टेलीविजन पर आपने वह विज्ञापन जरुर देखा होगा जिसमें एक कब्ज(Constipation) दूर करने वाली एक आयुर्वेदिक औषधि के प्रचार में मशहूर कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव कहते हैं कि, ‘पेट सफा तो हर रोग दफा’। ये लाइनें वैसे तो विज्ञापन के पंचलाइन को आकर्षक बनाने के लिए लिखी गयी है लेकिन देखा जाए तो वास्तविकता के बेहद नजदीक है।
आयुर्वेद में भी अनेकानेक रोगों के मूल में उदर यानी पेट को माना गया है। यदि आपका पेट यानी पाचन तंत्र ठीक है तो बीमारियाँ आपको छू भी नहीं सकती। देह को जीवित रखने के लिए जिस प्रकार प्राणवायु का महत्व है, उसी प्रकार शरीर के निर्माण और उसे बलशाली बनाने में खाना यानी अन्नपान का महत्व है। इस आहार का पाचन अग्नि द्वारा होता है जिससे आहार रस का निर्माण होता है और जो शरीर को बल प्रदान करता है।
आयुर्वेद के ग्रंथों में पाचन तंत्र में स्थित अग्नि को समस्त चयापचय का प्रमुख कारक माना गया है। यदि अग्नि ठीक से काम नहीं करेगा तो पाचन तंत्र में समस्या पैदा हो जायेगी और हम कब्ज समेत पेट और आँतों की कई समस्याओं से ग्रस्त हो सकते हैं जिसका असर पूरे शरीर पर पड़ेगा। लेकिन आधुनिक समय में खराब खान-पान और दिनचर्या के कारण बड़ी संख्या में लोग कब्ज जैसी पेट की बीमारी से ग्रस्त हैं।
विडंबना ये है कि शुरूआती दौर में लोग इस बीमारी के लक्षणों को पहचान नहीं पाते या फिर उसे अनदेखा करते हैं। बाद में यही समस्या विकराल रूप धारण कर लेती है। इसलिए ये बेहद जरुरी है कि इसके शुरूआती लक्षणों को पहचानकर तुरंत उपचार किया जाए।
कब्ज के लक्षण - Symptoms of Constipation in Hindi
कब्ज़ का अर्थ बहुत कड़ा मल या मल त्याग करने में कठिनाई होना है. यह भी हो सकता है कि आपको पेट खाली करने के लिए (मल त्याग के लिए) ज़ोर लगाना पड़े। शौचालय जाने के बावजूद मन हल्का न लगे और ऐसा लगे कि पेट पूरी तरह से साफ़ नहीं हुआ है।
बार-बार पेट दर्द, ऐठन, गैस बनना, डकार आना, जीभ में छाले आना व पीलापन आना, आलस्य , सिरदर्द व उलटी का होना भी कब्ज के ही लक्षण है। यदि हफ्ते में तीन दिन से अधिक आप मल त्याग नहीं कर पाते तो यह कब्ज के स्पष्ट लक्षण है. खाने में अरुचि का बढ़ना भी कब्ज का ही संकेत है।
कब्ज के कारण - Causes of Constipation in Hindi
कब्ज के कई कारण हो सकते हैं। लेकिन इसका सबसे बड़ा कारण खराब खान-पान और गलत दिनचर्या है। फास्टफूड की संस्कृति ने इस रोग को बढ़ाने में खासी भूमिका निभायी है। भोजन में अपर्याप्त मात्रा में रेशों (फाइबर) का सेवन, कम पानी पीने, व्यायाम की कमी, लंबे समय तक एंटीबायोटिक व गैस की दवाओं के सेवन और समय पर मलत्याग करने न जाना कब्ज की समस्या के प्रमुख कारण है।
महिलाओं में प्रसव के दौरान भी पेट की आतंरिक समस्याओं की वजह से यह रोग हो सकता है. दूध की चाय, कॉफी, तंबाकू या सिगरेट के लगातार सेवन से कब्ज की समस्या पैदा हो जाती है। पाचन ठीक न होने के बावजूद पेटभर कर खाना खाने और लगातार आलस्य की मुद्रा में बैठे रहने से भी कब्ज की समस्या पैदा हो सकती है।
इसके अलावा समय पर भोजन न करने और समय पर न सोने-उठने की वजह से भी कब्ज की समस्या दीर्घकाल में हो जाती है। कुछ लोग शौचालय में अखबार लेकर देर तक गलत तरीके से बैठते हैं जो इस रोग को एक तरह से बुलावा देना है।
कब्ज की समस्या का उपचार - Treatment of Constipation in Hindi
कब्ज की समस्या का यदि सही समय पर उपचार न शुरू किया जाए तो आगे चलकर यह शरीर के त्रिदोषों (वात, पित्त और कफ) को असंतुलित करने के अलावा और कई गुदा रोगों मसलन बवासीर, फिशर आदि का कारण भी बनता है।
इसलिए इसकी अनदेखी बिलकुल नहीं करनी चाहिए. शुरूआती दौर में इसका इलाज आहार-विहार में परिवर्तन करके ही आसानी से किया जा सकता है। एक दिलचस्प मिथ्या है कि कच्चे फल और सब्जियां खाने मात्र से कब्ज ठीक हो जाएगा जबकि ऐसा होता नहीं है, उलटे कच्चा खाने से वायु बढ़ेगा. आइये जानते हैं कि कब्ज की समस्या का क्या-क्या आयुर्वेदिक उपचार हो सकते हैं:
कब्ज की समस्या से निजात पाना है तो सबसे पहले पर्याप्त मात्रा में पानी पीना शुरू कर दे। यदि गुनगुना पानी पीते हैं तो अति उत्तम। गुनगुना पानी आँतों को सुचारू रूप से काम करने में मदद करता है। भोजन में फाइबर की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए। चोकरयुक्त आटे की रोटी खाना श्रेयस्कर होगा। दूध में गाय का घी डालकर पी सकते हैं, इससे फायदा होगा क्योंकि घी वात का शमन करता है अर्थात घटाता है।
