By NS Desk | 23-Mar-2021
बेल भारतीय उपमहाद्वीप का मूल पौधा है। हिंदू लोग इसे “भगवान शिव का पेड़” कह कर पुकारते हैं। बेल का पेड़ भारत, नेपाल तथा म्यांमार में बहुतायत में पाया जाता है। इस पेड़ की पत्तियां बड़े ही सुंदर ढंग से तीन के समूह में व्यवस्थित पायी जाती हैं।
इस पेड़ के औषधीय गुणों के कारण हमारे पूर्वज इसका पीढ़ियों से उपयोग करते आएं हैं और इसका आयुर्वेदिक ग्रंथों में विशेष तौर पर वर्णन मिलता है। इसके औषधीय महत्व को देखते हुए इसे “गोल्डन एप्पल” की संज्ञा दी जाती है। बेल के फल का भोजन पकाने में प्रयोग किया जाता है तथा साथ ही इसे कच्चा भी खाया जाता है। यह फल काफी स्वादिष्ट होता है और इसे खाना सभी पसंद करते हैं।
आध्यात्मिक प्रस्तुति- हिंदू पुराणों के मुताबिक इस पेड़ की पत्तियों वाली व्यवस्था तीन देवों ब्रह्मा विष्णु और महेश की शक्ति का प्रतीक माना जाता है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि इसकी ये तीन पत्तियां भगवान विष्णु की तीन आंखों का प्रतीक हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि बेल का पहला पेड़ भगवती पार्वती के पसीने से उपजा था और वह अपने विभिन्न अवतार रूप में इस पेड़ के विविध भागों में विराजमान हैं। इसे सकारात्मकता तथा सौभाग्य का सूचक माना जाता है।
बेल शब्द का निकास संस्कृत के “बिल्व” शब्द से हुआ है। वैदिक साहित्य के अनुसार यह दशमूल में से एक है जिसका अर्थ दस जड़ों का समूह होता है। हिंदू लोगों द्वारा पवित्र माना जाने वाला यह पेड़ मोनोटाइपिक बिल्व वंश का इकलौता सदस्य है। इसका वैज्ञानिक नाम ऐजेल मार्मेलोस है। बेल को बंगाल क्वींस, गोल्डन एप्पल, जैपनिज बीटर ऑरेंज, स्टोन एप्पल या वुड एप्पल भी कहते हैं।
भारत के जंगलों, म्यांमार के मध्य तथा दक्षिणी भागों और फ्रेंच इंडो-चाइना के पतझड़ वनों में उगने वाले इस पेड़ का जिक्र 800 बी. सी. काल के आयुर्वेदिक ग्रंथों में भी मिलता है। आजकल यह पेड़ समस्त भारत में पाया जाता है। इसकी एक पवित्र पेड़ के रूप में मान्यता के कारण इसे अतीत से ही मंदिरों के बगीचों में उगाया जाता रहा है। मिश्र के लोग इसे अपने उद्यानों में उगाया करते थे। इसके बीजों का चिकित्सकीय उपचार में उपयोग किया जाता रहा है। इसका उपयोग पेट के लगभग सभी रोगों, जैसे- डायरिया, कब्ज आदि के उपचार में किया जाता है। चूंकि इसे एक पवित्र पेड़ माना जाता है और इसी कारण हमारे पूर्वज इसका उपयोग देवताओं पर चढ़ाने के लिए किया करते थे। इसके इस धार्मिक उपयोग का वर्णन ऋगवेद के श्री शुक्तम नामक भाग में मिलता है।
बेल के किन-किन भागों का उपयोग किया जाता है?
