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कब्ज़ के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक उपाय -Constipation Ke Karan, Lakshan Aur Upchar

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By Dr Tabassum Hasan | 31-Dec-2020

Constipation

आयुर्वेद अनुसार शरीर मूल रूप से दोष, धातु और मल से बना है। भोजन के पाचन और चयापचय की प्रक्रिया के बाद मूत्र तथा मल आदि उत्पाद बनते हैं। जब मल अपनी सामान्य मात्रा से अधिक बढ़ जाता है तो यह शरीर में दर्दनाक विकार पैदा करता है। आयुर्वेद में शब्द विबंध कब्ज़ के लिये प्रयोग किया गया है तथा यह विशेष रूप से पुरीषवह श्रोतों(उत्सर्जन तंत्र) में दुष्टि को इंगित करता है। यह दुष्टि शौच के दमन, बड़ी मात्रा में भोजन का सेवन, पिछले भोजन के पाचन से पहले भोजन का सेवन इन कारणों से होती है। यह विशेष रूप से उन लोगों में होता है जो क्षीण(पतले) होते हैं और पाचन की शक्ति कमज़ोर होती है। किंतु आधुनिक समय में जीवनशैली कुछ इस तरह बदली है कि यह रोग बहुत आम हो गया है। तो आइये समझते हैं यह रोग क्यों होता है, इसके लक्षण क्या हैं, तथा इससे कैसे बचा जा सकता है।

विषय - सूची

  • कब्ज़ क्या है
  • कब्ज़ के कारण
  • कब्ज़ के लक्षण
  • निदान
  • कब्ज़ के सामान्य उपाय
  • क्या खाएं और किससे बचें
  • अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)

कब्ज़ क्या है ?

कब्ज पेट की शिकायतों में से सबसे आम समस्या है, जिसके परिणामस्वरूप प्रति वर्ष २ मिलियन से अधिक कब्ज़ के रोगी चिकित्सक के पास आते हैं। भारत में, पश्चिम में प्रति सप्ताह 3 के विपरीत सामान्य मल आवृत्ति प्रति दिन 1 है। इससे कम मल त्याग को ही कब्ज़ कहा जाता है।

कब्ज से तात्पर्य ऐसे मल त्याग से है, जो कठिन तथा असामान्य हो। कब्ज दर्दनाक शौच का एक आम कारण है। इसमें कम से कम 3 महीनों के लिए निम्नलिखित लक्षणों में से किसी दो या अधिक की उपस्थिति होनी चाहिये(ROME II मानदंड): 1. मल का अपर्याप्त त्याग करना (3 मल त्याग / सप्ताह) 2. कठिन मल 3. मल पर दबाव डालना 4. पूर्णतः मलत्याग न होना। 
 
आयुर्वेद में कब्ज का वर्णन, वमन और विरेचन के व्यापद में आता है। यह अपतर्पणजन्य रोग (पोषण की कमी के कारण होने वाली बीमारी) बताया गया है।

कब्ज़ के कारण

सामान्य मल त्याग न होने से जन्मी अनियमित शौच प्रवृत्ति की आदतों के कारण कब्ज़ की उत्पत्ति होती है। आयुर्वेद में वात दोष का दूषित होना कब्ज़ का कारण बताया गया है। अपान वायु एक प्रकार का वात है जो अधोमुख गति को नियंत्रित करता है। मल का उत्सर्जन अपान वायु द्वारा नियंत्रित होता है। अपान वायु में असंतुलन बृहदान्त्र को और इसकी मांसपेशियों के काम को प्रभावित कर सकता है जो कब्ज पैदा करता है। आयुर्वेद में इसके निम्न कारण बताये गये हैं- 

  • सन्निरुद्ध गुद (गुदा की सिकुडन)।
  • क्षीर(दूध)- वात दूषित स्तन सेवन, कषाय रस प्रधान क्षीर सेवन। 
  • मल में उत्पन्न कृमि- कृमि से भी कब्ज़ होता है।
  • मल का वेग धारण करना।
  • पुरीषवह श्रोतों(उत्सर्जन तंत्र) में दुष्टि।

कब्ज़ को कई बीमारियों में लक्षण के रूप में भी देखा जा सकता है, जैसे- आंतो का कैंसर, फिशर, बवासीर, डाइबिटीज़, थायराइड डिसआर्डर इत्यादि।  इसके अलावा कम खाना, भोजन में फाइबर की कमी, रुखा और भारी भोजन करना, पानी कम पीना, शारीरिक गतिविधियों का कम होना, कुछ दवाओं का सेवन(आयरन सप्लीमेंट, ओपिएट्स आदि) इनके कारण भी कब्ज़ होती है।