अमरूद का सेवन भी लाभकारी होगा। त्रिफला को गर्म दूध या पानी के साथ लेने से भी कब्ज का उपचार संभव है। समय पर उठे–जगे और खाए–पीयें। रात्री जागरण और फास्ट फ़ूड से बचे। मैदे से बनी चीजों को खाने से परहेज करे। शारीरिक सक्रियता बढायें, व्यायाम करें।
फिर भी कब्ज की समस्या ख़त्म न हो तो आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह से अभ्यारिष्ट और द्राक्षारिष्ट जैसी औषधियों भी ली जा सकती है। अनुवासन बस्ती जैसी पंचकर्म थेरेपी भी करवाई जा सकती है. उसके अलावा गुनगुने पानी से भरे टब में बैठने से भी फायदा होगा।
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हड्डी का कैंसर और आयुर्वेद - Bone Cancer and Ayurveda in Hindi
आधुनिकीकरण ने तकनीक के माध्यम से हमारे जीवन को अधिक बेहतर और सुविधाजनक बनाया है। लेकिन इसके अत्यधिक प्रयोग ने हमें अस्वस्थ्य जीवनशैली की ओर भी धकेल दिया है जिसके परिणामस्वरूप अधिकांश लोग किसी-न-किसी बीमारी से ग्रस्त हैं।
कैंसर की बीमारी भी उनमें से एक है जिसके मामले पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़े हैं और पूरी दुनिया में इसकी वजह से मरने वाले लोगों की संख्या में तेज इजाफा हुआ है। कैंसर के कई प्रकार हैं जिनमें से एक हड्डी का कैंसर होता है जो काफी तकलीफदेह होता है और रोगी को शारीरिक तकलीफ देने के साथ-साथ भावनात्मक रूप से भी तोड़ देता है।
आधुनिक चिकित्सा पद्धति में हड्डी के कैंसर का कोई प्रमाणिक इलाज नहीं है। लेकिन आयुर्वेद के प्राचीन चिकित्सा शास्त्र में ऐसे औषधीय गुण वाले 'जड़ी-बूटियों' और 'पंचकर्म' का वर्णन मिलता है जिसके माध्यम से कैंसर रोगियों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करके जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश की जा सकती है।
पंचकर्म शरीर के विषाक्त पदार्थों और दोषों को बाहर निकाल कर शरीर को शक्ति प्रदान करने में प्रमुख भूमिका निभाता है। दूसरी तरफ हल्दी, चित्रक, अश्वगंधा, लहसुन, आंवला जैसे चमत्कारिक औषधीय गुण वाली जड़ी-बूटियाँ हड्डी के कैंसर में दर्द को कम करती है।
हड्डी के कैंसर में उपयोगी आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियाँ - Ayurvedic herbs useful in bone cancer in Hindi
जड़ी-बूटियाँ जो हड्डी के कैंसर में दर्द को कम करती है:
1. हल्दी (करकुमा लोंगा) भारत का एक प्रसिद्ध मसाला है और आयुर्वेद में दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीकैंसर गुण होते हैं जिसकी वजह से यह करक्यूमिन कैंसर के विकास को रोकने, कैंसर कोशिकाओं को मारने और उपचार के दुष्प्रभावों को कम करने में भूमिका निभा सकता है।
2. चित्रक में बायोएक्टिव यौगिक होते हैं जिनमें विभिन्न कैंसर कोशिकाओं के खिलाफ कैंसर विरोधी गतिविधि होती है। चित्रक को रसायन माना जाता है जो इम्यूनोमॉड्यूलेटरी है और सेलुलर स्तर पर काम करता है जो हड्डी में कैंसर के दर्द को रोकने में मदद करता है। यह प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने और शरीर को मुक्त कणों से बचाने में मदद करता है।
3. अश्वगंधा (विथानिया सोम्निफेरा) शरीर के सूजन को कम करता है। साथ ही यह कैंसर कोशिकाओं के विकास को रोकने में भी मदद करता है।
4. लहसुन (एलियम सैटिवम) एक औषधीय पौधा और एक मसाला है जो कच्चा होने पर काफी तीखा होता है। लहसुन में सेल कल्चर में सीधे तौर पर एंटीकैंसर गुण होते हैं।
5. आंवला कैंसर के उपचार और रोकथाम में उपयोगी है। कई प्रीक्लिनिकल अध्ययनों से पता चला है कि आंवला में विभिन्न गुण होते हैं जो कैंसर की रोक में सहायक होते हैं। यह प्रतिरक्षा बढ़ाने और पुनरावृत्ति में देरी करने में भी मदद करता है।
आयुर्वेद चिकित्सक के परामर्श से सही तरीके और सही समय इन जड़ी-बूटियों के सेवन से हड्डी के कैंसर रोगी को फायदा मिलता है।
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आयुर्वेद भारत में प्राचीन काल से चली आ रही चिकित्सा प्रणाली है जिसका उद्देश्य स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य को ठीक रखना और बीमार व्यक्ति की चिकित्सा करना है। यह एक अच्छी जीवनशैली के माध्यम से व्यक्ति के सम्पूर्ण स्वास्थ्य को ठीक करने की शिक्षा देता है। आज कल के समय में बहुत से रोग हमारी बिगडी जीवन शैली का ही परिणाम हैं जिनमे से एक ह्रदय रोग भी हैं। इन्ही ह्र्दय रोगो में एरिथमिया भी शामिल है। तो आइये समझते हैं क्या है एरिथमिया और इस पर किस तरह काबू पाया जा सकता है।
विषय - सूची
• एरिथमिया क्या है? - What is Arrhythmia in Hindi?
