BENEFITS OF KSHARSUTRA IN ANAL DISEASES IN HINDI : गुदा एवं गुदा मार्ग शरीर रचना का महत्वपूर्ण अंग है. मलाशय, गुदा मार्ग एवं गुदा ये शरीर के विशिष्ट उपयोगी अंग मुख्यतः मल विसर्जन के लिए हैं. शरीर में भोजन पाचन के पश्चात उत्पन्न होने वाले मल, गैस आदि पदार्थ शरीर के लिए हानिकारक होते हैं. इसमें होने वाले रोगों को गुदा एवं मलाशय रोग की संज्ञा दी जाती है. लेकिन सामाजिक परिवेश के कारण सामान्यतः इस अंग में होने वाले रोग एवं चिकित्सा के प्रति मरीज उदासीन रहते हैं. वे चिकित्सकीय परामर्श लेने में सकुचाते हैं. वे इस रोग के इलाज के लिए आसपास के लोगों द्वारा बताए नुस्खे और नीम हकीम के इलाज पर ज्यादा निर्भर रहते हैं जिससे रोग के और अधिक बढने की संभावना बढ़ जाती है. गुदा एवं मलाशय में होने वाले किसी भी उम्र में हो सकते हैं. इन्हें सामान्यतः तीन मुख्य श्रेणियों में उम्र के अनुसार विभाजित किया जाता है.
- जन्म से
- 14 वर्ष आयु तक
- युवावस्था से प्रौढावस्था तक
गुदा मार्ग में होने वाले रोग - ANAL DISEASES
बवासीर - PILES
गुदा मार्ग में मांसपेशियां फूलकर गठानों का रूप धारण कर लेती है. अंदरूनी बवासीर से रक्त निकलता है तथा बाहरी बवासीर में सूजन होकर दर्द होता है. बवासीर से खून निकलने की मात्रा एक समय में एक बूँद, एक कटोरा या असीमित हो सकता है.
फिशर - FISSURE
इसको चीरा, घाव, परिकर्तिकी, फिशर इन एनो इत्यादि कहा जाता है. इसमें मरीज को मॉल त्यागते समय एवं उसके पश्चात काफी जलन एवं दर्द होता है. मल के साथ खून भी आ सकता है. इसके दर्द से मरीज को दिन भर बेचैनी, चिड़चिड़ापन तथा कभी-कभी आत्महत्या तक की प्रवृति हो सकती है.
एनल हिमोटोमा -
इसमें गुदा के बाहरी हिस्से में खून जमा होकर थक्का बना लेता है जिससे मल त्यागते समय काफी दर्द होता है. मल त्यागते समय डर लगता है.
पेरीएनल एब्सेस -
इसे फोड़ा भी कहते हैं. इस रोग में गुदा मार्ग के समीप मवाद भर जाता है. यह अधिक मात्रा में भर जाने पर दर्द होना, बुखार आना तथा व्यवस्थित इलाज न करने पर भगंदर में परिवर्तित हो जाता है.
भगंदर/ फोड़ा -
बालतोड़ या साफ़-सफाई में कमी की वजह से यह बीमारी उत्पन्न होती है इसमें यह मार्ग के समीप फोड़ा उत्पन्न होता है. इसका एक सिरा मल मार्ग में रहता है. इसमें से बार-बार मवाद बाहर निकलता रहता है.
एनलवार्ट, कोंडायलोमा, प्रुराइटिस (खुजली), हायपरट्राफीड पेपीला, इनलार्ज्ड पेपिला -
ये वो बीमारियाँ जिनके बारे में सामान्यतः पता नहीं होता. इन बीमारियों की विस्तृत जानकारी की जरुरत नहीं. इन रोगों में सामान्यतः अत्यधिक खुजली थोडा चुभन या मरीज अस्वस्थ महसूस करता है.
