आयुर्वेद में गोमूत्र को अमृत कहा गया है, बीमारियों को रखता है दूर
आयुर्वेद में गोमूत्र की तुलना अमृत से
विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में गौमूत्र (cow urine) को औषधि का स्थान प्राप्त है और इसे अमृत या जीवन का जल ( water of life ) कहा गया है. कई औषधियों के निर्माण में इसका उपयोग किया जाता है. सुश्रुत संहिता में गोमूत्र को पशु उत्पत्ति (animal origin) का सबसे प्रभावी पदार्थ बताया गया है. इसे पंचगव्य घृत के पांच अवयवों में से एक महत्वपूर्ण अवयव माना गया है. पंचगव्य गाय के मूत्र, दूध, घी, दही और गोबर से तैयार होती है और औषधीय गुणों से भरपूर होती है. इसका प्रयोग कई रोगों से लड़ने या औषधि में प्रयोग किए जाने वाले जड़ी-बूटियों के साथ मिलाकर किया जाता है. इस तरह के अनोखे उपचार को काउपथी या पंचगव्य पथरी कहा जाता है और यह मधुमेह, कैंसर और एड्स जैसी घातक बीमारियों के लिए भी फायदेमंद बताया गया है.
गोमूत्र के महत्व को अमेरिका ने भी माना
अमेरिका जैसे विकसित देशों ने भी गोमूत्र को महत्व को स्वीकार है. नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन और यूएस नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन (National Center for Biotechnology Information U.S. National Library of Medicine) की वेबसाईट पर दी हुई जानकारी के मुताबिक़ गोमूत्र को इसके औषधीय गुणों के लिए यूएस पेटेंट (सं. 6,896,907 और 6,410,059) प्रदान किया गया है. वहां हुए रिसर्च में भी इसे जैव बढ़ाने वाला (bioenhancer) एंटीबायोटिक (antibiotic), एंटिफंगल (antifungal) और एंटीकैंसर (anticancer) माना गया है.
भारत में गोमूत्र पीने की पुरानी परम्परा
भारत में हजारों वर्षों से गोमूत्र पीने का चलन है और इसका उपयोग प्राचीन काल से ही कई बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता रहा है। आयुर्वेद साहित्य में में कुष्ठ, शूल, उदर रोग, उदर शूल,पेट फूलना आदि के उपचार के लिए इसके महत्व और उपयोगों का उल्लेख मिलता है. चर्म रोग, पेट के रोग, गुर्दे के रोग, हृदय रोग, पथरी, मधुमेह, लीवर की समस्या, पीलिया, एथलीट फुट, सिस्ट, रक्तस्राव आदि के उपचार में भी इसका महत्व प्रमाणित हो चुका है.
गोमूत्र के तत्व
गोमूत्र में पानी 95%, यूरिया 2.5%, खनिज, नमक, हार्मोन और एंजाइम 2.5% हैं। इसमें लोहा, कैल्शियम, फास्फोरस, पोटेशियम, यूरिया, यूरिक एसिड, अमीनो एसिड, एंजाइम, साइटोकिन और लैक्टोज आदि शामिल हैं.
गोमूत्र का धार्मिक महत्व
भारतीय परम्परा में गाय को पवित्र माना जाता है और पूजा की जाती है. साथ ही यह माना जाता है कि गाय में 36 करोड़ देवी देवताओं का निवास होता है। गोबर व गोमूत्र का उपयोग धार्मिक कार्यों में प्राचीनकाल से किया जा रहा है. शास्त्रों में अनुसार गौमूत्र में गंगा जी वास करती हैं और इसे पीने से पापों का तो नष्टह होता ही है और साथ में बीमारियों भी ठीक हो जाती हैं।
गोमूत्र का चिकित्सीय उपयोग (Therapeutic uses of cow urine)
1- त्वचा रोग: यह सभी प्रकार की त्वचा की समस्याओं, खुजली, धूप की कालिमा, एक्जिमा, सोरायसिस, मुँहासे आदि में बहुत मददगार है।
2- पेट, किडनी और दिल की बीमारियाँ : गाय का गोबर और मूत्र पेट की बीमारियों, दिल की बीमारियों, गुर्दे की बीमारियों और तपेदिक के लिए सबसे अच्छा इलाज है।
3- कैंसर और मधुमेह : गोमूत्र मधुमेह, मिर्गी और माइग्रेन के रोगियों के लिए भी उपयोगी है. इसके अलावा कैंसर और एड्स जैसी बीमारियों को भी ठीक करने की क्षमता इसमें मौजूद है.
4- वात, पित्त और कफ : आयुर्वेद के अनुसार वात, पित्त और कफ त्रिदोष के कारण हम बीमार होते हैं. गोमूत्र पीने से त्रिदोषों का नाश होता है और बीमारियों से हमारा बचाव होता है.
5- रक्त : गोमूत्र हमारे खून को साफ़ करता है जिससे कई बीमारियों की चपेट में आने से हम बच जाते हैं. एनीमिया रोग में ये कारगर होता है.
6- जोड़ों के दर्द में लाभकारी : अगर आप जोड़ों के दर्द से परेशान है तो गौमूत्र आपके लिए लाभकारी साबित हो सकता है। जोड़ों के दर्द में दर्द वाले स्थान पर गौमूत्र से सेकाई करने से आराम मिलता है।
(निरोग स्ट्रीट पर प्रकाशित लेखों का उद्देश्य आयुर्वेद से संबंधित जानकारी देना और जागरूकता पैदा करना है. कृपया चिकित्सक की राय लेकर ही किसी प्रकार की चिकित्सा करे.)