By Dr. Bhawana Bhatt | 29-Jan-2021
जॉन्डिस , सामान्य बोल चाल की भाषा में इसे पीलिया कहा जाता है। इस रोग में रक्त में बिलीरुबिन की मात्रा सामान्य से ज्यादा बढ़ जाने पर त्वचा तथा आंख के सफ़ेद भाग का रंग पीला हो जाता है। यह बीमारी नवजात शिशु तथा वयस्क दोनों में ही देखने को मिलती है। नवजात शिशुओं में इसे निओनेटल जॉन्डिस के नाम से जाना जाता है। यह निओनेटल जॉन्डिस दो प्रकार का होता है - फिजियोलॉजिकल जॉन्डिस और पैथोलॉजिकल जॉन्डिस।
आयुर्वेद में जॉन्डिस के लक्षण कामला रोग से मिलते जुलते है। आयुर्वेद के कुछ लोगो ने कामला को स्वतंत्र रोग माना है तो कुछ ने पाण्डु रोग की प्रवर्धमानावस्था को कामला माना है तथा कुछ लोगो का मानना है की कामला रोग पाण्डु तथा अन्य किसी व्याधि के बाद होने वाला उपद्रव है।
प्रश्न- निओनेटल जॉन्डिस के क्या क्या कॉम्प्लीकेशन्स हो सकते है?
उत्तर- निओनेटल जॉन्डिस को सामान्य समझ के अगर उपचार न किया जाये तो नवजात शिशु का ब्रेन डैमेज होने के साथ साथ वह सेरिब्रल पाल्सी , बहरापन से भी ग्रसित हो सकता है।
प्रश्न- जॉन्डिस होने पर अल्कोहल और मांसाहार का सेवन करना चाहिए ?
उत्तर- जॉन्डिस होने पर अल्कोहल और मांसाहार में साथ साथ ऐसे किसी भी खाद्य पदार्थ का प्रयोग नहीं करना चाहिए जो पचने में भारी हो या जिसके सेवन से यकृत पे बुरा प्रभाव पढ़े।
प्रश्न- क्या जॉन्डिस होने से किसी की मृत्यु भी हो सकती है?
उत्तर- हाँ , जॉन्डिस होने पर यदि व्यक्ति समय रहते उचित उपचार न कराये तो मृत्यु भी हो सकती है।
प्रश्न- उपचार के पश्चात् जॉन्डिस सही हो जाने पर पुनः जॉन्डिस हो सकता है ?
उत्तर- उपचार के पश्चात् यदि जॉन्डिस करने वाले कारणों का त्याग नहीं किया जाये या उपचार करते समय सिर्फ लक्षणों की चिकित्सा कर, जॉन्डिस होने के मूल कारण की चिकित्सा न की गयी हो तो एक बार ठीक होने पर भी पुनः जॉन्डिस होने की सम्भावना रहती है।
प्रश्न- जॉन्डिस सही हो जाने के पश्चात कितने समय तक पथ्य पालन करना होता है?
उत्तर- जॉन्डिस सही हो जाने पर पथ्य पालन कितने समय तक करना होगा ये रोगी व्यक्ति के शारीरिक बल और अग्नि बल पर निर्भर करता है। सामान्यतया रोग सही हो जाने पर दो से तीन महीने तक पथ्य पालन करते हुए धीरे धीरे सामान्य आहार लेना चाहिए।
प्रश्न- जॉन्डिस के केस में आयुर्वेदिक उपचार कितना कारगर है ?
उत्तर- जॉन्डिस हो या अन्य कोई व्याधि सभी में आयुर्वेदिक उपचार काफी कारगर है क्योकि आयुर्वेद रोग के लक्षण की चिकित्सा करने के साथ साथ रोग के मूल कारण की भी चिकित्सा करता है। जॉन्डिस को आयुर्वेद में कामला नाम से बोला गया है तथा जॉन्डिस होने पर मृदु विरेचन देने और पथ्य अपथ्य के द्वारा चिकित्सा करने का वर्णन मिलता है।