सच्चा प्यार और मोहब्बत यह एक ऐसा माया मृग (छल/झूठ) बनता जा रहा है जिसको पाने के लिए हर कोई उतावला है लेकिन जब इस ओर लोग बढ़ते हैं तब समझ आता है कि जिंदगी तो कुछ और ही है।
वैसे मेरी इस बात से बहुत से लोग भरोसा नहीं करेंगे या संभव है कि नाक-मुंह भी बना लें, खासकर के प्यार की चासनी में लिपटे या यूँ कहूं कि नहाये हुए वो लोग जिनके दिन की शुरुआत और अंत बाबू, सोना, जानू, I love you जैसे शब्दों से शुरू होती है या दिन के कई घंटे इसी तरह की चैट या कॉल में जाते हों! लेकिन यक़ीन मानिये जैसे-जैसे यह लेख आप पढ़ते जायेंगे तो निश्चित ही यह भरोसा तो आपको हो ही जायेगा कि जो विचार और सोच या रिश्ते लेकर आप चल रहे हैं उसपर एक बार गंभीरता से विचार करना कितना जरुरी है, कृपया एक बार गंभीरता से पूरे लेख को अवश्य पढ़ें!
इस लेख में बात शुरू करते हैं दुनिया के सबसे बड़े टॉपिक "मोहब्बत और सेक्स" से (यह बात कई तरह के रिसर्च में सिद्ध हो चुकी है की लोगों के लिए यही विषय सबसे पसंदीदा हैं), आम तौर पर इस संसार में मौजूद लगभग प्रत्येक प्राणी के जीवनचक्र का यह एक ऐसा पहलु है जिससे शायद ही कोई अछूता रहा हो, इससे न इंसान बचा और न जानवर!
जाहिर सी बात है कि जब इतने तरह के प्राणी और इतना बड़ा संसार इसी ओर भाग रहा है तो कुछ तो विशिष्ट होगा ही इसमें, वैसे यदि विज्ञान की भाषा में इसको कहें तो यह हमारे शरीर में मौजूद कुछ विशेष तरह के Hormones से जुड़ा हुआ है, और यदि आध्यात्म या आयुर्वेद की भाषा में कहें तो यह यह मानवीय संवेदनाओं, भावनाओं और जीवन की इच्छा से जुड़ा हुआ है।
अब जब बात रिश्तों की आती है , खासकर के जिसे आज के समय में विपरीत लिंग के साथ आकर्षण को प्रेम का नाम दे दिया गया है उसमें कई तरह के विकार या गलत भाव आ चुके हैं, यदि इसकी जड़ में जाएँ तो विज्ञान के हिसाब से इसके लिए जो सबसे बड़ा हॉर्मोन जिम्मेदार है वो है टेस्टोस्टेरोन (Testosterone) इसे हम male (पुरुष) हॉर्मोन भी कहते हैं, यह हॉर्मोन आदमियों में या इस दुनिया के सभी तरह के नर चाहे वो गधा, घोड़ा, कुत्ता, हाथी, शेर आदि कोई भी हो उन सभी में मौजूद होता है जिसका काम है पुरुषों में सेक्स ड्राइव को बढ़ाना!
प्राकृतिक रूप से 99.99% पुरुषों में जब विपरीत लिंग के प्रति जब प्यार / मोहब्बत और इश्क़ जैसा कुछ भी आता है तो उसके दिमाग में शुरुआत से लेकर आगे तक अपने साथी के साथ सेक्स ही आकर्षण का सबसे पहला और अंतिम पहलु होता है, संभव है आप में से कुछ लोग इससे सहमत न हों लेकिन पुरुषों की यह प्राकृतिक स्थिति होती है और विज्ञान के कई रिसर्च भी यही सिद्ध करते हैं!
हालाकिं निश्चित रूप से अपवाद भी होते हैं और कई परिस्थितियों और रिश्तों के अनुरूप भी पुरुषों का व्यवहार बदल जाता है जैसे परिवार में मौजूद अन्य महिलाओं जैसे : माता, बहन, दादी, बेटी आदि के प्रति निश्चित रूप से पुरुषों के विचार और सोच अलग चलती है, लेकिन जैसे ही वह इन रिश्तों के दायरे के बाहर खड़ा होता है और उसे विपरीत लिंग का कोई दिखता है तो स्वतः ही उसका टेस्टोस्टेरोन हॉर्मोन उसके ऊपर हावी होने लगता है, हालाँकि वर्तमान समय में यह सब इसलिए भी बहुत अधिक बढ़ा है क्योंकि आज के समय में सोशल मीडिया और इंटरनेट के माध्यम से प्रत्येक तरह की सामग्री और अश्लीलता इतने सहजता से सभी के लिए उपलब्ध है कि लोगों ने इन बातों को ही सही दुनिया समझ लिया है साथ ही इस विषय पर सही एजुकेशन के नाम पर महज मजाक भर ही हमारे समाज के बीच में है। वहीं इसके विपरीत सात्विक (मन की बेहद ही प्रसन्न और संतुष्ट रहने वाली अवस्था) आचरण, सदाचार या ब्रह्म की चर्या जिसे ब्रह्मचर्य का नाम दिया गया इस सभी की भी व्याख्या लोगों ने अपने-अपने मन से करके ऐसी बना दी है कि इसे या तो मजाक का विषय समझा जाता है या फिर कुछ आदर्श पुरुषों की स्थिति की तरह देखा जाने लगा है!
वहीं दूसरी ओर जब हम महिलाओं की बात करते हैं तो उनमें प्रोजेस्टेरोन (Progesterone) हॉर्मोन शरीर के सेक्सुअल व्यवहार, मासिक चक्र आदि के लिए जिम्मेदार होता है, साथ ही यह हार्मोन महिलाओं में चिड़चिड़ापन, उदासी, चिंता आदि जैसे इमोशनल बदलावों के लिए भी जिम्मेदार होता है। इसलिए ही जब महिलाएं अपनी मर्जी से किसी के साथ शारीरिक संपर्क में आती हैं तो उनके साथ बेहद ही ज्यादा भावनात्मक रूप से खुद को जोड़ लेती हैं और ऐसे पुरुष के लिए भी वे कुछ भी करने को तैयार हो जाती हैं!