बेल का पेड़ अपनेआप में एक चमत्कार ही माना जाता है। इस पेड़ के लगभग समस्त भागों का स्वास्थ्य लाभ पाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
लोगों द्वारा उपयोग में लिए जाने वाले इसके भाग हैं-
बेल की छाल का चिकित्सकीय उपचार में उपयोग नहीं किया जाता है। इस पेड़ की उत्पत्ति भगवती पार्वती के पसीने से हुई मानी जाती है और इसी वजह से इसे पवित्र माना जाता है। इस मांगलिक पेड़ को सौभाग्य का सूचक माना जाता है। लोगों का विश्वास है कि इस पेड़ की छाल को जलाना नहीं चाहिए और इसका उपयोग सौभाग्य को प्राप्त करने के लिए किया जा सकता है, क्योंकि यह दुर्भाग्य को दूर करने वाली मानी जाती है। इसकी छाल तथा लकड़ी के चिकित्सकीय इस्तेमाल के बारे में कहीं कोई वर्णन नहीं मिलता है।
बेल के औषधीय लाभों को लेकर अनेक वैज्ञानिक शोध हो चुके हैं। बेल का उपयोग त्वचा की समस्याओं, पाचन प्रणाली की दिक्कतें तथा कब्ज आदि के उपचार के लिए किया जाता है। इसका उपयोग बालों की क्षति तथा अन्य कई प्रकार की समस्याओं के उपचार के लिए भी होता है।
यहां बेल से उपचारित होने वाली कुछ बीमारियों तथा उसके उपयोग के विषय में जानकारी दी जाती है।
विभिन्न दोषों पर बेल का प्रभाव
बेल शरीर में व्याप्त दोषों को दूर करने में मदद करता है।
● खांसी-जुकाम के उपचार में मदद
आयुर्वेद- आयुर्वेदिक ग्रंथों के मुताबिक बेल का कासघन के लिए उपयोग किया जाता है। कासघन का अर्थ है कि खांसी-जुकाम से आराम दिलाना। बेल का खांसी के कारण उत्पन्न संकुलन संबंधित समस्याओं के उपचार के लिए उपयोग प्राचीन समय से होता आ रहा है और यह जुकाम में भी राहत देता है।
● डायरिया के उपचार में मदद
आयुर्वेद- आयुर्वेद के अनुसार बेल के पके फल का जूस या पल्प के रूप में सेवन करने से हैजा तथा डायरिया के उपचार में मदद मिलती है।
● कब्ज के उपचार में मदद
आयुर्वेद- बेल एंटीबैक्टीरियल तथा एंटीफंग्ल होता है। आयुर्वेद के अनुसार इसमें मौजूद फाइबर पेट के संक्रमण तथा कब्ज के उपचार में सहायक होते हैं।
इसका उपयोग नीचे दिए गए कुछ अन्य रोगों के उपचार के लिए भी होता है-
बेल के पेड़ पर लगने वाला फल कटु (तीक्ष्ण), तिक्त (कड़वा), तथा कसाय (स्तम्मक) होता है। इसमें उष्ण वीर्य (गरम शक्ति) तथा कटु विपक (जैसे कि स्तम्मक, उपापचयी) गुण मौजूद होते हैं। यह पित्त दोष (पाचन) की गड़बड़ी को ठीक करता हो और साथ ही वात (वायु) व कफ (पृथ्वी व पानी) दोषों को भी संतुलित करता है।
बेल पाउडर,गोली, कैंडी आदि के रूप में उपलब्ध होता है। इसे मुरब्बे, जूस आदि के रूप में भी उपभोग कर सकते हैं। इसकी मात्रा का चिकित्सकों तथा आयुर्वेदिक ग्रंथों या विशेषज्ञों के निर्देशानुसार होना अनिवार्य होता है।
1. बेल चूर्ण
2. बेल का शरबत
3. बेल का स्क्वैश या शिकंजी
4. बेल की चाय
5. बेल के कैपसूल
6. बेल की गोलियां
7. बेल का मुरब्बा
8. बेल की कैंडी
बेल से बनी कैंडी इसके मीठे या मिठास भरे उपचार का एक खास रूप होता है और यह बाजार में आसानी से उपलब्ध होता है। इसकी कैंडी दवाइयों की दुकानों पर आसानी से मिल जाती है। आप इनका सेवन अपनी इच्छानुसार कर सकते हैं।