• एरिथमिया के कारण - Causes of Arrhythmia in Hindi
• एरिथमिया के लक्षण - Symptoms of Arrhythmia in Hindi
• एरिथमिया का निदान - Diagnosis of Arrhythmia in Hindi
• एरिथमिया के सामान्य उपाय - Common Remedies for Arrhythmia in Hindi
• क्या खाएं और किससे बचें - What to Eat and What to Avoid in Hindi?
• अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न - Frequently Asked Question in Hindi
क्या है एरिथमिया? - What is Arrhythmia in Hindi?
एरिथमिया का सामान्य अर्थ है कि ह्रदय अपनी सामान्य गति से नहीं धडक रहा। दिल की धडकन का अनियमित हो जाना एरिथमिया कहलाता है। आयुर्वेद में इसे असामान्य ह्रदय गति बोला गया है। जब ह्रदय अपनी सामान्य गति या ताल से कार्य नहीं करता तो यह समस्या आती है। हमारी सामान्य ह्रदय गति 50 से 100 बीट प्रति मिनट है। एरिथमिया की समस्या में यह घट या बढ जाती है। आम तौर पर यह किसी ह्रदय रोग की तरफ इशारा करती है।
एरिथमिया के कारण - Causes of Arrhythmia in Hindi
आयुर्वेद में एरिथमिया को दोषों के अनुसार विभाजित किया गया है। वात दोश असंतुलित होने पर अनियमित हो सकता है, अतः इसके बढने पर हमारी ह्रदय गति भी अनियमित हो जाती है। पित्त दोष की गति तेज़ होती है, इसीलिये इसके बढने पर ह्रदय गति अधिक हो जाती है। कफ दोष स्वभाव से ही मंद होने के कारण धीमी ह्रदय गति के लिये उत्तरदायी है।
हमारी खराब जीवन शैली और गलत खान-पान के कारण यह समस्या उत्पन्न होती है। आम उत्पन्न हो कर ह्रदय को दूशित करता है तथा दोषों के अंसतुलन से ह्रदय गति भी असन्तुलित हो जाती है। इसके अलावा निम्न कारणो से भी यह रोग हो सकता है:
• मोटापा
• सिगरेट पीना
• उच्च रक्तचाप
• फेफडो से सम्बंधित रोग
• कोरोनरी हार्ट डिसीज़
• डायबिटीज़
• इलेक्ट्रोलाइट का असंतुलन
• इंफेक्शन या बुखार
• शारीरिक या मानसिक तनाव
• अन्य रोह जैसे थायरॉयड या एनीमिया
• कुछ दवाएँ जैसे एम्फीटामाइंस और बीटा ब्लॉकर्स आदि का सेवन
एरिथमिया के लक्षण - Symptoms of Arrhythmia in Hindi
एरिथमिया का मुख्य लक्षण है ह्रदय की ताल गति का असामान्य होना। यह तेज़ या धीमी हो सकती है. यदि यह तेज़ होती है तो इसे टैकीकार्डिया और धीमी हो तो ब्रैडीकार्डिया कहलाता है। व्यान वायु(वात दोश का एक प्रकार) ह्रदय की सभी गतिविधियो का नियंत्रण करती है, व्यान वायु के सामान्य कार्य में बाधा आने से ह्रदय गति असामान्य हो जाती है। यह पित्त के साथ मिल कर टैकीकार्डिया और कफ के साथ मिल कर ब्रैडीकार्डिया को उत्पन्न करती है। इसके अलावा इसमे निम्न लक्षण मिलते हैं:
• सांस फूलना
• सीने में दर्द
• असामान्य नाडी चाप
• घबराहट होना
• त्वचा का पीला पड जाना
• अत्यधिक पसीना आना
• चक्कर आना
एरिथमिया का निदान - Diagnosis of Arrhythmia in Hindi
आमतौर पर व्यायाम करने या दौड-भाग करने के बाद ह्रदय गति असामान्य हो जाती है जो कि कुछ ही देर में अपनी सामान्य लय में आ जाती है। लेकिन यदि आपकी ह्रदय गति कुछ सेकेंडो से ज़्यादा समय तक असामान्य रहती है तो आपको डॉक्टर को दिखाने की आवश्यकता है। इसका निदान लक्षण देख कर, इतिहास इतिवृत्त तथा कुछ जांचो जैसे ईसीजी, ईकोकार्डियोग्राम, स्ट्रेस टेस्ट आदि के आधार पर किया जाता है।
एरिथमिया के सामान्य उपाय - Common Remedies for Arrhythmia in Hindi
आयुर्वेद में ह्रदय को एक महत्वपूर्ण अंग माना गया है। यह त्रिमर्मो में से एक मर्म है, अतः ह्रदय को आघात लगने पर यह बहुत सी जटिलताएँ पैदा कर सकता है बल्कि व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है। इसलिये ह्रदय के स्वास्थ्य का ध्यान रखना बेहद ज़रूरी है। एरिथमिया से बचाव के लिये निम्न उपाय अपनाये जा सकते हैं:
• वात दोष को संतुलित करने के लिये तैल में बने हल्के भारी भोजन को वरीयता देँ। लहसुन, मछली, तैल आदि को नियमित रूप से डाइट में ले। मेडिटेशन और बैठ कर किये जाने वाले योग आसन करेँ। अश्वगंधा को दूध के साथ ले सकते हैं। यह हृदय को बल देता है। वात दोष को ठीक करने के लिये अर्जुन, अश्वगंधा, गुग्गुल, लहसुन, मुलेठी आदि का प्रयोग किया जा सकता है।
• पित्त दोष को संतुलित करने के लिये अधिक गर्म खाने, तेज़ मिर्च-मसाले, मांस, अत्यधिक नमक आदि का सेवन न करेँ। खाने में घी का सेवन करेँ। अधिक धूप, अधिक व्यायाम, बहुत अधिक शारीरिक कार्य करने से भी परहेज़ करेँ। केसर, अर्जुन, शतावरी, एलोवेरा आदि जडी-बूटियाँ लाभकारी हैं। मुलेठी, ब्राह्मी या अर्जुन की बनी दवाओ का सेवन कर सकते हैं।
• कफ दोष को संतुलित करने के लिये तैलीय, भारी भोजन, अधिक नमक, अत्यधिक मीठा त्याग देँ। हल्का सुपाच्य भोजन लेँ। अर्जुन, इलायची, दालचीनी, गुग्गुल, त्रिकटु का सेवन लाभदायक है।
• अर्जुन: आयुर्वेद में अर्जुन को कार्डियो-टॉनिक बताया गया है। एक चम्मच अर्जुन को एक गिलास दूश में पका कर आधा रह जाने पर छान कर सेवन कर सकते हैं।
• इसके अलावा तनाव के लिये योगा आसन तथा मेडिटेशन का बहुत महत्व है। हल्का-फुल्का व्यायाम भी नियमित रूप से करेँ।
क्या खाएं और किससे बचें - What to Eat and What to Avoid in Hindi?
आपने भी यह कहावत सुनी होगी कि जैसा खाये अन्न, वैसा बने मन। आपको जान कर हैरानी होगी कि आयुर्वेद में मन का स्थान हृदय बताया गया है। वैसे भी हम जो भी खाते हैं उसका सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पडता है। तो आज से ही अपने दिल को स्वस्थ रखने के लिये अपने भोजन में निम्न कुछ बातो का ध्यान रखेँ:
• पचने में हल्का, घर के बने ताज़ा भोजन का सेवन करेँ।
• भोजन में हाई-फाइबर चीजे लेँ जैसे जौ, साबुत अनाज तथा दलिया आदि।
• खट्टे फल ह्रदय के लिये अच्छे होते हैं जैसे बेर, नीम्बू, अनार, मौसमी आदि। इन्हे नियमित रूप से अपनी डाइट में शामिल करेँ।
• खाने में फल-सब्ज़ियो की मात्रा अधिक रखेँ क्योंकि यह पचने में आसान होती हैं।
• अधिक तला-भुना और मसालेदार भोजन करने से परहेज़ करेँ।
• सिगरेट, शराब, चाय-कॉफी आदि से दूर रहेँ।
• अधिक नमक न खायेँ।
• अधिक मीठा, प्रोसेस्ड फूड, प्रोसेस्ड मीट और रिफांइड चीज़े न खाये।
अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न - Frequently Asked Question in Hindi
प्र. एरिथमिया के लिए सबसे अच्छा इलाज क्या है?
उ. एरिथमिया के इलाज के लिये दवाओ के अलावा पेसमेकर, कार्डियोवर्ज़न, कैथेटर अब्लेशन आदि तकनीके अपनायी जाती हैं। हालांकि इसके साथ ही जीवनशैली में परिवर्तन ज़रूरी है जिससे आपका रक्तचाप, कॉलेस्ट्रॉल, वज़न आदि संतुलित रहेँ।
एरिथमिया के लिए प्राकृतिक उपचार
प्राकृतिक रूप से इस समस्या को दूर करने के लिये आप आयुर्वेद में बताये गये योग, सद्वृत्त और आचार रसायन का पालन कर सकते हैं। अर्थात अपनी क्षमता के अनुसार व्यायाम, योग, चिंता से दूर रहना, अच्छे आचरण तथा सामान्य जीवनशैली को अपनाना आदि आपके ह्रदय के स्वास्थ्य को बनाये रखने में मदद करेंगे। ऐसे कारणो से दूर रहेँ जो आपकी इस समस्या को बढा देते हो जैसे- चाय. सिगरेट, शराब का सेवन। पर्याप्त मात्रा में पानी पियेँ। अपने इलेक्ट्रोलाइट बैलेन्स का ध्यान रखे।
एरिथमिया के लिए जड़ी बूटी
आयुर्वेद में एरिथमिया के लिये विभिन्न जडी-बूटियो का वर्णन है जैसे अर्जुन, अश्वगंधा, पुनर्नवा, शंखपुष्पी, ब्राह्मी, पीपल त्वक इत्यादि। यह ह्रदय को प्राकृतिक रूप से बल देती हैं तथा मज़बूत बनाती हैं।
एरिथमिया के लिए विटामिन
एरिथमिया में ऑक्सिडेटिव स्ट्रैस बहुत बड़ा रोल निभाता है। इसको कम करने के लिये एंटी-ऑक्सीडेंट देना फायदेमंद रहता है। विभिन्न शोधो के अनुसार विटामिन सी और विटामिन ई इसके रिस्क को कम कर सकते हैं। अतः आप भी विभिन्न खाद्य पदार्थो के द्वारा इनका सेवन करेँ और अपने ह्रदय को स्वस्थ बनाऐ रखेँ।