सोलिटरी अल्सर सिण्ड्रोम -
इसमें कब्ज से ग्रसित व्यक्ति अंगुली से मल निकालता है, जिससे गुदामार्ग के अंदर नाखून लगने से यहाँ पर एक जख्म बन जाता है. उसमें रक्त आने लगता है. कुछ समय पश्चात यही जख्म न भरने वाले घाव में परिवर्तित हो जाता है. इसके अलावा कई अन्य गंभीर बीमारियाँ होती हैं, जिनके सामान्य लक्षण प्रायः बवासीर से मिलते - जुलते हैं जैसे - गुदामार्ग का कैंसर, क्रोन्स डिजीज, कोलाइटिस, एनल पॉलिप, एनल प्रोलेप्स इत्यादि.
'क्षारसूत्र' से रोग का स्थायी निदान, क्षारसूत्र की उपयोगिता : Permanent diagnosis of disease with Ksharsutra in Hindi
वर्तमान में उपरोक्त रोगों में से अधिकांश रोगों की सबसे सरल एवं पूर्णतः सुरक्षित और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् द्वारा परिष्कृत चिकित्सा आयुर्वेद की क्षारसूत्र चिकित्सा पद्धति है. इस चिकित्सा पद्धति में एक विशेष विधि से गुदामुख में आयुर्वेद क्षारसूत्र का प्रयोग किया जाता है जो हरिद्रा, दूध व क्षार आदि से बनाया जाता है. बवासीर और फिशर रोग की चिकित्सा में केवल एक बार ही क्षारसूत्र का प्रयोग किया जाता है और सात दिन बाद यह क्षारसूत्र बीमारी सहित खुद ही निकल जाता है. इस विधि से किसी भी प्रकार के बवासीर को समूल नष्ट किया जा सकता है. भगन्दर रोग में क्षारसूत्र लगाने के बाद सातवें दिन पुनः नया क्षारसूत्र पुराने क्षारसूत्र को बांधकर लगाया जाता है. इस क्रिया को भगंदर की लंबाई के अनुसार कम से कम चार-पांच बार बदला जाता है.
क्षारसूत्र चिकित्सा के लाभ - Benefits of Ksharsutra
• इस पद्धति से चिकित्सा पश्चात रोग पुनः उत्पन्न होने की आशंका नहीं रहती.
• दरअसल यह बिना काटे या चीरा लगाए आयुर्वेदिक ऑपरेशन (Ayurvedic Operation) है.
• यह बिना ऑपरेशन रोग को समूल नष्ट करता है.
• पूरी प्रक्रिया में 10 मिनट से ज्यादा समय नहीं लगता.
• रोगी तीन - चार घंटे विश्राम करके घर जा सकता है.
• पहले ही दिन आराम हो जाता है.
• दूसरे दिन से मरीज सामान्य कामकाज कर सकता है.
• दुबारा ड्रेसिंग करवाने की जरुरत नहीं पड़ती.
• हृदय रोगी (Heart Patient), मधुमेह (Diabetes) या अन्य किसी गंभीर रोग से ग्रस्त रोगी का भी इस पद्धति से उसके गुदामार्ग रोगों का समुचित इलाज क्षारसूत्र से किया जा सकता है.
• इस विधि से चिकित्सा करने पर ऑपरेशन की जटिलता से उत्पन्न होने वाले दुष्प्रभाव जैसे मलमार्ग का संकुचित हो जाना, मल मार्ग पर नियंत्रण न रख पाना एवं मल मार्ग में सतत चिकनापन और रोग की पुनरावृत्ति नहीं होती है. सामान्य बोलचाल में इस पद्धति को धागा पद्धति कहते हैं. यह आज की जीवनशैली एवं आधुनिक चिकित्सा की सर्जरी से पुनः उत्पन्न होने वाले गुदा रोग के लिए संजीवनी चिकित्सा है.
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( डॉ. राहुल देशमुख के इस लेख को आयुर्वेद की पत्रिका आयुष्मान से साभार लिया गया है )
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