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मंत्रों से दिव्य सर्पों की चिकित्सा, महाभारत में भी वर्णित

By NS Desk | Vaidya Street | Posted on :   26-Dec-2020

महाभारत मे वर्णित ऐतिहासिक संदर्भ और सुश्रुतार्थसन्दीपन टीका = दिव्य सर्पों की चिकित्सा के अधिकरण मे वर्णित

"चिकित्सया मन्त्रेण विनाकृतयेत्येव नेयम् , महाभारतीये आदिपर्व ४३ अध्याये - अभिशप्तस्य राज्ञः परीक्षितो दंशनार्थं प्रस्थितेन तक्षकेण दष्टतया भस्मीभूतस्य न्यग्रोधस्य मन्त्रसचिवेन मुनिना काश्यपेन पुनरुज्जीवनस्मरणात्"

- (हाराणचन्द्र चक्रवर्ति कविराज कृत सुश्रुतार्थसन्दीपन टीका) संदर्भ - सुश्रुत संहिता कल्पस्थान ४/४

वेरावळ के जिले मे मोटी धणेज ग्राम के पास श्री धन्वन्तरि देहोत्सर्ग स्थल है । वही पे पास मे तक्षक नाग की गुफा और उसीका क्षेत्र है । वहा से ही व्रजनी नदी बहती है ।

पाण्डवो का पोता राजा परीक्षित को श्राप मिला था की उसकी मृत्यु तक्षक नाग के दंष्टाविष से होगी । काश्यप मुनी जी ने तक्षक को प्रार्थना की थी के राजा परीक्षित को छोड दो, वोह सम्राट है । किन्तु तक्षकजी ने कहा की उन्हे श्राप को भोगना ही पडेगा । तो कृद्ध होकर काश्यप मुनी ने कहा की मै परीक्षित राजा को अपने मन्त्रसामर्थ्य से फिरसे जीवित कर  दुंगा । तो तक्षकजी ने कहा दिखाओ अपना मन्त्रसामर्थ्य । और वही पास के एक वटवृक्ष को दंश किया । वोह वटवृक्ष उस तीव्रतम तीक्ष्ण तक्षकविष से भस्मीभूत हो गया ।

फिर काश्यप ऋषीजी ने व्रजनी नदी का पानी हात मे लेकर विषनाशक मन्त्रो से अभिमन्त्रित किया और उस्म भस्म के राशि पर छिडक दिया । तोह वोह वटवृक्ष फिरसे जीवित हो गया । यह देखकर तक्षकजी विस्मित रह गये । और आगे सूक्ष्म योजना करके, काश्यपजी को दूर रखते हुए, परीक्षित राजा को मार डाला ।

यह ऐतिहासिक घटना जहा हुई वोह जगह गुजराथ मे उपर वर्णित मोटी धणेज ग्राम के पास, तक्षक के गुफा के पास है । आज भी वोह वटवृक्ष वहा है जिसके नये पत्ते पीत वर्णी और पुराने, पेडसे गिर चुके पत्ते हरे वर्ण के है । यही पर हम गत १० वर्षों से संहिता निरुपण कर रहे है ।

यह संदर्भ हाराणचंद्र चक्रवर्ति जी ने अपने टीका मे उद्धृत किया है । 

टीका का अधिकरण दिव्य सर्पो की चिकित्सा यह है । आयुर्वेद मे विषतन्त्र मे सिर्फ भौम सर्पो की चिकित्सा का अधिकरण है । दिव्य सर्पो की चिकित्सा यह हमारा विषय और अधिकार नही यह सुश्रुताचार्य कहते है । 

दिव्य सर्पो की चिकित्सा यह मन्त्रो से और दिव्य अगदों से ही होती है । मन्त्रो से अरिष्टा बन्धन करने को कहा है ।

 मन्त्रग्रहण कैसे करना चाहिये, किसने मन्त्रोच्चारण करना चाहिये उसके लिये क्या नियम है उसका विस्तृत वर्णन सुश्रुत संहिता कल्पस्थान पञ्चम अध्याय मे मिलता है । जैसे मैथुन-मद्य-मांस का त्याग, मिताहार, शुचि, कुशास्तरण पर आसनशयन यह नियम वर्णित है । सत्यब्रह्मतपोमय अाचरण करने वाले व्यक्तीको मन्त्र सिद्ध हो सकता है आदि विषय वर्णित है ।

'तार्क्ष्य अगद' नामका कल्प भी इसी अध्याय मे वर्णित है जो तक्षक विष को भी नष्ट कर सकता है ।

इस तरह महाभारत मे वर्णित ऐतिहासिक संदर्भ सुश्रुत संहिता कल्पस्थान मे और हाराणचंद्र चक्रवर्ति जी की टीका सुश्रुतार्थसन्दीपन मे वर्णित है ।
संहिता यह एक ज्ञान का विशाल सागर है । जितने बार डुबकी लगायेंगे हर बार नये मौक्तिक मिल जाते है ।

(वैद्य अभिजित सराफ के सोशल मीडिया से साभार)

NS Desk

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