टाइफाइड, एक प्रकार की संक्रामक बीमारी है जो साल्मोनेला टाइफी नामक बैक्टीरिया की वजह से होती है। यह बीमारी मुख्य रूप से बरसात के दिनों में ज़्यादा देखने को मिलती है। भूख न लगना और तेज बुखार आना इस बीमारी के मुख्य लक्षण है। यह एक ऐसे बीमारी है जिससे विकासशील देशो जैसे भारत आदि में लगभग १० लाख लोग , उनमे भी बच्चे ज़्यादा पीड़ित होते है जबकि विकसित देशों में यह कम देखने को मिलता है।
आयुर्वेद में टाइफाइड - Typhoid in Ayurveda in Hindi
वैसे तो आयुर्वेद की अपनी व्याधियाँ है जो वातादि दोषों में असंतुलन की वजह से होती है। फिर भी यदि मोटे मोटे तौर पर देखा जाये तो टाइफॉइड के लक्षण आयुर्वेद में वर्णित कफ प्रधान सन्निपातज संतत ज्वर के लक्षणों से समानता रखते है। यह संतत ज्वर दोषो के बल अबल के आधार पर सात , दस तथा बारह दिनों में या तो सही हो जाता है या फिर कभी कभी दोषो के अत्यधिक कुपित हो जाने रोगी की मृत्यु तक का कारण बन जाता है। इस ज्वर का मुख्य लक्षण यह होता है की यह दिन रात में दो बार आता है।
टाइफाइड के लक्षण - Symptoms of Typhoid in Hindi
बुखार
सर दर्द
भूख न लगना
शरीर में लाल रंग के चक्कत्ते हो जाना
उल्टी तथा दस्त होना
पेट में दर्द होना
शरीर में कमजोरी और दर्द होना
टाइफाइड के कारण - Cause of Typhoid in Hindi
साल्मोनेला टाइफी बैक्टीरिया का संक्रमण
टाइफॉइड संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आना
टाइफाइड से बचाव - Prevention of Typhoid in Hindi
वैसे तो टाइफॉइड के लिए वैक्सीन उपलब्ध है लेकिन कभी कभी वैक्सीन के बाद भी टाइफॉइड हो जाता है इसलिए साफ सफाई का ध्यान रख कर और कुछ छोटी छोटी बातो ध्यान रख कर टाइफॉइड से बचा जा सकते है। टाइफॉइड से बचाव हेतु निम्न बातो का ध्यान रखना चाहिए -
नियमित रूप अर्थात खाना खाने से पहले , टॉयलेट का प्रयोग करने के बाद हाथो को पानी तथा साबुन से धोये ; पानी या साबुन उपलब्ध न होने पर एल्कोहल युक्त सैनिटाइज़र का प्रयोग करे।
पानी को उबालकर पिए।
कच्चे फल तथा सब्जियों का सेवन न करे।
टाइफाइड फीवर डायग्नोसिस - Typhoid Fever Diagnosis in Hindi
सी.बी. सी ( कम्पलीट ब्लड सेल काउंट )
विडाल टेस्ट
स्टूल कल्चर
टाइफी डॉट आई जी एम
टाइफाइड से बचाव के लिए घरेलु उपचार - Home Remedies to Prevent Typhoid in Hindi
बुखार को कम करने के लिए सर पर ठन्डे पानी की पट्टियों का प्रयोग करे।
पानी की कमी को दूर करने के लिए एक लीटर पानी को उबालकर उसमे नमक और चीनी मिलाकर पीते रहे।
तुलसी (जिसमे की एंटीबायोटिक गुण पाए जाते है ) को पानी में उबालकर उसका काढ़ा प्रयोग करे।
षडङ्गपानी अर्थात मोथा , पित्तपापड़ा , खस , रक्त चन्दन , सुगंदबाला और सौंठ से सिद्ध किया हुआ पानी पिए।
क्या करे? - What to Do in Hindi
पानी को उबालकर प्रयोग करे।
ताज़ा तथा गर्म भोजन का सेवन करे।
पचने में हलके भोजन का सेवन करे जैसे पतली दाल , पतली सब्जी , खिचड़ी आदि।
क्या न करे? - What Not to Do in Hindi
पचने में भारी चीजों जैसे दूध , पनीर आदि का सेवन न करे।
अल्कोहल का सेवन न करे।
दही का सेवन न करे।
खुले में मिलने वाले भोज्य पदार्थो जैसे खुले में मिलने वाले समोसे , कचौड़ी , चाट आदि का सेवन न करे।
प्रश्न उत्तर - Question & Answer in Hindi
प्रश्न- टाइफॉइड होने पर तुरंत हो लैब इन्वेस्टीगेशन करा लेनी चाहिए ?
उत्तर- वैसे तो चिकित्सक लक्षण देख कर ही लैब इन्वेस्टीगेशन कराता है फिर भी यदि आप खुद से बिना चिकित्सक को दिखाए टाइफॉइड का अंदेशा होने पर खुद से लैब इन्वेस्टीगेशन कराना चाहे तो तुरंत न करा कर के कुछ दिन व्यतीत हो जाने पर करानी चाहिए क्योकि इसका इन्क्यूबेशन पीरियड् तीन दिन से लेकर १०- १४ दिन का होता है यदि तुरंत ही लैब इन्वेस्टीगेशन करा ली जाये तो रिपोर्ट सटीक नहीं आ पाती है।
प्रश्न- टाइफॉइड मुख्य रूप से किन लोगो को होने की सम्भावना होती है ?