महिलाओं और पुरुषों के इन्हीं अलग-अलग हॉर्मोन्स के कारण जो प्यार को लेकर ग्राफ की स्थिति बनती है वो कुछ इस तरह की होती है:
पुरुष जो आरम्भ में बेहद प्यार करने वाले, उतावले, अपनी प्रेमिका के लिए कुछ भी कर डालने की बात करने वाले आदि-आदि तरीके के आदर्श आचरण और व्यवहार करते हैं वे अचानक ही जैसे ही उनका मुख्य काम होता है अर्थात जैसे ही उनका टेस्टोस्टेरोन हॉर्मोन से जुड़ा काम या यह संतुष्ट होता है मतलब उसका सेक्स से जुड़ा कार्य पूरा होता है वैसे ही वो रंग बदलना आरम्भ कर देता है। वह व्यक्ति धीरे-धीरे फिर कोई और की तलाश की ओर बढ़ जाता है या जिसके साथ है तो वह और अधिक आनंद प्राप्त नहीं कर पाता है। (निश्चित रूप से इस लेख में मेरे द्वारा लिखी जा रहीं बातें एक आदर्श स्थिति नहीं है बल्कि आज के विकृत हो चुके विचारों, परिस्थितियों और सामाजिक स्थिति है, लेकिन न चाहते हुए भी एक कटु सत्य ही है!) अर्थात पुरुषों का प्यार का ग्राफ जो शुरू में चरम सीमा पर या अपने टॉप स्तर पर था वो ऊपर से नीचे और नीचे से और धरातल यानी की निगेटिव की ओर बढ़ता जाता है। (हाँ यह संभव है कि कुछ पुरुषों में यह प्यार का ग्राफ एकदम तेज़ी से कुछ ही हफ़्तों या महीनों में नीचे चला जाता है और कुछ में नीचे जाने में कुछ वर्ष भी लगते हैं लेकिन वर्तमान समय के पुरुष स्वाभाव के अनुसार यह ग्राफ जाता नीचे ही है।)
जबकि इसके विपरीत महिलाओं की स्थिति एकदम अलग होती है, आरम्भ में उनके प्यार का ग्राफ एक सामान्य लेवल पर या बिल्कुल ही प्रारंभिक स्थिति में होता है, जो धीरे-धीरे कई तरह की स्थितियों और सामने वाले की ओर से किये जा रहे कई प्रयासों और आकर्षण से धीरे-धीरे बढ़ता जाता हैं और जब वे इस स्तर पर पहुँच जातीं हैं कि वे पुरुष के साथ शारीरिक संपर्क स्थापित कर लेती हैं तो वे किसी भी स्थिति में अपने उस प्यार करने वाले पुरुष के साथ ही रहना चाहती हैं। यहाँ तक कि वे उसके लिए घर-परिवार, माता-पिता आदि सभी को छोड़ने के लिए तैयार हो जाती हैं, अभी दिल्ली में हुआ श्रद्धा मर्डर केस इसका एकदम आदर्श उदाहरण है, कि आफताब नाम के लड़के के साथ उसकी लगातार हिंसा होती थी, रिश्ता बिगड़ता ही जा रहा था, लेकिन उस सबके बाद भी वो किसी न किसी बहकावे में आकर उस लड़के से अलग नहीं हो पा रही थी, यहाँ तक कि अपने परिवार और दोस्तों से भी अच्छी खासी दूरी बनाकर के रह रही थी, उसके पिता को उसके दोस्तों से बात करके या सोशल मीडिया के उसके अकाउंट से उसका हाल पता चलता था। हालाकिं लड़कियों से माता-पिता या परिवार के साथ सही से न जुड़ पाने को लेकर या अपनी बात खुलकर न कर पाने के कई और सामाजिक पहलु हैं जिन्हें हम इसी लेख में आगे पढ़ेंगे!
महिलाओं के प्यार का ग्राफ नीचे या बीच से ऊपर और उससे और ऊपर की ओर ही बढ़ता जाता है। और उनकी इन्हीं भावनाओं और पहलु के कारण उनमें शुरू होती है एक अजीब सी स्थिति जिसे साइकोलॉजी की भाषा में "Bad Faith" कहते हैं, वैसे तो इस शब्द की व्याख्या में कई लम्बे-लम्बे विचार लिखे गए हैं, लेकिन इस लेख के विषय के सन्दर्भ में यदि लिखूं तो इसका अर्थ यह है कि लड़कियां खुद को झूठी तसल्ली या झूठा भरोसा देना शुरू कर देती हैं, और अधिक सरल भाषा में कहूं तो रिश्तों में दिख रही समस्याओं को नज़रअंदाज करना आरम्भ कर देती हैं!
जैसे जब उनका पुरुष पार्टनर उनको कम समय देना शुरू करता है तो वे समझ नहीं पातीं या समझकर भी "Bad Faith" के भरोसे बैठी होती हैं शायद सब अच्छा हो जायेगा या शायद बेचारा काम में या परिवार में उलझ रहा है, या वो बहाने जो लड़का बनाना शुरू करता है या अलग-अलग इमोशनल तरीके से बहलाता है तो उसमें बिना दिमाग लगाए भरोसा करती चली जाती हैं!
आजकल के दौर में इस तरह कि स्थितियां सबसे ज्यादा लिव-इन रिलेशन में या लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप में या लम्बे समय से प्यार में डूबे तथाकथित प्यार करने वाले युवाओं में ज्यादा दिखाई देती हैं, जिसके कई सामाजिक पहलु भी होते हैं!
जैसे लड़के-लड़की का अलग-अलग जाति (कास्ट) या धर्म का होना, यह आजकल की एक बहुत कॉमन समस्या है!
यह एक बड़ी समस्या तब और बन जाती है जब लड़का या लड़की में से कोई एक अपने माँ-बाप के साथ रह रहा होता है, क्योंकि ऐसे में उस लड़के या लड़की के ऊपर माता-पिता का इमोशनल प्यार या आज की भाषा में कहें तो अत्याचार चल रहा होता है, क्योंकि माँ या बाप या कभी-कभी दोनों को यह लगता है कि इस बच्चे को तो हमने बचपन से पाला है, बड़ा किया है और अचानक से कुछ महीनों से या सालों में मेरा यह बच्चा / बच्ची इस लड़की या लड़के से कनेक्ट हो गई है और अब यह हमारी जगह उसको ज्यादा तबज्जो कैसे दे सकता है!! कई बार यह स्थिति उन माँ-बाप के ईगो को हर्ट कर देता है जो वे या तो गुस्से में बातों के माध्यम से निकालते हैं या कई बार माँ-बाप या परिवार के लोग अपने झूठे अहंकार या झूठी सामाजिक इज्जत के नाम पर इतना गंभीरता से ले जाते हैं कि अपने ही बच्चे या बच्ची की हॉनर किलिंग तक पहुंच जाते हैं लेकिन ज्यादातर मामले स्लो पाइजन (धीमे जहर) के रूप में आगे बढ़ते हैं!
स्लो पाइजन वाली स्थिति ज्यादातर बार लड़कियों के साथ शादी के बाद ज्यादा होती है, इसकी एक बेहद बड़ी वजह उत्तर भारत में मुझे देखने को मिली वो है ऐसे रिश्तों में लड़के वालों के घर वालों की कई इच्छाएं अधूरी रह जाती हैं जो वे लड़के के दवाब में उस समय तो नहीं बोल पाते लेकिन धीरे-धीरे जैसे ही कुछ समय बीतता है वो स्लो पाइजन के रूप में बाहर निकलती हैं, जैसे जब लड़का-लड़की लव मैरिज या इंटरकास्ट मैरिज कर लेते हैं तब शुरुआत शादी और परिवार के रीति-रिवाजों से शुरू होती है कि.... लड़की के घर वालों को तो ये नहीं पता वो नहीं पता!! इन्होने वो सम्मान नहीं किया!! ये गलत कर दिया...शुरू में प्यार में डूबे लोग इसको हँसते हुए नज़रअंदाज करते हैं!!