कब्ज़ के लक्षण

आचार्य चरक के अनुसार, यदि कोई शौच को रोक के रखता है तो इससे पेट दर्द, सिरदर्द, मल और वायु का प्रतिधारण, पिंडली की मांसपेशियों में ऐंठन और पेट का फूलना ये लक्षण आते हैं। इसके अलावा कब्ज़ के निम्न लक्षण बताये गए हैं- 

  • मल का निष्कासन न होना
  • मल त्याग के समय गुदा द्वार के आस-पास दर्द होना
  • अधिक बदबू आना
  • मल का ग्रथित रूप में निकलना
  • भोजन का पाचन न होना
  • भूख न लगना
  • एसिडिटी होना तथा अधिक डकार आना
  • उल्टी आने की प्रतीति होना
  • उत्साह में कमी होना
  • आलस्य आना

निदान

रोम II  मानदंड के अनुसार कब्ज के लिए निम्न में से दो या अधिक लक्षण कम से कम 12 सप्ताह (जरूरी नहीं कि लगातार) के लिये होने चाहिये: 
1) 25% से अधिक बार मल त्याग के दौरान तनाव होना
 2) 25% से अधिक बार मल त्याग के दौरान ढेलेदार या कठोर मल का आना
 3) 25% से अधिक बार मल त्याग के दौरान  मल का अधूरा निष्कासन होने की अनुभूति
 4) 25% से अधिक बार मल त्याग के दौरान अवरोध होने का अहसास होना
 5)  प्रति सप्ताह 3 से कम बार मल त्याग होना 
 6) मल सख्त हैं, और इरिटेबल बाउल सिंड्रोम के लिए अपर्याप्त मापदंड मिले।
इसके अलावा डिजिटल मलाशय परीक्षा, प्रोक्टोस्कोपी और सिग्मायोडोस्कोपी कब्ज का सही कारण जानने के लिए उपयोगी जांच है। यदि लक्षण बने रहते हैं, तो असली बीमारी जानने के लिए बेरियम एनीमा और कोलोनोस्कोपी की जानी चाहिए।

कब्ज़ के सामान्य उपाय

संक्षेप में, कब्ज को ठीक करने के लिये इसके कारणों का निवारण ज़रूरी है। जैसे- डाइट का ठीक न होना, खान-पान की गलत आदतें, कम फाइबर की मात्रा, पानी कम पीना, इन चीज़ों की बदलने की आवश्यकता है। इसके अलावा कब्ज़ को कम करने के लिये निम्न सुझाव अपनाए जा सकते हैं-

  • सुबह जल्दी उठ कर एक गिलास गर्म पानी पिएं -यह गैस्ट्रो-कोलिक रिफ्लेक्स में मदद करता है और इसके फलस्वरूप मल त्याग होता है।
  • आधे से एक चम्मच त्रिफला चूर्ण को पानी के साथ ले सकते हैं। यह मल त्याग में सहायक है।
  • एक से दो चम्मच इसबगोल को गर्म पानी में घोल के पी सकते हैं। यह मल में फाइबर की मात्रा बढा के उसको ढीला कर आसानी से निकाल देता है।
  • अलसी के बीजों का चूर्ण भी गर्म पानी के साथ लेने से मलत्याग को आसान करता है।
  • रात को सोने से पहले एक गिलास गर्म दूध में एक चम्मच घी डाल के पीना भी कब्ज़ में सहायक है। यह वात दोष को शांत कर देता है।
  • 6-7 मुनक्को को दूध में उबाल कर पीने से भी कब्ज़ दूर होती है।
  • गर्म पानी में भीगी हुई अंजीर का सेवन कर सकते है, यह मल के निष्कासन में सहायक है।
  • भोजन के बाद सौंफ का गर्म पानी के साथ सेवन भी पाचन में सहायक है तथा यह रेचक(माइल्ड लैक्सेटिव) भी है।
  • विभिन्न योगाभ्यास भी कब्ज़ में लाभदायक  हैं जैसे- कुर्मासन, वक्रासन, कटिचक्रासन, सर्वांगासन, शवासन, पवनमुक्तासन, मंडुकासन, वज्रासन आदि एवम शंख प्रक्षालन, नाडिशोधन, सूर्य नमस्कार, अनुलोम विलोम भी इसके लक्षणों को कम करता है।

क्या खाएं और किससे बचें?