उत्तर- टाइफॉइड वैसे तो किसी को भी सकता है लेकिन बच्चों और ऐसे लोग जिनका पाचन तंत्र कमजोर होता है उनको टाइफॉइड होने की ज्यादा सम्भावना होती है।
प्रश्न- टाइफॉइड या अन्य कोई व्याधि होने पर खुद से ही आयुर्वेदिक दवा ले लेना कितना सही है?
उत्तर- आधुनिक डायग्नोसिस के आधार पर तथा बिना ये जाने की रोगी व्यक्ति के शरीर में कौन से दोष का असंतुलन हुआ है , चिकित्सा करने पर या रोगी द्वारा खुद ही सोशल मीडिया में देख कर किसी भी आयुर्वेदिक दवा का सेवन करना बिल्कुल भी सही नहीं है खुद से दवा लेने के कई दुष्परिणाम हो सकते है इसलिए टाइफॉइड हो या अन्य कोई व्याधि शरीर में व्याधि के लक्षण दिखाई देने पर किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह पर ही आयुर्वेदिक दवाई का सेवन करे।
प्रश्न- यदि टाइफॉइड के लिए उपचार न लिया जाये तो क्या क्या कॉम्प्लीकेशन्स हो सकते है ?
उत्तर- टाइफॉइड होने पर इलाज न करने या देरी से इलाज करने पर मुख्य रूप से जो कॉम्प्लीकेशन्स हो सकते है वो है -
पाचन तंत्र के किसी भाग से आंतरिक रक्तस्राव होना।
पाचन तंत्र के किसी हिस्से में परफोरेशन हो जाना तथा परफोरेशन की वजह से इन्फेक्शन का आस पास के हिस्सों में भी फ़ैल जाना।
प्रश्न- आयुर्वेद में टाइफॉइड के लिए क्या उपचार उपलब्ध है ?
उत्तर- टाइफॉइड के लक्षण आयुर्वेद में वर्णित सन्निपातज प्रधान कफज संतत ज्वर से मिलते है तथा इसकी चिकित्सा में दोष , दुष्य , काल , प्रकृति आदि को देखते हुए अपतर्पण अर्थात लंघन चिकित्सा कराने का वर्णन मिलता है।
रक्तचाप अर्थात ब्लड प्रेशर का कम या जयदा होना, दोनों ही स्वास्थ के लिए हानिकारक होता है। ब्लड प्रेशर जयदा हो तो इसे हाइपरटेंशन या उच्च रक्त दाब कहा जाता है तथा इसके विपरीत यदि ब्लड प्रेशर कम हो तो इसे निम्न रक्त दाब या हाइपोटेंशन के नाम से जाना जाता है।
वैसे तो हाइपो तथा हाइपरटेंशन दोनों ही स्वास्थ की दृष्टि से हानिकारक होते है लेकिन इन दोनों में भी हाइपोटेंशन जयदा नुकसानदायक होता है , क्योकि बहुत से लोगो में हाइपोटेंशन से सम्बंधित लक्षण या तो बहुत देर से दिखाई देते है या फिर दिखाई ही नहीं देते है इसलिए हाइपरटेंशन से ज़्यादा हाइपोटेंशन हानिकारक होता है।
हाइपोटेंशन के प्रकार - Types of Hypotension in Hindi
प्राइमरी हाइपोटेंशन- बिना किसी बीमारी अथवा बिना किसी निश्चित कारण के होता है। इसे एसेंशियल हाइपोटेंशन भी कहते है। लगातार थकान तथा कमजोरी बने रहना इसका मुख्य लक्षण है।
सेकेंडरी हाइपोटेंशन- इस हाइपोटेंशन का कारण मायोकार्डियल इन्फार्क्शन, ट्यूबरक्लोसिस, नर्वस डिसऑर्डर्स, पिट्यूटरी तथा एड्रेनल ग्रंथि का कम सक्रिय होना ये सब होते है।
हाइपोटेंशन के लक्षण - Symptoms of Hypotension in Hindi
1. चक्कर आना
2. सर घूमना
3. जी मिचलाना
4. आँखों से धुंधला दिखाई देना
5. अधिक नींद आना
6. पूरे शरीर में थकान तथा कमजोरी का अनुभव होना
7. लम्बे समय तक बैठने या लेटने के बाद उठने पर आँखों के सामने अँधेरा सा छा जाना
8. ऊंचाई वाले स्थानो में जाने पर सांस लेने में कठिनाई होना या सांस फूलना
9. किसी भी कार्य को करने में मन न लगना अर्थात मन एकाग्रचीत न होना
10. हाथ पैर ठन्डे पड़ जाना
11. धड़कन का अनियमित होना अर्थात कभी कम तो कभी जयादा हो जाना
चिकित्सीय परामर्श कब ले? - When to Seek Medical Advice in Hindi?
