By NS Desk | 17-Sep-2022
योग और आयुर्वेद, कोविड 19 के उच्च जोखिम वाले मामलों के उपचार में प्रभावी हो सकते हैं। 30 उच्च-जोखिम वाले कोविड-19 रोगियों के सफल उपचार पर एक शोध का अध्ययन यह सुझाव देता है। यह अध्ययन आईआईटी दिल्ली और देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार के शोधकतार्ओं की एक टीम द्वारा किया गया था। आईआईटी दिल्ली का कहना है कि इस अध्ययन के दौरान तय दिशानिदेशरें के अनुसार उपचार के अलावा, रोगियों को टेलीमेडिसिन के माध्यम से आयुर्वेदिक दवाएं दी गईं।
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग करके एक व्यक्तिगत चिकित्सीय योग कार्यक्रम का भी संचालन किया गया। आईआईटी दिल्ली का कहना है कि जिन रोगियों का उपचार किया जा रहा था, लगभग उन सभी रोगियों को मधुमेह मेलिटस, उच्च रक्तचाप, क्रोनिक किडनी रोग, कोरोनरी धमनी रोग जैसी एक या अधिक सह-रुग्णताओं के कारण उच्च जोखिम के रूप में वर्गीकृत किया गया था। गौरतलब है कि हाई ब्लड प्रेशर, किडनी रोग व डायबिटीज आदि जैसी बीमारियां कोविड 19 के मामलों में गंभीर परिणाम देने के लिए जानी जाती हैं। इनमें से कई रोगियों की आयु 60 वर्ष एवं 60 वर्ष से ही से ऊपर थी।
रोगियों को दिया गया उपचार व्यक्तिगत उपचार था। यह उपचार शास्त्रीय ग्रंथों के अनुसार था और प्रत्येक रोगी की चिकित्सा हिस्ट्री और प्रस्तुत लक्षणों को ध्यान में रखा गया, जिसने इसे एक निश्चित मानकीकृत उपचार योजना की तुलना में अधिक प्रभावी बना दिया। उपचार में आयुर्वेदिक दवाएं, दैनिक योग-सत्र जिसमें गहरी विश्राम तकनीक, प्राणायाम और बुनियादी आसन और जीवन शैली में कुछ संशोधन शामिल थे।
आईआईटी दिल्ली के मुताबिक मामलों को अलग-अलग वर्गों में वगीर्कृत किया गया था। आयुर्वेद आधारित उपचार, और आधुनिक पश्चिमी चिकित्सा यानी एलोपैथी सहायक के रूप में रोगियों को बाद में योग-आयुर्वेद में स्विच किया। अधिकांश रोगी जिनमें योग और आयुर्वेद उपचार से पहले कई लक्षणों थे, को ठीक होने तक नियमित रूप से टेलीफोन पर फॉलो-अप किया गया था। आधे से अधिक रोगसूचक रोगियों में 5 दिनों के भीतर सुधार होने लगा (90 प्रतिशत रोगियों में 9 दिनों के भीतर रिकवरी की सूचना दी। 95 प्रतिशत से कम ऑक्सीजन संतृप्ति वाले छह रोगियों को मकरासन और शिथिलासन से लाभ हुआ।
कीसी भी रोगी को आईसीयू में एडमिट नहीं कराना पड़ा। इसके अलावा योग व आयुर्वेद के माध्यम से उपचारित किए जा रहे थे। इन रोगियों में वेंटिलेशन की आवश्यकता भी नहीं पड़ी न ही इनमें से किसी रोगी की मृत्यु हुई।
अध्ययन के दौरान आईआईटी दिल्ली से फैलोशिप कर रही डॉ सोनिका ठकराल ने कहा, ज्यादातर मरीजों ने बताया कि थेरेपी का उनकी रिकवरी प्रक्रिया पर गहरा असर पड़ा है। साथ ही कई लोगों ने उनकी कॉमरेडिटीज के संबंध में भी सुधार का अनुभव किया है। उपचार के अंत तक, कई रोगियों ने अपनी जीवन शैली में योग को अपनाने का फैसला किया था, और कई ने अपनी सहरुग्णता के उपचार के लिए टीम में आयुर्वेद डॉक्टरों की ओर रुख किया।
इससे पहले भी आईआईटी दिल्ली कोरोना के दौरान अश्वगंधा के फायदों पर महत्वपूर्ण रिसर्च कर चुका है। आईआईटी दिल्ली के मुताबिक कोरोना के दौरान अश्वगंधा के सेवन से रोगियों को लाभ पहुंचा है। (एजेंसी)
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