क्या आपने कभी किसी ऐसे व्यक्ति को देखा है जो भविष्य के बारे में लगातार चिंता करता है और अनिश्चितता का डर उसे सताता रहता है? वे स्थिति की हर नकारात्मक संभावना के बारे में सोचते रहते हैं। क्यों उन्हें यह डर लगा रह्ता है? क्या इस तरह महसूस करना सामान्य है? हम इन भावनाओं से कैसे छुटकारा पा सकते हैं? आपको इस लेख में इन सभी प्रश्नों का उत्तर मिलेगा।
विषय - सूची
- चिंता क्या है
- चिंता के लक्षण
- चिंता के कारण
- निदान
- चिंता के सामान्य उपाय
- क्या खाएं और किससे बचें
- अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
चिंता क्या है?
आयुर्वेद में, मन के तीन गुण हैं (मनो गुण) मुख्य रूप से सत्व, रज और तम।
सत्त्वगुण सकारात्मकता, चेतना और आध्यात्मिकता से जुड़ा है। यह ज्ञान और बुद्धि का प्रतिनिधित्व करता है और जीवन में शांति लाता है।
रज गुण तीनों में सबसे अधिक सक्रिय गुण है। यह अत्यधिक गति और उत्तेजना का परिचायक है। ऐसे व्यक्ति में कुछ पाने का जुनून होता है।
तम गुण भारीपन और जड़ता से संबंधित है। यह व्यक्ति के अंदर नकारात्मक सोच उत्पन्न करता है तथा सुस्ती, अत्यधिक नींद लाता है।
आयुर्वेद में, चिंता को चित्त उद्वेग कहा गया है। चित्त उद्वेग को इस रूप में परिभाषित किया जा सकता है; चित्त(मन) + उद्वेग(अस्थिरता) = चित्त उद्वेग (चित्त की चंचल अवस्था)। चित्त उद्वेग
वात और पित्त के साथ-साथ रज और तम दोषों में विकृति के कारण उत्पन्न होने वाला मनोरोग है।
अल्प सत्त्व होने से चिंता अधिक होती है।
चिंता में मुख्य रूप से दो कारक हैं:
भय = किसी भी खतरे में डर का एहसास।
चिंता करना = अप्रिय चीजों के बारे में सोचना जो आपको दुखी करता है और आपको परेशान करता है।
तो चित्त उद्वेग या चिंता विकार में व्यक्ति तर्कहीन हो कर दैनिक रूप से अत्यधिक चिन्ता करता है।
चिंता के लक्षण:
चिंता के लक्षण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न हो सकते हैं लेकिन कुछ लक्षण आम हैं।
ऐसे व्यक्ति लगातार अवास्तविक चिंता करते है जो अकसर मांसपेशियों में तनाव, बेचैनी महसूस करना, एकाग्रता में कमी, अनिद्रा से जुड़ी होती है।
चिंता के अन्य लक्षण हैं:
- सम्मोह (भ्रम)
- अंगमर्द (शारीरिक दर्द)
- आयास (थकान)
- उच्छ्वास आधिक्यम (सांस फूलना)
- अनन्न अभिलाषा (खाने में अरुचि)
- अनिद्रा (नींद न आना)
- शिरः शून्यता(दिमाग का सुन्न होना)
- उन्मत्त चित्तत्त्वम (एकाग्रता की कमी)
- क्रोध (गुस्सा आना)
- उद्वेग (घबराहट)
- स्वनकर्णयो (कानों में शब्द गूंजना।)
चिंता के कारण:
आयुर्वेद में यह माना जाता है कि अल्प सत्व चिंता का कारण बनता है। रज और तम के साथ वात और पित्त का विकृत होना इस मनोविकार को उत्पन्न करता है।
चिंता के निम्न कारक है:
1. आनुवंशिक कारक- कुछ परिवारों में, यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चलता है।
2. अप्रिय घटनाएं- जीवन में तनावपूर्ण घटनाएं जैसे कार्यस्थल तनाव, वित्तीय तनाव, किसी प्रियजन की मृत्यु चिंता का कारण हो सकती है।
3. मद का अत्यधिक सेवन- मादक प्रवृति से रज और तम दोषों की विकृति होती है।
4. स्वास्थ्य में कमी - कुछ बीमारियां जैसे हृदय रोग, थायरॉइड विकार व्यक्ति में अवसाद को जन्म दे सकते हैं । समय के साथ धीरे-धीरे यह चित्त उद्वेग का कारण बन जाता है।
निदान:
आम तौर पर, आप परीक्षा या नौकरी के लिए इंटरव्यू लेने से पहले चिंतित महसूस करते हैं। लेकिन जब कोई व्यक्ति दैनिक जीवन के निर्णय लेने में समस्याएँ महसूस करने लगे तथा अधिक चिंता के कारण वह कही भी ध्यान केंद्रित न कर पाये तो उसे डॉक्टर से परामर्श करने की आवश्यकता है। आम तौर पर जब चिंता का निदान किया जाता है तब यदि एक व्यक्ति लगातार 6 महीने से अधिक समय तक रोजमर्रा की समस्याओं के बारे में चिंतित महसूस करता है, तो उसे चित्त उद्वेग रोग से ग्रस्त समझा जाता है।
चिंता के सामान्य उपाय:
आज की दुनिया में जीवन शैली तेजी से बदल रही है और हर कोई सभी भौतिक सुखों को पूरा करने की कोशिश कर रहा है। हर कोई ऐसा लगता है जैसे अपने कंधे पर वजन ढो रहा है। ऐसे में चिंता जैसे मनोविकार युवा पीढ़ी में भी काफी देखे जाते हैं। लेकिन कुछ निम्नलिखित सुझाव आपको उस मानसिक बोझ से छुटकारा दिला सकते हैं:
1.आयुर्वेद में अल्प सत्त्व को इस मानसिक विकार का कारक माना जाता है। इसलिए सत्त्वावजय चिकित्सा (मन को नियंत्रण में लाना) मन की शांति के लिए बतायी गयी है। इसके लिये हमें इन युक्तियों का पालन करना चाहिए:
क) ऋतुचर्या और दिनचर्या: हमें अपनी दैनिक जीवनशैली में कुछ चीजों को शामिल करना चाहिए जैसे प्रार्थना, हमारे पास जो कुछ भी है उसमें संतुष्ट रहना, उसके प्रति आभार व्यक्त करना, स्वच्छता और व्यायाम आदि हमारे जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। कुछ खास ऋतु में लोग अधिक चिंतित महसूस करते हैं जैसे गर्मी तो हमें उसके अनुरूप शीतल चीज़ों का प्रयोग अपने आहार विहार में करना चाहिए।
ख) सत्त्वगुण को सद्वृत्त(सदाचार) के द्वारा सुधारा जा सकता है। नैतिक आचरण, सत्य, अहिंसा,व्यक्तिगत स्वच्छता आदि का अभ्यास तनाव और चिंता को कम करेगा।
ग) अन्नपान विधी (आहार संबंधी नियम): खाने-पीने की आदतों में सुधार भी चिन्ता रोग को कम करने में सहायक है।
मिर्च और कैफीन जैसे राजसिक और तामसिक भोजन से परहेज करना।
नियमित समय पर भोजन करना।
आहार में क्षीर (दूध), घृत (घी), द्राक्षा (अंगूर) जैसे खाद्य पदार्थ शामिल करना।
2.अभ्यंग (शरीर की मालिश): शरीर की मालिश तनाव और चिंता को दूर करने का शानदार तरीका है। तिल के तेल या सरसों के तेल से मालिश कर सकते हैं।
3. शिरोधारा (माथे पर औषधीय तेल, दूध या काढ़ा डालना): माथे पर चंदनादि तेल या तिल का तेल जैसे साधारण तेल डालना भी उन तनावग्रस्त तंत्रिकाओं को शांत कर सकता है।
4.प्राणायाम: प्राणायाम का चिंता रोग पर वास्तव में अच्छा प्रभाव पड़ता है। सांस लेने और साँस छोड़ने पर ध्यान केन्द्रित कर कुछ ठहराव के साथ उन्हें लंबा करने की कोशिश करनी चाहिए। अनुलोम-विलोम, कपालभाति, भस्त्रिक और भ्रामरी जैसे प्राणायाम आपको इस रोग से छुटकारा दिला सकते हैं।
5.योग और ध्यान: योग में कुछ आसनों का नियमित रूप से अभ्यास चिंता के लक्षणों को दूर करने में सहायक है जैसे कि धनुरासन, सेतु बंधासन, मर्जरीआसन, शीर्षासन आदि।
क्या खाएं और क्या न खाएं:
आयुर्वेद में, किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य का निर्धारण करने के लिए आहार संबंधी आदतें अत्यन्त महत्वपूर्ण है। चिंता रोग में अरुचि तथा खाने का पाचन न होने जैसे लक्षणों को देखते हुए इन नियमों का पालन करना चाहिए:
- नियमित समय पर भोजन करें।
- वात दोष को संतुलित करने के लिए थोड़ा तेल या घृत (घी) में पकाया गया गर्म भोजन खाएं।
- आहार में अधिक सात्विक खाद्य पदार्थ शामिल करें जैसे मौसमी फल और घर का बना साधारण भोजन।
- सोने से पहले केसर मिला हुआ दूध पियें क्योंकि यह नींद आने में मदद करेगा।
- बेकरी आइटम, फ्रोजन फूड और डीप फ्राइड फूड जैसे प्रोसेस्ड फूड से बचें।
- राजसिक और तामसिक खाद्य पदार्थों जैसे मिर्च, कैफीन और मांस से बचें।
अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQS)
चिंता क्या है?
चिंता या जैसा कि हम इसे आयुर्वेद में चित्त उद्वेग कहते हैं, इसमें व्यक्ति अत्यधिक चिंता के कारण अपने रोजमर्रा के जीवन में कठिनाई महसूस करता है। व्यक्ति में धीरे-धीरे शारीरिक लक्षण जैसे अनिद्रा, शरीर में दर्द, खाने में अरुचि आदि भी आने लगते है।
हम इससे कैसे बच सकते हैं?
जैसा कि आयुर्वेद में निदान परिवर्जन (कारण खत्म करना) को प्राथमिक उपचार माना गया है, अतः यौगिक जीवन शैली अपनाने से चिंता को रोकने में मदद मिल सकती है। योग के सिद्धांत यम और नियम आपको उस सात्विक जीवन शैली को प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं। उदाहरण के लिए शौच में मन और शरीर की स्वच्छता के बारे में बताया गया है। संतोष सिद्धांत व्यक्ति को उसके जीवन में जो भी है, उसी में खुश रहना सिखाता है। साथ ही अपरिग्रह सिद्धांत हमारी इच्छाओं को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है। व्यक्ति को पौष्टिक भोजन भी करना चाहिए और योग, प्राणायाम और ध्यान की मदद से स्वस्थ जीवन शैली का पालन करना चाहिए।