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आयुर्वेदिक साइकोथैरेपी है सत्वावजय चिकित्सा : डॉ. गरिमा सक्सेना

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By NS Desk | 31-Jan-2019

Satvavajaya chikitsa

Dr. Garima Saxena

शारीरिक रोग या दोष दैवव्यपाश्र्य और युक्तिव्यपाश्र्य चिकित्सा से शांत होते हैं और मानस दोष या रोग ज्ञान, विज्ञान, धैर्य, स्मृति एवं समाधि से शांत होते हैं. (चरकसंहिता)

डॉ. गरिमा सक्सेना, संस्थापक, सुखायु भव

आयुर्वेद की अनेक चिकित्सा पद्धतियों में से एक 'सत्वावजय चिकित्सा' पद्धति है जिसके केंद्र में अवचेतन मन है. लेकिन आम लोगों के बीच ये उतना लोकप्रिय नहीं है. बहुत कम लोग 'सत्वावजय चिकित्सा' पद्धति के बारे में जानते हैं जबकि सच्चाई ये है कि वर्तमान समय की भागदौड़ की जिंदगी में ज्यादातर लोग मानसिक रूप से अशांत हैं और उनका मन किसी न किसी वजह से व्यथित है. लेकिन वे जाने-अनजाने सत्वावाजय चिकित्सा से दूर हैं. इसी संबंध में डॉ.गरिमा सक्सेना से निरोगस्ट्रीट ने बातचीत की और इस पूरी पद्धति के बारे में जानना चाहा. वे सुखायु भव नाम से आयुर्वेद क्लिनिक चलाती हैं और लोगों को निरोग करने के लिए आयुर्वेद की सभी चिकित्सा प्रणालियों को अपनाती हैं. लेकिन इन प्रणालियों में सत्वावजय चिकित्सा को वे बेहद महत्वपूर्ण मांगती हैं और उनका मानना है कि जबतक हम मन और आत्मा को स्वस्थ्य करने के लिए यत्न नहीं करेंगे तब तक निरोग काया की कल्पना कठिन है. इसलिए सत्वावजय चिकित्सा जरुरी है. सत्वावजय चिकित्सा को लेकर उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश -

शरीर, मन और आत्मा का संतुलन जरुरी

मन बहुत ताकतवर होता है और जिसने इसपर काबू पा लिया वह सारे रोगों से दूर रहता है. आयुर्वेद शरीर, मन और आत्मा पर काम करता है. आयुर्वेद हमे बताता है कि आखिरकार हम जीवित क्यों हैं? आखिर हमने क्या धारण किया हुआ है जिससे हम जीवित हैं. आयुर्वेद कहता है शरीर, मन और आत्मा के संयोग के कारण ही हम जीवित हैं. चुकी इन तीनों के संयोग से हम जीवित हैं इसलिए हमे स्वास्थ्य भी तभी मिलेगा जब तीनों का संतुलन होगा. शरीर पंचभूत तत्वों से बना है, वह दीखता है और हम उसे स्पर्श कर सकते हैं. शरीर में दोष होने पर दवाइयां खाकर हम उसे ठीक कर सकते हैं. पंचकर्म से उसका शोधन हो सकता है. लेकिन मन और आत्मा का क्या?

आत्मा परमात्मा का अंश है. वही हमे ऊर्जा दे रहा है और इसी उर्जा की वजह से हम जीवित हैं. जैसे ही वह ऊर्जा आनी बंद होती है कि जीवन समाप्त हो जाता है. इसलिए चिकित्सा के रूप में आत्मा की चिकित्सा की आवश्यकता नहीं होती. लेकिन एक चिकित्सा होती है जो आपको आत्मा-परमात्मा से मिलाकर रखती है. अब सवाल उठता है कि मन क्या होता है?

शरीर और आत्मा को चलाने वाला मन होता है? यदि शरीर को हम गाड़ी और आत्मा को पेट्रोल/गैस (सीएनजी) मान ले तो मन ड्राइवर की तरह है. यदि ड्राइवर ठीक नहीं होगा तो गाड़ी ठीक से नहीं चलेगी. यह मन वही ड्राइवर है और इसलिए इसका ठीक रहना बेहद जरुरी है.

सत्व के ऊपर विजय पाने में मदद करने वाली चिकित्सा - सत्वावजय चिकित्सा

आयुर्वेद में शरीर, आत्मा और मन के लिए तीन चिकित्साओं का वर्णन है. युक्तिविपाशा (युक्तिव्यपाश्र्य) चिकित्सा, सत्वावजय चिकित्सा और देवविपाशा (दैवव्यप्राश्रय) चिकित्सा. शरीर के त्रीदोषों को दूर करने के लिए युक्तिविपाशा का उपयोग किया जाता है जबकि मन की चिकित्सा के लिए सत्वावजय चिकित्सा का सहारा लिया जाता है. सत्व के ऊपर विजय पाने में मदद करने वाली चिकित्सा ही सत्वावजय चिकित्सा है. मन का जो गुण है वह है सत्व . आपने भी सुना होगा सात्विक पुरुष, सात्विक भोजन. इससे पवित्रता (purity) का बोध होता है.

