By Dr Tabassum Hasan | 06-Jan-2021
माइग्रेन दुनिया में सबसे सामान्य न्यूरोलॉजिकल बीमारियों में से एक है। कोरोना महामारी और लॉकडाउन के दौरान, माइग्रेन के रोगियों को स्वास्थ्य सेवायें प्राप्त करने में भारी समस्या का सामना करना पडा। ऐसे समय में इसकी रोकथाम के लिये लोगों ने विभिन्न घरेलू आयुर्वेदिक उपाय अपनाये।
आयुर्वेद में माइग्रेन को अर्धावभेदक के रूप में वर्णित किया गया है। इसमें माइग्रेन के इलाज के लिए विभिन्न प्रक्रियाओं को समझाया गया। आयुर्वेद में माइग्रेन के उपचार के लिए योग, स्वस्थ जीवन शैली और हर्बल उपचार का उपयोग भी बताया गया। तो आइये समझते हैं माइग्रेन क्या है, यह किन कारणों से होता है और इसके लिये क्या आयुर्वेदिक उपाय अपनाये जा सकते हैं।
आयुर्वेद में 11 प्रकार के शिरो रोगों का वर्णन किया गया है, अर्धावभेदक भी इनमें से एक है। इस रोग में कपाल के आधे हिस्से में भेदने जैसा अत्यंत कष्टदायी दर्द महसूस होता है। ज़रूरी नहीं है कि इस दर्द की एक नियमित अवधि हो। कभी-कभी यह 10 दिनों या एक पखवाड़े के नियमित अंतराल पर भी आता है।
माइग्रेन त्रिदोष के असन्तुलन के कारण होता है, जो मुख्यतः वात-पित्त दोष के असंतुलन या आम (विषाक्त पदार्थों) के संचय के कारण होता है। यह तंत्रिका तंत्र की कार्यप्रणाली, स्मृति, एकाग्रता और फोकस को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। इसके अलावा इससे आंखों का स्वास्थ्य खराब, अनियमित नींद चक्र या अनिद्रा एवम व्यक्ति की उत्पादकता कम होती है।
माइग्रेन का सबसे मुख्य लक्षण है, "अर्धशीर्ष वेदना", जिसका अर्थ है सिर के आधे क्षेत्र में दर्द।
इसके अलावा ग्रीवा क्षेत्र(गर्दन), भौंहें, कान, आंख और ललाट में तीव्र वेदना होती है। इस विकार से पीड़ित लोगों को चक्कर आना और आँखों के लाल होना के साथ दर्द का अनुभव होता है।
माइग्रेन बचपन, किशोरावस्था या शुरुआती वयस्कता में शुरू हो सकता है। इसमें चार चरण हो सकते है: प्रॉडोम, ऑरा, अटैक और पोस्ट-ड्रोम।
प्राथमिक अथवा प्रारम्भिक लक्षण: माइग्रेन के लक्षण जो सिरदर्द शुरू होने के एक या दो दिन पहले शुरू होते हैं, उन्हें प्रोड्रोम स्टेज कहते हैं।
ऑरा: ऑरा के साथ माइग्रेन, प्रॉडोम स्टेज के बाद होता है। ऑरा के दौरान रोगी को दृष्टि, चलने-फिरने और बोलने में समस्या हो सकती है।
अटैक: माइग्रेन के अटैक के कारण इस चरण में सबसे गंभीर दर्द होता है।
पोस्टड्रोम: इस स्टेज के दौरान, रोगी के मनोभाव और भावनाएँ बदल सकती हैं, जैसे कि बहुत खुशी, बहुत थकान और उदासीनता महसूस करना।
आयुर्वेद में दर्द को वात दोष का लक्षण बताया गया है और जब यह मस्तिष्क के तंत्रिका तंत्र में संचित होता है तो यह माइग्रेन का कारण बनता है। बाहरी उत्तेजना जैसे अत्यधिक शोर, प्रकाश और तनाव सभी माइग्रेन दर्द को बढ़ाने में योगदान देते हैं। कमजोर पाचन भी एक कारक है जो शरीर में आम को बढ़ाता है और शरीर और मस्तिष्क में रक्त के उचित परिसंचरण को रोकता है।