कब्ज का इलाज करने के लिए आहार में परिवर्तन आवश्यक है। सेवन किए जाने वाला आहार ऐसा होना चाहिए जो वात दोष को शांत करे। आयुर्वेद में गर्म और पके हुए खाद्य पदार्थों के सेवन की सलाह दी जाती है। कोल्ड ड्रिंक और ठंडे भोजन से सख्ती से बचना चाहिए। आयुर्वेद अनुसार कुछ आहार संबंधी सुझाव निम्न हैं:

  • भोजन गर्म और ताजा पकाया हुआ खाना चाहिए। 
  • भोजन में लहसुन, हल्दी, जीरा, और हींग जैसे मसालों का उपयोग करना चाहिये। 
  • खाना बनाते समय घी या तेलों का उपयोग करें। यह वात का शमन करेगा।
  • अदरक का रस कब्ज को ठीक करता है। इसकी चाय बना कर पी सकते हैं।
  • गेहूं, हरे चने, फल और फाइबर से भरपूर सब्जियों और हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करना चाहिए। कब्ज के लिए सेब, केला, अमरूद, अंजीर, संतरा और पालक आहार में शामिल करे।
  • काला नमक पाचन में सहायक होता है तथा कब्ज को कम करता है।
  • विबंध या कब्ज़ अपतर्पण जन्य रोगो में से एक है, अतः इसके उपचार में भुना हुआ मकई का आटा, शहद और चीनी से बने पेय उपयोगी साबित होते हैं।
  • तला हुआ भोजन, प्रोसेस्ड फूड, मसालेदार भोजन और मांसाहारी भोजन से बचना चाहिए।

अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)

कब्ज को जल्दी से कैसे ठीक कर सकते हैं?
कब्ज़ को ठीक करने के लिये सबसे सरल तरीका है रेचक दवा का उपयोग करना। त्रिफला एक प्राकृतिक रेचक है जो कब्ज़ के लिये प्रयोग कर सकते हैं। कब्ज के तेजी से इलाज के लिये इसबगोल के उपयोग की भी सलाह दी जाती है।
 
कब्ज़ के क्या-क्या काम्प्लीकेशन हो सकते हैं?

  • मल को पास करने से गुदा के आसपास की नसों में सूजन हो सकती है। इससे बवासीर हो सकता है। ये बवासीर रक्तस्राव शुरू कर सकते हैं, जो एक गंभीर रोग है।
  • मल त्याग के समय अत्यधिक तनाव देने से मलाशय के अपने स्थान से बाहर आने का खतरा होता है। मलाशय कर निकल कर गुदा से बाहर आ सकता है।
  • जब मल बहुत कठिन होता है, तो मल त्याग करने से गुदा पर दबाव पड़ता है और गुदा द्वार पर कट भी लग सकता है। यह बेहद दर्दनाक होता है और यहां तक कि रक्तस्राव भी हो सकता है।
  • जब लंबे समय तक कब्ज होता है, तो बृहदान्त्र में मल फंस जाता है। यह दर्द, सूजन और अगर अनुपचारित रहे तो गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकता है। 

कब्ज के इलाज के लिये घरेलू उपाय क्या हैं?
कब्ज के लिए कई घरेलू उपचार हैं जो कब्ज के इलाज में सहायक हो सकते हैं। 

  • खूब पानी पीना। पानी के साथ नींबू का रस पाचन में सुधार और कब्ज का इलाज करने में मदद कर सकता है।
  • अदरक का उपयोग करके बनाई गई हर्बल चाय सहायक हो सकती है।
  • बेल के गूदे को गुड के साथ लिया जा सकता है।
  • मुलेठी एक आयुर्वेदिक जड़ी बूटी है जो प्राकृतिक रेचक के रूप में काम करती है। इसे गुड़ के साथ मिलाकर लिया जा सकता है।
  • किशमिश और अंजीर उच्च फाइबर की मात्रा के कारण कब्ज़ में सहायक होते हैं।
  • पका हुआ केला भी मल त्याग में मदद करता है।
डिस्क्लेमर - लेख का उद्देश्य आपतक सिर्फ सूचना पहुँचाना है. किसी भी औषधि,थेरेपी,जड़ी-बूटी या फल का चिकित्सकीय उपयोग कृपया योग्य आयुर्वेद चिकित्सक के दिशा निर्देश में ही करें।