कई बार यह स्थिति अच्छे से दहेज़ न मिल पाने के कारण भी बनती है (हमारे देश में विशेषकर के उत्तर भारत में यदि किसी का लड़का थोड़ा सा पढ़-लिख जाता है या कुछ सही कमाने लगता है तो वो उनके लिए एक दुधारू गाय की तरह होता है, जिसे बाजार में कई तरह की बोली लगाकर लोग अपनी लड़कियों के लिए रिश्ता करने के लिए एक पैर पर तैयार खड़े होते हैं), लेकिन ऐसे आकर्षक पैसों से भरे ऑफर के बीच में जो माँ-बाप या परिवार इस काम में अपने बच्चे की लव मैरिज के चक्कर में चूक जाते हैं वे शादी के बाद बेहद अजीब-अजीब से तर्कों के साथ उनकी यह अधूरी इच्छा कई तरह की भड़ास के रूप में बाहर निकलती है और इसका पूरा सामना लड़की को अकेले ही झेलना पड़ता है! और इस स्थिति में कोढ़ में खाज वाली बात यह और होती है कि लड़की के घर वाले भी उसका साथ नहीं दे रहे होते क्योंकि लड़की ने अपनी जिद से शादी की होती है तो जिससे उसके खुद के माँ-बाप का पहले ही ईगो हर्ट हुआ होता है और ऐसी स्थिति देखकर उनको कहने या बातें सुनाने का मौका मिल जाता है कि तुम्हें तो हमने पहले ही मना किया था लेकिन तुमने हमारी बात कहाँ मानी...., कई बार तो लड़कियां खुल के अपने दिल की बात और स्थिति अपने माँ-बाप को इस कारण ही नहीं बताती क्योंकि वो ही स्वयं को इस स्थिति का जिम्मेदार मानती हैं और एक Bad Faith के सहारे खुद को समझातीं रहती हैं!
कुछ महिलाएं ऐसी स्थिति से बचने के लिए यह सोचती हैं कि शायद उनका बच्चा हो जायेगा तो ऐसा नहीं होगा, लेकिन अधिकांश हालातों में यह रुकता नहीं बस स्थिति एक अलग तरह की ढलान की ओर बढ़ जाती है जहाँ से ऊपर आना बेहद मुश्किल या यूँ कहें नामुमकिन सा होता है!!
अब ऐसे में वे लड़कियां ज्यादा खुशकिस्मत होती हैं जो शादी से पहले ही ऐसी किसी स्थिति का सामना करती हैं, जहाँ लड़के के घरवाले उसे किसी और जगह दवाब बनाने के लिए कह रहे होते हैं, वो भी यही कह रहा होता है कि बाबू तुमसे तो मैं दिल-जहाँ से प्यार करता हूँ लेकिन अब घर वालों को कैसे समझाऊं मैं नहीं समझ पा रहा, कई लड़के खुल के नहीं बोलते तो कई मन में उस लड़की से सही में पूरी तरह से ऊब चुके होते हैं और नए रिश्ते में एक नया साथी और पैसा दोनों ही उसको दिख रहा होता है ......कई हिम्मत करके यह बोल देते हैं कि मैं शादी नहीं कर सकता .... लड़कियों को इस स्थिति में तत्काल समझ जाना चाहिए कि यह एक अलार्म वाली स्थिति है लेकिन उनको लगता है कि नहीं ऐसा कैसे हो सकता है जो लड़का दिन रात मेरे पीछे दुम हिलाता था, या जो अभी भी मुझे चाहता है, या यह तो मेरे हुस्न या सुंदरता पर लट्टू था, अचानक इसको क्या हो गया (ऐसा ही वहम शायद दीपिका पादुकोण को रहा होगा लेकिन वो भी ऐसे ही टॉक्सिक रिलेशनशिप के चक्कर में डिप्रेशन में जा चुकी हैं, जिन लोगों को यह किस्सा पता नहीं तो वे गूगल अवश्य करें)..... किसी भी लड़की के लिए यह बात निश्चित रूप से ख़राब ही लगेगी कि उसके साथ हर तरह का समय बिताने के बाद यह लड़का अपने घर की या किसी स्थिति से अब पीछे हटने की बात कर रहा है, या कई बार लड़के पीछा छुड़ाने के लिए लड़ाई-झगड़ा, मार-पिटाई भी कर देते हैं ...
लेकिन इन सबके बाद भी लड़कियां कई बार यह सोचती हैं कि जिस लड़के के सामने उन्होंने अपना सबकुछ दे दिया अब कोई और उनको स्वीकार कैसे करेगा!! किसी और के सामने वो खुलकर कैसे बता पाएंगी कि उनका किसी के साथ रिश्ता था!! या अभी जो लड़का उनके साथ है वो इतना अच्छा है या देखने में इतना सुन्दर है या कोई और तर्क से सिर्फ यह सोचती हैं कि यह चला गया तो कोई दूसरा कैसे मिलेगा ...और इन्हीं सब कारणों, अपने हॉर्मोन और Bad Faith के आगे मजबूर होकर उस हिस्से की ओर आगे बढ़ जाती हैं जहाँ शुरू से ही उन्हें आगे न बढ़ने के कई indication उन्हें मिल रहे होते हैं, लड़कियों को अपने ऐसे कदम के चक्कर में समाज, परिवार और यहाँ तक की अपने जीवन के लिए देखे जाने वाले कई सपनों से समझौता या बगावत करनी पड़ती है लेकिन बस इस भरोसे से वो आगे बढ़ती जाती हैं कि उनके साथ कुछ गलत नहीं हो सकता और हकीकत कभी श्रद्धा मर्डर के रूप में तो कभी दहेज़ हत्या के रूप में तो कभी खुद जाकर सुसाइड जैसे भयावह कदम उठाने पड़ते हैं।
इस लेख में एक अंतिम बात और जोडू तो लड़कियों की फंतासी (Fantasy) की स्थिति भी कई बार गंभीर परिणामों को लेकर के आती हैं, क्योंकि हमारे भारत में लड़कियों को माँ-बाप या परिवार हमेशा बेहद देखरेख वाले तरीके से पालने की कोशिश करता हैं जैसे यह ड्रेस क्यों पहनी, इसके साथ क्यों जा रही हो, इतना क्यों खर्च कर रही हो, यह बनाना सीखो, ससुराल जाकर यह करना यहाँ नहीं चलेगा यह सब, या लड़की कमाने लगती हैं तो उसकी आमदनी पर नियंत्रण करते हैं, रात में यहाँ क्यों जा रही हो, यह क्यों कर रही हो वो क्यों कर रही हो आदि....आदि... ऐसे सब में लड़की के अंदर एक अनचाही फंतासी (Fantasy) बढ़ती जाती है कि जब शादी होगी तो यह करुँगी, वहां घूमूंगी, या कोई शादी से पहले मिल जाता है तो उससे उम्मीदें होती हैं कि वो ऐसा करेगा या उसके साथ ऐसा करुँगी!