स्फिग्मोमेनोमीटर के द्वारा नापे जाने पर यदि आपका ब्लड प्रेशर ९०/६० mmhg या इससे कम आये तथा साथ में चक्कर आना , थकान होना , आँखों के सामने अँधेरा छाना जैसे लक्षण न हो तो आपको चिकित्सक को दिखाने की जरूरत नहीं होती है लेकिन यदि ब्लड प्रेशर ९०/६०mmhg या इससे कम हो और साथ में थकान होना, आँखों के सामने अँधेरा छा जाना आदि लक्षण भी हो तो चिकित्सक से संपर्क कर के ब्लड प्रेशर कम होने के कारण का पता लगा उपचार लेना चाहिए।
हाइपोटेंशन के कारण - Causes of Hypotension in Hindi
1. किसी बीमारी ( जैसे अतिसार आदि ) की वजह से या कम मात्रा में तरल पदार्थो का सेवन करने से शरीर में पानी की कमी अर्थात डिहाइड्रेशन हो जाना।
2. डेंगू , मलेरिआ आदि किसी बीमारी के कारण या किसी दुर्घटना के कारण शरीर में खून की कमी हो जाना।
3. हृदय सम्बंधी कोई विकार होना।
4. प्रेगनेंसी
5. एंडोक्राइन डिसऑर्डर्स जैसे डायबिटीज, थाइरोइड ग्रंथि के विकार से ग्रसित होना।
हाइपोटेंशन डायग्नोसिस - Hypotension Diagnosis in Hindi
हाइपोटेंशन के निदान के लिए कोई विशेष टेस्ट नहीं कराया जाता है। चिकित्सक रोगी के लक्षणों के आधार पर तथा sphygmomanometer के द्वारा रोगी का ब्लड प्रेशर चेक कर के हाइपोटेंशन का निदान करते है। इसके अतिरिक्त हाइपोटेंशन हृदय सम्बंधित बीमारियों की वजह से है या किसी एंडोक्राइन डिसऑर्डर्स जैसे डायबिटीज, थाइरोइड आदि की वजह से इसका पता लगाने के लिए चिकित्सक ई . सी .जी तथा रक्त सम्बन्धी टेस्ट कराते है।
हाइपोटेंशन होने पर क्या करे और क्या न करे? - What to do and what not to do when you have hypotension in Hindi?
1. कॉफ़ी का सेवन करे।
2. अपने आहार में सैंधा नमक़ का प्रयोग करे अर्थात फलों तथा सब्जी में ऊपर से नमक़ लगा के खाये।
3. अल्कोहल का सेवन न करे।
4. शरीर में पानी की कमी न होने दे।
5. पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थो जैसे निम्बू पानी, अनार, गाजर, चुकुन्दर आदि का जूस रूप में या सूप रूप में सेवन करे।
6. थकाने वाले काम अधिक न करे।
हाइपोटेंशन से निजात के लिए घरेलु उपाय - Home Remedy for Relieving Hypotension in Hindi
1. दूध के साथ ख़ज़ूर का सेवन करे।
2. आंवले का प्रयोग जूस या किसी अन्य रूप में करे।
3. गाजर , चुकुन्दर के जूस का सेवन करे।
4. अदरक के छोटे छोटे टुकड़े कर उनमे सैंधा नमक मिलाकर खाये।
5. किसमिस तथा चने का सेवन करे।
प्रश्न उत्तर - Question & Answer in Hindi
प्रश्न- हाइपोटेंशन से ग्रसित होने पर किडनी तथा मस्तिष्क अंगो पर बुरा प्रभाव पडता है?
उत्तर- हां , हाइपोटेंशन होने पर यदि उपचार न किया जाने तो किडनी तथा मस्तिष्क आदि अंगो पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न- यदि अचानक से किसी का ब्लड प्रेशर कम हो जाये तो क्या करना चाहिए?
उत्तर- यदि अचानक से किसी का ब्लड प्रेशर कम हो जाये उस व्यक्ति को तुरंत निम्बू पानी देना चाहिए या फिर उसको लेटा कर उसके पैर की तरफ वाले हिस्से को थोड़ा ऊचां कर देना चाहिए। चिकित्सीय भाषा में इसे फुट एन्ड रेज(foot end raise ) करना बोलते है।
प्रश्न- हाइपोटेंशन होने पर दवाओं का सेवन करना जरूरी है या यह खुद ही सही हो जाता है?
उत्तर- दवाओं का सेवन करना है या नहीं यह इस बात पर निर्भर करता है की हाइपोटेंशन का कारण क्या है , क्या सिर्फ स्फिग्मोमेनोमीटर में ही ब्लड प्रेशर कम आ रहा है या साथ में कोई लक्षण भी है।
मिसकैरेज, यह एक ऐसा शब्द है जिसके बारे में लगभग सभी लोगो ने फिल्मो में या वास्तिक जीवन में सुना ही होगा। चिकित्सीय भाषा में इसे स्पॉन्टेनियस एबॉर्शन बोला जाता है। गर्भावस्था के २० सप्ताह पुरे होने के पहले ही अर्थात भ्रूण के पूर्ण रूप से विकसित होने से पहले ही गर्भावस्था का सहज ही समाप्त हो जाना ही मिसकैरेज कहलाता है। यह महिला को शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से नुकसान देने वाला तथा दर्दनाक होता है।
प्रकार-
1. Threatened
2. Inevitable
3. Complete
4. Incomplete
5. Missed
आयुर्वेद के अनुसार मिसकैरेज - Miscarriage According to Ayurveda in Hindi
आयुर्वेद में मिसकैरेज का वर्णन गर्भस्राव नाम से आया है। चरक आदि सभी आचार्यो ने गर्भस्राव का वर्णन इस प्रकार किया है- गर्भावस्था के चौथे महिने तक अर्थात जब गर्भ द्रव रूप में होता है उस समय गर्भ के स्वस्थान से अलग होकर गिरने को गर्भस्राव कहते है।
मधुकोष व्याख्याकार भोज ने गर्भस्राव की मर्यादा तीन महिने तक मानी है।
मिसकैरेज के लक्षण
1. गर्भाशय , कटी (क़मर ), वंक्षण प्रदेश में दर्द होना।
2. योनि मार्ग से दर्द के साथ या बिना दर्द के रक्त स्राव होना।
3. मूत्र संग अर्थात मूत्र का रुक जाना।
चिकित्सीय परामर्श कब ले ? - When to Seek Medical Advice in Hindi?