किसी भी चीज़ का उसकी अनिवार्य या जायज मात्रा से ज्यादा मात्रा में सेवन करना सेहत के लिए कभी भी अच्छा नहीं होता है। बेल का इसके प्राकृतिक रूप में ज्यादा मात्रा में सेवन करने से पेट से संबंधित समस्याएं पैदा हो सकती हैं। इस कारण आपको बार-बार शौचालय जाने कक नौबत आ सकती है। अति संवेदनशील त्वचा पर बेल के क्या दुष्प्रभाव हो सकते हैं इस बारे में जानकारी देने वाले कोई पुख्ता साक्ष्य अभी तक उपलब्ध नहीं पाए हैं। अतः यदि बेल के इस्तेमाल से आपकी त्वचा पर हानिकारक प्रभाव दिखाई पड़ते हैं तो उस पर इसका इस्तेमाल न करें तथा साथ ही अगर जरूरत महसूस हो तो चिकित्सक से संपर्क भी करें। बेल का उपयोग रक्त शर्करा के स्तर को कम करने के लिए किया जाता है। यदि कोई सामान्य रक्त शर्करा के लेवल वाला व्यक्ति इसका ज्यादा मात्रा में सेवन करता है तो उसके शरीर में भी रक्त शर्करा का लेवल कम हो सकता है। अतः इसीलिए मधुमेह के रोगियों को बेल के सेवन से परहेज रखने की सलाह दी जाती है। अतः ऊपर वर्णित किसी भी प्रकार की दिक्कत हो तो बेल या उससे बने किसी अन्य उत्पाद का उपयोग करने से पूर्व चिकित्सक का परामर्श लेना अनिवार्य है।
यदि आप निम्न परिस्थितियों में हों तो आपको बेल का उपयोग करने से पूर्व निम्न कुछ सावधानियों का पालन करना चाहिए-
1. गर्भवती महिलाओं के लिए
यद्यपि इस बारे में पर्याप्त साक्ष्य मौजूद नहीं हैं कि बेल गर्भवती महिला के स्वास्थ्य पर किस प्रकार के प्रभाव अंकित करता है मगर फिर भी यही सलाह दी जाती है कि ऐसी महिलाएं घर पर इसका उपयोग न करें,क्योंकि यह उनके बच्चे पर हानिकारक प्रभाव अंकित कर सकता है।
2. स्तनपान के दौरान बेल का उपयोग
हालांकि इस बारे में कोई खास जानकारी उपलब्ध नहीं है कि बेल का स्तनपान के दौरान सेवन करने से महिला के स्वास्थ्य पर किस प्रकार के प्रभाव पड़ते हैं। मगर फिर भी उन्हें यही सलाह दी जाती है कि वे घर पर इसका उपयोग न करे, क्योंकि यह उनके बच्चे की सेहत के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है।
3. मधुमेह के रोगियों के लिए
बेल गंभीर रूप से रक्त शर्करा के स्तर को कम कर सकता है। अतः इसीलिए मधुमेह के रोगियों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह उनके लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है।
3. शल्यक्रिया के उपरांत
बेल के कारण शरीर में रक्त शर्करा के स्तर में गंभीर कमी आती है और इसीलिए यह आपकी शल्यक्रिया में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है। अतः इसी से बचने के लिए शल्यक्रिया के दो सप्ताह पूर्व से ही बेल या इसके किसी भी उत्पाद का उपभोग बंद कर देना चाहिए।
प्र. बेल का स्वाद कैसा होता है?
उ. बेल का स्वाद मीठा तथा ताजगी प्रदान करने वाला होता है। इसके स्वाद के बारे में कहा जाता है कि इसका स्वाद आम तथा केले के मिश्रित स्वाद के समकक्ष होता है।
प्र. क्या बेल की लकड़ी खाने योग्य होती है?
उ. बेल की लकड़ी खाने योग्य नहीं होती है और न ही कोई ऐसी जानकारी मिलती है कि इसकी लकड़ी का इस्तेमाल किसी चिकित्सकीय उपचार में होता हो। यद्यपि हिंदू लोग इस पेड़ को पवित्र मानते हैं तथा कहा जाता है कि इस पेड़ की छाल व्यक्ति के सौभाग्य की सूचक होती है तथा इसीलिए इसका इस्तेमाल सौभाग्य प्राप्ति के लिए किया जाता है।
प्र. क्या बेल पेट की गड़बड़ी का कारण बन सकता है?
उ. हालांकि बेल पेट से संबंधित अनेक समस्याओं से राहत पाने में मदद करता है फिर भी इसका अधिक मात्रा में सेवन निषिद्ध माना जाता है, क्योंकि यह डायरिया या पेट की अन्य समस्याओं का कारण बन सकता है।
प्र. बेल का अस्थमा पर कैसा प्रभाव पड़ता है?
उ. बेल में कफनिस्सारक गुण मौजूद पाए जाते हैं जो कफ को संतुलित करके श्वसन संबंधित संक्रमण तथा रोगों के उपचार में खास मदद करता है। यह व्यक्ति को अस्थमा से राहत दे सकता है।
प्र. क्या बेल अल्सर के उपचार में मदद कर सकता है?
उ. अल्सर का कारण पेट की गरमी की वृद्धि बनती है। बेल की प्रकृति शीतल होती है तथा यह पेट को शीतलता प्रदान करता है। अतः पेट के शीतल या ठंडा होने से अल्सर की रोकथाम होती है तथा साथ ही पहले से मौजूद अल्सर का उपचार संभव हो पाता है।
प्र. क्या बेल लिवर के लिए अच्छा होता है?
