- डॉ. सुशील कुमार ( आयुष चिकित्सक, बेगूसराय) और डॉ. प्रो. मनोरंजन साहू (शल्यतंत्र विभाग, आयुर्वेद संकाय.काशी हिन्दू विश्वविद्यालय)
भगन्दर एक चिरकालिक रोग है जिसमें गुदा मार्ग के अंदर से गुदा की ब्राह्य त्वचा के बीच सुरंग के जैसा नाली बन जाता है. सामान्यतयः ये बीमारी गुदा मार्ग के आसपास फोड़े और फोड़ा फटने या ऑपरेशन के बाद होती है जिससे मवाद आता रहता है. अधिकतर भगन्दर गुदा मार्ग में होने वाली ग्रंथियों के संक्रमण से होता है. सामान्यतः लक्षण गुदामार्ग के आसपास बड़े फोड़े से मवाद आना, दर्द, बुखार, कमर दर्द आदि है. सभी फोड़े भगन्दर नहीं बन पाते हैं. कुछ ही भगन्दर का रूप लेता है जो फोड़ा गहरा होता है वही भगन्दर का रूप लेता है. सामान्य भगन्दर आसानी से ठीक हो जाते हैं परन्तु जो जटिल एवं कठिन होते हैं, उसमें एक से अधिक मार्ग वाले तिरछे, उन्भार्गो, घोड़े के नाल जैसा, अन्तर्मुखी या दूसरे अंगों तक पहुंचा टीबी, मधुमेह, लंबे मार्ग वाले या शल्य क्रिया के पश्चात दुबारा बन जाते हैं.
गुदा मार्ग के आसपास को देखकर ऊँगली द्वारा गुदा मार्ग को परीक्षण कर, प्रोक्टोस्कोपी कर, शलाका द्वारा, कैंसर या टीवी के लिए वापसी जांच कराकर, ब्लड जांच फिस्टुलो ग्राम कराकर इत्यादि.
सामान्यतः भगन्दर का घाव स्वयं नहीं भरता परन्तु एंटीबायोटिक के प्रयोग करने पर कुछ दिन के लिए घाव भर जाती है. पर पुनः मवाद का रिसाव होने लगता है. ऐसी परिस्थिति में शल्य क्रिया द्वारा क्षार-सूत्र चिकित्सा आयुर्वेद में वर्णित औषधियों द्वारा एक धात्रा होता है जो कि भगन्दर या नाड़ीव्रण में प्रयोग किया जाता है. इस चिकित्सा विधि को बीएचयू आयुर्वेद संकाय चिकित्सा विज्ञान संस्थान के शल्य तंत्र विभाग द्वारा खोला गया है एवं इसकी प्रमाणिकता केंद्रीय आयुर्वेद अनुसंधान परिषद् एवं भारतीय भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा दी गयी क्षारसूत्र में लगी औषधि के प्रभाव से और क्षार सूत्र बाँधने के घाव का छेदन और रोपण होकर संपूर्ण नाड़ी कट कर भर जाता है. इसमें होने वाले संक्रमण को भी रोकता है. घाव की सफाई होने के पश्चात घाव भरने लगता है. भगन्दर की चिकित्सा आधुनिक शल्यक्रिया के द्वारा की जाती है. इसमें भगन्दर को चीरा लगाकर छोड़ देते हैं परन्तु कभी-कभी दुबारा होने की संभावना बनी रहती है और गुदा मार्ग से मल का रिसाव भी होने लगता है ऐसी परिस्थिति में क्षारसूत्र विधि ज्यादा सफल चिकित्सा मानी जाती है.