शादी या प्यार की आरम्भिक स्थिति तो अच्छी लगती है, गाड़ियों या बाइक में बैठकर हाथ में हाथ डालकर घूमना या कुछ न कुछ जुगाड़ बनाकर पैसे इकट्ठे करके छोटे-मोटे ट्रिप प्लान करना या यादगार लम्हे गुजारना नए-नए प्रेमी युगलों को बेहद अच्छा लगता है लेकिन जब जिंदगी की हकीकत सामने आती है जिसमें रोज पेट भरने का जुगाड़ करना होता है, जिसमें एक-दूसरे के अलावा भी बहुत से काम और सपने पूरे करने होते हैं और किसी कारण से वो पूरे नहीं होते तो शुरू हो जाता है Bad Faith का खेल या कुछ सपनों को ख़त्म करने का काम और बस यहीं से रिश्तों की जटिलता समझ आनी शुरू हो जाती है।
वैसे ऊपर लिखा गया जो कुछ भी लिखा गया है वो किसी भी आदर्श रिश्ते में हो सकता है क्योंकि दुनिया में आदर्श रिश्ता जैसा कुछ नहीं होता, हाँ इतना जरूर है कि अच्छे रिश्तों में कड़वाहट इतनी नहीं होती कि बहुत कुछ दांव पर लगाना पड़ता है, हाँ संघर्ष तो होता है लेकिन जीवन में संघर्ष उतना ही होना चाहिए जो सहने लायक हो, गंभीर होती स्थिति को समय से पहले पहचानना ही समझदारी होती है अन्यथा भाग्य को, लोगों को दोष देना दुनिया में सबसे आसान काम है।
चलते-चलते ऐसी अप्रिय स्थितियों से बचने के लिए कुछ प्रैक्टिकल समाधानों को भी लिख रहा हूँ:
दुनिया में सबसे ज्यादा खुद को प्यार करें, और किसी भी चीज़ से ज्यादा अपने भविष्य के सपनों को सबसे ज्यादा सम्मान दें!
अपने जीवन का निर्धारण किसी और के भरोसे या हाथों करने से पहले खुद के हाथों से करें, अर्थात सबसे पहले अपने लिए सोचें, अपने जीवन और अपने करियर के लिए निर्धारित सपनों के लिए सोचें।
चाहें कोई प्राणों से भी ज्यादा प्यारा क्यों न हो उसपर भरोसा एक तय दायरे में ही करें, और साथ ही स्वयं से झूठ या स्वयं को झूठी तसल्ली बिल्कुल न दें, स्वयं के जीवन की स्थिति का आंकलन 100% ईमानदारी के साथ करें!
अपने माता-पिता, परिवार, मित्र या किसी भी अन्य पर एक सीमा तक ही भरोसा करें, अंत में वे भी एक इंसान हैं और वे भी इमोशन के साथ जीते हैं, संभव है कि वे आपका अच्छा ही सोचेंगे लेकिन सबकुछ ही अच्छा सोचेंगे या करेंगे ऐसा हमेशा सही नहीं होता।
अपने जीवन में किसी के भरोसे ख़ुशी पाने से पहले अपने आपको इतना प्यार दें किसी से कुछ न मिले तब भी ख़ुशी के लिए किसी का मोहताज न होना पड़े!
इमोशनल रहें, भावनाओं में बहें, अपने भरोसे या श्रद्धा को खूब कायम रखें लेकिन तर्क का भी उतना ही इस्तेमाल करें जितना आपके लिए कुछ और जरुरी है।
जीवन में कुछ भी करने से पहले अपने स्वयं के लिए एक अपनी क्षमताओं और उन क्षमताओं से कुछ ज्यादा एक लक्ष्य जरूर निर्धारित करें!
सकारात्मक साहित्य और अच्छे विचारों वाले लेखकों को लगातार पढ़ें!
जीवन में तकदीर के भरोसे न रहें क्योकिं ज्यादातर बार तकदीर हमारे किये गए कार्यों के भरोसे बैठी होती है और जीवन में हमें वैसे ही परिणाम मिलते हैं जो काम हम करते हैं। (जो बोया जाता है वो काटना ही पड़ता है, यह प्रकृति का और कर्म का अटल नियम है)
हो सके तो किसी बात का यदि आप अकेले निर्णय नहीं ले पा रहे हैं तो ऐसे लोगों से परामर्श अवश्य लें जिनसे आपको लगता है कि अच्छा समाधान या सुझाव मिल सकता है!
ऐसे कामों में समय ज्यादा दें जो आपके जीवन में बेहतर लाभ दे सकते हैं, सोशल मीडिया पर बहुत ज्यादा समय खर्च करने से बचें!
श्रीमदभगवत गीता के अध्याय 13 के इन श्लोकों में सम्पूर्ण जीवन का सार है, हालाँकि सिर्फ इतने से बहुत कुछ समझ में आ जाये यह कठिन है, लेकिन भगवत गीता का नियमित अध्ययन आपको बहुत सी समस्याओं के समाधान प्राप्त करने में निश्चित मदद करेगा ! इसलिए जब भी समय मिले श्रीमदभगवत गीता का अध्ययन अवश्य करें!
अमानित्वमदम्भित्वमहिंसा क्षान्तिरार्जवम् । आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्मविनिग्रहः ॥ ८ ॥
इन्द्रियार्थेषु वैराग्यमनहङ्कार एव च । जन्ममृत्युजराव्याधिदुःखदोषानुदर्शनम् ॥ ९ ॥
असक्तिरनभिष्वङ्ग: पुत्रदारगृहादिषु । नित्यं च समचित्तत्वमिष्टानिष्टोपपत्तिषु ॥ १० ॥
मयि चानन्ययोगेन भक्तिरव्यभिचारिणी । विविक्तदेशसेवित्वमरतिर्जनसंसदि ॥ ११ ॥
अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं तत्वज्ञानार्थदर्शनम् । एतज्ज्ञानमिति प्रोक्तमज्ञानं यदतोऽन्यथा ॥ १२ ॥
भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि: विनम्रता, अभिमान का त्याग (दम्भहीनता), अहिंसा, सहिष्णुता, सरलता, ज्ञानवान व्यक्ति को गुरु मानकर उनसे सीखना, पवित्रता, स्थिरता, आत्मसंयम, इन्द्रियतृप्ति के विषयों का त्याग करना, अहंकार का अभाव, जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था तथा रोग के दोषों की अनुभूति, वैराग्य, सन्तान, स्त्री, घर तथा अन्य वस्तुओं की ममता से मुक्ति, अच्छी तथा बुरी घटनाओं के प्रति समभाव, ईश्वर (भगवान कृष्ण) के प्रति निरन्तर अनन्य भक्ति, एकान्त स्थान में रहने की इच्छा, जन समूह से विलगाव, आत्म-साक्षात्कार की महत्ता को स्वीकारना, तथा परम सत्य की दार्शनिक खोज - इन सबको मैं ज्ञान घोषित करता हूँ और इनके अतिरिक्त जो भी है, वह सब अज्ञान है।
इस लेख में मेरी ओर से कोशिश की गई है कि तथ्यों, तर्कों और जीवन में सैकड़ों लोगों से मिले अनुभवों के आधार पर ही विचारों को संकलित करके आप सभी को साझा करूँ, वैसे अभी भी इस विषय पर लिखने को इतना कुछ है कि एक बड़ा संकलन तैयार किया जा सकता है, और साथ ही मेरे पुरुष मित्रों को लेकर भी बहुत कड़ा लिखा हूँ जिसके लिए दिल से खेद हैं लेकिन क्योंकि लेख का जो विषय है उसके इर्द-गिर्द ईमानदारी से लिखने का प्रयास किया है, लेकिन यह वादा है कि मानवीय रिश्तों और उनके व्यवहारों के ऊपर मेरी ओर से यह श्रंखला अब लगातार जारी रहेगी जिसमें पुरुषों के भावनात्मक पहलुओं पर भी गहराई से लिखूंगा!