यह कहा जाता है कि माइग्रेन मस्तिष्क में असामान्य गतिविधि के परिणामस्वरूप होते हैं। यह नसों के संचार के साथ-साथ मस्तिष्क में रसायनों और रक्त वाहिकाओं को भी प्रभावित कर सकता है। आनुवंशिक कारण भी किसी को अधिक संवेदनशील बना सकते हैं जो माइग्रेन का कारण बन सकती है। हालांकि निम्नलिखित ट्रिगर्स माइग्रेन बढाने की संभावना रखते हैं:
हार्मोनल बदलाव:महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान बदलते हार्मोन के स्तर के कारण माइग्रेन के लक्षणों का अनुभव हो सकता है ।
भावनात्मक ट्रिगर: तनाव, अवसाद, चिंता, उत्तेजना आदि भी माइग्रेन को ट्रिगर कर सकते हैं।
शारीरिक कारण: थकान और अपर्याप्त नींद, कंधे या गर्दन में तनाव, खराब मुद्रा और अत्यधिक शारीरिक गतिविधि सभी को माइग्रेन से जोड़ा गया है। निम्न रक्त शर्करा और जेट लैग भी ट्रिगर के रूप में कार्य कर सकते हैं।
आहार में ट्रिगर: शराब और कैफीन भी माइग्रेन को ट्रिगर कर सकते हैं। कुछ विशिष्ट खाद्य पदार्थों से भी यह हो सकता है, जिसमें चॉकलेट, पनीर, खट्टे फल, और एडिटिव टाइरामाइन वाले खाद्य पदार्थ शामिल हैं। अनियमित भोजन और निर्जलीकरण को संभावित ट्रिगर बताया गया है।
दवाएं: कुछ नींद की गोलियाँ, हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (एचआरटी) दवाएं, और संयुक्त गर्भनिरोधक गोली सभी संभावित ट्रिगर्स हैं।
पर्यावरण: तेज़ी से बदलती स्क्रीन, तेज़ गंध, धुआं, और शोर से माइग्रेन बढता है। तापमान में परिवर्तन और तेज़ रोशनी भी माइग्रेन बढाते हैं।
माइग्रेन के निदान के लिए कई मापदंड और परीक्षण हैं। माइग्रेन का निदान आम तौर पर विभिन्न माइग्रेन के लक्षणों के आधार पर किया जा सकता है जैसे वे कितने समय तक होते हैं और कितने समय तक चलते हैं। यह निर्धारित करने में मदद करेगा कि आपके लक्षणों के अन्य कारणों का पता लगाने के लिए कौन से परीक्षण आवश्यक हैं। इसके लिये कुछ परीक्षण किए जा सकते हैं उनमें एमआरआई, सीटी / कैट स्कैन, कंप्यूटेड टोमोग्राफी, रक्त और मूत्र विश्लेषण, साइनस एक्स-रे, ईईजी, नेत्र परीक्षा आदि शामिल हैं।
स्वस्थ जीवन शैली का पालन करके माइग्रेन और अन्य प्रकार के सिरदर्द को रोका जा सकता है। नियमित रूप से नींद लेना, दिनचर्या और नियमित काम करने की आदतें, माइग्रेन ट्रिगर करने वाले कारणों से बचना माइग्रेन की आवृत्ति और गंभीरता को कम कर सकता है। स्वस्थ जीवनशैली के लिये निम्न उपाय अपनाये:
सुबह की दिनचर्या: नियमित मल त्याग करना, दांतों को ब्रश करना / फ्लॉस करना, मसूड़ों की मालिश करना, नाक के मार्ग की सफाई, त्वचा पर दैनिक तेल की मालिश करना, तेल से कानों की मालिश करना, ध्यान का अभ्यास करना।
उचित नींद लेना: उचित नींद पैटर्न का अर्थ है कि व्यक्ति को प्रकृति के अनुसार बिस्तर पर जाना चाहिए और उठना चाहिए। वात प्रकृति के लोगों को सूर्य के साथ जागना चाहिए, पित्तज प्रकृति को सूर्य से आधा घंटा पहले और कफज प्रकृति के लोगो को सूर्य से एक घंटे पहले उठना चाहिए। सभी को 10:00 बजे तक सो जाना चाहिये।