भगन्दर रोग के इलाज की निश्चित अवधि रोग की जटिलता एवं रोगी के परिस्थिति पर निर्भर करता है. सामान्यतः क्षार सूत्र विधि द्वारा भगन्दर नाड़ी को भरने में 6 सप्ताह से 8 सप्ताह का समय लगता है. वैसे भगन्दर जिसका ऑपरेशन हो चुका हो , ज्यादा शाखा हो, घुमावदार नाड़ी होने पर मधुमेह, राजयक्ष्मा, कुपोषण, रक्ताल्पता एवं स्थूलता वाले रोगी में ज्यादा समय भी लग सकता है. क्षार सूत्र से ज्यादातर भगन्दर ठीक हो जाते हैं. परन्तु कैंसर टीवी या अन्य बीमारी वालों के लिए विशिष्ट चिकित्सा की आवश्यकता होती है.
यह एक सरल एवं सुरक्षित छोटे पैमाने पर की गयी शल्यक्रिया है. इलाज के समय मरीज को अस्पताल में भर्ती रहने की आवश्यकता कम होती है तथा वह अपना दैनिक कार्य भलीभाँती कर सकता है. चिकित्सा के दौरान गुदामार्ग के पास होने वाले उत्तकों, मांसपेशियों के नुकसान कम होने के कारण मल रोक पाने में असमर्थता , गुदामार्ग की संकीर्णता जैसी समस्याएं नहीं के बराबर होती है. यह चिकित्सा विधि अन्य विधि की तुलना में बहुत सस्ती है. इस विधि द्वारा सामान्य भगन्दर को शत-प्रतिशत तथा कई भगन्दर को 93-97 प्रतिशत तक ठीक किया जा सकता है. इस विधि द्वारा चिकित्सा करने पर दुबारा होने की संभावना न के बराबर होती है.
इस विधि से मरीजों को हलके या मध्यम स्तर का दर्द होता है. संवेदनशील मरीजों को दर्द निवारक या संज्ञाहारक दवा की आवश्यकता होती है. इस तरह की परेशानी होने पर चिकित्सक से तुरंत संपर्क किया जा सकता है.
क्षारसूत्र चिकित्सा के दौरान कब्ज को दूर करने के लिए मृदुरेचक्र औषधि लेनी चाहिए. भोजन में रेशेदार पदार्थों को शामिल करें. गुनगुने पानी में दिन में दो बार बैठकर सिकाई करनी चाहिए. संक्रमण को रोकने के लिए साफ़ एवं सूखा रहना चाहिए. बैठने एवं सोने के लिए मुलायम गद्दी का इस्तेमाल करना चाहिए. ज्यादा देर तक मॉल त्यागने में न बैठे. साइकिल एवं दो पहिये वाहन का प्रयोग न करें.
ठीक होने के उपरांत समय-समय पर चिकित्सक से नियमित परीक्षण कराना चाहिए. फास्टफूड, बाहर खुले में रखे भोजन, संक्रमित पेय से दूर रहे. धुम्रपान और तम्बाकू का सेवन न करे. विरेचन औषधियों (पेट साफ़ होने की दवा) का सेवन चिकित्सक के सलाह के बिना न प्रयोग करें. मल कड़ा होने, चोट लगने, गुदचीर (फिशर) हो तो चिकित्सक से तुरंत सलाह लें.
गुदा तथा इसके आसपास के बीमारियों को न छिपायें . अपने चिकित्सक से अवश्य सलाह लें.
हल्का एवं सुपाच्य कम मसालेदार भोजन. पुराना चावल, गेंहूँ का आटा, मूंग डाल, स्वच्छ पानी, तिल या सरसो तेल, गोधृत एवं मठ्ठा, परवल, पपीता, लौकी,, सूरज, कच्चा केला, सहजन की फली, चुकुन्दर, गाजर.
अपथ - बाजरा का आटा, उड़द दाल, चना, मटर, गुड़, आलू, बैगन, कटहल, कदिमा एवं मदिरा से परहेज करें.
(यह लेख आयुर्वेद पर्व की स्मारिका से साभार लिया गया है)
For Treatment Contact - 9595300500, 9821030113
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