आशा है कि आप सभी को इस लेख में दिए गए विचार सही लगे होंगे, यदि किसी विषय, तथ्य या विचार से आपकी कोई असहमति है या आपके पास भी इस लेख के विषय के इर्द-गिर्द कुछ और विचार या अनुभव साझा करने हों तो मुझे मेरी ईमेल [email protected] पर अवश्य लिखकर के भेजें, आपके सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी!
आपका !
आयुर्वेदाचार्य डॉ. अभिषेक !!
आयुर्वेद और पीपल की पत्तियां - Ayurveda and Peepal Leaves in Hindi
आयुर्वेद ग्रंथों में पीपल को अश्वत्थ कहा जाता है और इसके कई चिकित्सीय उपयोग भी बताएं गए हैं। किसी भी औषधि का किस तरह से चिकित्सीय उपयोग होता है यह बात उस द्रव्य या औषधि में निहित गुण रस वीर्य विपाक कर्म और प्रभाव पर निर्भर करती है। चूँकि पीपल को आचार्य चरक ने मूत्र संग्रहणीय वर्ग, कषाय स्कन्ध वर्ग में, आचार्य सुश्रुत ने न्यग्रोधादि में और भावप्रकाश ने क्षीरिवृक्ष, पंचवल्कल वर्ग में रखा है।
इसका विशेष उपयोग तो मूत्र संग्रहणीय कर्म के लिए, रक्त शोधन, घावों को धोने आदि के लिए ही विशेष रूप से किया जाता है। इसके काढ़े का प्रयोग वातरक्त की चिकित्सा में जब रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है में किया जाता है परंतु आयुर्वेद की औषधियों में इसके गुण कर्मो के आधार पर कई अन्य रोगों में उपयोग करने की युक्ति का विधान है तो हम ऐसे में जहाँ पीपल में निहित गुणों का प्रयोग किया जा सके उन बीमारियों में वैकल्पिक रूप से प्रयोग कर सकते हैं।
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पीपल का प्रयोग हॄदय रोगों में करने में भी यही युक्ति है, मतलब हॄदय रोगों में ब्लॉकेज (Blockage) का मुख्य कारण रक्त में वसा की वॄद्धि होने से होता है और यह वसा की वृद्धि ग्रहणी रोग का उपद्रव कहा जा सकता है। इसलिए पीपल का प्रयोग ग्रहणी को ठीक करते हुए उन हॄदय रोगों में किया जा सकता हैं जिनमें रोगी को वसा की अधिकता ग्रहणी के कारण हुई हो। परंतु वातज हॄदय रोगों में पीपल का प्रयोग उचित नहीं क्योंकि रुक्ष और कषाय होने से और अधिक वात की वृद्धि करेगा ।
उक्त परिस्थितियों के अनुसार यदि कफज और पित्तज हॄदय रोग है तो सहायक औषध के रूप में या मुख्य औषधि के अभाव में विकल्प के रूप में चिकित्सक की देखरेख में किया जा सकता है और इससे परिणाम मिलने की संभवना भी 30 से 40 % तो है।
आयुर्वेद में पीपल की पत्तियों के और क्या - क्या स्वास्थ्य लाभ बताए गए हैं?
पीपल की पत्तियों से लेकर पंचाग सभी उपयोगी है और इसका प्रयोग घाव को धोने और भरने में किया जा सकता है, पत्तियों के प्रयोग से ज्यादा इसकी छाल और फल, पुष्पकली का उपयोग प्रचलन है। जहाँ पर व्रण से स्राव हो रहा हो उस घाव की सफाई और स्राव रोकने में इसका प्रयोग किया जा सकता है।
वातरक्त में भी इसका अच्छा लाभ देखने को मिलता है। इसके फल का प्रयोग पित्त शांति कर पेट साफ करने में किया जाता है। इसकी कली का प्रयोग त्वचा के रंग को निखारने में भी किया जाता है। मुंह मे छाले होने पर पीपल की त्वचा का प्रयोग करते हैं। पीपल की पत्तियों और त्वचा को जलाकर मंजन बनाने के रूप में करते हैं।
(वैद्य संकेत मिश्र, वरिष्ठ समुदाय प्रबंधक (Senior Community Manager), निरोगस्ट्रीट)
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महर्षि चरक ने लगभग चार-पाँच हज़ार साल पहले सुझाया था ‘विषादो रोगवर्धनानाम्’। मतलब रोग बढ़ाने में तनाव सबसे बड़ा कारण है ! यानि जो रोग बढ़ाएगा वो ‘इम्यूनिटी’ घटाएगा !
ये सुनकर हम सब लोग मुँह बिचका कर बुदबुदा देंगे ‘हाँ हाँ पता ही है इसमें क्या ख़ास है?‘
लेकिन बात यहीं से शुरू होती है...