वैसे तो मिसकैरेज होने का अंदेसा होने पर तुरंत या कुछ समय पश्चात ही डाक्टरी सलाह लेनी चाहिए परन्तु यदि मिसकैरेज होने पर आपको रक्त स्राव तथा दर्द होने से अलग यदि बुखार , ठण्ड लगाना , शरीर में कम्पन होना आदि लक्षण दिखाई दे तो तुरंत बिना देर किये हुए चिकित्सीय परामर्श लेना चाहिए क्योकि ये लक्षण शरीर में होने वाले इन्फेक्शन की ओर इशारा करते है और यदि समय रहते इन्फेक्शन सही न किया जाये तो आगे चलकर महिला को काफी परेशानियों का सामना करना पड सकता है।
मिसकैरेज के कारण - Causes of Miscarriage in Hindi
आधुनिक चिकित्सा शास्त्रियों के अनुसार ५० % मिसकैरेज आनुवंशिक कारणों से , १०-१५ % अन्तःश्रावी (एंडोक्राइन ) तथा चयापचय (मेटाबोलिक) कारणों जैसे - luteal phase defect(LPD), thyroid abnormalities like hypo or hyperthyroidism, diabetes से , १०-१५% ऐनाटॉमिकल विकृतियों जैसे सर्वाइकल इंकपेटेंस , congenital malformation of the uterus , uterine fibroid से , ५% rubella , Chlamydia जैसे इन्फेक्शन्स की वजह से तथा ५-१०% इम्युनोलॉजिकल डिसऑर्डर्स के कारण होते है।
आयुर्वेद के अनुसार मिसकैरेज के कारण - Causes of Miscarriage in Ayurveda in Hindi
1. महिला का पुत्रघ्नी , वामिनी , अप्रजा जैसे योनि विकारो से ग्रसित होना।
2. गर्भ धारण के पश्चात भी अधिक मात्रा में व्यायाम करना
3. विषम स्थान अर्थात उबड़ खाबड़ रास्तों से पैदल चलकर या गाड़ी से जाना।
4. अधिक मात्रा में गर्म भोज्य पर्दार्थो जैसे मांसाहार , कच्चे पपीते , गुड़ , अखरोट , बादाम आदि का सेवन करना। ५-मैथुन करना।
5. आये हुए मल मूत्र आदि के वेगो को रोकना ।
6. उपवास करना
7. गर्भाशय , रज तथा शुक्र में किसी प्रकार की विकृति होना
8. क्रोध
9. शोक
10. भय
मिसकैरेज के डायग्नोसिस - Diagnosis of Miscarriage in Hindi
1. सोनोग्राफी (टी . वी .एस )
2. यूरिन एनालिसिस
3. कम्पलीट ब्लड सेल काउंट (सी. बी. सी. )
मिसकैरेज से बचाव - Prevention of Miscarriage in Hindi
1. यदि आपको योनि मार्ग से सम्बंधित या फिर माहवारी से सम्बंधित कोई बीमारी हो तो पहले उसका उपचार कराये।
2. गर्भ धारण के पश्चात चिकित्सक द्वारा बताई बातों का पालन करे।
3. अधिक मात्रा में परिश्रम करना , गर्म चीजों का सेवन करना तथा ऐसे सभी कार्य जो गर्भ के स्राव का कारण
बनते है उनका परित्याग करना चाहिए।
प्रश्न उत्तर - Question & Answer in Hindi
प्रश्न- मिसकैरेज होने पर कितने समय तक शारीरिक सम्बन्ध नहीं बनाने चाहिए?
उत्तर- मिसकैरेज होने पर लगभग तीन से चार महीने तक सम्बन्ध नहीं बनाने चाहिए।
प्रश्न - मिसकैरेज होने के बाद दुबारा से माँ बनने की सम्भावना कितने % होती है ?
उत्तर- यदि मिसकैरेज के कारणों का पता लगा उनकी संपूर्ण चिकित्सा की जाये तथा मिसकैरेज होने के एक निश्चित समय बाद ही फिर से प्रेग्नेंट होने का सोचा जाये तो मिसकैरेज होने के बाद दुबारा से प्रेग्नेंट होने की सम्भावना ८५-९५% होती है।
प्रश्न- बार बार होने वाले मिसकैरेज का क्या कारण होता है?
उत्तर- बार बार मिसकैरेज होने के कई कारण हो सकते है जैसे किसी बीमारी (थाइरोइड , डायबिटीज आदि ) से ग्रसित होना , मोटापा आदि।
प्रश्न- मिसकैरेज के केस में आयुर्वेद उपचार कितना कारगर है ?
उत्तर- मिसकैरेज अर्थात बार बार गर्भास्राव होने पर आयुर्वेद में संशोधन चिकित्सा कर के द्वारा तथा गर्भस्राव होने के कारण का पता लगा उसको जड़ से खत्म किया जाता है। अतः मिसकैरेज के केस में आयुर्वेद का उपचार काफी कारगर है।
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