By Dr Pooja Kohli | 21-Mar-2022
टेलीविजन पर आपने वह विज्ञापन जरुर देखा होगा जिसमें एक कब्ज(Constipation) दूर करने वाली एक आयुर्वेदिक औषधि के प्रचार में मशहूर कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव कहते हैं कि, ‘पेट सफा तो हर रोग दफा’। ये लाइनें वैसे तो विज्ञापन के पंचलाइन को आकर्षक बनाने के लिए लिखी गयी है लेकिन देखा जाए तो वास्तविकता के बेहद नजदीक है।
आयुर्वेद में भी अनेकानेक रोगों के मूल में उदर यानी पेट को माना गया है। यदि आपका पेट यानी पाचन तंत्र ठीक है तो बीमारियाँ आपको छू भी नहीं सकती। देह को जीवित रखने के लिए जिस प्रकार प्राणवायु का महत्व है, उसी प्रकार शरीर के निर्माण और उसे बलशाली बनाने में खाना यानी अन्नपान का महत्व है। इस आहार का पाचन अग्नि द्वारा होता है जिससे आहार रस का निर्माण होता है और जो शरीर को बल प्रदान करता है।
आयुर्वेद के ग्रंथों में पाचन तंत्र में स्थित अग्नि को समस्त चयापचय का प्रमुख कारक माना गया है। यदि अग्नि ठीक से काम नहीं करेगा तो पाचन तंत्र में समस्या पैदा हो जायेगी और हम कब्ज समेत पेट और आँतों की कई समस्याओं से ग्रस्त हो सकते हैं जिसका असर पूरे शरीर पर पड़ेगा। लेकिन आधुनिक समय में खराब खान-पान और दिनचर्या के कारण बड़ी संख्या में लोग कब्ज जैसी पेट की बीमारी से ग्रस्त हैं।
विडंबना ये है कि शुरूआती दौर में लोग इस बीमारी के लक्षणों को पहचान नहीं पाते या फिर उसे अनदेखा करते हैं। बाद में यही समस्या विकराल रूप धारण कर लेती है। इसलिए ये बेहद जरुरी है कि इसके शुरूआती लक्षणों को पहचानकर तुरंत उपचार किया जाए।
कब्ज़ का अर्थ बहुत कड़ा मल या मल त्याग करने में कठिनाई होना है. यह भी हो सकता है कि आपको पेट खाली करने के लिए (मल त्याग के लिए) ज़ोर लगाना पड़े। शौचालय जाने के बावजूद मन हल्का न लगे और ऐसा लगे कि पेट पूरी तरह से साफ़ नहीं हुआ है।
बार-बार पेट दर्द, ऐठन, गैस बनना, डकार आना, जीभ में छाले आना व पीलापन आना, आलस्य , सिरदर्द व उलटी का होना भी कब्ज के ही लक्षण है। यदि हफ्ते में तीन दिन से अधिक आप मल त्याग नहीं कर पाते तो यह कब्ज के स्पष्ट लक्षण है. खाने में अरुचि का बढ़ना भी कब्ज का ही संकेत है।
कब्ज के कई कारण हो सकते हैं। लेकिन इसका सबसे बड़ा कारण खराब खान-पान और गलत दिनचर्या है। फास्टफूड की संस्कृति ने इस रोग को बढ़ाने में खासी भूमिका निभायी है। भोजन में अपर्याप्त मात्रा में रेशों (फाइबर) का सेवन, कम पानी पीने, व्यायाम की कमी, लंबे समय तक एंटीबायोटिक व गैस की दवाओं के सेवन और समय पर मलत्याग करने न जाना कब्ज की समस्या के प्रमुख कारण है।
महिलाओं में प्रसव के दौरान भी पेट की आतंरिक समस्याओं की वजह से यह रोग हो सकता है. दूध की चाय, कॉफी, तंबाकू या सिगरेट के लगातार सेवन से कब्ज की समस्या पैदा हो जाती है। पाचन ठीक न होने के बावजूद पेटभर कर खाना खाने और लगातार आलस्य की मुद्रा में बैठे रहने से भी कब्ज की समस्या पैदा हो सकती है।
इसके अलावा समय पर भोजन न करने और समय पर न सोने-उठने की वजह से भी कब्ज की समस्या दीर्घकाल में हो जाती है। कुछ लोग शौचालय में अखबार लेकर देर तक गलत तरीके से बैठते हैं जो इस रोग को एक तरह से बुलावा देना है।
कब्ज की समस्या का यदि सही समय पर उपचार न शुरू किया जाए तो आगे चलकर यह शरीर के त्रिदोषों (वात, पित्त और कफ) को असंतुलित करने के अलावा और कई गुदा रोगों मसलन बवासीर, फिशर आदि का कारण भी बनता है।
इसलिए इसकी अनदेखी बिलकुल नहीं करनी चाहिए. शुरूआती दौर में इसका इलाज आहार-विहार में परिवर्तन करके ही आसानी से किया जा सकता है। एक दिलचस्प मिथ्या है कि कच्चे फल और सब्जियां खाने मात्र से कब्ज ठीक हो जाएगा जबकि ऐसा होता नहीं है, उलटे कच्चा खाने से वायु बढ़ेगा. आइये जानते हैं कि कब्ज की समस्या का क्या-क्या आयुर्वेदिक उपचार हो सकते हैं:
कब्ज की समस्या से निजात पाना है तो सबसे पहले पर्याप्त मात्रा में पानी पीना शुरू कर दे। यदि गुनगुना पानी पीते हैं तो अति उत्तम। गुनगुना पानी आँतों को सुचारू रूप से काम करने में मदद करता है। भोजन में फाइबर की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए। चोकरयुक्त आटे की रोटी खाना श्रेयस्कर होगा। दूध में गाय का घी डालकर पी सकते हैं, इससे फायदा होगा क्योंकि घी वात का शमन करता है अर्थात घटाता है।
अमरूद का सेवन भी लाभकारी होगा। त्रिफला को गर्म दूध या पानी के साथ लेने से भी कब्ज का उपचार संभव है। समय पर उठे–जगे और खाए–पीयें। रात्री जागरण और फास्ट फ़ूड से बचे। मैदे से बनी चीजों को खाने से परहेज करे। शारीरिक सक्रियता बढायें, व्यायाम करें।
फिर भी कब्ज की समस्या ख़त्म न हो तो आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह से अभ्यारिष्ट और द्राक्षारिष्ट जैसी औषधियों भी ली जा सकती है। अनुवासन बस्ती जैसी पंचकर्म थेरेपी भी करवाई जा सकती है. उसके अलावा गुनगुने पानी से भरे टब में बैठने से भी फायदा होगा।
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