पिछले पचीस-तीस वर्षों में चिकित्सा विज्ञान ने तनाव की करामात रोग बढ़ाने में जानी है ,पहचानी है , साबित की है ! दिमाग़ की घुमावदार खाइयों में कैसा कैसा पानी रिसता रहता है। ये आम आदमी नहीं जानता लेकिन चिकित्सा वैज्ञानिक अच्छी तरह जानते हैं कि ये Neurotransmitters / हॉर्मोन मन-शरीर की हरेक गतिविधि, उत्तेजनाएँ, भावुकताएँ, चिंतन, बौद्धिकता, नींद, भूख, प्यास, उत्साह, नींद और जो कुछ भी आप कह सोच सकते हैं, पर नियंत्रण करते हैं।
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मोटे तौर पर दो समूहों में आप इन्हें बाँट सकते हैं - तनाव से बढ़ने और तनाव को बढ़ाने वाले और दूसरा समूह इसके उलट। एक समूह का हॉर्मोन बढ़ेगा तो दूसरा अपने आप घटेगा .. ऐसा नहीं होता कि दोनों एक साथ बढ़ें ।
एंडोरफ़िन उत्साह और ख़ुशी बढ़ाने लिए ज़िम्मेदार है , हैपी हॉर्मोन कहलाता है , हीलिंग हॉर्मोन भी कहते हैं कोई व्यक्ति उदास बैठा हो उसे बिना मन के भी सौ मीटर तेज दौड़ने को भेजिए वो लौट कर आएगा तो एंडोरफ़िन बढ़ने की वजह से उसका मूड बदल चुका होगा , ये प्रयोग स्वयं पर भी आज़माया जा सकता है !
ऐसे ही डोपामिन , ओक्सिटोसिन, टेस्टास्टरोन,अड्रेनलिन ..अलग अलग तरह से अच्छेपन का प्रभाव देते हैं । जो तनाव से बढ़ने व बढ़ाने वाले हॉर्मोन होते हैं जैसे कॉर्टिसोन , ये शरीर में ऑक्सिजन की माँग बढ़ाते हैं ,शरीर में तरल का संचय बढ़ाते हैं ,वजन बढ़ाते हैं , शुगर, बी पी ,कोलेस्ट्रोल बढ़ाते हैं, नींद उड़ाते हैं वग़ैरह वग़ैरह .. सोचने की बात ये है कि चरक की बात से यहाँ क्या ताल्लुक?
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Neuro Endocrinological Axis दिमाग़ में बुना एक ऐसा कमाल का ताना बाना है जो थोड़ा समझने से चरक की ये बात स्पष्ट हो जाती है ..दिमाग़ की कोशिकाओं के ये neurotransmitters होते तो केमिकल ही हैं लेकिन वे दिमाग़ की दूसरी कोशिकाओं , माँसपेशियों और ग्रंथि कोशिकाओं के लिए संदेशवाहक का काम करते हैं ,उनके संदेशों की वजह से हृदय गति का बढ़ना, श्वसन गति का बढ़ना , सूजन बढ़ाने की प्रक्रिया का शुरू होना , ऐलर्जी की प्रक्रिया होना , उत्तेजनाएँ , अवसाद आदि की स्थितियों का शुरू होना होता है।
अब वो संदेश उन तीनों तरह की कोशिकाओं के लिए उत्तेजक (Excitatory) होंगे या अवसादक (Inhibitory) होंगे ये निर्धारित होता है मन में चल रहे चाहे-अनचाहे विचारों से , सोच से , ख़्यालों से , कल्पनाओं से .. ये ना दिखने वाली कल्पनाओं को शरीर पर दिखने वाले प्रभावों में बदलने की क्षमता रखते हैं .. इसीलिए केन्सर जैसे घातक और असाध्य रोग में भी यदि विचार सकारात्मक हों तो परिणाम बेहतर होता है ये बार बार साबित हुआ है और यही इस कोविड काल में भी देखा गया है कि कोविड से बचाव और इलाज में उत्साह , आत्मविश्वास और सकारात्मकता का महत्वपूर्ण प्रभाव होता है। इसी से इम्यूनिटी के घटने-बढ़ने या घटाने-बढ़ाने के लिए प्रयास करने को जोड़ा जा सकता है और ये सकारात्मक चिंतन बाज़ार में नहीं मिलता लेकिन अभ्यास से पाया भी जा सकता है .. कोई पूछे कैसे हो ? तो कहिए ‘ बहुत आनंद में हूँ’ अरे कहिए तो .. कुछ ही दिनों में इसका प्रभाव स्वयं दिख जाएगा !!
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संहिता अध्ययन कैसे करना चाहिये ?
किसी भी संहिता के केवल सारे 'अथ से इति' श्लोक पढना या बिना श्लोक पढे केवल भाषांतर पढना यह "संहिता अध्ययन" नही है।संहिता अध्ययन करते समय निम्नलिखित बाते पहले से ही नित्य ध्यान मे रहनी चाहिये :
१. संहिता अध्ययन हम चिकित्सा की दृष्टि से और चिकित्सा करने के लिये कर रहे है ।
२. केवल साहित्यिकीय दृष्टि पर्याप्त नही ।
३. जिस संहिता का अध्ययन करने जा रहे है उस संहिता का और उससे संबंधित आचार्यो का ऐतिहासिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक पर्याप्त ज्ञान अत्यावश्यक है ।
४. तन्त्रयुक्तियों का पर्याप्त ज्ञान अत्यावश्यक है ।
५. संहिता की रचना शैली एवं भाषा शैली का भी अध्ययन आवश्यक है ।
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संहिता अध्ययन विधि
१. अधिकरण - हर सूत्र का अधिकरण पहले निश्चित करना चाहिये । तंत्र, स्थान, अध्याय और प्रकरण कौन सा है यह देखना चाहिये। केवल किसी एक ही सूत्र का अर्थ लगाना हमेशा अव्याप्त होता है । वह सूत्र कहाँ आया है, उसके पहले और बाद मे क्या वर्णन है , विषय क्या चल रहा है यह सब देखना अनिवार्य है । जैसे -
तमके तु विरेचनम् यह सूत्रार्ध हिक्काश्वास के उपद्रवों का सूत्र है जो अध्याय के अंतिम स्तर पर वर्णित है (च.चि.१७/१२१)
२. पूरे सूत्र का विचार करना । जैसे केवल 'तमके तु विरेचनम्' इस सूत्र का केवल एक चरण पढकर अर्थ लगाना गलत हो सकता है । पूरा सूत्र जब पढेंगे तो उस सूत्र का अर्थ स्पष्ट होता है ।
३. अन्वय - गद्य और पद्य सूत्रोका यथायथ अन्वय लगाना यह आगे की अवस्था है ।
४. शब्दशः अर्थ - सूत्र का पदशः अर्थ निश्चित करना । इस के लिये विविध शब्दकोश, डिक्शनरी का उपयोग होता है ।
५. उपलब्ध टीका वाचन और विचार - उस सूत्र पर उपलब्ध सभी टीकाऐ पढकर टीकाकारों का मंतव्य देखना आवश्यक होता है । टीकाकार कभी कभी अलग ही दृष्टीसे सूत्र का वर्णन करते है । वोह भी विचार करना जरुरी है ।