स्वस्थ खाने के दिशानिर्देशों का पालन करें: स्वस्थ भोजन के लिए सामान्य दिशानिर्देशों में उचित भोजन करना, बिना किसी व्याकुलता के भोजन करना, पूरे मन के साथ भोजन करना, भोजन को सही से चबाना शामिल है। सुनिश्चित करें कि भोजन गर्म हो। भोजन के साथ केवल थोड़ी मात्रा में तरल पदार्थ पीएं और कोल्ड ड्रिंक से बचें। भोजन के बाद आराम करने के लिए हमेशा कुछ समय लें और भोजन को पाचन के लिए 3-5 घंटे का समय दें।
स्ट्रेस (तनाव) प्रबंधन: किसी को भी ऐसे कारकों से बचना चाहिए जो तनाव को उत्पन्न करते हैं और दोष को असंतुलित करते हैं। तनाव उत्प्रेरण कारकों में शामिल हो सकते हैं:
तनाव से बचाव सबसे अच्छा तरीका है। कुछ रसायन जड़ी-बूटियाँ शारीरिक / मानसिक शक्ति और प्रतिरक्षा को बेहतर बनाती हैं। कई रसायन जड़ी बूटियों में एंटीऑक्सिडेंट, इम्युनोमोड्यूलेटर, हेपेटोप्रोटेक्टिव, एंटीडिप्रेसेंट प्रभाव दिखाई देते हैं। इस तरह की जड़ी-बूटियों के कुछ उदाहरण शतावरी, ब्राह्मी, शंख पुष्पी, आंवला, अश्वगंधा हैं।
नियमित व्यायाम: माइग्रेन के दर्द की तीव्रता को कम करने के लिए नियमित दैनिक व्यायाम प्रभावशाली साबित हुआ है। हालांकि, व्यायाम की तीव्रता, आवृत्ति, अवधि और प्रकार के साथ-साथ वार्म अप समय महत्वपूर्ण कारक हैं जिनकी निगरानी करने की आवश्यकता होती है और यह सिरदर्द को कम करते हैं। माइग्रेन के लिए आइसोमेट्रिक व्यायाम बहुत फायदेमंद है।
सिरदर्द के लिए योग: चूंकि माइग्रेन और तनाव दोनों में सिरदर्द पैदा करने के लिए तनाव एक महत्वपूर्ण कारक है, इसलिए योग संदेह के बिना इस प्रकार के सिरदर्द को रोकने में मदद कर सकता है। योग गर्दन, पीठ और सिर की मांसपेशियों में तनाव को भी कम करता है। योग मन को शांत करने में मदद करता है। इसमें विपरीतकरणी, अर्ध हलासन, जानू शीर्शासन, पश्चिमोत्तानासन, मत्स्य क्रीड़ासन व अन्य योग आसन माइग्रेन और तनाव से बचाव में सहायक होते हैं। इसके बाद दोनों हाथों की हथेलियों को आपस में रगड़ना चाहिये जब तक कि वे गर्म महसूस न करें और धीरे-धीरे दोनों आँखों पर रखना चाहिये।
ध्यान: तनाव और माइग्रेन दोनों सिरदर्द में तनाव का बहुत बड़ा योगदान है। ध्यान तनाव को कम कर सकता है।
प्राणायाम (साँस लेने के व्यायाम): विभिन्न प्रकार के प्राणायाम का शरीर, मन और आत्मा पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। अनुलोम-विलोम, शीतली प्राणायाम एवम कपाल-भाति अत्यंत फायदेमंद हैं।
1)अपने चिकित्सक को कब दिखाना ज़रूरी होता है?
जब आपको हर महीने 15 दिनों से अधिक समय तक सिरदर्द रहता है, या माइग्रेन आपके जीवन को प्रभावित करने लगे तो डॉक्टर को अवश्य दिखाना चाहिए।
2)क्या माइग्रेन किसी गंभीर बीमारी की ओर संकेत करता है?
सिरदर्द शायद ही कभी गंभीर स्थिति की ओर संकेत करे परंतु निम्न लक्षण एक गंभीर स्थिति का संकेत हो सकते हैं:
3)माइग्रेन से पहले दृष्टि और सुनने में क्यों बदलाव आते हैं?
इन परिवर्तनों को माइग्रेन का एक फेज़ कहा जाता है। ये लक्षण जो कुछ लोग माइग्रेन से ठीक पहले अनुभव करते हैं। इसमें वे ज़िगज़ैग पैटर्न देख सकते हैं, अजीब शोर सुन सकते हैं, या अपने शरीर में झुनझुनी जैसी असामान्य उत्तेजना महसूस कर सकते हैं।