By NS Desk | 25-Aug-2022
गोरखपुर: आयुष मंत्रालय के सचिव, पद्मश्री वैद्य राजेश कोटेचा ने कहा कि 2014 के बाद भारत सरकार द्वारा आयुष को महत्व दिए जाने से इस पर आधारित मेडिसिन इंडस्ट्री छह गुना रफ्तार से आगे बढ़ी है। 2014 में किए गए एक उच्च स्तरीय अध्ययन में निष्कर्ष निकला था कि देश में आयुष इंडस्ट्री का आकार 3 बिलियन डॉलर का था। 2020 में दोबारा हुए अध्ययन में यह आंकड़ा 18.1 बिलियन डॉलर पहुंच चुका था। छह साल में छह गुना विकास दशार्ने वाला यह आंकड़ा देश में आयुष को बढ़ावा देने के कदमों की झलक दिखा जाता है।
केंद्रीय आयुष मंत्रालय के सचिव, पद्मश्री वैद्य डॉ राजेश कोटेचा ने बुधवार को महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय, आरोग्यधाम बालापार गोरखपुर के प्रथम स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में 2014 के पूर्व एवं इसके बाद' विषय पर विचार व्यक्त कर रहे थे। वैद्य कोटेचा ने कहा कि कोरोना संकटकाल में प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी दूरदर्शी सोच से आयुष विभाग को इस संकट को अवसर के रूप में लेने की नसीहत दी थी। इसके बाद टास्क फोर्स बनाकर लोगों को कोरोना से मुक्त कराने का अभियान शुरू कर दिया गया।
आयुष को लेकर तब काफी दुष्प्रचार भी हुआ लेकिन लोगों ने भ्रामक प्रचार को दरकिनार करते हुए इस पर पूरा भरोसा रखा। कोरोना के दौर में लोगों को रोग मुक्त व निरोग रखने में गिलोय, अश्वगंधा आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आयुष पर लोगों के भरोसे को इससे समझा जा सकता है कि करीब दो हजार करोड़ रुपये का कारोबार सिर्फ आयुष काढ़ा का हुआ। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के समय हुए एक सर्वे में 89.9 प्रतिशत लोग आयुष दवाओं का प्रयोग करते पाए गए।
वैद्य कोटेचा ने कोरोना के दौर में आयुष विभाग की तरफ से किए गए कई अध्ययनों के निष्कर्ष को साझा करते हुए बताया कि आयुष की सफलता पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) भी मुरीद हो गया। डब्लूएचओ गुजरात के जामनगर में अपना सेंटर स्थापित कर रहा है तो इसमें आयुष की महत्वपूर्ण भूमिका है।
आयुष मंत्रालय के सचिव वैद्य कोटेचा ने कहा कि हाल के दिनों में शिक्षा के क्षेत्र में भी काफी रिफॉर्म हुए हैं। इससे आने वाले समय में आयुर्वेद व आयुष के क्षेत्र में सुपर स्पेशलिटी कोर्सेज की भी शुरूआत होगी। उन्होंने बीएएमएस के छात्रों का आह्वान किया कि वे सोच ऊंची रखें, बड़ा स्वप्न देखें और पढ़ाई पूर्ण करने के बाद खुद को डॉक्टर की बजाय वैद्य कहलाना अधिक पसंद करें। साथ ही यह उन्होंने उम्मीद जताई कि आने वाले कुछ सालों में महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय देश के श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में से एक होगा।
केजीएमयू लखनऊ के पूर्व कुलपति प्रो एल.एम. बी. भट्ट ने कहा कि आयुर्वेद का प्रादुर्भाव वैदिक काल में अथर्ववेद में हुआ। आयुर्वेद बीमारियों से रोकथाम एवं बचाव के साथ ही उनके उपचार की एक सुव्यवस्थित प्रणाली है। यह आयुर्वेद की महत्ता ही है कि इसे हमारी ज्ञान परम्परा और संस्कृति में पंचम वेद के रूप में मान्यता दी गई। प्रो भट्ट ने कहा कि देश की आजादी के बाद से वर्ष 2014 तक समय-समय पर आयुर्वेद के विकास के लिए कुछ कदम उठाए गए।
लेकिन, अन्य चिकित्सा पद्धतियों के साथ तुलनात्मक रूप से देखें तो कहीं न कहीं आयुर्वेद नीति नियंताओं के सौतेले व्यवहार का शिकार रहा। उन्होंने कहा कि वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद देश में तथा 2017 में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद उत्तर प्रदेश में आयुर्वेद एवं आयुष के विकास व नवाचार की एक आंधी देखने को मिली। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि 2014 में पीएम मोदी ने केंद्र में अलग आयुष मंत्रालय बनाया तो उत्तर प्रदेश में 2017 में योगी जी के सीएम बनने पर यहां अलग आयुष मंत्रालय देखने को मिला। देश में आयुर्वेद के विकास के लिए 2014 में नेशनल आयुष मिशन की स्थापना की गई। इसके तहत 31 मार्च 2020 तक जिला अस्पताल स्तर पर 497 पीएचसी स्तर पर 7779 तथा सब सेंटर स्तर पर 3922 आयुष केंद्रों की स्थापना की गई।
प्रो भट्ट ने बताया कि मिशन कार्यों के लिए वर्ष 2022-23 में सरकार ने बजट को बढ़ाकर 800 करोड़ रुपए कर दिया है। उन्होंने 2014 के बाद आयुर्वेद तथा आयुष विधा से इलाज व शिक्षा को लेकर हुए प्रयासों और हासिल उपलब्धियों की विस्तार से चर्चा की। साथ ही बताया कि कोरोना कालखंड में आयुर्वेद का पुनरुत्थान देश व दुनिया ने देखा। आयुर्वेद के काढ़े को विदेशों में भी एलोपैथी चिकित्सालयों द्वारा प्रोत्साहित किया गया। गुजरात के जामनगर में वैश्विक आयुष नवाचार एवं निवेश शिखर सम्मेलन के दौरान विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से वैश्विक पारंपरिक औषधि केंद्र की स्थापना भारत की वैश्विक स्तर पर आयुर्वेद के लिए एक सिर्फ उपलब्धि है।
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