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६. तन्त्रयुक्ति - संहिताकर्ता ने सूत्र रचना करते समय कौन सी तन्त्रयुक्ति का उपयोग किया है वोह विचार करना । जैसे वाक्यशेष,अर्थापत्ति,व्याख्यान,संभव इत्यादि
७. अभिप्रेतार्थ - टीका और तंत्रयुक्ति का विचार करके शब्दार्थ और अभिप्रेतार्थ निश्चित करना ।
८. वर्ण्य सूत्र का अन्य सूत्रो से संबंध - अध्ययन चल रहे सूत्र का संहिता के अन्यत्र वर्णित सूत्रो से क्या संबंध है वोह देखना । जैसे
- चरक विमान ६/१२ मे अग्नि के वर्णन पढते समय चरक चिकित्सा १५ ग्रहणी मे वर्णित सूत्रो का विचार करना ।
- चरक सूत्र ७/३६ मे सात्म्य का वर्णन पढते समय चरक विमान १, चरक सूत्र ५ और चरक शारीर ६ के सूत्रो का विचार करना ।
- तमके तु विरेचनम् इस सूत्रार्थ मे तमक पद का अर्थ के लिये पित्त के नानात्मज विकारों का च.सू.२० के सूत्र और पित्तज कास च.चि.१८/१३१ का वर्णन देखना ।
९. स्वतंत्र प्रत्यय - उस वर्ण्य विषय का अन्य आयुर्वेद के ग्रंथो मे क्या वर्णन आया है वोह देखना । जैसे -
- चरक की ऋतचर्या का वर्णन देखते समय सुश्रुत और काश्यप मे वर्णित वैशिष्ट्यपूर्ण द्विविध ऋतुक्रमों का वर्णन देखना ।
- चरक चिकित्सा गुल्म का अध्ययन करते समय, गुल्म की शल्यचिकित्सा की अवस्थाओं का वर्णन सुश्रुत संहिता से पढना ।
१०. परतंत्र प्रत्यय - वर्ण्य विषय का आयुर्वेद के अतिरिक्त अन्य उपलब्ध शास्त्रो मे से अध्ययन करना । जैसे
- दिनचर्या का अध्ययन करते समय कौटिल्य और वात्स्यायन के ग्रंथो मे वर्णित दिनचर्या का वर्णन देखना ।
- वायु की संकल्पना का अध्ययन करते समय विविध उपनिषदों मे आया हुआ वर्णन देखना ।
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११. आयुर्वेद के सूत्रो का अर्थ आधुनिक चिकित्सा शास्त्र की दृष्टी से पढना अयोग्य है । क्योंकी इन दो शास्त्रो मे कालतः बहोत बडा अंतर है और मूल विचारणीय घटक ही अलग है । अॅलोपॅथी के विचारों को अपनी जगह रखकर आयुर्वेद की दृष्टी से ही सूत्रो का अर्थ निश्चित करना आवश्यक है । जैसे रस का अर्थ प्लाझ्मा, रक्त का अर्थ ब्लड, मेद का अर्थ फॅट, शुक्र का अर्थ सीमेन, मज्जा का अर्थ बोन मॅरो ऐसे लगाना शास्त्रार्थ को दूषित कर सकता है ।
१२. अर्थ निश्चिती (अध्यवसाय) - सभी घटको के परिशीलन के बाद सूत्र का प्रमाणाधिष्ठित अर्थ निश्चय करना ।
१३. अवबोध और व्यवहार - अर्थनिश्चिती के बाद सूत्र के वर्णन का अवबोध करके उसका व्यवहार मे उपयोग करना ।
संहिता अध्ययन करते समय आवश्यक अन्य शास्त्रो का ज्ञान -
संहिता और टीका की रचना जिस काल मे हुई थी उस काल के उपलब्ध सभी शास्त्रो का स्वशास्त्र उपबृंहणार्थ जितना आवश्यक है उतना अध्ययन करना
उदा. उपनिषद,स्मृतिग्रंथ,दर्शनशास्त्र,काव्य,सुभाषित, पाकशास्त्र,कामशास्त्र,मनोविज्ञान,अध्यात्मशास्त्र, मोक्षशास्त्र शब्दकोश इत्यादि
(वैद्य अभिजित सराफ के सोशल मीडिया प्रोफ़ाइल से साभार)
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कषाय रस संकोचक होता है और संकोचक औषधि हॄदय पर विपरीत असर डालती है फिर भी अर्जुन में हॄदय बल्य का गुण कैसे है ?
ये तो आयुर्वेद से जुड़ा हर व्यक्ति जानता है कि आयुर्वेद की औषधियां कार्य करने के मामले में बहुआयामी (Multidimensional) होती हैं। कहने का अभिप्राय है कि कभी गुण से तो कभी रस से, तो कभी विपाक से तो कहीं वीर्य और कहीं प्रभाव से कार्य करती हैं।
चाय पर चर्चा के दौरान हमारे एक मित्र ने बताया कि वह अर्जुन की चाय लेते हैं तो मुझे लगा इस विषय पर पोस्ट करना जरुरी है। दरसअल अर्जुन हमेशा नदियों के किनारे उगता है, बल्कि आप देखेंगे तो पाएंगे कि अर्जुन की जड़े नदी के पानी मे डूबी हुई रहती हैं। नदी के पानी में खनिज प्रचुर मात्रा में रहते हैं और इसके जल में पर्याप्त क्षारीयता रहती है। यह प्रकृति की व्यवस्था कहिये या अर्जुन का गुण कि अर्जुन वृक्ष में जल में घुले खनिज को अवशोषित करने की क्षमता या गुण पाया जाता है।
अर्जुन की इस क्षारीयता के कारण इसमें हमारी रक्तवाह्नियों को विस्फारित करने का कर्म पाया जाता है (हमारे शरीर के स्रोतस क्षारीय माध्यम में फैलते हैं और अम्लीयता से सिकुड़ते हैं) जब अर्जुन के सेवन से रक्त वह्नियाँ फैलती हैं तो बड़ा हुआ रक्त भार भी कम होता है जिससे अर्जुन रक्त भार शामक का कार्य भी करता।
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अर्जुन कषाय और रुक्ष भी होता है जिसके कारण यह रक्त वाहनियों की आंतरिक दीवार पर जमे मेद स्वरूप क्लेद को खरोंचता (scrap) भी है और कषाय रस के कारण रक्त वाहनियों को दृढ़ करता है जिससे एन्यूरिज्म (Aneurysm) और हेमोरेज(Hemorrhage) का खतरा भी कम होता है।
इसमें कैल्शियम विशेष रूप से पाया जाता है अतः अस्थि संधान कर्म में भी इसका प्रयोग अच्छा रहता है साथ ही जठरशोथ (Gastritis), अल्सरेटिव कोलाइटिस (ulcerative colitis), रेक्टल प्रोलैप्स (rectal prolapse) में भी यह उपयोगी साबित होता है।
अर्जुन नाम इसका शायद इसलिए ही पड़ा होगा जैसे महाभारत में अर्जुन ने अपने हृदय को इतना मजबूत कर लिया था कि वह अपने घर परिवार के लोगों से भी युद्ध कर पाए। ठीक वैसे ही यह भी आपके हृदय को मजबूत बनाता है क्योंकि हॄदय शरीर का एक अत्यंत महत्वपूर्ण मर्म है, यह ओज और प्राण का स्थान भी है। हॄदय की मजबूती पूरे शरीर को मजबूती देती है।