जब हमारा जन्म होता है तब हम बिलकुल पवित्र होते हैं. उस वक़्त हम गुस्सा भी करेंगे तो कुछ देर में शांत हो आयेंगे. यही हमारा सही स्वभाव है. सत्व ही हमारा सही स्वभाव है. लेकिन उम्र बढ़ने के साथ-साथ हमारे मन के दोष रज और तम बादलों की तरह हमारे सत्व पर छा जाते हैं और हमारा सत्व खोता जाता है.

राग, द्वेष, इर्ष्या, क्रोध, मोह ये सब मन के दोष हैं जो मन को तपाता है और मानसिक दोष की स्थिति उत्पन्न होती है. इसी मानसिक दोष की चिकित्सा का नाम है सत्वावजय चिकित्सा. सत्व पर हम विजय तब पायेंगे जब हम अपने मन में जायेंगे और रज व तम से डील करेंगे. सत्वावजय चिकित्सा में तम को हटाते हैं और रज को शांत करते हैं ताकि आपके अंदर की प्योरिटी (सत्व) उभरकर आए. आप सही में जीवन जी पायें. शांत हो सके. प्यार के नजरिये से देख सके. यही सत्वावजय चिकित्सा है.

अच्छे स्वास्थ्य के लिए शरीर, मन और आत्मा का संतुलित होना जरुरी है. आयुर्वेद में भी लिखा है कि सारे दोषों से मुक्त होंगे आप तभी आप सुखायु हैं. इसमें मन की शांति भी जरुरी है जिसके लिए सत्वावजय चिकित्सा है.

शरीर और मन का संबंध

शारीरिक रोग होने पर भी हमारा मन अशांत होता है. मन अशांत होता है तब शरीर भी अशांत होता है क्योंकि मन शरीर का आधार है. यदि मन तप रहा है तो शरीर भी तपेगा. इसलिए मन स्वस्थ्य है तो तन भी स्वस्थ्य रहेगा. वर्तमान में बहुत सारी बीमारियाँ मन तपने के कारण हमारे अंदर आ रही है. उदाहरणस्वरूप प्रमेह (डायबिटीज) को ले लीजिये. इसका बड़ा कारण तनाव (stress) है. आयुर्वेद में भी प्रमेह (diabetes) के निदान में शोक, भय और तनाव लिखा हुआ है. डायबिटीज (diabetes) की दवाइयां डायबिटीज को मैनेज तो करती है लेकिन क्या डायबिटीज से मुक्त कराती है?

आयुर्वेद का सिद्धांत है 'निदान परिवर्जनम' यानी कि जो कारण है उसे दूर करो. लेकिन हम कारण को दूर नहीं कर रहे. हम उसी तनावपूर्ण जीवन में जी रहे हैं. दवाइयां खा रहे हैं और नंबर्स को मेंटेन कर रहे हैं. मगर तनाव दूर नहीं कर रहे. इसलिए डायबिटीज मैनेज होती है, ठीक नहीं हो पाती. यदि हम अपने मन को भी शांत कर ले तो ये संभव है कि आपकी डायबिटीज ठीक हो जाए.

थायराइड से लेकर डायबिटीज तक तमाम हार्मोनल डिजीज का एक प्रमुख कारण तनाव (stress) है. तनाव होने पर नसों में जकड़न महसूस होती है और सर की नसे तनती है. इससे पिट्यूटरी ग्लैंड में भी तनाव होगा और बाकी सभी हार्मोनल ग्लैंड भी प्रभावित होते हैं और हम तन व मन दोनों से अस्वस्थ होते हैं. कहने का तात्पर्य है कि शरीर और मन का गहरा संबंध है और हर बीमारी के पीछे कोई न कोई मानसिक विचार जरुर होता है. सत्वावजय चिकित्सा के जरिए मानसिक विकारों को काफी हद तक नियंत्रित कर बीमारियों से बचा जा सकता है. यह जड़ पर जाकर काम करता है. सत्वावजय चिकित्सा आयुर्वेदिक साइकोथैरेपी है यह सिर्फ काउंसिलिंग नहीं है.

सत्वावजय चिकित्सा के केंद्र में अवचेतन मन

हमारा मन चेतन (conscious) और अवचेतन (subconscious) के बीच बंटा है. चेतन मन सिर्फ 10% है बाकी 90% अवचेतन मन है. यही अवचेतन मन आपको आप बनाता है. इसमें पूर्व की बातें और अनुभव स्टोर रहती है. कौन सी परिस्थिति में कैसे प्रतिक्रिया देना है इसका आधार हमारा अवचेतन मन ही देता है. यदि कोई भी चीज आपको परेशान कर रही है तो सत्वावजय चिकित्सा के जरिए इसे बदला जा सकता है. सत्वावजय चिकित्सा के जरिए अवचेतन मन से नकरात्मक विचारों को दूर करने में मदद की जाती है. रज और तम को निकाला जाता है.

सत्वावजय चिकित्सा पर डॉ. गरिमा सक्सेना से बातचीत के वीडियो को आप निरोगस्ट्रीट के यूट्यूब चैनल पर जाकर देख सकते हैं -

डिस्क्लेमर - लेख का उद्देश्य आपतक सिर्फ सूचना पहुँचाना है. किसी भी औषधि,थेरेपी,जड़ी-बूटी या फल का चिकित्सकीय उपयोग कृपया योग्य आयुर्वेद चिकित्सक के दिशा निर्देश में ही करें।