल आसानी से शरीर से बाहर मुक्त हो जाता है तथा अतिरिक्त वसा से छुटकारा मिल जाता है। यह मूत्र की उत्पत्ति में वृद्धि भी करती है।
प्र. क्या इसबगोल का दूध के साथ उपभोग करने का कोई लाभ प्राप्त होता है?
उ. आयुर्वेदिक मत- जब इसबगोल को गरम दूध के साथ लिया जाता है तो यह अपने विरेचक तथा स्निग्ध गुणों के कारण कब्ज की स्थिति में सुधार लाती है इसके साथ ही इसके ये गुण आंतों की सफाई कर उनकी गति में सुधार भी लाते हैं। इसबगोल को दूध के साथ लेने से यह कमजोर पाचन तंत्र में सुधार लाता है।
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बाजार में इसबगोल आसानी से उपलब्ध हो जाती है तथा इसमें बहुत ही महत्वपूर्ण यौगिक निहित पाए जाते हैं। इसके फायदे बहुत ही अधिक होते हैं तथा दुष्प्रभाव न के बराबर ही होते हैं। इसमें मौजूद यौगिक इसको आहार में नियमित रूप से लेने से उदर को स्वस्थ या सेहतमंद बनाते हैं।
http://www.ayurveda.hu/api/API-Vol-1.pdf
https://main.ayush.gov.in/sites/default/files/Ayurvedic%20Pharmacopoeia%20of%20India%20part%201%20volume%20IX.pdf
https://pubmed.ncbi.nlm.nih.gov/29513942/
file:///C:/Users/ADMIN/Downloads/article_wjpr_1414822603.pdf
https://www.worldwidejournals.com/international-journal-of-scientific-research-(IJSR)/recent_issues_pdf/2016/February/February_2016_1454317038__163.pdf
https://www.ijsr.net/archive/v4i9/SUB158459.pdf
http://www.dmapr.org.in/Publications/bulletine/Good%20Agricultural%20Practices%20for%20Isabgol.pdf