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वैसे अर्जुन वृक्ष के कार्य का एक दार्शनिक पक्ष भी है कि जिस प्रकार इसकी जड़ें नदियों के किनारों पर मृदा अपरदन को रोककर नदी के बहाव को और किनारों की रक्षा करती हैं ठीक वैसे ही अर्जुन हमारी रक्त वाहनियों में बह रहे रक्त रूपी नदियों के किनारों अर्थात वाहनियों की आंतरिक दीवाल की रक्षा करता है।
अर्जुन का सेवन हमेशा क्षीरपाक विधि से करने के लिए बताया गया है क्योंकि क्षीरपाक विधि से इसका पाक करने से, दूध की स्निग्धता से अर्जुन की रुक्षता कम होती है और दूध के साथ इसका क्षारीय विलयन तैयार हो जाता है। हाँ यह बात ध्यान रखें क्षीरपाक के लिए गौदुग्ध ही उचित है।
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आम जनमानस से निवेदन है कि इसके लाभकारी गुणों और कर्मों को देखते हुए सम्मोहित होकर बिना युक्ति के इसका प्रयोग न करें अतः प्रयोग करने के पूर्व किसी वैद्य से अपने अग्निबल, आयु, भार आदि अन्य चिकित्सीय पक्षों को जाँच अवश्य करा लें।
(वैद्य संकेत मिश्र के सोशल मीडिया प्रोफ़ाइल से साभार)
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चाय हमारे जीवन का ऐसा हिस्सा बन चुकी है कि जिसे भारतीय समाज की आहार व्यवस्था से अलग करना अब लगभग असंभव है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के चिकित्सकों ने चाय और कॉफी की महिमा मंडन में इसे एंटी ऑक्सीडेंट (Anti Oxidant) , Nervine Stimulant और न जाने क्या क्या लिख दिया वहीं भारतीय वैद्य समाज ने इसके रासायनिक संगठन से परे इसके शरीर में आभ्यंतर उपयोग के गुण, कर्म और प्रभाव के आधार पर इसको "अपथ्य" माना है। तर्क दृष्टि से सोचे तो जहर में भी विटामिन, खनिज आदि पोषक तत्व होते ही हैं पर जब शरीर से उसका संयोग होता है तो मृत्युकारक होता तब उसके विटामिन, खनिज पोषण नहीं देते। चाय भी मंद जहर ही है।
आज यदि आप कई रोगों के कारणों की पड़ताल करेंगे तो चाय /कॉफी या तो मूल कारण होता है या सहायक कारण। मैंने कई रोगियों की चिकित्सा में जैसे ही चाय का सेवन वर्जित किया, औषधि का प्रभाव शीघ्रता से दिखा और ठीक होने की अवधि भी घट गई। यूरोपीय देशों में भले ही चाय का सेवन वहां के लोगों को लाभ देता हो भारत के लोगों की तासीर पर चाय फिट नहीं बैठती।
चाय सीधा सीधा रस धातु को विकृत करती है और पित्त को उत्तेजित कर शरीर की पूरी metabolism को खराब करती है। यह हमारे जठर रस को Coagulate करके जठर रस की खाने को पचाने की क्षमता को कमजोर करती है साथ ही पाचन स्रावों के निकालने की मात्रा को असंतुलित कर देती है। यह ठीक वैसे ही है जैसे किसी दूध से भरे बर्तन में आप एक दो बूँद नींबू के रस की निचोड़ दीजिये, पूरा का पूरा दूध फट जाएगा ठीक वैसे ही चाय/कॉफी भी हमारे पाचन को विकृत करती है।
चाय कषाय रस प्रधान होती है और इसके कारण यह स्रोतसों को संकुचित करती है। चाय सेवन करने वालों के Liver से होने वाले स्राव कम हो जातें जिससे कई खनिज, विटामिन का अवशोषण कम हो जाता है। आप किसी भी पाचन संबंधी रोग से ग्रसित हों, चिकित्सक के पास जाने के पूर्व एक बार चाय/कॉफी का सर्वथा त्याग करके देखें, हो सकता है आपको चिकित्सा की आवश्यकता ही न पड़े।
चाय/कॉफी हमारी जीवनशैली में ऐसा रम गया है कि घर आये मेहमान को हम बिना चाय पिये जाने ही नहीं देते, और तो और यदि वो कहे कि वह पीकर आया है तो उसे आधा कप तो चल जाएगी कह एक और पिला देते हैं। कभी कभी सोचता हूँ कि काश चाय की भी जुबान होती और चाय भी बोल पाती तो वह खुद कहती कि मैं भी जहर से कम नहीं, पीना है तो पियो तो भी लोग उसे छोड़ते नहीं।
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अच्छा आपने एक बात गौर की होगी, आप यदि घर आये मेहमान से चाय पीने का आग्रह नहीं करेंगे तो वह घर जाकर यही कहता है "देखो चाय का भी नहीं पूछा"। समाज में व्याप्त इस धारणा से अन्दाजा लगाया जा सकता है कि चाय के साथ हमनें अपना सम्मान भी जोड़ लिया है। सुबह खाली पेट चाय तो समझ लीजिए कि आप हर कप के साथ अपनी आयु के 6 घंटे कम रहे हैं।
आप एक ही परिवार के ऐसे दो लोगों के स्वास्थ्य की तुलना करके देखें जो खाना तो एक जैसा ही खाते पर उनमें से एक चाय पीता और एक न पीता हो। आप को चाय के नुकसान का उत्तर मिल जाएगा। वैसे चाय के ऊपर पूरी की पूरी एक छोटी सी किताब लिखी जा सकती है। लेकिन आप कम शब्दों में अधिक समझने की बुद्धि रखते हैं तो आज से ही चाय/कॉफी को अपने निजी, पारिवारिक, व्यवसायिक जीवन से दूर कर दीजिए। मैं यदि इस देश का प्रधानमंत्री होता तो हमारे देश के स्वास्थ्य को खोखला कर रही चाय कॉफी पर तुरंत प्रतिबंध लगा देता।
मधुमेह रोगी जब चिकित्सा के लिए आते हैं तो उनके मुँह से एक बात सुनने में आती है कि वो अब बिना शक्कर की चाय पीने लगे हैं, उनको नहीं पता कि शक्कर से बड़ा जहर तो चाय पत्ती में होता है।
बेहतर होगा यदि महिलाएं इस सत्य को जान लें कि उनकी रस दृष्टि ही उनमें आर्तव जन्य व्याधियों को पैदा कर रही है और इस रस दृष्टि में Fast food के अतिरिक्त एक कारण चाय भी है तो हम करोड़ो महिलाओं के स्वास्थ्य को बचा कर उनके जीवन को खुशहाल कर सकते हैं। महिलाएं सबसे ज्यादा शिकार होती हैं एनीमिया और बाल झड़ने की समस्या की, दोनों का सामान्य से कारण है दिन में 3-4 चाय। ( वैद्य संकेत मिश्रा के फ़ेसबुक वॉल से साभार)
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