उ. बेल में एंटीऑक्सीडेंट, एंटीइनफ्लेमेट्री तथा हैप्टोप्रोटेक्टिव गुण मौजूद पाए जाते हैं जो लिवर के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं। अतः अल्कोहल के उपभोग के कारण हई लिवर की क्षति को बेल के सेवन से ठीक किया जा सकता है।
प्र. क्या बेल पुरुष के लिए गर्भ निरोधकता का काम करता है?
उ. बेल को पुरुष के लिए बेहतर गर्भ निरोधक माना जाता है, क्योंकि यह काफी ठंडी प्रकृति का होता है तथा शरीर में टेस्टोस्टिरोन का लेवल कम करता है और इस प्रकार वीर्य का बनना नियंत्रित होता है। जबकि इसका सेवन बंद कर दिए जाने पर स्थिति फिर से बदल जाती है।
प्र. बेल का कोलेस्ट्रॉल पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उ. बेल में हाइपरलिपिडेमिक गुण मौजूद पाए जाते हैं जो कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। इसमें । मौजूद एंटीऑक्सीडेंट रक्त शर्करा के स्तर को कम करता है तथा शरीर में बुरे कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को घटा कर अच्छे कोलेस्ट्रॉल की मात्रा में वृद्धि करता है।
प्र. क्या बेल त्वचा की पित्तिका या ददोरों कारण बनता है?
उ. सामान्यतः यह त्वचा की पित्तिका या ददोरों कारण नहीं बनता है। फिर भी यदि आप अति संवेदनशील त्वचा की समस्या से पीड़ित हैं तो ऐसा हो सकता है। यदि ऐसी समस्या का सामना हो तो अविलंब चिकित्सक से संपर्क कीजिए।
प्र. क्या बेल के पेस्ट को घाव भरने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं?
उ. बेल का पेस्ट नयी कोशिकाओं की वृद्धि में योग देता है और घावों के जल्दी भरने तथा उनके निशानों को मिटाने में मदद करता है।
प्र. क्या बेल बालों को कोई फायदा पहुंचाता है?
उ. बेल की पत्तियों का सुगंध के लिए बालों के तेल में इस्तेमाल किया जाता है। आप इसे हेयर टानिक के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। बेल की पत्तियों का सार तिल जीरे के तेल में मिला कर बालों या सिर की खाल पर मालिश करने से लाभ मिलता है। इससे बालों से जुड़ी समस्याओं, जैसे- रूसी, खुजली आदि से राहत मिल सकती है। यह बालों को प्राकृतिक पोषण एवं चमक प्रदान करता है।
आयुर्वेद या आयुर्वेदिक उपचार में बेल सदा से ही महत्वपूर्ण माना जाता रहा है। आप इस लेख के माध्यम से जान चुके हैं कि बेल फाइबर से भरपूर होता है तथा कई स्वास्थ्य समस्याओं के उपचार में मदद करता है। आयुर्वेदिक औषधियां काफी शक्तिशाली गुणों से भरी होती हैं तथा आपको उनका इस्तेमाल चिकित्सक की देखरेख या उनके परामर्शानुसार ही करना चाहिए। यदि आप ऐसा नहीं करते हैं तो आपके शरीर पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकते हैं और आप एलर्जी आदि का शिकार बन सकते हैं। इनका उपयोग करते समय इस बात पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए कि यदि इनके कारण किसी प्रकार का दुष्प्रभाव दिखाई दे तो अविलंब चिकित्सक से संपर्क करें। अंततः यही कहना उचित होगा कि- बेल को सच में ही “एक अद्भुत फल” का नाम दिया जा सकता है।
http://www.ayurveda.hu/api/API-Vol-1.pdf
https://main.ayush.gov.in/sites/default/files/Ayurvedic%20Pharmacopoeia%20of%20India%20part%201%20volume%20IX.pdf
https://www.netmeds.com/health-library/post/bael-medicinal-uses-therapeutic-benefits-for-skin-diabetes-and-supplements
https://krya.in/2017/08/ayurvedic-herbs-benefits-bael-aegle-marmelos/
https://ijpsr.com/bft-article/pharmacological-review-of-aegle-marmelos-corr-fruits/?view=fulltext
https://www.ijcmas.com/8-5-2019/Rahul%20Swarnkar,%20et%20al.pdf
https://www.researchgate.net/publication/282905504_A_REVIEW_ON_MEDICINAL_VALUES_AND_COMMERCIAL_UTILITY_OF_BAEL